Showing posts with label ज्वर. Show all posts
Showing posts with label ज्वर. Show all posts

Sunday 17 September 2017

डेंगू बुखार

डेंगू बुखार एडीस नामक मच्छर द्वारा फैलने वाला वायरस के कारण होता है| आम तौर पर यह सर्दी बुखार जैसे प्रकट होता है मगर कभी कभी इससे मौत भी हो सकती है| यह अधिकतर शहरों और शहरों के आस पास होता है| यह बच्चों में अधिक खतरनाक होता है। डेंगू बुखार का कोई विशेष उपचार नहीं है|
यह कैसे फैलता है?

एडीस मच्छर साफ पानी में पनपते है, जैसे पानी टँकी, कूलर फेंके गये रबर टायर इत्यादि| डेंगू से मरीज के खून चूसने पर यह वायरस मच्छर के शरीर में प्रवेश करता है| यहॉं ४-१० दिन रहने के बाद यह मच्छर के लार से अन्य व्यक्ति में प्रवेश करता है| मरीज में लक्षण से शुरुआत के ४-५ दिन बाद तक इनके खून में वायरस मौजूद रहता है जहॉं से वह मच्छर के शरीर में जा सकता है|
लक्षण
मच्छर के काटने से ४-५ दिन बाद बुखार शुरू होता है| शुरुआत में यह अन्य सामान्य बुखार जैसे होता है| बुखार लगातार और अधिक रहता है| साथ में कोई दो और लक्षण मितली और उल्टी, चकता, मांसपेशी और जोडों में दर्द, शरीर में गिल्टियॉं होना या श्वेत रक्त कण कम होना|
गंभीर डेंगू होने के पहले खतरे के निशान होते है- पेट में दर्द, लगातार उल्टियॉं, जिगर फुलना, नाक मुँह या आंत से खून जाना, सुस्ती लगना, खून जॉंच में विशेष बदलाव दिखना| गंभीर डेंगू के स्थिती में तुरंत सही इलाज न करा जाए (खून चढाना, ब्लड प्रेशर बनाए रखना इत्यादि) तब मौत हो सकती है| इसे टूर्नि के टेस्तट से भी पता किया जा सकता है|
यह बताना मुश्किल होता है की किसे साधारण डेंगू होगा और किसे गंभीर डेंगू (जिसे पहले डेंगू हेमोराजिक फीवर और डेंगू शॉक सिण्ड्रोम कहा जाता था) होगा| लेकिन १४ वर्ष से कम उम्र में गंभीर डेंगू होने की संभावना अधिक होता है| डेंगू वाइरस से चार प्रकार होते है| एक प्रकार से संक्रमण होने के बाद कुछ महिनों तक डेंगू से सुरक्षा होती है मगर उसके बाद उसी या अनकय प्रकार के डेंगू वायरस से पुन: संक्रमण होने से गंभीर डेंगू होने का डर रहता है|
निदान
चिकित्सीय रूप से डेंगू और अन्य किसी भी वायरल बुखार में फर्क करना मुश्किल है। इस के लिए कोई निश्चित लक्षण या चिन्ह मौजूद नहीं हैं। मलेरिया और टाइफाइड से भी डेंगू के निदान में मुश्किल होती है। डेंगू माहमारी के समय बुखार के हर मामले को डेंगू ही मान कर चलना चाहिए।
डें.ही.बु के लिए टोरनीकैट टैस्ट
blood pressure
रक्तचाप ८० के उपर चढाने के बाद 
हाथ पर खून के छोटे धब्बे पानेपर 
डेंगू का घातक स्वरूप 
हम पहचान सकते है



यह पता करने के लिए कि डेंगू बुखार कहीं डें.ही.बु में तो नहीं बदल रहा हमारे पास एक आसान टैस्ट उपलब्ध है। रोगी की बांह पर खून का दबाव नापने वाले उपकरण की पट्टी कस कर बांध दें। दवाब को ४० मिली मीटर (शिराओं का दबाव) तक बढ़ाएं। बांह के आगे वाले हिस्से की त्वचा को ध्यान से देखें। अगर त्वचा पर छोटे छोटे लाल दाग दिखाई देते हैं तो इसका अर्थ है कि रोगी में रक्त स्त्राव की प्रवृति है। पट्टा खोल दें। ये टैस्ट बच्चों के मुकाबले बड़ों में ज़्यादा भरोसेमंद होता है।कोई भी दवा वायरस की इस बीमारी को नहीं रोक सकती। अगर रक्त स्त्राव शुरु हो जाए तो सिर्फ रोगी को सहारा देने वाले उपाय किए जा सकते हैं। सिर्फ डेंगू बुखार से पीड़ित व्यक्ति को सिर्फ पैरासिटेमॉल देना काफी है। परन्तु डें.ही.बु या उसका शक भी हो जाने पर रोगी को अस्पताल में भरती किया जाना ज़रूरी है। वहॉं उसे एक अलग वार्ड में रखा जाएगा। रोगी के पलंग पर तुरंत मच्छरदानी लगा दी जानी चाहिए इससे किसी दूसरे व्यक्ति को रोग न लगेगा। रक्त स्त्राव शुरु होते ही खून (खासकर के प्लेटलेट पॅक) देने की ज़रूरत पड़ जाती है। इसलिए पहले से ही खून देने वालों का इंतज़ाम कर लें।
एैस्परीन किसी भी हाल में नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे रक्त स्त्राव बढता है। पैरासिटेमॉल एकमात्र सुरक्षित दवा है। इसलिये डेंगू बुखार में खून की जॉंच में प्लेटलेट काऊंट का बडा महत्त्व है।
बचाव और नियंत्रण
mosquito destructor spray
मच्छर नाशक छिडकाव
mosquito destructor spray
मच्छर नाशक छिडकाव
डेंगू एक गंभीर बीमारी है और बहुत तेजी से फैलती है। इसलिए ज़्यादा ज़रूरी है कि इसकी रोकथाम की जाए। ऐसा उन जगहों को हटा कर किया जा सकता है जहॉं मच्छर प्रजनन करते हैं। ऐसा हर हफ्ते किया जाना चाहिए ताकि मच्छरों के लार्वा से पूरा मच्छर न बन सके। पानी के बर्तनों को खाली करें और नीचे से खुरच दें ताकी उनमें कोई भी अंडे बाकि न रहें।
फैलाव रोकने के लिए डेंगू के सभी रोगियों को अलग रखें। मच्छरों से फैलाव को रोकने के लिए कीटकनाशक मच्छरदानियों का इस्तेमाल ज़रूरी है। इस बीमारी से बचाव के लिए कोई भी ऐसी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। पर एक बार ये बीमारी होने पर करीब ४ महीनों के लिए प्रतिरक्षा हो जाती है। अगर कई बार डेंगू बुखार हो जाए तो उससे जिंदगी भर के लिए प्रतिरक्षा क्षमता उत्पन्न हो जाती है। मच्छरों पर मुहीम चलाकर, उनके प्रजनन के स्थान खतम करें। डेंगू बुखार से बचाव के लिए यही एकमात्र लंबे समय की तरकीब है।

मलेरिया

हर साल मलेरिया से काफी लोग बीमार होते हैं और काफी मौतें भी होती हैं। भारत का एक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम है, जो चार दशकों से चल रहा है। पर यह बीमारी देश में समा सी गई है। मुंबई शहरमें भी मलेरिया से मौते हो रही है। यहॉं बरसात में गढ्ढों में पानी, घरोंके उपरवाले पानी की टंकिया, गृहनिर्माण के कारण जमा हुआ पानी, आदि सब मच्छर पनपनेकी जगहें मौजूद होती है। गॉंवोसे आये मजदूर भी अपने साथ मलेरिया के परजीवी लाते है। इन सबके कारण मुंबई जैसे शहर भी मलेरिया के शिकार बन गये है।
मलेरिया एक छोटे से परजीवी, जिसे प्लासमोडियम कहते हैं, से होता है। यह मनुष्य में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। प्लासमोडिया चार तरह के होते हैं। परन्तु प्लासमोडियम वाईवैक्स और फॉल्सिपेरम सबसे ज़्यादा आम है। फालसीपेरम से होने वाला मलेरिया से मौत भी हो सकती है।
मच्छर से फैलाव ---- 
मलेरिया का परजीवी इंसान के शरीर में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। इसलिए मलेरिया उन क्षेत्रों और उन मौसम में ज़्यादा होता है जहॉं और जब ऐनोफ्लीज़ तरह के मच्छर ज़्यादा होते हैं। इसलिए भारत में जुलाई से नवम्बर के महीनों में मलेरिया ज़्यादा होता है इस मौसम में जगह जगह बरसात का पानी इकट्ठा होता है। यह शहरों के मुकाबले गॉंवों में ज़्यादा होता है।
मध्य भारत में सबसे ज्यादा मलेरिया होता है, अधिकांश जगहों पर मलेरिया बरसात के बाद बढता है| (अक्तुबर माह से)कई जगहों में मलेरिया ठंड के मौसम में होता है| (नवम्बर से फरवरी तक) जब की उडीसा के बहुत इलाकों में साल में दो बार बढता है – बरसातों के पहले जून में, और वर्षा के बाद अक्तुबर में, अत: हमारे देश में अलग अलग समय मलेरिया उभरता है| इसका मतलब यह नहीं है की अन्य समय मलेरिया नहीं फैलता- उडीसा में साल भर मलेरिया फैलता है और मौजूद रहता है| जब लोग गॉंव और छोटे शहर से काम के लिए शहरों में जाते है, उनमें से कई लोगों के शरीर में मलेरिया परजीवी रहने से, यह मच्छरों के माध्यम से शहर के लोगों में फैल सकता है|
मलेरिया का मच्छर
malaria-mosquito
मलेरिया के परजीवी मादा ऍनाफिलीस 
मच्छर के काटने पर वे शरीर में घुस जाते है
ऐनोफलीज़ मच्छर साफ पानी में प्रजनन करते हैं। (जबकि क्यूलैक्स प्रकार के मच्छर खड़े हुए गंदे पानी में प्रजनन करते हैं)। इसलिए ऐनोफलीज़ मच्छर के लिए इकट्ठा हुआ बरसात का पानी, सिंचाई के साधन और रसोई और गुसलखाने से निकले पानी में पनपता है। कुछ मच्छर प्रजाति झरनों और नहरों में भी प्रजनन करते हैं। इसलिए मलेरिया शहरों के मुकाबले गॉंवों में अधिक होता है। एनोफिलीस मच्छर को आसान से पहचान सकते है| उसका पिछला हिस्सा सिर के स्तर से ऊँचा रहता है| उसके लार्वा पानी के स्तह के समानांतर तैरता है|
मच्छर अंधेरे और गीले स्थानों पर छुपे रहते हैं। प्रजनन की जगह से एक किलो मीटर दूर भी मच्छर घूमते हैं। इसलिए चाहे गॉंव में केवल कुछ एक प्रजनन की जगहें हों, पूरा गॉंव मलेरिया से प्रभावित हो सकता है। इसलिए मलेरिया से बचने के लिए समुदाय के स्तर पर काम करने की ज़रूरत होती है। ऐनोफलीज़ मच्छर को पहचानना मुश्किल नहीं होता क्योंकि यह एक खास तरह से बैठता है। इसके लार्वा पानी की सतह के समानान्तर तैरते हैं। दूसरी ओर क्यूलैक्स के लार्वा पानी के अंदर एक खास कोण में रहते हैं। ये मच्छर मुख्यत: रात में ही हमला करते हैं। कुछ तरह के मच्छर जानवरों को भी काटते हैं। असल में केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि इसे अंडे देने के लिए खून की ज़रूरत होती है। नर मच्छर तो फूलों से ही अपना खाना लेता है।
मलेरिया का परजीवी
मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र में मनुष्य और मच्छर दोनों की ज़रूरत होती है।
मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र का मनुष्य के अंदर वाला हिस्सा
white-cell
खून में लाल रक्त कोशिका होती है 
जिस पर मलेरिया परजीवी का हमला होता है
जिस व्यक्ति को मलेरिया हुआ हो, उसके खून में मलेरिया का परजीवी आ जाता है। इसके बाद जिगरमें पहुँचते और पनपते है। हमले के १० से १५ दिनों में ये परजीवी नर या मादा रूप में बदल जाते हैं। जब कोई मच्छर यह खून चूसता है तो ये रूप उसके पाचन तंत्र में घुस जाते हैं।
मच्छर में फ्लायमोडियम परजीवी
१० से २० दिनों में नर और मादा तरह के परजीवी मच्छर के पाचन तंत्र में एक दूसरे से मिलते हैं और लाखों बीजाणु बना लेते हैं। ये बीजाणु मच्छर की लार की ग्रंथियों में आ जाते हैं। इसके बाद इस मच्छर के काटने से संक्रमण हो सकता है।
एक बार संक्रमण होनेपर एक मच्छर अपनी छोटी सी पूरी जिंदगी में संक्रमणकारी बना रहता है। दूसरी ओर मनुष्य के शरीर में रह रहे मलेरिया के परजीवी जिगर में निष्क्रिय पड़े रहते हैं। इसलिए मलेरिया महीनों और कई बार सालों बाद भी दोबारा हो सकता है। ऐसा फालसीपेरम को छोड़ कर सभी तरह के मलेरिया के परजीवियों में होता है।
रोग – विज्ञान
मच्छर के काटने से मनुष्य शरीर में घुसे स्पोरोज़ाइट तेजी से जिगर में पहुँच जाते हैं। वहॉं वो तेजी से मीरोजोइट रूप में बदल जाते हैं। इसके बाद वो लारको पर हमला करते हैं। यह प्रक्रिया मच्छर के काटने के १० – १५ दिनों बाद होता है।
लारको में ये परजीवी ४८ से ७२ घंटों में तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं। लारकोंमें हीमोग्लोबिन चट कर जाने के बाद वो कोशिकाओं से बाहर निकल जाते हैं। ऐसा लाखों लारको में एक साथ होता है। अब परजीवियों की एक नई फौज और लारको पर हमला करती है। कुछ दिनों तक यह चक्र चलता रहता है। इस दौरान कंपकंपी आती है और बुखार भी होता है। इसी कारण से मलेरिया का बुखार हर दूसरे या तीसरे दिन होता है। अगर परजीवियों की दो टोलियॉं लारको में से एक दिन छोड़ कर निकलती हैं तो बुखार रोज़ भी हो सकता है। क्यों की मलेरिया परजीवी लाखों लाल कोशिकाओं को तोड डालते है| मलेरिया के मरीजों में अक्सर खून की गंभीर कमी देखने को मिलती है|
तिल्ली का आकार बड़ा हो जाता है क्योंकि इसमें खराब हुई लारको का अंबार लग जाता है। कभी कभी मलेरिया का इलाज न होने पर तिल्ली में सूजन भी आ सकती है। ऐसी सूजी हुई तिल्ली ज़रा सी चोट से ही फट सकती है इससे गंभीर आंतरिक रक्त स्त्राव हो सकता है। बुखार के दो हफ्तों बाद, परजीवी गैमेटोसाइट याने नर-मादा रूप में बदल जाते हैं।
गर्भ के दौरान मलेरिया
गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने से गर्भपात, मरा भ्रूण पैदा होने, भ्रूण का वजन कम होने, या समय से पहले बच्चा होने की संभावना रहती है। इसे मॉं की मृत्यु तक हो सकती है। मलेरिया के परजीवियों को गर्भनाल से खास आकर्षण होता है। जहॉं से ये गर्भ में पल रहे शिशु तक भी पहुँच जाते हैं। ऐसे में भ्रूण को भी मलेरिया हो सकता है। इसी से भ्रूण की वृद्धि भी ठीक से नही होती। कभी कभी गर्भपात या मरा भ्रूण पैदा होने की संभावना रहती है।