Saturday 30 December 2017

द्रोणपुष्पी के फायदे - उपयोग

द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) जिसे हम गुम्मा के नाम से भी जानते है । यह पुरे भारत में पाया जाता है । यह विशेष कर ईंख के खेतो में मिल जाता है ।हिमालय के पहाड़ो पर बहुतायत मात्रा में मिलता है । 
इसे हिंदी में – गुम्मा , दणहली 
 मराठी में – तुंबा 
संस्कृत में - द्रोणपुष्पी  
तमिल में – तुम्बरी ।
तेलगु में – मयपातोसि 
बंगाली में – हलक्स , पलधया 
गुजराती में -कुबो आदि नाम से जाना जाता है । द्रोणपुष्पी के पौधा दो से चार फुट लम्बा एवं चार – पांच शाखाओं वाली गुम्बजकार होता है । द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) ( गुम्मा ) के पौधे पर सफेद रंग के छोटे छोटे रोयें होते है ।इसके पत्ते 2-3इंच लम्बे रोयेदार एवं दांतेदार किनारे वाले होते है ।इसके फूल प्याले जैसे आकृति के सफेद और गुच्छेदार होते है ।फूल के प्रत्येक गुच्छे पर दो पत्तियां लगी रहती है ।इसके जड़ पतली एवं 5 से 6 इंच लम्बे होते है । जिसकी गन्ध तेज होती है । इसका प्रयोग से अनेको रोग दूर हो जाते हैं ।यह उदर – रोग , बिष दोष , यकृत विकार , पक्षाघात आदि में बहुत ही लाभप्रद औषधि है ।

फायदे - उपयोग  

( 1) विषम -ज्वर – गुम्मा या द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) के टहनी या पट्टी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे । इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है ।
( 2 ) सुखा रोग में – सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है । गुम्मा के टहनी या पत्ते को पिस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करे ।इस सुखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है ।
( 3 ) साँप के काटने पर :- किसी भी व्यक्ति को कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो उसे द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए ।अगर वयक्ति बेहोश हो गया हो तो गुम्मा (द्रोणपुष्पी ) के रस निकाल कर उसके कान , मुँह और नाक के रास्ते टपका दे ।इसे व्यक्ति अगर मरा नही हो तो निश्चित ही ठीक हो जाएगा ।ठीक होने के बाद उसे कुछ घण्टे तक सोन न दे ।

Friday 22 December 2017

आपके दांत चलेंगे बुढ़ापे तक अगर थोड़ी सावधानी रखे

आप सिर्फ इसलिए दांत ब्रश नहीं करते हैं, कि हंसते समय दांत सफेद दिखें या सांस की दुर्गंध से बचाया जा सकें, बल्कि आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है। जब आप ब्रश करते हैं, तो आप अपने दांतो में चिपके प्लाक (plaque) को निकालते हैं— प्लाक दांतो पर चिपकी बैक्टीरिया की एक पतली परत है जिसकी वजह से आपकी दांतो में कैविटी, मसूड़ों में बीमारी, और अगर आप इसे काफी समय तक अनदेखा करते हैं, तो शायद आपके दांत भी गिर जाएंगे! बदबूदार मुंह से आने वाली दुर्गंधित सांस लोगों को आपसे दूर रख सकती है, खासकर, आपसे बड़े भाई-बहनों को। आपको यह तो पता ही है, कि “क्यों” ब्रश करना चाहिए, परंतु अगर आप सीखना चाहते हैं कि कैसे दांतों को सही तरीके से ब्रश करें, तो यह लेख आपके लिए ही है। आइए इसे पढ़ें!
कई लोगों को लगता है कि दांत साफ करने से सिर्फ दांतों का पीलापन दूर होता है। फिर चाहे कैसे मर्जी ही ब्रश कर लो। जबकि ये सोच बहुत गलत है। क्योंकि सही तरीके से ब्रश न करने पर या फिर गलत ब्रश का चुनाव करने पर दांत संबंधी कई रोग हमें घेर लेते हैं। अगर सही तरीके से ब्रश न किया जाये तो दांतों में कैविटी, पायरिया, आदि की समस्‍या होना आम बात हो जाती है। इसलिए ब्रश करते वक्‍त सावधानी बरतें और इसमें जल्‍दबाजी न करें।
वैसे तो सभी लोग नियमित रूप से दांतों की सफाई करते हैं, लेकिन टूथब्रश करने का सही तरीका बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा। असल में दांत साफ करने के लिए जो समय आदर्श माना जाता है वह 3 मिनट का होता है। एक शोध के अनुसार लेकिन आजकल बिजी लाइफस्टाइल के चलते लोग दांत साफ करने में भी खानापूर्ति करते हैं। जिसके चलते ब्रश का समय आजकल सिर्फ 1 मिनट रह गया है। आज हम आपको ऐसी कुछ बातें बता रहे हैं जिन्हें ब्रश करते वक्त आपको ध्यान रखनी चाहिए। आइए जानते हैं क्या हैं वो बातें—

न करें 2 बार से ज्यादा ब्रश

कई लोग बहुत जल्दी जल्दी दांत साफ करते हैं और साफ दांत के लालच में दिन में 3 से 4 बार भी ब्रश कर लेते हैं। लेकिन एक दिन में तीन बार से ज्‍यादा ब्रश करना, जलन के साथ दांतों की जड़ों को भी कमजोर करता है। इसलिए इसलिए दिन में दो बार ही ब्रश करें।

कैसा हो टूथ ब्रश

मुलायम नायलॉन के रेशे वाले टूथब्रश का चयन करें। यह टूथब्रश, अन्य सख्त टूथब्रश के मुकाबले, ऊपर नीचे ब्रश करते समय, मसूड़ों या दांत के इनेमल को नुकसान पहुंचाए बिना, आपके दांतो में लगे प्लाक और फंसे अन्नकणों को निकालता है। टूथब्रश ऐसा होना चाहिए जिसे आप आराम से पकड़ सकें, मतलब ब्रश की पकड़ सही हो, ब्रश का आकार छोटा होना चाहिए, ताकि वह आसानी से सभी दांतों तक पहुंच सकें, खासकर पीछे वाले दांत (जैसे दाढ़, अग्रदाढ़ और अक्ल दाढ़)। अगर ब्रश पीछे वाले दांतों तक नहीं पहुंच रहा है, तो शायद उसका आकार बड़ा है।
  1. सही समय पर टूथब्रश के ना बदलने पर भी कई समस्याएं होने लगती हैं। जिसके चलते दांतों की सफाई सही तरीके से नहीं हो पाती और इनसे संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है। बीमारी से पी‍ड़ि‍त लोगों को तो शरीर में कीटाणुओं और जीवाणुओं के प्रवेश से बचने के लिए टूथब्रश की स्‍वच्‍छता पर बहुत ध्‍यान देना चाहिए।
  2. अकसर लोगों का टूथब्रश खरीदते समय इस बात पर ध्‍यान ही नहीं जाता कि बहुत सख्‍त ब्रिसल्‍स वाले ब्रश मसूड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए ‌मुलायम टूथब्रश ही लें। जो दांतों के बीच आसानी से जा सकें और जिनसे मसूड़ों के छिलने का डर भी न हो।

सफाई

दंत और मसूड़ों की समस्या, जैसे कैविटीज़ (cavities) होने से रोकना, दांत का मैल (Tartar), दांतो और मसूड़ों में झनझनाहट (sensitivity), मसूड़ों में सूजन (gingivitis), और दांतो में दाग से निवारण पाने के लिए खास टूथपेस्ट का चयन कर सकते हैं। यह फैसला आपको लेना है, कि आपके दांतो के लिए कैसा टूथपेस्ट सही है, या अपने डेंटिस्ट या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लें।
ब्रश करने के बाद कुल्ला करने के तरीके का भी हमारे दंत स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। क्‍योंकि ठीक से कुल्‍ला न करने के कारण दांतों में बैक्‍टीरिया विकसित होने लगते हैं। इसके अलावा टूथपेस्ट में फंसे हुए कणों से छुटकारा पाने के लिए अच्‍छी तरह से ब्रश को धोना भी बहुत जरूरी होता है।

दांतों को फ्लॉस करें:

दांतों को फ्लॉस करना, दांतों को ब्रश करने जितना ही जरूरी है, क्योंकि यह जमे हुए प्लाक, बैक्टीरिया, और दांतों के बीच फंसे अन्नकणों को निकालता है, जहां मुलायम, ढीले पड़े रेशे वाले टूथपेस्ट, ऊपर/नीचे ब्रश करने पर भी नहीं पहुंच पाते हैं। दांतों को ब्रश करने से “पहले” आपको फ्लॉस करना चाहिए, ताकि कोई फंसे हुए अन्नकण या बैक्टीरिया मुंह से बाहर निकल आते हैं।
याद रखें ध्यानपूर्वक फ्लॉस करें। फ्लॉस दांतों के बीच “अचानक टूट जाने से” आपके दांतों में तेज़ झनझनाहट हो सकती है, इसलिए ऐसा करने से बचें।
अगर आपको फ्लॉस करना अजीब लगता है, या आपके दांतों में ब्रेसेस (braces) लगे हैं, तो आप टूथपिक का इस्तेमाल कर सकते हैं। टूथपिक, छोटी सी लकड़ी या प्लास्टिक की स्टीक होती है, जो आप दांतों के बीच डाल सकते हैं, और फ्लॉस की तरह ही दांतों की सफाई कर सकते हैं, अगर आपके दांतों के बीच काफी जगह है तो।

कम मात्रा में टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें:

अपने टूथब्रश पर मटर जितना टूथपेस्ट लगाएं। ब्रश पर ज्यादा टूथपेस्ट लगाने से, ब्रश करते समय ज्यादा झाग निकल सकता है, जिससे बार-बार थूकने के लिए, और जल्दी पेस्ट खत्म करने के लिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसके अलावा, फ्लोराइड टूथपेस्ट निगलने का खतरा बढ़ जाता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है।
अगर ब्रशिंग करना दर्दनाक लगता है, तो सावधानीपूर्वक दांतो पर ऊपर/नीचे ब्रश करने का प्रयत्न करें या अपने टूथपेस्ट को सेन्सिटिव दांतो के लिए उपयुक्त टूथपेस्ट से बदल दें।

कम से कम तीन मिनट तक ब्रश करें:

एक साथ सिर्फ कुछ दांत ब्रश करने से शुरूआत करते हुए, पूरे दांतो की सफाई करके एक दौर पूरा करें (मतलब निचली तरफ के बाहरी दांतों के बायें ओर से शुरू करते हुए दाहिनी तरफ तक ब्रश करें, फिर ऊपरी तरफ बाहरी दांतों के दाहिनी ओर से बायें तरफ तक ब्रश करें, फिर ऊपरी दांतों के पिछली तरफ बायें ओर से दाहिनी तरफ तक ब्रश करें, और फिर निचले दांतों के पिछली तरफ बायें ओर से शुरू करके दाहिनी ओर तक ब्रश करें), ताकि हर जगह पर, हर दांत की सफाई में कम से कम 12 से 15 सेकंड समय आप दे सकें। अगर ऐसा करने से मदद मिलती है, तो आप अपने दांतो को चार हिस्सों में बांट लें: जैसे ऊपरी दांतों की बायें तरफ, ऊपरी दांतों की दाहिनी तरफ, पिछले दांतों की बायें तरफ तथा पिछली दांतों की दाहिनी तरफ। अगर आप ब्रश करने के लिए हर जगह के लिए 30 सेकंड का समय देते हैं, तो पूरे दांतों को ब्रश करने के लिए आपको दो मिनट का समय लगेगा।

Sunday 10 December 2017

महिलाओं में माहवारी सम्बंधित समस्त समस्याओं का समाधान

महिलाओं में माहवारी सम्बंधित समस्त समस्याओं का समाधान-एक बार जरूर पढ़ें
माहवारी के समय अत्यधिक और अनियमित रक्त स्त्राव और माहवारी आने से पहले होने वाली समस्याएं जैसे – जी मिचलाना, उलटी, कमर दर्द, थकावट वगैरह होना मुख्यतः हार्मोनल असंतुलन (estrogenऔरprogesteroneका असंतुलन ) होने के कारण होती है। जिससे गर्भाशय में संकुचन ज्यादा होने लगता है, अत्यधिक और अनियमित (imbalance) रक्तस्त्राव को नियमित करने के लिए एक बहुत ही सरल और Scientifically प्रमाणित  घरेलु उपाय जो महिलाओं को उनके रसोई घर में आसानी से मिल जायेगा। अगर कोई PCOS की समस्या से पीड़ित है तो वो भी इसे ले सकते हैं
ये एक प्रकार कि हार्मोनल समस्या है जो मुख्यता  ovaries से  एण्ड्रोजन हारमोंस के सामान्य से ज्यादा निकलने के कारण हो जाती है. जिससे हार्मोनल असंतुलन हो जाता है, इसका महिलाओ में मुख्य कारण insulin resistance  है जिसमे insulin की मात्रा सामान्य से कही ज्यादा हो जाती है जो  हार्मोनल imbalance (estrogen और Progesterone का असंतुलन) कर देते है. Insulin resistance pcos का एक मुख्य कारण माना गया है. इसके साथ साथ दालचीनी गर्भाश्य में रक्त के सर्कुलेशन को बढ़ाता है जो गर्भाश्य को पोषण देता है। PCOS की समस्या में दालचीनी एलोपैथिक दवा Metformin (anti diabetic) की तरह काम करती है मेटफॉर्मिन PCOS एवं PCOS से related बांझपन के इलाज में काम आती है।
प्रयोग के लिए अवश्यक सामग्री
  • 1 कप नारियल का दूध (नारियल का दूध बनाने के लिए पानी वाले नारियल (ये हरा नारियल नहीं है) को कद्दूकस (Grated) करके उसको ब्लेंडर या मिक्सर में एक कप पानी डाल कर Blend करते रहें, जब तक की वो बिलकुल दूध की ना तरह दिखने लगे, फिर उसे किसी कपडे या छलनी से छान लें।
  • 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
  • 1  छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर (2 ग्राम से ज्यादा न लें)
  • 1/4 चम्मच अदरक रस (2 ग्राम से ज्यादा न लें)
मिठास के लिए आप इसमें कोई भी Sweetener मिला सकते हैं। 
आप इसे लगातार 1 महीने तक लें, दिन में एक बार। खाना खाने के बाद लें, खाली  पेट सेवन ना करें
बनाने का तरीका----नारियल के दूध को गर्म करे, पहले हल्दी डालिए, थोड़ी देर हिलाने के बाद इसमें दालचीनी और अदरक डालिए. अगर आप इसमें कोई sweetener डालना चाहते हैं तो स्वादानुसार डाल लीजिये। नारियल दूध के अन्दर Lauric Acid पाया जाता है, जो बहुत अच्छा anti-bacterial, anti Viral और anti Fungal है। जो Vagina (योनी) में होने वाले fungal और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाता है।  ये नारी के प्रजनन तन्त्र को इन्फेक्शन से बचने के लिए काफी लाभदायक है।
हल्दी में Curcumin पाया जाता है जो एक बहुत अच्छा दर्द निवारक और anti-inflammatory (सूजन को कम करता है) ये शारीर में Prostaglandin की मात्र को कम करता है ये Prostaglandin गर्भाशय में संकुचन पैदा करता है जो Bleeding को बढ़ाता है. इस तरह हल्दी bleeding को कम करने में बहुत सहायक है ।
हल्दी प्राकृतिक रूप से estrogen की मात्रा को कम करती है।  Estrogen Harmone की मात्रा सामान्य से ज्यादा होने की वजह से माहवारी में अनिमियतता आती है तो हल्दी उसको भी ठीक करती है।
दालचीनी गर्भाशय में रक्त के सर्कुलेशन को बढ़ाता है जो गर्भाशय को पोषण देता है। PCOS की समस्या में दालचीनी एलोपैथिक दवा Metformin (anti diabetic) की तरह काम करती है मेटफॉर्मिन PCOS एवं PCOS से related बांझपन के इलाज में काम आती है। ये bleeding रोकने में भी सहायक है।
अदरक में gingerol पाया जाता है जो एक बहुत ही अच्छा anti-inflammatory (सूजन को कम करता है) जो गर्भाशय में होने वाली किसी भी प्रकार की सूजन को कम करता।  ये शरीर में Prostaglandin की मात्र को कम करता है।
यह भी पढे -  स्त्री की समस्याएँ व उनका समाधान

Friday 8 December 2017

ऑस्टियोपोरोसिस ( अस्थिसुषिरता ) रोग और इसे से जुड़े आहार,परहेज और घरेलु इलाज

ऑस्टियोपोरोसिस  ( Osteoporosis ) – कमजोर हड्डियाँ: घरेलु उपचार, इलाज़ और परहेज 
अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस   ( Osteoporosis ) में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द “ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना” में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। 
ऑस्टियोपोरोसिस ( Osteoporosis ) को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं।  दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है

लेने योग्य आहार कैल्शियम हड्डियों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने वाला प्रमुख पोषक तत्व है। कैल्शियम के उत्तम भोज्य स्रोतों में हैं ! 

डेरी: डेरी उत्पाद जैसे दूध, दही, पनीर कैल्शियम से समृद्ध होते हैं। 
भाजी और हरी सब्जियाँ: कई सब्जियाँ, विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियाँ, कैल्शियम का समृद्ध स्रोत हैं। शलजम की सब्जी, सरसों का साग, कोलार्ड की सब्जी, केल, रोमैन लेट्यूस, अजमोदा, ब्रोकोली, धनिया, पत्तागोभी, समर स्क्वाश, हरी फलियाँ, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, अस्पार्गस, और क्रिमिनी मशरुम का सेवन करें।
औषधीय वनस्पतियाँ और मसाले: कैल्शियम के हलके किन्तु स्वादिष्ट प्रभाव के लिए, अपने भोजन में तुलसी, पुदीना, सौंफ के बीज, दालचीनी, पेपरमिंट की पत्तियों, लहसुन, अजवाइन, रोजमेरी, और अजमोदा का प्रयोग करें।
अन्य आहार: कैल्शियम के अन्य बढ़िया स्रोतों में मछली, संतरे, बादाम, तिल होते हैं। साथ ही कैल्शियम की शक्ति से युक्त आहारों जैसे दलिया और संतरे के रस को ना भूलें।  विटामिन डी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में सहायता करता है। विटामिन डी की सर्वाधिक मात्रा सूर्य के प्रकाश से और अन्य भोज्य स्रोतों जिनमें वसायुक्त मछली, लीवर, अंडे, शक्तियुक्त आहारों जैसे कम वसा युक्त दूध आदि हैं, से प्राप्त होती है।  
रिसर्च के अनुसार अपने आहार को नारियल के तेल के साथ मिलाकर खाने से एस्ट्रोजेन की कमी से होने वाली हड्डियों के नुकसान को रोका जा सकता है। नारियल के तेल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हड्डियों के ढांचें को नियंत्रित करके रखते हैं और हॉर्मोन्स में आने वाले बदलाव की वजह से हड्डियों को पहुंचने वाले नुकसान से भी बचाता है। इसके साथ ही ये तेल शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम को अवशोषित करने में मदद करता है। ये दो आवश्यक पोषण तत्व हड्डियों की मजबूती को बढ़ाने को नियंत्रित रखने में बेहद ज़रूरी हैं। 

नारियल के तेल का इस्तेमाल दो तरीकों से करें

पहला तरीका= रोज़ाना तीन चम्मच नारियल के तेल का सेवन करें इससे ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद मिलती है।
दूसरा तरीका= इसके अलावा आप पूरे शरीर पर कुछ मिनट तक नारियल के तेल से मसाज कर सकते हैं। फिर गर्म पानी से नहाएं। इस तरह आप रोज़ाना ये प्रक्रिया करें। इस तरह करने से आपकी हड्डियों पर बेहद अच्छा प्रभाव पड़ेगा।इसके साथ ही खाना बनाने के लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल करें।
 परहेज करें- प्रोसेस्ड मीट, जैसे कि टर्की और सूअर का गोश्त, तथा हॉट डॉग। फ़ास्ट फ़ूड, जैसे कि पिज़्ज़ा, बर्गर, टेकोस और फ्राइज।प्रोसेस्ड आहार, जिनमें शीतगृह में रखे सामान्य और कम कैलोरी वाले भोज्य पदार्थ आते हैं।कैन में बंद सामान्य सूप और सब्जियाँ तथा उनके रस।  भुने उत्पाद, जिनमें ब्रेड और नाश्ते के विभिन्न दलिए आते हैं।

 योग और व्यायाम- वृद्धजनों में हड्डी के घनत्व को बचाए रखने में व्यायाम प्रमुख भूमिका निभाता है। आपको फ्रैक्चर होने की संभावना को कम करने हेतु सुझाए गए व्यायामों में हैं 

भार वहन करने वाले व्यायाम — पैदल चलना, दौड़ना, टेनिस खेलना, नृत्य करना।
खुले उठाए जाने वाले वजन, वजन की मशीनें, स्ट्रेच बैंड
संतुलन साधने वाले व्यायाम– ताई ची, योग पतवारनुमा मशीनें जिनमें गिरने का खतरा हो ऐसे व्यायाम ना करें। साथ ही, उच्च-दबाव डालने वाले व्यायाम जो वृद्धजनों में फ्रैक्चर कर सकते हों, उन्हें ना करें।

Osteoporosis के घरेलू उपाय (उपचार)

चलने हेतु सहायता का प्रयोग करें। यदि आप अस्थिर होते हैं, तो लकड़ी या वॉकर का प्रयोग करें।  ( Osteoporosis )
स्नानगृह में पकड़ने हेतु खम्भा लगवाएँ और हाथ धोने के स्थान तथा टब के पास ऐसा पैरपोश लगवाएँ जो फिसलता ना हो। भारी वस्तुओं को उठाते या ले जाते समय सहायता लें।, मजबूत जूते पहनें खासकर ठण्ड या बारिश के दौरान 
ये निश्चित करें कि आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी है।  शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और सप्ताह के अधिकतर दिनों में वजन-वहन करने वाले व्यायाम करें, जैसे पैदल चलना आदि . 

Thursday 7 December 2017

सहजन पेड़ मनुष्य के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं, जाने सैकड़ो रोगों का इलाज

दुनीया का सबसे ताकतवर पोषण पुरक आहार है सहजन (मुनगा) 300 से अधि्क रोगो मे बहोत फायदेमंद इसकी जड़ से लेकर फुल, पत्ती, फल्ली, तना, गोन्द हर चीज़ उपयोगी होती है

आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है

सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना


?-विटामिन सी- संतरे से सात गुना
?-विटामिन ए- गाजर से दस गुना
?-कैलशियम- दूध से सत्रह गुना
?-पोटेशियम- केले से पन्द्रह गुना
? प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना
स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , कैल्शियम , पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम,विटामिन-ए , सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है
इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ‘ मोरिगा ओलिफेरा ‘ है हिंदी में इसे सहजना , सुजना , सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं.जो लोग इसके बारे में जानते हैं , वे इसका सेवन जरूर करते हैं, सहजन में दूध की तुलना में चार गुना कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है.
ये हैं सहजन के औषधीय गुण सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में , इसकी फली वात व उदरशूल में , पत्ती नेत्ररोग , मोच , साइटिका , गठिया आदि में उपयोगी है
इसकी छाल का सेवन साइटिका , गठिया , लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं
इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया , साइटिका , पक्षाघात , वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है.
मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है |

सहजन की सब्जी के फायदे. – Sahjan ki sabji ke fayde

सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द , वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है।
इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है,
इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है
सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के किड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है
ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है
इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होनेलगता है
इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है
इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हिंग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है।
इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं
पानी के शुद्धिकरण के रूप में कर सकते हैं इस्तेमाल सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लेरीफिकेशन एजेंट बन जाता है यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है , बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।

सहजन का काढ़ा पीने से क्या-क्या हैं फायदे

कैंसर और पेट आदि के दौरान शरीर के बनी गांठ , फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन , हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द) , जोड़ों में दर्द , लकवा ,दमा,सूजन , पथरी आदि में लाभकारी है |
सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग ,जैसे चेचक के होने का खतरा टल जाता है
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है , जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है
सर्दी-जुखाम
यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो , आप सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
हड्डियां होती हैं मजबूत.
सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है
इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है , इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में
आसानी होती है।
सहजन में विटामिन-ए होता है , जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिए प्रयोग किया आता जा रहा है
इसकी हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है
यदि आप चाहें तो सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं इससे शरीर का खून साफ होता है |
कुछ अन्य उपयोग –
सहजन के फूल उदर रोगों व कफ रोगों में इसकी फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच ,शियाटिका ,गठिया आदि में उपयोगी है।
सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग साईटिका, गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है।
सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है
सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है\ साईं टिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है
सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है।
सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है।
सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया और  जोड़ों के दर्द व्  वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है।
सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।
सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है।
सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है।
सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है।
सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है।
सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है।
सहजन की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है।
सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है।
सहजन. की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है।
सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है।
सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है .
सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। ईससे जकड़न कम होगी।
सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।
सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं।
सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

Tuesday 5 December 2017

सिर्फ 6 दिन सोते वक़्त 1 लौंग खाने से ऐसे परिणाम मिलेंगे कि आप हैरान रह जाएंगे

  • लौंग में यूजेनॉल होता है जो साइनस और दांद दर्द जैसी हेल्थ प्रॉब्लम को ठीक करने में मदद करता है। लौंग की तासीर गर्म होती है। इसलिए सर्दी-जुकाम होने पर लौंग खाएं या इसकी चाय बनाकर पीना फायदेमंद है। अगर आप लौंग के तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसे नारियल तेल के साथ मिलाकर उपयोग करें ताकि इसकी गर्म तासीर से सेहत को नुकसान न हो। लौंग जीवनी शक्ति के कोशो का पोषण करता है। इसी कारण लौंग टी.बी और बुखार में एंटीबायोटिक का काम करता है। यह रक्तशोधक और कीटाणुनाशक होता है। लौंग में मुंह, आते और आमाशय में रहने वाले सूक्ष्म कीटाणुओं व सड़न को रोकने के गुण पाये जाते है।
  • आयुर्वेदिक दवा लौंग जीवाणुरोधी, एंटीसेप्टिक और एनाल्जेसिक के रूप में कार्य करता हैं। लौंग फैटी एसिड, फाइबर, विटामिन, ओमेगा -3 और खनिजों का अच्छा स्रोत है, साथ ही यह हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। आपको इसके फ़ायदे 6 दिन में महसुस होने लगेंगे। रात को सोते समय लौंग खाने से होने वाले फायदे इस प्रकार है।
असली लौंग की पहचान : 

  • दुकानदार बेचने वाले लौंग में तेल निकला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है। उसे ना खरीदे। लौंग से बहुत सी प्राकृतिक औषधीयाँ बनती है। आज हम आपको बताएँगे की 1 लौंग कितना कमाल का होता है, आइये जाने लौंग के फायदों के बारे में।
रात को लौंग से होने वाले 7 फ़ायदे :

  1. श्वसन संक्रमण से छुटकारा : लौंग एक प्राकृतिक दर्द निवारक हैं और साथ ही यह रोगाणु से भी बचाता हैं। लौंग गले की खराश से छुटकारा पाने में मदद करता है।
  2. दांत दर्द से आराम : आप कपास के एक टुकड़े की सहायता से थोड़ा-सा लौंग का तेल पीड़ादायक दाँत या अपने मसूड़ों पर लगाकर दर्द को कम कर सकते हैं। इसके अलावा यह संक्रमण को भी कम करेगा।
  3. सूजन कम करें : पीड़ादायक मांसपेशियों की मालिश के लिए लौंग तेल का उपयोग करें, इससे आपको जल्द ही आराम हो जाएगा।
  4. घावों का इलाज : लौंग बहुत तीव्र होता हैं, घाव के इलाज के लिए जैतून के तेल में थोड़ा-सा लौंग का तेल मिलाकर घाव पर लगाएं, यह घाव को ठीक करने में मदद करेगा।
  5. पाचन में सुधार : लौंग उल्टी, दस्त, आंत्र गैस और पेट के दर्द को कम करने में सहायता करता हैं। बस थोड़ा सावधान रहें क्योंकि लौंग बहुत तीव्र होता है, इसका ज्यादा सेवन आपको परेशान कर सकता है।
  6. पेट की गैस : 2 लौंग पीसकर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें। फिर कुछ ठंडा होने पर पी लें। इस प्रकार यह प्रयोग रोजाना 3 बार करने से पेट की गैस में फायदा मिलेगा।
  7. जी मिचलाना : 2 लौंग पीसकर आधा कप पानी में मिलाकर गर्म करके पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है। लौंग चबाने से भी जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
लौंग के अन्य 12 बेहतरीन फ़ायदे :
  1. पाचन क्रिया का खराब होना : लौंग 10 ग्राम, सौंठ 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, पीपल 10 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह पीसकर इसमें एक ग्राम सेंधानमक मिलाकर रख लें। इस मिश्रण को एक स्टील के बर्तन में रखकर ऊपर से नींबू का रस डाल दें। जब यह सख्त हो तब इसे छाया में सुखाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद सुबह और शाम पानी के साथ लें।
  2. गठिया रोग : लौंग, भुना सुहागा, एलुवा एवं कालीमिर्च 5-5 ग्राम को कूट-पीस लें और घीग्वार के रस में मिलाकर चने के आकार के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। उसके बाद एक-एक गोली सुबह-शाम लेने से गठिया का रोग नष्ट हो जाता है।
  3. चक्कर आना : सबसे पहले दो लौंग लें और इन लौंगों को दो कप पानी में डालकर उबालें फिर इस पानी को ठंडा करके चक्कर आने वाले रोगी को पिलाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
  4. साइटिका : लौंग के तेल से पैरों पर मालिश करने से साइटिका का दर्द खत्म हो जाता है।
  5. टांसिल का बढ़ना : एक पान का पत्ता, 2 लौंग, आधा चम्मच मुलेठी, 4 दाने पिपरमेन्ट को एक गिलास पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
  6. दांतों का दर्द : 5 ग्राम नींबू के रस में 3 लौंग को पीसकर मिला लें। इसे दांतों पर मलें और खोखल में लगायें। इससे दांतों का दर्द नष्ट होता है।
  7. दमा या श्वास रोग : दो लौंग को 150 मिलीलीटर पानी में उबालें और इस पानी को थोड़ी सी मात्रा में पीने से अस्थमा और श्वास का रुकना खत्म हो जाता है।
  8. दांत के कीड़े : कीड़े लगे दांतों के खोखल में लौंग के तेल को रूई में भिगोकर रखें। इससे दांत के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द कम होता है।
  9. कब्ज : लौंग 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम, लाहौरी नमक 50 ग्राम और मिश्री 50 ग्राम को पीसकर छानकर नींबू के रस में डाल दें। सूखने पर 5-5 ग्राम गर्म पानी से खाना खाने के बाद खुराक के रूप में लाभ होता है।
  10. कमरदर्द : लौंग के तेल की मालिश करने से कमर दर्द के अलावा अन्य अंगों का दर्द भी मिट जाता है। इसके तेल की मालिश नहाने से पहले करनी चाहिए।

Sunday 3 December 2017

मूसली पाक पुरुषों के लिए एक आयुर्वेदिक कामोद्दीपक, बल्य व पौष्टिक औषधि

मूसली पाक ( Musli Pak ) एक आयुर्वेदिक कामोद्दीपक, बल्य व पौष्टिक औषधि है। पुरुषों में यह शारीरिक शक्ति को बहाल करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह एक पौष्टिक टॉनिक के रूप में कार्य करती है और शरीर को बल देती है। यह अपने कामोद्दीपक लाभ के लिए प्रसिद्ध है और पुरुषों की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए बहुत लोकप्रिय है। यह पुरुषों में सहन-शक्ति, ताकत, समय और प्रदर्शन में सुधार करता है। इन लाभों के अतिरिक्त, यह सामान्य दुर्बलता और शरीर के वजन को बढानें के लिए भी प्रयोग किया जाता है। भारत में खिलाडी इसे व्यायाम सहनशक्ति और क्षमता को सुधारने के लिए भी प्रयोग करते है।

घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि

मूसली पाक ( Musli Pak ) में मुख्य घटक सफेद मूसली है। यह शारीरिक शक्ति सुधारने के अति हितकारी सिद्ध हुई है। योग चिंतामणि के अनुसार मूसली पाक में निम्नलिखित घटक द्रव्यों है:

घटक द्रव्यों के नाम मात्रा-

सफेद मूसली 16 भाग, गाय का दूध 200 भाग,गाय का घी 16 भाग, चीनी 50, सेमल गोंद या मोचरस 8 भाग, नारियल 2 भाग, बादाम 2, भाग
चिरोंजी 2 भाग, जायफल 2 भाग, लौंग 2 भाग, केसर 2 भाग, तुम्बरू 2 भाग ,जटामांसी 2 भाग, कौंच बीज 2 भाग, दालचीनी 2 भाग, इलायची 2 भाग, तेजपात 2 भाग, नागकेसर 2 भाग, सोंठ 2 भाग, काली मिर्च 2 भाग, पिप्पली 2 भाग, जावित्री 2 भाग,

मूसली पाक  ( Musli Pak ) के निर्माण की विधि

सफेद मूसली और गाय का दूध मिलाएं।मिश्रण को खोए (मावा) जैसा अर्द्ध ठोस बनाने के लिए उबालें।फिर मावा में गाय का घी मिलाएँ। इसे तबतक पकाएं जब तक यह भूरे रंग का ना हो जाए। पानी और चीनी का उपयोग कर चाशनी तैयार करें।अब, चाशनी को मिश्रण में मिलाएँ, मिश्रण को अच्छी तरह मिलाने के लिए इसे उबालें। अन्य सामग्रियां मिलाएँ और कांच के बर्तन या मर्तबान में सुरक्षित रखें।

नोट: योग चिंतामणि में बताये गए फॉर्मूले में भस्म और रस औषधि जैसे अभ्रक भस्म, लोह भस्म, और रस सिंदूर आदि का वर्णन नहीं किया गया। बाजार में उपलब्ध होने वाले मूसली पाक के योगो में इनका मिश्रण भी किया जाता है। आप खरींदे से पहले घटक द्रव्यों की जाँच आवश्य करें।

निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है - 

  • शीघ्रपतन

  • शारीरिक कमजोरी

  • क्षीण कामेच्छा

  • व्यसन या बुढ़ापे के माध्यम से पुरुष शक्ति कम होने पर

  • मर्दाना कमजोरी या दुर्बलता

  • इरेक्टाइल डिसफंक्शन

  • नपुंसकता

  • शुक्रक्षय – अल्पशुक्राणुता

  • मांसपेशी में कमज़ोरी

  • शारीरिक थकान

  • प्रदर रोग

  • मूसली पाक के दुष्प्रभाव (Side Effects)

    हालांकि, मूसली पाक ( Musli Pak ) में कुछ सामग्री ऐपेटाइज़र (पाचन वर्धक) और पाचन उत्तेजक हैं, लेकिन फिर भी मूसली पाक पचाने के लिए भारी है। इसलिए इसे ठीक से पचाने में लंबा समय लग सकता है। कमजोर पाचन शक्ति वाले कुछ लोगों में, इससे भोजन की जल्दी संतुष्टता या भूख की हानि या भोजन करने की इच्छा की हानि हो सकती है।कुछ मामलों में जो मूसली पाक ( Musli Pak ) को आसानी से हजम नहीं कर सकते हैं, यह भी कब्ज का कारण भी बन सकता है।

  • नोट: मूसली पाक के कुछ ब्रांडों में हरबोमिनरल तत्व होते हैं। इसका अर्थ यह है कि इसमें भारी धातुओं सहित कुछ खनिज तत्व भी होते हैं। इसलिए, आपको इसे खरीदने से पहले इसके घटकों के लेबल को पढ़ना चाहिए। कई आयुर्वेदिक डॉक्टरों के अनुभव और रोगविषयक उपयोग के अनुसार, इससे किसी भी गंभीर अंग क्षति होने की कोई संभावना नहीं है। फिर भी सतर्कता प्रयोजन के लिए, मूसली पाक को अधिकतम 6 सप्ताह से अधिक लगातार नहीं लेना चाहिए।

यौन समस्याओं में रामबाण ओषधी है- अश्वगंधा

अश्वगंधा शुक्र धातु और वीर्य को बढ़ा कर चिर यौवन देने वाली महान औषिधि है

अश्वगंधा बलवर्धक वीर्यवर्धक व् शुक्रल अर्थात शुक्र धातु को पुष्ट करने वाली जड़ी बूटी है। पुरुष रोगों में ये बहुत महत्वपूर्ण है। अश्वगंधा को असगंध या वाजीगंधा भी कहा जाता है। इसका सेवन काम शक्ति को बढ़ाता है और यौवन प्रदान करता है। इसकी जड़ों का इस्तेमाल कई प्रकार की शक्तिवर्धक दवाओं को बनाने में किया जाता है।
अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन मानी गयी है। इसके गुणों की चिर पुरातन समय से लेकर अब तक सभी विद्वानो ने भरपूर सराहना की है। इसे पुरातन काल से ही आयुर्वेदज्ञों ने वीर्यवर्धक, शरीर में ओज और कांति लाने वाले, परम पौष्टिक व् सर्वांग शक्ति देने वाली, क्षय रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने वाली एवं वृद्धावस्था को लम्बे समय तक दूर रखने वाली सर्वोत्तम वनौषधि माना है। यह वायु एवं कफ के विकारों को नाश करने वाली अर्थात खांसी, श्वांस, खुजली, व्रण, आमवात आदि नाशक है। इसे वीर्य व् पौरुष सामर्थ्य की वृद्धि करने, शरीर पर मांस चढाने, स्तनों में दूध की वृद्धि करने, बच्चों को मोटा व् चुस्त बनाने तथा गर्भधारण के निमित व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
दुनिया में लोगों को सेक्स संबंधी समस्या सबसे ज़्यादा होती है। माना जाता है कि सेक्स प्रॉब्लम में अश्वगंधा रामबाण दवा होती है। इसमें ऐसे-ऐसे गुण होते हैं जो शरीर को ऊर्जा और क्षमता प्रदान करती है जिससे व्यक्ति में यौन क्षमता का विकास होता है और उसकी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
अश्वगंधा का सेवन करने से प्रजनन में इजाफा होता है। इससे स्पर्म काउंट बढ़ता है और वीर्य भी अच्छी मात्रा में बनता है। अश्वगंधा, शरीर को जोश देता है जिससे पूरे शरीर में आलस्य नहीं रहता है और थकान भी नहीं आती है। अश्वगंधा में जवानी को बरकरार रखने की काफी शक्ति होती है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
अश्वगंधा को इस्तेमाल करने की विधि- इसको निरंतर अगर सेवन करना हो तो आधा टी स्पून ही इस्तेमाल करना चाहिए। और ये रात को दूध के साथ अत्यंत गुणकारी हो जाता है. अश्वगंधा का इस्तेमाल सदैव दूध के साथ ही करना चाहिए.

डेंगू मच्छर आसपास भी नहीं आएंगे इनको रखने से

  • घर में रखें सिर्फ ये 2 चीजें।
  • आसपास भी नहीं आएंगे डेंगू मच्छर।
  • अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगा कर रखें। 
  • डेंगू, चिकुनगुनिया, मलेरिया और वायरल बुखार आजकल के मौसम में बहुत तेजी से बढ़ने वाली बीमारियां हो गई हैं। देशभर में कई लोग इन बीमारियों की गिरफ्त में हैं। आलम ये है कि कई लोगों की इन बीमारियों के चलते मौत भी हो गई है। आज की स्थिति ये है कि भारत के कई राज्‍य इसकी चपेट में आ चुके हैं, खासकर राजधानी दिल्‍ली। यह रोग मच्छर के काटने से होता है। डेंगू के बारे में सबसे खास बात यह है कि इसके मच्छर दिन के समय काटते हैं तथा यह मच्छर साफ पानी में पनपते हैं। डेंगू के दौरान रोगी के जोड़ों और सिर में तेज दर्द होता है और बड़ों के मुकाबले यह बच्चों में ज्यादा तेजी से फैलता है।डेंगू बुखार में उल्टियां होना और साथ ही प्लेटलेट्स का तेजी से नीचे गिरना आम लक्षण होते हैं।यदि इसका इलाज तुरंत न किया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है। डेंगू के इलाज में लोग अक्सर महंगे हॉस्‍पीटल का रुख कर रहे हैं। लेकिन अगर आप अंग्रेजी दवाओं से कुछ खास असर नहीं दिख रहा है तो आप साथ साथ घरेलू नुस्खे भी अपना सकते हैं। हम आपको कुछ ऐसी टिप्स बता रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप डेंगू से छुटकारा पा सकते हैं।
  • अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगा कर रखें। तुलसी की खुशबू मात्र से ही डेंगू मच्छर दूर भागते हैं।
  • घर और घर के आसपास कहीं भी पानी इकट्ठा ना होने दें। ध्यान रखें कि डेंगू मच्छर अधिकतर साफ पानी में ही होते हैं। साथ ही साफ-सफाई का भी ध्यान दें।
  • सुबह और शाम को नियमित कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करें। कई बार हमें डेंगू मच्छर दिखते नहीं हैं लेकिन उनके अण्डे पानी में छिपे रहते हैं। जो बड़े होकर डेंगू बनते हैं। इसलिए कीटनाशक का इस्तेमाल करें।
  • घर में 24 घंटे मच्छर भगाने की कॉइल का इस्तेमाल करें। खुद भी और बच्चों को भी पूरे बाजू के कपड़े पहनने की सलाह दें और रात को सोते वक्त मच्छरदानी का प्रयोग करें। दिन के वक्त अधिक सावधान रहें।
  • यदि कोई घर में आए तो सबसे पहले उसे हाथ-पैर धोने की सलाह दें। उसके बाद ही उसे चाय के लिए पूछे और हाथ मिलाएं।

Saturday 2 December 2017

पुनर्नवा से संभव है शरीर का नवीनीकरण

वनौषधियों में पुनर्नवा का रोग निवारण में अपना अति महत्वपूर्ण स्थान है। १९ वीं शताब्दी तक यह विशुद्व जडी-बूटी थी और मात्रा भारतीय वैद्यों द्वारा प्रयुक्त की जाती थी। पहली बार जब इसका प्रयोग कुछ असाध्य अंग्रेज रोगियों पर किया गया और उसके चमत्कारिक परिणाम सामने आये तो इस पर अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गये। इसमें कई अदभुत रसायन पाये गये। इसके हरे पौधें में पोटैशियम नाइट्रेट और हाइड्रोक्लोराइड प्रचुर मात्राा में पाये जाते है। यही रोग निवारण के मुख्य कारक माने गये है। इसमें कुनैन से मिलता जुलता स्वाद होता है। वह इसमें प्राप्त एक उपक्षारीय सल्फेट के कारण होता है। चर्बी की तरह का एक सुगन्धित पदार्थ भी इसमें पाया जाता है। इन्हीं तत्वों के कारण पुनर्नवा (श्वेत) हृदय को भी बल प्रदान करने वाली औषधि मानी जाती है। निघंटु रत्नाकर ने इसे कफ खांसी, बवासीर, शरीर में सूजन, पाण्डुरोग, बिच्छू, बरैया आदि का विष दूर करने आदि में अत्यधिक उपयोगी माना है। राज निघंटु ने इसे दस्तावर एवं धतु तथा उदर रोगों में अत्यधिक लाभदायक बताया है।इसकी जड पीस कर घी में मिलाकर आँख में लगाने से फली तथा शहद में मिलाकर लगाने से आँखों की लालिमा मिटाने में लाभ होता है। भाँगरे के रस में मिलाकर लगाने से आँखों की खुजली तक मिट जाती है। जिन्हें रतौंधी हो वे इसकी जड और पीपल के साथ गाय के गोबर का रस मिलाकर उबालकर आँखों में लगाते है तो बडा लाभ मिलता है। जड लेकर उसे जल के साथ घिसकर आँखों में लगाने से जिनकी दृष्टि कमजोर हो गई हो उन्हें अत्यध्कि लाभ मिलता है जिसके कारण पुनर्नवा को इतना अधिक महत्व दिया जाता है वह इसके मूत्रावाही नाडयों में प्रभाव और सामान्य से दो गुना तक अधिक पेशाब निकालने की क्षमता के कारण है। ऐसा पुनर्नवा में प्राप्त पोटैशियम नाइट्रेट की उपस्थिति के कारण होता है। इसलिए पुनर्नवा उच्च रक्त चाप, शरीर का मोटापा दूर करने तथा पेट आदि की बीमारियों में बहुत लाभदायक होता है।एलोपैथी रोगों का कारण जीवाणुओं को या वायरस (विषाणुओं) को मानती है पर हमारा आयुर्वेद शरीर में उत्पन्न हुए विजातीय द्रव्य बडी मात्रा में मल जमा होने को मानता है। यही सच भी है। बडे नगरों की जल निकासी वाली नालियों को देखकर इस सच को आसानी से समझा जा सकता है। जिन नालियों में बहुतायत से पानी डाला जाता रहता है तथा कुरेदने वाली झाडू से सफाई की जाती रहती है वे सदा स्वच्छ बनी रहती है पर जहाँ यह क्रिया बंद होती है तथा अनेक प्रकार के खाद्यान्न, घरों की गंदगी प्रवाहित होती रहती है उसमें बिलबिलाते असंख्य कीडे स्पष्ट देखे जा सकते है। धीरे- धीरे नीचे गंदगी जमा होती रहती है और उसमें खतरनाक विषाणुओं की संख्या बढती चली जाती है। कई बार तो वे फिनाइल जैसे कीटनाशकों तक से नहीं मरते। यह धीरे-धीरे दुर्गन्ध के साथ हवा में पैदा करते रहते है। यही स्थिति अपने शरीर की होती है।दिनभर खाना ठूँसते रहने पर पानी की उचित मात्रा प्रयोग न करने के कारण यह गंदगी पेट से प्रारम्भ होकर नीचे वृक्क तक फैलती चली जाती है। दूसरी ओर शारीरिक श्रम न करने के कारण पसीने, थूक, पेशाब आदि से बाहर निकलने वाली गंदगी का क्रम कमजोर होता चला जाता है। बस यही से रोगों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। दाद, खाज, खुजली शोथ, अग्निमंदता-रक्त चाप, हृदय शूल आदि अनेक प्रकार की बीमारियाँ बढती चली जाती है। कामुक प्रवृत्ति के लोगों में अनेक प्रकार की पेशाब संबंधी बीमारियाँ बढती जाती है। पेशाब के लिए घंटो बैठे रहने, बूंद-बूंद पेशाब टपकने या पेशाब में अत्यधिक दुर्गन्ध आने के यह सब कारण होते है। पुनर्नवा को प्रमुखतः एक मूत्राल औषधि माना जाता है। समझा जा सकता है कि अतिरिक्त जल छोडकर नालियों की गंदगी की सफाई की तरह यह शरीर की गंदगी को बाहर निकालने का असाधारण कार्य करती है। इसी से रक्तचाप, शोथ, भूख बढाने आदि में पुनर्नवा बहुत ही उपयोगी सिद्व हुई है।डा. कोमान ने इसी मूत्राल गुण के कारण इसका प्रयोग मोटापा दूर करने तथा जलोदर में किया और इनमें उन्हें असाधारण सफलता भी मिली। इसे थोडी-थोडी मात्रा में दिन में कई बार दिया जाये तो पुरानी खाँसी तथा कफ निवारण में भी पुनर्नवा रामबाण की तरह काम करती है। जिनका पेट साफ नहीं होता वे भी पुनर्नवा का सेवन कर सकते है। फेफडों में पानी भर गया हो उसमें भी पुनर्नवा अत्यधिक लाभदायक सिद्व हुई है।सौंठ, चिरायता तथा कुटकी मिलाकर यदि पुनर्नवा का क्वाथ प्रातः तथा सांयकाल लिया जाये तो उससे हृदय रोगों में असाधरण लाभ होता है। शरीर में मोटापा या शोथ हो तब इसके साथ काली मिर्च मिलाकर क्वाथ बनाना चाहिए इसी तरह श्वास नली में सूजन हो तो यही प्रयोग चंदन के साथ करने का निर्देश है। कफ और दमें में भी यही प्रयोग लाभ देता है। कुछ वैद्य पुनर्नवा का शाक खाने की सलाह देते है। यह हृदय तथा अजीर्ण रोगों में बडा लाभदायक होता है। जिन्हें उल्टी आने की शिकायत हो उन्हें भी पुनर्नवा का कुछ दिन तक सेवन करना चाहिए। सुजाक तथा अन्य किस्म के धातु रोग भी पुनर्नवा लेने से ठीक होते है।फर्माकापिया एण्ड इंडिया के लेखक डा० ई.एपफ. बोरिंग ने लिखा है कफ निकाल कर छाती और गले के रोगों को दूर करने के लिए पुनर्नवा से बढकर अच्छी औषधि नहीं है। इसका चूर्ण अथवा काढा लेने से दमें की शिकायत दूर होती है। दमें की स्थिति में यदि इसकी जड का ३ माशा चूर्ण लेकर उसमें ४ रत्ती हल्दी मिलाकर रोगी को दिया जाये तो उससे बहुत शीघ्र लाभ मिलता है। इसी तरह अन्य सभी प्रयोगों में इसकी मात्रा न्यूनाधिक हो सकती है। साधरणतया इसका ३ ग्राम से ६ ग्राम तक चूर्ण लेने का विधान है।इनके अतिरिक्त पुनर्नवा का प्रयोग नारु, प्रदर, बाइठे, बिद्रध् ;तिजारीद्ध तीसरे या चौथे दिन आने वाले बुखार में दाद आदि में भी किया जाता है। अनेक कुशल वैद्य पुनर्नवा मंडूर तथा पुनर्नवा गुग्गल, पुनर्नवारिष्ट, पुनर्नवा रसायन बनाकर लोगों को दीर्घजीवन, उत्तम स्वास्थ्य, शरीर दर्द से निवृत्ति आदि में भी प्रयोग करते है। पुनर्नवा केवल रोग निवारक औषध् ही नहीं शक्तिदायक औषध् भी है। अतएव इसे कोई भी लेकर अपने स्वास्थ्य और दीर्घजीवन के लिए लाभ ले सकते है।

एक प्याज आप के शरीर के सारे मस्से (Warts) हटा सकता है

मस्से अगर गर्दन के पीछे हो या कोई ऐसी जगह हो जहां सबकी नजर नहीं जाती… तो लोगों के लिए ये चिंता का विषय नहीं होता। लेकिन कई बार मस्से चेहरे के ऐसी जगह पर होते हैं जहां से वो दूसरों को आसानी से दिख जाते हैं। ये मस्से दिखने में अच्छे नहीं लगते। कई बार ये मस्से, कैंसर का रुप भी धारण कर लेते हैं। तो ऐसी स्थिति में अच्छा है कि आप मस्सों को हटा दीजिए। इस लेख में मस्से हटाने के लिए प्याज का नुस्खा दिया गया है वो एक रामबाण इलाज है जो आप आसानी से घर में इस्तेमाल कर सकते हैं। मस्से हटाने के घरेलू उपाय के बारे में इस लेख में विस्तार से जानें।

कैंसर कारक भी होते हैं मस्से- अगर आपको जन्म के समय से ही कोई मस्सा है तो ये अहानिकारक है। लेकिन मस्से जन्म के बाद हुए हैं या बड़े होने पर हुए हैं तो समय बीतने के साथ ये कैंसर का रूप धारण कर सकते हैं। अगर ये मस्से किसी इंसान को 30 की उम्र के बाद होते हैं तो कैंसर होने का खतरा काफी बढ़ जाता हैं।

इन स्थिति में मस्से हैं खतरे- अगर शरीर के किसी भी मस्से से खून निकले तो इसे नजरअंदाज ना करें। मस्सों में होने वाली खुजली को भी हल्के में ना लें।इन स्थितियों में एक बार चिकित्सक से जरूर मिलना चाहिए और वर्तमान में जब कैंसर काफी सामान्य बीमारी होते जा रही है तो चिकित्सक से मिलने में कोई बुराई नहीं है।

क्यों होते हैं ये मस्से- पैदा होने के बाद होने वाले मस्सों का मुख्य कारण इंफैक्शन है। इन मस्सों का कारण पेपीलोमा नाम का वायरस है। त्वचा पर पेपीलोमा वायरस के कारण छोटे, खुरदुरे कठोर दाने उभर आते हैं जिसे मस्सा कहते हैं। सामान्य तौर पर मस्से काले और भूरे रंग के होते हैं लेकिन कई बार ये त्वचा के ही रंग के होते हैं जिस कारण लोगों को ये जल्दी दिखाई नहीं देते और इस कारण लोग भी इनके बारे में परवाह नहीं करते। मस्से 8 से 12 प्रकार के होते हैं। जिनसे आप मेडीकल ट्रीटमेंट या कुछ घरेलू उपचारों द्वारा  हमेशा के लिए छुटकारा पा जा सकते है। लेकिन स्थिति गंभीर होने पर डॉक्टर को तुरंत दिखना चाहिए।

ना काटें, ना फोड़ें--- 

कुछ लोग मस्सों को हटाने के लिए उसे कटवा देते हैं या घर पर ही खुद से काट व फोड़ लेते हैं। लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। मस्से को काटने और फोड़ने के कारण मस्से के वायरस का शरीर के अन्य हिस्सों में भी जाने का खतरा होता है। जिससे और मस्से हो जाते हैं। कई बार तो मस्से का वायरस एक आदमी से दूसरे आदमी की त्वचा पर भी चला जाता है।

ऐसे करें प्‍याज का इस्तेमाल


प्याज हर तरह से हमारे लिए फायदेमंद है। खाने से लेकर इसके रस को लगाने तक के फायदे हैं। मस्सों के लिए तो ये रामबाण है। मस्सों को हटाने के लिए लगातर बीस से तीस दिनों तक प्याज के रस को मस्सों में लगाएं। जब समय मिले तब प्याज को काटकर मस्सों पर रगड़ें। दिन में दो-तीन बार ऐसा करें। प्याज के रस से मस्सों का वायरस मर जाता है और मस्से  जड़ से खत्म हो जाते हैं।

पालक के जूस में शहद मिलाकर पीने के फायदे

पालक के जूस में शहद मिलाकर पीने के फायदे – पालक के बारे में तो हम सभी जानते हैं कि ये हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना हेल्दी होता है. सिर्फ पालक का सेवन ही हमें कई न्यूट्रिएंट्स दे देता हैं. लेकिन अगर पालक के साथ कुछ और हेल्दी चीजों को मिलाकर खाई जाए तो इसका फायदा दुगना हो जाता है.
पालक के जूस में शहद मिलाकर पीने के फायदे- शरीर में आयरन की मात्रा को बढ़ाना हो तो पालक का सेवन सबसे बेहतर होता है. ये खून की कमी को दूर करने में कारगर होता है. लेकिन दोस्तों आप इस बात को निश्चित रूप से जान लें कि पालक में सिर्फ आयरन ही नहीं, बल्कि कई और भी न्यूट्रिएंट्स मौजूद होते हैं. जैसे फाइबर और प्रोटीन. ये आपके कब्ज जैसी समस्या को दूर करने में कारगर है. पालक के साथ अगर आप काली मिर्च का पाउडर और शहद मिलाकर सेवन करते हैं, तो आपके सांस से जुड़ी तकलीफ और खांसी की समस्या जल्द-से-जल्द ठीक हो जाएगी.
अगर आप अपने शरीर से फैट की मात्रा कम करना चाहते हैं. यानि कि अपना वजन कम करना चाहते हैं तो पालक पनीर का सेवन आपके लिए काफी कारगर होगा. इसमे कैलोरी की मात्रा काफी कम हो जाती है. इसलिए ये आपके वजन को कंट्रोल करने में सहायक होता है.
अदरक के जूस के साथ भी अगर आप पालक के जूस पीएंगे तो आपका वजन एकदम से कम होने लग जाएगा. इसे बनाने के लिए तीन चम्मच पालक के जूस में एक चम्मच अदरक के जूस को मिलाएं. और अपने नाश्ते के साथ इस जूस का सेवन प्रतिदिन 2 महीने तक करें. आपको आश्चर्यजनक रूप से फायदा मिलेगा. पेट की चर्बी हो या शरीर के किसी भी भाग की अधिक चर्बी को अगर आप कम करना चाहते हैं, तो नित्य पालक के जूस में गाजर के जूस को मिलाकर पीने की शुरुआत कर दें. या फिर पालक के जूस में नींबू के जूस को मिलाकर भी आप सेवन कर सकते हैं. इससे आपको अपने मोटापे को नियंत्रित करने में काफी योगदान मिलेगा.
ये है पालक के जूस में शहद मिलाकर पीने के फायदे – ये प्राकृतिक उपाय आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद हींं लाभदायक है. पालक न सिर्फ आपके मोटापे को कम करने में, बल्कि आपके आंखों की रोशनी को बढ़ाने में भी काफी मददगार साबित होता है. जी हां दोस्तों. तो क्यों ना आज से हीं पालक के जूस को अपने आहार में शामिल करें और स्वस्थ जीवन पाएं