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Friday 6 November 2020

आम्लपित ( ऐसिडिटी ) रोग - कारण -उपाय - परहेज


किसी भी रोग की चिकित्सा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि
, रोग के कारण क्या है और उसके लक्षण क्या है? लक्षणो से पता चलता है कि, रोग किन दोषों के कुपित होने से हुआ है। आयुर्वेद में मुख्य तीन दोष है। कफ, पित्त और वायु। इन तीनों में से किसी एक, दो या तीनों दोषों के कुपित होने से रोग होता है।

वायु से 80 प्रकार के रोग होते है (जैसे पक्षाघात)। अगर शरीर में या शरीर के किसी अंग में दर्द होता है तो जरूर वायु ही करणभूत होगा। वायु का प्रकोप हमेशा दोपहर के बाद बढ़ जाता है और शाम को बहुत दर्द होता है। यह वायु के लक्षण है।

पित्त से 40 प्रकार के रोग होते है (जैसे अम्लपित्त)। शरीर में जलन के लिये पित्त ही करणभूत है। इसका प्रकोप दोपहर को ज्यादा होता है।


अम्लपित्त के कारण:

परस्पर विरुद्ध (मछली, दूध आदि), दूषित, अम्ल, विदाही (जलन करनेवाला) और पित्त को कुपित करनेवाले पदार्थ खाने-पीने से पित्त कुपित होता है और अपने करणों से संचित हुआ पित्त अम्लपित्त रोग (Acidity) उत्पन्न कर देता है। इस रोग को एसिडिटी और Heartburn भी कहते है।  

अम्लपित्त के लक्षण (Acidity Symptoms):

भोजन का ठीक परिपाक नहीं होता, अनायास थकावट मालूम होती है, उबकाई, कड़ुवी और खट्टी डकारें आती है, शरीर में भारीपन रहता है, ह्रदय और कंठ में जलन होता है, अरुचि होती है। इन लक्षणों को देखकर वैध अम्लपित्त रोग (Acidity) निश्चित करते है।
अम्लपित्त की चिकित्सा: घरेलू नुस्खे, शास्त्रोक्त औषधियाँ और पेटंटेड औषधियाँ।


अधोगत अम्लपित्त के लक्षण:

प्यास, मूर्छा, भ्रम (चक्कर), मोह तथा पीला, काला या लाल रंग का पित्त गुदा मार्ग से गिरता है और दुर्गंध आती है, उबकाई, कोठ, मंदाग्नि, रोमांच, पसीना और शरीर में पीलापन ये लक्षण अम्लपित्त की अधोगति होने पर प्रकट होते है। (सदा नहीं रहते, कभी-कभी होते है)

ऊर्ध्वगत अम्लपित्त के लक्षण:

उल्टी का रंग हारा, पीला, नीला या कुछ लाल होता है। मांस के धोवन के समान अथवा अत्यंत चिकना और स्वच्छ होता है। भोजन विदग्ध होने पर अथवा बिना भोजन किये ही तिक्त और अम्लपित्त वमन (उल्टी) होता है। इसी प्रकार की डकारें भी आती है। ह्रदय, कंठ, कोख में जलन और सिर में पीड़ा होती है।

कफ-पित्त के लक्षण:

हाथ-पाँव में जलन और बड़ी गर्मी मालूम होती है। भोजन में अत्यंत अरुचि, बुखार, शरीर में खुजली होती है, सैंकड़ों फुंसियाँ निकलती है या चकते पड़ जाते है। ऊपर कहे रोग समूह भी होते है। ये लक्षण कफ-पित्त के है।

वातयुक्त अम्लपित्त (एसिडिटी), वात-कफयुक्त अम्लपित्त और कफयुक्त अम्लपित्त को बुद्धिमान वैध दोषों के लक्षण देखकर पहचाने, क्योंकि यह रोग वैधों को छर्दि (उल्टी) और अतिसार (Diarrhoea) के भ्रम में डाल देता है। उनके लक्षण अलग-अलग होते है।

वातयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

कंप, प्रलाप (बेहोशी में बोलना), मूर्छा, अंगों में झुन-झूनाहट, अंगों में पीड़ा, अंधकार-सा मालूम होना, चक्कर, मोह और रोमांच होता है।

कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

रोगी कफ थूकता है, शरीर में भारीपन और जड़ता होती है, अरुचि होती है, शरीर में टूटने की सी पीड़ा होती है, शरीर शीतल बना रहता है, उल्टी होती है, मुंह में कफ भरा-सा रहता है, जठराग्नि और बल की क्षीणता होती है, शरीर में खुजली होती है, नींद अधिक आती है।

वात-कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

इस में वात और कफ दोनों के लक्षण प्रकट होते है। खट्टी, कड़ुवी, चरपरी डकारें आती है और ह्रदय, कोख और कंठ में जलन होती है); चक्कर, मूर्छा, अरुचि, उल्टी, आलस्य, शिर में पीड़ा, मुंह से लार गिरना और मुंह में मिठास मालूम होना, ये लक्षण प्रकट होते है। 

कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।

कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है। कुछ दवाओं के कारण पेट में ऍसिडिटी- जलन होती है

जब गलत खानपान और अपच के कारण पेट में पि‍त्त के विकृत होने पर अम्ल की अधिकता हो जाती है, तो उसे अम्लपित्त कहते हैं। यही अम्लपित्त हाईपर एसिडिटी कहलाता है। आइए जानते हैं, इसके कारण, लक्षण और इससे बचने के उपाय - 

एसिडिटी की शुरुवात मुह में पानी छूटकर और जी मचलने से होती है। ऍसिडिटी का दर्द सादे भोजन से कम होता है, लेकिन तीखे भोजन से तुरंत शुरू होता है। अम्लपित्तवाला दर्द छाती और नाभी के दरम्यान अनुभव होता है। जलन निरंतर होती है लेकिन ऐंठन-दर्द रूक रूक के होता है। कभी कभी दर्द असहनीय होता है।

पीड़ित व्यक्ति दर्द स्थान उंगली से अक्सर सूचित कर सकता है। पेट-छाती की जलन कभी कभी दिल के दौरे से ही होती है। ऐसा दर्द छाती से पीठ की ओर चलता है इसके साथ पसीना, सांस चलना, घबडाहट आदि लक्षण होते है। 

अम्लपित्त या जलन तत्कालिक हो तो अकसर उल्टी से ठीक हो जाती है। अन्यथा अन्न पाचन के बाद आगे चलकर याने १-२ घंटो में तकलीफ रूक जाती है। अम्लपित्त जलन पर एक सरल उपाय है अँटासिड की दवा। इसकी १-२ गोली चबाकर निगले या ५-१० मिली. पतली दवा पी ले।  आयुर्वेद के अनुसार सूतशेखर मात्रा अँटासिड के लिये एक अच्छा विकल्प है।

तीखे, मसालेदार और जादा गरम पदार्थ, तंबाकू, धूम्रपान और शराब सेवन न करे। अरहर, चनादाल या बेसन से मूँग अच्छा होता है। अम्लपित्त ऍलर्जी का प्रभाव हो तो आहार में उस चीज का पता करना पडेगा। जाहिर है की इस पदार्थ को न खाए। योगशास्त्रनुसार तनाव से छुटकारा होने पर ऍसिडिटी कम होती है। इसके लिये योग उपयोगी है।एच. पायलोरी जीवाणू संक्रमण टालने के लिए खाना पीना साफ़ सुथरा होना चाहिए। दर्द और जलन अक्सर होती रहे तो जल्दी ही डॉक्टर से मिलकर अल्सर याने छाला टालना चाहिए

अम्लपित्त (Acidity) के घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद और हानीरहित होते है और काम भी अच्छा करते है। हमने आप के लिये कुछ बहुत ही उपयोगी घरेलू नुस्खे चुने है। शास्त्रोक्त और पेटंटेड दवा भी आपकी जानकारी के लिये लिख रहे है।

अम्लपित्त के घरेलू उपाय: ---

शंख भस्म 1 ग्राम और सौंठ का चूर्ण आधा ग्राम ले। दोनों को शहद के साथ मिलाकर चाटने से अम्लपित्त (Acidity) दूर हो जाता है।

50 ग्राम प्याज को काटकर गाय के ताजे दही मे मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) ठीक हो जाता है

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती तथा त्रिफला का क्वाथ बनाय ठंडा होने पर शहद मिलाकर पीने से अनेक प्रकार के पित्तरोग तथा अम्लपित्त (एसिडिटी) नष्ट होता है।

अड़ूसा, गिलोय व बड़ी कटेरी के क्वाथ को शहद मिलाकर पीने से मनुष्य अम्लपित्त, खांसी, श्वास, बुखार और उल्टी को जीतता है।

शहद के साथ पीपल अम्लपित्त को नष्ट करती है। इसी प्रकार जंबीरी नींबू का स्वरस सायंकाल पीने से अम्लपित्त नष्ट होता है।

गुड, छोटी पीपल और हरड़ समान भाग ले गोली बना सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) व कफ नष्ट होता तथा अग्नि दीप्त होती है।

निम्ब का पंचांग (फूल, फल, पत्र, छाल तथा मूल) मिलित 1 भाग, विधारा 2 भाग, सत्तू 10 भाग, तथा शक्कर से मीठाकर ठंडे जल के साथ शहद मिलाकर पीने से पित्त-कफज शूल तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।  

चूर्ण: छोटी इलायची, वंशलोचन, हरड़, तेजपात, छोटी-बड़ी दोनों दालचीनी, पिपरामूल, चंदन, नागकेशर इनका चूर्ण कर समान भाग मिश्री मिलायके सेवन करे तो घोर अम्लपित्त को आठ दिन में दूर करें। यह बौद्धसर्वस्व में लिखा है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल के पत्ते और त्रिफला के क्वाथ को शीतल होने पर मधु मिलाकर पिवे, तो अत्यंत कठिन और अनेक रूपवाला अम्लपित्त-रोग दूर हो जाता है। मात्रा: 4 तोला (1 तोला = 11.66 ग्राम)

भोजन के बाद आंवले के चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कंठदाह (गले में जलनयुक्त) अम्लपित्त बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।

त्रिफला, परवल, कुटकी इनके क्वाथ में खांड, मुलहठी का चूर्ण तथा शहद को डालकर पीने से बुखार, उल्टी तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।

हरड़, पीपल, द्राक्षा, खांड, धनियाँ तथा जवासा; इनके चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अम्लपित्त नष्ट होता है। मात्रा: 4-6 ग्राम।

गिलोय, खैर, मुलेठी और दारूहल्दी के (4 तोला) क्वाथ में मधु मिलाकर पान करे (पिवे) अथवा मुनक्का, मधु और गुड मिलाकर हरीतकी का सेवन करे तो अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

नीम का पंचांग (छाल, पत्र, पुष्प, मूल और फल) 1 भाग, विधारा 2 भाग और जव का सत्तू 10 भाग, इन औषधों में आवश्यकतानुसार चीनी मिला देवें। मात्रा – 2 तोले। मधु और शीतल जल के साथ। इस औषध के सेवन करने से दारुण अम्लपित्त-रोग और पित्त कफज शूल दूर हो जाते है।

2-3 ग्राम पीपर के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करने से अम्लपित्त रोग नष्ट हो जाता है। सायंकाल में 2-3 तोला नींबू का स्वरस पीने से भी अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

मुनक्का 50 ग्राम, सौंफ 25 ग्राम दोनों को यवकूट (पीसकर) कर 200 ग्राम पानी मे रात्री को भिगो दे। तदुपरान्त प्रातःकाल मसलकर छान ले और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से अम्लपित्त मे लाभ होता है

शास्त्रोक्त दवाए (Ayurvedic Medicine for Acidity): नीचे दी गई शास्त्रोक्त दवाओ का अम्लपित्त में उपयोग होता है।   

सब प्रकार के अम्लपित्त पर हितावह: (Ayurvedic Medicine for Acidity)

(1)जीरकादि मोदक

(2)कूष्मांडावलेह

(3)द्राक्षावलेह

(4)सूतशेखर रस

(5) शुंठीखंड

वातप्रकोप सहित अम्लपित्त पर:

(1)रौप्य भस्म  

(2)अविपत्तिकरचूर्ण

पेट में व्रण (ulcer) पर:

ताप्यादि लोह

पित्त की तीक्ष्णता और अम्लता को कम करने हेतु:

प्रवाल पिष्टी

कामदूधा रस

ताप्यादि लोह

सूतशेखर रस

अन्य अम्लपित्त नाशक योग:

कुष्मांड अवलेह

शुंठी खंड

शतावरी धृत

जीरकाद्य धृत: गौ का धृत (घी) 128 तोला, कल्क (आर्द्र औषध को शीला पर पीस देवे अथवा शुष्क औषध को जल देकर अच्छी तरह पीस देवे तो उसे कल्क कहते है) के लिये धनिया और जीरा मिलाकर 32 तोला, पाक के लिये जल 6 सेर 32 तोला विधिपूर्वक पकावे। इसके सेवन से अम्लपित्त, मंदाग्नि, तथा उल्टी अच्छी हो जाती है। मात्रा: 6-6 ग्राम सुबह-शाम