Friday 29 September 2017

सिर दर्द बदहजमी गैस और रूसी आदि दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

सिर दर्द , बदहजमी, गैस और रूसी आदि दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

सर दर्द से राहत के लिए- 

१. तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है.
२ .नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा.
३. सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा.
४. सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है.
५. लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है.
६. लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर २ , ३ बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा.
७. चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा.
८. हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा.
९ .सफ़ेद  सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी.

 बालों की रूसी दूर करने के लिए – 

१. नारियल के तेल में निम्बू का रस पकाकर रोजाना सर की मालिश करें.
२. पानी में भीगी मूंग को पीसकर नहाते समय शेम्पू की जगह प्रयोग करें.
३. मूंग पावडर में दही मिक्स करके सर पर एक घंटा लगाकर धो दें.
४ रीठा पानी में मसलकर उससे सर धोएं.
५. मछली, मीट अर्थात nonveg त्यागकर केवल पूर्ण शाकाहारी भोजन का प्रयोग भी आपकी सर की रूसी दूर करने में सहायक होगा.

गैस व् बदहजमी दूर करने के लिए

१. भोजन हमेशा समय पर करें.
२. प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें.
३. हींग, लहसुन, चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें, व् प्रतिदिन एक गोली खाएं.
४. भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें.
५. लहसुन, जीरा १० ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं.
६. सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं.
७. लौंग का उबला पानी रोजाना पियें.
८. जीरा, सौंफ, अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें,शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें.

Thursday 28 September 2017

अचानक अधिक व्यायाम हृदय के लिए है घातक


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हृदय के लिए व्यायाम जरूरी है. व्यायाम से हम तनाव से भी बच सकते हैं, जो हृदय रोगों का बड़ा कारण है. जो लोग सप्ताह में एक या दो बार अत्यधिक व्यायाम करते हैं, वे अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, क्योंकि शरीर अचानक पड़े इस अतिरिक्त भार के लिए तैयार नहीं होता.
रक्त संचार प्रणाली फेफड़े और हृदय से संचालित होती है. पुरुष का हृदय 350 ग्राम, जबकि स्त्री का 250 ग्राम वजनी होता है. हृदय एक पंप की तरह है, जो शरीर में फेफड़ों के बीच, बायीं ओर स्थित होता है. हमारा हृदय रोजाना करीब 15 हजार लीटर खून पंप करता है.
सबसे मजबूत मांसपेशी हृदय की ही होती है. जिनका वजन अधिक होता है, उनके हृदय को अधिक श्रम करना पड़ता है. जो व्यायाम नहीं करते और केवल भोजन को नियंत्रित रखने पर जोर देते हैं, उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.  सम्यक व्यायाम से ही हमारा हृदय ठीक से काम करने में सक्षम हो सकता है.
गोमुखासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय के पीछे की थायमस ग्रंथि प्रभावित होती है. रोग प्रतिरोधक सफेद रक्त कणिकाएं इसी से बनती हैं.
विधि : बैठ कर दायें पैर को इस प्रकार मोड़ें कि एड़ी गुदा के नीचे आ जाये. फिर बायें पैर को मोड़ कर इस प्रकार रखें कि बायां घुटना दायें घुटने पर आ जाये तथा बायीं एड़ी दायें नितंब के पास आ जाये. बायें हाथ को ऊपर से तथा दायें हाथ को नीचे से कमर पर लाएं और दोनों हाथों की मुड़ी हुई उंगलियों को इंटरलॉक कर लें. 
सांस सामान्य और गर्दन सीधी रखें. ऊपरवाली भुजा का कंधे से कोहनी तक का भाग ऊपर कान से सटा रहे. कुछ देर इस अवस्था में रुकें और फिर इसे ही दूसरे पैर से दुहराएं. ध्यान मूलाधार चक्र पर रहे.
वज्रासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय की पंपिंग प्रणाली मजबूत होती है. इस आसन से पिंडलियों पर भी दबाव बनता है, जिससे अशुद्ध रक्त स्वतः हृदय की ओर जाने लगता है.
विधि : आसन पर बैठ कर, दोनों पैरों के पंजों और एड़ियों को मिलाएं तथा पंजों को तानें. घुटनों को मोड़ कर पैरों को नितंबों के नीचे ले आएं. एड़ियां खुली रहें, लेकिन पैरों के अंगूठे मिले रहें. दोनों नितंब एड़ियों के बीच खाली स्थान पर रहें. 
दोनों हाथों को घुटनों पर रखें. कमर और गर्दन एकदम सीध में रहें. ध्यान मणिपुर चक्र पर रहे.
मस्त्सासन : इससे दमा तथा श्वसन सहित फेफड़ों के कई रोग दूर होते हैं. यह दो तरीकों से किया जाता हैः पद्मासन में और पांव सीधा रख कर.
विधि : पीठ के बल लेटकर पद्मासन लगाएं. दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें. माथा जमीन से सटाएं. इस स्थिति में दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़कर कुछ देर रुकें. फिर गर्दन सीधी करें, दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें. 
शरीर को ऊपर उठाएं. गर्दन को तीन-चार बार दायें-बायें व क्लॉकवाइज तथा एंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं. फिर विश्राम मुद्रा में आ जाएं. पांव सीधा रख कर करने के लिए, पीठ के बल लेट कर दोनों पैरों की एड़ियों और पंजों को मिलाएं. गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर सिर को धरती से लग जाने दें. रीढ़ को थोड़ा ऊपर उठाएं और इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें. थोड़ी देर बाद वापस आ जाएं.
खास बात : अभ्यास में नये लोगों को किसी कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करना चाहिए.
उष्ट्रासन 
इससे छाती चौड़ी होती है. फेफड़ों में लचीलापन आता है. हृदय की ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा सांस रोकने की क्षमता बढ़ती है. हृदय रोगों को ठीक करने में यह बहुत उपयोगी है.
विधि : वज्रासन में बैठ कर घुटनों के बल इस प्रकार खड़े हो जाएं कि घुटनों और पंजों के बीच कंधों जितना अंतराल रहे. पंजे लेटे हुए हों. दोनों हाथों को कमर पर रखें, ताकि अंगूठे रीढ़ के निचले भाग पर मिल जाएं. चारों उंगलियां आगे की तरफ हों. सांस भरते हुए कमर के निचले भाग से धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकें. हथेलियों को तलवों पर रखें. कुछ पल बाद वज्रासन में वापस आ जाएं.

मखाने खाने से डायबिटीज, किडनी, पाचन, मर्दाना कमजोरी, प्रजनन क्षमता सहित अनेक रोगों में चमत्कारिक फायदे

मखाने देखने में तो गोल मटोल सूखे दिखाई देते है पर यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होते है । हमारे स्वास्थ्य को तंदरूस्त रखने में मदद करते है। मखानों का प्रयोग हम भोजन में भी कर सकते है। मखाने में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में पाए जाते है। मखानों से तैयार खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है। सब्जी और भुजिया में भी मखाने डालें जाते हैं। मखाने खाने से शरीर को कई रोगों से छुटकारा मिलता है 

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मखाना हम खाते रहते हैं उपवास मेंखीर के रूप में या नमकीन भुने रूप में  मखाना कमल का बीज नहीं होता है ,इसकी एक अलग प्रजाति है, यह भी तालाबों में ही पैदा होता है लेकिन इसके पौधे बहुत कांटेदार होते हैं ,इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं घुसता,जिसमे मखाने के पौधे होते हैं। इसकी खेती बिहार के मिथिलांचल में होती है मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है । उपवास में इसका विशेष रूप से उपयोग होता है । पूजा एवं हवन में भी यह काम आता है । इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं । क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है । 
अधिकांशतः ताकत के लिए दवाये मखाने से बनायी जाती हैं।केवल मखाना दवा के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता .इसलिए इसे सहयोगी आयुर्वेदिक औषधि भी कहते हैं।
इसके औषधीय गुणों के चलते अमरीकन हर्बल फूड प्रोडक्ट एसोसिएशन द्वारा इसे क्लास वन फूड का दर्जा दिया गया है। यह जीर्ण अतिसार, ल्यूकोरिया, शाुणुओं की कमी आदि में उपयोगी है। इसमें एन्टी-ऑक्सीडेंट होने से यह श्वसन तंत्र, मूत्र-जननतंत्र में लाभप्रद है। यह ब्लड प्रेशर एवं कमर तथा घुटनों के दर्द को नियंत्रित करता है। इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम एवं फास्फोरस के अतिरिक्त केरोटीन, लोह, निकोटिनिक अम्ल एवं विटामिन बी-1 भी पाया जाता है । मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति १०० ग्राम 1.4 मिलीग्राम लौह पदार्थ मौजूद होता है।

मखाना बनाने की विधि ----

  • मखाने के क्षुप कमल की तरह होते हैं और उथले पानी वाले तालाबों और सरोवरों में पाए जाते है। मखाने की खेती के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षिक आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए।
  • मखाने की खेती के लिए तालाब चाहिए होता है जिसमें 2 से ढाई फीट तक पानी रहे। इसकी खेती में किसी भी प्रकार की खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खेती के लिए, बीजों को पानी की निचली सतह पर 1 से डेढ़ मीटर की दूरी पर डाला जाता है। एक हेक्टेयर तालाब में 80 किलो बीज बोए जाते हैं।
  • बुवाई के महीने दिसंबर से जनवरी के बीच के होते है। बुवाई के बाद पौधों का पानी में ही अंकुरण और विकास होता है। इसकी पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसके पत्ते बड़े और गोल होते हैं और हरी प्लेटों की तरह पानी पर तैरते रहते हैं।
  • अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगना शुरू हो जाता है। फूल बाहर नीला, और अन्दर से जामुनी या लाल, और कमल जैसा दिखता है। फूल पौधों पर कुछ दिन तक रहते हैं।
  • फूल के बाद कांटेदार-स्पंजी फल लगते हैं, जिनमें बीज होते हैं। यह फल और बीज दोनों ही खाने योग्य होते हैं। फल गोल-अण्डाकार, नारंगी के तरह होते हैं और इनमें 8 से 20 तक की संख्या में कमलगट्टे से मिलते जुलते काले रंग के बीज लगते हैं। फलों का आकार मटर के दाने के बराबर तथा इनका बाहरी आवरण कठोर होता है। जून-जुलाई के महीने में फल १-२ दिन तक पानी की सतह पर तैरते हैं। फिर ये पानी की सतह के नीचे डूब जाते हैं। नीचे डूबे हुए इसके कांटे गला जाते हैं और सितंबर-अक्टूबर के महीने में ये वहां से इकट्ठा कर लिए जाते हैं  

    बीजों से मखाना कैसे बनता है?

    • फलों में से बीजों को निकाल लिया जाता है। धूप में इन बीजों को सुखाया जाता है। सूखे बीजों को लोहे की कढ़ाई में सेंका जाता है। सेंकने से बीजों की अन्दर की नमी भाप में बदल जाती है और जब इन सिंके हुए बीजों को कड़ी सतह पर रखकर लकड़ी के हथौड़ों से पीटते हैं तो गर्म बीजों का कड़क खोल फट जाता है और अब बीज फटकर मखाना बन जाता है। इन्हें रगड़ कर साफ़ किया जाता है और पॉलिथीन में पैक कर दिया जाता है।

    मखाना  के आयुर्वेदिक गुण 

    • पाचन में सुधार करे :- मखाना एक एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण, सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से पच जाता है। बच्‍चों से लेकर बूढे लोग भी इसे आसानी से पचा लेते हैं। इसका पाचन आसान है इसलिए इसे सुपाच्य कह सकते हैं। इसके अलावा फूल मखाने में एस्‍ट्रीजन गुण भी होते हैं जिससे यह दस्त से राहत देता है और भूख में सुधार करने के लिए मदद करता है।
    • एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर :- मखाना उम्र के असर को भी बेअसर होता है। यह नट्स एंटी-ऑक्‍सीडेंट से भरपूर होने के कारण उम्र लॉक सिस्‍टम के रूप में काम करता है और आपको बहुत लंबे समय तक जवां बनाता है। मखाना प्रीमेच्‍योर एजिंग, प्रीमेच्‍योर वाइट हेयर, झुर्रियों और एजिंग के अन्‍य लक्षणों के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
    • डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद :- डायबिटीज चयापचय विकार है, जो उच्च रक्त शर्करा के स्तर के साथ होता है। इससे इंसुलिन हार्मोंन का स्राव करने वाले अग्न्याशय के कार्य में बाधा उत्‍पन्‍न होती है। लेकिन मखाने मीठा और खट्टा बीज होता है। और इसके बीज में स्‍टार्च और प्रोटीन होने के कारण यह डायबिटीज के लिए बहुत अच्‍छा होता है।
    • किडनी को मजबूत बनाये :- मखाने का सेवल किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है। फूल मखाने में मीठा बहुत कम होने के कारण यह स्प्लीन को डिटॉक्‍सीफाइ करने, किडनी को मजबूत बनाने और ब्‍लड का पोषण करने में मदद करता है। साथ ही मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है।
    • दर्द से छुटकारा दिलाये :- मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है। साथ ही इसके सेवन से शरीर के किसी भी अंग में हो रहे दर्द जैसे से कमर दर्द और घुटने में हो रहे दर्द से आसानी से राहत मिलती है।
    • नींद न आने की समस्या से छुटकारा :- मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है।
    • कमजोरी दूर करना :- मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है। मखाने में मौजूद प्रोटीन के कारण यह मसल्स बनाने और फिट रखने में मदद करता है।
    • मखाना शरीर के अंग सुन्‍न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है।
    • प्रेगनेंट महिलाओं और प्रेगनेंसी के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये।
    • मखाना का सेवन करने से शरीर के किसी भी अंग में हो रही दर्द से राहत मिलती है।
    • मखाना का सेवन करने से शरीर में हो रही जलन से भी राहत मिलती है।
    • मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है। ६-मखानों के सेवन से दुर्बलता मिटती है तथा शरीर पुष्ट होता है।
    • वीर्य की कमी, मर्दाना कमजोरी, शुक्रमेह में इसे हलवे के साथ खाना चाहिए।
    • आटे, घी, चीनी के हलवे मखाने डाल कर खाने से गर्भाशय की कमजोरी और प्रदर की समस्या दूर होती है

Tuesday 26 September 2017

लहसुन और शहद साथ खाने के चमत्कारिक फायदे

लहसुन मसालेदार खाने का स्‍वाद बढ़ाता है, वहीं इसके सेहतमंद फायदों का भी कोई जवाब नहीं है. लहसुन की ही तरह शहद भी गुणों का खजाना है. यह सौंदर्य समस्‍याओं को खत्‍म करने के साथ ही शरीर को डिटॉक्‍स करके हर तरह के इंफेक्‍शन को भी खत्‍म करता है. ऐसे में दोनों चीजों को मिलाकर खाना बेमिसाल फायदे देता है. आयुर्वेद में कहा गया है कि लहसुन के नियमित इस्तेमाल से आप बढ़ती उम्र में भी युवापन का एहसास कर सकते हैं। लहसुन आंत के कीड़ों को निकाल देता है। घावों को शीघ्र भरता है। लेकिन इन तमाम रोगों में कच्चा लहसुन ही विशेष फायदेमंद होता है। न कि व्यवसायिक रूप में लहसुन से बनाई गई दवाई।
अगर आप हर वक्त बीमार रहते हैं और थकान की वजह से आपका मन किसी काम में नहीं लगता तो, इसका साफ मतलब है कि आपका इम्यूएन सिस्टम कमजोर हो गया है. अगर इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है तो इंसान को सौ तरह की बीमारियां घेर लेती हैं. पर क्यार आप जानते हैं कि लहसुन और शहद को एक साथ मिला कर खाने से ये एंटीबायोटिक का काम करते हैं. यह एक प्रकार का सूपर फूड है |

विधि –

इसे बनाने के लिये 2-3 बड़ी लहसुन की कली को हल्का सा दबा कर कूट लीजिये और फिर उसमें शुद्ध कच्ची शहद मिलाइये. इसे कुछ देर के लिये ऐसे ही रहने दीजिये, जिससे लहसुन में पूरा शहद समा जाए. फिर इसे सुबह खाली पेट 7 दिनों तक खाइये और फिर देखिये कमाल. हमेशा कच्चे और शुद्ध शहद का ही प्रयोग करें क्योंकि यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने के मदद करता है. साथ ही इसे खाने से वजन भी कम होता है |

कच्ची् लहसुन और शुद्ध शहद खाने के लाभ-

1. इम्यूनिटी बढ़ाए

लहसुन और शहद के मेल से इस घोल की शक्ति बढ जाती है और फिर यह इम्यून सिस्टम को मजबूत कर देता है. इम्यून सिस्टम मजबूत होने से शरीर मौसम की मार से बचा रहता है और उसे कोई बीमारी नहीं होती.

2. दिल की सुरक्षा करे

इस मिश्रण को खाने से हृदय तक जाने वाली धमनियों में जमा वसा निकल जाता है, जिससे खून का प्रवाह ठीक प्रकार से हृदय तक पहुंच पाता है। इससे हृदय की सुरक्षा होती है।

3. गले की खराश दूर करे

इस मिश्रण को लेने से गले का संक्रमण दूर होता है क्‍योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण हैं। यह गले की खराश और सूजन को कम करता है।

4. डायरिया से बचाए

अगर किसी को डायरिया हो रहा हो तो, उसे इसका मिश्रण खिलाएं । इससे उसका पाचन तंत्र दुरुस्‍त हो जाएगा और पेट के संक्रमण मर जाएंगे।

5. सर्दी-जुखाम से राहत दिलाए

इसको खाने से सर्दी-जुखाम के साथ साइनस की तकलीफ भी काफी कम हो जाती है। यह मिश्रण शरीर की गर्मी बढ़ाता है और बीमारियों को दूर रखता है।

6. फंगल इंफेक्‍शन से बचाए

फंगल इंफेक्‍शन, शरीर के कई भागों पर हमला करते हैं, लेकिन एंटीबैक्‍टीरियल गुणों से भरा यह मिश्रण बैक्‍टीरिया को खतम कर के शरीर को बचाता है।

7. डीटॉक्‍स करे

यह एक प्राकृतिक डीटॉक्‍स मिश्रण है, जिसे खाने से शरीर से गंदगी और दूषित पदार्थ बाहर निकलता है।

8.बालों के लिए रामबाण

शायद वनस्पति जात की यह इकलौती वनस्पति है जिसमें सभी विटामिन और खनिज है। इसीलिए लहसुन बालों के लिए भी फायदेमंद है। केवल लहसुन का सेवन ही नहीं बल्कि इसके तेल से भी बालों से जुड़ी सारी समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।
बाल झडऩा- 50 ग्राम सरसों का तेल, एक लहसुन की सब कलियां छीलकर डाल दें। मंदाग्रि में पकाएं। कलिया जल जाएं तो उतारकर, छानकर बोतल में भर दें। रोज रात को सोने से पहले मालिश करें।
बालों का पकना– उपरोक्त बनाए हुए तेल की मालिश आधा घंटा करना चाहिए।
बाल काले करना-5 कलियों को 50 मि.ग्राम जल में पीस लें फिर 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह सेवन करें।

9.यौन शक्ति को बढाता है

शुद्ध और बिना गर्म किया शहद यौन उत्‍तेजना बढाता है क्‍योंकि इसमें अनेक पदार्थ जैसे, जिंक, विटामिन ई आदि होता है। जो कि पौरूष और प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं। इसके अलावा, रात को रोज सोते वक्‍त शहद पिसा लहसुन एक साथ मिक्‍स कर के खाना चाहिये, क्‍योंकि यह एक आपके सेक्‍जुअल स्‍टैमिना और प्‍लेजर को बढ़ा देगा। इसके अलावा शहद और दालचीनी भी बाझपन, गठिया, बाल झड़ना, दांतदर्द, कफ, पेट की खराबी, वेट लॉस और बढ़े हुए कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने में मददगार है।

चमत्कारी फल नोनी -- हृदय किडनी लीवर कैंसर आर्थराइटिस जैसे रोगों का एक हल

नोनी का english नाम Moringo है, और इसका Botanical नाम Morinda Citrifolia है, Morinda शब्द Latin के Morus और Indicus से मिलकर बना है, Morus का अर्थ होता है Mulberry अर्थात शहतूत और Indicus का अर्थ है Indian. इसको भारत में Indian Mulberry और Nuna भी कहा जाता है. natural health supplement
नोनी कैंसर की रोकथाम और इसको ख़त्म करने के लिए, Heart, Kidney, Liver, Lungs को सुचारू करने के लिए, Free Radicals से बचाने में, शरीर के किसी भी अंग किडनी, लीवर, हार्ट और अन्य अंगो में दर्द और सूजन को ख़त्म करने में, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में, Anti Biotic Resistance को कम करने में, ऐसे अनेक रोगों में ये ग़ज़ब का Health Supplement है.
नोनी में Ampricanin A, Vitamin C, Vitamin E, Selenium पाए जाते हैं, ये Oxidative stress को कम करते हैं, जिससे कोशिकाओं की जो आयु बढाने की प्रोसेस होती है उसको धीमा कर देती है. इससे व्यक्ति लम्बे समय तक कम आयु का दीखता है और जवान बना रहता है. और इस Effect से हमारे Heart, Kidney, Liver, Lungs हमेशा Healthy बने रहते हैं. Oxidative Strees से Free Radicals बनते हैं. और ये Free Radicals ही गंभीर रोगों का मुख्य कारण है. यहाँ तक के कैंसर, हृदय, किडनी, लीवर के गंभीर रोग भी Free Radicals की वजह से होते हैं. Free Radicals बनने के कारण अंगो के अन्दर oxygen का Metabolism काफी ज्यादा प्रभावित होता है और शरीर Oxygen का सही से इस्तेमाल नहीं कर पाता और रोगों से घिर जाता है.
नोनी में ऊपर बताये गए Anti Oxidants के अलावा Ursolic Acid, Seopoletin, Damnacanthal, Morenone I, Morenone II पाए जाते हैं जो Specially कैंसर को रोकने और उसको Primary Stage पर ही ख़त्म करने में बेहद लाभकारी है.
नोनी में Essential और Conditional एमिनो अमल जैसे Proline, Leucine, Cysteine, Methionine, Glycine, Histidine, Isolucine, Glutamic Acid, Phenylanine, Serine, Threonine, Triptophan, Tyrosine, Arginine, Valine नामक बेहद ज़रूरी Amino Acid पाए जाते हैं, ये हमको डाइट में बहुत कम पाए जाते हैं. ये Amino Acid शरीर के अन्दर नहीं बनते इसलिए इनको डाइट में ही लेना पड़ता है. इनकी कमी से कई बीमारियाँ हो जाती हैं, शरीर में Protein बनाने की क्रिया इन्ही Amino Acids से ही पूर्ण होती है. इसलिए body बिल्डिंग वाले इसको ज़रूर पियें. उनको एक महीने में नतीजे मिलेंगे.
इसकी कमी से कुपोषण (Kwashiorkar) एक अहम् बीमारी है जो हो सकती है और ये बच्चो से लेकर बड़ों में हो सकता है.नोनी में Asperulosidic acid और Scopoletin नामक रसायन पाए जाते हैं जो शरीर में होने वाले संक्रमण को रोकते हैं.नोनी में Caprylic Acid, Hexanoic Acid और Caproic Acid पाए जाते हैं, ये किसी भी प्रकार के फंगल इन्फेक्शन को कम करते हैं जैसे, दाद, खाज, खुजली, गुप्तांगों में इन्फेक्शन इत्यादि.
  • नोनी में Quercetin और Kaempferolm derivative नामक Flavonoid पाए जाते हैं, इसमें Quercetin अपने Hypo Lipidemic Effect के कारण रक्त में बैड कोलेस्ट्रॉल(LDL) को कम करता है और ये Quercetin Anti Inflammatory है और Lipoxygenage inhabiter भी है जो के गठिया आर्थराइटिस या शरीर में होने वाले किसी भी प्रकार के दर्द और शरीर में किसी भी प्रकार की सूजन हो तो ये इन दोनों ही केस में बहुत सहायक है. सूजन जैसे हार्ट की सूजन (Myocarditis) किडनी की सूजन Nephritis और Liver की सूजन (Hepatitis), फेफड़ों की सूजन (Pleuritis) इत्यादि रोगों में भी ये बेहद लाभकारी है.
  • नोनी में पाया जाने वाला Kaempferolm derivative अपने Hypo Glycemic Effect के कारण रक्त में बढ़ी हुई ग्लूकोस की मात्रा को कम करता है.
  • नोनी में Citrifolinoside B पाया जाता है जो अल्ट्रा वायलेट (UV B) किरणों से बचाने में बहुत सहायक है. Ultra violet B किरने हमारी त्वचा की उपरी त्वचा को नुक्सान पहुंचाती है. सुबह 10 से शाम 4 बजे की धुप में ये किरने ज्यादा होती है. यही हमारी त्वचा को काला बनाती हैं. अगर लम्बे समय तक आप इन किरणों में रहते हैं तो आपको Skin Cancer हो सकता है.
  • इसके साथ नोनी में Melanin के उत्पादन को रोकने के लिए Glucopyranose पाया जाता है. Melanin ही त्वचा के रंग को निर्धारित करते हैं, जिसमे ज्यादा Melanin बनते हैं, उनकी त्वचा का रंग काला होता है. और नोनी इसी उत्पादन को रोक देती है
  • नोनी में Rubiadin और 8-Hydroxy 8-Methoxy 2-Methyl Anthraquinone  पाया जाता है ये दोनों Anti Viral हैं, जिन लोगों को निरंतर बुखार, जुकाम, खांसी होती है, उनके लिए ये बेहतरीन टॉनिक है.
  • Betasitosterol एक प्राकृतिक Sterol है जो immune सिस्टम को बढाता है, साथ ही ये रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल कम करता है......... 
  • इसको आप 30 Ml. सुबह शाम खाली पेट लीजिये. इसको आप बाजार से खरीद सकते है अगर हमसे भी मंगाना चाहे तो संपर्क करे --- 8460783401 
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कलौंजी का तेल है अमृत के समान

कलौंजी का तेल हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज, अस्थमा, खांसी, नजला, जोड़ों के दर्द, बदन दर्द, कैंसर, किडनी, गुर्दे की पत्थरी, मूत्राशय के रोग, मर्दाना कमजोरी, बालों के रोगों, मोटापे, याद दाश्त बढाने, मुंहासे, सुंदर चेहरा, अजीर्ण, उल्टी, तेज़ाब, बवासीर, लयुकोरिया आदि  गंभीर बीमारियों से एक साथ निजात दिलाने में सक्षम है। 

यह अनमोल चमत्कारिक दवा ब्लैैक सीड ऑइल, जिसे कलौंजी का तेल भी कहा जाता है यह आसानी से उपलब्ध होने वाली बेहद प्रभावी और उपयोगी साबित हो सकती है। कलौंजी के तेल में मौजूद दो बेहद प्रभावकारी तत्व थाइमोक्विनोन और थाइमोहाइड्रोक्विनोन में विशेष हीलींग प्रभाव होते हैं। ये दोनों तत्व मिलकर इन सभी बीमारियों से लड़ने और शरीर को हील करने में मदद करते हैं।


कार्डियोवेस्कुलर डि‍सीज एवं अस्थमा, ब्लड कैंसर, फेफड़ों की समस्या, लिवर, प्रोस्टेट, ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स और त्वचा रोगों में भी कारगर है। यह कोई नई दवा नहीं है, बल्कि इन गंभीर बीमारियों के लिए इसकी खोज हजारों वर्षों पूर्व हो चुकी थी। जिसके बाद इस दवा पर विज्ञान के अब तक कई शोध हो चुके हैं, जो विभिन्न बीमारियों के लिए ब्लैैक सीड ऑइल को बेहतरीन घरेलू दवा साबित करते हैं।
2012  में इजिप्ट में हुए एक शोध के अनुसार शहद और कलौंजी ब्लैैक सीड ऑइल ट्यूमर रोधी तत्व मौजूद हैं, जो कैंसर कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्ध‍ि को रोकने में सक्षम है। वहीं 2013 में मलेशिया में हुए रिसर्च के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर के लिए थाइमोक्विनोन का प्रयोग एक दीर्घकालिक इलाज के रूप में किया गया।
इसमें मौजूद थाइमोक्विनोन एक बायोएक्टिव कंपाउंड है जो एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर कारक है। इसमें वे चुनिंदा साइटोटॉक्स‍िक प्रॉपर्टी मौजूद है जो कैंसर को‍शिकाओं के लिए घातक है, जबकि सामान्य कोशिकाओं को कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती।
तो अब आपको इन बीमारियों के लिए महंगी दवाओं पर खर्च करने की जरुरत नहीं होगी, इस एक घरेलुु द्वारा आप कई बीमारियों को हल कर सकते हैं।

कलौंजी का तेल सेवन की विधि. – 

किसी भी बीमारी में आप कलौंजी के तेल को आप सुबह गर्म पानी में 2 बूँद डालकर रोजाना पी सकते हैं. इस से आपको उपरोक्त बिमारियों के होने की आशंका बहुत कम हो जाएगी. अगर गंभीर बिमारियों ने जकड रखा है तो जब भी पानी पियें तो उसमे 2 बूँद कलौंजी का तेल डालकर पीजिये. इसमें शहद भी मिलाया जा सकता है. kalonji ka tel
कलौंजी का तेल रात्रि को सोने से पहले दूध में भी 2 बूँद डाल कर रोजाना पिया जा सकता है.
जितने गुण कलौंजी में निहित है उतने ही गुण कलौंजी के तेल में भी हैं. कलौंजी के लिए एक कहावत भी मशहूर है के मौत को छोड़कर हर मर्ज की दवा है कलौंजी.
अगर आपको ये तेल ना मिले तो आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं.  नंबर -   8460783401 
ध्यान रखें कि इस दवा का प्रयोग गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे गर्भ नष्ट हो सकता है
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डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं ये पोषक तत्वों की कमी

          पोषक तत्वों की कमी से भी हो सकता है डिप्रेशन

डिप्रेशन आज के समय में एक प्रचलित मानसिक रोग है। इसे आज के समाज का रोग भी कह सकते हैं। समय के साथ बढ़ते घरेलू विवाद, अत्यधिक व्यस्तता, आगे निकलने की होड़, मन मुताबिक काम न होना, अधिकारी द्वारा तिरस्कृत किया जाना या अपनी क्षमता पर संदेह जैसे कई कारण हैं जो अवसाद में ले जाते हैं। लेकिन, अवसाद सिर्फ इन्ही चीज़ों की देन नहीं है। कुछ पोषक तत्वों की कमी होने की वजह से भी हम अवसाद की चपेट में आ जाते हैं। आइये जानते हैं वो कौन से 7 पोषक तत्व हैं जिनकी कमी आपको डिप्रेशन का शिकार बना सकती है।
मैग्नीशियम---मैग्नीशियम एक रासायनिक तत्व है जो हमारे लिए बहुत उपयोगी है। शरीर का आधे से ज्यादा मैग्नीशियम हमारी हड्डियों में पाया जाता है जबकि बाकी शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोग करता है। मैग्नीशियम मस्तिष्क सहित शरीर के अनेक ऊतकों के सही ढंग से काम करने के लिए अनिवार्य है। मैग्‍नीशियम की भरपूर मात्रा न लेने से सिरदर्द, अनिद्रा, तनाव आदि की शिकायत हो सकती है।
आयरन--- आयरन की कमी की समस्या महिलाओं में आम है। लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं, और 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को आयरन की कमी होती है। वहीं केवल तीन प्रतिशत पुरूषों में ये कमी पाई जाती है। आयरन की कमी से ऐनीमिया हो जाता है। इसके लक्षण डिप्रैशन के लक्षणों की तरह ही हैं - थकान, चिड़चिड़ापन, दिमागी धुंधलापन
विटामिन डी---विटामिन डी की कमी का संबंध डिप्रेशन, डीमेंटिया और ऑटिज्म से है। सर्दियों के महीनों में खासतौर पर हमारे शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। इसका कारण ये है कि इस समय सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता, जो कि विटामिन डी का प्रमुख स्रोत है। इस कमी से बचने के लिए हमें विटामिन डी के विकल्प अपनाने की जरूरत है।
विटामिन बी समूह--- विटामिन बी समूह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के सही से काम करने में मदद करता है। यह ब्रेन, स्पाइनल कोर्ड और नसों के कुछ तत्वों की रचना में भी सहायक होते हैं। विटामिन बी समूह की शरीर में अगर कमी हो जाए तो स्मरण शक्ति कमजोर हो सकती है। आप अचानक थकान महसूस कर सकते हैं, डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।  
फोलेट--- जिन लोगों में फोलेट का स्तर निम्न होता है उन पर डिप्रेशन की दवाओं का केवल 7 प्रतिशत असर होता है। इस वजह से काफी मनोचिकित्सक डिप्रेशन के इलाज और डिप्रेशन की दवा का असर बढ़ाने के लिए, डेप्लिन नाम की फोलेट की दवा खाने की सलाह देते हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं तो गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां, बींस, सिट्रस फल व जूस लें  
ऐमीनो ऐसिड्स---प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक्स आपके दिमाक को सही ढंग से काम करने में मदद करते हैं। ऐमीनो ऐसिड्स की कमी से सुस्ती, एकाग्रता की कमी व डिप्रेशन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। ऐमीनो ऐसिड्स के अच्छे स्रोत बीफ, अंडे, मछली, बींस, सीड्स और नट्स हैं। रोजमर्रा की डाइट में इन्हें शामिल करने से शरीर में ऐमीनो ऐसिड्स की कमी धीरे धीरे दूर हो जाती है। 
 जिंक--- ज़िंक बायोकैमिकल रिएक्शन से बचाता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और श्वेत रुधिर कणिकाओं की संख्या बढ़ाकर एंटीबॉडीज़ के उत्पादन को सुगम बनाता है। ज़िंक की कोइ दैनिक खुराक तय नहीं है, और मीट, समुद्री भेजन और दूध-मेवे इसके प्रमुख स्रोत हैं

    Sunday 24 September 2017

    कुटज ( इन्द्रजौ ) के फायदे

     कुटज (संस्कृत), कूड़ा या कुरैया (हिन्दी), कुरजी (बंगला), कुड़ा (मराठी), कुड़ी (गुजराती), वेप्पलाई (तमिल), कछोडाइस (तेलुगु) तथा मोलेरीना एण्टी डिसेण्टीरिका (लैटिन) कहते हैं। इन्द्रजौ 5 से10 फुट ऊंचा जंगली पौधा होता है जिसके पत्ते बादाम के पत्तों की तरह लंबे होते हैं। कोंकण (महाराष्ट्र) में इन्द्रजौ ‌‌‌के पत्तों का बहुत उपयोग किया जाता है। इसके फूलों की सब्जी बनायी जाती है। इसमें फलियां पतली और लंबी होती हैं, इन फलियों का भी साग और अचार बनाया जाता है। फलियों के अंदर से जौ की तरह बीज निकलते हैं। इन्ही बीजों को इन्द्रजौ कहते हैं। सिरदर्द तथा साधारण प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए यह नुकसानदायक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए इसमें धनियां मिलाया जाता है। इसकी तुलना जायफल से भी की जा सकती है। इसके फूल भी कड़वे होते हैं। इनका एक पकवान भी बनाया जाता है। इन्द्रजौ के पेड़ की दो जातियां - काली ‌‌‌वसफेदइन्द्र जौ होती हैं और इन दोनों में ये कुछ अन्तर इस प्रकार होते हैं। कुटज का पेड़ मध्यम आकार का, कत्थई या पीलाई लिये कोमल छालवाला होता है। कुटज के पत्ते 6-12 इंच लम्बे, 1-1 इंच चौड़े होते हैं। कुटज के फूल सफेद, 1-1 इंच लम्बे, चमेली के फूल की तरह कुछ गन्धयुक्त होते हैं। कुटज के फल 8-16 इंच लम्बे, फली के समान होते हैं। दो फलियाँ डंठल तथा सिरों पर भी मिली-सी रहती हैं। बीज जौ (यव) के समान अनेक, पीलापन लिये कत्थई रंग के होते हैं। ऊपर से रूई चढ़ी रहती है। इसे ‘इन्द्रजौ‘ (इन्द्रयव) कहते हैं। इसकी जातियाँ दो होती हैं : (क) कृष्ण-कुटज (स्त्री-जाति का) और (ख) श्वेत-कुटज (पुरुष-जाति का) । यह हिमालय प्रदेश, बंगाल, असम, उड़ीसा, दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में प्राप्त होता है।
    रासायनिक संघटन : इसकी छाल तथा बीज-अंगों में कुर्चिसिन तथा कुर्चीन तत्त्व पाये जाते हैं।
    कुटज के गुण : यह स्वाद में कड़वा, कसैला, पचने पर कटु तथा हल्का, रूखा और शीतल होता है। इसका मुख्य प्रभाव पाचन-संस्थान पर स्तम्भक रूप में पड़ता है। यह व्रण-रोपण (घाव भरनेवाला) अग्निदीपक, कृमिहर, रक्तशोधक, ज्वरहर, धातुशोषक तथा रक्त-स्तम्भक है।
    काली इन्द्र जौ: - ‌‌‌इसके पेड़ बड़े, पत्ते हल्के काले, फलियां सफेद ‌‌‌होती हैं, जो कि इन्द्रजौ के पेड़ की फलियों से दोगुनी बड़ी होती हैं। सफेद इन्द्र जौ की तुलना में यह ज्यादा गर्म होता है। काली इन्द्रजौ बवासीर, त्वचा के विकार और पित्त का नाश करती है। और खून की गंदगी, कुष्ठ, अतिसार (दस्त), कफ, पेट के कीड़े, बुखार और जलन को नाश (खत्म) करता है। बाकी काले इन्द्रजौ के सभी गुण सफेद इन्द्र जौ के गुण से मिलते जुलते हैं।
    सफेद इन्द्र जौ: ‌‌‌इसके पेड़ काले इन्द्र जौ से छोटे, पत्ते हल्के सफेद, फलियां थोड़ी छोटी होती हैं। यह काले इन्द्र जौ से हल्का गर्म होता है। यह कड़वा, तीखा, भूखवर्द्धक, पाचक और फीका होता है।
    ‌‌‌‌‌‌औषधीय गुण:---
    ‌‌‌अल्सर व फुंसीयां: पीसी हुई इन्द्रजौ की छाल को सेंधा नमक मिलाकर गोमूत्र के मिलाकर प्रभावित अंग पर लगाने से लाभ मिलता है।
    ‌‌‌अश्मरी: - इन्द्रजौ के पाउडर व सालमोनिक को दूध या चावल के धोवल के साथ ‌‌‌या पीसी हुई इन्द्रजौ की छाल को दही के साथ लेने से पत्थरी टूटकर बाहर आ जाती है।
    ‌‌‌गर्भनिरोधक: - 10-10 ग्राम पीसी हुई इन्द्रजौ, सुवा सुपारी, कबाबचीनी और सौंठ को छानकर 20 ग्राम मिश्री मिला लें। मासिक धर्म के बाद, 5-5 ग्राम, दिन में दो बार लेने से गर्भधारण नही होगा।
    ‌‌‌जलोदर: - इन्द्रजौ की जड़ को पानी के साथ पीसकर 14-21 दिन नियमित लेने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
    पीलिया: पीलिया के रोग में इसका रस नियमित रूप से 3 दिन पीने से अच्छा लाभ मिलता है।
    ‌‌‌पुराना ज्वर ‌‌‌व बच्चों में दस्त: - इन्द्रजौ व टीनोस्पोरा की छाल को पानी में उबाल कर काढ़ा या इन्द्रजौ की छाल को रातभर पानी में भिगो कर रखने से व पानी को छान कर लेने से पुराना ज्वर लाभ प्रदान करता है।
    ‌‌‌पेट में एंठन: - गर्म किये हुए इन्द्रजौ के बीजों को पानी में भिगो कर लेने से पेट की एंठन में लाभ मिलता है।
    ‌‌‌बवासीर: - इन्द्रजौ को पानी के साथ पीस कर बाराबर मात्रा में जामुन के साथ मिला कर छोटी-छोटी गोलींयां बना लें। सोते समय दो गोलीयां ठण्डे पानी के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
    ‌‌‌मुंह के छाले: - 10 ग्राम इन्द्रजौ को 10 ग्राम काले जीरे के साथ पीसकर पाउडर बनाकर छान लें। इस पाउडर को मुंह के छालों पर दिन में दो बार लगाने से लाभ प्रदान करता है।
    ‌‌‌हैजा: - इन्‍द्रजौ की जड़ को अरंडी के साथ पीसकर हींग ​मिलाकर लेने से हैजे में आराम ​मिलता है।
     रक्त-पित्तातिसार : कुटज की छाल को पीसकर सोंठ के साथ देने से रक्त बन्द होता है। रक्त-पित्त में घी के साथ देने से रक्त आना रुकता है। कुटज के फल पीसकर देने से रक्तातिसार और पित्तातिसार में लाभ होता है।
     रक्तार्श : इसकी छाल पीसकर पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह छानकर पीने से खूनी बवासीर में निश्चित लाभ होता है।
     प्रमेह : प्रमेह में उपर्युक्त विधि से फूलों को पीसकर दें।

    Thursday 21 September 2017

    गठिया रोग ...

    संधि शोथ यानि "जोड़ों में दर्द" (: Arthritis / आर्थ्राइटिस) के रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं।
    संधिशोथ सौ से भी अधिक प्रकार के होते हैं। 
    अस्थिसंधिशोथ (osteoarthritis) इनमें सबसे व्यापक है। अन्य प्रकार के संधिशोथ हैं - आमवातिक संधिशोथ या 'रुमेटी संधिशोथ' (rheumatoid arthritis), सोरियासिस संधिशोथ (psoriatic arthritis)।
    संधिशोथ में रोगी को आक्रांत संधि में असह्य पीड़ा होती है, नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है, ज्वर होता है, वेगानुसार संधिशूल में भी परिवर्तन होता रहता है। इसकी उग्रावस्था में रोगी एक ही आसन पर स्थित रहता है, स्थानपरिवर्तन तथा आक्रांत भाग को छूने में भी बहुत कष्ट का अनुभव होता है। यदि सामयिक उपचार न हुआ, तो रोगी खंज-लुंज होकर रह जाता है। संधिशोथ प्राय: उन व्यक्तियों में अधिक होता है जिनमें रोगरोधी क्षमता बहुत कम होती है। स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से यह रोग आक्रांत करता है।
    संधिशोथ के कारणों को दूर करने तथा संधि की स्थानीय अवस्था ठीक करने के लिए चिकित्सा की जाती है। इनके अतिरिक्त रोगी के लिए पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम, पौष्टिक आहार का सेवन, धूप सेवन, हलकी मालिश तथा भौतिक चिकित्सा करना अत्यंत आवश्यक है।
    • संधि शोथ (आर्थराइटिस) की बीमारी की विवेकपूर्ण प्रबंधन और प्रभावी उपचार से अच्छी तरह जीवन-यापन किया जा सकता है।
    • संधि शोथ (आर्थराइटिस) बीमारी के विषय में जानकारी रखकर और उसके प्रबंधन से विकृति तथा अन्य जटिलताओं से निपटा जा सकता है।
    • रक्त परीक्षण और एक्स-रे की सहायता से संधि शोथ (आर्थराइटिस) की देखरेख की जा सकती है।
    • डॉक्टर के परामर्श के अनुसार दवाइयां नियमित रूप से लें।
    • शारीरिक वजन पर नियंत्रण रखें।
    • स्वास्थ्यप्रद भोजन करें।
    • डॉक्टर द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार नियमित व्यायाम करें।
    • नियमित व्यायाम करें तथा तनाव मुक्त रहने की तकनीक अपनाएं, समुचित विश्राम करें, अपने कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करके तनाव से मुक्त रहें।
    • औषधियों के प्रयोग में अनुपूरक रूप में योग तथा अन्य वैकल्पिक रोग के उपचारों को वैज्ञानिक तरीके से लिपिबद्ध किया गया है।पैरों की हड्डीओं को सही संरेखण (एलाइनमेंट) में रखने के लिए और उन पर पड़ने वाले वजन को कम करने के लिए मजबूत मांसपेशियों की आवश्य्कता होती है। मजबूत मांसपेशियां व्यायाम के द्वारा बनाई जा सकती है। सप्ताह में कम से कम ३ बार व्यायाम जरूरी है। पैरों की हड्डीओं को सही संरेखण (एलाइनमेंट) में रखने के लिए और उन पर पड़ने वाले वजन को कम करने के लिए मजबूत मांसपेशियों की आवश्य्कता होती है। मजबूत मांसपेशियां व्यायाम के द्वारा बनाई जा सकती है। सप्ताह में कम से कम ३ बार व्यायाम जरूरी है। 
    • अर्थराइटिस ‘गठिया’ क्या है एवं कितने प्रकार की होती है?

      किसी भी जोड में सूजन, दर्द व जकडन को अर्थराइटिस गठिया कहा जाता है। अर्थराइटिस सामान्यतय: दो प्रकार की होती है। प्रथम ओस्टिायोअर्थराइटिस जिसमें बढती उम्र के साथ या किसी चोट के कारण एवं अत्यधिक दुरू पयोग से जोडों में अन्दर की मांसपेशियां का टूटना व मुलायम गद्दी की घिसावट का होनें के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और जकडऩ का होना।
      दूसरा रूहमेटिज्म बाय जिसमें 200 से अधिक विभिन्न प्रकार की गम्भीर ऑटोइम्यून बीमारियां होती है जिनसे जोड़ो में टेडापन होने व आन्तरिक अंगो पर दुष्प्रभाव पडऩें की सम्भवना होती है। विभिन्न महत्वपूर्ण आन्तरिक अंग जिन पे रू हमेटिज्म का दुष्प्रभाव पड़ सकता है वह है: हृदय, फेफडें, आंख, गुर्दा, चर्म आदि। सामान्यत: समाज में गठिया बाय रू हमेटोइड अर्थराइटिस सबसे व्यापक रू हमेटिज्म बीमारी है। 
      रूहमेटिज्म रोग से कौन-कौन प्रभावित हो सकते है? 
      बाय या रू हमेटिज्म आमतौर पर मध्यम आयु वर्ग, युवा व बच्चों का प्रभावित करती है। यद्यपि पुरू षों की तुलना में स्त्रियों में तीन गुना ज्यादा होने की सम्भावना होती है। बच्चों के रू हमेटिज्म को जुवेनाइल अर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। ओस्टियोअर्थराइटिस से बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते है। घुटनें एवं कुल्हे के जोडों पर इसका ज्यादा प्रभाव पडता है। 
      ऑटोइम्यून बीमारी का क्या मतलब है? 
      ऑटोइम्यून बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम प्रतिरोधक क्षमता, शरीर के अंगों के प्रति असंतुलित एवं आक्रामक हो जाता है जिससे शरीर के जोड, मांसपेशियां, हड्डी व महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। 
      अर्थराइटिस होने के क्या क्या कारण हो सकते है? 
      घुटनें का दर्द या ओस्टयोअर्थराइटिस होने के सबसे बडें कारण- बढ़ती उम्र, बढता वजन मोटापा व जोड़ों का चोटिल होना। आनुवांशिकता, पर्यावरण प्रदुषण व धुम्रपान रू मेटिज्म बाय बीमारी के होने के सबसे बड़े कारण हो सकते है। 
      प्रमुख रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के लक्षण एवं नाम क्या है? 
      रूहमेटॉइड अर्थराइटिस हाथ व पैरों के छोटे जोडों की गठिया, एन्काइलॉजिंग स्पोन्डिलाइटिस कमर की गठिया, एस.एल.ई. लूपस, सोरियेटिक अर्थराइटिस चर्म रोग सोरियसिस के कारण गठिया, गॉउट यूरिक एसिड के कारण गठिया, स्क्लेरोडरमा चमडी का केडापन, ठंड में अगुंलियों का सफेद व नीला होना, वेस्कुलाइटिस धमनियों में खून का रिसाव रू कना व गेंगरीन इत्यादि। 
      रूहमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण क्या होते है? 
      सुबह 30 मिनट से ज्यादा समय की जोड़ों में जकडऩ, एक से ज्यादा जोड़ों में सूजन रहना, खासतौर पर हाथों के जोड़, जोड़ों को दबाने पर जोड़ों में दर्द महसूस होना आदि रू हमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण हो सकते है। 
      रूहमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ कौन होते है? 
      जिस तरह से कैसर के लिए कैसर रोग विषेषज्ञ होते है, हृदय रोग के लिए हृदय रोग विषेषज्ञ होते है वैसे ही गम्भीर रू हमेटिज्म बीमारियों को प्रारम्भिक स्तर पर ही पहचान कर उपर्युक्त उपचार प्रदान कर बीमारी को जल्द से जल्द नियंत्रण के लिए रू हमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ विशे शिक्षित चिकित्सक होते है। समय पर एवं उपर्युक्त इलाज ना होने पर जोड़ों के विकृति होने की सम्भवना बढ़ जाती है। 
      क्या रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के उपचार सम्भव है? 
      समाज में यह भ्रम देखा गया है कि गठिया बाय का कोइ उपचार नहीं है, जबकि यह गलत है। इलाज के लिए बीमारी रोकने के ताकत रखने वाली दवाईया उपलब्ध है। जिन्हें डिजिज मोडिफाइंग एन्टिरू हमेटिक डंग्स कहा जाता है। इन बीमारियों अर्थराइटिस ‘गठिया’ क्या है एवं कितने प्रकार की होती है? 
      जोड में सूजन, दर्द व जकडन को अर्थराइटिस गठिया कहा जाता है। अर्थराइटिस सामान्यतय: दो प्रकार की होती है। प्रथम ओस्टिायोअर्थराइटिस जिसमें बढती उम्र के साथ या किसी चोट के कारण एवं अत्यधिक दुरू पयोग से जोडों में अन्दर की मांसपेशियां का टूटना व मुलायम गद्दी की घिसावट का होनें के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और जकडऩ का होना।
      दूसरा रूहमेटिज्म बाय जिसमें 200 से अधिक विभिन्न प्रकार की गम्भीर ऑटोइम्यून बीमारियां होती है जिनसे जोड़ो में टेडापन होने व आन्तरिक अंगो पर दुष्प्रभाव पडऩें की सम्भवना होती है। विभिन्न महत्वपूर्ण आन्तरिक अंग जिन पे रू हमेटिज्म का दुष्प्रभाव पड़ सकता है वह है: हृदय, फेफडें, आंख, गुर्दा, चर्म आदि। सामान्यत: समाज में गठिया बाय रू हमेटोइड अर्थराइटिस सबसे व्यापक रू हमेटिज्म बीमारी है। 
      रूहमेटिज्म रोग से कौन-कौन प्रभावित हो सकते है? 
      बाय या रूहमेटिज्म आमतौर पर मध्यम आयु वर्ग, युवा व बच्चों का प्रभावित करती है। यद्यपि पुरू षों की तुलना में स्त्रियों में तीन गुना ज्यादा होने की सम्भावना होती है। बच्चों के रू हमेटिज्म को जुवेनाइल अर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। ओस्टियोअर्थराइटिस से बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते है। घुटनें एवं कुल्हे के जोडों पर इसका ज्यादा प्रभाव पडता है। 
      ऑटोइम्यून बीमारी का क्या मतलब है? 
      ऑटोइम्यून बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम प्रतिरोधक क्षमता, शरीर के अंगों के प्रति असंतुलित एवं आक्रामक हो जाता है जिससे शरीर के जोड, मांसपेशियां, हड्डी व महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। 
      अर्थराइटिस होने के क्या क्या कारण हो सकते है? 
      घुटनें का दर्द या ओस्टयोअर्थराइटिस होने के सबसे बडें कारण- बढ़ती उम्र, बढता वजन मोटापा व जोड़ों का चोटिल होना। आनुवांशिकता, पर्यावरण प्रदुषण व धुम्रपान रू मेटिज्म बाय बीमारी के होने के सबसे बड़े कारण हो सकते है। 
      प्रमुख रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के लक्षण एवं नाम क्या है? 
      रू हमेटॉइड अर्थराइटिस हाथ व पैरों के छोटे जोडों की गठिया, एन्काइलॉजिंग स्पोन्डिलाइटिस कमर की गठिया, एस.एल.ई. लूपस, सोरियेटिक अर्थराइटिस चर्म रोग सोरियसिस के कारण गठिया, गॉउट यूरिक एसिड के कारण गठिया, स्क्लेरोडरमा चमडी का केडापन, ठंड में अगुंलियों का सफेद व नीला होना, वेस्कुलाइटिस धमनियों में खून का रिसाव रू कना व गेंगरीन इत्यादि। 
      रूहमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण क्या होते है? 
      सुबह 30 मिनट से ज्यादा समय की जोड़ों में जकडऩ, एक से ज्यादा जोड़ों में सूजन रहना, खासतौर पर हाथों के जोड़, जोड़ों को दबाने पर जोड़ों में दर्द महसूस होना आदि रू हमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण हो सकते है। 
      रूहमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ कौन होते है? 
      जिस तरह से कैसर के लिए कैसर रोग विषेषज्ञ होते है, हृदय रोग के लिए हृदय रोग विषेषज्ञ होते है वैसे ही गम्भीर रू हमेटिज्म बीमारियों को प्रारम्भिक स्तर पर ही पहचान कर उपर्युक्त उपचार प्रदान कर बीमारी को जल्द से जल्द नियंत्रण के लिए रू हमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ विशे शिक्षित चिकित्सक होते है। समय पर एवं उपर्युक्त इलाज ना होने पर जोड़ों के विकृति होने की सम्भवना बढ़ जाती है। 
      क्या रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के उपचार सम्भव है? 
      समाज में यह भ्रम देखा गया है कि गठिया बाय का कोइ उपचार नहीं है, जबकि यह गलत है। इलाज के लिए बीमारी रोकने के ताकत रखने वाली दवाईया उपलब्ध है। जिन्हें डिजिज मोडिफाइंग एन्टिरू हमेटिक ड्रग्स कहा जाता है। इन बीमारियों को दवाईयों के माध्यम से ही प्रारम्भिक स्तर पर ही नियंत्रण किया जा सकता है।