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Sunday 20 December 2020

ऐसी वनस्पति(लकड़ी ) जो मधुमेह के अलावा अनेक रोग जड़ से खत्म कर देती है

प्रकृति ने हमे रोग से साथ उसके निवारण के लिए अनेक प्रदान की है जिसका उपयोग हमारे पूर्वज खुद करके स्वस्थ रहते थे उन्हें किसी चिकित्सक के पास नही जाना पड़ता था एक ऐसी वनस्पति(लकड़ी) के बारे में आपको जानकारी प्रदान कर रहा हु आप उपयोग करे यह लकड़ी आपको बाजार में मिल जाएगी बस ध्यान रहे लकड़ी सही हो .... अगर आपको न मिले मुझसे संपर्क करे 8460783401 
दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीने से आप कई बीमारियों से बचे रहते है। कुछ लोग तो स्वस्थ रहने के लिए तांबे या पीतल के बर्तन में भी पानी पीते है लेकिन क्या आप जानते है कि लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से आप कई बीमारियों से बच सकते है। पुराने समय में भी लोग लकड़ी के बर्तन में पानी पीते थे, जिससे वो कई गंभीर बीमारियों से दूर रहते थे। लकड़ी के बर्तन में पानी पीने शरीर में से जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं, जिससे आप कई बीमारियों से बचे रहते है। आज हम आपको बताएगे कि किस लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से आप अर्थराइटिस से लेकर डायबिटीज जैसी समस्याओं से बचे रह सकते है। तो आइए जानते है लकड़ी के बर्तन में पानी पीने के फायदे।
 

विजयसार की लकड़ी
भारत, नेपाल और श्रीलंका में पाई जाने वाली विजयसार की लकड़ी से बने बर्तन में पानी पीने से आपकी कई समस्याए दूर हो सकती है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार विजयसार की लकड़ी में औषधीय गुण होने के कारण इसमें पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते है। हल्‍के या गहरा लाल रंग की यह लकड़ी आपको किसी आयुर्वेदिक औषधि की दुकान से मिल जाएगी। इसके अलावा आप इस लकड़ी से बने गिलास लेकर इसमें पानी पी सकते है।

सेवन करने का तरीका
विजयसार की सूखी लकड़ी के 25 ग्राम टुकड़े को पीस लें। इसके बाद एक मिट्टी का बर्तन में पानी डालकर इस लकड़ी के पाउडर को मिक्स करें। सुबह इसे छानकर खाली पेट पीएं। इसके अलावा रोजाना दिन में 8-10 गिलास पानी इस लकड़ी के बर्तन में डालकर पीने से आप कई बीमारियों से बचे रह सकते है।
 

लकड़ी के बर्तन में पानी पीने के फायदे
1. डायबिटीज
इस लकडी के बर्तन में रात भर पानी रखें और सुुबह खाली पेट पीएं। इससे आपका शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए इस बर्तन में पानी पीना बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा इस लकड़ी के पाउडर पीने से आप डायबिटीज इस समस्या को खत्म भी कर सकते है।

2. अर्थराइटिस
हड्डियों के कमजोर होने की वजह से कई लोगों को गठिया और जो़ड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है, जिसे अर्थराइटिस भी कहते है।। ऐसे में इस लकड़ी के बर्तन या इसका पानी पीने से शरीर में 'यूरिक एसिड' कम होता हैं, इस रोग में राहत मिलती है।

3. दिल के रोग
स्वस्थ दिल के लिए 'ब्लड सर्कुलेशन' का ठीक से काम करना बहुत जरूरी है। इसके लिए लकड़ी के बर्तन में रखा पानी पीएं जिससे शरीर का कोलेस्ट्रोल 'कंट्रोल' में रहता है और दिल की बीमारियां नहीं होती।

4. उच्च रक्त-चाप
इस लकड़ी का या इसके बर्तन में पानी पीने से ब्लड प्रैशर कंट्रोल में रहता है। इससे आप उच्च रक्त-चाप की समस्या से बचे रहते है। इसके अलावा इसका पानी पीने से हाथ-पैरों के कंपन्‍न भी दूर होती है।

5. त्वचा के रोग
स्किन एलर्जी, खाज-खुजली और बार-बार फोडे-फिंसी होने की समस्या को दूर करने के लिए दिन में दो बार इस लकड़ी का पानी पीएं। इससे आपकी हर स्किन प्रॉब्लम दूर हो जाएगी।

6. वजन घटाना
इस लकड़ी का पानी पीने से शरीर का 'एक्स्ट्रा फैट' कम होता है, जिससे आपका मोटापा कुछ समय में ही कम होने लगता है। इसके अलावा इस लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से वजन जल्दी कम होता है।

Sunday 3 September 2017

रक्तचाप

रक्तचाप (अंग्रेज़ी:ब्लड प्रैशर) रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर द्वारा डाले गये दबाव को कहते हैं। धमनियां वह नलिका है जो पंप करने वाले हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकोंऔर इंद्रियों तक ले जाते हैं। हृदय, रक्त को धमनियों में पंप करके धमनियों में रक्त प्रवाह को विनियमित करता है और इसपर लगने वाले दबाव को ही रक्तचाप कहते हैं। किसी व्यक्ति का रक्तचाप, सिस्टोलिक/डायास्टोलिक रक्तचाप के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे कि १२०/८० सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों में दाब को दर्शाती है। इसमें हृदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पंप करती हैं। डायालोस्टिक रक्त चाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है। रक्तचाप हमेशा उस समय अधिक होता है जब हृदय पंप कर रहा होता है बनिस्बत जब वह शिथिल होता है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और १२० मिलिमीटर के बीच होता है। डायालोस्टिक रक्तचाप पारा के ६० से ८० मि.मि. के बीच होता है। वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार सामान्य रक्तचाप १२०/८० होना चाहिए। रक्तचाप को मापने वाले यंत्र को रक्तचापमापी या स्फाइगनोमैनोमीटर कहते हैं

निम्न रक्तचाप- निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन) वह दाब है जिससे धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते हैं। जब रक्त का प्रवाह काफी कम होता हो तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में ऑक्सीजन और पौष्टिक पदार्थ नहीं पहुंच पाते जिससे ये इंद्रियां सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती और इससे यह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है। उच्च रक्तचाप के विपरीत, निम्न रक्तचाप की पहचान मूलतः लक्षण और संकेत से होती है, न कि विशिष्ट दाब संख्या के। किसी-किसी का रक्तचाप ९०/५० होता है लेकिन उसमें निम्न रक्त चाप के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं और इसलिए उन्हें निम्न रक्तचाप नहीं होता तथापि ऐसे व्यक्तियों में जिनका रक्तचाप उच्च है और उनका रक्तचाप यदि १००/६० तक गिर जाता है तो उनमें निम्न रक्तचाप के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यदि किसी को निम्न रक्तचाप के कारण चक्कर आता हो या मितली आती हो या खड़े होने पर बेहोश होकर गिर पड़ता हो तो उसे आर्थोस्टेटिक उच्च रक्तचाप कहते हैं। खड़े होने पर निम्न दाब के कारण होने वाले प्रभाव को सामान्य व्यक्ति शीघ्र ही काबू में कर लेता है। लेकिन जब पर्याप्त रक्तचाप के कारण चक्रीय धमनी में रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति को सीने में दर्द हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है। जब गुर्दों में अपर्याप्त मात्रा में खून की आपूर्ति होती है तो गुर्दे शरीर से यूरिया और क्रिएटाइन जैसे अपशिष्टों को निकाल नहीं पाते जिससे रक्त में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है

उच्च रक्तचाप- १३०/८० से ऊपर का रक्तचाप, उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहलाता है। इसका अर्थ है कि धमनियों में उच्च चाप (तनाव) है। उच्च रक्तचाप का अर्थ यह नहीं है कि अत्यधिक भावनात्मक तनाव हो। भावनात्मक तनाव व दबाव अस्थायी तौर पर रक्त के दाब को बढ़ा देते हैं। सामान्यतः रक्तचाप १२०/८० से कम होनी चाहिए और १२०/८० तथा १३९/८९ के बीच का रक्त का दबाव पूर्व उच्च रक्तचाप (प्री हाइपरटेंशन) कहलाता है और १४०/९० या उससे अधिक का रक्तचाप उच्च समझा जाता है। उच्च रक्तचाप से हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, धमनियों का सख्त हो जाने, आंखे खराब होने और मस्तिष्क खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है। है। युवाओं में ब्लड प्रेशर की समस्या का मुख्य कारण उनकी अनियमित जीवन शैली और गलत खान-पान होते हैं। यदि चक्कर आयें, सिर दर्द हो, साँस में तक़लीफ़ हो, नींद न आए, शीथीलता रहे, कम मेहनत करने पर सांस फूले और नाक से खून गिरे इत्यादि तो चिकित्सक से जांच करायें, संभव है ये उच्च रक्तचाप के कारण हो।

 उच्च रक्तचाप के कारण- 

  • चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, भय आदि मानसिक विकार

  • कई बार, बार-बार या आवश्यकता से अधिक खाना।

  • मैदा से बने खाद्य, चीनी, मसाले, तेल-घी अचार, मिठाईयां, मांस, चाय, सिगरेट व शराब आदि का सेवन।

  • नियमित खाने में रेशे, कच्चे फल और सलाद आदि का अभाव।

  • श्रमहीन जीवन, व्यायाम का अभाव।

  • पेट और पेशाब संबंधी पुरानी बीमारी।

  • रक्त चाप बढने से तेज सिर दर्द,थकावट,टांगों में दर्द ,उल्टी होने की शिकायत और चिडचिडापन होने के लक्छण मालूम पडते हैं। यह रोग जीवन शैली और खान-पान की आदतों से जुडा होने के कारण केवल दवाओं से इस रोग को समूल नष्ट करना संभव नहीं है। जीवन चर्या एवं खान-पान में अपेक्षित बदलाव कर इस रोग को पूरी तरह नियंत्रित किया सकता है।
    हाई ब्लड प्रेशर के मुख्य कारण--
    १) मोटापा
    २) तनाव(टेंशन)
    ३) महिलाओं में हार्मोन परिवर्तन
    ४) ज्यादा नमक उपयोग करना
    अब यहां ऐसे सरल घरेलू उपचारों की चर्चा की जायेगी जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना गोली केप्सुल लिये इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है-
    १) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगी को नमक का प्रयोग बिल्कुल कम कर देना चाहिये। नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है।
    २) उच्च रक्तचाप का एक प्रमुख कारण है रक्त का गाढा होना। रक्त गाढा होने से उसका प्रवाह धीमा हो जाता है ! 
    इससे धमनियों और शिराओं में दवाब बढ जाता है।लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू वस्तु है।यह रक्त का थक्का नहीं जमने देती है। धमनी की कठोरता में लाभदायक है। रक्त में ज्यादा कोलेस्ट्ररोल होने की स्थिति का समाधान करती है।

    ३)एक बडा चम्मच आंवला का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह -शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।

    ४) जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गरम पानी में काली मिर्च पावडर एक चम्मच घोलकर २-२ घंटे के फ़ासले से पीते रहें। ब्लड प्रेशर सही मुकाम पर लाने का बढिया उपचार है।

    ५) तरबूज का मगज और पोस्त दाना दोनों बराबर मात्रा में लेकर पीसकर मिला लें। एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी से लें।३-४ हफ़्ते तक या जरूरत मुताबिक लेते रहें।

    ६) बढे हुए ब्लड प्रेशर को जल्दी कंट्रोल करने के लिये आधा गिलास पानी में आधा निंबू निचोडकर २-२ घंटे के अंतर से पीते रहें। हितकारी उपचार है।

    ७) तुलसी की १० पती और नीम की ३ पत्ती पानी के साथ खाली पेट ७ दिवस तक लें।

    ८) पपीता आधा किलो रोज सुबह खाली पेट खावें। बाद में २ घंटे तक कुछ न खावें। एक माह तक प्रयोग से बहुत लाभ होगा।

    ९) नंगे पैर हरी घास पर १५-२० मिनिट चलें। रोजाना चलने से ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।

    १०) सौंफ़,जीरा,शकर तीनों बराबर मात्रा में लेकर पावडर बनालें। एक गिलास पानी में एक चम्मच मिश्रण घोलकर सुबह-शाम पीते रहें।

    ११) उबले हुए आलू खाना रक्त चाप घटाने का श्रेष्ठ उपाय है।आलू में सोडियम(नमक) नही होता है।

    पालक और गाजर का रस मिलाकर एक गिलास रस सुबह-शाम पीयें। अन्य सब्जीयों के रस भी लाभदायक होते हैं।

    १३) नमक दिन भर में ३ ग्राम से ज्यादा न लें।

    १४) अण्डा और मांस ब्लड प्रेशर बढाने वाली चीजें हैं। ब्लड प्रेशर रोगी के लिये वर्जित हैं।

    १५) करेला और सहजन की फ़ली उच्च रक्त चाप-रोगी के लिये परम हितकारी हैं।

    १६) केला,अमरूद,सेवफ़ल ब्लड प्रेशर रोग को दूर करने में सहायक कुदरती पदार्थ हैं।

    १७) मिठाई और चाकलेट का सेवन बंद कर दें।

    १८)सूखे मेवे :--जैसे बादाम काजू, आदि उच्च रक्त चाप रोगी के लिये लाभकारी पदार्थ हैं।

    १९)चावल:-(भूरा) उपयोग में लावें। इसमें नमक ,कोलेस्टरोल,और चर्बी नाम मात्र की होती है। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है। इसमें पाये जाने वाले केल्शियम से नाडी मंडल की भी सुरक्षा हो जाती है।

    २०)अदरक:-प्याज और लहसून की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। बुरा कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवारों पर प्लेक यानी कि कैलसियम युक्त मैल पैदा करता है जिससे रक्त के प्रवाह में अवरोध खड़ा हो जाता है और नतीजा उच्च रक्तचाप के रूप में सामने आता है। अदरक में बहुत हीं ताकतवर एंटीओक्सीडेट्स होते हैं जो कि बुरे कोलेस्ट्रोल को नीचे लाने में काफी असरदार होते हैं। अदरक से आपके रक्तसंचार में भी सुधार होता है, धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे कि उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।

    २०)लालमिर्च:-धमनियों के सख्त होने के कारण या उनमे प्लेक जमा होने की वजह से रक्त वाहिकाएं और नसें संकरी हो जाती हैं जिससे कि रक्त प्रवाह में रुकावटें पैदा होती हैं। लेकिन लाल मिर्च से नसें और रक्त वाहिकाएं चौड़ी हो जाती हैं, फलस्वरूप रक्त प्रवाह सहज हो जाता है और रक्तचाप नीचे आ जाता है।

उच्च रक्त चाप का निदान महत्वपूर्ण है जिससे रक्त चाप को सामान्य करके जटिलताओं को रोकने का प्रयास संभव हो। फार्मैकोॉजी विभाग, कोलोन विश्वविद्यालय, जर्मनी में हुई एक शोध के अनुसार चॉकलेट खाने और काली व हरी चाय पीने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। कनाडा के शोधकर्त्ता रॉस डी.फेल्डमैन के अनुसार उच्च रक्तचाप के रोगियों की विशेष देखभाल और जांच की जरूरत होती है, इससे दिल के दौरे की आशंका एक-चथाई कम हो सकती है वहीं मस्तिष्काघात की भी सम्भावना ४० प्रतिशत कम हो सकती है