आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस वात और कफ दोषों के कारण होता है
सोरायसिस त्वचा से जुड़ी ऑटोइम्यून डिजीज है। इस रोग में त्वचा पर कोशिकाएं तेजी से जमा होने लगती हैं। सफेद रक्त कोशिकाओं के कम होने के कारण त्वचा की परत सामान्य से अधिक तेजी से बनने लगती है, जिसमें घाव (skin lesions) बन जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इन्वर्स सोरायसिस : शरीर के जो हिस्से मुड़ते हैं , वहां पर इसका सबसे ज़्यादा असर देखने को मिलता है. सोरायसिस एक स्किन संबंधी बीमारी है, जिसे स्किन का अस्थमा भी कहा जाता है। इसमें स्किन सेल्स काफी तेजी से बढ़ते हैं। इसमें स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी बन जाती है और वह छिल जाती है।
इससे स्किन में शुष्कता आ जाती है और सफेद धब्बे पड़ जाते हैं पस्ट्युलर सोरायसिस : इसमें लाल चकत्तों के इर्द-गिर्द सफेद चमड़ी जमा होने लगती है. - एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस : यह सोरॉसिस का सबसे ख़तरनाक रूप है जिसमें खुजली के साथ तेज़ दर्द भी होता है
सोयरायसिस रोग इतने प्रकार के होते हैंः-
प्लेक सोरायसिस (Plaque Psoriasis)
प्लेक सोरायसिस एक आम तरह का सोरायसिस है। 10 लोगों में 8 लोग इसी सोरायसिस के शिकार होते हैं। प्लेक सोरायसिस के कारण शरीर पर सिल्वर (चांदी) रंग और सफेद लाइन बन जाती है। इसमें लाल रंग के धब्बे के साथ जलन होने लगती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकती है, लेकिन ज्यादातर कोहनी, घुटने, सिर, पीठ में नीचे की ओर होती है। इसमें त्वचा पर लाल, छिलकेदार मोटे या चकत्ते निकल आते हैं। इनका आकार दो-चार मिमी से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है।
गटेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis)
यह अक्सर कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर होती है। यह छोटे-छोटे लाल-गुलाबी दानों के रूप में दिखाई पड़ती है। यह ज्यादातर हाथ के ऊपरी हिस्से, जांघ और सिर पर होती है। तनाव, त्वचा में चोट और दवाइयों के रिएक्शन के कारण यह रोग होता है। इससे प्रभावित त्वचा पर प्लेक सोरायसिस की तरह मोटी परतदार नहीं होती है। अनेक रोगियों में यह अपने आप, या इलाज से चार छह हफ्तों में ठीक हो जाती है। कभी-कभी ये प्लाक सोरायसिस में भी परिवर्तित हो जाती है।
पस्चुलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis)
ये एक दुर्लभ तरह का रोग है। ये ज्यादातर वयस्क में पाया जाता है। इसमें अक्सर, हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लाल दानें हो जाते हैं, जिसमें मवाद हो जाता है। ये देखने में संक्रमित प्रतीत होता है। यह ज्यादातर हाथों और पैरों में होता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इसके कारण कई बार बुखार, मतली आदि जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं।
सोरियाटिक अर्थराइटिक (Psoriatic Arthritis)
ये सोरायसिस और अर्थराइटिस का जोड़ है। 70 फीसदी रोगियों में तकरीबन 10 साल की उम्र से इस सोरायसिस की समस्या रहती है। इसमें जोड़ों में दर्द, उंगलियों और टखनों में सूजन आदि जैसी समस्याएं होती हैं।
एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis)
इसमें चेहरे सहित शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लाल चकत्ते हो जाते हैं। शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है। हदय की गति बढ़ जाती है। यह पूरी त्वचा में फैल जाती है। इससे त्वचा में जलन भी होती है। इसमें खुजली, ह्रदय गति बढ़ने और शरीर का तापमान कम ज्यादा होने जैसी समस्याएं होती हैं। इसके कारण संक्रमण, निमोनिया भी हो सकता है।
इन्वर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis)
इसमें स्तनों के नीचे, बगल, कांख, या जांघों के ऊपरी हिस्से में लाल-लाल बड़े चकत्ते बन जाते हैं। ये ज्यादा पसीने और रगड़ने के कारण होते हैं।
सोरायसिस रोग के लक्षण
सोरायसिस होने पर ये लक्षण दिखाई देते हैंः-
- त्वचा पर सूजन के साथ लाल चकत्ते होना
- लाल चकत्तों पर सफेद पपड़ी जैसी मृत त्वचा होना
- रूखी त्वचा होना और उसमें दरारें पड़ना, खून निकलना आदि
- त्वचा के चकत्तों में दर्द होना
- चकत्तों के आसपास खुजली और जलन महसूस होना
- नाखून मोटे और उनमें दाग-धब्बे पड़ जाना
- जोड़ों में दर्द और सूजन होना
सोरायसिस होने के कारण
सोयरायसिस की समस्या इन कारणों से हो सकती हैः-
रोग प्रतिरोधक शक्ति के कमजोर होने से
जब शरीर की रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो जाती है, तो नयी कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैैं। यह त्वचा इतनी कमजोर होती है कि पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती हैं। इसमें लाल दाने और चकत्ते दिखाई देने लगते हैं।
आनुवांशिक (वंशानुगत रूप से) रूप से
- यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को होती है।
- अगर माता-पिता में से किसी एक को यह रोग है, तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 15% तक बढ़ जाती है।
- अगर माता-पिता दोनों को यह बीमारी है तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 60% अधिक हो जाती है।
इन्फेक्शन (संक्रमण)
- कई बार वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी इस रोग का कारण बनता है।
- यदि आप गले के अलावा त्वचा के इंफेक्शन से पीड़ित हैं, तो ये सोरायसिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
- यदि आपके घर में कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो यह समस्या आपको भी हो सकती है।
सोरायसिस होने के अन्य कारण
- त्वचा पर कोई घाव जैसे- त्वचा कट जाना, मधुमक्खी काट लेना या धूप में त्वचा का झुलसना। यह सोयरासिस होने का कारण बन सकता है।
- तनाव, धूम्रपान और अधिक शराब का सेवन करने से भी सोयरासिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
- शरीर में विटामिन डी की कमी होने, एवं उच्च रक्तचाप से संबंधित कुछ दवाइयां खाने से भी यह रोग होता है।
सोरायसिस से प्रभावित होने वाले अंग
सोरायसिस 20 से 30 वर्ष की आयु में होती है, जो शरीर के इन अंगों में हो सकती हैः-
- हथेलियों
- पांव के तलवे
- कोहनी
- घुटने
- सोयसाइसिस पीठ पर अधिक होता है।
- सोयराइसिस किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है।
सोरायसिस में आपका खान-पान
पोषण वाला भोजन नहीं खाने से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा तनाव और मानसिक विकार होने, शराब और धूम्रपान जैसी आदतों से भी सोरायसिस बढ़ सकता है। इसलिए सोयरासिस में आपका खान-पान ऐसा होना चाहिएः-
- पौष्टिक भोजन का सेवन करें।
- शराब, धूम्रपान आदि से दूर रहें।
सोरायसिस में आपकी जीवनशैली
सोरायसिस में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए ताकि बीमारी जल्द ठीक हो सकेः-
- तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
- त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
- सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।
डॉक्टर की सलाह के बिना दवा ना लें
दवा का साइड इफेक्ट भी सोरायसिस का कारण बनता है। दर्द-निवारक दवाएं, मलेरिया, ब्लडप्रेशर कम करने की दवाएं लेने से सोरायसिस की बीमारी हो सकती है। अगर बीमारी पहले से है तो अधिक बढ़ सकती है।
शराब और धूम्रपान ना करें
जो लोग नियमित रूप से मदिरापान और धूम्रपान करते हैं। उनको इस बीमारी का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
सोरायसिस से ग्रस्त लोगों का आहार ऐसा होना चाहिएः-
- अनाज: पुराना चावल, गेहूं, जौ दाल: अरहर, मूंग, मसूर दाल फल एवं सब्जीया सहजन, टिण्डा, परवल, लौकी, तोरई, खीरा, हरिद्रा, लहसुन, अदरक, अनार, जायफल अन्य: अजवाइन, शुंठी, सौंफ, हिंग, काला नमक, जीरा, लहसुन, गुनगुना पानी का सेवन करें
सोरायसिस से ग्रस्त लोगों को इनका सेवन नहीं करना चाहिएः-
- अनाज: नया धान, मैदा,
- दाल: चना, मटर, उड़द
- फल एवं सब्जियां: पत्तेदार सब्जियाँ– सरसों, टमाटर, बैंगन, नारंगी, नींबू, खट्टे अंगूर, आलू, कंद–मूल
- अन्य: दही, मछली, गुड़, दूध, अधिक नमक. कोल्ड्रिंक्स, संक्रमित/फफूंदी युक्त भोजन, अशुद्ध एवं संक्रमित जल
- सख्त मना: तैलीय मसालेदार भोजन, मांसहार और मांसाहार सूप, अचार, अधिक तेल, अधिक नमक, कोल्डड्रिंक्स, मैदे वाले पर्दाथ, शराब, फास्टफूड, सॉफ्टडिंक्स, जंक फ़ूड, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ, तला हुआ एवं कठिनाई से पाचन वाला भोजन
- विरुद्ध आहार: मछली + दूध
- सोरायसिस की बीमारी में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिएः-
- दिन में न सोएं।
- भोजन के बाद टहलें।
- पहले वाला भोजन पचे बिना न खाएं।
- हल्का व्यायाम करें।
- तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
- त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
- सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।
- गुस्सा, डर, और चिंता न करें।
- पेशाब और शौच को न रोकें।
- आसमान में बादल होने पर ठंडे जल का सेवन करें।
- पूर्वी हवाओं का अत्यधिक सेवन करें।
- गर्म पानी में सेंधा नमक, मिनरल ऑयल, दूध या जैतून का तेल मिलाएं और उससे नहाएं। यह त्वचा को राहत प्रदान करती है और लालीपन औ जलन को भी कम करती है। नहाने के तुरंत बाहर मॉइश्चराइजर लगाएं। स्वस्थ आहार का सेवन करना सोरायसिस के दौरान एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
- आयुर्वेद मे कुछ औषधिया पंचतिक्त गुगग्लू ,आरोग्यवर्धनी बटी , तालकेश्वर रस , गंधक रसायन , महा मंजिस्था घन , खदिरारिष्ट सहित अनेक औषधी उपयोगी है मगर बिना आयुर्वेदचार्य की सलाह से न लेवे - ज्यादा जानकारी के लिए - 8460783401