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Sunday 27 December 2020

वात प्रकृति वाले लोग- लक्षण -निदान - उपचार

 


आयुर्विज्ञान के अनुसार मानव शरीर मुख्य रूप से पांच तत्वों (अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश) से मिलकर बना है। इन सभी तत्वों के बीच संतुलन की अवस्था मनुष्य के बेहतर स्वास्थ्य की ओर इशारा करती है। वहीं, इनमें से किसी एक का भी असंतुलन शारीरिक समस्याओं का कारण बन जाता है, जिसे त्रिदोषों और उसके उपदोषों में विभाजित किया गया है। शरीर के भागों और अंगों के हिसाब से त्रिदोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है, जिनके कई उपभाग भी है। विनय आयुर्वेदा के इस लेख में वातरोग क्या है, वात रोग के कारण और वात प्रकृति के लक्षण के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। साथ ही लेख में वात रोग को दूर करने के उपाय के विषय में भी जानकारी दी जाएगी। लेख में बताए गए उपाय वात संबंधी समस्या से राहत तो दिला सकते हैं, लेकिन पूर्ण उपचार साबित नहीं हो सकते। इसलिए, गंभीर अवस्था में डॉक्टरी से चेकअप करवाना जरूरी है। 

अपने आस पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्यादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नजर आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। 

वात दोष क्या है - 

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं। 



विनय आयुर्वेदा का  दर्द केयर सिरप ( 300मिली व 600 मिली ) समस्त वात रोगो मे बहुत उपयोगी है आप घर बेठे ऑर्डर कर के मँगा सकते है साथ मे वात रोगी कॉल करके या व्हट्स अप पर अपनी समस्या बताकर उपचार व सलाह भी ले सकते है  मो - 8460783401 

वात के प्रकार  - शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

  1. प्राण
  2. उदान
  3. समान
  4. व्यान
  5. अपान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।

वात के गुण - रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।


वात प्रकृति की विशेषताएं --

आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैस कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं. इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं. स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.


 

वात बढ़ने के कारण ~~~~

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

वात बढ़ जाने के लक्षण - वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नजर आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नजर डालते हैं।

  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • सुई के चुभने जैसा दर्द
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
  • हड्डियों का खिसकना और टूटना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
  • अंगों का ठंडा और सुन्न होना
  • कब्ज़
  • नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
  • मुंह का स्वाद कडवा होना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

वात को संतुलित करने के उपाय --

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

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वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं 

  • घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।
  • नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में  तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।

वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए 

अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीजों के सेवन से परहेज करें।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
  • किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

जीवनशैली में बदलाव 

जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

  • एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
  • किसी शांत जगह पर जाकर रोजाना ध्यान करें।
  • गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। औषधियों से तैयार काढ़े को टब में डालें और उसमें कुछ देर तक बैठे रहें।
  • गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

वात में कमी के लक्षण और उपचार - वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइये पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

वात में कमी के लक्षण :

  • बोलने में दिक्कत
  • अंगों में ढीलापन
  • सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी
  • वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
  • पाचन में कमजोरी
  • जी मिचलाना

उपचार :- वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

 

साम और निराम वात - हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

  • मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
  • पाचन शक्ति में कमी
  • हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
  • आंत में गुडगुडाहट की आवाज
  • कमर दर्द

यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और कई बीमारियों होने लगती हैं। जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है. इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें। अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

विनय आयुर्वेदा का  दर्द केयर सिरप ( 300मिली व 600 मिली ) समस्त वात रोगो मे बहुत उपयोगी है आप घर बेठे ऑर्डर कर के मँगा सकते है साथ मे वात रोगी कॉल करके या व्हट्स अप पर अपनी समस्या बताकर उपचार व सलाह भी ले सकते है  मो - 8460783401

Monday 2 November 2020

गठिया (Arthritis) क्या है ? उपचार व परहेज

 


गठिया (Arthritis) क्या है?

गठिया एक या कई और संयुक्त जोड़ों की सूजन है। गठिया के विभिन्न प्रकार हैं जो लोगों के बीच पाए जा सकते हैं, गठिया के प्रत्येक प्रकार के कारण अलग तरह का शारीरिक दर्द होता है। सबसे आम गठिया प्रकार पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस हैं। गठिया के कारण जोड़ों में दर्द और अकड़न होती है और उम्र के साथ तेज हो सकता है, हालांकि, कभी-कभी वे अप्रत्याशित रूप से भी प्रकट हो सकते हैं। अधिकांश समय, गठिया 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में और शायद ही कभी बच्चों में विकसित होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को गठिया होने का खतरा अधिक होता है, खासकर रूमेटाइड आर्थराइटिस के मामले में। दूसरी ओर, गाउट, एक अन्य प्रकार का गठिया पुरुषों में अधिक पाया जाता है। मोटापा गठिया का एक प्रमुख कारण अक्सर शरीर के अतिरिक्त वजन वाले लोगों में पाया जाता है।

गठिया के लक्षण क्या हैं

घुटने के गठिया के लक्षण अन्य सभी के बीच सबसे प्रमुख और आम हैं। सभी गठिया प्रकार के सामान्य गठिया लक्षणों में से कुछ इस प्रकार हैं:

  • जोड़ों में अत्यधिक दर्द
  • जोड़ों में अकड़न
  • सूजन
  • लाली
  • जॉइंट्स की गति में कठिनाई

इन लक्षणों में से अधिकांश सुबह के दौरान अनुभव किए जाने की अधिक संभावना है। प्रतिरक्षा प्रणाली की सूजन के कारण रुमेटीइड गठिया भी भूख न लगना या थकान का कारण बनता है। यह आगे एनीमिया में विकसित हो सकता है या मामूली बुखार का अनुभव करा सकता है।

आम गठिया प्रकार

यहाँ गठिया के दो सामान्य प्रकारों पर थोड़ा और विस्तार दिया गया है:

ऑस्टियोआर्थराइटिस

जब प्रत्येक हड्डी / जोड़ की छोर को कवर करने वाला लचीला उपास्थि (कार्टिलेज) नीचे हो जाता है, तो प्रभावित को ओस्टियोआर्थराइटिस का निदान किया जाता है। इस तरह के गठिया से जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है और सबसे अधिक प्रभाव घुटनों, कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में होती है।

रूमेटाइड आर्थराइटिस

यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों और उसके आसपास के ऊतकों में सूजन का कारण बनती है। यह शरीर के अन्य अंगों में सूजन का कारण बन सकता है और इस प्रकार इसे व्यवस्थित बीमारी के रूप में भी जाना जाता है।

जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस

जेआईए या जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस को किशोर रूमेटाइड आर्थराइटिस के रूप में भी जाना जाता है और दोनों ही शब्दों का परस्पर विनिमय किया जाता है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मूल रूप से एक पुरानी, ​​गैर संक्रामक, सूजन और ऑटोइम्यून संयुक्त बीमारी है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है।


गठिया उपचार:

गठिया का उपचार गठिया के प्रकार और इसकी डिग्री पर निर्भर करता है। गठिया के उपचार का मुख्य कार्य जोड़ों में दर्द को कम करना है। एक व्यक्ति के लिए जो उपचार काम कर सकता है, ज़रूरी नहीं के दूसरे के लिए भी काम करे। गठिया के दर्द के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सामान्य देखभाल तकनीकों में हीटिंग पैड या आइस पैक को जॉइंट्स पर रखना है। गठिया घुटने वाले लोग चलने के दौरान जॉइंट्स पर पड़ते हुए दबाव को कम करने के लिए वॉकर और या केन जैसी गतिशीलता के लिए सहायता उपकरणों का उपयोग करते हैं।

अधिक गंभीर मामलों में, डॉक्टर इस बीमारी के निदान के लिए निम्नलिखित गठिया उपचार का सुझाव दे सकते हैं:

गठिया के लिए दवाएं 

कुछ दवाएं हैं जो गठिया के इलाज के लिए ली जा सकती हैं।

  • दर्दनाशक – दर्द प्रबंधन के लिए मदद करता है
  • गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं – ये दवाएं गठिया के कारण होने वाले दर्द और सूजन को नियंत्रित करने में मदद करती हैं
  • मेन्थॉल या कैप्साइसिन – ये क्रीम जोड़ों से दूसरे हिस्सों में दर्द के संकेत के प्रसार को रोकते हैं
  • इम्यूनोसप्रेसेन्ट – ये दवाएं जोड़ों पर सूजन को कम करने में मदद करती हैं
  • नोट: गठिया के उपचार के लिए दवाएं केवल डॉक्टर की सिफारिशों के आधार पर ली जाती हैं, जो इसकी गंभीरता पर निर्भर करती है।

आर्थराइटिस के लिए सर्जरी

एक सामान्य तरीका यह होगा कि सर्जरी के जरिए उस विशेष जॉइंट् को आर्टिफिशल से बदल दिया जाए। सबसे आम जोड़ों का रिप्लेसमेंट गठिया घुटने और कूल्हों के लिए हैं।

आपकी उंगली या कलाई में गंभीर गठिया के मामले में, एक जॉइंट्स संलयन जहां आपकी हड्डियों के सिरों को एक साथ रखा जाता है जब तक वे ठीक नहीं होते हैं किया जाते हैं। ये तरीके केवल गठिया के गंभीर मामलों के लिए हैं, जहां गठिया का दर्द चरम पर है और जब गठिया में किसी भी तरह की दवा या फिजियोथेरेपी का असर नहीं होता है।

गठिया के लिए फिजियोथेरेपी

गठिया में प्रभावित जोड़ों को, फिजियोथेरेपी के अनुसार, व्यायाम करना शामिल है जो जॉइंट्स के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी आपके जोड़ को ठीक करने के लिए प्राकृतिक तरीकों में से एक है और इसे शुरुआती चरणों में ही शुरू करने की सलाह दी जाती है। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी सबसे आम घुटने में गठिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जब गठिया से पीठ और गर्दन में दर्द होता है।

गठिया के लिए जोखिम कारक क्या हैं:

  • पारिवारिक इतिहास – पर्यावरणीय कारकों के कारण गठिया जेनेटिक या वंशानुगत भी हो सकता है जो किसी के संपर्क में है।
  • आयु – गठिया दर्द और गठिया लक्षण उम्र के साथ बढ़ते हुए देखे जाते हैं।
  • पहले जोड़ों की चोट – एक जोड़े में चोट के साथ, शायद एक खेल के कारण, उस जोड़े में गठिया विकसित होने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए: बास्केट बॉल, लंबी कूद, आदि के दौरान जमीन पर खराब लैंडिंग के कारण घुटने में गठिया सबसे आम है।
  • मोटापा – शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों पर तनाव डालता है जो गठिया के प्रमुख कारणों में से एक है। मोटापे के कारण गठिया घुटने का सबसे आम मामला है।

गठिया की जटिलताएँ :

जोड़ों में गठिया के गंभीर मामले जैसे कलाई, उंगलियां, आदि गठिया के दर्द के कारण दैनिक कार्यों को करने में परेशानी का कारण हो सकते हैं। इसी तरह, घुटनों या कूल्हों, टखनों आदि में गठिया होने से आराम से चलने या बैठने में असुविधा हो सकती है। इस प्रकार, गठिया के लक्षण का पता चलते ही समस्या पर ध्यान देना बेहद जरूरी है और गठिया के लिए गठिया पुनर्वास या फिजियोथेरेपी शुरू करनी चाहिए ।

गठिया के साथ मदद करने के लिए जीवन शैली परिवर्तन

गठिया घुटने का दर्द सबसे आम है और एक स्वस्थ वजन बनाए रखने से गठिया के प्रभाव को कम किया जा सकता है, अगर एक जॉइंट पहले से ही प्रभावित हो गया हो। एक स्वस्थ आहार भी गठिया के लक्षणों को नियंत्रित करने में योगदान देता है, चाहे वह गठिया पीठ दर्द, गठिया गर्दन का दर्द या जोड़ों की सूजन हो। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी जोड़ों के उपचार का सबसे अच्छा तरीका है। गठिया के लिए भौतिक चिकित्सा केवल फिजियोथेरेपी तक सीमित नहीं है, बल्कि तैराकी जैसे अन्य व्यायामों तक भी फैली हुई है जो जोड़ों पर दबाव डाले बिना व्यायाम का एक शानदार रूप है।

बैठने और काम करते समय शरीर के स्थिर या खराब मुद्रा में होने के कारण भी गठिया हो सकता है। घर या कार्यालय में सरल व्यायाम गठिया को रोकने में मदद कर सकते हैं। कुछ सरल व्यायामों में शामिल हैं:

  • गर्दन की राहत के लिए – सिर झुका हुआ, गर्दन घुमाना।
  • डेस्क जॉब वाले लोगों के लिए – उन जोड़ों में तनाव को कम करने के लिए उंगली और अंगूठे का मोड़ और कलाई का घूमना
  • लेग रिलीफ के लिए- हैमस्ट्रिंग स्ट्रेच, लेग रेज और अन्य लेग स्ट्रेच। घुटने के गठिया के लक्षणों को विकसित होने वालों के लिए ये महत्वपूर्ण स्ट्रेच हैं।
  • उपचार --- विरेचन करें, एरंड तेल गुनगुने पानी से लें, अभ्यंगम करें, निर्गुन्डी तेल, पिंड तेल, सुकुमार तेल, गुडुची तेल, अदरक का पेस्ट लगाएं, शुंठी का पानी पिएं, लहसुन शहद के साथ लें, लहसुन का पेस्ट लगाएं, गुडुची चूर्ण खाएं, गुडुची काढ़ा पिएं। 
  • चूर्ण- नवकार्षिक चूर्ण, निम्बादि चूर्ण, चोबचीनी चूर्ण, गेहूं का चूर्ण, बकरी के दूध में मिलाकर लगाएं, दशमूल साधित छीर खाली पेट लें, हरीतिकी गुड़ के साथ लें, अपामार्ग का पौधा, गौ मूत्र में मिला लेप बना कर लगाएं, वरुण और शिग्रु के पेस्ट का लेप लगाएं, गुडुची, वासा, एरंड तेल का काढ़ा पिएं, लहसुन, लौंग,सौंफ, शुंठी का काढ़ा पिएं।पंचकर्मा

    वस्ति, विरेचन, अभ्यंगम, स्वेदन, लेप


Wednesday 26 December 2018

आमवात ( Rheumatoid ) – कारण और आयुर्वेद औषध व्यवस्था

आयुर्वेद में बहुत सी वात व्याधियों का वर्णन है | इनमे से एक आमवात  है जिसे हम गठिया रोग भी कह सकते है | आमवात में पुरे शरीर की संधियों में तीव्र पीड़ा होती है साथ ही संधियों में सुजन भी रहती है | आमवात होने का प्रमुख कारण है हमारे शरीर मे दूषित वायु का बढ़ जाना हमारे  शरीर के सभी जोड़ो मे थोड़ा रिक्त स्थान होता है ओर हमारे शरीर मे उतपन्न दूषित वायु इन जोड़ो की रिक्त स्थान मे जमा हो जाती है ओर उसका परिणाम हम देखते है आमवात !   आमवात के रोगियो को सुबह सूर्योदय के पूर्व उठकर बासी मुह कम से कम 1 लीटर गुनगुना पानी बेठकर शिप शिप पीना चाहिए ! हमारी सुबह की लार के साथ गुनगुना पानी पीना आमवात के रोगियो के संजीवनी बूटी जेसा कार्य करता है क्यू की गुनगुना पानी पीने से छोटी आंत व बड़ी आंत से सफाई होते हुए अद्पच्चे अन्न से बने आम व मल पूरा साफ़ हो जाता है सुबह गुनगुना पानी पीने  का हमारे शरीर मे हुए बदलाव 7 दिन मे दिखने लगते है  

आमवात दो शब्दों से मिलकर बना है  – आम + वात |
आम अर्थात अद्पच्चा अन्न या एसिड और वात से तात्पर्य दूषित वायु | जब अद्पच्चे अन्न से बने आम के साथ दूषित वायु मिलती है तो ये संधियों में अपना आश्रय बना लेती है और आगे चल कर संधिशोथ व शुल्युक्त व्याधि का रूप ले लेती जिसे आयुर्वेद में आमवात और बोलचाल की भाषा में गठिया रोग कहते है | चरक संहिता में भी आमवात विकार की अवधारणा  का वर्णन मिलता है लेकिन आमवात रोग का विस्तृत वर्णन माधव निदान में मिलता है |
आमवात के कारण 
आयुर्वेद में विरुद्ध आहार को इसका मुख्य कारण माना है | मन्दाग्नि का मनुष्य जब स्वाद के विवश होकर स्निग्ध आहार का सेवन करता और तुरंत बाद व्यायाम कोई शारीरिक श्रम करता है तो उसे आमवात होने की सम्भावना हो जाती है | रुक्ष , शीतल विषम आहार – विहार, अपोष्ण संधियों में कोई चोट, अत्यधिक् व्यायाम, रात्रि जागरण , शोक , भय , चिंता , अधारणीय वेगो को धारण करने से आदि शारीरिक और मानसिक वातवरणजन्य कारणों के कारण आमवात होता है | 
आमवात के लिए कोई बाहरी कारण जिम्मेदार नहीं होता इसके लिए जिम्मेदार होता है हमारा खान-पान | विरुद्ध आहार के सेवन से शारीर में आम अर्थात यूरिक एसिड की अधिकता हो जाती है | साधारनतया हमारे शरीर में यूरिक एसिड बनता रहता है लेकिन वो मूत्र के साथ बाहर भी निकलता रहता है | जब अहितकर आहार और अनियमित दिन्चरिया के कारन यह शरीर से बाहर नहीं निकलता तो शरीर में इक्कठा होते रहता है और एक मात्रा से अधिक इक्कठा होने के बाद यह संधियों में पीड़ा देना शुरू कर देता है क्योकि यूरिक एसिड मुख्यतया संधियों में ही बनता है और इक्कठा होता है | इसलिए बढ़ा हुआ यूरिक एसिड ही आमवात का कारन बनता है |

वातहर योग ( हर्बल उकाला ) को 3 महिना सेवन करने से 100 % परिणाम प्राप्त हुए है आप चाहे तो मो - 84607 83401 पर कॉल करके मंगा सकते है इसकी कीमत 1  माह की 750 /- रुपए व 3 माह 1850 /- है   
आमवात के संप्राप्ति घटक 
दोष – वात और कफ प्रधान / आमदोष |
दूषित होने वाले अवयव – रस , रक्त, मांस, स्नायु और  अस्थियो में संधि |
अधिष्ठान – संधि प्रदेश / अस्थियो की संधि |
रोग के पूर्वप्रभाव – अग्निमंध्य, आलस्य , अंग्म्रद, हृदय भारीपन, शाखाओ में स्थिलता |
आचार्य माधवकर ने आमवात को चार भागो में विभक्त किया है 
1. वातप्रधान आमवात 
2. पितप्रधान आमवात 
3. कफप्रधान आमवात  
4. सन्निपताज आमवात 

आमवात में औषध प्रयोग 

आमवात में मुख्यतया संतुलित आहार -विहार का ध्यान रखे और यूरिक एसिड को बढ़ाने वाले भोजन का त्याग करे | अधिक से अधिक पानी पिए ताकि शरीर में बने हुए विजातीय तत्व मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलते रहे | संतुलित और सुपाच्य आहार के साथ विटामिन इ ,सी और भरपूर प्रोटीन युक्त भोजन को ग्रहण करे | अधिक वसा युक्त और तली हुई चीजो से परहेज रखे | 
इसके अलावा आप निम्न सारणी से देख सकते है आमवात की औषध व्यवस्था 

क्वाथ प्रयोग – रस्नासप्तक , रास्नापंचक , दशमूल क्वाथ, पुनर्नवा कषाय आदि |
स्वरस – निर्गुन्डी, पुनर्नवा , रास्ना आदि का स्वरस |
चूर्ण प्रयोग – अज्मोदादी चूर्ण, पंचकोल चूर्ण, शतपुष्पदी चूर्ण , चतुर्बिज चूर्ण |
वटी प्रयोग – संजीवनी वटी , रसोंनवटी, आम्वातादी वटी , चित्रकादी वटी , अग्नितुण्डी वटी आदि |
गुगुल्ल प्रयोग – सिंहनाद गुगुल्लू , योगराज गुगुल , कैशोर गुगुल , त्र्योंग्दशांग गुगुल्ल आदि |
भस्म प्रयोग – गोदंती भस्म, वंग भस्म आदि |
रस प्रयोग – महावातविध्वंसन रस, मल्लासिंदुर रस , समिर्पन्न्ग रस, वात्गुन्जकुश |
लौह – विदंगादी लौह, नवायस लौह , शिलाजीतत्वादी लौह, त्रिफलादी लौह |
अरिष्ट / आसव – पुनर्नवा आसव , अम्रितारिष्ट , दशमूलारिष्ट आदि |
तेल / घृत ( स्थानिक प्रयोग ) – एरंडस्नेह, सैन्धाव्स्नेह, प्रसारिणी तेल, सुष्ठी घृत आदि का स्थानिक प्रयोग 
स्वेदन – पत्रपिंड स्वेद, निर्गुन्द्यादी पत्र वाष्प |
सेक – निर्गुन्डी , हरिद्रा और एरंडपत्र से पोटली बना कर सेक करे | 
इसके अतिरिक्त हमे प्राचीन शास्त्रो से प्राप्त एक नुस्खा वातहर योग  द्वारा बहुत से मरीजो पर अपनाए जिसमे काफी अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ है !  
वातहर योग( हर्बल उकाला ) को 3 महिना सेवन करने से 100 % परिणाम प्राप्त हुए है आप चाहे तो मो - 84607 83401 पर कॉल करके मंगा सकते है इसकी कीमत 1  माह की 750 /- रुपए व 3 माह 1850 /- है   

Friday 8 December 2017

ऑस्टियोपोरोसिस ( अस्थिसुषिरता ) रोग और इसे से जुड़े आहार,परहेज और घरेलु इलाज

ऑस्टियोपोरोसिस  ( Osteoporosis ) – कमजोर हड्डियाँ: घरेलु उपचार, इलाज़ और परहेज 
अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस   ( Osteoporosis ) में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द “ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना” में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। 
ऑस्टियोपोरोसिस ( Osteoporosis ) को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं।  दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है

लेने योग्य आहार कैल्शियम हड्डियों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने वाला प्रमुख पोषक तत्व है। कैल्शियम के उत्तम भोज्य स्रोतों में हैं ! 

डेरी: डेरी उत्पाद जैसे दूध, दही, पनीर कैल्शियम से समृद्ध होते हैं। 
भाजी और हरी सब्जियाँ: कई सब्जियाँ, विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियाँ, कैल्शियम का समृद्ध स्रोत हैं। शलजम की सब्जी, सरसों का साग, कोलार्ड की सब्जी, केल, रोमैन लेट्यूस, अजमोदा, ब्रोकोली, धनिया, पत्तागोभी, समर स्क्वाश, हरी फलियाँ, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, अस्पार्गस, और क्रिमिनी मशरुम का सेवन करें।
औषधीय वनस्पतियाँ और मसाले: कैल्शियम के हलके किन्तु स्वादिष्ट प्रभाव के लिए, अपने भोजन में तुलसी, पुदीना, सौंफ के बीज, दालचीनी, पेपरमिंट की पत्तियों, लहसुन, अजवाइन, रोजमेरी, और अजमोदा का प्रयोग करें।
अन्य आहार: कैल्शियम के अन्य बढ़िया स्रोतों में मछली, संतरे, बादाम, तिल होते हैं। साथ ही कैल्शियम की शक्ति से युक्त आहारों जैसे दलिया और संतरे के रस को ना भूलें।  विटामिन डी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में सहायता करता है। विटामिन डी की सर्वाधिक मात्रा सूर्य के प्रकाश से और अन्य भोज्य स्रोतों जिनमें वसायुक्त मछली, लीवर, अंडे, शक्तियुक्त आहारों जैसे कम वसा युक्त दूध आदि हैं, से प्राप्त होती है।  
रिसर्च के अनुसार अपने आहार को नारियल के तेल के साथ मिलाकर खाने से एस्ट्रोजेन की कमी से होने वाली हड्डियों के नुकसान को रोका जा सकता है। नारियल के तेल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हड्डियों के ढांचें को नियंत्रित करके रखते हैं और हॉर्मोन्स में आने वाले बदलाव की वजह से हड्डियों को पहुंचने वाले नुकसान से भी बचाता है। इसके साथ ही ये तेल शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम को अवशोषित करने में मदद करता है। ये दो आवश्यक पोषण तत्व हड्डियों की मजबूती को बढ़ाने को नियंत्रित रखने में बेहद ज़रूरी हैं। 

नारियल के तेल का इस्तेमाल दो तरीकों से करें

पहला तरीका= रोज़ाना तीन चम्मच नारियल के तेल का सेवन करें इससे ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद मिलती है।
दूसरा तरीका= इसके अलावा आप पूरे शरीर पर कुछ मिनट तक नारियल के तेल से मसाज कर सकते हैं। फिर गर्म पानी से नहाएं। इस तरह आप रोज़ाना ये प्रक्रिया करें। इस तरह करने से आपकी हड्डियों पर बेहद अच्छा प्रभाव पड़ेगा।इसके साथ ही खाना बनाने के लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल करें।
 परहेज करें- प्रोसेस्ड मीट, जैसे कि टर्की और सूअर का गोश्त, तथा हॉट डॉग। फ़ास्ट फ़ूड, जैसे कि पिज़्ज़ा, बर्गर, टेकोस और फ्राइज।प्रोसेस्ड आहार, जिनमें शीतगृह में रखे सामान्य और कम कैलोरी वाले भोज्य पदार्थ आते हैं।कैन में बंद सामान्य सूप और सब्जियाँ तथा उनके रस।  भुने उत्पाद, जिनमें ब्रेड और नाश्ते के विभिन्न दलिए आते हैं।

 योग और व्यायाम- वृद्धजनों में हड्डी के घनत्व को बचाए रखने में व्यायाम प्रमुख भूमिका निभाता है। आपको फ्रैक्चर होने की संभावना को कम करने हेतु सुझाए गए व्यायामों में हैं 

भार वहन करने वाले व्यायाम — पैदल चलना, दौड़ना, टेनिस खेलना, नृत्य करना।
खुले उठाए जाने वाले वजन, वजन की मशीनें, स्ट्रेच बैंड
संतुलन साधने वाले व्यायाम– ताई ची, योग पतवारनुमा मशीनें जिनमें गिरने का खतरा हो ऐसे व्यायाम ना करें। साथ ही, उच्च-दबाव डालने वाले व्यायाम जो वृद्धजनों में फ्रैक्चर कर सकते हों, उन्हें ना करें।

Osteoporosis के घरेलू उपाय (उपचार)

चलने हेतु सहायता का प्रयोग करें। यदि आप अस्थिर होते हैं, तो लकड़ी या वॉकर का प्रयोग करें।  ( Osteoporosis )
स्नानगृह में पकड़ने हेतु खम्भा लगवाएँ और हाथ धोने के स्थान तथा टब के पास ऐसा पैरपोश लगवाएँ जो फिसलता ना हो। भारी वस्तुओं को उठाते या ले जाते समय सहायता लें।, मजबूत जूते पहनें खासकर ठण्ड या बारिश के दौरान 
ये निश्चित करें कि आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी है।  शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और सप्ताह के अधिकतर दिनों में वजन-वहन करने वाले व्यायाम करें, जैसे पैदल चलना आदि . 

Thursday 21 September 2017

गठिया रोग ...

संधि शोथ यानि "जोड़ों में दर्द" (: Arthritis / आर्थ्राइटिस) के रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं।
संधिशोथ सौ से भी अधिक प्रकार के होते हैं। 
अस्थिसंधिशोथ (osteoarthritis) इनमें सबसे व्यापक है। अन्य प्रकार के संधिशोथ हैं - आमवातिक संधिशोथ या 'रुमेटी संधिशोथ' (rheumatoid arthritis), सोरियासिस संधिशोथ (psoriatic arthritis)।
संधिशोथ में रोगी को आक्रांत संधि में असह्य पीड़ा होती है, नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है, ज्वर होता है, वेगानुसार संधिशूल में भी परिवर्तन होता रहता है। इसकी उग्रावस्था में रोगी एक ही आसन पर स्थित रहता है, स्थानपरिवर्तन तथा आक्रांत भाग को छूने में भी बहुत कष्ट का अनुभव होता है। यदि सामयिक उपचार न हुआ, तो रोगी खंज-लुंज होकर रह जाता है। संधिशोथ प्राय: उन व्यक्तियों में अधिक होता है जिनमें रोगरोधी क्षमता बहुत कम होती है। स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से यह रोग आक्रांत करता है।
संधिशोथ के कारणों को दूर करने तथा संधि की स्थानीय अवस्था ठीक करने के लिए चिकित्सा की जाती है। इनके अतिरिक्त रोगी के लिए पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम, पौष्टिक आहार का सेवन, धूप सेवन, हलकी मालिश तथा भौतिक चिकित्सा करना अत्यंत आवश्यक है।
  • संधि शोथ (आर्थराइटिस) की बीमारी की विवेकपूर्ण प्रबंधन और प्रभावी उपचार से अच्छी तरह जीवन-यापन किया जा सकता है।
  • संधि शोथ (आर्थराइटिस) बीमारी के विषय में जानकारी रखकर और उसके प्रबंधन से विकृति तथा अन्य जटिलताओं से निपटा जा सकता है।
  • रक्त परीक्षण और एक्स-रे की सहायता से संधि शोथ (आर्थराइटिस) की देखरेख की जा सकती है।
  • डॉक्टर के परामर्श के अनुसार दवाइयां नियमित रूप से लें।
  • शारीरिक वजन पर नियंत्रण रखें।
  • स्वास्थ्यप्रद भोजन करें।
  • डॉक्टर द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार नियमित व्यायाम करें।
  • नियमित व्यायाम करें तथा तनाव मुक्त रहने की तकनीक अपनाएं, समुचित विश्राम करें, अपने कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करके तनाव से मुक्त रहें।
  • औषधियों के प्रयोग में अनुपूरक रूप में योग तथा अन्य वैकल्पिक रोग के उपचारों को वैज्ञानिक तरीके से लिपिबद्ध किया गया है।पैरों की हड्डीओं को सही संरेखण (एलाइनमेंट) में रखने के लिए और उन पर पड़ने वाले वजन को कम करने के लिए मजबूत मांसपेशियों की आवश्य्कता होती है। मजबूत मांसपेशियां व्यायाम के द्वारा बनाई जा सकती है। सप्ताह में कम से कम ३ बार व्यायाम जरूरी है। पैरों की हड्डीओं को सही संरेखण (एलाइनमेंट) में रखने के लिए और उन पर पड़ने वाले वजन को कम करने के लिए मजबूत मांसपेशियों की आवश्य्कता होती है। मजबूत मांसपेशियां व्यायाम के द्वारा बनाई जा सकती है। सप्ताह में कम से कम ३ बार व्यायाम जरूरी है। 
  • अर्थराइटिस ‘गठिया’ क्या है एवं कितने प्रकार की होती है?

    किसी भी जोड में सूजन, दर्द व जकडन को अर्थराइटिस गठिया कहा जाता है। अर्थराइटिस सामान्यतय: दो प्रकार की होती है। प्रथम ओस्टिायोअर्थराइटिस जिसमें बढती उम्र के साथ या किसी चोट के कारण एवं अत्यधिक दुरू पयोग से जोडों में अन्दर की मांसपेशियां का टूटना व मुलायम गद्दी की घिसावट का होनें के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और जकडऩ का होना।
    दूसरा रूहमेटिज्म बाय जिसमें 200 से अधिक विभिन्न प्रकार की गम्भीर ऑटोइम्यून बीमारियां होती है जिनसे जोड़ो में टेडापन होने व आन्तरिक अंगो पर दुष्प्रभाव पडऩें की सम्भवना होती है। विभिन्न महत्वपूर्ण आन्तरिक अंग जिन पे रू हमेटिज्म का दुष्प्रभाव पड़ सकता है वह है: हृदय, फेफडें, आंख, गुर्दा, चर्म आदि। सामान्यत: समाज में गठिया बाय रू हमेटोइड अर्थराइटिस सबसे व्यापक रू हमेटिज्म बीमारी है। 
    रूहमेटिज्म रोग से कौन-कौन प्रभावित हो सकते है? 
    बाय या रू हमेटिज्म आमतौर पर मध्यम आयु वर्ग, युवा व बच्चों का प्रभावित करती है। यद्यपि पुरू षों की तुलना में स्त्रियों में तीन गुना ज्यादा होने की सम्भावना होती है। बच्चों के रू हमेटिज्म को जुवेनाइल अर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। ओस्टियोअर्थराइटिस से बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते है। घुटनें एवं कुल्हे के जोडों पर इसका ज्यादा प्रभाव पडता है। 
    ऑटोइम्यून बीमारी का क्या मतलब है? 
    ऑटोइम्यून बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम प्रतिरोधक क्षमता, शरीर के अंगों के प्रति असंतुलित एवं आक्रामक हो जाता है जिससे शरीर के जोड, मांसपेशियां, हड्डी व महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। 
    अर्थराइटिस होने के क्या क्या कारण हो सकते है? 
    घुटनें का दर्द या ओस्टयोअर्थराइटिस होने के सबसे बडें कारण- बढ़ती उम्र, बढता वजन मोटापा व जोड़ों का चोटिल होना। आनुवांशिकता, पर्यावरण प्रदुषण व धुम्रपान रू मेटिज्म बाय बीमारी के होने के सबसे बड़े कारण हो सकते है। 
    प्रमुख रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के लक्षण एवं नाम क्या है? 
    रूहमेटॉइड अर्थराइटिस हाथ व पैरों के छोटे जोडों की गठिया, एन्काइलॉजिंग स्पोन्डिलाइटिस कमर की गठिया, एस.एल.ई. लूपस, सोरियेटिक अर्थराइटिस चर्म रोग सोरियसिस के कारण गठिया, गॉउट यूरिक एसिड के कारण गठिया, स्क्लेरोडरमा चमडी का केडापन, ठंड में अगुंलियों का सफेद व नीला होना, वेस्कुलाइटिस धमनियों में खून का रिसाव रू कना व गेंगरीन इत्यादि। 
    रूहमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण क्या होते है? 
    सुबह 30 मिनट से ज्यादा समय की जोड़ों में जकडऩ, एक से ज्यादा जोड़ों में सूजन रहना, खासतौर पर हाथों के जोड़, जोड़ों को दबाने पर जोड़ों में दर्द महसूस होना आदि रू हमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण हो सकते है। 
    रूहमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ कौन होते है? 
    जिस तरह से कैसर के लिए कैसर रोग विषेषज्ञ होते है, हृदय रोग के लिए हृदय रोग विषेषज्ञ होते है वैसे ही गम्भीर रू हमेटिज्म बीमारियों को प्रारम्भिक स्तर पर ही पहचान कर उपर्युक्त उपचार प्रदान कर बीमारी को जल्द से जल्द नियंत्रण के लिए रू हमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ विशे शिक्षित चिकित्सक होते है। समय पर एवं उपर्युक्त इलाज ना होने पर जोड़ों के विकृति होने की सम्भवना बढ़ जाती है। 
    क्या रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के उपचार सम्भव है? 
    समाज में यह भ्रम देखा गया है कि गठिया बाय का कोइ उपचार नहीं है, जबकि यह गलत है। इलाज के लिए बीमारी रोकने के ताकत रखने वाली दवाईया उपलब्ध है। जिन्हें डिजिज मोडिफाइंग एन्टिरू हमेटिक डंग्स कहा जाता है। इन बीमारियों अर्थराइटिस ‘गठिया’ क्या है एवं कितने प्रकार की होती है? 
    जोड में सूजन, दर्द व जकडन को अर्थराइटिस गठिया कहा जाता है। अर्थराइटिस सामान्यतय: दो प्रकार की होती है। प्रथम ओस्टिायोअर्थराइटिस जिसमें बढती उम्र के साथ या किसी चोट के कारण एवं अत्यधिक दुरू पयोग से जोडों में अन्दर की मांसपेशियां का टूटना व मुलायम गद्दी की घिसावट का होनें के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और जकडऩ का होना।
    दूसरा रूहमेटिज्म बाय जिसमें 200 से अधिक विभिन्न प्रकार की गम्भीर ऑटोइम्यून बीमारियां होती है जिनसे जोड़ो में टेडापन होने व आन्तरिक अंगो पर दुष्प्रभाव पडऩें की सम्भवना होती है। विभिन्न महत्वपूर्ण आन्तरिक अंग जिन पे रू हमेटिज्म का दुष्प्रभाव पड़ सकता है वह है: हृदय, फेफडें, आंख, गुर्दा, चर्म आदि। सामान्यत: समाज में गठिया बाय रू हमेटोइड अर्थराइटिस सबसे व्यापक रू हमेटिज्म बीमारी है। 
    रूहमेटिज्म रोग से कौन-कौन प्रभावित हो सकते है? 
    बाय या रूहमेटिज्म आमतौर पर मध्यम आयु वर्ग, युवा व बच्चों का प्रभावित करती है। यद्यपि पुरू षों की तुलना में स्त्रियों में तीन गुना ज्यादा होने की सम्भावना होती है। बच्चों के रू हमेटिज्म को जुवेनाइल अर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है। ओस्टियोअर्थराइटिस से बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते है। घुटनें एवं कुल्हे के जोडों पर इसका ज्यादा प्रभाव पडता है। 
    ऑटोइम्यून बीमारी का क्या मतलब है? 
    ऑटोइम्यून बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम प्रतिरोधक क्षमता, शरीर के अंगों के प्रति असंतुलित एवं आक्रामक हो जाता है जिससे शरीर के जोड, मांसपेशियां, हड्डी व महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। 
    अर्थराइटिस होने के क्या क्या कारण हो सकते है? 
    घुटनें का दर्द या ओस्टयोअर्थराइटिस होने के सबसे बडें कारण- बढ़ती उम्र, बढता वजन मोटापा व जोड़ों का चोटिल होना। आनुवांशिकता, पर्यावरण प्रदुषण व धुम्रपान रू मेटिज्म बाय बीमारी के होने के सबसे बड़े कारण हो सकते है। 
    प्रमुख रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के लक्षण एवं नाम क्या है? 
    रू हमेटॉइड अर्थराइटिस हाथ व पैरों के छोटे जोडों की गठिया, एन्काइलॉजिंग स्पोन्डिलाइटिस कमर की गठिया, एस.एल.ई. लूपस, सोरियेटिक अर्थराइटिस चर्म रोग सोरियसिस के कारण गठिया, गॉउट यूरिक एसिड के कारण गठिया, स्क्लेरोडरमा चमडी का केडापन, ठंड में अगुंलियों का सफेद व नीला होना, वेस्कुलाइटिस धमनियों में खून का रिसाव रू कना व गेंगरीन इत्यादि। 
    रूहमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण क्या होते है? 
    सुबह 30 मिनट से ज्यादा समय की जोड़ों में जकडऩ, एक से ज्यादा जोड़ों में सूजन रहना, खासतौर पर हाथों के जोड़, जोड़ों को दबाने पर जोड़ों में दर्द महसूस होना आदि रू हमेटोइड अर्थराइटिस गठिया बाय के प्रारम्भिक लक्षण हो सकते है। 
    रूहमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ कौन होते है? 
    जिस तरह से कैसर के लिए कैसर रोग विषेषज्ञ होते है, हृदय रोग के लिए हृदय रोग विषेषज्ञ होते है वैसे ही गम्भीर रू हमेटिज्म बीमारियों को प्रारम्भिक स्तर पर ही पहचान कर उपर्युक्त उपचार प्रदान कर बीमारी को जल्द से जल्द नियंत्रण के लिए रू हमेटोलॉजिस्ट गठिया रोग विशेषज्ञ विशे शिक्षित चिकित्सक होते है। समय पर एवं उपर्युक्त इलाज ना होने पर जोड़ों के विकृति होने की सम्भवना बढ़ जाती है। 
    क्या रूहमेटिज्म बाय बीमारियों के उपचार सम्भव है? 
    समाज में यह भ्रम देखा गया है कि गठिया बाय का कोइ उपचार नहीं है, जबकि यह गलत है। इलाज के लिए बीमारी रोकने के ताकत रखने वाली दवाईया उपलब्ध है। जिन्हें डिजिज मोडिफाइंग एन्टिरू हमेटिक ड्रग्स कहा जाता है। इन बीमारियों को दवाईयों के माध्यम से ही प्रारम्भिक स्तर पर ही नियंत्रण किया जा सकता है।
     

Tuesday 5 September 2017

वात रोग – आयुर्वेद

आयुर्वेदिक ग्रन्थों के अनुसार वात 80 प्रकार का होता है एवं इसी से सामंजस्य रखता हुआ एक और रोग है जिसे बाय या वायु कहते हैं। यह 84 प्रकार का होता है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि जब वात एवं वायु के इतने प्रकार हैं, तो, यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात रोग है या बाय एवं यह किस प्रकार का है ? यह कठिन समस्या है और यही कारण है कि इस रोग की उपयुक्त चिकित्सा नहीं हो पाती है, जिससे इस रोग से पीड़ित 50 प्रतिशत व्यक्ति सदैव परेशान रहते हैं। उन्हें कुछ दिन के लिए इस रोग में राहत तो जरूर मिलती है, परन्तु पूर्णतया सही नहीं हो पाता है। इस रोग की चिकित्सा एलोपैथी के माध्यम से पूर्णतया सम्भव नहीं है, जबकि आयुर्वेद के माध्यम से इसे आज कल 90 प्रतिशत तक जरूर सही किया जा सकता है,
वात रोग लक्षण एवं परेशानी- इस रोग के कारण शरीर के सभी छोटे-बडे़ जोडो़ं व मांसपेशियों में दर्द व सूजन हो जाती है। गठिया में शरीर के एकाध जोड़ में प्रचण्ड पीड़ा के साथ लालिमायुक्त सूजन एवं बुखार तक आ जाता है। यह रोग शराब व मांस प्रेमियों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा जल्दी पकड़ता है। यह धीरे-धीरे शरीर के सभी जोड़ों तक पहुँचता है। संधिवात उम्र बढ़ने के साथ मुख्यतः घुटनों एवं पैरों के मुख्य जोड़ों को क्रमशः अपनी गिरफ्त में लेता हैं।
वात रोग की शुरूआत धीरे-धीरे होती है। शुरू में सुबह उठने पर हाथ पैरों के जोडा़ें में कड़ापन महसूस होता है और अंगुलियाँ चलाने में परेशानी होती है। फिर इनमें सूजन व दर्द होने लगता है और अंग-अंग दर्द से ऐंठने लगता है जिससे शरीर में थकावट व कमजोरी महसूस होती है। साथ ही रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है। इस रोग की वजह सेे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम पड़ जाती है। इसी के साथ छाती में इन्फेक्शन, खांसी, बुखार तथा अन्य समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। साथ ही चलना फिरना रुक जाता है।
इन सबसे खतरनाक कुलंग वात होता है। यह रोग कुल्हे, जंघा प्रदेश एवं समस्त कमर को पकड़ता है एवं रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। इस रोग में तीव्र चिलकन (फाटन) जैसा तीव्र दर्द होता है और रोगी बेचैन हो जाता है, यहाँ तक कि इसमें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यह रोग की सबसे खतरनाक स्टेज होती हैै। इस का रोगी दिन-रात दर्द से तड़पता रहता है और कुछ समय पश्चात् चलने-फिरने के काबिल भी नहीं रह जाता है। वह पूर्णतया बिस्तर पकड़ लेता है और चिड़चिड़ा हो जाता है।
लक्षण --- हाइपरयूरीसेमिया, वात रोग का मूल कारण होता है। यह कई कारणों से हो सकता है, जिनमें आहार, आनुवंशिक गड़बड़ी, या यूरेट, यूरिक एसिड के लवणों का कम उत्सर्जन शामिल हैं। लगभग 90% मामलों में हाइपरयूरीसेमिया का मुख्य कारण गुर्दों में यूरिक एसिड का कम उत्सर्जन होता है, जब कि ज़रुरत से अधिक उत्पादन 10% के कम मामलों में कारण होता है। हाइपरयूरीसेमिया वाले लगभग 10% लोगों में उनके जीवन काल में किसी न किसी बिंदु पर वात रोग विकसित हो जाता है। लेकिन, हाइपरयूरीसेमिया के स्तर के आधार पर, जोखिम अलग-अलग हो सकता है। जब स्तर 415 और 530 माइक्रोमोल/लीटर (7 और 8.9 मिलीग्राम/डेसीलीटर) के बीच हों, तो जोखिम 0.5% प्रति वर्ष होता है, जब कि 535 माइक्रोमोल/लीटर (9 मिलीग्राम/डेसीलीटर) से ऊपर के स्तरों वाले लोगों में यह जोखिम 4.5% प्रति वर्ष होता है

जीवन शैली---- लगभग 12% वात रोग का कारण आहार से संबंधित होता है और इसमें अल्कोहल, फ्रक्टोज-से मीठे किये गये पेय, मीट और समुद्री भोजन के उपभोग के साथ मज़बूत संबंध होता है। अन्य ट्रिगरों में शारीरिक बड़ी चोट और सर्जरी शामिल हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि आहार से संबंधित कारक जिन्हें कभी संबंधित समझा जाता था, वास्तव में संबंधित नहीं हैं, जिनमें प्यूरीन-से भरपूर सब्जियों (जैसे, सेम, मटर, मसूर और पालक) और कुल प्रोटीन का सेवन शामिल है। कॉफी, विटामिन Cऔर डेयरी उत्पादों का सेवन और साथ ही शारीरिक तंदरुस्ती, जोखिम को कम करते प्रतीत होते हैं। माना जाता है कि यह आंशिक रूप से इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने में उनके प्रभाव के कारण है !

वात रोग प्यूरीन चयापचय का एक विकार है, और उस समय होता है जब इसका अंतिम मेटाबोलाइट, यूरिक एसिड, मोनोसोडियम यूरेट के रूप में क्रिस्टलीकृत हो कर जोड़ों में, स्नायुओं पर और आसपास के ऊतकों में नीचे बैठ जाता है। उसके बाद यह क्रिस्टल एक स्थानीय प्रतिरक्षा-कीमध्यस्थता वाली सूजन वाली प्रतिक्रिया शुरू करता है, जिसमें सूजन प्रवाह के मुख्य प्रोटीनों में से एक इंटरल्यूकिन 1β होता है। मनुष्यों में विकास के साथ-साथ यूरीकेस, जो कि यूरिक एसिड को तोड़ता है और प्राइमेट्स की कमी ने इस समस्या को आम बना दिया है।
इस बात को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है कि क्या चीज़ यूरिक एसिड का अवक्षेपण शुरू करती है। जब कि यह सामान्य स्तरों पर क्रिस्टलों में परिवर्तित हो सकता है, स्तरों के बढ़ने पर ऐसा होने की अधिक संभावना होती है। गठिया का एक तीव्र प्रकरण शुरू करने में महत्वपूर्ण माने जाते अन्य कारकों में ठंडे तापमान, यूरिक एसिड के स्तरों में तेजी से बदलाव, एसिडोसिस, जोड़ जलयोजन और बाह्य मैट्रिक्स प्रोटीन, जैसे कि प्रोटियोग्लाईकैन्स, कोलेजन औरचोन्ड्रोयटिन सल्फेट शामिल है। कम तापमानों पर क्रिस्टलों के अवक्षेपण की बढ़ी हुई क्रिया आंशिक रूप से इस बात की व्याख्या करती है कि पैरों के जोड़ सबसे अधिक क्यों प्रभावित होते हैं। यूरिक एसिड में तेजी से बदलाव, कई कारणों से हो सकते हैं जिनमे आघात, शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी, मूत्रवर्धक दवाइयां और एलोप्यूरिनॉल को रोकना या शुरू करना शामिल हैं।उच्च रक्तचाप के लिए अन्य दवाओं की तुलना में कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स और लोसार्टन को वात रोग के कम जोखिम के साथ जोड़ा जाता है !

Saturday 2 September 2017

टांगो में सूजन और दर्द

टांगों में सूजन और दर्द, हो सकते हैं इस खतरनाक बीमारी के संकेत
डीवीटी यानी डीप वेन थ्रॉम्बोसिस एक खतरनाक बीमारी है।
इसमें टांगों में ब्लड क्लॉट हो सकता है।
उपचार ना होने पर यह बीमारी घातक भी साबित हो सकती है।
डीवीटी यानी डीप वेन थ्रॉम्बोसिस। यह ब्लड क्लॉट होता है, जो शरीर की नसों की गहराई में बन जाता है। ब्लड क्लॉट तब होता है जब खून गाढ़ा हो जाता है। ज़्यादातर ब्लड क्लॉट्स टांग के निचले हिस्से या जांघ पर होते हैं। शरीर की नसों में मौजूद ब्लड क्लॉट्स जब ब्लडस्ट्रीम में फैलते हैं, तो इनके फटने का भी डर होता है और अगर ऐसा हो जाए, तो इस फटे हुए क्लॉट को एम्बोलस कहते हैं। यह फेफड़ों की आर्टरीज़ तक पहुंचकर खून का प्रवाह रोक सकता है।

इस स्थिति को पल्मनेरी एम्बोलिज़म या पीई कहते हैं। यह बेहद ही खतरनाक होती है। यह फेफड़ों और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है और मृत्यु का कारण भी बन सकती है। टांग के निचले हिस्से या शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले, जांघों में ब्लड क्लॉट्स के फटने का डर ज़्यादा होता है। ब्लड क्लॉट्स स्किन के पास मौजूद नसों में ज़्यादा होते हैं, लेकिन ये वाले ब्लड क्लॉट्स फटते नहीं हैं और इनसे पीई होने का खतरा भी नहीं होता।
शरीर की नसों में ब्लड क्लॉट्स या डीवीटी होने के कारण क्या हैं?

शरीर में ब्लड क्लॉट्स तभी होते हैं, जब नसों की अंदरूनी परत डैमेज हो जाती है। फिज़िकल, कैमिकल या बायोलॉजिकल फैक्टर्स के चलते नसों में गंभीर इंजरी हो सकती है, सूजन आ सकती है या इम्यूनिटी कम हो सकती है। सिर्फ यही नहीं, सर्जरी के कारण भी नसें प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में ब्लड क्लॉट्स होने के चांस बढ़ जाते हैं। सर्जरी के बाद खून का प्रवाह कम हो जाता है, क्योंकि मरीज़ कम चलता-फिरता है। अगर आप लंबे समय से बिस्तर पर हैं, बीमार हैं या यात्रा कर रहे हैं, तब भी ब्लड फ्लो कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में खून गाढ़ा हो जाता है। जीन्स या फैमिली हिस्ट्री के कारण भी कई बार ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क बढ़ जाता है। और-तो-और, हार्मोन थेरेपी या गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से भी क्लॉटिंग का रिस्क ज़्यादा हो जाता है।  

किन लोगों को डीवीटी का रिस्क होता है?

1- जिन लोगों की डीवीटी की हिस्ट्री रही हो।
2- जो लोग उस कंडीशन में हों, जिसमें ब्लड क्लॉट होने की संभावना ज़्यादा होती है।
3- प्रेग्नेंसी और जन्म देने के बाद के पहले 6 हफ्ते।
4- जो लोग कैंसर का ट्रीटमेंट ले रहे हों।
5- 60 साल से ऊपर के लोग
6- ओबेसिटी
7- स्मोकिंग

डीवीटी के लक्षण?

1- टांगों में सूजन या टांगों की नसों में सूजन
2- खड़े होने या चलने पर टांगों में दर्द या वीकनेस
3- टांग के उस हिस्से का गर्म हो जाना जिसमें सूजन या दर्द हो
4- टांग के प्रभावित हिस्से का लाल या कोई और रंग में बदल जाना
5- पल्मनेरी एम्बॉलिज़म

पीई के लक्षण?

1- सांस लेने में दिक्कत
2- गहरी सांस लेने से दर्द होना
3- खांसी करते वक्त खून निकलना
4- तेज़ी से सांस का चलना और दिल की धड़कनें भी तेज़ हो जाना

डीवीटी का ट्रीटमेंट?

डॉक्टर्स दवाओं और थेरेपीज़ के ज़रिए डीवीटी का इलाज करते हैं। इस उपचार में डॉक्टर का लक्ष्य होता है-

1- ब्लड क्लॉट को बड़ा होने से रोकना
2- ब्लड क्लॉट को फटने से रोकना, ताकि वो फेफड़ों तक ना पहुंच पाए
3- दूसरा ब्लड क्लॉट होने का चांस कम करना

इसके अलावा डॉक्टर्स खून को पतला करने की भी दवाई देते हैं। इसे रेगुलर लेनी होती है। इसका कोर्स लगभग 6 महीने का होता है। इस दवाई को लेने से खून पतला हो जाता है और ब्लड क्लॉट बड़ा नहीं होता। जो ब्लड क्लॉट बन चुका है, यह दवाई उसे ब्रेक नहीं कर सकती। ब्लड क्लॉट्स बॉडी में समय के साथ अब्ज़ॉर्ब  होते हैं। ब्लड थिनर्स को पिल की फॉर्म में ले सकते हैं, इंजेक्शन या फिर नस में एक ट्यूब डालकर भी लिया जा सकता है। लेकिन, ब्लड थिनर्स का साइड इफेक्ट है ब्लीडिंग। ब्लीडिंग तब होती है, जब दवाईयों के कारण खून ज़्यादा पतला हो जाता है। यह घातक भी हो सकता है। कई बार ब्लीडिंग अंदरूनी होती है। इसीलिए, डॉक्टर्स मरीज़ों का बार-बार ब्लड टेस्ट करवाते रहते हैं। इन टेस्ट्स में पता चल जाता है कि खून के जमने के कितने चांस हैं।