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Wednesday 9 December 2020

एसिडिटी आम्लपित्त )होने के कारण ओर उपचार - अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्

अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्

सर्वप्रथम् यह जानना आवश्यक है कि अम्ल पित्त है क्या है ? आयुर्वेद में कहा गया है- अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्। जब पित्त कुपित होकर अर्थात् विदग्ध होकर अम्ल के समान हो जाता है, तो उसे अम्ल पित्त रोग की संज्ञा दी जाती है। पित्त को अग्नि कहा जाता है।

त्रिदोषों में अति महत्वपूर्ण पित्त जब कुपित हो जाता है और अम्ल सा व्यवहार करने लगता है तो उसे अम्ल पित्त कहते है। पित्त का सम्बन्ध जठराग्नि से है। जठराग्नि के क्षीण हो जाने से पाचक रसो की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। पाचक रस भोजन को पूर्णत: पचाने में असमर्थ हो जाते है। भोजन पेट में ही पड़ा- पड़ा सड़ने लगता है। आमाशय की पाचन प्रणाली बार- बार क्रियाशील हो भोजन को पचाने का प्रयास करती है। बार- बार पाचक रसो एवं अम्ल को स्त्रावित करती है। जिससे शरीर में अम्ल की अधिकता हो जाती है। अम्ल शरीर में अन्य विभिन्न तकलीफों को उत्पन्न करता है। वही अपचा भोजन पड़े- पडे़ सड़ता है और आँतों द्वारा उसी रूप में रक्त में मिल जाता है। रक्त को दूषित कर सम्पूर्ण शरीर को भी दूषित करता है। अम्ल पित्त का यदि सम्यक उपचार ना किया जाए तो वह आगे चलकर नये रोगों को जन्म देता है। अम्ल पित्त मात्र एक रोग नहीं है। अपितु शरीर में उपस्थित अन्य रोगों का परिणाम है।

सामान्यत: अम्ल पित्त को पाचन तन्त्र का एक रोग माना जाता है। जिसका कारण खान-पान की अनियमितता माना जाता है, परन्तु अम्ल पित्त का मूल कारण मानसिक द्वन्द है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान रहते है। अपने प्रियजनों पर भी जिसे विश्वास ना हो, जो हर समय स्वयं को असुरक्षित समझे। वे ही मुख्यत: इस रोग से ग्रस्त माने जाते है। समय के साथ यदि अम्ल पित्त बढ़ जाये तो यह अल्सर में बदल जाता है। अम्ल अधिक बन जाने पर वह पाचन अंगों पर घाव बना देता है।

अम्ल पित्त रोग के कारण 

अम्ल पित्त रोग मुख्य रूप से मानसिक उलझनों और खान-पान की अनियमितता के कारण उत्पन्न रोग है जिसके प्रमुख लक्षण है-
  1. भोजन सम्बन्धी आदतें अम्ल पित्त रोग का एक प्रमुख कारण है। कुछ व्यक्तियों में अयुक्ताहार-विहार से यह रोग हो जाता है। जैसे- मछली और दूध को एक साथ मिलाकर खाने से यह रोग हो जाता है।
  2. इसके अतिरिक्त बासी और पित्त बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करने से भी अम्ल पित्त रोग होता है। डिब्बाबंद भोजन का अत्यधिक सेवन करना भी अम्ल पित्त रोग को दावत देता है।
  3. भोजन कर तुरन्त सो जाना या भोजन के तुरन्त बाद स्नान करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  4. अम्ल पित्त रोग भोजन के बाद अत्यधिक पानी पीने से भी होता है। ठूस-ठूस कर खाने से भी ये रोग हो जाता है। 
  5. यकृत की क्रियाशीलता में कमी होना भी इस रोग का प्रमुख कारण है। 
  6. यदि दूषित एवं खट्टे-मीठे पदार्थो का अधिक सेवन किया जाए तो भी यह रोग हो जाता है। 
  7. मल-मूत्र के वेग को रोककर रखना भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण है। 
  8. नशीली वस्तअुों का अत्यधिक सेवन करना भी इस रोग का एक कारण है। 
  9. इस रोग का एक कारण उदर की गर्मी को बढ़ाने वाले पदार्थो का अधिक सेवन करना है। 
  10. अत्यधिक अम्लीय पदार्थो का बार- बार सेवन करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  11. कई व्यक्ति अत्यधिक भोजन कर दिन में सो जाने की आदत होती है जिससे यह रोग हो जाता है। 
  12. दाँतों के रोगों के कारण भी अम्लपित्त रोग होने की सम्भावना रहती है। 
  13. भोजन के तुरन्त बाद खूब पानी पीना भी इस रोग की प्रमुख वजह है। 
  14. अम्ल पित्त रोग का ऋतु परिवर्तन और स्थान परिवर्तन से अति गहरा सम्बन्ध है। 
  15. अम्लता उत्पन्न करने वाली औषधियों के निरन्तर सेवन से भी यह रोग हाता है।

अम्ल पित्त रोग के लक्षण 

  1. अपचन एवं कब्ज का सदैव बना रहना इस रोग का एक प्रमुख लक्षण है। 
  2. इस रोग के रोगी की आँखें निस्तेज हो जाती है। 
  3. जीभ पर सदैव हल्की सफेद- मैली परत जमी रहती है। 
  4. त्वचा मटमैली एवं खुरदुरी हो जाती है। 
  5. भोजन ठीक से नहीं पचता और कभी-कभी उल्टी भी होती है। 
  6. यदि उल्टी के साथ हरे-पीले रंग का पित्त भी निकले तो यह अम्ल पित्त का प्रमुख लक्षण समझना चाहिए। 
  7. अम्ल पित्त के रोगी को कड़वी और खट्टी ड़कारे आती है। 
  8. गले और सीने में तीव्र जलन होती है। 
  9. जी का मचलना, मुँह में कसौलापन एवं उबकाईयाँ आती है। 
  10. ऐसा व्यक्ति सदैव बेचैन और घबराया हुआ रहता है। 
  11. उदर में भारीपन रहता है।  
  12. अम्ल पित्त के रोगियों का मल निष्कासन के समय गर्म रहता है। 
  13. कभी-कभी पतले दस्त भी होते है। 
  14. मूत्र का रंग लाल-पीलापन लिये हुए होता है। 
  15. रोग की तीव्र अवस्था में शरीर में छोटी- छोटी फुन्सियाँ हो जाती है जिन पर खुजली भी होती है। 
  16. कई बार व्यक्ति आँखों के आगे अन्धेरा छा जाने की भी शिकायत करता है। 
  17. सिर में भारीपन एवं दर्द बना रहता है। 
  18. शरीर में सुस्ती एवं थकान बनी रहती है। ऐसा व्यक्ति सदैव विचित्र एवं अनजाने भय से ग्रसित रहता है। 
  19. कई बार व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर में जलन होती है। रोगी हाथों, पैरों, आँखों और सिर पर जलन की शिकायत करता है। 
  20. अम्ल पित्त के कई रोगियों में रक्तस्त्राव भी हो जाता हैंं। 
  21. अम्ल पित्त रोग यदि लम्बे समय तक बना रहे तो बाल झड़ने और सफेद होने लगते है। 
  22. अम्ल पित्त रोग जीर्ण हो जाने पर गैस्ट्रिक एवं ड्यूडिनम अल्सर में बदल जाता है।

अम्ल पित्त रोग के दो प्रकार है-

  1. उध्र्वग अम्ल पित्त- जिस अम्ल पित्त में खट्टा, हरा, नीला, हल्का लाल, काला, चिपचिपा कड़वा वमन, ड़कार होता है तथा हृदय, गले तथा पेट में जलन और हाथ- पैरों में जलन होती है, उध्र्वग अम्ल पित्त कहलाता है।
  2. अधोग अम्ल पित्त-जिस अम्ल पित्त में गुदा से हरा, पीला, काला, माँस के धोवन के समान रक्तवर्ण अम्ल पित्त निकलता है तथा प्यास और जलन बनी रहती है, अधोग अम्ल पित्त कहलाता है। प्रत्येक रोग के समान ही अम्ल पित्त रोग को भी उसकी अवस्था के आधार पर प्रारम्भिक अम्ल पित्त, मध्यम अम्ल पित्त और तीव्र अम्ल पित्त में भी बाँटा जा सकता है।

अम्ल पित्त रोग की उपचार -

  1. सौंठ एवं गिलोय का समभाग चूर्ण शहद के साथ सेवन करना उपयोगी है। 
  2. मिश्री को त्रिफला एवं कुटकी के समभाग चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  3. हरड़, गुड़ और छोटी पीपल को समान मात्रा में मिलाकर उसकी गोली बना लें तथा सेवन करें। 
  4. भृंगराज एवं हरीतकी का समभाग चूर्ण गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  5. प्र्रतिदिन नाश्ते में एक पका केले को खाये, तत्पश्चात् दूध पी लें। इससे यह रोग दूर हो जाता है।
  6. 50 ग्राम मुनक्का और 25 ग्राम सौंफ को रात में पानी में भिगाकर रख दें। सुबह इसे मसलकर छान ले। इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर इसे पी ले। 
  7. करेले के पत्तों या फूल को घी में भूनकर उसका चूर्ण बना ले। इस चूर्ण को दिन में 2-3 बार एक से दो ग्राम की मात्रा में खायें। 
  8. 20 ग्राम आँवला स्वरस में, 1 ग्राम जीरा चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीयें। 
  9. नीमपत्र रस और अडूसा पत्र रस को 20-20 ग्राम एकत्र कर इसमें थोड़ा शहद मिलाकर दिन में 2 बार खायें। 
  10. बच के चूर्ण को 2-4 रती की मात्रा में मधु के साथ सेवन करे। 
  11. शक्कर में श्वेत जीरे के साथ धनिये का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर खाये। 
  12. जौ अथवा गेहूँ अथवा चावल के सत्तू को मिश्री में मिलाकर खाना चाहिए। 
  13. नीम की छाल, गिलोय व पटोल का काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से लाभ मिलता है। 
  14. सूखे आँवले को रात भर भिगोकर रख दें। सुबह उसमें जीरा और सौंठ मिलाकर बारीक पीस ले। इस मिश्रण को दूध में घोलकर पीयें।
  15. भोजन के पश्चात् दूध के साथ इसबगोल लेते रहने से अम्ल पित्त रोग कभी नहीं होता है।
  16. छोटी या बड़ी हरड़ का 3 ग्राम चूर्ण और 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर दिन में 3 बार खायें।
  17. मिश्री को कच्चे नारियल के पानी में मिलाकर सेवन करे।
  18. भोजन के 1 घण्टे बाद आँवले का 5 ग्राम चूर्ण लेना चाहिए।
  19. अनार के रस में जीरा मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग दूर हो जाता है। 
  20. भुने हुए जीरे व सेंधा नमक को संतरे के रस में डालकर पीये। इससे अम्ल पित्त रोग का शमन हो जाता है। 
  21.  50 ग्राम प्याज को महीन-महीन काट ले। इससे गाय के ताजे दही में मिलाकर खायें। 
  22. अदरक और अनार के 6-6 ग्राम रस को मिलाकर पी लेने से यह रोग दूर हो जाता है। 
  23. मूली के स्वरस में कालीमिर्च का चूर्ण और नमक मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है। 
  24. प्रत्येक भोजन के बाद एक लौंग खा लेनी चाहिए। 
  25. ठण्डा दूध पीने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है।

आहार

  1. आहार चिकित्सा में पूर्ण प्राकृतिक एवं ताजे भोज्य पदार्थो को शामिल करे। अत्यधिक तले-भुने, गरिष्ठ और मिर्च-मसाले युक्त आहार कदापि ना ले। 
  2. रोगी को फलों में ताजे फल जैसे- नारंगी, आम, केला, पपीता देना चाहिए। कुछ समय के पश्चात् खूबानी, खरबूज, चीकू, तरबूज, सेब भी दे सकते है। 
  3. सूखे मेवे में अखरोट, खजूर, मुनक्का, किशमिश देना चाहिए। कुछ दिनों तक रोगी की सामथ्र्यानुसार सेब का पानी, नारियल का पानी, खीरा और सफेद पेठे आदि का रस देना चाहिए। 
  4. तोराई, टिण्डा, लौकी, परवल आदि की सब्जियाँ रोगी को खाने को दें। रोग के कम हो जाने पर मेथी, चौलाई, बथुआ आदि सब्जियाँ दी जा सकती है। यदि रोगी की आलू खाने की इच्छा हो तो रोगी को आलू उबालकर खाने को दें। ध्यान रखे यदि रोगी आलू ग्रहण कर रहा है तो आलू के साथ अन्य पदार्थ कदापि ना ले। 
  5. अम्ल पित्त रोग में कच्चे नारियल का दूध और गूदा का उपयोग करना चाहिए। 
  6. आँवले और अनार का रस भी अम्ल पित्त रोग में उपयोगी है।

एसिडिटी होने के कारण (Causes of Acidity)

  1. अत्यधिक मिर्च-मसालेदार और तैलीय भोजन करना
  2. पहले खाए हुए भोजन के बिना पचे ही पुन भोजन करना
  3. अधिक अम्ल पदार्थों के सेवन करने पर।
  4. पर्याप्त नींद न लेने से भी हाइपर एसिडिटी की समस्या हो सकती है।
  5. बहुत देर तक भूखे रहने से भी एसिडिटी की समस्या होती है।    
  6. कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है।                                                                                     आयुर्वेद से कैसे करे इलाज़-आयुर्वेद में इसका इलाज संशमन और संशोधन दो प्रकार से किया जाता है। संशमन चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग किया जाता है और संशोधन में पंचकर्म द्वारा इसका इलाज किया जाता है। इन सभी औषधियों का प्रयोग बिना चिकित्सक के परामर्श के बिल्कुल नही करना चाहिए।

    1. अविपत्तिकर चूर्ण

    2. सुतशेखर रस

    3. कामदुधा रस

    4. मौक्तिक कामदुधा

    5. अमलपित्तान्तक रस

    6. अग्नितुण्डि वटी

    7. फलत्रिकादी क्वाथ पंचकर्म चिकित्सा में इसका इलाज़ वमन चिकित्सा द्वारा किया जाता है जिससे इस रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है।                                    NOTE: इलाज के किसी भी तरीके से पहले, पाठक को अपने चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता की सलाह लेनी चाहिए। 

     

Friday 6 November 2020

आम्लपित ( ऐसिडिटी ) रोग - कारण -उपाय - परहेज


किसी भी रोग की चिकित्सा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि
, रोग के कारण क्या है और उसके लक्षण क्या है? लक्षणो से पता चलता है कि, रोग किन दोषों के कुपित होने से हुआ है। आयुर्वेद में मुख्य तीन दोष है। कफ, पित्त और वायु। इन तीनों में से किसी एक, दो या तीनों दोषों के कुपित होने से रोग होता है।

वायु से 80 प्रकार के रोग होते है (जैसे पक्षाघात)। अगर शरीर में या शरीर के किसी अंग में दर्द होता है तो जरूर वायु ही करणभूत होगा। वायु का प्रकोप हमेशा दोपहर के बाद बढ़ जाता है और शाम को बहुत दर्द होता है। यह वायु के लक्षण है।

पित्त से 40 प्रकार के रोग होते है (जैसे अम्लपित्त)। शरीर में जलन के लिये पित्त ही करणभूत है। इसका प्रकोप दोपहर को ज्यादा होता है।


अम्लपित्त के कारण:

परस्पर विरुद्ध (मछली, दूध आदि), दूषित, अम्ल, विदाही (जलन करनेवाला) और पित्त को कुपित करनेवाले पदार्थ खाने-पीने से पित्त कुपित होता है और अपने करणों से संचित हुआ पित्त अम्लपित्त रोग (Acidity) उत्पन्न कर देता है। इस रोग को एसिडिटी और Heartburn भी कहते है।  

अम्लपित्त के लक्षण (Acidity Symptoms):

भोजन का ठीक परिपाक नहीं होता, अनायास थकावट मालूम होती है, उबकाई, कड़ुवी और खट्टी डकारें आती है, शरीर में भारीपन रहता है, ह्रदय और कंठ में जलन होता है, अरुचि होती है। इन लक्षणों को देखकर वैध अम्लपित्त रोग (Acidity) निश्चित करते है।
अम्लपित्त की चिकित्सा: घरेलू नुस्खे, शास्त्रोक्त औषधियाँ और पेटंटेड औषधियाँ।


अधोगत अम्लपित्त के लक्षण:

प्यास, मूर्छा, भ्रम (चक्कर), मोह तथा पीला, काला या लाल रंग का पित्त गुदा मार्ग से गिरता है और दुर्गंध आती है, उबकाई, कोठ, मंदाग्नि, रोमांच, पसीना और शरीर में पीलापन ये लक्षण अम्लपित्त की अधोगति होने पर प्रकट होते है। (सदा नहीं रहते, कभी-कभी होते है)

ऊर्ध्वगत अम्लपित्त के लक्षण:

उल्टी का रंग हारा, पीला, नीला या कुछ लाल होता है। मांस के धोवन के समान अथवा अत्यंत चिकना और स्वच्छ होता है। भोजन विदग्ध होने पर अथवा बिना भोजन किये ही तिक्त और अम्लपित्त वमन (उल्टी) होता है। इसी प्रकार की डकारें भी आती है। ह्रदय, कंठ, कोख में जलन और सिर में पीड़ा होती है।

कफ-पित्त के लक्षण:

हाथ-पाँव में जलन और बड़ी गर्मी मालूम होती है। भोजन में अत्यंत अरुचि, बुखार, शरीर में खुजली होती है, सैंकड़ों फुंसियाँ निकलती है या चकते पड़ जाते है। ऊपर कहे रोग समूह भी होते है। ये लक्षण कफ-पित्त के है।

वातयुक्त अम्लपित्त (एसिडिटी), वात-कफयुक्त अम्लपित्त और कफयुक्त अम्लपित्त को बुद्धिमान वैध दोषों के लक्षण देखकर पहचाने, क्योंकि यह रोग वैधों को छर्दि (उल्टी) और अतिसार (Diarrhoea) के भ्रम में डाल देता है। उनके लक्षण अलग-अलग होते है।

वातयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

कंप, प्रलाप (बेहोशी में बोलना), मूर्छा, अंगों में झुन-झूनाहट, अंगों में पीड़ा, अंधकार-सा मालूम होना, चक्कर, मोह और रोमांच होता है।

कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

रोगी कफ थूकता है, शरीर में भारीपन और जड़ता होती है, अरुचि होती है, शरीर में टूटने की सी पीड़ा होती है, शरीर शीतल बना रहता है, उल्टी होती है, मुंह में कफ भरा-सा रहता है, जठराग्नि और बल की क्षीणता होती है, शरीर में खुजली होती है, नींद अधिक आती है।

वात-कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

इस में वात और कफ दोनों के लक्षण प्रकट होते है। खट्टी, कड़ुवी, चरपरी डकारें आती है और ह्रदय, कोख और कंठ में जलन होती है); चक्कर, मूर्छा, अरुचि, उल्टी, आलस्य, शिर में पीड़ा, मुंह से लार गिरना और मुंह में मिठास मालूम होना, ये लक्षण प्रकट होते है। 

कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।

कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है। कुछ दवाओं के कारण पेट में ऍसिडिटी- जलन होती है

जब गलत खानपान और अपच के कारण पेट में पि‍त्त के विकृत होने पर अम्ल की अधिकता हो जाती है, तो उसे अम्लपित्त कहते हैं। यही अम्लपित्त हाईपर एसिडिटी कहलाता है। आइए जानते हैं, इसके कारण, लक्षण और इससे बचने के उपाय - 

एसिडिटी की शुरुवात मुह में पानी छूटकर और जी मचलने से होती है। ऍसिडिटी का दर्द सादे भोजन से कम होता है, लेकिन तीखे भोजन से तुरंत शुरू होता है। अम्लपित्तवाला दर्द छाती और नाभी के दरम्यान अनुभव होता है। जलन निरंतर होती है लेकिन ऐंठन-दर्द रूक रूक के होता है। कभी कभी दर्द असहनीय होता है।

पीड़ित व्यक्ति दर्द स्थान उंगली से अक्सर सूचित कर सकता है। पेट-छाती की जलन कभी कभी दिल के दौरे से ही होती है। ऐसा दर्द छाती से पीठ की ओर चलता है इसके साथ पसीना, सांस चलना, घबडाहट आदि लक्षण होते है। 

अम्लपित्त या जलन तत्कालिक हो तो अकसर उल्टी से ठीक हो जाती है। अन्यथा अन्न पाचन के बाद आगे चलकर याने १-२ घंटो में तकलीफ रूक जाती है। अम्लपित्त जलन पर एक सरल उपाय है अँटासिड की दवा। इसकी १-२ गोली चबाकर निगले या ५-१० मिली. पतली दवा पी ले।  आयुर्वेद के अनुसार सूतशेखर मात्रा अँटासिड के लिये एक अच्छा विकल्प है।

तीखे, मसालेदार और जादा गरम पदार्थ, तंबाकू, धूम्रपान और शराब सेवन न करे। अरहर, चनादाल या बेसन से मूँग अच्छा होता है। अम्लपित्त ऍलर्जी का प्रभाव हो तो आहार में उस चीज का पता करना पडेगा। जाहिर है की इस पदार्थ को न खाए। योगशास्त्रनुसार तनाव से छुटकारा होने पर ऍसिडिटी कम होती है। इसके लिये योग उपयोगी है।एच. पायलोरी जीवाणू संक्रमण टालने के लिए खाना पीना साफ़ सुथरा होना चाहिए। दर्द और जलन अक्सर होती रहे तो जल्दी ही डॉक्टर से मिलकर अल्सर याने छाला टालना चाहिए

अम्लपित्त (Acidity) के घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद और हानीरहित होते है और काम भी अच्छा करते है। हमने आप के लिये कुछ बहुत ही उपयोगी घरेलू नुस्खे चुने है। शास्त्रोक्त और पेटंटेड दवा भी आपकी जानकारी के लिये लिख रहे है।

अम्लपित्त के घरेलू उपाय: ---

शंख भस्म 1 ग्राम और सौंठ का चूर्ण आधा ग्राम ले। दोनों को शहद के साथ मिलाकर चाटने से अम्लपित्त (Acidity) दूर हो जाता है।

50 ग्राम प्याज को काटकर गाय के ताजे दही मे मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) ठीक हो जाता है

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती तथा त्रिफला का क्वाथ बनाय ठंडा होने पर शहद मिलाकर पीने से अनेक प्रकार के पित्तरोग तथा अम्लपित्त (एसिडिटी) नष्ट होता है।

अड़ूसा, गिलोय व बड़ी कटेरी के क्वाथ को शहद मिलाकर पीने से मनुष्य अम्लपित्त, खांसी, श्वास, बुखार और उल्टी को जीतता है।

शहद के साथ पीपल अम्लपित्त को नष्ट करती है। इसी प्रकार जंबीरी नींबू का स्वरस सायंकाल पीने से अम्लपित्त नष्ट होता है।

गुड, छोटी पीपल और हरड़ समान भाग ले गोली बना सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) व कफ नष्ट होता तथा अग्नि दीप्त होती है।

निम्ब का पंचांग (फूल, फल, पत्र, छाल तथा मूल) मिलित 1 भाग, विधारा 2 भाग, सत्तू 10 भाग, तथा शक्कर से मीठाकर ठंडे जल के साथ शहद मिलाकर पीने से पित्त-कफज शूल तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।  

चूर्ण: छोटी इलायची, वंशलोचन, हरड़, तेजपात, छोटी-बड़ी दोनों दालचीनी, पिपरामूल, चंदन, नागकेशर इनका चूर्ण कर समान भाग मिश्री मिलायके सेवन करे तो घोर अम्लपित्त को आठ दिन में दूर करें। यह बौद्धसर्वस्व में लिखा है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल के पत्ते और त्रिफला के क्वाथ को शीतल होने पर मधु मिलाकर पिवे, तो अत्यंत कठिन और अनेक रूपवाला अम्लपित्त-रोग दूर हो जाता है। मात्रा: 4 तोला (1 तोला = 11.66 ग्राम)

भोजन के बाद आंवले के चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कंठदाह (गले में जलनयुक्त) अम्लपित्त बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।

त्रिफला, परवल, कुटकी इनके क्वाथ में खांड, मुलहठी का चूर्ण तथा शहद को डालकर पीने से बुखार, उल्टी तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।

हरड़, पीपल, द्राक्षा, खांड, धनियाँ तथा जवासा; इनके चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अम्लपित्त नष्ट होता है। मात्रा: 4-6 ग्राम।

गिलोय, खैर, मुलेठी और दारूहल्दी के (4 तोला) क्वाथ में मधु मिलाकर पान करे (पिवे) अथवा मुनक्का, मधु और गुड मिलाकर हरीतकी का सेवन करे तो अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

नीम का पंचांग (छाल, पत्र, पुष्प, मूल और फल) 1 भाग, विधारा 2 भाग और जव का सत्तू 10 भाग, इन औषधों में आवश्यकतानुसार चीनी मिला देवें। मात्रा – 2 तोले। मधु और शीतल जल के साथ। इस औषध के सेवन करने से दारुण अम्लपित्त-रोग और पित्त कफज शूल दूर हो जाते है।

2-3 ग्राम पीपर के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करने से अम्लपित्त रोग नष्ट हो जाता है। सायंकाल में 2-3 तोला नींबू का स्वरस पीने से भी अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

मुनक्का 50 ग्राम, सौंफ 25 ग्राम दोनों को यवकूट (पीसकर) कर 200 ग्राम पानी मे रात्री को भिगो दे। तदुपरान्त प्रातःकाल मसलकर छान ले और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से अम्लपित्त मे लाभ होता है

शास्त्रोक्त दवाए (Ayurvedic Medicine for Acidity): नीचे दी गई शास्त्रोक्त दवाओ का अम्लपित्त में उपयोग होता है।   

सब प्रकार के अम्लपित्त पर हितावह: (Ayurvedic Medicine for Acidity)

(1)जीरकादि मोदक

(2)कूष्मांडावलेह

(3)द्राक्षावलेह

(4)सूतशेखर रस

(5) शुंठीखंड

वातप्रकोप सहित अम्लपित्त पर:

(1)रौप्य भस्म  

(2)अविपत्तिकरचूर्ण

पेट में व्रण (ulcer) पर:

ताप्यादि लोह

पित्त की तीक्ष्णता और अम्लता को कम करने हेतु:

प्रवाल पिष्टी

कामदूधा रस

ताप्यादि लोह

सूतशेखर रस

अन्य अम्लपित्त नाशक योग:

कुष्मांड अवलेह

शुंठी खंड

शतावरी धृत

जीरकाद्य धृत: गौ का धृत (घी) 128 तोला, कल्क (आर्द्र औषध को शीला पर पीस देवे अथवा शुष्क औषध को जल देकर अच्छी तरह पीस देवे तो उसे कल्क कहते है) के लिये धनिया और जीरा मिलाकर 32 तोला, पाक के लिये जल 6 सेर 32 तोला विधिपूर्वक पकावे। इसके सेवन से अम्लपित्त, मंदाग्नि, तथा उल्टी अच्छी हो जाती है। मात्रा: 6-6 ग्राम सुबह-शाम