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Sunday 3 January 2021

शरीर में खून की कमी है?

 

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सही और संतुलित खान-पान ना होने से शरीर को सैंकड़ों बीमारियां जकड़ लेती हैं। इसके बाद शुरू होता है अस्पताल के चक्कर लगाना, तमाम मेडिकल टेस्ट और रुटीन चेकअप कराने का सिलसिला


शरीर में हीमोग्लोबिन कम होने का मतलब अनेकों बीमारियों को न्यौता देना है।  हीमोग्लोबिन एक आयरन युक्त प्रोटीन है। बिना आयरन के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन सकता। हीमोग्लोबिन खून को उसका लाल रंग देता है। यह फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचाता है। अगर शरीर में आयरन की कमी होगी तो हीमोग्लोबिन कम होगा, जिससे शरीर को मिलने वाले ऑक्सीजन में भी कमी होने लगेगी। पुरुषों की मुकाबले महिलाओं में आयरन की कमी ज्यादा देखने को मिलती है। पुरूषों में सामान्य हीमोग्लोबिन 13.5-17.5  ग्राम और महिलाओं में 12.0-15.5 ग्राम प्रति डीएल होना चाहिए। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होना एनीमिया कहलाता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार हीमोग्लोबिन कम होने पर ऐसा जरुरी नहीं है कि आपको किसी तरह की कोई बीमारी ही हो। ये समस्या गर्भवती महिलाओं में आमतौर पर पाई जाती है। इतना ही नहीं महिलाओं में पीरियड्स के समय ज्यादा ब्लीडिंग, हृदय संबंधी बीमारियां, पेट से संबंधित बीमारियां, कैंसर, विटामिन बी12 की कमी और शरीर में फोलिक एसिड की कमी की वजह से भी हीमोग्लोबिन की कमी होने के साथ शरीर में खून की कमी होने लगती है। इसके अलावा हीमोग्लोबिन कम होने पर कई लक्षण भी नजर आने लगते हैं।हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब पुरुषों में हीमोग्लोबिन का स्तर 13.5 ग्राम /100 मिली. से कम होता है और महिलाओं में जब हीमोग्लोबिन का लेवल 12.0 ग्राम/100 मिली. से कम होता है तो ऐसे में उनके शरीर में रक्त की कमी होने के साथ ही कई तरह की बीमारियां अपना शिकार बनाने लगती हैं।


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शरीर में खून की कमी होने के कारण:

1. पोषक तत्वों की कमी 

2. आयरन की कमी

3. विटामिन बी-12 की कमी

4. फॉलिक एसिड की कमी

5. स्मोकिंग

6. एजिंग 

7. ब्लीडिंग   

हीमोग्लोबिन कम होने के लक्षण:

-जल्दी थकान होना 

-त्वचा का फीका, पीला दिखना

-आंखों के नीचे काले घेरे होना 

-सीने और सिर में दर्द होना

-तलवे और हथेलियों का ठंडा पड़ना

-शरीर में तापमान की कमी होना 

-चक्कर और उल्टी आना, घबराहट होना 

-पीरियड्स के दौरान अधिक दर्द होना 

-सांस फूलना, धड़कनें तेज होना

-अक्सर टांगें हिलाने की आदत 

-बालों का अधिक झड़ना 

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए ये खाएं:

अनार

एक अनार हमें सौ बीमारियों से लड़ने की क्षमता देता है। अनार आयरन कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और विटामिन से भरपूर होता है। अनार शरीर में खून की कमी को बेहद जल्द पूरा करता है। 

चुकंदर 

चुकंदर शरीर में खून की मात्रा बढ़ाने का रामबाण इलाज है। चुकंदर का जूस लगातार पीने से खून साफ रहता है और शरीर में खून की कमी भी नहीं होती। चुकंदर में आयरन के तत्‍व अधिक मात्रा में होते हैं, जिससे नया खून जल्दी बनता है।

केला 

केले में मौजूद प्रोटीन, आयरन और खनिज शरीर में खून बढ़ाते हैं। 

गाजर 

लगातार गाजर का जूस पीने या गाजर खाने से शरीर में खून की कमी को पूरा किया जा सकता है।

अमरूद

पका अमरूद खाने से शरीर में हीमोग्लोबीन की कमी नहीं होती।

सेब

अगर आप एनीमिया से ग्रसित हैं तो सेब खाना लाभकारी रहेगा। सेब खाने से शरीर में हीमोग्लोबीन की मात्रा बढ़ती है। 

अंगूर

अंगूर में विटामिन, पोटैशियम, कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। अंगूर में ज्यादा आयरन होने से यह शरीर में हीमोग्लोबीन बढ़ाने में सहायक है। अंगूर हमारी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

संतरा 

संतरा विटामिन-सी के अलावा फॉस्फोरस, कैल्शियम और प्रोटीन का बेहतरीन स्त्रोत है। संतरा खाने से शरीर में ना केवल खून बढ़ता है बल्कि खून साफ भी रहता है।

टमाटर 

टमाटर सब्जी ही नहीं, बल्कि एक पौष्टिक और गुणकारी फल है। टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन-सी होता है। टमाटर का सूप या टमाटर खाने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है।


हरी सब्जियां और सलाद 

शरीर में आयरन की कमी दूर करने के लिए पालक, सरसों, मेथी, धनिया, पुदीना, बथुआ, ब्रोकली, गोभी, बीन्स, खीरा खूब खाएं। शरीर में हीमोग्लोबीन बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां भोजन में शामिल करें। पालक के पत्तों में सबसे अधिक आयरन पाया जाता है। 

सूखे मेवे

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए खजूर, बादाम और किशमिश खाएं। इनमें आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है। रोजाना दूध के साथ खजूर खाने से शरीर को बहुत-से फायदे होते हैं। खजूर खाने से शरीर को भरपूर मात्रा में आयरन मिलता है। भागदौड़ भरी जिंदगी में सही खानपान न करने और किसी भी समय कुछ भी खा लेने वाली आदत के कारण शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी होने लगती है। जिस वजह से रेड ब्लड सेल्स नष्ट होने शुरू हो जाते हैं और शरीर में खून की कमी होने लगती है। हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शरीर में रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन की संख्या कम होने पर कई बीमारियां होने लगती है।

गुड़

गुड़ एक प्राकृतिक खनिज है जो आयरन का प्रमुख स्रोत है। यह विटामिन से भरपूर होता है। गुड़ शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है। लगातार गुड़ खाने से पेट की समस्‍याओं से भी निजात पायी जा सकती है।

इसके अलावा शरीर में आयरन और विटामिन बी-12 की कमी को पूरा करने के लिए मीट, चिकन, मछली, अंडे का भी सेवन कर सकते हैं। बता दें, अंडे के पीले भाग में भरपूर मात्रा में विटामिन बी-12 पाया जाता है। 


 

Tuesday 26 November 2019

पपीता स्वास्थ्य के लिए लाभकारी

                    

पपीता स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभकारी है। यह पाचन तंत्र को मजबूत तो बनाता ही है साथ ही में मोटापे को भी कम करता है। पपीते में कैलोरी की मात्रा भी कम होती है। आप पपीता को जूस के तौर पर भी ले सकते हैं। थाई एवं मलेशियन खाने में पपीते का काफी इस्तेमाल होता है। इसकी कई तरह की डिश बनती हैं। प्राचीन काल से घरेलू उपचार के तौर पर भी पपीते का इस्तेमाल होता है।

त्वचा के साथ ही पपीता आपके स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। हर रोज पपीता खाने से आपको कई तरह की बीमारियां नहीं होती हैं। पपीते की चटनी भी बनती है। वैसे तो पपीते को बिना पकाए ही खाना ज्यादा लाभकारी होता है। लेकिन कई लोग कच्चे पपीते की सब्जी भी बड़े चाव से खाते हैं।पपीता सिर्फ मोटापा ही नहीं घटाता बल्कि आपकी आंखों के लिए भी लाभकारी होता है। अगर आपको कब्ज है तो रोज पपीता खाएं इससे पेट साफ होगा।

अमेरिका के कृषि विभाग का डाटा बताता है कि 100 ग्राम पपीते में 43 ग्राम कैलोरी होती है। पपीता खाने से शरीर में पानी की कमी भी नहीं होती है। 100 ग्राम पपीते में 0.47 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है। अगर फाइबर की बात करें तो 100 ग्राम पपीते में 1.7 ग्राम फाइबर होता है। 100 ग्राम पपीते में 10.82 ग्राम कार्बोहाइड्रेड और 7.8 ग्राम शुगर की मात्रा होती है। ऐसे में जो लोग अपने मोटापे को कम करना चाहते हैं वह प्रतिदिन डाइट में पपीते का सेवन कर सकते हैं।

पपीते में कैल्शियम, पौटेशियम और मैग्नेशियम की मात्रा भी होती है। 100 ग्राम पपीते में 20 ग्राम कैल्शियम एवं 21 ग्राम मैग्नेशियम होता है।जबकि 182 ग्राम पौटेशियम होता है। इसकी वजह से पपीता पाचन प्रक्रिया के लिए फायदेमंद होता है। पपीते में कोलेस्ट्रोल की मात्रा जरा-सी भी नहीं होती है। इसकी वजह से यह हृदय के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। पपीते में मौजूद फाइबर आपके खाने को पचाता है और कब्ज की शिकायत दूर करता है। पपीता का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन के लिए भी किया जाता है। इसका फेस पैक बनाकर चेहरे पर लगाया जाता है। इससे त्वचा निखरती है और कोमलता बरकरार रहती है। पपीते में विटामिन ए, सी और के की मात्रा होती है जो संक्रमण से बचाती है।

पपीते के पत्तों का जूस पीने से- डेंगू और चिकनगुनिया के रोगियों को इसका जूस पीने की सलाह दी जाती है. लेकिन अगर आप ताउम्र स्वस्थ रहना चाहते हैं तो इसे अपनी डाइट में शामिल किया जा सकता है.

1. कैंसर सेल्स का बढ़ने से रोके - पपीते के पत्तों में कैंसररोधी गुण होते हैं जो कि इम्‍यूनिटी को बढ़ाने में मदद करते हैं और सर्वाइकल कैंसर, ब्रेस्‍ट कैंसर जैसे कैंसर के सेल्स को बनने से रोकते हैं.

2. इंफेक्शन से बचाए- शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने के साथ ही पपीते के पत्तों का जूस शरीर में बैक्‍टीरिया की ग्रोथ रोकने में भी सहायक है. यह खून में वाइट ब्‍लड सेल्‍स और प्‍लेटलेट्स को बढ़ाने में भी मदद करता है.

3. डेंगू की रामबाण दवा- डेंगू और मलेरिया से लड़ने में पपीते की पत्‍तियों का जूस काफी लाभकारी रहता है. यह बुखार की वजह से गिरती प्लेटलेट्स को बढ़ाने और शरीर में कमजोरी को बढ़ने से रोकता है.

4. पीरियड्स के दर्द को करे दूर- पीरियड्स में होने वाला दर्द बहुत जानलेवा होता है और ऐसे में अगर पपीते की पत्‍ती को इमली, नमक और 1 ग्लास पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बनाया जाए और इसे ठंडा करके पिया जाए तो काफी आराम मिलता है.

5. खून की कमी में लाभदायक- पपीते का रस की औषधि से कम नहीं है. अगर आपकी ब्‍लड प्‍लेटलेट्स कम हो रही हैं तो इसे पीने से ब्‍लड प्‍लेटलेट्स बढ़ जाती हैं. बस रोजाना इस जूस को दो चम्‍मच लगभग तीन महीने तक पिएं.

6 कोलेस्ट्रॉल कम करन में सहायक - पपीते में उच्च मात्रा में फाइबर मौजूद होता है. साथ ही ये विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स से भी भरपूर होता है. अपने इन्हीं गुणों के चलते ये कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में काफी असरदार है.

7. वजन घटाने में - एक मध्यम आकार के पपीते में 120 कैलोरी होती है. ऐसे में अगर आप वजन घटाने की बात सोच रहे हैं तो अपनी डाइट में पपीते को जरूर शामिल करें. इसमें मौजूद फाइबर्स वजन घटाने में मददगार होते हैं .

8 . रोग प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने में- रोग प्रतिरक्षा क्षमता अच्छी हो तो बीमारियां दूर रहती हैं. पपीता आपके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन सी की मांग को पूरा करता है. ऐसे में अगर आप हर रोज कुछ मात्रा में पपीता खाते हैं तो आपके बीमार होने की आशंका कम हो जाएगी.

9 . आंखों की रोशनी बढ़ाने में- पपीते में विटामिन सी तो भरपूर होता ही है साथ ही विटामिन ए भी पर्याप्त मात्रा में होता है. विटामिन ए आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ ही बढ़ती उम्र से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में भी कारगर है.

10 पाचन तंत्र को सक्रिय रखने में- पपीते के सेवन से पाचन तंत्र भी सक्रिय रहता है. पपीते में कई पाचक एंजाइम्स होते हैं. साथ ही इसमें कई डाइट्री फाइबर्स भी होते हैं जिसकी वजह से पाचन क्रिया सही रहती है.

पपीता खाने का सही समय - हर फल में अपने अलग अलग औषधीय गुण मौजूद होते हैं जो उसे बाकि फलों के मुकाबले सबसे ख़ास बनाते हैं ठीक इसी प्रकार से कुछ फलों को खाने का समय भी निश्चित किया गया है. क्यूंकि बे-वक़्त खाया गया फल भी मनुष्य की सेहत पर भारी पड़ सकता है. कुछ फलों को शाम के छह बजे के बाद खाना ज़हर खाने के समान्य होता है क्यूंकि यह फल शाम में खाने से हमारी पाचन प्रक्रिया पर गहरा असर करते हैं. इसलिए सूबह के समय फलों का सेवन सबसे उत्तम माना जाता है.  यदि आप भी पपीता खाने के शौक़ीन हैं तो इसको नाश्ते में जरुर खाएं. क्यूंकि पपीता हमारे पेट के लिए एक सहिष्णु है इसलिए अगर इसको नाश्ते में खाया जाए तो ये ना केवल आपको तारो ताज़ा रखता है बल्कि आपके पाचन तंत्र को भी कंट्रोल में रखता है. पपीता खाने के सही समय की बात की जाए तो सुबह 5 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय पपीते के सेवन के लिए सबसे उपयोगी है

Monday 25 November 2019

मूली - पेट के लिए किसी अमृत से कम नहीं है

अगर आप मूली को अपनी डाइट में शामिल करेंगे  तो आप डायबिटीज, पेट की प्रॉब्‍लम्‍स, ब्‍लड प्रेशर, कैंसर आदि कई बीमारियों से कोसों दूर रहेंगे

सर्दियों में सलाद, पराठे और सब्‍जी के रूप में लगभग हर घर में मूली खाई जाती है। क्‍या आप जानते हैं कि मूली सिर्फ खाने में ही स्‍वादिष्‍ट नहीं होती बल्कि आपकी हेल्‍थ के लिए भी बहुत फायदेमंद है। मूली में क्लोरीन, फास्फोरस, सोडियम और मैग्नीशियम पाया जाता है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए, बी और सी भी होता है।  दिखने में मामूली लगने वाली मूली औषधीय गुणों से भरपूर होती है। अगर आप रोजाना इसे अपनी डाइट में शामिल करेंगे तो आप डायबिटीज, पेट की प्रॉब्‍लम्‍स, ब्‍लड प्रेशर, कैंसर आदि कई बीमारियों से कोसों दूर रहेंगी। आइए जानें मूली हमारी हेल्‍थ के लिए कितनी फायदेमंद होती है।

पौष्टिक तत्वों से भरपूर- 10 ग्राम मूली में 0.1 ग्राम फैट, 4.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.6 ग्राम डाइट्री फाइबर, 2.5 ग्राम शुगर, 0.6 ग्राम प्रोटीन, 36 प्रतिशत विटमिन सी, 2 प्रतिशत कैल्शियम, 2 प्रतिशत आयरन, 4 प्रतिशत मैग्नीशियम होता है। जी हां मूली में बहुत सारे पौष्टिक तत्‍व होते हैं जो आपकी पूरी बॉडी के लिए बेहद ही फायदेमंद होते है।

पाचक का काम करती है मूली - पेट के लिए मूली बहुत फायदेमंद होती है। मूली एक पाचक की तरह काम करती है। पेट की कई बीमारियों में मूली का रस बहुत फायदेमंद होता है। अगर पेट में भारीपन महसूस हो रहा हो तो मूली के रस को नमक में मिलाकर पीने से आराम मिलता है। ताजी मूली खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। इसके अलावा, मूली पित्त उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती है। पित्त पाचन के सबसे महत्वपूर्ण भागों में से एक है। इससे आपकी पाचन क्रिया सही रहती है। पेट संबंधी रोगों में अगर मूली के रस में अदरक का रस और नींबू मिलाकर पिएं तो भूख बढ़ती है।

बॉडी डिटॉक्‍स करें- मूली किडनी हेल्‍थ के लिए बहुत अच्छी होती है क्‍योंकि इसे खाने से बॉडी आसानी से डिटॉक्‍स हो जाती है। इसमें डाइयूरेटिक गुण होने के कारण इसे नेचुरल क्लिंजर कहा जाता है। इसके अलावा मूली में फाइबर ज्यादा होता है, जो कब्ज के लिए रामबाण है। यह आंतों को हेल्‍दी रखता है।

बीपी में फायदेमंद है
मूली- मूली में एंटी हाइपरटेंसिव गुण पाया जाता है, जो ब्‍लड प्रेशर को कंट्रोल करने में हेल्‍प करती है। इसके अलावा मूली में पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम भी होता है, जो बॉडी में सोडियम और पोटैशियम के अनुपात को बैलेंस करते हुए ब्लड प्रेशर बिगड़ने नहीं देता। अगर आप भी बीपी से परेशान हैं तो अपनी डाइट में मूली को शामिल करें।

लिवर के लिए फायदेमंद- मूली खाने से लिवर की क्रिया बेहतर होती है। लिवर की परेशानी होने पर रेगुलर अपने भोजन में मूली का सेवन करना चाहिए। साथ ही पीलिया रोग में भी ताजी मूली का प्रयोग बहुत ही उपयोगी होता है। रेगुलर रूप से 1 कच्ची मूली सुबह खाने से कुछ ही दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है

पाइल्स में फायदेमंद- पाइल्स के मरीजों को कच्ची मूली का ही सेवन करना चाहिए। आप चाहें तो इसे घिसकर खा सकते हैं। या फिर इसका रस निकालकर भी पी सकती हैं। लेकिन मूली के रस का सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। पाइल्‍स के रोगियों को अक्‍सर मूली खाने की सलाह दी जाती है क्‍योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं जो मल को मुलायम करने और डाइजेशन को सही रखने में हेल्‍प करती है। यह पाइल्‍स के दौरान पैदा होने वाले दर्द और सूजन को कम करती है। इसके अलावा मूली ठंडक देने का काम करती है, जिससे जलन में भी राहत मिलती है। पाइल्स के मरीजों को कच्ची मूली का सेवन ही करना चाहिए। तो देर किस बात की इन सर्दियों आप भी अपनी डाइट में इसे शामिल करें और हेल्‍दी रहें।

पौष्टिक तत्वों से भरपूर - 10 ग्राम मूली में 0.1 ग्राम फैट, 4.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.6 ग्राम डाइट्री फाइबर, 2.5 ग्राम शुगर, 0.6 ग्राम प्रोटीन, 36 प्रतिशत विटमिन सी, 2 प्रतिशत कैल्शियम, 2 प्रतिशत आयरन, 4 प्रतिशत मैग्नीशियम होता है। जी हां मूली में बहुत सारे पौष्टिक तत्‍व होते हैं जो आपकी पूरी बॉडी के लिए बेहद ही फायदेमंद होते है।

मूली के पत्तों का रस 3 दिन में दूर करता है पीलिया रोग - पीलिया होने पर भूख लगना बंद हो जाती है। गर्मी तथा बरसात के दिनो में जो रोग सबसे अधिक होते है। उनमें से एक है पीलिया। पीलिया होने पर भूख लगना बंद हो जाती है। इसमें आंख नाखून और शरीर पीला नजर आने लगता है। इस रोग को घरेलू उपचार से ठीक किया जा सकता है। पीलिया में फिटकरी और मूली के पत्तों का बहुत उपयोगी है। पीलिया में रोगी को निम्न चीजों का सेवन करना चाहिए.. दही में फिटकरी को पीसकर दही में मिलाकर खाने से पीलिया 3 से 8 दिन में ठीक हो जाता है।  मूली के पत्तों का रस निकालकर उसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाएं। एक हफ्ते में पीलिया ठीक हो जाता है।

  • गुर्दे संबंधी परेशानियों के लिए मूली का रस और मूली दोनों ही रामबाण उपाय है। इसके रस में सेंधा नमक मिलाकर नियमित रूप से पीने पर गुर्दे साफ होते हैं और गुर्दे की पथरी भी समाप्त हो जाती है।

    • मूली के पत्ते- लगातार हिचकी आने से परेशान हैं तो मूली के पत्ते आपकी मदद कर सकते हैं। मूली के मुलायम पत्तों का चबाकर चूसने से हिचकी आना तुरंत बंद हो जाएगा। इतना ही नहीं मुं‍ह की दुर्गंध से भी छुटकारा मिलेगा।
    • दातों की समस्या या पीलापन खत्म करना हो तो इसके छोटे-छोटे टुकड़ों में नींबू का रस डालकर दांतों पर रगड़ें या कुछ देर तक चबाते रहें और थूक दें। इस तरह से दांतों का पीलापन कम होगा। मूली के रस का कुल्ला करने पर भी दांत मजबूत होंगे।
    • नींद न आने की समस्या – अगर आपको नींद नहीं आती, तो मूली खाना आपके लिए बेहद जरूरी है। यह न केवल नींद न आने की समस्या से छुटकारा दिलाएगी बल्कि नींद लेने के लिए प्रेरित करेगी।

  • मोटापा – मूली मोटापा घटाने में सहायक होता है। जो लोग मोटापे से परेशान है और मोटापा कम करना चाहते है। वो इसके रस में निम्बू और सेंधा नमक मिलाकर दिन में सेवन करे। इस घरेलु नुस्खे से मोटापा धीरे धीरे घटने लगता है।
    दमा – जिन्हे साँस यानी दमा की बीमारी है वो मूली के जूस का काढ़ा पिए यह दमे के लिए बेहतरीन दवा है।
    पेट में गैस – इसे खाने से पाचन क्रिया में सुधर होता है। भोजन जल्दी और आसानी से पांच जाता है। जिनके पेट में गैस बनती है। उन्हें जरूर इसको अपने भोजन में शामिल करना चाइये। मूली गैस के लिए रामबाण दवा का काम करती है। पेट में गैस होने पर खाली पेट इसके दुकड़ो को नमक के साथ खाये

Sunday 25 November 2018

त्रिफला से कायाकल्प

                     त्रिफला से कायाकल्प-Triphala Rejuvenation
त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक व ऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्‍बे,गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।

हरड  - हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है

बहेडा - बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है

आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की  तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए । कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है  और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। 

1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

ओषधि के रूप में त्रिफला 

रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगा। शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।

एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है। त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है। त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।

चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।

त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है। 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।

5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।

त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।

डेढ़ माह तक नीचे बताए इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है कल्प के दिनों में खट्टे, तले हुए, मिर्च-मसालेयुक्त व पचने में भारी पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। 40 दिन तक मामरा बादाम का उपयोग विशेष लाभदायी होगा। कल्प के दिनों में नेत्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य करें।

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानीः दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाख जहर होता है । त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प - कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वर्ध्दाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और शुक्ष्म से शुक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने  भी लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।

ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।

उत्पाद विवरण- 
विनय त्रिफला रस (एलोवेरा युक्त ) – त्रिफला रस आयुर्वेद का वरदान है त्रिफला रस का प्रयोग आयुर्वेदचार्य सेकड़ो वर्षो से सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक करने में प्रयोग करते आ रहे है इसमें आयुर्वेद की मतानुसार वात ,पित और कफ तीन दोष माने गये है त्रिफला हरंड, बहेडा और आवला से मिलकर बनता है साथ मे एलोवेरा के संयोजन से ओर गुणकारी हो जाता है !और उक्त त्रिदोषो को दूर करता है इसके विस्तृत लाभ निम्न है :- • त्रिफला रस के सेवन से गैस,कब्ज ,एसिडिटी आदि की समस्या दूर होती है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है • यह लीवर की सभी समस्याओ को दूर कर लीवर को शक्ति प्रदान करता है • यह ब्लड प्रेसर को नियंत्रित करता है • यह केलोस्ट्रोल को संतुलित करता है • यह ह्रदय को शक्ति प्रदान कर ह्रदय गति को सामान्य करता है • त्रिफला रस का सेवन लाल रुधिर कणीकाओ के निर्माण को बढाता है • त्रिफला रस हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है • यह शरीर में इन्फेक्शन को रोकता है तथा सर्दी ,खासी ,कफ तथा एलर्जी में अत्यंत लाभ करी है • यह सीने एवं फेफड़ो में जमे हुए कफ को पिघलाकर बाहर निकालने में सहायक
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Saturday 2 September 2017

पीलिया = कारण,लक्षण एवं उपचार/निदान

गर्मी तथा बरसात के दिनो में जो रोग सबसे अधिक होते है, उनमे से पीलिया प्रमुख है पीलिया ऐसा रोग है जो एक विशेष प्रकार के वायरस और किसी कारणवश शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ जाने से होता है इसमें रोगी को पीला पेशाब आता है उसके नाखून, त्वचा एवं आखों सा सफ़ेद भाग पीला पड़ जाता है बेहद कमजोरी कब्जियत, जी मिचलाना, सिरदर्द, भूख न लगना आदि परेशानिया भी रहने लगती है 
   

प्रमुख कारण :-  विषाणु जनित यकृतशोथ पीलिया या Viral Hepatitis यह एक प्रकार के वायरस से होने वाला रोग है जो इस रोग से पीडित रोगी के मल के संपर्क में आये हुए दूषित जल, कच्ची सब्जियों आदि से फैलता है कई लोग इससे ग्रस्त नहीं होते है उनके मल से इसके वायरस दूसरो तक पहुच जाते है पेट से यह लीवर में और वहां से सारे शरीर में फ़ैल जाता है रोगी को लगाईं गई सुई का अन्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में बिना उबले प्रयोग करने से व रोगी का खून अन्य स्वस्थ व्यक्ति में चड़ने से भी यह रोग फैलता है । इसके अतिरिक्त शरीर में अम्लता की वृद्धि, बहुत दिनों तक मलेरिया रहना, पित्त नली में पथरी अटकना, अधिक मेंहनत, जादा शराब पीना, अधिक नमक और तीखे पदार्थो का सेवन, दिन में ज्यादा सोना, खून में रक्तकणों की कमी होना आदि कारणों से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है !  

लक्षण :-  वायरस के शरीर में प्रवेश करने के लगभग एक मास बाद इस रोग के लक्षण नजर आने लगते है लक्षणों के प्रारम्भ होने से एक सप्ताह पहले ही रोगी के मल में वायरस निकलने लगते है आमतौर पर रोग की शुरुआत में रोगी को शक ही नहीं हो पाता है कि वह कामला का शिकार हो गया है यूं तो इसके वायरस सारे शरीर में फ़ैल जाते है पर लीवर पर इसका विशेष दुष्प्रभाव पड़ता है लिवर कोशिकाओ के रोगग्रस्त हो जाते व आमाशय में सुजन आ जाने से रोगी को भूख लगना बंद हो जाती है उसका जी मिचलाता है | और कभी कभी उसे उलटी भी हो जाती है कब्जियत रहती है भोजन की इच्छा बिलकुल न होना तथा भोजन के नाम से ही अरुचि होना इस रोग का प्रधान लक्षण है ,, लिवर में शोथ होने से आमाशय में या फिर दाहिनी पसलियों के नीचे भारीपन या हल्का सा दर्द का लक्षण भी महसूस होता है शरीर में विष संचार के कारण सिरदर्द  रहता है शरीर थका थका व असमर्थ लगने लगने लगता है ! शाम के समय तबियत गिरी गिरी रहती है शरीर में विष संचार के कारण 100 से 102 डिग्री तक बुखार भी तीन चार दिन रहता है पित्त के रक्त में जाने से मूत्र गहरे रंग, सरसों के तेल के सामान आता है तथा रोग के बढ़ने पर आंत में पित्त के कम आने से मल का रंग फीका हो जाता है मल मात्रा में अधिक व दुर्गंधित होता है | इस रोग में रक्त जमने का समय बढ़ जाता है जिससे रक्तपित्त का उपद्रव हो सकता है | त्वचा एवं आँखों का रंग पीला हो जाता है । पीलिया के रोगियों के जांच करने पर उनका लिवर कुछ कुछ बड़ा हुआ तथा पसलियों से एक तो अंगुल या अधिक नीचे स्पर्श होता है परन्तु कठोर नहीं होता , दबाने पर दर्द होता है मूत्र परिक्षण करने पर वह सरसों के तेल के समान पीला होता है क्यूंकि उसमें बिलीरूबीन होता है ,, यानि कि विस्तार से कहें तो रक्त में पित्तरंजक (Billirubin)  नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है।
इस दशा को ही कामला या पीलिया(Jaundice) कहते हैं- सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला/पीलिया के लक्षण प्रकट होते हैं। कामला/ पीलिया स्वयं कोई रोगविशेष नहीं है, बल्कि कई रोगों में पाया जानेवाला एक लक्षण है। यह लक्षण नन्हें-नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में उत्पन्न हो सकता है। यदि पित्तरंजक की विभिन्न उपापचयिक प्रक्रियाओं में से किसी में भी कोई दोष उत्पन्न हो जाता है तो पित्तरंजक की अधिकता हो जाती है, जो कामला के कारण होती है। रक्त में लाल कणों का अधिक नष्ट होना तथा उसके परिणामस्वरूप अप्रत्यक्ष पित्तरंजक का अधिक बनना बच्चों में कामला, नवजात शिशु में रक्त-कोशिका-नाश तथा अन्य जन्मजात, अथवा अर्जित, रक्त-कोशिका-नाश-जनित रक्ताल्पता इत्यादि रोगों का कारण होता है। जब यकृत की कोशिकाएँ अस्वस्थ होती हैं तब भी कामला हो सकता है, क्योंकि वे अपना पित्तरंजक मिश्रण का स्वाभाविक कार्य नहीं कर पातीं और यह विकृति संक्रामक यकृतप्रदाह, रक्तरसीय यकृतप्रदाह और यकृत का पथरा जाना (कड़ा हो जाना, Cirrhosis) इत्यादि प्रसिद्ध रोगों का कारण होती है। अंतत: यदि पित्तमार्ग में अवरोध होता है तो पित्तप्रणाली में अधिक प्रत्यक्ष पित्तरंजक का संग्रह होता है और यह प्रत्यक्ष पित्तरंजक पुन: रक्त में शोषित होकर कामला की उत्पत्ति करता है। अग्नाशय, सिर, पित्तमार्ग तथा पित्तप्रणाली के कैंसरों में, पित्ताश्मरी की उपस्थिति में, जन्मजात पैत्तिक संकोच और पित्तमार्ग के विकृत संकोच इत्यादि शल्य रोगों में मार्गाविरोध यकृत बाहर होता है। यकृत के आंतरिक रोगों में यकृत के भीतर की वाहिनियों में संकोच होता है, अत: प्रत्यक्ष पित्तरंजक के अतिरिक्त रक्त में प्रत्यक्ष पित्तरंजक का आधिक्य हो जाता है। 
वास्तविक रोग का निदान कर सकने के लिए पित्तरंजक का उपापचय (Metabolism) समझना आवश्यक है। रक्तसंचरण में रक्त के लाल कण नष्ट होते रहते हैं और इस प्रकार मुक्त हुआ हीमोग्लोबिन रेटिकुलो-एंडोथीलियल (Reticulo-endothelial) प्रणाली में विभिन्न मिश्रित प्रक्रियाओं के उपरांत पित्तरंजक के रूप में परिणत हो जाता है, जो विस्तृत रूप से शरीर में फैल जाता है, किंतु इसका अधिक परिमाण प्लीहा में इकट्ठा होता है। यह पित्तरंजक एक प्रोटीन के साथ मिश्रित होकर रक्तरस में संचरित होता रहता है। इसको अप्रत्यक्ष पित्तरंजक कहते हैं। यकृत के सामान्यत: स्वस्थ अणु इस अप्रत्यक्ष पित्तरंजक को ग्रहण कर लेते हैं और उसमें ग्लूकोरॉनिक अम्ल मिला देते हैं यकृत की कोशिकाओं में से गुजरता हुआ पित्तमार्ग द्वारा प्रत्यक्ष पित्तरंजक के रूप में छोटी आँतों की ओर जाता है। आँतों में यह पित्तरंजक यूरोबिलिनोजन में परिवर्तित होता है जिसका कुछ अंश शोषित होकर रक्तरस के साथ जाता है और कुछ भाग, जो विष्ठा को अपना भूरा रंग प्रदान करता है, विष्ठा के साथ शरीर से निकल जाता है।
प्रत्येक दशा में रोगी की आँख (सफेदवाला भाग Sclera) की त्वचा पीली हो जाती है, साथ ही साथ रोगविशेष काभी लक्षण मिलता है। वैसे सामान्यत: रोगी की तिल्ली बढ़ जाती है, पाखाना भूरा या मिट्टी के रंग का, ज्यादा तथा चिकना होता है। भूख कम लगती है। मुँह में धातु का स्वाद बना रहता है। नाड़ी के गति कम हो जाती है। विटामिन ‘के’ का शोषण ठीक से न हो पाने के कारण तथा रक्तसंचार को अवरुद्ध (haemorrhage) होने लगता है। पित्तमार्ग में काफी समय तक अवरोध रहने से यकृत की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं। उस समय रोगी शिथिल, अर्धविक्षिप्त और कभी-कभी पूर्ण विक्षिप्त हो जाता है तथा मर भी जाता है। कामला के उपचार के पूर्व रोग के कारण का पता लगाया जाता है। इसके लिए रक्त की जाँच, पाखाने की जाँच तथा यकृत-की कार्यशक्ति की जाँच करते हैं। इससे यह पता लगता है कि यह रक्त में लाल कणों के अधिक नष्ट होने से है या यकृत की कोशिकाएँ अस्वस्थ हैं अथवा पित्तमार्ग में अवरोध होने से है।
पीलिया की चिकित्सा में इसे उत्पन्न करने वाले कारणों का निर्मूलन किया जाता है जिसके लिए रोगी को अस्पताल में भर्ती कराना आवश्यक हो जाता है। कुछ मिर्च, मसाला, तेल, घी, प्रोटीन पूर्णरूपेण बंद कर देते हैं, कुछ लोगों के अनुसार किसी भी खाद्यसामग्री को पूर्णरूपेण न बंद कर, रोगी के ऊपर ही छोड़ दिया जाता है कि वह जो पसंद करे, खा सकता है। औषधि साधारणत: टेट्रासाइक्लीन तथा नियोमाइसिन दी जाती है। कभी-कभी कार्टिकोसिटरायड (Corticosteriod) का भी प्रयोग किया जाता है जो यकृत में फ़ाइब्रोसिस और अवरोध उत्पन्न नहीं होने देता। । कामला के पित्तरंजक को रक्त से निकालने के लिए काइनेटोमिन (Kinetomin) का प्रयोग किया जाता है। कामला के उपचार में लापरवाही करने से जब रोग पुराना हो जाता है तब एक से एक बढ़कर नई परेशानियाँ उत्पन्न होती जाती हैं और रोगी विभिन्न स्थितियों से गुजरता हुआ कालकवलित हो जाता है।
उपचार:- रोगी को शीघ्र ही डॉक्‍टर के पास जाकर परामर्श लेना चाहिये। बिस्‍तर पर आराम करना चाहिये घूमना, फिरना नहीं चाहिये। लगातार जांच कराते रहना चाहिए। डॉक्‍टर की सलाह से भोजन में प्रोटिन और कार्बोज वाले प्रदार्थो का सेवन करना चाहिये। नीबू, संतरे तथा अन्‍य फलों का रस भी इस रोग में गुणकारी होता है। वसा युक्‍त गरिष्‍ठ भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है। चावल, दलिया, खिचडी, थूल्ली, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्‍लूकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली आदि कार्बोहाडेट वाले प्रदार्थ हैं 
इनका रोग की रोकथाम एवं बचाव
पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिये कुछ साधारण बातों का ध्‍यान रखना जरूरी हैः- खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्‍छी तरह धोना चाहिए। भोजन जालीदार अलमारी या ढक्‍कन से ढक कर रखना चाहिये, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें। ताजा व शुद्व गर्म भोजन करें दूध व पानी उबाल कर काम में लें। पीने के लिये पानी नल, हैण्‍डपम्‍प या आदर्श कुओं को ही काम में लें तथा मल, मूत्र, कूडा करकट सही स्‍थान पर गढ्ढा खोदकर दबाना या जला देना चाहिये। गंदे, सडे, गले व कटे हुये फल नहीं खायें धूल पडी या मक्खियां बैठी मिठाईयों का सेवन नहीं करें। स्‍वच्‍छ शौचालय का प्रयोग करें यदि शौचालय में शौच नहीं जाकर बाहर ही जाना पडे तो आवासीय बस्‍ती से दूर ही जायें तथा शौच के बाद मिट्टी डाल दें। रोगी बच्‍चों को डॉक्‍टर जब तक यह न बता दें कि ये रोग मुक्‍त हो चूके है स्‍कूल या बाहरी नहीं जाने दे। इन्‍जेक्‍शन लगाते समय सिरेन्‍ज व सूई को 20 मिनट तक उबाल कर ही काम में लें अन्‍यथा ये रोग फैलाने में सहायक हो सकती है। रक्‍त देने वाले व्‍यक्तियों की पूरी तरह जांच करने से बी प्रकार के पीलिया रोग के रोगवाहक का पता लग सकता है
पीलिया के लक्षण ( Symptoms of Jaundice ) :
·         पीलापन ( Pallor ) : पीलिया का सबसे पहला और मुख्य लक्षण शरीर के अनेक हिस्सों का पीला पड़ना है. जिसमे आँखें, नाख़ून त्वचा और मूत्र भी शामिल है. इसका मुख्य कारण ये होता है कि इस रोग में लाल रक्त कोशिकायें / RBC ( Red Blood Cell ) बाईल या बिलीरुबिन पिगमेंट में बदल जाती है. जिससे मूत्र का रंग गहरा शुरू होना आरंभ हो जाता है. अगर इसपर समय पर ध्यान नही दिया जाता तो इससे मूत्र में इन्फेक्शन भी हो सकता है जिससे किडनी भी खराब हो सकती है. किडनी के साथ साथ पीलिया का रोग लीवर को भी अपना शिकार बनता है.

·         पेट दर्द ( Stomach Pain ) : क्योकि पीलिया में किडनी, लीवर और पाचन तंत्र प्रभावित होते है तो इससे पेट में दर्द और अन्य विकार उत्पन्न होने आरंभ हो जाते है. इस स्थिति में लोगो को ज्यादातर पेट के दाहिने हिस्से में दर्द होना आरंभ होता है और ये धीरे धीरे बढ़ने लगता है.

·         तेज बुखार ( High Fever ) : पीलिया एक वायरस का रोग है जिससे शरीर में विष का संचार होता है. ये विष शरीर का तापमान 100 से 103 डिग्री तक पहुंचा देता है. जिससे रोगी को लगातार बुखार रहता है. इससे उनकी आँखों पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योकि उनकी आँखे बुरी तरह से जलने लगती है.

·         उल्टियाँ ( Vomiting ) : पीलिया के रोगी का खाने से मन उठ जाता है किन्तु फिर भी उसको उल्टी और मतली आती रहती है. जिससे उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है और उसे चक्कर आने लगते है. अगर इन लक्षणों पर शीघ्र ही ध्यान नही दिया जाता तो ये बड़े रोग को बुलावा दे देती है.। अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍पर्क से भी बी प्रकार का पीलिया हो सकता है।सेवन करना चाहिये