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Sunday 27 December 2020

वात प्रकृति वाले लोग- लक्षण -निदान - उपचार

 


आयुर्विज्ञान के अनुसार मानव शरीर मुख्य रूप से पांच तत्वों (अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश) से मिलकर बना है। इन सभी तत्वों के बीच संतुलन की अवस्था मनुष्य के बेहतर स्वास्थ्य की ओर इशारा करती है। वहीं, इनमें से किसी एक का भी असंतुलन शारीरिक समस्याओं का कारण बन जाता है, जिसे त्रिदोषों और उसके उपदोषों में विभाजित किया गया है। शरीर के भागों और अंगों के हिसाब से त्रिदोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है, जिनके कई उपभाग भी है। विनय आयुर्वेदा के इस लेख में वातरोग क्या है, वात रोग के कारण और वात प्रकृति के लक्षण के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। साथ ही लेख में वात रोग को दूर करने के उपाय के विषय में भी जानकारी दी जाएगी। लेख में बताए गए उपाय वात संबंधी समस्या से राहत तो दिला सकते हैं, लेकिन पूर्ण उपचार साबित नहीं हो सकते। इसलिए, गंभीर अवस्था में डॉक्टरी से चेकअप करवाना जरूरी है। 

अपने आस पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्यादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नजर आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। 

वात दोष क्या है - 

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं। 



विनय आयुर्वेदा का  दर्द केयर सिरप ( 300मिली व 600 मिली ) समस्त वात रोगो मे बहुत उपयोगी है आप घर बेठे ऑर्डर कर के मँगा सकते है साथ मे वात रोगी कॉल करके या व्हट्स अप पर अपनी समस्या बताकर उपचार व सलाह भी ले सकते है  मो - 8460783401 

वात के प्रकार  - शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

  1. प्राण
  2. उदान
  3. समान
  4. व्यान
  5. अपान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।

वात के गुण - रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।


वात प्रकृति की विशेषताएं --

आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैस कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं. इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं. स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.


 

वात बढ़ने के कारण ~~~~

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

वात बढ़ जाने के लक्षण - वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नजर आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नजर डालते हैं।

  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • सुई के चुभने जैसा दर्द
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
  • हड्डियों का खिसकना और टूटना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
  • अंगों का ठंडा और सुन्न होना
  • कब्ज़
  • नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
  • मुंह का स्वाद कडवा होना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

वात को संतुलित करने के उपाय --

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

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वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं 

  • घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।
  • नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में  तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।

वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए 

अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीजों के सेवन से परहेज करें।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
  • किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

जीवनशैली में बदलाव 

जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

  • एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
  • किसी शांत जगह पर जाकर रोजाना ध्यान करें।
  • गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। औषधियों से तैयार काढ़े को टब में डालें और उसमें कुछ देर तक बैठे रहें।
  • गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

वात में कमी के लक्षण और उपचार - वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइये पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

वात में कमी के लक्षण :

  • बोलने में दिक्कत
  • अंगों में ढीलापन
  • सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी
  • वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
  • पाचन में कमजोरी
  • जी मिचलाना

उपचार :- वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

 

साम और निराम वात - हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

  • मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
  • पाचन शक्ति में कमी
  • हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
  • आंत में गुडगुडाहट की आवाज
  • कमर दर्द

यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और कई बीमारियों होने लगती हैं। जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है. इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें। अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

विनय आयुर्वेदा का  दर्द केयर सिरप ( 300मिली व 600 मिली ) समस्त वात रोगो मे बहुत उपयोगी है आप घर बेठे ऑर्डर कर के मँगा सकते है साथ मे वात रोगी कॉल करके या व्हट्स अप पर अपनी समस्या बताकर उपचार व सलाह भी ले सकते है  मो - 8460783401

Tuesday 10 November 2020

एक टेस्ट - अर्थराइटिस के मरीजों के लिए फायदेमंद है व अर्थराइटिस ( गठिया) के कारण व घरेलू उपचार

 




जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है

सी रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्या है?

सी रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है, जो शरीर में सी रिएक्टिव प्रोटीन प्रोटीन की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। सीआरपी एक प्रोटीन है जिसे लिवर बनाता है। सीआरपी के जरिए शरीर में सूजन का भी पता लगाया जाता है। आमतौर पर हमारे रक्त में सी रिएक्टिव प्रोटीन की मात्रा कम होती है। 

सीआरपी का हाई लेवल कई गंभीर बीमारियों की तरफ इशारा करता है, लेकिन इससे शरीर में कहां और किस कारण सूजन है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। शरीर में सूजन के कारणों का पता लगाने के लिए डॉक्टर अन्य परीक्षण यानि टेस्ट की सलाह दे सकते हैं।

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्यों किया जाता है?

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट शरीर में सूजन का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट से शरीर में सूजन है या नहीं, इसका पता लगाया जाता है। हालांकि, यह टेस्ट शरीर में सूजन के कारणों की जानकारी नहीं देता है। अगर इस टेस्ट से शरीर में सूजन होने के बारे में पता चलता है, तो डॉक्टर आपको नीचे बताए गए टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं :

  1. अर्थराइटिस (Arthritis)
  2. ल्यूपस (Lupus)
  3. वाहिकाशोध

डेली रूटीन का सबसे ज्यादा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। ऐसे में हमे कई बीमारियों का शिकार होना पड़ता है। उन्हीं में से एक है अर्थराइटिस। ये एक ऐसी बीमारी है जो शरीर को काफी तकलीफ देने का काम करती है। पहले अर्थराइटिस को बड़ी उम्र की बीमारी माना जाता था। लेकिन आजकल युवाओं में भी इस बीमारी के काफी लक्षण देखे जा रहे हैं। वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन लोगों में शारीरिक मेहनत और व्यायाम में कमी और साथ ही खान-पान की गड़बड़ी और अनियमित जीवनशैली है इसका बड़ा कारण है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस, अर्थराइटिस का ही एक प्रकार है जो किसी भी उम्र के शख्स में हो सकता है। ये महिलाओं में काफी आम है और अक्सर मध्यम आयु में होता है। अर्थराइटिस के दूसरे प्रकार की तरह ही इसमें भी जोड़ों में सूजन और दर्द की समस्या होती है। जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस 

अगर आप भी रूमेटाइड अर्थराइटिस का शिकार है तो आपके जोड़ों में दर्द होता रहेगा। आपको बता दें कि इसका कारण ये है कि जोड़ों में सूजन रहती है। सूजन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो तब होती है जब आपका इम्यून सिस्टम बाहरी आक्रमणकारी (फॉरेन इनवेडर) पर हमला करता है।

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) एक प्रोटीन होता है। जिसका आपका लीवर बनाता है। ये प्रोटीन आपके खून में पाया जाता है। सूजन के समय आपके खून में सीआरपी का स्तर बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, जब आपको कोई इन्फेक्शन होता है तो आपके खून में सीआरपी स्तर बढ़ जाता है। जब इन्फेक्शन पर नियंत्रित हो जाता है तो उच्च सीआरपी स्तर गिर जाता है।

सीआरपी और रूमेटाइड अर्थराइटिस की पहचान

  • लैब टेस्ट, जैसे कि रूमेटाइड कारक की पहचान के लिए ब्लड स्कैनिंग। 
  • आपके जोड़ों की सूजन और दर्द।
  • लक्षणों की अवधि। 
  • सीआरपी टेस्ट(CRP TEST)

    सीआरपी टेस्ट के लिए आपको खून का सैंपल देना पड़ता है। इसके बाद उसे लैब में ले जाया जाएगा और फिर जब रिपोर्ट आने पर आपको उसे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। इसके बाद आपका डॉक्टर आपको बताएगा कि आपको किस तरह की दवाइयों की जरुरत है। सीआरपी टेस्ट के लिए खून देने में किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

    सीआरपी(CRP) स्तर को बढ़ाना

    अगर रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए आपका टेस्ट किया जा रहा है तो आपका डॉक्टर आपको स्टैंडर्ड सीआरपी टेस्ट करवाने के लिए कहेगा, बजाय कि हाई-सेंसीटीविटी टेस्ट के। स्टैंडर्ट टेस्ट के साथ सीआरपी के उच्च स्तर का पता लगाया जा सकता है। सीआरपी का बढ़ा हुआ स्तर किसी सूजन की बीमारी का संकेत हो सकता है, लेकिन यह रूमेटाइड अर्थराइटिस की निश्चित पहचान कर पाने में सक्षम नहीं है।
  • इलाज

    रूमेटाइड अर्थराइटिस का इलाज आपको बहुत ही ध्यान से कराना होता है। आपको समय के साथ इलाज कराना बहुत जरूरी हो जाता है। डॉक्टर आपको समय-समय पर सीआरपी टेस्ट कराने की सलाह दे सकता है। आपका सीआरपी स्तर इस बात का संकेत दे सकता है कि आपका ट्रीटमेंट कैसा चल रहा है। 
    अगर आपका ऐसे में आपका सीआरपी स्तर गिर गया है तो इसका मतलब है दवाई अपना असर दिखा रही है। इसके अलावा अगर आपका सीआरपी स्तर बढ़ गया है तो डॉक्टर समझ जाएगा कि आपको नए इलाज की जरुरत है।
  • अर्थराइटिस ( गठिया)
  • गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है।लोगों की बढ़ती उम्र के साथ अक्सर देखा जा रहा कि गठिया रोग (आर्थराइटिस) उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रहा है। 


    कच्चे आलू से फायदा

    आलू रसोईघर बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि आलू से हम कई तरह कि डिश तैयार करते हैं। इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि गठिया के रोग में आलू रामबाण साबित होता है। आपको बता दें कि कच्चे आलू का रस गठिया के इलाज में बहुत फायदेमंद होता है। कच्चे आलू के रस में एन्टी इंफ्लैमटोरी गुण होने के चलते यह गर्दन, कोहनी, कंधा और घुटनों के दर्द में बहुत राहत पहुंचात है। कच्चे आलू के रस को पीने से उन लोगों को भी फायदा मिलता है जो लोग लंबे समय से आर्थराइटिस के दर्द से परेशान हैं। कच्चे आलू के रस को निकालने के लिए उसे बिना छीले ही पतले टुकड़ों में काट लें। इसके बाद आलू के टुकड़ों को पानी में रात भर के लिए ढककर रख दें। सुबह खाली पेट इस पानी को पीएं। इससे जरूर लाभ मिलेगा। कच्चे आलू के रस से गठिया रोग का इलाज सदियों से किया जा रहा है।

    इनका सेवन भी फायदेमंद
    1- सब्जियों का जूस
    2- तिल के बीज
    3- लहसुन
    4- केला
    5- मूंग की दाल का सूप
  • गठिया रोग में सेम और अन्य फलीदार सब्जियों (बींस), चेरी, मशरूम, ओट्स, चौलाई, संतरा, भूरे चावल, हरी पत्तेदार सब्जियां, मेथी, सोंठ, नाशपाती, गेहूं का अंकुर, सूरजमुखी के बीज, कद्दू, अंडा, (सोया मिल्क, सोया बडी, सोया पनीर, टोफू आदि) पपीता, ब्रोकली, लाल शिमला मिर्च, अजवायन, अनानास, अनार, आडू, अंगूर, आम, एलोवेरा, आंवला, सेब, केला, तरबूज, लहसुन, आलूबुखारा, सूखे आलूबुखारे, ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी डेयरी पदार्थ जैसे दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर आदि) कैल्शियम का अच्छा स्रोत है इन्हें आप ले सकते है लेकिन बेहतर यह होगा की आप गठिया रोग में दूध-दही भी कम मात्रा में ही लें. कैल्शियम की पूर्ति फलों और सब्जियों से करें गठिया रोग में फलो और सब्जियों में सहिजन, बथुआ, मेथी, सरसों का साग, ककड़ी, लौकी, तुरई, पत्ता गोभी, परवल, गाजर, अजमोद,आलू, शकरकंद, अदरक, करेला, लहसुन का सेवन करें. गठिया के रोगी को चौलाई की सब्जी भी फायदा करती है.गठिया रोग में अधिक पानी युक्त फल जैसे खरबूजा, तरबूज, पपीता, खीरा अधिक खाएं. गठिया रोग में हींग, शहद, अश्वगंधा और हल्दी भी लाभकारी हो सकते हैं

  • गठिया की चपेट में भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, वैसे-वैसे रोगी के लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है। जानकारों का मानना है कि देश में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की बीमारी से पीड़ित हैं। जिस तेजी से यह बीमारी बढ़ रही है, आने वाले कुछ सालों में आर्थराइटिस लोगों को शारीरिक रूप से अक्षम बनाने में चौथा प्रमुख कारण होगा। भारतीय लोग आनुवांशिक तौर पर घुटने की आर्थराइटिस से अधिक ग्रस्त होते हैं। बताते चलें कि चीन में करीब 6.5 करोड़ लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जो भारत में घुटने की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या से आधे से भी कम है।

  • क्यों होता है गठिया
    जब हड्डियों के जोड़ों में यूरिक एसिड जमा हो जाता है तो वह गठिया का रूप ले लेता है। इसके बाद रोगी के एक या एक से अधिक जोड़ों में दर्द, अकड़न और सूजन आ जाती है। गठिया के अधिक बढ़ जाने पर रोगी को चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। इसके अलावा जोड़ों में गांठे पड़ जाती हैं, जो रोगी को बहुत दर्द पहुंचाती हैं। जोड़ों में गांठ होने के कारण इसे गठिया कहते हैं। यूरिक एसिड कई तरह के खाद्य पदार्थों को खाने से बनता है