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Wednesday 9 December 2020

एसिडिटी आम्लपित्त )होने के कारण ओर उपचार - अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्

अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्

सर्वप्रथम् यह जानना आवश्यक है कि अम्ल पित्त है क्या है ? आयुर्वेद में कहा गया है- अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्। जब पित्त कुपित होकर अर्थात् विदग्ध होकर अम्ल के समान हो जाता है, तो उसे अम्ल पित्त रोग की संज्ञा दी जाती है। पित्त को अग्नि कहा जाता है।

त्रिदोषों में अति महत्वपूर्ण पित्त जब कुपित हो जाता है और अम्ल सा व्यवहार करने लगता है तो उसे अम्ल पित्त कहते है। पित्त का सम्बन्ध जठराग्नि से है। जठराग्नि के क्षीण हो जाने से पाचक रसो की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। पाचक रस भोजन को पूर्णत: पचाने में असमर्थ हो जाते है। भोजन पेट में ही पड़ा- पड़ा सड़ने लगता है। आमाशय की पाचन प्रणाली बार- बार क्रियाशील हो भोजन को पचाने का प्रयास करती है। बार- बार पाचक रसो एवं अम्ल को स्त्रावित करती है। जिससे शरीर में अम्ल की अधिकता हो जाती है। अम्ल शरीर में अन्य विभिन्न तकलीफों को उत्पन्न करता है। वही अपचा भोजन पड़े- पडे़ सड़ता है और आँतों द्वारा उसी रूप में रक्त में मिल जाता है। रक्त को दूषित कर सम्पूर्ण शरीर को भी दूषित करता है। अम्ल पित्त का यदि सम्यक उपचार ना किया जाए तो वह आगे चलकर नये रोगों को जन्म देता है। अम्ल पित्त मात्र एक रोग नहीं है। अपितु शरीर में उपस्थित अन्य रोगों का परिणाम है।

सामान्यत: अम्ल पित्त को पाचन तन्त्र का एक रोग माना जाता है। जिसका कारण खान-पान की अनियमितता माना जाता है, परन्तु अम्ल पित्त का मूल कारण मानसिक द्वन्द है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान रहते है। अपने प्रियजनों पर भी जिसे विश्वास ना हो, जो हर समय स्वयं को असुरक्षित समझे। वे ही मुख्यत: इस रोग से ग्रस्त माने जाते है। समय के साथ यदि अम्ल पित्त बढ़ जाये तो यह अल्सर में बदल जाता है। अम्ल अधिक बन जाने पर वह पाचन अंगों पर घाव बना देता है।

अम्ल पित्त रोग के कारण 

अम्ल पित्त रोग मुख्य रूप से मानसिक उलझनों और खान-पान की अनियमितता के कारण उत्पन्न रोग है जिसके प्रमुख लक्षण है-
  1. भोजन सम्बन्धी आदतें अम्ल पित्त रोग का एक प्रमुख कारण है। कुछ व्यक्तियों में अयुक्ताहार-विहार से यह रोग हो जाता है। जैसे- मछली और दूध को एक साथ मिलाकर खाने से यह रोग हो जाता है।
  2. इसके अतिरिक्त बासी और पित्त बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करने से भी अम्ल पित्त रोग होता है। डिब्बाबंद भोजन का अत्यधिक सेवन करना भी अम्ल पित्त रोग को दावत देता है।
  3. भोजन कर तुरन्त सो जाना या भोजन के तुरन्त बाद स्नान करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  4. अम्ल पित्त रोग भोजन के बाद अत्यधिक पानी पीने से भी होता है। ठूस-ठूस कर खाने से भी ये रोग हो जाता है। 
  5. यकृत की क्रियाशीलता में कमी होना भी इस रोग का प्रमुख कारण है। 
  6. यदि दूषित एवं खट्टे-मीठे पदार्थो का अधिक सेवन किया जाए तो भी यह रोग हो जाता है। 
  7. मल-मूत्र के वेग को रोककर रखना भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण है। 
  8. नशीली वस्तअुों का अत्यधिक सेवन करना भी इस रोग का एक कारण है। 
  9. इस रोग का एक कारण उदर की गर्मी को बढ़ाने वाले पदार्थो का अधिक सेवन करना है। 
  10. अत्यधिक अम्लीय पदार्थो का बार- बार सेवन करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  11. कई व्यक्ति अत्यधिक भोजन कर दिन में सो जाने की आदत होती है जिससे यह रोग हो जाता है। 
  12. दाँतों के रोगों के कारण भी अम्लपित्त रोग होने की सम्भावना रहती है। 
  13. भोजन के तुरन्त बाद खूब पानी पीना भी इस रोग की प्रमुख वजह है। 
  14. अम्ल पित्त रोग का ऋतु परिवर्तन और स्थान परिवर्तन से अति गहरा सम्बन्ध है। 
  15. अम्लता उत्पन्न करने वाली औषधियों के निरन्तर सेवन से भी यह रोग हाता है।

अम्ल पित्त रोग के लक्षण 

  1. अपचन एवं कब्ज का सदैव बना रहना इस रोग का एक प्रमुख लक्षण है। 
  2. इस रोग के रोगी की आँखें निस्तेज हो जाती है। 
  3. जीभ पर सदैव हल्की सफेद- मैली परत जमी रहती है। 
  4. त्वचा मटमैली एवं खुरदुरी हो जाती है। 
  5. भोजन ठीक से नहीं पचता और कभी-कभी उल्टी भी होती है। 
  6. यदि उल्टी के साथ हरे-पीले रंग का पित्त भी निकले तो यह अम्ल पित्त का प्रमुख लक्षण समझना चाहिए। 
  7. अम्ल पित्त के रोगी को कड़वी और खट्टी ड़कारे आती है। 
  8. गले और सीने में तीव्र जलन होती है। 
  9. जी का मचलना, मुँह में कसौलापन एवं उबकाईयाँ आती है। 
  10. ऐसा व्यक्ति सदैव बेचैन और घबराया हुआ रहता है। 
  11. उदर में भारीपन रहता है।  
  12. अम्ल पित्त के रोगियों का मल निष्कासन के समय गर्म रहता है। 
  13. कभी-कभी पतले दस्त भी होते है। 
  14. मूत्र का रंग लाल-पीलापन लिये हुए होता है। 
  15. रोग की तीव्र अवस्था में शरीर में छोटी- छोटी फुन्सियाँ हो जाती है जिन पर खुजली भी होती है। 
  16. कई बार व्यक्ति आँखों के आगे अन्धेरा छा जाने की भी शिकायत करता है। 
  17. सिर में भारीपन एवं दर्द बना रहता है। 
  18. शरीर में सुस्ती एवं थकान बनी रहती है। ऐसा व्यक्ति सदैव विचित्र एवं अनजाने भय से ग्रसित रहता है। 
  19. कई बार व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर में जलन होती है। रोगी हाथों, पैरों, आँखों और सिर पर जलन की शिकायत करता है। 
  20. अम्ल पित्त के कई रोगियों में रक्तस्त्राव भी हो जाता हैंं। 
  21. अम्ल पित्त रोग यदि लम्बे समय तक बना रहे तो बाल झड़ने और सफेद होने लगते है। 
  22. अम्ल पित्त रोग जीर्ण हो जाने पर गैस्ट्रिक एवं ड्यूडिनम अल्सर में बदल जाता है।

अम्ल पित्त रोग के दो प्रकार है-

  1. उध्र्वग अम्ल पित्त- जिस अम्ल पित्त में खट्टा, हरा, नीला, हल्का लाल, काला, चिपचिपा कड़वा वमन, ड़कार होता है तथा हृदय, गले तथा पेट में जलन और हाथ- पैरों में जलन होती है, उध्र्वग अम्ल पित्त कहलाता है।
  2. अधोग अम्ल पित्त-जिस अम्ल पित्त में गुदा से हरा, पीला, काला, माँस के धोवन के समान रक्तवर्ण अम्ल पित्त निकलता है तथा प्यास और जलन बनी रहती है, अधोग अम्ल पित्त कहलाता है। प्रत्येक रोग के समान ही अम्ल पित्त रोग को भी उसकी अवस्था के आधार पर प्रारम्भिक अम्ल पित्त, मध्यम अम्ल पित्त और तीव्र अम्ल पित्त में भी बाँटा जा सकता है।

अम्ल पित्त रोग की उपचार -

  1. सौंठ एवं गिलोय का समभाग चूर्ण शहद के साथ सेवन करना उपयोगी है। 
  2. मिश्री को त्रिफला एवं कुटकी के समभाग चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  3. हरड़, गुड़ और छोटी पीपल को समान मात्रा में मिलाकर उसकी गोली बना लें तथा सेवन करें। 
  4. भृंगराज एवं हरीतकी का समभाग चूर्ण गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  5. प्र्रतिदिन नाश्ते में एक पका केले को खाये, तत्पश्चात् दूध पी लें। इससे यह रोग दूर हो जाता है।
  6. 50 ग्राम मुनक्का और 25 ग्राम सौंफ को रात में पानी में भिगाकर रख दें। सुबह इसे मसलकर छान ले। इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर इसे पी ले। 
  7. करेले के पत्तों या फूल को घी में भूनकर उसका चूर्ण बना ले। इस चूर्ण को दिन में 2-3 बार एक से दो ग्राम की मात्रा में खायें। 
  8. 20 ग्राम आँवला स्वरस में, 1 ग्राम जीरा चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीयें। 
  9. नीमपत्र रस और अडूसा पत्र रस को 20-20 ग्राम एकत्र कर इसमें थोड़ा शहद मिलाकर दिन में 2 बार खायें। 
  10. बच के चूर्ण को 2-4 रती की मात्रा में मधु के साथ सेवन करे। 
  11. शक्कर में श्वेत जीरे के साथ धनिये का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर खाये। 
  12. जौ अथवा गेहूँ अथवा चावल के सत्तू को मिश्री में मिलाकर खाना चाहिए। 
  13. नीम की छाल, गिलोय व पटोल का काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से लाभ मिलता है। 
  14. सूखे आँवले को रात भर भिगोकर रख दें। सुबह उसमें जीरा और सौंठ मिलाकर बारीक पीस ले। इस मिश्रण को दूध में घोलकर पीयें।
  15. भोजन के पश्चात् दूध के साथ इसबगोल लेते रहने से अम्ल पित्त रोग कभी नहीं होता है।
  16. छोटी या बड़ी हरड़ का 3 ग्राम चूर्ण और 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर दिन में 3 बार खायें।
  17. मिश्री को कच्चे नारियल के पानी में मिलाकर सेवन करे।
  18. भोजन के 1 घण्टे बाद आँवले का 5 ग्राम चूर्ण लेना चाहिए।
  19. अनार के रस में जीरा मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग दूर हो जाता है। 
  20. भुने हुए जीरे व सेंधा नमक को संतरे के रस में डालकर पीये। इससे अम्ल पित्त रोग का शमन हो जाता है। 
  21.  50 ग्राम प्याज को महीन-महीन काट ले। इससे गाय के ताजे दही में मिलाकर खायें। 
  22. अदरक और अनार के 6-6 ग्राम रस को मिलाकर पी लेने से यह रोग दूर हो जाता है। 
  23. मूली के स्वरस में कालीमिर्च का चूर्ण और नमक मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है। 
  24. प्रत्येक भोजन के बाद एक लौंग खा लेनी चाहिए। 
  25. ठण्डा दूध पीने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है।

आहार

  1. आहार चिकित्सा में पूर्ण प्राकृतिक एवं ताजे भोज्य पदार्थो को शामिल करे। अत्यधिक तले-भुने, गरिष्ठ और मिर्च-मसाले युक्त आहार कदापि ना ले। 
  2. रोगी को फलों में ताजे फल जैसे- नारंगी, आम, केला, पपीता देना चाहिए। कुछ समय के पश्चात् खूबानी, खरबूज, चीकू, तरबूज, सेब भी दे सकते है। 
  3. सूखे मेवे में अखरोट, खजूर, मुनक्का, किशमिश देना चाहिए। कुछ दिनों तक रोगी की सामथ्र्यानुसार सेब का पानी, नारियल का पानी, खीरा और सफेद पेठे आदि का रस देना चाहिए। 
  4. तोराई, टिण्डा, लौकी, परवल आदि की सब्जियाँ रोगी को खाने को दें। रोग के कम हो जाने पर मेथी, चौलाई, बथुआ आदि सब्जियाँ दी जा सकती है। यदि रोगी की आलू खाने की इच्छा हो तो रोगी को आलू उबालकर खाने को दें। ध्यान रखे यदि रोगी आलू ग्रहण कर रहा है तो आलू के साथ अन्य पदार्थ कदापि ना ले। 
  5. अम्ल पित्त रोग में कच्चे नारियल का दूध और गूदा का उपयोग करना चाहिए। 
  6. आँवले और अनार का रस भी अम्ल पित्त रोग में उपयोगी है।

एसिडिटी होने के कारण (Causes of Acidity)

  1. अत्यधिक मिर्च-मसालेदार और तैलीय भोजन करना
  2. पहले खाए हुए भोजन के बिना पचे ही पुन भोजन करना
  3. अधिक अम्ल पदार्थों के सेवन करने पर।
  4. पर्याप्त नींद न लेने से भी हाइपर एसिडिटी की समस्या हो सकती है।
  5. बहुत देर तक भूखे रहने से भी एसिडिटी की समस्या होती है।    
  6. कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है।                                                                                     आयुर्वेद से कैसे करे इलाज़-आयुर्वेद में इसका इलाज संशमन और संशोधन दो प्रकार से किया जाता है। संशमन चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग किया जाता है और संशोधन में पंचकर्म द्वारा इसका इलाज किया जाता है। इन सभी औषधियों का प्रयोग बिना चिकित्सक के परामर्श के बिल्कुल नही करना चाहिए।

    1. अविपत्तिकर चूर्ण

    2. सुतशेखर रस

    3. कामदुधा रस

    4. मौक्तिक कामदुधा

    5. अमलपित्तान्तक रस

    6. अग्नितुण्डि वटी

    7. फलत्रिकादी क्वाथ पंचकर्म चिकित्सा में इसका इलाज़ वमन चिकित्सा द्वारा किया जाता है जिससे इस रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है।                                    NOTE: इलाज के किसी भी तरीके से पहले, पाठक को अपने चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता की सलाह लेनी चाहिए। 

     

Wednesday 28 October 2020

पेट की गैस


 

पेट में गैस (pet me gas) की समस्या को पेट में वायु बनना या गैस बनना आदि भी बोला जाता है। इसे पेट या आँतों की गैस और पेट फूलना भी कहते हैं। आजकल अस्वस्थ आहार और सुस्त जीवनशैली के कारण पेट में गैस की समस्या होना आम बात हो गई है। आयुर्वेद के अनुसार, पेट के जितने भी रोग हैं वे सभी शरीर के त्रिदोष के कारण होते हैं। इसलिए वात, पित्त, कफ दोषों को शांत करके पेट के रोग जैसे गैस की समस्या (gas ki problem ka ilaj) को ठीक किया जा सकता है।

गैस की बीमारी स्वतंत्र रोग न होकर पाचनतंत्र से संबंधित खराबी के कारण होने वाली बीमारी है। कई बार गैस के कारण इतना तेज दर्द होने लगता है कि बीमारी गंभीर बन जाती है। इतना ही नहीं पेट में गैस होने पर अनेक तरह की बीमारियां होने की संभावना भी बन जाती है। इसलिए आइए जानते हैं कि पेट में गैस की समस्या क्यों होती है, गैस की समस्या से होने वाले रोग कौन-कौन से हैं, और पेट में गैस होने पर घरेलू इलाज कैसे किया जाना चाहिए।

पेट में गैस होना क्या है? (What is Gas?)

जब खाना खाते हैं तब पाचनक्रिया के दौरान हाइड्रोजन, कार्बनडाइऑक्साइड और मिथेन गैस निकलता है जो गैस या एसिडिटी होने का कारण बनता है। जठराग्नि की कमजोरी से मल, वात आदि रोग हो जाते हैं। इससे अन्य कई रोग होने लगते हैं। मल की अधिकता के कारण जठराग्नि कमजोर होने लगती है। जब पाचन सही प्रकार से नहीं होता है तो पेट में बनने वाली अपान वायु तथा प्राण वायु बहार नहीं निकल पाती है। गैस से होने वाले रोग से बचने के लिए आपको आयुर्वेदिक उपाय करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त, कफ को शांत करके पेट में गैस की समस्या को ठीक किया जा सकता है। तीनों दोषों को शांत करने के लिए जौ, मूँग, दूध, आसव, मधु, इत्यादि का सेवन करना चाहिए

पेट में गैस बनने के लक्षण (Symptoms of Gas in Hindi)

पेट में गैस बनने पर पेट में दर्द होने लगता है, लेकिन इसके अलावा और भी लक्षण है जो एसिडिटी होने पर नजर आते हैं-

  • सुबह जब मल का वेग आता है तो वो साफ नहीं होता है और पेट फूला हुआ प्रतीत होता है।
  • पेट में ऐंठन और हल्के-हल्के दर्द का आभास होना।
  • चुभन के साथ दर्द होना तथा कभी-कभी उल्टी होना।
  • सिर में दर्द रहना भी इसका एक मुख्य लक्षण हैं।
  • पूरे दिन आलस जैसा महसूस होता है

    पेट में गैस बनने के कारण (Causes of Gas in Hindi)

    आयुर्वेद में वात, पित्त एवं कफ इन तीन दोषों के असंतुलन से ही सारे रोग होते हैं, तथा इनके सामान्य अवस्था में रहने से व्यक्ति रोगरहित रहता है। उदररोगों में उदरवायु सबसे आम समस्याओं में से एक देखी जाती है, यह वात के कारण होने वाला रोग है। अनुचित आहार-विहार के कारण वात प्रकुपित होकर अनेक रोगों को जन्म देता है तथा पेट में गैस की समस्या से व्यक्ति को जूझना पड़ता है। आयुर्वेद में वायु के पाँच प्रकार बताए गए हैं- प्राण, उदान, समान, व्यान एवं अपान वायु। उदर वायु समान एवं अपान वायु की विकृति से उत्पन्न होती है। लेकिन इसके पीछे बहुत सारे आम कारण होते हैं जिनके वजह से गैस होती है, चलिये इनके बारे में पता लगाते हैं।

    • अत्यधिक भोजन करना
    • बैक्टीरिया का पेट में ज्यादा उत्पादन होना
    • भोजन करते समय बातें करना और भोजन को ठीक तरह से चबाकर न खाना।
    • पेट में अम्ल का निर्माण होना।
    • किसी-किसी दूध के सेवन से भी गैस की समस्या हो सकती है।
    • अधिक शराब पीना
    • मानसिक चिंता या स्ट्रेस
    • एसिडिटी, बदहजमी, विषाक्त खाना खाने से, कब्ज और कुछ विशेष दवाओं के सेवन
    • मिठास और सॉरबिटोल युक्त पदार्थों के अधिक सेवन से गैस बनता है।
    • सुबह नाश्ता न करना या लम्बे समय तक खाली पेट रहना।
    • जंक फूड या तली-भुनी चीजें खाना।
    • बासी भोजन करना।
    • अपनी दिनचर्या में योग और व्यायाम को शामिल न करना।
    • बीन्स, राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल का अधिक सेवन करना।
    • कुछ खाद्य पदार्थों से कुछ लोगों को गैस बन जाता है जबकि कुछ लोगों को उससे कोई गैस नहीं बनता है जैसे; सेम, गोभी, प्याज, नाशपाती, सेब, आडू, दूध और दूध उत्पादों से अधिकांश लोगों को गैस बनती है।
    • खाद्य पदार्थ जिनमें वसा या प्रोटीन के बजाय कार्बोहाइड्रेट का प्रतिशत ज्यादा होता है, के खाने से ज्यादा गैस बनती है।
    • भोजन में खाद्य समूह में कटौती की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि आप अपने आप को आवश्यक पोषक तत्वों से वंचित भी नहीं रख सकते हैं, अक्सर, जैसे ही एक व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, कुछ एंजाइमों का उत्पादन कम होने लगता है और कुछ खाद्य पदार्थों से अधिक गैस भी बनने लगती है।
    • यहां तक कि स्तनपान करने वाले शिशुओं में उदरवायु यानि पेट में दर्द होने की समस्या अक्सर देखी जाती है। उचित प्रकार से स्तनपान न कराने या माता द्वारा वात बढ़ाने वाले आहार लेने से ऐसी समस्या हो जाती है। वहीं भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों में वातवर्धक आहार, फास्ट फूड, जंक फूड इन सब के सेवन से उदरवायु की समस्या देखी जाती है

      पेट में गैस बनने से रोकने के उपाय 

      अगर खाना खाने के बाद एसिडिटी हो रहा है या हमेशा किसी न किसी कारण गैस का प्रॉबल्म हो रहा है तो इसको रोकने के लिए अपने आहार योजना और जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए।

      सबसे पहले आहार योजना के बारे में जानते हैं-

      • क्योंकि पेट में गैस वात दोष के कारण होने वाली समस्या है अत वातशामक आहार एवं उचित जीवनशैली के द्वारा गैस की समस्या से राहत (pet me gas ke upay) मिलती है।
      • अपने आहार में बदलाव करें- सेम, गोभी, प्याज जैसे खाद्य पदार्थ की मात्रा का ध्यान रखें, हालांकि, इससे पहले कि आप इन चीजों को खाना छोड़ दे एक या दो सप्ताह इन्हें खाकर यह पता लगा लें कि आपकों किस चीज से नुकसान पहुँचता है, अपने आहार का ट्रैक रखें।
      • मिठास या सॉरबिटोल युक्त उत्पादों से बचें, जो चीनी मुक्त मिठाई और कुछ दवाओं में प्रयोग किया जाता है।
      • चाय और रेड वाइन भी अधोवायु को रोकने में मदद करता है
      • अब आता है जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाने से गैस से राहत मिल सकती है,जैसे-

        • सुबह उठकर प्राणायाम एवं योगासन करें।
        • भोजन को चबा-चबा कर खाएं, जल्दी-जल्दी भोजन न खाएं।
        • पवनमुक्तासन, वज्रासन तथा उष्ट्रासन करें।
        • वज्रासन, खाने के बाद करने से गैस होने से रोका जा सकता है। इसको करने के लिए घुटने मोड़कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें। 5 से 15 मिनट तक करें। गैस पाचन शक्ति कमजोर होने से होती है। यदि पाचन शक्ति बढ़ा दें तो गैस नहीं बनेगी। योग की अग्निसार क्रिया से आंतों की ताकत बढ़कर पाचन सुधरेगा।
        • वज्रासन करने से पेट में गैस नहीं बनती। योग की अग्निसार क्रिया से आँतों की ताकत बढ़कर पाचन में सुधार होता है।
        • सोडा और प्रीजरवेटिव युक्त जूस न पिएं।
        • पानी अधिक पिएं।
        • जंक फूड, बासी भोजन तथा दूषित पानी से जितना हो सके बचें।
        • पेट में गैस बनना आम बात है लेकिन कई बार इसकी वजह से सीने में भी दर्द होने लगता है। गैस भयंकर तरीके से सिर में चढ़ जाती है और उल्टियां तक आने लगती है। अगर आपको भी खतरनाक तरीके से गैस बनती है तो आप देसी दवाई की जगह घरेलू उपायों के जरिए इस बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं। दरअसल, गैस बनने से पेट फूलने लगता है और पाचन संबंधी दिक्कत पैदा हो जाती है। अगर आपको ज्यादा गैस बनती है तो इसे बिल्कुल भी हल्के में न लें क्योंकि इसकी वजह से आपको घातक पेट के रोग हो सकते हैं। पेट फूलने और गैस बनने पर आप घर में ही मौजूद चीजों से इसका इलाज कर सकते हैं और इस बीमारी से जड़ से छुटकारा पा सकते हैं
        • पेट में गैस की समस्या से छूटकारा पाने के आसान से घरेलू उपाय:

          1. नीबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।

          2. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।

          3. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।

          4. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।

          5. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
          6. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फादा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।

          7. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।

          8. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।

          9. पुदीने की पत्तियों को उबाल कर पीने से गैस से निजात मिलती है।

          10. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।

          11. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।

          12. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।

Friday 24 November 2017

डायलिसिस, कैंसर जैसी भयंकर बीमारी में रामबाण - अमृत समान

           कैंसर ख़त्म और (W.B.C ) श्वेत रक्त कोशिका को बढ़ाने के लिए अमृत समान है ये जूस 

कोई किडनी या कैंसर,डायलिसिस या ऐसी कोई लाइलाज बीमारी से ग्रसित है तो ये घरेलु उपाय उनके लिए अमृत सिद्ध होगा। इस उपाय को एक से तीन महीने तक करे और फिर रिजल्ट देखें। ये प्रयोग करने से डायलिसिस, अनेक प्रकार के कैंसर, रक्त में हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए और रक्त में श्वेत कोशिकाओ (W.B.C.) की संख्या बढ़ाने के लिए रामबाण है। 

इस प्रयोग में मुख्य घटक है।

गेंहू के जवारे (गेंहू घास) का रस
गिलोय(अमृता) का रस।

गेंहू की घास को धरती की संजीवनी के समान कहा गया है, जिसे नियमित रूप से पीने से मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ रोगी भी स्वस्थ हो जाता है। और इसमें अगर गिलोय(अमृता) का रस मिला दिया जाए तो ये मिश्रण अमृत बन जाता है। गिलोय अक्सर पार्क में या खेतो में लगी हुयी मिल जाती है।

गेंहू के जवारों का रस 50 ग्राम और गिलोय (अमृता की एक फ़ीट लम्बी व् एक अंगुली मोटी डंडी) का रस निकालकर – दोनों का मिश्रण दिन में एक बार रोज़ाना सुबह खाली पेट निरंतर लेते रहने से डायलिसिस द्वारा रक्त चढ़ाये जाने की अवस्था में आशातीत लाभ होता है।

इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार के कैंसर से भी मुक्ति मिलती है। रक्त में हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स की मात्रा तेज़ी से बढ़ने लगती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। रक्त में तुरंत श्वेत कोशिकाएं (W.B.C.) बढ़ने लगती हैं। और रक्तगत बिमारियों में आशातीत सुधार होता है। तीन मास तक इस अमृतपेय को निरंतर लेते रहने से कई असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती हैं। इस मिश्रण को रोज़ाना ताज़ा सुबह खाली पेट थोड़ा थोड़ा घूँट घूँट करके पीना है। इसको लेने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ नहीं खाएं।

गेंहू के जवारे- गेहूँ का ज्वारा अर्थात गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों की हरी-हरी पत्ती, जिसमे है शुद्ध रक्त बनाने की अद्भुत शक्ति. तभी तो इन ज्वारो के रस को “ग्रीन ब्लड” कहा गया है.

इसे ग्रीन ब्लड कहने का एक कारण यह भी है कि रासायनिक संरचना पर ध्यानाकर्षण किया जाए तो गेहूँ के ज्वारे के रस और मानव मानव रुधिर दोनों का ही पी.एच. फैक्टर 7.4 ही है, जिसके कारण इसके रस का सेवन करने से इसका रक्त में अभिशोषण शीघ्र हो जाता है, जिस से रक्ताल्पता(एनीमिया) और पीलिया(जांडिस) रोगी के लिए यह ईश्वर प्रदत्त अमृत हो जाता है। गेहूँ के ज्वारे के रस का नियमित सेवन और नाड़ी शोधन प्रणायाम से मानव शारीर के समस्त नाड़ियों का शोधन होकर मनुष्य समस्त प्रकार के रक्तविकारों से मुक्त हो जाता है। गेहूँ के ज्वारे में पर्याप्त मात्रा में क्लोरोफिल पाया जाता है जो तेजी से रक्त बनता है इसीलिए तो इसे प्राकृतिक परमाणु की संज्ञा भी दी गयी है। गेहूँ के पत्तियों के रस में विटामिन बी.सी. और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
अगर आप भयंकर से भयंकर बीमारी से ग्रस्त हैं, और आपको लगता हैं के ये बीमारिया आपकी जान ले कर ही छोड़ेंगी, और आप दवा ले ले कर थक चुके हो। तो एक बार गेंहू के जवारों को ज़रूर आज़माये।

  1. ये कैंसर किलर हैं, कैंसर के मरीजों को ये नियमित लेना चाहिए।
  2. ये मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान हैं।
  3. ये खून की कमी को चमत्कारिक रूप से पूरा करता हैं।
  4. ये हृदय रोगियों के लिए वरदान हैं।
  5. ये गर्भिणी महिलाओ के लिए वरदान हैं।
  6. ये शरीर के टॉक्सिन्स को बाहर निकलता हैं।
  7. मोटापे के रोगियों के लिए वरदान हैं।
  8. ये शरीर की ऊर्जा को बढ़ा देता हैं, खिलाड़ियों के लिए ये वरदान हैं।
  9. त्वचा सम्बंधित रोगो में वरदान हैं।
  10. शरीरी की दुर्गन्ध को दूर करता हैं।
  11. बुढ़ापे को रोकता हैं। वीर्य की कमी को पूरा करता हैं।

ऐसे ढेरो गुण समाये हैं इसमें।

गेहूँ घास के सेवन से कोष्ठबद्धता, एसिडिटी , गठिया, भगंदर, मधुमेह, बवासीर, खासी, दमा, नेत्ररोग,म्यूकस, उच्चरक्तचाप, वायु विकार इत्यादि में भी अप्रत्याशित लाभ होता है।
इसके रस के सेवन से अपार शारीरिक शक्ति कि वृद्धि होती है तथा मूत्राशय कि पथरी के लिए तो यह रामबाण है।
गेहूँ के ज्वारे से रस निकालते समय यह ध्यान रहे कि पत्तियों में से जड़ वाला सफेद हिस्सा काट कर फेंक दे। केवल हरे हिस्से का ही रस सेवन कर लेना ही विशेष लाभकारी होता है। रस निकालने के पहले ज्वारे को धो भी लेना चाहिए. यह ध्यान रहे कि जिस ज्वारे से रस निकाला जाय उसकी ऊंचाई अधिकतम पांच से छः इंच ही हो।

आप 15 छोटे छोटे गमले लेकर प्रतिदिन एक-एक गमलो में भरी गयी मिटटी में 50 ग्राम गेहू क्रमशः गेहू चिटक दे, जिस दिन आप 15 गमले में गेहू डालें उस दिन पहले दिन वाला गेहू का ज्वारा रस निकलने लायक हो जायेगा। यह ध्यान रहे की जवारे की जड़ वाला हिस्सा काटकर फेक देंगे पहले दिन वाले गमले से जो गेहू उखाड़ा उसी दिन उसमे दूसरा पुनः गेहू बो देंगे.यह क्रिया हर गमले के साथ होगी ताकि आपको नियमित ज्वारा मिलता रहे ।
बड़ी बड़ी कंपनिया इसको बहुत महंगे दामो पर बेचती हैं। आप इसको घर में ही उगाये और अपने पैसे बचाये।

अगर आप चाहते हैं के ऐसी और जानकारिया आपको मिलती रहे तो हर पोस्ट को अनेक लोगो तक पहुंचाए। ये जानकारी ज़रूर शेयर कीजिये।

Monday 4 September 2017

ऍसिडिटी ( आम्लपित्त)

अम्लपित्त या ऍसिडिटी के कारण पेट में जलन होती है| इसका अनुभव लगभग कभी ना कभी सभीको होता है !कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तिखा आहार यह ऍसिडीटी के कारण मानते थे| लेकिन इससे केवल तत्कालिक ऍसिडिटी होती है| आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जिवाणू है| यह संक्रमण दूषित खान-पानसे होता है|
कुछ लोगोंको गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थोंके कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है| जादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है|   तमाखू खानेसे या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है| अरहर या चनादाल या बेसन के कारण कुछ लोगोंको अम्लपित्त होता है| मिर्च खानेसेभी ऍसिडिटी होती है|

 अम्लपित्त / एसिडीटी

इसको आयुर्वेदमे अम्लपित्त कहा जाता है ।

“अम्लगुणोद्रिक्तं पित्तं अम्लपित्तम । “ याने जिस व्याधीमे अम्लगुणसे पित्त ब‌ढ़ता है उसे अम्लपित्त कहा जाता है ।

अपने शरीरमे पित्त दो प्रकारका होता है । एक प्राकृत पित्त जो तीखे रसवाला रहता है और दुसरा विकृत पित्त जो अम्लरसका होता है ।

अम्लपित्त एक ऐआ व्याधी है जो तेयार होनेमे कई दिन तो क्या , कई महिनेभी लग सकते है । धीरे धीरे निर्माण होनेवाला ये व्याधी है  और इसिलिये उसपे उपचार लेते समय भी जल्द्बाजी करके फायदा नही होता है ।वर्षा ऋतूके प्रभावसे शरीरमे पित्त संचित होने लगता है । और ऐसी स्थितीमे अगर विरुद्धाहार, दुषित भोजन का सेवन, एक्दम खट्टे-जलन करनेवाले पदार्थोंका सेवन करना, जादा पानी पिना, नया धान्य-मद्य आदि का सेवन, फर्मेंटेड चीझोंका सेवन, खट्टा दहि या छाछ का अतिसेवन, जादा उपवास करना, रात को जागरन, दिनमे सोना, बाँसी चीझे खाना ऐसे कारनोंसे पित्त और जादा दुषित होता है और फिर अम्लपित्तकी शुरुवात होती है ।
भूक न लगना, छाती-कंठमे जलन होना, जी मचलना, अन्न का पचन न होना, क्लम ( बैठे बैठे थकान महसूस होना, खट्टी या कड़्वी ड़्कारे आना, अरुचि, पेट भराभरासा लगना, पेटमे दर्द, सिरदर्द, हृत्शूल, गैसेस, कभी कभी पतले दस्त होना, गुदामे जलन होना ये सब लक्षण अम्लपित्त के है ।

आयुर्वेदने अम्लपित्तके दो प्रकार वर्णन किये है । वह इस प्रकार –

१) उर्ध्वग अम्लपित्त – इसमे उल्टिया होती है । उल्टी का रंग हरा, पीला, नीला या काला रहता है । उल्टी एक्दम कड़्वी या खट्टी रहती है । उल्टी के बाद सिरद्रद, पेटमे जलन आदि लक्षण कम हो जाते है ।

२) अधोग अम्लपित्त – ये बहोत कम बार दिखनेवाला प्रकार है । इसमे उल्टीकी बजाय टट्टीद्वारा हरे / काले / पीले रंग का पित्त निकलता है । मल निकलते समय गुददाहभी होता है । इसमेभी पित्त निकल जानेके बाद सिरदर्द, पेटकी जलन आदि लक्षण कम हो जाते है ।

अम्लपित्त ये एक ऐसा व्याधी है जो औषधी की बजाय परहेज से जल्दी ठीक होता है । अगर परहेज पालन नही हो रहा है तो दवाई लेना व्यर्थ है ।
डॉक्टरी इलाज कब करे?
जलन और दर्द जादा हो और दवा से न रुके तब अपने डॉक्टर से मिलिए| हप्ते- दो हप्ते के बाद जलन और दर्द होता रहे तो डॉक्टरसे मिलना चाहिए| दर्द अगर एकाध बिंदू से जुडा हो तब अल्सर की संभावना होती है| इसके लिए डॉक्टरसे मिले| डॉक्टर गॅस्ट्रोस्कोपीकी सलाह दे सकते है| गॅस्ट्रोस्कोपीका मतलब है दुर्बीनसे जठरका अंदरुनी स्थिती देखना|
रोकथाम- तीखे, मसालेदार और जादा गरम पदार्थ, तमाखू, धूम्रपान और शराब सेवन न करे| अरहर, चनादाल या बेसनसे मूँग अच्छा होता है|अम्लपित्त ऍलर्जीका प्रभाव हो तो आहार में उस चीज का पता करना पडेगा| जाहिर है की इस पदार्थको न खाए| योगशास्त्रनुसार तनाव से छुटकारा होनेपर ऍसिडिटी कम होती है| इसके लिये योग उपयोगी है|
एच. पायलोरी जीवाणू संक्रमण टालनेके लिए खानापिना साफ सुथरा चाहिए| दर्द और जलन अक्सर होती रहे तो जल्दी ही डॉक्टरसे मिलकर अल्सर याने छाला टालना चाहिए|