वनौषधियों में पुनर्नवा का रोग निवारण में अपना अति महत्वपूर्ण स्थान है।
१९ वीं शताब्दी तक यह विशुद्व जडी-बूटी थी और मात्रा भारतीय वैद्यों द्वारा
प्रयुक्त की जाती थी। पहली बार जब इसका प्रयोग कुछ असाध्य अंग्रेज रोगियों
पर किया गया और उसके चमत्कारिक परिणाम सामने आये तो इस पर अनेक वैज्ञानिक
प्रयोग किए गये। इसमें कई अदभुत रसायन पाये गये। इसके हरे पौधें में
पोटैशियम नाइट्रेट और हाइड्रोक्लोराइड प्रचुर मात्राा में पाये जाते है।
यही रोग निवारण के मुख्य कारक माने गये है। इसमें कुनैन से मिलता जुलता स्वाद होता है। वह इसमें प्राप्त एक उपक्षारीय
सल्फेट के कारण होता है। चर्बी की तरह का एक सुगन्धित पदार्थ भी इसमें पाया
जाता है। इन्हीं तत्वों के कारण पुनर्नवा (श्वेत) हृदय को भी बल प्रदान
करने वाली औषधि मानी जाती है। निघंटु रत्नाकर ने इसे कफ खांसी, बवासीर,
शरीर में सूजन, पाण्डुरोग, बिच्छू, बरैया आदि का विष दूर करने आदि में
अत्यधिक उपयोगी माना है। राज निघंटु ने इसे दस्तावर एवं धतु तथा उदर रोगों
में अत्यधिक लाभदायक बताया है।इसकी जड पीस कर घी में मिलाकर आँख में लगाने से फली तथा शहद में मिलाकर
लगाने से आँखों की लालिमा मिटाने में लाभ होता है। भाँगरे के रस में मिलाकर
लगाने से आँखों की खुजली तक मिट जाती है। जिन्हें रतौंधी हो वे इसकी जड और
पीपल के साथ गाय के गोबर का रस मिलाकर उबालकर आँखों में लगाते है तो बडा
लाभ मिलता है। जड लेकर उसे जल के साथ घिसकर आँखों में लगाने से जिनकी
दृष्टि कमजोर हो गई हो उन्हें अत्यध्कि लाभ मिलता है जिसके कारण पुनर्नवा को इतना अधिक महत्व दिया जाता है वह इसके मूत्रावाही
नाडयों में प्रभाव और सामान्य से दो गुना तक अधिक पेशाब निकालने की क्षमता
के कारण है। ऐसा पुनर्नवा में प्राप्त पोटैशियम नाइट्रेट की उपस्थिति के
कारण होता है। इसलिए पुनर्नवा उच्च रक्त चाप, शरीर का मोटापा दूर करने तथा
पेट आदि की बीमारियों में बहुत लाभदायक होता है।एलोपैथी रोगों का कारण जीवाणुओं को या वायरस (विषाणुओं) को मानती है पर
हमारा आयुर्वेद शरीर में उत्पन्न हुए विजातीय द्रव्य बडी मात्रा में मल जमा
होने को मानता है। यही सच भी है। बडे नगरों की जल निकासी वाली नालियों को
देखकर इस सच को आसानी से समझा जा सकता है। जिन नालियों में बहुतायत से पानी
डाला जाता रहता है तथा कुरेदने वाली झाडू से सफाई की जाती रहती है वे सदा
स्वच्छ बनी रहती है पर जहाँ यह क्रिया बंद होती है तथा अनेक प्रकार के
खाद्यान्न, घरों की गंदगी प्रवाहित होती रहती है उसमें बिलबिलाते असंख्य
कीडे स्पष्ट देखे जा सकते है। धीरे- धीरे नीचे गंदगी जमा होती रहती है और
उसमें खतरनाक विषाणुओं की संख्या बढती चली जाती है। कई बार तो वे फिनाइल
जैसे कीटनाशकों तक से नहीं मरते। यह धीरे-धीरे दुर्गन्ध के साथ हवा में
पैदा करते रहते है। यही स्थिति अपने शरीर की होती है।दिनभर खाना ठूँसते रहने पर पानी की उचित मात्रा प्रयोग न करने के कारण यह
गंदगी पेट से प्रारम्भ होकर नीचे वृक्क तक फैलती चली जाती है। दूसरी ओर
शारीरिक श्रम न करने के कारण पसीने, थूक, पेशाब आदि से बाहर निकलने वाली
गंदगी का क्रम कमजोर होता चला जाता है। बस यही से रोगों का सिलसिला प्रारंभ
हो जाता है। दाद, खाज, खुजली शोथ, अग्निमंदता-रक्त चाप, हृदय शूल आदि अनेक
प्रकार की बीमारियाँ बढती चली जाती है। कामुक प्रवृत्ति के लोगों में अनेक
प्रकार की पेशाब संबंधी बीमारियाँ बढती जाती है। पेशाब के लिए घंटो बैठे
रहने, बूंद-बूंद पेशाब टपकने या पेशाब में अत्यधिक दुर्गन्ध आने के यह सब
कारण होते है। पुनर्नवा को प्रमुखतः एक मूत्राल औषधि माना जाता है। समझा जा
सकता है कि अतिरिक्त जल छोडकर नालियों की गंदगी की सफाई की तरह यह शरीर की
गंदगी को बाहर निकालने का असाधारण कार्य करती है। इसी से रक्तचाप, शोथ,
भूख बढाने आदि में पुनर्नवा बहुत ही उपयोगी सिद्व हुई है।डा. कोमान ने इसी मूत्राल गुण के कारण इसका प्रयोग मोटापा दूर करने तथा
जलोदर में किया और इनमें उन्हें असाधारण सफलता भी मिली। इसे थोडी-थोडी
मात्रा में दिन में कई बार दिया जाये तो पुरानी खाँसी तथा कफ निवारण में भी
पुनर्नवा रामबाण की तरह काम करती है। जिनका पेट साफ नहीं होता वे भी
पुनर्नवा का सेवन कर सकते है। फेफडों में पानी भर गया हो उसमें भी पुनर्नवा
अत्यधिक लाभदायक सिद्व हुई है।सौंठ, चिरायता तथा कुटकी मिलाकर यदि पुनर्नवा का क्वाथ प्रातः तथा सांयकाल
लिया जाये तो उससे हृदय रोगों में असाधरण लाभ होता है। शरीर में मोटापा या
शोथ हो तब इसके साथ काली मिर्च मिलाकर क्वाथ बनाना चाहिए इसी तरह श्वास नली
में सूजन हो तो यही प्रयोग चंदन के साथ करने का निर्देश है। कफ और दमें
में भी यही प्रयोग लाभ देता है। कुछ वैद्य पुनर्नवा का शाक खाने की सलाह
देते है। यह हृदय तथा अजीर्ण रोगों में बडा लाभदायक होता है। जिन्हें उल्टी
आने की शिकायत हो उन्हें भी पुनर्नवा का कुछ दिन तक सेवन करना चाहिए।
सुजाक तथा अन्य किस्म के धातु रोग भी पुनर्नवा लेने से ठीक होते है।फर्माकापिया एण्ड इंडिया के लेखक डा० ई.एपफ. बोरिंग ने लिखा है कफ निकाल कर
छाती और गले के रोगों को दूर करने के लिए पुनर्नवा से बढकर अच्छी औषधि
नहीं है। इसका चूर्ण अथवा काढा लेने से दमें की शिकायत दूर होती है। दमें
की स्थिति में यदि इसकी जड का ३ माशा चूर्ण लेकर उसमें ४ रत्ती हल्दी
मिलाकर रोगी को दिया जाये तो उससे बहुत शीघ्र लाभ मिलता है। इसी तरह अन्य
सभी प्रयोगों में इसकी मात्रा न्यूनाधिक हो सकती है। साधरणतया इसका ३ ग्राम
से ६ ग्राम तक चूर्ण लेने का विधान है।इनके अतिरिक्त पुनर्नवा का प्रयोग नारु, प्रदर, बाइठे, बिद्रध्
;तिजारीद्ध तीसरे या चौथे दिन आने वाले बुखार में दाद आदि में भी किया जाता
है। अनेक कुशल वैद्य पुनर्नवा मंडूर तथा पुनर्नवा गुग्गल, पुनर्नवारिष्ट,
पुनर्नवा रसायन बनाकर लोगों को दीर्घजीवन, उत्तम स्वास्थ्य, शरीर दर्द से
निवृत्ति आदि में भी प्रयोग करते है। पुनर्नवा केवल रोग निवारक औषध् ही नहीं शक्तिदायक औषध् भी है। अतएव इसे
कोई भी लेकर अपने स्वास्थ्य और दीर्घजीवन के लिए लाभ ले सकते है।
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