Thursday 30 August 2018

आयुर्वेद मे सात्विक , राजसिक व तामसिक आहार

आयुर्वेद मे सात्विक , राजसिक व तामसिक आहार


भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन

राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

Friday 24 August 2018

फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण ) -------बचाव

फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण ) -------बचाव ------------डॉक्टर अरविन्द जैन भोपाल
            वायरस, बैक्टीरिया, फंगल, और परजीवी सभी त्वचा संक्रमण का कारण बन सकता है। फंगल संक्रमण आमतौर पर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। हालांकि घरेलू नुस्खे के जरिए फंगल इन्फेक्शन का इलाज किया जा सकता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, मधुमेह, खराब स्वच्छता, गर्म वातावरण में रहने, खराब ब्लड सर्कुलेशन और त्वचा की चोट आदि फंगल इन्फेक्शन के कारण है।
             सोडियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, और मैग्नीशियम से भरपूर सेब का सिरका या एप्पल साइडर सिरका किसी भी प्रकार के फंगल इंफेक्शकन के लिए बहुत आम इलाज है। एंटीमाइक्रोबील गुणों की उपस्थिति के कारण सेब साइडर सिरका, संक्रमण पैदा करने वाले कवक को मारने में मदद करता है।
        यदि आपके पैर की अंगुली में फंगस है, तो आप पानी में एक सेब का सिरका डालिए और उसमें पैर को डुबो दीजिए। आप चाहे तो सीधे भी लगा सकते हैं। इसकी हल्‍‍की एसिडिक प्रकृति संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद करता है और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ावा देता है।
         ट्री टी ऑयल के तेल में प्राकृतिक एंटीफंगल कंपाउंड होते हैं जो फुंगी या बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं जो फंगल संक्रमण का कारण बनता है। इसके अलावा, इसके एंटीसेप्टिक गुण शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण के फैलाव को रोकते हैं।
         इसके लिए आप ट्री टी ऑयल और जैतून का तेल या बादाम के तेल को बराबर मात्रा में मिलाएं तथा इसे प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं। आपको जरूर फायदा मिलेगा।
       प्रोबायोटिक्स जीवित सूक्ष्मजीव हैं जो कुछ बीमारियों को रोकने और इलाज में मदद कर सकते हैं। फंगल इंफेक्शरन के घरेलू नुस्खे में दही का इस्ते‍माल कर सकते हैं।
      सादा दही में मौजूद प्रोबायोटिक्स् लैक्टिक एसिड का निर्माण कर कवक के विकास को जांच में रखता है। इसके लिए आप कॉटन बॉल पर दही को संक्रमित हिस्से पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर गुनगुने पानी से धो लें।
         लहसुन खनिजों का एक अच्छा स्रोत है, जिसमें फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और तांबा शामिल है। फंगल संक्रमण के इलाज के लिए लहसुन का उपयोग एक लोकप्रिय उपाय है। एंटीफंगल गुणों के कारण लहसुन किसी भी प्रकार के संक्रमण का बहुत ही प्रभावी उपाय है।
           इसके अलावा इसमें एंटीबैक्टीमरियल और एंटीबायोटिक गुण भी मौजूद होते हैं जो रिकवरी की प्रक्रिया के लिए महत्वूपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके लिए आप दो लहसुन की कली को लीजिए और उसे कुचल लीजिए। उसमें जैतून के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर बारीक पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्टक को संक्रमित हिस्से पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर गुनगुने पानी से त्वचा के उस हिस्से को धो लें।
        मिडयम चेन फैटी एसिड की उपस्थिति के कारण नारियल का तेल किसी भी प्रकार के फंगल संक्रमण के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में काम करता है।
       संक्रमण के लिए जिम्मेदार फंगल को मारने के लिए ये फैटी एसिड प्राकृतिक फंगीसाइड के रूप में काम करते हैं। इसके लिए आप धीरे-धीरे प्रभावित क्षेत्र पर नारियल के तेल को रगड़ें और इसे अपने आप सूखने दें। जब तक संक्रमण साफ नहीं हो जाता तब तक आप इसे दो या तीन बार दोहराइए।
             इसके अलावा हल्दी का उपयोग भी लाभकारी होता हैं .हल्दी के पाउडर को बेसन के साथ मिलकर कुछ बुँदे कोई भी तेल जैसे सरसों ,नारियल ,तिली  का तेल डालकर उबटन जैसा बनाकर लेप लगाए और सूखने पर उसको आराम से रगड़ कर मैल निकल ले .
             फंगस संक्रमण बरसात के दिनों में अधिक होता हैं .हम अधिकतर नमी या गीले वाले अंडरवियर .बनियान आदि पहनते हैं जिससे बहुत शीघ्रता से यह संक्रमण फैलता हैं .बहुत दिनों तक रखे हुए कपडे जैसे पल्ली ,गद्दे ,कम्बल आदि में भी वहुत अधिक संक्रमण होते हैं .
                    वर्तमान में पैक्ड फूड्स जैसे बिस्किट्स ,टोस्ट ,ब्रेड ,मैदा ,सूजी ,बाजार का आटा बेसन ,पिज़्ज़ा बर्गर आदि में अधिक खतरा होता हैं .क्योकि इन वस्तुओं के निर्माण करते समय स्वछता का ध्यान नहीं रखा जाता हैं जितना आवश्यक होता हैं .
    डॉक्टर अरविन्द जैन ,संस्थापक शाकाहार परिषद्, A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड भोपाल

Thursday 2 August 2018

उबलतें दूध में जब डाली जाती हैं तुलसी की पतियाँ तो होता है चमत्कार -

🌿 Tulsi With Milk 👍
घरेलू नुस्खे बिना किसी साइड इफेक्ट के कई बीमारियों को दूर करते हैं। पीढि़यों से चले आ रहे ये नुस्खे हमेशा से फायदेमंद साबित हुए है और शायद आगे भी होते रहेंगे। ऐसे ही कुछ टिप्स तुलसी को लेकर भी है। तुलसी एक ऐसा हर्ब है जो कई समस्याओं को आसानी से दूर कर सकती है।

सर्दी जुकाम हो या सिरदर्द तुलसी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी को अगर दूध के साथ मिला लिया जाये तो ये कई बीमारियों के लिए रामबाण साबित होती है।

आज हम आपको बता रहे हैं कैसे तुलसी की तीन से चार पत्तियां उबलते हुए दूध में डालकर खाली पेट पीने से आप सेहतमंद रह सकते हैं।

किडनी की पथरी में
यदि किडनी में पथरी की समस्या हो गई हो और पहले दौर में आपको इसका पता चलता है तो तुलसी वाला दूध का सेवन सुबह खाली पेट करना शुरू कर दें। इस उपाय से कुछ ही दिनों में किडनी की पथरी गलकर निकल जाएगी। आपको इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।

दिल की बीमारी में
यदि घर में किसी को दिल से सबंधित कोई बीमारी है या हार्ट अटैक पड़ा हो तो आप तुलसी वाला दूध रोगी को सुबह के समय खाली पेट पिलाएं। इससे दिल से संबंधित कई रोग ठीक होते हैं।

सांस की तकलीफ में
सांस की सबसे खतरनाक समस्या है दमा। इस रोग में इंसान को सांस लेने में बड़ी परेशानी आती है। खासतौर पर तब जब मौसम में बदलाव आता है। इस
समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप दूध और तुलसी का सेवन करें। नियमित इस उपाय को करने से सांस से संबंधित अन्य रोग भी ठीक हो जाएगें।

कैंसर की समस्या
एंटीबायोटिक गुणों की वजह से तुलसी कैंसर से लड़ने में सक्षम होती है। दूध में भी कई तरह के गुण होते हैं जब दोनों आपस में मिलते हैं तो इसका प्रभाव बेहद प्रभावशाली और रोग नाशक हो जाता है। यदि आप नियमित तुलसी वाला दूध पीते हैं तो कैंसर जैसी बीमारी शरीर को छू भी नहीं सकती है।

फ्लू
वायरल फ्लू होने से शरीर कमजोर हो जाता है। यदि आप दूध में तुलसी मिलाकर सुबह खाली पेट इसका सेवन करते हो ता आपको फ्लू से जल्दी से आराम मिल जाएगा।

टेंशन में
अधिक काम करने से या ज्यादा जिम्मेदारियों से अक्सर हम लोग टेंशन में आ जाते हैं एैसे में हमारा नर्वस सिस्टम काम नहीं कर पाता है और हम सही गलत का नहीं सोचते हैं। यदि इस तरह की समस्या से आप परेशान हैं तो दूध व तुलसी वाला नुस्खा जरूर अपनाएं। आपको फर्क दिखने लगेगा।

सिर का दर्द और माइग्रेन में-
सिर में दर्द होना आम बात है। लेकिन जब यह माइग्रेन का रूप ले लेती है तब सिर का दर्द भयंकर हो जाता है। ऐसे में सुबह के समय तुलसी के पत्तों को दूध में डालकर पीना चाहिए। यह माइग्रेन और सिर के सामान्य दर्द को भी ठीक कर देती है। अक्सर हमारे घर में बहुत सी प्राकृतिक औषधियां होती है जिनके बारे में पता रहने से हम मंहगी दवाओं से होने वाले साइड इफेक्ट से बच सकते हैं।
www.vinayayurveda.com

यह मैसेज अगर आपको अच्छा लगे या समझ में आये की यह किसी के लिया रामबाण की तरह काम आएगा तो आप से 🙏निवेदन है कि इस 📨मैसेज को अपने *परिचित /मित्र/ या आपके व्हाट्स एप्प ग्रुप फ्रेंड्स* तक भेज दे ।
ऊत्तम विद्रोही का स्वास्थ्य ब्लॉग  पढ़िए निरोग रहिए ।

आपका यह कदम *स्वस्थ भारत के निर्माण* मैं योगदान के रूप में होगा

स्वस्थ रहो मस्त रहो व्यस्त रहो और सदा खुश रहो

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