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Friday 6 November 2020

बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) के लक्षण, कारण और इलाज

विनय आयुर्वेदा व प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र -8460783401 

बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) के लक्षण, कारण और इलाज – बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) को एलोपैथी में फाइब्रॉइड कहते हैं। यह घातक नहीं होती है। हर चौथी-पाँचवीं महिला के बच्चेदानी में यह रसौली पाई जाती है यह आकार में छोटी भी हो सकती है और बड़ी भी और अनेक भी हो सकती हैं।

बच्चेदानी की रसौली 20 वर्ष की आयु के बाद कभी भी हो सकती है लेकिन अधिकतर 25 से 45 वर्ष की आयु में ही यह देखने को मिलती है। प्रायः इनसे महिलाओं को किसी भी प्रकार का कोई भी कष्ट नहीं होता इसलिए इस बारे में वे अनभिज्ञ होती हैं। प्रायः जब किसी दूसरे रोग से पीड़ित होने पर स्त्री, स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास जाँच करवाने जाती है तो इसका पता चलता है

रसौली कैसे बनती है ? 

बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) का संबंध एस्ट्रोजन हार्मोन से होता है, क्योंकि ये रसौलियाँ इसी हार्मोन से अंकुरित होकर बढ़ती हैं। प्रजनन काल के दौरान शरीर से अतिरिक्त एस्ट्रोजन निकलता है इसलिए इसका आकार बढ़ता जाता है। चूँकि रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन की मात्रा घटने लगती है इसलिए रजोनिवृति के बाद रसौली सिकुड़कर छोटी हो जाती है।

यूँ तो 20 वर्ष से अधिक आयु की किसी भी महिला में यह रसौली हो सकती है लेकिन उन महिलाओं में यह अधिक पाई जाती है जो निःसंतान होती हैं या जिनके एक या दो बच्चे होते हैं।

बच्चेदानी की रसौली की पहचान - बच्चेदानी की गाँठ के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ? 

रसौली ग्रस्त महिलाओं को माहवारी के समय अधिक रक्तस्राव होता है। अधिक दिनों तक रक्तस्राव होता है और लंबे समय तक रक्तस्राव होने के कारण उसमें रक्त की कमी हो जाती है।पेट व कमर में दर्द रहता है।रसौली का आकार बड़ा हो तो पेट में भारीपन व दर्द होता है।कभी-कभी रसौली का दबाव मूत्राशय, बड़ी आँत और मलाशय पर पड़ता है। दबाव के कारण कब्ज़ की शिकायत हो सकती है। कभी-कभी मूत्र रुक जाता है।
रसौली होने के बाद भी गर्भ ठहर सकता है एवं प्रसव भी सामान्य हो सकता है लेकिन कभी-कभी रसौली के कारण गर्भ धारणा कठिन होती है । गर्भपात की आशंका भी रहती है। यदि गर्भपात न हो तब भी समस्या होती है। ऐसी स्थिति में अधिकतर सामान्य प्रसव नहीं हो पाता।

बच्चेदानी की रसौली का इलाज – चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रसौली होने के बावजूद महिला को कोई समस्या न हो तो उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। यदि इससे तकलीफ हो तो अवश्य चिकित्सक से परामर्श कर जाँच करवा लेनी चाहिए और यदि चिकित्सक सलाह दें तो शल्यक्रिया करवानी चाहिए। शल्यक्रिया दो प्रकार से होती है- मायोमेक्ट्रमी और हिस्ट्रेक्टमी।मायोमेक्ट्रमी में केवल रसौली निकाली जाती है और हिस्ट्रेक्टमी में पूरा बच्चेदानी निकाल दिया जाता है।शल्यक्रिया किस प्रकार की होगी इसका निर्णय शल्य चिकित्सक परिस्थिति देखकर करता है। यदि रसौली की संख्या एक या दो है तो मायोमेक्ट्रमी द्वारा निकाली जा सकती है लेकिन यदि रसौली अधिक संख्या में हो तो मायोमेक्ट्रमी का उपयोग नहीं होता।

इसके अलावा मायोमेक्ट्रमी द्वारा रसौली के निकाल देने पर पुनः रसौली बनने का भय होता है। वे महिलाएँ जो संतान प्राप्त कर चुकी हों, रजोनिवृति के दौर से गुजर रही हों और रसौली से परेशान हों, उनका बच्चेदानी हिस्ट्रेक्टमी द्वारा निकाल दिया जाता है।

आज-कल शल्यक्रिया के लिए लेप्रोस्कोप विधि अधिक सुरक्षित व प्रचलन में है। इसमें न तो अधिक रक्तस्राव का डर होता है, न ही अधिक चीरफाड़ होती है। इस विधि को लेप्रोस्कोपिक हिस्ट्रेक्टमी कहा जाता है। इस विधि द्वारा बच्चेदानी को सफलतापूर्वक आसानी से निकाला जाता है परंतु इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सेवा ही लेनी चाहिए क्योंकि थोड़ी-सी लापरवाही भी जटिलताएँ पैदा करती है जो जीवन के लिए खतरा बन सकती है।

बच्चेदानी निकालने के बाद जीवन पर प्रभाव :  बच्चेदानी निकालने से क्या परेशानी होती है ? 

बच्चेदानी निकाल देने के बाद केवल संतान प्राप्ति नहीं होती, बाकी जीवन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं होता है । न तो शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है और न ही वैवाहिक जीवन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव पड़ता है। आप सामान्य रूप से जी सकते हैं। कुछ भ्रामक बातें फैल चुकी हैं कि इससे हड्डियाँ वगैरह कमजोर हो जाती हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हड्डियाँ तो उम्र के बढ़ने पर थोड़ी कमज़ोर होने लगती हैं इसके लिए आप डॉक्टर से सलाह लेकर गोलियाँ ले सकती हैं। नियमित व्यायाम द्वारा वज़न बढ़ने पर रोक लगाना आवश्यक है।

गर्भाशय की गांठ (रसौली) क्या है ? 

गर्भाशय का सौम्य अर्बुद ( गांठ / रसौली / Uterine Fibroid) यह गर्भाशय में उत्पन्न होने वाली गांठ होती है। यह एक या एक से ज्यादा, गर्भाशय की आन्तरिक परत, भीतरी पेशीय परत या बाहरी परत से उत्पन्न हो सकती हैं और उसी के अनुरूप आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसके नाम हैं। यह कैन्सर की गांठ तो नहीं होती और न ही हर स्त्री में इससे कोई ज़्यादा उपद्रव उत्पन्न होते हैं परन्तु जिन स्त्रियों में इसके प्रभाव से तीव्र उपद्रव उत्पन्न होते हैं वहां इसकी तुरन्त चिकित्सा अनिवार्य हो जाती है फिर भले ही शल्य चिकित्सा ज़रूरी हो तो वो की जानी चाहिए। अर्बुद( गांठ) 30 से 40 की आयु वर्ग की स्त्रियों को ज़्यादातर परेशान करते हैं और ज्यादातर स्त्रियों को इसकी उपस्थिति का पता भी नहीं चलता है।

आज के दौर में अनुचित जीवनशैली, गलत खानपान, मानसिक तनाव व खाद्यान्नों में रासायनिक प्रदूषण के कारण छोटी उम्र से ही स्त्रियां हारमोन्स के असन्तुलन के प्रभाव में रहती हैं। यही कारण है कि गर्भाशय में गांठें होने की समस्या विगत वर्षों में बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं। गर्भाशय की गांठ जिसे आम बोलचाल की भाषा में रसौली और चिकित्सकीय भाषा में फ़ाइबॉइड कहा जाता है, मटर के दाने के आकार से लेकर खरबूजे के आकार की हो सकती है।

गर्भाशय की गांठ होने के कारण - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार फ़ाइब्रॉइड(गांठ) उत्पत्ति का कोई स्पष्ट कारण ज्ञात नहीं है। हालकि इसकी उत्पत्ति और विकास के पीछे ईस्ट्रोजन और प्रोजेटेरॉन हारमोन्स की भूमिका मानी गई है क्योंकि एक तो यह स्त्री के प्रजनन क्षमता वाले काल में होता है। तथा रजोनिवृत्ति हो जाने पर सिकुड़ने लगता है। आयुर्वेद के अनुसार योनिव्यापद रोगों की उत्पत्ति के सभी कारण इस रोग की उत्पत्ति में भी सहायक हैं जैसे आहार-विहार की अनियमितता । किसी एक रस प्रधान भोजन का अधिकता में लम्बी समयावधि तक सेवन करना जैसे मीठे, खट्टे या तीखे खाद्य पदार्थ ।अत्यधिक, असुरक्षित और अप्राकृतिक यौनाचरण ।
श्वेतप्रदर या रक्त प्रदर रोग की उपेक्षा ।मासिक धर्म को आगे बढ़ाने वाली हारमोन्स की दवाओं का अधिक दिनों तक या बार-बार सेवन करना, प्रजनन संस्थान को नियन्त्रित करने वाले हारमोन्स के स्तर का अनायस बढ़ना या घटना जो कि ज्यादातर मानसिक तनाव की वज़ह से होता है।मासिक धर्म की अनियमितता आदि इस रोग की उत्पत्ति के प्रमुख कारण हैं। अधिक उम्र में गर्भवती होने से भी फ़ाइब्रॉइड का खतरा बढ़ जाता है।

गर्भाशय की गांठ के लक्षण - गर्भाशय की गांठ धीरे-धीरे सालों साल बढ़ती रहती है या कभी कभी कुछ महीनों में ही तेज़ी से बढ़ जाती है। अधिकांश मामलों में कोई विशेष लक्षण उत्पन्न नहीं होते परन्तु कुछ स्त्रियों में यह गांठ निम्नलिखित लक्षण एवं समस्याएं उत्पन्न कर देती हैं
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असामान्य मासिक रक्त स्राव होना – सामान्य से अधिक मात्रा में और अधिक समयावधि तक मासिक रक्त स्राव होने से स्त्री रक्ताल्पता की शिकार हो जाती है। मासिक स्राव के दौरान काफी दर्द होता है। कई बार मासिक धर्म के दिनों से पहले या बाद में अन्तर वस्त्र पर खून के धब्बे पड़ते हैं या दो मासिक धर्म के बीच की समयावधि में रक्त स्राव हो जाता है।
श्रोणी क्षेत्र में दबाव व दर्द – पेट, श्रोणी क्षेत्र या कमर के निचले क्षेत्र में दर्द होना, सहवास करते समय दर्द होना तथा पेट में भारीपन का अहसास होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
पेशाब सम्बन्धी समस्याएं – मूत्र त्याग के लिए बार-बार जाना, मूत्र को रोक नहीं पाना या कभी कभार मूत्र मार्ग में अवरोध उत्पन्न होना।
अन्य लक्षण एवं समस्याएं – क़ब्ज़ रहना, या मल त्याग के समय पेट में दर्द होना, गर्भ धारण में कठिनाई या बांझपन होना, गर्भवती होने पर गर्भपात हो जाना या प्लासेन्टा के अपने स्थान से हट जाना व समय पूर्व प्रसव होना आदि लक्षण एवं समस्याएं भी इस रोग में देखी जाती हैं।
इसके लक्षणों की उपस्थिति होने पर अल्ट्रासोनोग्राफी द्वारा इसका स्पष्ट निदान हो जाता है तथा यह गर्भाशय की किस सतह से उत्पन्न हुआ तथा कितना बड़ा है और एक है या एक से अधिक है, यह सब ज्ञात हो जाता है। 

गर्भाशय की गांठ का आयुर्वेदिक उपचार - रसौली या सौम्य अर्बुद की चिकित्सा का निर्धारण इसके प्रकार यानी गर्भाशय की किस सतह से इसकी उत्पत्ति हुई है, इसकी संख्या और इसके आकार के साथ साथ यह किस तीव्रता और गम्भीरता वाले लक्षणों एवं समस्याओं को उत्पन्न कर रहा है, इन सबके द्वारा किया जाता है। इसके अलावा रोगिणी की उम्र, विवाहित है या अविवाहित, गर्भवती है या नहीं आदि बातों को भी ख्याल में रखकर चिकित्सा का निर्णय लिया जाता है।

आरम्भिक स्थिति में या छोटी गांठों की उपस्थिति होने पर औषधि सेवन द्वारा इस रोग की प्रगति और लक्षणों पर नियन्त्रण करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यदि पर्याप्त औषधि सेवन कराने पर भी रोग की गति मन्द नहीं पड़ती यानी गांठ अथवा गांठों का आकार बढ़ते जाना या लक्षणों एवं समस्याओं में कोई सुधार नहीं होता है फिर शल्य चिकित्सा द्वारा गर्भाशय शरीर से अलग कर देना ही उचित चिकित्सा कहलाती है। हालाकि सर्जरी अन्तिम निर्णय होता है जिसे चिकित्सक बहुत सोच समझकर और विवशता में लेता है ।

यहां हम इस रोग की आरम्भिक अवस्था में उपयोगी हो सकने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं फ़ाइब्रॉइड (गांठ) का औषधीय उपचार करते समय अन्य उपस्थित लक्षणों की शान्ति के लिए भी औषधियां दी जानी चाहिए। इस हेतु सदैव कुशल चिकित्सक के मार्गदर्शन में उपचार लेना चाहिए।

1). फ़ाइब्रॉइड के उपचार में तीक्ष्ण औषधियों का प्रयोग किया जाता है। रोगी की सामान्य जांच में फ़ाइब्रॉइड का पता लगे व अन्य कोई तात्कालिक परेशानी न हो तो सामान्य उपचार के रूप में कांचनार गुग्गुलु की 2-2 गोली,   वृद्धि वाधिका वटी की 1-1 गोली   सुबह शाम गरम पानी से दें। दशमूलारिष्ट और अशोकारिष्ट की 10-10 मि.लि. मात्रा आधा कप पानी में मिलाकर भोजन के बाद दें और साथ ही शिवा गुटिका की 1-1 गोली भी दें।

2). वृद्धि वाधिका वटी 5 ग्राम, गंडमाला कंडन रस 5 ग्राम, हीरा भस्म 200 मि. ग्राम, वैक्रान्त भस्म ढाई ग्राम, अभ्रक भस्म शतपुटी 5 ग्राम, पुनर्नवा मण्डूर 5 ग्राम- सबको मिलाकर बारीक पीसकर बराबर मात्रा की 30 पुड़ियां बनाकर सुबह-शाम शहद से दें।

3). त्रिफला क्वाथ से योनि प्रदेश की साफ़ सफ़ाई करें। नाभी से नीचे शुद्ध गुग्गुलु और आम्बा हल्दी 5-5 ग्राम लेकर गोमूत्र में मिलाकर लेप करें।

4). आर्तव स्राव की अधिकता में बोलबद्ध रस व चन्द्रकला रस की 2-2 गोली अलग से दें।

5). आर्तवस्राव के अवरोध या रूकावट होने पर रजःप्रवर्तनी वटी एवं रजोदोषहर वटी की 2-2 गोली भी साथ में दें।
 उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें