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Saturday 7 November 2020

श्वसन तंत्र के रोग



श्वसन तंत्र के रोग रोग आपके फेफड़ों में ऑक्सीजन और अन्य गैसों को ले जाने वाली नलियों को प्रभावित करता है। यह श्वसन प्रणाली में मार्ग को संकीर्ण व अवरुद्ध कर सकता है। फेफड़े का कैंसर, अस्थमा, तपेदिक, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और ब्रोन्किइक्टेसिस आम वायुमार्ग की बीमारियां हैं। श्वसन तंत्र की बीमारिया बहुत आम हैं। पाचन तंत्र की तरह श्वसन तंत्र को भी बाहरी चीजों का कहीं ज़्यादा सामना करना पड़ता है। इसीलिए श्वसन तंत्र की एलर्जी और संक्रमण इतनी आम है। हवा से होने वाली संक्रमण से बचना उतना आसान नहीं है जितना कि खाने व पानी से होने वाली संक्रमण से बचाव करना। बेहतर आहार, घर और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता (जैसे धुम्रपान से परहेज) यही सामान्यतया महत्वपूर्ण है। लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण भी साँस की बीमारियों के लिए काफी नुकसानदेह है।
श्वसन तंत्र की सभी बीमारियों में खॉंसी होना सबसे आम है। खॉंसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। यह असल में किसी न किसी बीमारी का लक्षण है। परन्तु अक्सर इलाज बीमारी के बजाय खॉंसी पर केन्द्रित हो जाता है, जो गलत है। खॉंसी के लिए दिए जाने वाले सिरप आम तौर पर असरकारी नहीं होते। परेशानी की जगह और कारण का निदान ज़रूरी है। श्ससन तंत्र की रचना और कार्य की जानकारी से हमें मदद मिल सकती है। श्वसन तंत्र मानों एक उल्टा पेड़ है। इसमें सूक्ष्म नलिकाओं और वायुकोश की हवा के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। छाती की पेशियाँ और फेफड़ों के नीचे का पेशीय पर्दा (मध्य पट) या ड्याफ्राम हवा के अवागमन में मदद करते हैं। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में नाक, गला और स्वरयंत्र (लैरींक्स) आते हैं। श्वसन तंत्र के निचले भाग में मुख्य श्वास नली और इसकी शाखाएँ यानि श्वसनी, छोटी शाखाएँ और लाखों वायुकोश (एल्वियोलाई) जिनके साथ सूक्ष्म केश नलिकाओं का जाल होता है। श्वसन तंत्र को ऊपरी और निचले भागों में बॉंटकर समझने से आसानी रहती है। ऊपरी भाग का संक्रमण आमतौर पर खुद ठीक हो जाने वाली होता हैं। परन्तु निचले भाग का संक्रमण आम तौर पर गम्भीर होता हैं और कभी कभी जानलेवा हो सकता है।
श्वसन तंत्र के रोग का आयुर्वेदिक इलाज – 
किसी भी रोगी के श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों का इलाज करने से पहले रोगी की गहरी जानकारी लेना ज़रूरी है। उसके कामकाज के बारे में जानना भी ज़रूरी है। अंस्बेस्टॉस, कोल, सिलिका, बगॅस, आयर्न ऑक्साइड, रुई के तंतु और पालतू पशुओं से रोगी का संबंध तो नहीं यह भी देखना होता है। अगर इन चीज़ों से उसका संबंध हो तो कितने समय तक रहा और बचाव के उपायों के बारे में भी जानना ज़रूरी है।

धूम्रपान और वायु प्रदूषण श्वसन समस्याओं के दो सामान्य कारण हैं।

यदि रोगी को श्वसन संबंधित लक्षणों के साथ समस्याएं हैं तो निम्नलिखित बीमारियां हो सकती हैं-:

अस्थमा- रोग ---- 

 (सर्दी ज़ुकाम)

छींक आना

सांस लेने में खराब गंध

सिरदर्द, और आँखे लाल होना खुजली और पानी निकलना 

गले में खारिश

गंध की कमी

अवरुद्ध या कंजस्टेड नाक

क्रोनिक लेरिंजिटिस

आवाज़ का बैठना

गले मे ख़राश

स्पासमोडिक खाँसी

कुछ मामलों में बुखार

निगलने में कठिनाई

सूजी हुई लसीका ग्रंथियां

गले में दर्द

ब्रोंकाइटिस (कास रोग , खाँसी)

 खांसी

गले में जलन/खराश

छाती में जकड़ाहट 

सांस फूलना

ब्रोन्कियल अस्थमा (श्वास रोग )

छाती में जकड़ाहट

खाँसी आना

घरघराहट

जल्दी जल्दी सांस आना

साइनोसाइटिस (नज़ला)

छींक आना

सिर व् शरीर में भारी पन

नाक का अवरुद्ध होना या  नाक का बहना

इंफ्लुएंजा

खांसी

नाक की मांसपेशियों मई दर्द होना और सिरदर्द होना

बुखार

नाक का बहना

थकान

गले में खरास

ठंड लगना

टांसिलिटिस

खांसी

टॉन्सिल पर सूजन

गले में दर्द और निगलने में कठिनाई

बुखार


श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियाँ कई कारणों से हो सकती है जैसे – 
पालतू पशु और जंगली पशुओं का संबंध श्वसन संबंधी रोगों में महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। इनके संपर्क से वायु कोष सिकुड़ने लगते हैं।पशुओं की एलर्जी के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।बीड़ी या सिगरेट पीने के कारण भी श्वसन संबंधी रोग हो सकते हैं।मद्यपान करनेवाले लोगों में नशे की वजह से एस्पिरेशन न्युमोनिया होता पाया गया है।रक्तवाहिनी में इंजेक्शन से नशा करनेवाले लोगों में फेफडों में फोड़े एबसेस हो सकते हैं।रोगी के पारिवारिक इतिहास में निकट संबंधियों को दमा और सिस्टिक फायब्रोसिस तो नहीं यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है।

श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण :- कोई भी बीमारी लक्षणों के रूप में ही परिलक्षित होती है। साँस संबंधी बीमारी के प्रमुख लक्षण – साँस फूलना, साँस तेज़ी से चलना, जुकाम, सर्दी, खाँसी आदि होते हैं। श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग नाक, नाक के आस-पास के सायनस, श्वास नलिकाएँ, फेफड़े, सीना, पेट, सीने और पेट के बीच मांसपेशियों का परदा डायफ्राम आदि हैं। साँस फूलने से रोगी को साँस लेने में कष्ट होता है। इस तकलीफ के कारणों का पता लगाना ज़रूरी होता है।
2) खाँसी : खाँसी श्वसन तंत्र के रोगों का प्रमुख लक्षण है। खाँसी के साथ निकलती बलगम की मात्रा और रंग के द्वारा निदान किया जा सकता है। फेफड़ों में मवाद होना, ब्रॉन्कायटिस और न्युमोनिया के कुछ प्रकारों में चिपचिपा और दुर्गंधयुक्त कफ निकलता है। पुराने ब्रॉन्कायटिस में कफ का रंग हरा सा होता है। पल्मोनरी एडिमा में झागयुक्त, गुलाबी रंग का कफ निकलता है। रात में सो जाने के बाद ज़ोर की खाँसी उठती है। साँस फूलती है। यह लक्षण दमा और हृदय रोग दोनों ही में होता है तब विशेष निदान की आवश्यकता होती है। दीर्घकालीन खाँसी में थूक की जाँच करके टी.बी. का निराकरण अवश्य करवाना चाहिए।

3) थूक में रक्त : खखारने के बाद यदि खून निकले तो रोगी बहुत घबरा जाते हैं और तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं। जीवाणुओं के संसर्ग से भी रक्त आ सकता है। टी.बी., हृदय रोग, कैंसर, फेफड़े का फोड़ा एबसेस आदि बीमारियों में थूक में रक्त आना एक लक्षण होता है। कई बार अन्ननलिका या जठर से रक्तस्राव हो तो वह भी थूक के साथ निकलता है। ऐसे समय रक्त किस अंग से बह रहा है इसका निदान आवश्यक है।

4) छींकें आना : छींक आना एक रिफ्लेक्स एक्शन है। प्रतिक्षिप्त क्रिया है। जब छीकों की संख्या ज़्यादा हो, लगातार छींकें आने लगें तो यह एलर्जी या इंफेक्शन हो सकता है।

ये श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों की और कुछ परीक्षणों की सहायता से रोग का निदान और इलाज किया जा सकता है। शरीर में आयु के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है। उन्हें रोका नहीं जा सकता। इनकी तीव्रता कम की जा सकती है। ये परिवर्तन देर से हो इसका प्रयास किया जा सकता है। आयुर्वेद में आहार, विहार और औषध ये तीन सूत्र बताए गए हैं।

श्वसन तंत्र के रोगी का आहार :

वृद्धावस्था में वात दोष में वृद्धि हो जाती है। धातु कमज़ोर हो जाते हैं। पाचन शक्ति मंद हो जाती है। इसके लिए वातशामक हलका आहार लिया जाना चाहिए।

दूध और घी का उचित मात्रा में सेवन करें।मूंग की खिचड़ी, चावल, ज्वार की रोटी, चावल की रोटी और गेहूँ की रोटी लें।सब्ज़ी, सेवई की खीर और छाछ लें।पपीता और सेब लें।सूखे अंजीर और काली मुनक्का लें।अदरक और काले नमक को चबाकर खाने से मुँह का स्वाद ठीक होगा और पाचन भी सुधरेगा।आयु बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। आहार की मात्रा में बदलाव करना उचित होता है। रात्रि भोजन कम कर दें।सूप, पतली दाल आदि अधिक लें।

साँस संबंधी बीमारियों को काबू में रखने के लिए बेकरी पदार्थ, खमीर के पदार्थ, खट्टे पदार्थ, दही, चावल, शीत पेय, आइस्क्रीम, फ्रिज में रखा भोजन, लस्सी, बर्फ डाला हुआ गन्ने का रस, केला, ककड़ी, तरबूज़, आदि भोज्य पदार्थ बंद कर दें।मेवा अवश्य लें।
श्वसन तंत्र के रोग में सावधानी और बचाव के उपाय :--
वात दोष न बढ़े इसलिए पूरी नींद लें।वृद्धावस्था में दोपहर में सोना ठीक है।आयुर्वेद के अनुसार पूरी देह पर तेल मालिश करके स्नान करें। संभव न हो तो हथेली, तलुए, सिर और कान में तेल का प्रयोग करें। तिल का तेल सर्वोत्तम है।नियमित अभ्यंग (मालिश) से वात संतुलन होता है। धातु की संपन्नता होती है।प्राणायाम और योगासन करें।श्वसन तंत्र के रोगों से बचने के लिए देर तक जागना, पंखे की हवा, ठंढा वातावरण इन सब से बचें।डॉक्टर की सलाह से कसरत करें।फर्श पर न सोएँ।पैरों में चप्पल पहनें।वर्षा और शीत ऋतु में गर्म कपड़े पहनें।
श्वसन तंत्र के रोग की आयुर्वेदिक दवाएँ और उपचार :--

वृद्धावस्था के कारण धातु का क्षय होता है। इसे रोकने के लिए पंचकर्म करवाएं। इसके अंतर्गत शरीर को तेल से मालिश करना, सेकना, क्षीर बस्ति, नस्य आदि वैद्य की सलाह से करवाएँ।
पंचकर्म के साथसाथ रसायन चिकित्सा आवश्यक है।प्रदूषण से बचाव के लिए पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का सही उपयोग ज़रूरी है।वर्धमान पिप्पली रसायन, लाक्षा क्षीरपाक, च्यवनप्राश, धात्री रसायन का उपयोग श्वसन तंत्र के रोगों में प्रमुखता से किया जाता है।प्रदूषण से बचना कठिन होता जा रहा है। इसका मुकाबला करने के लिए शरीर को सब धातुओं से संपन्न होना आवश्यक है। उपरोक्त आहार, विहार, पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का उपयोग करें। इनके उपयोग से हम प्रदूषण से होनेवाले श्वसन तंत्र के रोगों से बचाव कर सकते हैं।

Monday 18 November 2019

अजवाइन( Carom Seeds) का उपयोग , फायदे और नुकसान




अजवाइन के फायदे  
अजवाइन ऐसी चीज है, जो न सिर्फ आपके खाने का जायका बढ़ाती है, बल्कि आपके स्वास्थ्य को भी ठीक रखती है। यही कारण है कि भारतीय भोजन में अजवाइन का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, पेट में दर्द होने या गैस बनने पर बड़े-बुजुर्ग भी एक चुटकी अजवाइन खाने की सलाह देते हैं। यकीनन, यह सलाह काम आती है और असमय उठे पेट दर्द से राहत मिलती है।विद्रोही आवाज स्वास्थ्य ब्लॉग  के इस लेख में हम आपको अजवाइन के फायदे से रू-ब-रू कराएंगे। इसके अलावा, यह भी बताएंगे कि आप किस-किस तरह से अजवाइन का सेवन कर सकते हैं। अजवाइन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होती है, लेकिन यह त्वचा और बालों के लिए भी गुणकारी है। फिलहाल, हम पहले सेहत के लिए अजवाइन के फायदे बता रहे हैं।

1. एसिडिटी, अपच और पेट की अन्य समस्याओं से बचाए

अगर आपको एसिडिटी की समस्या रहती है, तो अजवाइन का सेवन फायदेमंद हो सकता है। इसमें एंटीएसिड गुण होते हैं, जो एसिडिटी की समस्या से राहत दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए आप एक चम्मच अजवाइन में एक चम्मच जीरा और थोड़ा अदरक का पाउडर मिलाकर सेवन करें।
विद्रोही आवाज स्वास्थ्य ब्लॉग 

2. गैस और कब्ज

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गैस और कब्ज की समस्या किसी को भी हो सकती है। ऐसे में अजवाइन आपके लिए असरदार साबित हो सकती है। इसमें थाइमोल की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे गैस्ट्रिक रस का स्राव बढ़ता है। इसके अलावा, अजवाइन में रेचक (लैक्सटिव) गुण होते हैं, जिस कारण कब्ज की समस्या दूर होती है और मल त्यागने में आसानी होती है 

3. दिल के लिए फायदेमंद

अजवाइन आपके कोलेस्ट्राॅल के स्तर को ठीक रखती है, जो दिल के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है । इसके अलावा, यह सीने के दर्द से राहत दिलाने में मदद करती है। इसके लिए आप एक चम्मच अजवाइन को गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं।

4. अस्थमा

गुनगुने पानी के साथ अजवाइन खाने से ब्रोंकाइटिस और अस्थमा में भी राहत मिलती है। आप दिन में दो बार गुड़ के साथ अजवाइन खा सकते हैं। इसमें एंटीस्पैमोडिक और कार्मिनेटिव गुण होते हैं, जो अस्थमा में राहत पहुंचाते हैं ।

5. सर्दी, फ्लू और वायरल इन्फेक्शन

अगर आपको सर्दी, फ्लू या वायरल इन्फेक्शन की समस्या हो, तो अजवाइन प्रभावी असर दिखाती है। सर्दी के कारण बंद हुई नाक में भी अजवाइन फायदा पहुंचाती है। अगर नाक बंद हो, तो गर्म पानी में अजवाइन डालकर भांप लें। आपको राहत महसूस होगी। इसके अलावा, अगर सर्दी, फ्लू या वायरल इन्फेक्शन के कारण गले में खराश है, तो हल्दी और अजवाइन को गर्म दूध में मिलाकर लें। इससे आपको आराम मिलेगा 

6. मुंह की समस्याएं

अजवाइन मुंह की समस्याओं से भी राहत दिलाने में मदद करती है। अगर आपको दांत में दर्द है, तो अजवाइन से राहत मिल सकती है। आप अजवाइन का तेल और लौंग का तेल मिलाकर दांत पर लगाएं, ताे इससे दर्द भी कम होगा और मुंह से दुर्गंध भी नहीं आएगी ।

7. डायरिया

अजवाइन डायरिया से राहत दिलाने में भी मदद करती है। इसके लिए एक गिलास पानी में अजवाइन डालकर उबालें। फिर इस पानी को ठंडा कर दिन में दो बार पिएं ।
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8. जोड़ों में दर्द

अर्थराइटिस और जोड़ों में दर्द के लिए अजवाइन काफी लाभकारी होती है। अगर आपको जोड़ों में दर्द रहता है, तो प्रभावित भाग पर अजवाइन के तेल से मालिश करें। आपको राहत महसूस होगी 

9. डायबिटीज

डायबिटीज के मरीजों के लिए भी अजवाइन लाभदायक साबित होती है। इसके लिए आप नीम की पत्तियों को छांव में सुखा लें। इसका पाउडर बनाकर एक डिब्बे में भर लें। रात के समय में गर्म दूध में एक चम्मच नीम और आधा-आधा चम्मच अजवाइन व जीरे का पाउडर डालकर लगातार 30 दिन तक पीने से आपको फायदा हो सकता है।

10. मासिक धर्म में लाभदायक

अगर आपको मासिक धर्म में दर्द या अनियमितता की शिकायत है, तो आप अजवाइन का सेवन कर सकती हैं । इसके लिए आप मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर एक मुट्ठी अजवाइन डालकर रातभर के लिए छोड़ दें। फिर इसे अगली सुबह पीसकर पी लें। आपको फायदा होगा।

11. कान दर्द

कान दर्द की समस्या से राहत दिलाने में अजवाइन खास भूमिका निभाती है। अजवाइन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो इस समस्या से राहत दिलाने में मदद करते हैं। अगर आपको कान दर्द की समस्या ज्यादा है, तो दो चम्मच तिल के तेल में दो चम्मच अजवाइन और एक चम्मच लहसुन डालकर तेल के लाल होने तक गर्म करें। फिर इसे ठंडा करके कुछ बूंदें कान में डालें। यह तेल कान में फुंसी होने पर भी लाभ पहुंचा सकता है ।
नोट : बेशक यह घरेलू उपचार कान दर्द में लाभकारी है, लेकिन इसे उपयोग करने से पहले एक बार कान के डॉक्टर से जरूर पूछ लें।

12. स्तनपान के लिए

आपको जानकर हैरानी होगी कि स्तन दूध बढ़ाने में अजवाइन काफी प्रभावशाली होती है। अजवाइन आपके गर्भाशय को साफ करती है और ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने में मदद करती है। इसके लिए आप एक चम्मच सौंफ और आधा चम्मच अजवाइन एक लीटर पानी में डालकर उबालें। इस पानी को आप रोजाना पिएं।

13. वजन कम करे


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अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं, तो अजवाइन आपको फायदा पहुंचा सकती है। इसके लिए आप रोजाना सुबह खाली पेट एक चम्मच अजवाइन पानी के साथ लें। रोजाना इसे लेने से आप एक महीने में तकरीबन चार से पांच किलो वजन कम कर पाएंगे ।

त्वचा के लिए अजवाइन के फायदे 

  1. फोड़े-फुंसी और एक्जिमा : फोड़े -फुंसी और एक्जिमा की समस्या होने पर भी आप अजवाइन का सेवन कर सकते हैं। इसके लिए आप अजवाइन को गुनगुने पानी में डालें और इसे पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को प्रभावितभाग पर लगाएं। बेहतर परिणाम के लिए आप अजवाइन के पानी से प्रभावित क्षेत्र को धो भी सकते हैं।

2. कील-मुंहासों के लिए

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कील-मुंहासों से राहत पाने के लिए भी आप अजवाइन का इस्तेमाल कर सकते हैं। अजवाइन त्वचा से मुंहासों के निशान दूर करने में भी मदद करती है। मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए आप अजवाइन के पाउडर का पेस्ट बनाएं और 10 से 15 मिनट के लिए अपने चेहरे पर लगाएं। जब यह सूख जाए तो, सामान्य पानी से चेहरा धो लें। आप कुछ दिनों तक नियमित रूप से इस प्रक्रिया को अपनाएं। कुछ ही दिनों में आपको मुंहासों के निशान से छुटकारा मिल सकता है।
  1. झुर्रियों के लिए : झुर्रियों से राहत पाने के लिए अजवाइन आपकी मदद कर सकती है। चूंकि, अजवाइन में विटामिन-ए और विटामिन-सी होता है, जो त्वचा में कसावट लाते हैं। इनके चलते चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं।
  2. बॉडी क्लींजर : अजवाइन की चाय आपके शरीर से टॉक्सिन दूर करने में मदद करती है, जिससे कई तरह की त्वचा की समस्याएं दूर रहती हैं। यह आपका रक्त साफ करती है और शरीर में रक्त संचार को दुरुस्त करने में मदद करती है।
  3. ऑयली स्किन के लिए :अगर आपकी स्किन ऑयली है, तो अजवाइन आपके लिए फायदेमंद हो सकती है। इसमें सोडियम, आयरन, जिंक और मैग्नीशियम पर्याप्त मात्रा में होते हैं।

बालों के लिए अजवाइन के फायदे 

जिस तरह से अजवाइन स्वास्थ्य और त्वचा के लिए फायदे है, उसी तरह से बालों के लिए भी अजवाइन काफी फायदेमंद है। नीचे हम बताएंगे कि किस तरह अजवाइन बालों को फायदा पहुंचाती है।
खुजली और जूं से बचाए : अगर आपके सिर में तेज खुजली होती है या सिर में जूं पड़ गई है, तो अजवाइन आपके काम आ सकती है। इसके लिए आप एक चम्मच फिटकरी को दो चम्मच अजवाइन के साथ पीस लें और एक कप छाछ में मिलाकर बालों की जड़ में लगाएं। यह काम आप रात को सोने से पहले करें। अगली सुबह उठकर सिर धो लें। इससे सिर की जूएं मर जाएंगी।

बालों को सफेद होने से बचाए – 

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अजवाइन आपके बालों को असमय सफेद होने से भी बचाती है। इसके लिए आप दो से तीन करी पत्ता, दो सूखे अंगूर, एक चुटकी अजवाइन व स्वादानुसार चीनी को एक कप पानी में मिक्स करके पकाएं। आप इस पानी को रोजाना पिएं। ऐसा रोज करने से आपके बाल समय से पहले सफेद नहीं होंगे।

अजवाइन का उपयोग कैसे करें? 

हालांकि, हमने ऊपर अलग-अलग समस्याओं को लेकर अजवाइन इस्तेमाल करने के तरीके बताए हैं, लेकिन इसके अलावा कुछ आसान तरीके भी हैं, जो आप आजमा सकते हैं। नीचे हम बता रहे हैं कि अजवाइन का उपयोग कैसे करें :
  • अजवाइन भूख बढ़ाने का काम भी करती है। इसके लिए आप एक चम्मच अजवाइन को गुनगुने पानी के साथ खाएं। इससे आपको अच्छी भूख लगेगी।
  • अगर आपको गैस या पेट फूलने की समस्या है, तो अजवाइन को तवे पर भूनकर उसे नींबू व नमक के साथ चाटने से राहत मिलती है।
  • आप पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए अजवाइन का पानी भी पी सकते हैं।
  • अगर आपको फ्लू या गले में खराश की समस्या है, तो एक चौथाई अजवाइन, एक चुटकी नमक और एक लौंग को मुंह में रखकर चूसें। आपको राहत महसूस होगी।
  • इसके अलावा, खाना बनाते समय दाल या सब्जी में अजवाइन के साथ तड़का लगाने से खाना स्वादिष्ट भी बनेगा और उसे पचाने में आसानी भी रहेगी।

अजवाइन के नुकसान – 

भले ही अजवाइन फायदे होती है, लेकिन अगर इसका अत्यधिक सेवन किया गया, तो यह नुकसान भी कर सकती है। नीचे हम अजवाइन के कुछ नुकसान बताने जा रहे हैं।
  1. अगर अजवाइन का ज्यादा सेवन किया जाता है, तो इससे आपको पेट में जलन, उल्टी और सिर दर्द की समस्या हो सकती है।
  2. अगर आपको मुंह में छाले, पेट में अल्सर या आंतरिक रक्तस्राव की समस्या है, तो अजवाइन का सेवन इन समस्या को और बढ़ा सकता है।
  3. अगर आप अजवाइन का ज्यादा सेवन करते हैं, तो एसिडिटी की समस्या कम होने की जगह बढ़ सकती है।
इस लेख में हमने अजवाइन खाने के फायदे से लेकर अजवाइन के नुकसान तक के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही इस लेख में हमने आपको अजवाइन खाने के तरीके बताने के प्रयास किए हैं। आप ऊपर बताए गए तरीकों को अपनाएं और अजवाइन के फायदे उठाएं। इसके अलावा, यह लेख दूसरों के साथ भी शेयर करें, ताकि उन्हें भी इसके फायदे पता चल सकें।

Thursday 7 September 2017

अस्थमा (दमा)

अस्थमा (दमा)  श्वसन मार्ग का एक आम जीर्ण सूजन disease वाला रोग है जिसे चर व आवर्ती लक्षणों, प्रतिवर्ती श्वसन बाधा और श्वसनी-आकर्ष से पहचाना जाता है। आम लक्षणों में घरघराहटखांसी, सीने में जकड़न और श्वसन में समस्याशामिल हैं।

दमा फेफड़ों को खासा प्रभावित करता है। दमा के कारण व्यक्ति को श्वसन संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। दमा सिर्फ युवाओं और वयस्कों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। हालांकि अस्‍थमा के इलाज के लिए इनहेलर दिया जाता है लेकिन इनहेलर के दुष्‍प्रभाव भी होते हैं। इन सबके अलावा सवाल ये उठता है कि क्या दमा के प्रकार अलग-अलग होते हैं। बच्चों और बड़ों में होने वाला अस्थमा एक ही प्रकार का होता है। ये आपके लिए जानना बहुत जरूरी हैं। 
 जाने दमा के तमाम प्रकारों के बारे में----  
  • एलर्जिक अस्थमा – एलर्जिक अस्थमा के दौरान आपको किसी चीज से एलर्जी है जैसे धूल-मिट्टी के संपर्क में आते ही आपको दमा हो जाता है या फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही आप दमा के शिकार हो जाते हैं।
  • नॉनएलर्जिक अस्थमा- इस तरह के अस्थमा का कारण किसी एक चीज का एक्सिक्ट्रीम पर जाने से ऐसा होता है। जब आप बहुत अधिक तनाव में हो  या बहुत तेज-तेज हंस रहे हो, आपको बहुत अधिक सर्दी लग गई हो या बहुत अधिक खांसी-जुकाम हो। 
  • मिक्सड अस्थमा- इस प्रकार का अस्थमा किन्हीं भी कारणों से हो सकता है। कई बार ये अस्थमा एलर्जिक कारणों से तो है तो कई बार नॉन एलर्जिक कारणों से। इतना ही नहीं इस प्रकार के अस्थमा के होने के कारणों को पता लगाना भी थोड़ा मुश्किल होता है।
  • एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा- कई लोगों को एक्सरसाइज या फिर अधिक शारीरिक सक्रियता के कारण अस्थमा हो जाता है तो कई लोग जब अपनी क्षमता से अधिक काम करने लगते हैं तो वे अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।
  • कफ वेरिएंट अस्थमा- कई बार अस्थमा का कारण कफ होता है। जब आपको लगातार कफ की शिकायत होती है या खांसी के दौरान अधिक कफ आता है तो आपको अस्थमा अटैक पड़ जाता है।
  • ऑक्यूपेशनल अस्थमा- ये अस्थमा अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है। नियमित रूप से लगातार आप एक ही तरह का काम करते हैं तो अकसर आपको इस दौरान अस्थमा अटैक पड़ने लगते हैं या फिर आपको अपने कार्यस्थल का वातावरण सूट नहीं करता जिससे आप अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।
  • नॉक्टेर्नल यानी नाइटटाइम अस्थमा- ये अस्थमा का ऐसा प्रकार है जो रात के समय ही होता है यानी जब आपको अकसर रात के समय अस्थमा का अटैक पड़ने लगे तो आपको समझना चाहिए कि आप नॉक्टेर्नल अस्थमा के शिकार हैं।
  • मिमिक अस्थमा- जब आपको कोई स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी कोई बीमारी जैसे निमोनिया, कार्डियक जैसी बीमारियां होती हैं तो आपको मिमिक अस्थमा हो सकता है। आमतौर पर मिमिक अस्थमा तबियत अधिक खराब होने पर होता है।
  • चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा- ये अस्थमा का वो प्रकार है जो सिर्फ बच्चों को ही होता है। अस्‍थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है तो बच्चा इस प्रकार के अस्थमा से अपने आप ही बाहर आने लगता है। ये बहुत रिस्की नहीं होता लेकिन इसका सही समय पर उपचार जरूरी है।
  • एडल्ट ऑनसेट अस्थमा- ये अस्थमा युवाओं को होता है। यानी अकसर 20 वर्ष की उम्र के बाद ही ये अस्थमा होता है। इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छुपे होते हैं। हालांकि इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक, अधिक धूल मिट्टी और जानवरों के साथ रहने पर होता है

अस्थमा के घरेलू उपचार (Home Remedies For Asthma)


  • लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
  • अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
  • अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है।
  • दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है।
  • 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
  • 180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
  • मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
  • एक पका केला छिलका लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़ा छान की हुई काली मिर्च भर दें। फिर उसे बगैर छीले ही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें। बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले। ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें।