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Thursday 10 December 2020

सोरायसिस रोग - उपचार - परहेज

आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस वात और कफ दोषों के कारण होता है


सोरायसिस
 त्वचा से जुड़ी ऑटोइम्यून डिजीज है। इस रोग में त्वचा पर कोशिकाएं तेजी से जमा होने लगती हैं। सफेद रक्त कोशिकाओं के कम होने के कारण त्वचा की परत सामान्य से अधिक तेजी से बनने लगती है, जिसमें घाव (skin lesions) बन जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इन्वर्स सोरायसिस : शरीर के जो हिस्से मुड़ते हैं , वहां पर इसका सबसे ज़्यादा असर देखने को मिलता है. सोरायसिस एक स्किन संबंधी बीमारी है, जिसे स्किन का अस्थमा भी कहा जाता है। इसमें स्किन सेल्स काफी तेजी से बढ़ते हैं। इसमें स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी बन जाती है और वह छिल जाती है। 

इससे स्किन में शुष्कता आ जाती है और सफेद धब्बे पड़ जाते हैं  पस्ट्युलर सोरायसिस : इसमें लाल चकत्तों के इर्द-गिर्द सफेद चमड़ी जमा होने लगती है. - एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस : यह सोरॉसिस का सबसे ख़तरनाक रूप है जिसमें खुजली के साथ तेज़ दर्द भी होता है


सोयरायसिस रोग इतने प्रकार के होते हैंः-

प्लेक सोरायसिस (Plaque Psoriasis)

प्लेक सोरायसिस एक आम तरह का सोरायसिस है। 10 लोगों में 8 लोग इसी सोरायसिस के शिकार होते हैं। प्लेक सोरायसिस के कारण शरीर पर सिल्वर (चांदी) रंग और सफेद लाइन बन जाती है। इसमें लाल रंग के धब्बे के साथ जलन होने लगती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकती है, लेकिन ज्यादातर कोहनी, घुटने, सिर, पीठ में नीचे की ओर होती है। इसमें त्वचा पर लाल, छिलकेदार मोटे या चकत्ते निकल आते हैं। इनका आकार दो-चार मिमी से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है।

गटेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis)

यह अक्सर कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर होती है। यह छोटे-छोटे लाल-गुलाबी दानों के रूप में दिखाई पड़ती है। यह ज्यादातर हाथ के ऊपरी हिस्से, जांघ और सिर पर होती है। तनाव, त्वचा में चोट और दवाइयों के रिएक्शन के कारण यह रोग होता है।  इससे प्रभावित त्वचा पर प्लेक सोरायसिस की तरह मोटी परतदार नहीं होती है। अनेक रोगियों में यह अपने आप, या इलाज से चार छह हफ्तों में ठीक हो जाती है। कभी-कभी ये प्लाक सोरायसिस में भी परिवर्तित हो जाती है।

पस्चुलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis)

ये एक दुर्लभ तरह का रोग है। ये ज्यादातर वयस्क में पाया जाता है। इसमें अक्सर, हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लाल दानें हो जाते हैं, जिसमें मवाद हो जाता है। ये देखने में संक्रमित प्रतीत होता है। यह ज्यादातर हाथों और पैरों में होता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इसके कारण कई बार बुखार, मतली आदि जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। 

सोरियाटिक अर्थराइटिक (Psoriatic Arthritis)

ये सोरायसिस और अर्थराइटिस का जोड़ है। 70 फीसदी रोगियों में तकरीबन 10 साल की उम्र से इस सोरायसिस की समस्या रहती है। इसमें जोड़ों में दर्द, उंगलियों और टखनों में सूजन आदि जैसी समस्याएं होती हैं।

एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis)

इसमें चेहरे सहित शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लाल चकत्ते हो जाते हैं। शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है। हदय की गति बढ़ जाती है। यह पूरी त्वचा में फैल जाती है। इससे त्वचा में जलन भी होती है। इसमें खुजली, ह्रदय गति बढ़ने और शरीर का तापमान कम ज्यादा होने जैसी समस्याएं होती हैं। इसके कारण संक्रमण, निमोनिया भी हो सकता है

इन्वर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis)

इसमें स्तनों के नीचे, बगल, कांख, या जांघों के ऊपरी हिस्से में लाल-लाल बड़े चकत्ते बन जाते हैं। ये ज्यादा पसीने और रगड़ने के कारण होते हैं।

सोरायसिस रोग के लक्षण 

सोरायसिस होने पर ये लक्षण दिखाई देते हैंः-

  • त्वचा पर सूजन के साथ लाल चकत्ते होना
  • लाल चकत्तों पर सफेद पपड़ी जैसी मृत त्वचा होना
  • रूखी त्वचा होना और उसमें दरारें पड़ना, खून निकलना आदि
  • त्वचा के चकत्तों में दर्द होना
  • चकत्तों के आसपास खुजली और जलन महसूस होना
  • नाखून मोटे और उनमें दाग-धब्बे पड़ जाना
  • जोड़ों में दर्द और सूजन होना

सोरायसिस होने के कारण 

सोयरायसिस की समस्या इन कारणों से हो सकती हैः-

रोग प्रतिरोधक शक्ति के कमजोर होने से

जब शरीर की रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो जाती है, तो नयी कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैैं। यह त्वचा इतनी कमजोर होती है कि पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती हैं। इसमें लाल दाने और चकत्ते दिखाई देने लगते हैं। 


आनुवांशिक (वंशानुगत रूप से) 
रूप से

  • यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को होती है।
  • अगर माता-पिता में से किसी एक को यह रोग है, तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 15% तक बढ़ जाती है।
  • अगर माता-पिता दोनों को यह बीमारी है तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 60% अधिक हो जाती है।

इन्फेक्शन (संक्रमण)

  • कई बार वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी इस रोग का कारण बनता है।
  • यदि आप गले के अलावा त्वचा के इंफेक्शन से पीड़ित हैं, तो ये सोरायसिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
  • यदि आपके घर में कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो यह समस्या आपको भी हो सकती है।

सोरायसिस होने के अन्य कारण

  • त्वचा पर कोई घाव जैसे- त्वचा कट जाना, मधुमक्खी काट लेना या धूप में त्वचा का झुलसना। यह सोयरासिस होने का कारण बन सकता है।
  • तनाव, धूम्रपान और अधिक शराब का सेवन करने से भी सोयरासिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
  • शरीर में विटामिन डी की कमी होने, एवं उच्च रक्तचाप से संबंधित कुछ दवाइयां खाने से भी यह रोग होता है।
  • सोरायसिस से प्रभावित होने वाले अंग 

    सोरायसिस 20 से 30 वर्ष की आयु में होती है, जो शरीर के इन अंगों में हो सकती हैः-

    • हथेलियों
    • पांव के तलवे
    • कोहनी
    • घुटने
    • सोयसाइसिस पीठ पर अधिक होता है।
    • सोयराइसिस किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है।

      सोरायसिस में आपका खान-पान 

      पोषण वाला भोजन नहीं खाने से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा तनाव और मानसिक विकार होने, शराब और धूम्रपान जैसी आदतों से भी सोरायसिस बढ़ सकता है। इसलिए सोयरासिस में आपका खान-पान ऐसा होना चाहिएः-

      • पौष्टिक भोजन का सेवन करें।
      • शराब, धूम्रपान आदि से दूर रहें।

      सोरायसिस में आपकी जीवनशैली 

      सोरायसिस में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए ताकि बीमारी जल्द ठीक हो सकेः-

      • तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
      • त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
      • सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।

      डॉक्टर की सलाह के बिना दवा ना लें

      दवा का साइड इफेक्ट भी सोरायसिस का कारण बनता है। दर्द-निवारक दवाएं, मलेरिया, ब्लडप्रेशर कम करने की दवाएं लेने से सोरायसिस की बीमारी हो सकती है। अगर बीमारी पहले से है तो अधिक बढ़ सकती है।

      शराब और धूम्रपान ना करें

      जो लोग नियमित रूप से मदिरापान और धूम्रपान करते हैं। उनको इस बीमारी का खतरा बहुत बढ़ जाता है।

    • सोरायसिस से ग्रस्त लोगों का आहार ऐसा होना चाहिएः-

      • अनाजपुराना चावलगेहूंजौ   दाल: अरहरमूंगमसूर दाल     फल एवं  सब्जीया सहजनटिण्डापरवललौकीतोरईखीराहरिद्रालहसुनअदरकअनारजायफल  अन्यअजवाइनशुंठीसौंफहिंगकाला नमकजीरालहसुनगुनगुना पानी का सेवन करें

सोरायसिस से ग्रस्त लोगों को इनका सेवन नहीं करना चाहिएः-

  • अनाजनया धानमैदा,
  • दालचनामटरउड़द
  • फल एवं सब्जियांपत्तेदार सब्जियाँ– सरसोंटमाटरबैंगननारंगीनींबूखट्टे अंगूरआलूकंदमूल
  • अन्यदहीमछलीगुड़दूधअधिक नमककोल्ड्रिंक्ससंक्रमित/फफूंदी युक्त भोजनअशुद्ध एवं संक्रमित जल
  • सख्त मनातैलीय मसालेदार भोजनमांसहार और मांसाहार सूपअचारअधिक तेलअधिक नमककोल्डड्रिंक्समैदे वाले पर्दाथशराबफास्टफूडसॉफ्टडिंक्सजंक फ़ूडडिब्बा बंद खाद्य पदार्थतला हुआ एवं कठिनाई से पाचन वाला भोजन
  • विरुद्ध आहारमछली + दूध      
  • सोरायसिस की बीमारी में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिएः-
    • दिन में न सोएं।
    • भोजन के बाद टहलें।
    • पहले वाला भोजन पचे बिना न खाएं।
    • हल्का व्यायाम करें।
    • तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
    • त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
    • सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।
    • गुस्साडरऔर चिंता न करें।
    • पेशाब और शौच को न रोकें।
    • आसमान में बादल होने पर ठंडे जल का सेवन करें।
    • पूर्वी हवाओं का अत्यधिक सेवन करें।      
    • गर्म पानी में सेंधा नमक, मिनरल ऑयल, दूध या जैतून का तेल मिलाएं और उससे नहाएं। यह त्वचा को राहत प्रदान करती है और लालीपन औ जलन को भी कम करती है। नहाने के तुरंत बाहर मॉइश्चराइजर लगाएं। स्वस्थ आहार का सेवन करना सोरायसिस के दौरान एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 
    • आयुर्वेद मे  कुछ औषधिया पंचतिक्त गुगग्लू ,आरोग्यवर्धनी बटी , तालकेश्वर रस , गंधक रसायन , महा मंजिस्था घन , खदिरारिष्ट सहित अनेक औषधी उपयोगी है मगर बिना आयुर्वेदचार्य की सलाह से न लेवे - ज्यादा जानकारी के लिए - 8460783401 

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Sunday 25 August 2019

एक्जिमा के लक्षण, कारण, इलाज और प्राकृतिक उपचार

       एक्जिमा के कारण, एक्जिमा के लक्षण, एक्जिमा के इलाज, एक्जिमा के प्राकृतिक उपचार ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करे - 84607 83401 

आज हम यहाँ एक्जिमा के विषय में हम यहां पर चर्चा करेंगे। एक्जिमा रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में बहुत ही अच्छे तरीके से बताया गया है। हम ध्यान पूर्वक इसका अध्ययन कर चिकित्सक की देखरेख में रहकर अपने जीवन में प्रयोग करें तो अवश्य सफलता मिल सकती है। अब हम एक्जिमा रोग का कारण, लक्षण एवं उसके प्राकृतिक उपचार के विषय में  पुराने रोगों की गृह चिकित्सा में वर्णित एक्जिमा पर विचार करें।सामान्यतः चर्मरोग के अन्तर्गत एक्जिमा को बहुत खराब रोग माना जाता है आयुर्वेद में तो इसे कुष्ठ रोग के अन्तर्गत रखा गया है। इसलिए इसके विषय में जानना अत्यन्त आवश्यक है। जितने चर्मरोग होते हैं, उनके प्रायः आधे ही इस जाति के हैं।यह विभिन्न शरीर में विभिन्न रूप से प्रकट होता है। फिर भी इसके दो भाग किये जा सकते हैं –

एक्जिमा के प्रकार (Eczema Types)

  • रसस्रावी एक्जिमा (Weeping Eczema)
  • सूखा एक्जिमा (Dry Eczema)
पहले त्वचा के ऊपर एक स्थान लाल हो जाता है और उसमें सूजन आ जाता है तथा उसके बाद छोटे-छोटे लाल फुन्सियां दिखाई देती हैं।बाद में फुन्सियाँ फैलकर एकत्र हो जाते हैं तथा उनसे प्रचुर दूषित क्लेद निकलने लगता है।इसके साथ प्रायः ही खाज रहती है तथा कभी-कभी रोगी दर्द भी अनुभव करता है।ऐसी अवस्था साधारणतः कई सप्ताह रहती है। इसके बाद रोग छूट गया-सा मालूम पड़ता है।किन्तु प्रायः ही यह लौट आता है तथा अन्त में आक्रान्त अंश की चमड़ी मोटी हो जाती है और कभी तो वह अंक फूल जाता है।जब एक्जिमा से रस नहीं निकलता तब उसे सूखा एक्जिमा कहते हैं।इसमें भी प्रबल खाज रहती है तथा आक्रान्त स्थान से पतला-पतला मरा हुआ चमड़ा निकल आता है।जब विभिन्न कारणों से रक्त दूषित होता है तथा उसके फलस्वरूप त्वचा की रोग-प्रतिरोध क्षमता घट जाती है, तभी केवल यह रोग होता है।इसलिये गठिया, वातरोग, पायरिया, मूत्रायंत्र के रोग, खून का अत्यधिक अम्लत्व एवं अजीर्ण और कोष्ठ बद्धता आदि के द्वारा जिनका रक्त दूषित हो उठता है, वे ही साधारणतः इस एक्जिमा (Eczema) रोग से आक्रान्त होते हैं।अधिकांश अवस्था में रक्त का यह विष कोष्ठबद्धता से आता है।कोष्ठवद्धता के कारण रक्त के भीतर जो विष ग्रहीत होता है वही शरीर की रोग-प्रतिरोध क्षमता घटकर विभिन्न चर्मरोग उत्पन्न कर देता है।इसके अतिरिक्त त्रुटिपूर्ण खाद्य अस्वास्थ्यकर जीवन यापन तथा औषधि द्वारा विभिन्न रोग दबा देने के फलस्वरूप बहुत अवस्था में इस रोग के लिए उपयुक्त जमीन गठित होती है।अत्यन्त कठिन श्रेणी का एक्जिमा होने पर तीन महीने चिकित्सा ग्रहण करना कर्तव्य है।
इस समय एकदम खट्टा और नमक-वर्जित खाद्य खाना आवश्यक है। दीर्घ दिन उपवास लेने से भी रोग अपेक्षाकृत सहज ही आरोग्य प्राप्त करता है। सब प्रकार से चर्मरोगियों को ही कोस्ठसुद्धि की सफाई के सम्बन्ध में विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है।कारण, रोगी की जो गति त्वचा की ओर रहती है, वह आँत की ओर लौटा लाना, अर्थात् आँत की राह पर विष बाहर निकाल देना ही इस रोग की प्रधान चिकित्सा है। इसलिये पथ्य की ओर सदा ही ध्यान देना उचित है।उपयुक्त खाद्य ग्रहण से और खुली हवा में व्यायाम ग्रहण के द्वारा स्वास्थ्य की उन्नति कर सकें तो रोग आरोग्य के पथ पर बहुत दूर अग्रसर हो जाता है।इसके साथ साधारण स्वास्थ्य-नीति भी यथासाध्य मानकर चलना चाहिये कारण बहुत अवस्था में औषधि से जो लाभ नहीं होता,उससे कहीं अधिक लाभ होता है पथ्य की देखभाल और साधारण स्वास्थ्य नीति के अनुसरण से।

इस एक्जिमा (Eczema) रोग में पथ्य आहार विशेष रूप से पुष्टिकर, सहजपाच्य, अनुत्तेजक तथा क्षारधर्मी होना आवश्यक है।

इसलिये रोगों का प्रधान पथ्य ही होना उचित है ताजे और सूखे फल, सलाद, दही और मट्ठा।दही भी स्वस्थ गाय से संग्रहीत कच्चे दूध द्वारा जमाना उचित है। रोग की प्रबल अवस्था में और सब खाद्य छोड़कर केवल से सब पथ्य ही ग्रहण करना उचित है।इन सब खाद्यों के द्वारा ही सन्तुलित खाद्य शरीर में ग्रहीत हो सकता है। 

Tuesday 5 September 2017

सोरिआसिस ( छाल रोग )

छालरोग या सोरियासिस (अंग्रेज़ी:Psoriasis) एक चर्मरोग है। सामान्य भाषा में इसे अपरस भी कहते हैं। यह रोग एक असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। छाल रोग सामान्यतः बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह दीर्घकालिक विकार है जिसका अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। इसके सही कारणों की जानकारी नहीं है। अद्यतन सूचना से यह मालूम होता है कि सोरिआसिस निम्नलिखित दो कारणों से होता हैः
  • वंशानुगत पूर्ववृत्ति
  • स्वतः असंक्राम्य प्रतिक्रिया 
  • पहचान ------ लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतः त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 सप्ताह का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को सोरिआसिस होने पर त्वचा कोशिकाएं 3 से 4 दिन में ही झड़ने लगती है। यही अधिकाधिक त्वचा कोशिकाओं का झड़ाव त्वचा पर छालरोग के घाव पैदा कर देता है। छालरोग में त्वचा पर लाल, खुरदरे धब्बे, खुजली और मोटापा, चिटकना और हथेलियों या पैर के तलवों में फफोले पड़ना, के लक्षण से पहचाने जाते हैं। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है।
    कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की खराबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं। छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग आर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता ! प्राय सोरायसिस के रोगी अपने इस रोग को आम दाद-खाज खुजली के रोग से जोड़कर लंबे समय तक इसका उपचार कराने से कतराते रहते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि जब यह रोग काफी पुराना तथा जटिल हो जाता है तब रोगी इसके इलाज के लिए चिंतित होता है। रोग के संदर्भ में विशेष बात यह ध्यान देने योग्य है कि रोग जितना पुराना हो जाता है उसके उपचार में उतना ही समय लगता है 
  • क्या है सोरायसिस
    मनुष्य की सामान्य त्वचा पर सोरायसिस रोग पपड़ीदार, रक्तिम;रक्तवर्णितद्ध वह विकार है जो चकतों के रूप में अलग से उभरे होते हैं। यह कुछ-कुछ मछली की उपरी खाल की तरह होते हैं। यह चकते प्राय हाथ-पैर, घुटनों, कोहनी, सिर के बालों के नीचे और पीठ के निचले हिस्सों पर देखने को मिलते हैं। इन चकतों का आकार मुख्यत 2-4 मिमि से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है, जिनमें खुजली की शिकायत भी रोगी को होती है।  आयुर्वेद में इस रोग को एककुष्ठ कहा जाता है। यह रोग सामान्यतया शरीर में हो जाने वाली दाद-खाज से भिन्न प्रकृति का है। जहां दाद-खाज का घरेलू उपचार संभव है वहीं सोरायसिस के रोगी को चिकित्सकीय उपचार की परम आवश्यकता होती है। उपयुक्त उपचार के अभाव में रोगी के प्राणों पर भी संकट उत्पन्न हो सकता है।
    सोरियासिस (PSORIASIS) "अपरस रोग / छाल रोग" :

    [1] सोरायसिस (Psoriasis) त्वचा पर होने वाली Autoimmune रोग है | जिसके होने से त्वचा का कोशिका मरने लगता है और लाल एवं सफ़ेद धब्बे के रूप में शारीर में दिखने लगता है | यह रोग प्रतिराकक्षा प्रणाली के गलत संदेश के कारण कोशिकाओ की तीव्र वृद्धि दर के कारण उत्पन होता है | लोग इस बीमारी को छुवाछुत मानते है ,परंतू यह बीमारी छुवाछुत के कारण नहीं फैलता है | यह genetic एवं और immune system से सम्बंधित है, न की छुआछुत से | यह बीमारी किसी को भी हो सकता है ,चाहे वो लड़का हो या लड़की | यह शारीर के किसी भी भाग में हो सकता है | एक बार यह किसी के शारीर में होने के बाद ऊम्र भर रह जाता है |
    [2] सोरियासिस / अपरस रोग / छाल रोग (अंग्रेज़ी: PSORIASIS) एक प्रकार का असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार (चर्मरोग) है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। यह रोग सर्दियों के मौसम में होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। छाल रोग सामान्यतया बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह ऐसा दीर्घकालिक विकार है जिसका यह अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। सोरियासिस में त्वचा में कोशिकाओं की संख्या बढने लगती है। चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी लाल रंग की पपडीदार चमडी से ढक जाता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर व्यक्तियों की हाथों-पैरों, कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों, घुटनों, खोपडी तथा कंधों पर होता है।
    [3] सोरायसिस रोग जब किसी व्यक्ति को हो जाता है तो जल्दी से ठीक होने का नाम नहीं लेता है। यह छूत का रोग नहीं है। इस रोग का शरीर के किसी भाग पर घातक प्रभाव नहीं होता है। जब यह रोग किसी को हो जाता है तो उस व्यक्ति का सौन्दर्य बेकार हो जाता है तथा वह व्यक्ति भद्दा दिखने लगता है। यदि इस बीमारी के कारण भद्दा रूप न हो और खुजली न हो तो सोरायसिस के साथ आराम से जिया जा सकता है।
    [4] सोरायसिस रोग होने के लक्षण-
    जब किसी व्यक्ति को सोरायसिस हो जाता है तो उसके शरीर के किसी भाग पर गहरे लाल या भूरे रंग के दाने निकल आते है। कभी-कभी तो इसके दाने केवल पिन के बराबर होते हैं। ये दाने अधिकतर कोहनी, पिंडली, कमर, कान, घुटने के पिछले भाग एवं खोपड़ी पर होते हैं। कभी-कभी यह रोग नाम मात्र का होता है और कभी-कभी इस रोग का प्रभाव पूरे शरीर पर होता है। कई बार तो रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने का अनुमान भी नहीं होता है। शरीर के जिस भाग में इस रोग का दाना निकलता है उस भाग में खुजली होती है और व्यक्ति को बहुत अधिक परेशान भी करती है। खुजली के कारण सोरायसिस में वृद्धि भी बहुत तेज होती है। कई बार खुजली नहीं भी होती है। जब इस रोग का पता रोगी व्यक्ति को चलता है तो रोगी को चिंता तथा डिप्रेशन भी हो जाता है और मानसिक कारणों से इसकी खुजली और भी तेज हो जाती है।
    सोरायसिस रोग के हो जाने के कारण और भी रोग हो सकते हैं जैसे- जुकाम, नजला, पाचन-संस्थान के रोग, टान्सिल आदि। यदि यह रोग 5-7 वर्ष पुराना हो जाए तो संधिवात का रोग हो सकता है।
    [5] सोरियासिस का शरीर पर प्रभाव क्षेत्र:-
    अपरस रोग में रोगी की त्वचा पर जगह-जगह लाल-लाल से खुरदरे दाग-धब्बे हो जाते हैं। जितने यह दाग-धब्बे भयानक लगते हैं उतनी ज़्यादा इनमें खुजली नहीं होती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी (लाल) होकर सूज जाता है और फिर त्वचा के ऊपर सफेद सादी, सूखी एवं कड़ी खाल (त्वचा की पतली परत) जम जाते हैं। त्वचा सूखकर फट सी जाती है। जब ऊपर की पपड़ी उतरती हैं तो त्वचा से रक्त निकलने लगता हैं। लेकिन इसमें से कुछ मवाद आदि नहीं निकलता। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है|
    [6] दीर्घकालिक प्रभाव-
    छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग ऑर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता।
    [7] सोरायसिस रोग होने का कारण:-
    १=अंत:स्रावी ग्रन्थियों में कोई रोग होने के कारण सोरायसिस रोग हो सकता है।
    २=पाचन-संस्थान में कोई खराबी आने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
    ३=बहुत अधिक संवेदनशीलता तथा स्नायु-दुर्बलता होने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।
    ४=खान-पान के गलत तरीकों तथा असन्तुलित भोजन और दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।
    ५=असंयमित जीवन जीने, जीवन की विफलताएं, परेशानी, चिंता तथा एलर्जी के कारण भी यह रोग हो सकता है।
    [8] अति शीघ्र बढ़ने या ख़राब होने का कारण:-
    कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की ख़राबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बीटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं।
    [9] Psoriasis के प्रकार:-
    सोरायसिस के मुख़्य प्रकार जो की उनके लक्षणों और होने वाले भागो के अनुसार बांटे गए है -
    1 -पट्टिका psoriasis:
    यह बात के रोगियों को पीड़ा से psoriasis के सब के साथ 80% psoriasis है के प्रकार व्यापक अधिकांश. यह चांदी सफेद रंग और लाल रंग के धब्बे सूजन के पैमाने से भिन्न है. एक यह घुटने, कोहनी, पीठ के निचले हिस्से पर खोज सकते हैं, और खोपड़ी, लेकिन यह कहीं भी हो सकता है.
    2-उलटा छालरोग:
    कांख, स्तनों के नीचे, कमर, त्वचा गुप्तांग क्षेत्र में सिलवटों, नितंबों सबसे आम जगहों पर जहां उलटा छालरोग से पता चला है.
    3-Erythrodermic छालरोग:
    Erythrodermic सोरायसिस बीमारी का सबसे अधिक भाग के भड़काऊ प्रकार है कि अक्सर पूरे शरीर पर फैल रहा है के लिए एक है. Erythrodermic छालरोग अक्सर अस्थिर पट्टिका psoriasis के लिए नेतृत्व कर सकते हैं. प्रासंगिक, व्यापक, उज्ज्वल लालिमा इस अवधि के दौरान त्वचा की मुख्य विशेषताएं हैं.
    4-Guttate छालरोग:
    अभिव्यक्ति छोटे आकार के छोटे लाल धब्बे बचपन या जवानी अवधि में शुरुआत के माध्यम से पता चला है.
    5-Pustular psoriasis:
    एक नियम के रूप में वयस्कों में मनाया, pustular psoriasis के आसपास लालिमा के साथ मवाद के गैर संक्रामक फफोले के माध्यम से प्रकट होता है. रोग के रूप में यह एक संक्रमण नहीं है, नहीं फैलता है.
    6-Palmo पदतल Psoriasis:
    पीपीपी या Palmo पदतल Psoriasis (Palmoplantar Pustulosis) काफी अलग तरह से प्रकट होता है. स्पॉट हथेलियों और तलवों पर स्थित हैं|
    7-कील Psoriasis: नाखून परिवर्तन
    8-खोपड़ी Psoriasis:
    यह सिर के पीछे होता है, लेकिन खोपड़ी के अन्य क्षेत्रों में भी यह हो सकता है.
    9-Psoriatic गठिया:
    Psoriatic गठिया में दर्द होता है और ज्यादा रोग जोड़ों के आसपास सूजन, जोड़ों का दर्द, तराजू, लाली बढ़ती है, त्वचा के घावों psoriatic गठिया के दौरान देखा जाता है.
    [10] रोक थाम:-
    • धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं।
    • मद्यपान और धूम्रपान न करें।
    • स्थिति को और बिगाड़ने वाली औषधी का सेवन न करें।
    • तनाव पर नियंत्रण रखें।
    • त्वचा का पानी से संपर्क सीमित रखें।
    • फुहारा और स्नान को सीमित करें, तैरना सीमित करें।
    • त्वचा को खरोंचे नहीं।
    • ऐसे कपड़े पहने जो त्वचा के संपर्क में आकर उसे नुकसान न पहुंचाएँ।
    • संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं।
    [11] प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:

    • ज़्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ें न खाएं।
    • सोरियासिस या अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए।
    • अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
    •अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिकाई करके गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
    • रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है।
    • रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
    • अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नीबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए।
    • अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
    • अपरस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
    • अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
    • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए।
    • रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
    • रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
    [12] सोरियासिस (छाल रोग) का घरेलू नुस्खों से इलाज-
    • बादाम 10 नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह नुस्खा अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है।
    • एक चम्मच चंदन का पावडर लें। इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतार लें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शक्कर मिला दें। यह दवा दिन में 3 बार पियें। बहुत कारगर उपाय है।
    • पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। ऊपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें। हथेली से दबाकर सपाट कर लें। इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है।
    • पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होता है।
    • नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है।
    • शिकाकाई पानी में उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है।
    • केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपड़ा लपेटें।
    • इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना जरूरी है। सर्दी के दिनों में 3 लीटर और गर्मी के मौसम मे 5 से 6 लीटर पानी पीने की आदत बनावें। इससे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलेंगे।
    •विटामिन `ई´ युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करने से यह रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।
    [13] आहार का महत्त्व-
    १-व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है।
    २-सोरायसिस रोग से पीड़ित रोगी को दूध या उससे निर्मित खाद्य पदार्थ, मांस, अंडा, चाय, काफी, शराब, कोला, चीनी, मैदा, तली भुनी चीजें, खट्टे पदार्थ, डिब्बा बंद पदार्थ, मूली तथा प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
    ३-जौ, बाजरा तथा ज्वार की रोटी इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक है।
    ४-नारियल, तिल तथा सोयाबीन को पीसकर दूध में मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
    आंवले का प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
    ५-इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फलों का रस (गाजर, खीरा, चुकन्दर, सफेद पेठा, पत्तागोभी, लौकी, अंगूर आदि फलों का रस) पीना चाहिए। इसके बाद कुछ सप्ताह तक रोगी व्यक्ति को बिना पका हुआ भोजन खाना चाहिए जैसे- फल, सलाद, अंकुरित दाल आदि और इसके बाद संतुलित भोजन करना चाहिए