Saturday 7 November 2020

श्वसन तंत्र के रोग



श्वसन तंत्र के रोग रोग आपके फेफड़ों में ऑक्सीजन और अन्य गैसों को ले जाने वाली नलियों को प्रभावित करता है। यह श्वसन प्रणाली में मार्ग को संकीर्ण व अवरुद्ध कर सकता है। फेफड़े का कैंसर, अस्थमा, तपेदिक, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और ब्रोन्किइक्टेसिस आम वायुमार्ग की बीमारियां हैं। श्वसन तंत्र की बीमारिया बहुत आम हैं। पाचन तंत्र की तरह श्वसन तंत्र को भी बाहरी चीजों का कहीं ज़्यादा सामना करना पड़ता है। इसीलिए श्वसन तंत्र की एलर्जी और संक्रमण इतनी आम है। हवा से होने वाली संक्रमण से बचना उतना आसान नहीं है जितना कि खाने व पानी से होने वाली संक्रमण से बचाव करना। बेहतर आहार, घर और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता (जैसे धुम्रपान से परहेज) यही सामान्यतया महत्वपूर्ण है। लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण भी साँस की बीमारियों के लिए काफी नुकसानदेह है।
श्वसन तंत्र की सभी बीमारियों में खॉंसी होना सबसे आम है। खॉंसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। यह असल में किसी न किसी बीमारी का लक्षण है। परन्तु अक्सर इलाज बीमारी के बजाय खॉंसी पर केन्द्रित हो जाता है, जो गलत है। खॉंसी के लिए दिए जाने वाले सिरप आम तौर पर असरकारी नहीं होते। परेशानी की जगह और कारण का निदान ज़रूरी है। श्ससन तंत्र की रचना और कार्य की जानकारी से हमें मदद मिल सकती है। श्वसन तंत्र मानों एक उल्टा पेड़ है। इसमें सूक्ष्म नलिकाओं और वायुकोश की हवा के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। छाती की पेशियाँ और फेफड़ों के नीचे का पेशीय पर्दा (मध्य पट) या ड्याफ्राम हवा के अवागमन में मदद करते हैं। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में नाक, गला और स्वरयंत्र (लैरींक्स) आते हैं। श्वसन तंत्र के निचले भाग में मुख्य श्वास नली और इसकी शाखाएँ यानि श्वसनी, छोटी शाखाएँ और लाखों वायुकोश (एल्वियोलाई) जिनके साथ सूक्ष्म केश नलिकाओं का जाल होता है। श्वसन तंत्र को ऊपरी और निचले भागों में बॉंटकर समझने से आसानी रहती है। ऊपरी भाग का संक्रमण आमतौर पर खुद ठीक हो जाने वाली होता हैं। परन्तु निचले भाग का संक्रमण आम तौर पर गम्भीर होता हैं और कभी कभी जानलेवा हो सकता है।
श्वसन तंत्र के रोग का आयुर्वेदिक इलाज – 
किसी भी रोगी के श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों का इलाज करने से पहले रोगी की गहरी जानकारी लेना ज़रूरी है। उसके कामकाज के बारे में जानना भी ज़रूरी है। अंस्बेस्टॉस, कोल, सिलिका, बगॅस, आयर्न ऑक्साइड, रुई के तंतु और पालतू पशुओं से रोगी का संबंध तो नहीं यह भी देखना होता है। अगर इन चीज़ों से उसका संबंध हो तो कितने समय तक रहा और बचाव के उपायों के बारे में भी जानना ज़रूरी है।

धूम्रपान और वायु प्रदूषण श्वसन समस्याओं के दो सामान्य कारण हैं।

यदि रोगी को श्वसन संबंधित लक्षणों के साथ समस्याएं हैं तो निम्नलिखित बीमारियां हो सकती हैं-:

अस्थमा- रोग ---- 

 (सर्दी ज़ुकाम)

छींक आना

सांस लेने में खराब गंध

सिरदर्द, और आँखे लाल होना खुजली और पानी निकलना 

गले में खारिश

गंध की कमी

अवरुद्ध या कंजस्टेड नाक

क्रोनिक लेरिंजिटिस

आवाज़ का बैठना

गले मे ख़राश

स्पासमोडिक खाँसी

कुछ मामलों में बुखार

निगलने में कठिनाई

सूजी हुई लसीका ग्रंथियां

गले में दर्द

ब्रोंकाइटिस (कास रोग , खाँसी)

 खांसी

गले में जलन/खराश

छाती में जकड़ाहट 

सांस फूलना

ब्रोन्कियल अस्थमा (श्वास रोग )

छाती में जकड़ाहट

खाँसी आना

घरघराहट

जल्दी जल्दी सांस आना

साइनोसाइटिस (नज़ला)

छींक आना

सिर व् शरीर में भारी पन

नाक का अवरुद्ध होना या  नाक का बहना

इंफ्लुएंजा

खांसी

नाक की मांसपेशियों मई दर्द होना और सिरदर्द होना

बुखार

नाक का बहना

थकान

गले में खरास

ठंड लगना

टांसिलिटिस

खांसी

टॉन्सिल पर सूजन

गले में दर्द और निगलने में कठिनाई

बुखार


श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियाँ कई कारणों से हो सकती है जैसे – 
पालतू पशु और जंगली पशुओं का संबंध श्वसन संबंधी रोगों में महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। इनके संपर्क से वायु कोष सिकुड़ने लगते हैं।पशुओं की एलर्जी के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।बीड़ी या सिगरेट पीने के कारण भी श्वसन संबंधी रोग हो सकते हैं।मद्यपान करनेवाले लोगों में नशे की वजह से एस्पिरेशन न्युमोनिया होता पाया गया है।रक्तवाहिनी में इंजेक्शन से नशा करनेवाले लोगों में फेफडों में फोड़े एबसेस हो सकते हैं।रोगी के पारिवारिक इतिहास में निकट संबंधियों को दमा और सिस्टिक फायब्रोसिस तो नहीं यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है।

श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण :- कोई भी बीमारी लक्षणों के रूप में ही परिलक्षित होती है। साँस संबंधी बीमारी के प्रमुख लक्षण – साँस फूलना, साँस तेज़ी से चलना, जुकाम, सर्दी, खाँसी आदि होते हैं। श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग नाक, नाक के आस-पास के सायनस, श्वास नलिकाएँ, फेफड़े, सीना, पेट, सीने और पेट के बीच मांसपेशियों का परदा डायफ्राम आदि हैं। साँस फूलने से रोगी को साँस लेने में कष्ट होता है। इस तकलीफ के कारणों का पता लगाना ज़रूरी होता है।
2) खाँसी : खाँसी श्वसन तंत्र के रोगों का प्रमुख लक्षण है। खाँसी के साथ निकलती बलगम की मात्रा और रंग के द्वारा निदान किया जा सकता है। फेफड़ों में मवाद होना, ब्रॉन्कायटिस और न्युमोनिया के कुछ प्रकारों में चिपचिपा और दुर्गंधयुक्त कफ निकलता है। पुराने ब्रॉन्कायटिस में कफ का रंग हरा सा होता है। पल्मोनरी एडिमा में झागयुक्त, गुलाबी रंग का कफ निकलता है। रात में सो जाने के बाद ज़ोर की खाँसी उठती है। साँस फूलती है। यह लक्षण दमा और हृदय रोग दोनों ही में होता है तब विशेष निदान की आवश्यकता होती है। दीर्घकालीन खाँसी में थूक की जाँच करके टी.बी. का निराकरण अवश्य करवाना चाहिए।

3) थूक में रक्त : खखारने के बाद यदि खून निकले तो रोगी बहुत घबरा जाते हैं और तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं। जीवाणुओं के संसर्ग से भी रक्त आ सकता है। टी.बी., हृदय रोग, कैंसर, फेफड़े का फोड़ा एबसेस आदि बीमारियों में थूक में रक्त आना एक लक्षण होता है। कई बार अन्ननलिका या जठर से रक्तस्राव हो तो वह भी थूक के साथ निकलता है। ऐसे समय रक्त किस अंग से बह रहा है इसका निदान आवश्यक है।

4) छींकें आना : छींक आना एक रिफ्लेक्स एक्शन है। प्रतिक्षिप्त क्रिया है। जब छीकों की संख्या ज़्यादा हो, लगातार छींकें आने लगें तो यह एलर्जी या इंफेक्शन हो सकता है।

ये श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों की और कुछ परीक्षणों की सहायता से रोग का निदान और इलाज किया जा सकता है। शरीर में आयु के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है। उन्हें रोका नहीं जा सकता। इनकी तीव्रता कम की जा सकती है। ये परिवर्तन देर से हो इसका प्रयास किया जा सकता है। आयुर्वेद में आहार, विहार और औषध ये तीन सूत्र बताए गए हैं।

श्वसन तंत्र के रोगी का आहार :

वृद्धावस्था में वात दोष में वृद्धि हो जाती है। धातु कमज़ोर हो जाते हैं। पाचन शक्ति मंद हो जाती है। इसके लिए वातशामक हलका आहार लिया जाना चाहिए।

दूध और घी का उचित मात्रा में सेवन करें।मूंग की खिचड़ी, चावल, ज्वार की रोटी, चावल की रोटी और गेहूँ की रोटी लें।सब्ज़ी, सेवई की खीर और छाछ लें।पपीता और सेब लें।सूखे अंजीर और काली मुनक्का लें।अदरक और काले नमक को चबाकर खाने से मुँह का स्वाद ठीक होगा और पाचन भी सुधरेगा।आयु बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। आहार की मात्रा में बदलाव करना उचित होता है। रात्रि भोजन कम कर दें।सूप, पतली दाल आदि अधिक लें।

साँस संबंधी बीमारियों को काबू में रखने के लिए बेकरी पदार्थ, खमीर के पदार्थ, खट्टे पदार्थ, दही, चावल, शीत पेय, आइस्क्रीम, फ्रिज में रखा भोजन, लस्सी, बर्फ डाला हुआ गन्ने का रस, केला, ककड़ी, तरबूज़, आदि भोज्य पदार्थ बंद कर दें।मेवा अवश्य लें।
श्वसन तंत्र के रोग में सावधानी और बचाव के उपाय :--
वात दोष न बढ़े इसलिए पूरी नींद लें।वृद्धावस्था में दोपहर में सोना ठीक है।आयुर्वेद के अनुसार पूरी देह पर तेल मालिश करके स्नान करें। संभव न हो तो हथेली, तलुए, सिर और कान में तेल का प्रयोग करें। तिल का तेल सर्वोत्तम है।नियमित अभ्यंग (मालिश) से वात संतुलन होता है। धातु की संपन्नता होती है।प्राणायाम और योगासन करें।श्वसन तंत्र के रोगों से बचने के लिए देर तक जागना, पंखे की हवा, ठंढा वातावरण इन सब से बचें।डॉक्टर की सलाह से कसरत करें।फर्श पर न सोएँ।पैरों में चप्पल पहनें।वर्षा और शीत ऋतु में गर्म कपड़े पहनें।
श्वसन तंत्र के रोग की आयुर्वेदिक दवाएँ और उपचार :--

वृद्धावस्था के कारण धातु का क्षय होता है। इसे रोकने के लिए पंचकर्म करवाएं। इसके अंतर्गत शरीर को तेल से मालिश करना, सेकना, क्षीर बस्ति, नस्य आदि वैद्य की सलाह से करवाएँ।
पंचकर्म के साथसाथ रसायन चिकित्सा आवश्यक है।प्रदूषण से बचाव के लिए पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का सही उपयोग ज़रूरी है।वर्धमान पिप्पली रसायन, लाक्षा क्षीरपाक, च्यवनप्राश, धात्री रसायन का उपयोग श्वसन तंत्र के रोगों में प्रमुखता से किया जाता है।प्रदूषण से बचना कठिन होता जा रहा है। इसका मुकाबला करने के लिए शरीर को सब धातुओं से संपन्न होना आवश्यक है। उपरोक्त आहार, विहार, पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का उपयोग करें। इनके उपयोग से हम प्रदूषण से होनेवाले श्वसन तंत्र के रोगों से बचाव कर सकते हैं।

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