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Saturday 7 November 2020

अनिद्रा ( नींद )से जुड़े रोग उपचार ओर कारण


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः  

          सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् 

अनिद्रा या उन्निद्र रोग (इनसॉम्निया) में रोगी को पर्याप्त और अटूट नींद नहीं आती, जिससे रोगी को आवश्यकतानुसार विश्राम नहीं मिल पाता और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बहुधा थोड़ी सी अनिद्रा से रोगी के मन में चिंता उत्पन्न हो जाती है, जिससे रोग और भी बढ़ जाता है। स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद सोना जरूरी है, लेकिन आजकल कई लोग अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं। इस बीमारी को अंग्रेजी में इंसोमनिया (Insomnia) कहा जाता है। यह एक प्रकार का नींद संबंधी विकार है। इसमें व्यक्ति को सोने में असुविधा, नींद की कमी या नींद पूरी नहीं हो पाने की समस्या रहती है। ऐसा होने से स्वास्थ्य पर असर होता है और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगती हैं।

इसके मुख्य रूप से दो प्रकार माने गए हैं---- 

1. एक्यूट इंसोमनिया - यह अनिद्रा का एक आम प्रकार होता है। यह समस्या कुछ दिनों या हफ्तों के लिए हो सकती है। इसके कारण बहुत ही सामान्य हो सकते हैं जैसे - काम का दवाब, कोई पारिवारिक चिंता, कोई घटना या अन्य कोई समस्या।

2. क्रॉनिक इंसोमनिया – अनिद्रा की यह समस्या गंभीर हो सकती है। यह महीने भर या उससे भी ज्यादा दिनों तक रह सकती है। ज्यादातर मामलों में यह सेकंडरी होती है। क्रॉनिक इंसोमनिया किसी अन्य समस्या के लक्षण या साइड इफेक्ट जैसे - कुछ चिकित्सा स्थितियां, दवाएं और अन्य नींद विकार आदि की ओर इशारा हो सकता है। इसके अलावा, कैफीन, तंबाकू और शराब जैसे खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन भी इसका कारण हो सकता है। कुछ मामलों में यह समस्या तनाव या फिर लंबी यात्रा के कारण भी हो सकती है।

आमतौर पर अनिद्रा का कारण तनाव व थकावट हो सकती है, लेकिन इसके कुछ निम्न कारण भी हो सकते हैं

  • हर रोज सोने के समय में बदलाव होना।
  • दोपहर में सोना या झपकी लेना।
  • सोते वक्त ज्यादा शोर होना या रूम में अधिक लाइट होना।
  • व्यायाम न करना।
  • सोते वक्त मोबाइल व टीवी जैसे उपकरणों का उपयोग करना।
  • धूम्रपान करना।
  • पूरे दिन कैफीन युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • कुछ खास तरह की दवाइयों का सेवन करना।
  • रात के वक्त काम करना। चिंता या तनाव।
  • कुछ खास तरह के नींद संबंधी विकार।
  • शरीर में कोई परेशानी होना या स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होना जैसे - मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, तनाव।
  • जीवनशैली में बदलाव
  • अनिद्रा या सोने में असमर्थता, एक विकार है, जिसे नींद न आना या लंबे समय तक न सो पाने की समस्या से जाना जाता है। अनिद्रा में सामान्यत: संकेत और लक्षण दोनों पाये जाते है, जिसमें सोने में लगातार परेशानी के साथ कई नींद, चिकित्सा, और मनोरोग विकार जुड़े हैं।
     

    जब सोने के बाद जागते है तब विशिष्ट रूप कार्यात्मक (कार्य करने में) नुकसान होता है इसे अनिद्रा कहा जाता है। अनिद्रा किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन यह विशेषकर बुजुर्गों में बेहद सामान्य है। अनिद्रा को अल्पावधि या तीव्र और चिरकालीन या  दीर्घकालिक अनिद्रा में वर्गीकृत किया जाता है।
     
    1. अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा: यह एक महीने से कम अवधि तक अच्छी नींद में असमर्थता है। जब नींद की शुरुआत या नींद को बनाए रखने में कठिनाई होती है या नींद, जो कि स्फूर्ति के बिना या खराब गुणवत्ता के साथ होती है, तब अनिद्रा उपस्थित होती है। इस प्रकार की अनिद्रा नींद के लिए पर्याप्त अवसर और परिस्थितियां के बावजूद उपस्थित होती है तथा जिसके परिणामस्वरुप दैनिक प्रणाली में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा को अल्पकालिक अनिद्रा या तनाव संबंधी अनिद्रा के नाम से भी जाना जाता है। 
     
    2. चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा: यह एक महीने से अधिक समय तक रहती है। यह किसी अन्य विकार या प्राथमिक विकार के कारण हो सकती है। तनाव वाले हार्मोन के उच्च स्तर से पीड़ित लोगों या साइटोकिंस के स्तर में बदलाव के कारण चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा से पीड़ित होने का ज़ोखिम अधिक होता है।
    इसका प्रभाव इसके कारणों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। उसमें मांसपेशियों में थकान, मतिभ्रम और/या मानसिक थकान शामिल हो सकती हैं। जो लोग इस विकार से पीड़ित हैं, उनमें मतिभ्रम होता हैं। उन्हें वास्तव में जो वस्तु नहीं होती, किसी और वस्तु में उसके होने का अहसास होने लगता है। चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा दोहरी दृष्टि उत्पन्न कर सकता है।
  • नींद ऐसी चीज है जो किसी को पत्थर पर सोने से ही आ जाती है और किसी को मखमली बिस्तर पर भी नहीं आती ।

    अनिद्रा, दुनिया भर की आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है, जो हर उम्र के पुरुषों और महिलाओं में हो सकती है। अनिद्रा की परिभाषा बहुत सरल है। नींद ना आना, या लंबे समय तक ना सो पाने की समस्या को अनिद्रा कहते हैं। अनिद्रा के विभिन्न प्रकारों से लोग पीड़ित हैं। अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा, अनिद्रा का एक आम प्रकार है, यह कुछ दिनों के लिए होती है या कुछ दवाएं या जीवनशैली में किये गये मामूली बदलावों से होती है। अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए रहें और गंभीर रुप से आपके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, तो यह एक बहुत गंभीर और चिरकारी समस्या है जिसे सही, पेशेवर चिकित्सक की जरुरत है। अगर एक व्यक्ति 30 दिनों से भी अधिक समय तक के लिये ठीक से ना सो पाएं तो इसका अर्थ यह है कि वह चिरकालीन अनिद्रा का शिकार है। चिरकालीन अनिद्रा से पीड़ित मरीज़ों को "इंसोम्नियाक्स" कहा जाता है।

    प्रमुख कारण :
    आयुर्वेद के अनुसार वात और पित्त बढ़ जाने से अनिद्रा की स्थिति आती है। वात-पित्त मानसिक तनाव के कारण बढ़ता है। इसके बाद कुंठित भावनाओं का स्थान आता है। तीन हफ्तों तक जारी रहने वाली अनिद्रा को ट्रांजियंट इनसोम्निया कहा जाता है। इसका मुख्य कारण मानसिक संघर्ष, अपरिचित या नया वातावरण, सदमा, प्रियजनों की मृत्यु, तलाक या नौकरी में बदलाव आदि हो सकते हैं। नींद ना आने का सबसे प्रमुख कारण टेंशन होता है|शोर-शराबे वाली जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, कम शारीरिक व्यायाम व कम मेहनत करना , ज्यादा शराब सेवन करने से भी नींद नहीं आती है|

    मेरा तो अनुभव यह है कि अधिकतर लोग - जो भूख न लगने या नींद न आने की शिकायत करते हैं, उनकी वास्तविक समस्या होती है, समय पर नींद न आना, अथवा भूख न लगना। इस के लिये शरीर की 'घड़ी' को 'सेट' करना पड़ता है - यानी कि खाने और सोने का सही समय निर्धारित करना. इनके लिये सही समय का पालन न किया जाये तो व्यवस्था बिगड़ सकती है - यह देरी से होने वाले क्रिकेट या फुटबाल के मैच छोड़ने पड सकते है !

    और एक (महान ?) लेखक का कहना है कि
    1. 'भूख और नींद शारीरिक मेहनत से कमाई जाती है'
    2. मेरा तो अनुभव यह है कि अधिकतर लोग - जो भूख न लगने या नींद न आने की शिकायत करते हैं, उनकी वास्तविक समस्या होती है, समय पर नींद न आना, अथवा भूख न लगना। इस के लिये शरीर की 'घड़ी' को 'सेट' करना पड़ता है - यानी कि खाने और सोने का सही समय निर्धारित करना. इनके लिये सही समय का पालन न किया जाये तो व्यवस्था बिगड़ सकती है 

    अनिद्रा नुक्सान :
    अवसाद और चिंता
    मानसिक और शारीरिक थकावट
    संक्रमण और रोगों से धीमी गति से वसूली
    कम ध्यान अवधि
    चिड़चिड़ापन
    सुस्ती
    जागने के बाद आपको खुमारी या सर भारी.
    गुस्सा, व धीरे -2 डिप्रेशन
    असामान्य व्यवहार

    अनिद्रा का सीधा असर हमारे शरीर की चयापचय प्रक्रिया (Metabolic Process) पर पड़ता है और इससे मधुमेह (Diabetes), वज़न का बढ़ना (Weight Gain), उच्च रक्त चाप (High Blood pressure) जैसी बीमारियां हो सकती हैं।यह पाया गया है कि नींद की क्षति रोगक्षम (इम्यून) प्रणाली को प्रभावित करती है।शोधकर्ताओं ने पाया कि नींद की कमी ह्रदय रोग से मृत्यु के खतरे को दुगुने से अधिक बढ़ा देती है, लेकिन बहुत अधिक नींद भी मृत्यु के खतरे को दुगुना करने के साथ जुड़ी हो सकती है, हालांकि मुख्य रूप से ह्रदय रोग से नहीं.अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए हो जाय तो यह शरीर के लिए गंभीर और चिरकारी हो जाती है जिसका इलाज़ अच्छे चिकित्सक से ही करवाना चाहिए।

    उपाय :
    - आपका रुटीन कितना भी व्यस्त क्यों न हो लेकिन अच्छी नींद आए इसके लिए सबसे जरूरी है कि आप अपने सोने का एक समय तय करें।
    - नियमित व्यायाम की आदत डालें, इससे नींद अच्छी आती है, पर सोने से पहले व्यायाम नहीं करना चाहिए।
    - सोने के कमरे को शांत व अंधकारमय रखना ।
    - सोने व उठने की नियमित दिनचर्या बनाना।
    -. शयन के समय शवासन का नियमित अभ्यास।
    - सोते समय सकारात्मक विचारों द्वारा मान को शांत रखना।
    - देर रात तक पार्टियों व टीवी देखने की आदत छोड़ें।
    - दिन में नहीं सोयें ताकि रात में अच्छी नींद आये।
    - सोने से पहले हाथ, पैर धोयें या स्नान कर लें।
    - चाय और कॉफी जैसे पेय भी रात में न लें।
    - बहुत अधिक मसालेदार और हैवी भोजन रात में न करें।
    - भगवान का भजन कर लें या कोई मंत्र जैसे-गायत्री मंत्र का जपकर लें तो भी नींद आ जाती है।
    - सोने से पहले हाथ-पैर साफ करें और फिर अपने तलवों की मसाज करें। इससे शरीर का रक्त प्रवाह सही रहता है और थकान दूर होती है। अच्छी नींद के लिए रोज सोने से पहले इस मसाज से आपकी अनिद्रा की समस्या दूर हो जाएगी।
    - कुछ ऐसे भी योग हैं जिन्हें करने से नींद अच्छी आती है। जैसे शवासन, वज्रासन, भ्रामरी प्राणायम आदि। इन्हें नियमित रूप से करने से अनिद्रा की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा और थकान पूरी तरह दूर होगी।
    - रात्रि को सोने से पहले सरसों का तेल गुनगुना करके उसकी 4-4 बूंदे दोनों कानों में डालकर ऊपर से साफ रूई लगाकर सोने से गहरी नींद आती है।
    - रात को निद्रा से पूर्व रूई का एक फाहा सरसों के तेल से तर करके नाभि पर रखने से और ऊपर से हलकी पट्टी बाँध लेने से लाभ होता है।
    - सोते समय पाँव गर्म रखने से नींद अच्छी आती है (विशेषकर सर्दियों में)।
    - सोने से दो घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। भोजन के बाद स्वच्छ, पवित्र तथा विस्तृत स्थान में अच्छे, अविषम एवं घुटनों तक की ऊँचाई वाले शयनासन पर दक्षिण की ओर सिर करके हाथ नाभि के पास रखकर व प्रसन्न मन से ईश्वरचिंतन करते-करते सो जाना चाहिए।
    - रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक गहरी निद्रा लेने मात्र से आधे रोग ठीक हो जाते हैं।
    - जब आप शयन करें तब कमरे की खिड़कियाँ खुली हों।
    - नींद से उठते ही तुरंत बिस्तर का त्याग नहीं करना चाहिए। पहले दो-चार मिनट बिस्तर में ही बैठकर परमात्मा का ध्यान करना चाहिए कि 'हे प्रभु ! आप ही सर्वनियंता हैं, आप की ही सत्ता से सब संचालित है। हे भगवान, इष्टदेव, गुरुदेव जो भी कह दो। मैं आज जो भी कार्य करूँगा परमात्मा सर्वव्याप्त हैं, इस भावना से सबका हित ध्यान में रखते हुए करूँगा।' ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।
    स्वस्थ रहने के लिए कम से कम छः घंटे और अधिक से अधिक साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए, इससे कम ज्यादा नहीं। वृद्ध को चार व श्रमिक को छः से साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए।

    इन्हें भी आजमायें :
    - अपने शरीर व मन-मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए। सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए। पूरी साँस लेना व छोड़ना है। अब कल्पना करें कि आप समुद्र के किनारे लेटकर योगनिद्रा कर रहे हैं। आप के हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं। अपने आप से कहें कि मैं योगनिद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ।
    - कल्पना करें कि धरती माता ने आपके शरीर को गोद में उठाया हुआ है। अब मन को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे, सभी उंगलियों पर ले जाइए। कलाई, कोहनी, भुजा व कंधे पर ले जाइए। इसी प्रकार अपने मन को बाएं हाथ पर ले जाएं। दाहिना पेट, पेट के अंदर की आंतें, जिगर, अग्नाशय दाएं व बाएं फेफड़े, हृदय व समस्त अंग शिथिल हो गए हैं।
    हृदय के यहाँ देखिए हृदय की धड़कन सामान्य हो गई है। ठुड्डी, गर्दन, होठ, गाल, नाक, आँख, कान, कपाल सभी शिथिल हो गए हैं। अंदर ही अंदर देखिए आप तनाव रहित हो रहे हैं। सिर से पाँव तक आप शिथिल हो गए हैं। ऑक्सीजन अंदर आ रही है। कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर जा रही है। आपके शरीर की बीमारी बाहर जा रही है। अपने विचारों को तटस्थ होकर देखते जाइए।
    अब अपनी कल्पना में गुलाब के फूल को देखिए। चंपा के फूल को देखिए। पूर्णिमा के चँद्रमा को देखिए आकाश में तारों को देखिए। उगते हुए सूरज को देखिए। बहते हुए झरने को देखिए। तालाब में कमल को देखिए। समुद्र की शुद्ध वायु आपके शरीर में जा रही है और बीमारी व तनाव बाहर जा रहा है। इससे आप स्वस्थ हो रहे हैं। आप तरोताजा हो रहे हैं।
    सामने देखिए समुद्र में एक जहाज खड़ा है। जहाज के अंदर जलती हुई मोमबत्ती को देखिए। जहाज में दूसरी तरफ एक लालटेन जल रहा है उस जलती हुई लौ को देखिए। सामने देखिए खूब जोरों की बरसात हो रही है। बिजली चमक रही है, चमकती हुई बिजली को देखिए। बादल गरज रहे हैं। गरजते हुए बादल की आवाज सुनिए। नाक के आगे देखिए। ऑक्सीजन आपके शरीर में जा रही है। कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर जा रही है।
    अपने मन को दोनों भौहों के बीच में लाएँ व योगनिद्रा समाप्त करने के पहले अपने आराध्य का ध्यान कर व अपने संकल्प को 3 बार अंदर ही अंदर दोहराए। लेटे ही लेटे बंद आँखों में तीन बार ओऽम्‌ का उच्चारण करिए। फिर दोनों हथेलियों को गरम करके आँखों पर लगाएँ व पाँच बार सहज साँस लीजिए। अब अंदर ही अंदर देखिए आपका शरीर, मन व मस्तिष्क तनाव रहित हो गया है।आप स्वस्थ व तरोताजा हो गए हैं। जिस तरह से कार की बैटरी चार्ज हो जाती है।
    आयुर्वेद :
    - सोने से पहले रात को इक सेब का मुरब्बा गरम दूध के साथ लें.
    - तीन ग्राम ताज़े पोदीने के पत्ते २०० ग्राम पानी में २ मिनिट तक उबालने के बाद छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना गुनगुना रात को सोने से पहले पी जाएँ. ३-४ हफ्ते इसे आजमायें फिर देखिये.
    - 6 ग्राम खसखस 250 ग्राम पानी में पीसकर कपड़े से छान लें और उसमें 25 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य प्रातः सूर्योदय के बाद या सायं 4 बजे एक बार लें।
    - शंखपुष्पी और जटामासी का 1 चम्मच सम्मिश्रित चूर्ण सोने से पहले दूध के साथ लें।
    - नींद न आने पर तुलसी के पांच पत्तों को खाने और रात को सोते समय तकिए के आस-पास फैलाकर रखने से इसकी सुगंध से नींद आने लगती है।
  • अनिद्रा से संबंधित तथ्य :

    1. अनिद्रा यदि चंद दिनों से ही है तो यह प्राय: किसी घरेलू या दफ्तर के तनाव से है. घबराने की बात नहीं. शायद दवा की जरूरत भी नहीं.

    2. यदि अनिद्रा दो-तीन-चार सप्ताह तक खिंच जाए तो कुछ दिनों के लिए डॉक्टर की नींद की दवा ले लें. ऐसा प्राय: तनाव से तो होता ही है, किसी बीमारी या सर्जरी से उठने के बाद भी हो सकता है.

    3. हां, यदि अनिद्रा कई महीनों या सालों से है तो इसे पूरी जांच और इलाज की आवश्यकता है. इसमें मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलकर डिप्रेशन आदि की आशंका की जांच भी हो सकती है. थायरॉयड, अस्थमा, हृदय रोग, पार्किन्सोनिज्म, माइग्रेन, यहां तक कि असामान्य किस्म की मिर्गी तक की संभावना रहती है.

     4. अनिद्रा का एक बड़ा कारण आपकी ‘खराब स्लीप हाइजीन’ भी हो सकती है. ‘स्लीप हाइजीन’ में बहुत सी बातें आती है. बिस्तर अधिक गद्देदार हो, सोने के कमरे में बहुत रोशनी या शोर हो, साथ वाला खर्राटे मारता हो, लात चलाता हो, यहां तक कि दीवार घड़ी जोर से टिकटिक करती हो तो यह खराब ‘स्लीप हाइजीन’ है. यदि सोने से पहले आप ऑफिस के तनाव में लगे रहें, ठूसकर खा लिया है, गर्म पानी से स्नान कर लिया है, कसरत कर ली है - तो ये सब भी निद्रा विरोधी हैं.

    5. जहां तक दारू की बात है तो पीकर आप सो तो जाएंगे परंतु रातभर टूट-टूटकर ही नींद आएगी या आने के कुछ देर बाद जो टूटेगी तो फिर आएगी ही नहीं. आज दो पेग में आई है, बाद में तीन में आएगी और फिर चार पेग में भी नहीं आएगी.

    6. क्या अनिद्रा किसी मानसिक रोग का लक्षण है? हां, यह संभव है. बेचैनी, अवसाद (डिप्रेशन) तथा मूड डिसऑर्डर में भी अनिद्रा हो सकती है. डिप्रेशन इस मामले में अनोखा है कि इसके रोगी को अनिद्रा भी हो सकती है और वह अति निद्रा का शिकार होकर दिन-रात सोता पड़ा भी रह सकता है. डिप्रेशन की दवाइयां भी अनिद्रा पैदा कर सकती है.

    7. कई बीमारियों में अनिद्रा एक महत्वपूर्ण कारक तथा लक्षण हो सकता है. सांस की बीमारी, हार्ट के पंप के कमजोर हो जाने पर होने वाला फेफड़ों का कंजेशन, मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति), किडनी व लीवर खराब होने में अनिद्रा ही एक प्रमुख शिकायत हो सकती है.

    8. नई जगह पर, होटल के कमरे में, अस्पताल में, जीवन में कुछ नया घट जाने पर, कोई महत्वपूर्ण तारीख पास आने पर नींद गड़बड़ हो ही सकती है. इसे ‘एडजस्टमेंट अनिद्रा’ कहते हैं. यह स्वत: ठीक हो जाती है.

    9. ऊंचे पहाड़ों पर पहुंचने पर नींद डिस्टर्ब हो सकती है. इसे ‘एल्टीट्यूड अनिद्रा’ कहते हैं. इसके लिए नींद दवा नहीं बल्कि डायमोक्स नामक दवा लेनी पड़ती है. जो इन स्थानों से एडजस्ट करने के लिए दी जाती है

    दिन के समय उनींद रहना-  दिन के समय नींद के झोंके आने की बात प्राय: मरीज स्वयं नहीं मानता. साथ वाले बताते हैं. ऐसे लोग मीटिंग में, गाड़ी चलाते हुए, मशीन पर काम करते हुए अचानक झपकी ले लेते हैं. यह ‘स्लीप एपनिया’ नाम की बीमारी हो सकती है जिससे आदमी रात में खर्राटे मारता है, सोते हुए उसकी सांस तेज होती-रुकती है और मरीज को पता भी नहीं होता. वह बस दिन भर उनींदा रहता है. यदि ऐसा है तो इसे नजरअंदाज न करें. जांच से एक बार इसका कारण पता चल जाएगा तो फिर इसे ठीक भी किया जा सकता है. नींद की दवाई डॉक्टर की सलाह पर ही लें. हो सके तो बस कुछ समय के लिए ही. यदि अनिद्रा की क्रॉनिक बीमारी है और नींद की दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ें तो इन्हें बीच-बीच में रोक लें. इन्हें लगातार लेंगे तो इनका असर खत्म हो जाएगा       

    आयुर्वेद के अनुसार वात और पित्त बढ़ जाने से अनिद्रा की स्थिति आती है। वात-पित्त मानसिक तनाव के कारण बढ़ता है। इसके बाद कुंठित भावनाओं का स्थान आता है। तीन हफ्तों तक जारी रहने वाली अनिद्रा को ट्रांजियंट इनसोम्निया कहा जाता है। इसका मुख्य कारण मानसिक संघर्ष, अपरिचित या नया वातावरण, सदमा, प्रियजनों की मृत्यु, तलाक या नौकरी में बदलाव आदि हो सकते हैं। नींद ना आने का सबसे प्रमुख कारण टेंशन होता है|शोर-शराबे वाली जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, कम शारीरिक व्यायाम व कम मेहनत करना , ज्यादा शराब सेवन करने से भी नींद नहीं आती है| आधुनिक रिसर्च के अनुसार इस तरह की समस्याओं का कारण हमारी बदलती जीवनशैली भी है। हमारे पास ऐसे बहुत से मरीज आते हैं जो कहते हैं कि उन्हें नींद नहीं आती।

    अनिद्रा के लक्षण और इससे नुक्सान 

    १. सुस्ती- अनिद्रा के कारण लोगों में दिखाई देने वाला एक आम लक्षण है.

    २. जागने के बाद आपको खुमारी या सर भारी होने का अहसास होता है.  

    ३. जब एक व्यक्ति की रोज की नींद पूरी नहीं होती तो उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन होने लगता है.

    ४. ऐसे लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आने लगता है और वे धीर धीरे डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं.

    ५. उनका व्यवहार असामान्य होने लगता है।

    ६. अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए हो जाय तो यह शरीर के लिए गंभीर और चिरकारी हो जाती है जिसका इलाज़ अच्छे चिकित्सक से ही करवाना चाहिए।

    ७. अगर एक व्यक्ति 30 दिनों से भी अधिक समय तक के लिये ठीक से ना सो पाएं तो इसका अर्थ यह है कि वह चिरकालीन अनिद्रा का शिकार है।

    ८. अनिद्रा के कारण साइकोसोमैटिक परेशानियां जैसे डीप्रेशन, घबराहट, आत्मबल की कमी जैसी समस्याएं भी होती हैं।

  •  उपचार----- 

    प्रारम्भ में हम इसका उपचार बिना दवाइयों के ही करते है. इनमे कुछ आसान उपाय अपनाने होते हैं जैसे-

     १. नियमित व्यायाम की आदत डालें, इससे नींद अच्छी आती है, पर सोने से पहले व्यायाम नहीं करना चाहिए।

    २. सोने के कमरे को शांत व अंधकारमय रखना ।

    ३. सोने व उठने की नियमित दिनचर्या बनाना।

    ४. शयन के समय शवासन का नियमित अभ्यास।

    ५. सोते समय सकारात्मक विचारों द्वारा मान को शांत रखना।

     रोगियों के ध्यान रखने के लिए ज़रुरी बातें

     १. अगर नींद नहीं आ रही हो तो अभी बिस्तर पर न जाएं।

    २. बिस्तर पर लेटे लेटे नींद का इंतजार न करें। तभी लेटें , जब नींद आने की फीलिंग हो।

    ३. हर सुबह एक निश्चित समय पर उठें। रात को निश्चित समय पर सोएं।

    ४. देर रात तक पार्टियों व टीवी देखने की आदत छोड़ें।

    ५. दिन में नहीं सोयें  ताकि रात में अच्छी नींद आये।

    ६. सोने से पहले व्यायाम करके भोजन करें। सोने से पहले हाथ, पैर धोयें या स्नान कर लें।

    ७. सोने से पहले रात को इक सेब का मुरब्बा गरम दूध के साथ लें.

    ८. तीन ग्राम ताज़े पोदीने के पत्ते २०० ग्राम पानी में २ मिनिट तक उबालने के बाद छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना गुनगुना रात को सोने से पहले पी जाएँ. ३-४ हफ्ते इसे आजमायें फिर देखिये.

    ९. कुछ धार्मिक रोगियों से बात करने पर पता चला कि भगवान का भजन कर लें या कोई मंत्र जैसे-गायत्री मंत्र का जपकर लें तो भी नींद आ जाती है।

    योग चिकित्सा

    नींद लाने के लिए कई आसान उपाय बताये गये हैं। भारत में योग उनमें से एक उपाय है। पश्चिमी देशों में संगीत को महत्व दिया गया है। अनिद्रा दूर करने का एक तरीका ध्यान भी है। सुबह और शाम लगभग 20 मिनट तक किए गए योगासनों के जरिए शरीर को उतना ही लाभ पहुंचाया जा सकता है, जितना आठ घंटे की नींद लेने से होता है। योगासन हमारे शरीर के तंत्रिका तंत्र को सक्रिय बनाते हैं। ये तनाव से राहत दिलाने में मदद करते हैं, जोकि अनिद्रा का सबसे आम कारण है। शवासन एक ऐसी मुद्रा है जो हमें तनाव से मुक्त कर अनिद्रा से छुटकारा पाने में मदद करती है। इसे केवल 20 मिनट कीजिये; आपको अवश्य ही आराम मिलेगा ऐसा हमारा अनुभव है.

    आपको सलाह दी जाती है कि अगर आप सामान्य उपचार द्वारा ठीक नहीं हो पा रहे हैं तो इसके विशेषज्ञ से मिलकर रोग को जल्दी से जल्दी दूर करने का प्रयास करें जिससे आपकी सेहत अच्छी हो सके.

     


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  • उत्तम जैन (प्राकृतिक चिकित्सक )8460783401 


Sunday 26 November 2017

मस्तिष्क का दौरा के कारण , लक्षण और चिकित्सा

हमारे शरीर में मस्तिष्क और नाड़ियो को प्राणवायु ( Oxygen) और पोषक तत्वों की निरंतर आपूर्ति रक्त वाहिकाओं से रक्त के द्वारा की जाती है। जब भी इन रक्तवाहिकाओं में किसी कारण क्षति पहुचती है या अवरोध निर्माण होता है तब मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है।
जिस तरह ह्रदय को रक्त की आपूर्ति न होने पर हृदयघात / Heart attack आ जाता है, उसी प्रकार मस्तिष्क के कुछ हिस्से को 3 से 4 मिनिट से ज्यादा रक्त न मिलने पर प्राणवायु (Oxygen) और पोषक तत्वों के आभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही मस्तिष्क का दौरा ( Brain stroke  या Brain Attack भी कहते है।  Stroke या मस्तिष्क के दौरे ( Brain stroke ) के कारण, लक्षण और उपचार से जुडी सम्पूर्ण जानकारी सरल हिंदी भाषा में निचे दी हुई हैं :
मस्तिष्क का दौरा ( Brain stroke )होने के मुख्यतः 2 कारण पाए जाते है।
Ischemic Stroke – अरक्तता मस्तिष्क का दौरा  ( Brain stroke )
Hemorrhagic Stroke – रक्तस्त्राव मस्तिष्क का दौरा ( Brain stroke )
एक तीसरे प्रकार का भी मस्तिष्क का अस्थाई दौरा होता है जिसमे Stroke के लक्षण कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटो तक ही रहते है और बाद में ठीक हो जाते है। इसे Transient Ischemic Attack या TIA कहा जाता है। यह इस बात की चेतावनी देता है की आपको कोई समस्या है और इसका इलाज न कराने पर निकट भविष्य में आपको Stroke पड़ सकता है।
मस्तिष्क का दौरा ( Brain stroke ) के कारणों की अधिक जानकारी  

1)  अरक्तता मस्तिष्क का दौरा ( Ischemic Stroke) 

Brain stroke  होने का यह सबसे आम कारण है। लगभग 80 से 85 % लोगो में मस्तिष्क का दौरे कारण यही होता है। यह मस्तिष्क के किसी रक्तवाहिनी के संकीर्ण होने या अवरोध निर्माण होने के कारण होता है। इसके प्रमुख 2 कारण है :
Thrombotic Stroke – इस प्रकार के मस्तिष्क के दौर में मस्तिष्क के रक्त वाहिनी में खून के जम जाने के कारण या थक्के ( clot ) के कारण अवरोध निर्माण हो जाता है। जिन रोगियों में खून के अंदर Cholesterol का प्रमाण ज्यादा होता है, ऐसे रोगियो के रक्तवाहिनी में भीतरी स्तर पर Fats जमा हो जाता ही जिसे plaque कहते है। इस जमा हुए plaque पर खून का थक्का जमा हो जाने पर धीरे-धीरे पूरी रक्तवाहिनी में अवरोध निर्माण हो जाता है और मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त न मिलने पर Thrombotic stroke पड़ जाता है।
Embolic Stroke – इस प्रकार के मस्तिष्क के दौर में रक्त का थक्का या इंजेक्शन या सलाइन द्वारा गलती से रक्त वाहिनी में प्रवेश किया हुआ हवा का छोटा बुलबुला मस्तिष्क के किसी छोटी रक्तवाहिनी में फसने के कारण रक्तवाहिनी में अवरोध निर्माण हो जाता है और मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त न मिलने पर Embolic stroke पड़ जाता है।

2)  रक्तस्त्राव मस्तिष्क का दौरा (Hemorrhagic Stroke)

मस्तिष्क के किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारन होने वाले इस मस्तिष्क के दौरे बेहद गंभीर होते है। उच्च रक्तचाप, रक्त वाहिनी की जन्मजात विकृति या रक्त वाहिनी में फुलाव (Aneursyms) के कारण मस्तिष्क में रक्तस्त्राव हो सकता है। इसके दो प्रकार है :
Intra-cranial Hemorrhage – इस प्रकार में मस्तिष्क के किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारण मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त की आपूर्ति में कमी आने के कारन Brain cells को क्षति पहुचती है। इस प्रकार के मस्तिष्क के दौरे का प्रमुख कारण उच्च रक्तदाब (Hypertension) है। लगातार कई समय तक उच्च रक्तचाप के कारन रक्तवाहिनी कमजोर और कड़ी हो जाती है और परिणामतः फट जाती है।
Sub-Archnoid Hemorrhage – इस प्रकार में मस्तिष्क और कपाल के बीच के स्तर में किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारण Sub-Archnoid space में रक्त एकत्रित हो जाता है। इसका प्रमुख कारण रक्त वाहिनी की जन्मजात विकृति या रक्त वाहिनी में फुलाव ( Aneursyms ) होता है। इस प्रकार में रोगी को तेज सरदर्द का अनुभव होता है।

मस्तिष्क का दौरा  ( Brain stroke ) के क्या लक्षण है ?

Stroke के लक्षण मस्तिष्क के में यह किस जगह पड़ा है और कितनी क्षति हुई है इस बात पर निर्भर करता है। मस्तिष्क के दौरे ( Brain stroke )में लक्षण अचानक होते है और इनमे निम्न लक्षण शामिल है :
शरीर के एक ही तरफ के चेहरे, हाथ या टांग में सुन्नपन, चीटिया दौड़ना या कमजोरी सा महसूस होना।
अचानक लड़खड़ाना, चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना। भ्रम की स्तिथि, बोलने या समझने में मुश्किल, धीरे या अस्पष्ट बोलना।
एक या दोनों आँखों से देखने में कठिनाई, तेज सिरदर्द होना, जी मचलना और उलटी होना।

 लक्षणों को तुरंत पहचानने के लिए और मस्तिष्क के दौरे के रोगियों की 

तुरंत पहचान और उन्हें अस्पताल ले जाकर उपचार कराने के लिए 

आप FAST की मदद ले सकते है। FAST का मतलब है –

F – Face ( Facial Weakness ) : रोगी को हँसने के लिए कहे। उसका चेहरा, होठ और आँख एक तरफ लटक जाए तो यह मस्तिष्क के दौरे का लक्षण है।
A – Arms ( Arm Weakness ) : रोगी को हाथ उठाने और सामने फ़ैलाने के लिए कहे। अगर रोगी का एक हाथ उठ न पाए और उठ पाने पर जल्द निचे झुक जाए तो यह मस्तिष्क के दौरे का लक्षण है।
S – Speech ( Speech Difficulty ) : रोगी से कुछ सवाल पूछे। अगर वो ठीक से बोल न पाए और उसकी आवाज लड़खड़ाए, छोटे वाक्य भी मुश्किल से बोले तो यह मस्तिष्क के दौरे का लक्षण है।
T – Time ( Time to Act ) : ऐसी स्तिथि में रोगी को तुरंत डॉक्टर के पास अस्पताल में पहुचाना चाहिए। पहले 3 घंटे के golden period में रोगी को उपचार प्राप्त होने पर मस्तिष्क के दौरे से होने वाले क्षति से बचाया जा सकता है।
मस्तिष्क का दौरा ( Brain stroke ) किसे हो सकता है ?

Stroke होने का खतरा निम्नलिखित व्यक्तियों को अधिक होता है :

उचरक्तचाप ( Hypertension ), मधुमेह ( Diabetes ), ह्रदय रोग ( Heart Disease ) या उच्च LDL Cholesterol से पीड़ित रोगी।
मधुमेह के रोगियों में Stroke की जोखिम 2 से 3 गुना ज्यादा होती है। जिनके परिवार में किसी को मस्तिष्क का दौरा / Stroke का इतिहास है। उच्च रक्तचाप के 40 से 50 % रोगियों में मस्तिष्क का दौरा ( Stroke ) होने की आशंका होती है।55 साल से ज्यादा के व्यक्ति।
Sickle Cell Anemia या Migraine के रोगी। तनावग्रस्त व्यक्ति। नियमित शराब और तंबाखू का सेवन करने वाले या धूम्रपान करने वाले व्यक्ति। जन्मजात रक्तवाहिनी के रोगी। जिनका वजन ज्यादा है। जो सुस्त रहते है और किसी प्रकार का कोई व्यायाम नहीं करते है।
जो गर्भनिरोधक गोलिया, Hormones की गोली ले रहे है।

मस्तिष्क का दौरा / Stroke से बचने के लिए क्या करना चाहिए ?

Stroke से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए :शराब, तम्बाखू और धूम्रपान बंद करे। अगर आप उचरक्तचाप ( Hypertension ), मधुमेह ( Diabetes ), ह्रदय रोग ( Heart Disease ) या उच्च LDL Cholesterol से पीड़ित है तो नियमित डॉक्टर से जाँच कराते रहे और डॉक्टर की सलाह अनुसार दवा लेते रहे। फल, सब्जिया इत्यादि समतोल आहार लेना चाहिए। तनाव से दूर रहे। नियमित व्यायाम और योग / प्राणायाम करे।
अगर आप मोटापे के शिकार है तो अपना वजन नियंत्रित रखे। अगर आपको बार-बार सरदर्द की परेशानी होती है तो चिकित्सक से इसकी जाँच कराना चाहिए। चिकित्सक के सलाह अनुसार CT Scan या MRI द्वारा जाँच हो सकती है।

खून के थक्के की रोकथाम के उपाय

काली चाय यानी ब्लैक टी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि काली चाय खून को गाढ़ा बनने से रोकती है जिस वजह से धमनियों में खून का थक्का जमने से रूकता है। यह नसों में खून के प्रभाव को सरल बनाती है जिस वजह से ब्लडप्रेशर भी नियंत्रित रहता है।अगर आप रोजाना एक सेब या संतरा खाते हैं तो भी आपको खून के थक्के जमने की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।नियमित रूप से व्यायाम करें। वजन को नियंत्रित करें।फल, सब्जियों और अनाज का सेवन अधिक और नमक और फैट का सेवन कम करें। धूम्रपान छोड़े और कम मात्रा में शराब का सेवन करें।ब्‍लड प्रेशर की नियमित जांच करवायें। तो दोस्तों अगर आप इस बीमारी के शिकार नहीं होना चाहते तो आराम की ज़िंदगी छोड़ दीजिए और रोजाना सवेरे दौड़ लगाइये। दफ्तर में अगर आपको ज़्यादा लंबे समय के लिए बैठना पड़ता है तो कोशिश करें कि थोड़ी थोड़ी देर में चलें। इससे पैरों में खून का बहाव सामान्य रहेगा और खून में थक्‍के की समस्‍या को रोका जा सकता है।अगर आपको कोई तकलीफ नहीं है फिर भी 30 वर्ष के होने के पश्च्यात साल में एक बार डॉक्टर से अपनी शारीरक जाँच करा लेना चाहिए। विश्व मे   45 मिनिट में किसी न किसी को मस्तिष्क का दौरा / Stroke आता है। हर 3 मिनिट में मस्तिष्क का दौरा( Brain stroke ) के वजह से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। ह्रदय रोग और Cancer के बाद यह तीसरा सबसे बड़ा जानलेवा रोग है। अगर हम सब थोड़ी से सावधानी बरते, FAST के नियम को याद रखे और लोगो तक इस सन्देश को पहुचाए, तो इस रोग से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावो को काफी हद तक रोका जा सकता है। ( Brain stroke )

Tuesday 26 September 2017

डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं ये पोषक तत्वों की कमी

          पोषक तत्वों की कमी से भी हो सकता है डिप्रेशन

डिप्रेशन आज के समय में एक प्रचलित मानसिक रोग है। इसे आज के समाज का रोग भी कह सकते हैं। समय के साथ बढ़ते घरेलू विवाद, अत्यधिक व्यस्तता, आगे निकलने की होड़, मन मुताबिक काम न होना, अधिकारी द्वारा तिरस्कृत किया जाना या अपनी क्षमता पर संदेह जैसे कई कारण हैं जो अवसाद में ले जाते हैं। लेकिन, अवसाद सिर्फ इन्ही चीज़ों की देन नहीं है। कुछ पोषक तत्वों की कमी होने की वजह से भी हम अवसाद की चपेट में आ जाते हैं। आइये जानते हैं वो कौन से 7 पोषक तत्व हैं जिनकी कमी आपको डिप्रेशन का शिकार बना सकती है।
मैग्नीशियम---मैग्नीशियम एक रासायनिक तत्व है जो हमारे लिए बहुत उपयोगी है। शरीर का आधे से ज्यादा मैग्नीशियम हमारी हड्डियों में पाया जाता है जबकि बाकी शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोग करता है। मैग्नीशियम मस्तिष्क सहित शरीर के अनेक ऊतकों के सही ढंग से काम करने के लिए अनिवार्य है। मैग्‍नीशियम की भरपूर मात्रा न लेने से सिरदर्द, अनिद्रा, तनाव आदि की शिकायत हो सकती है।
आयरन--- आयरन की कमी की समस्या महिलाओं में आम है। लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं, और 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को आयरन की कमी होती है। वहीं केवल तीन प्रतिशत पुरूषों में ये कमी पाई जाती है। आयरन की कमी से ऐनीमिया हो जाता है। इसके लक्षण डिप्रैशन के लक्षणों की तरह ही हैं - थकान, चिड़चिड़ापन, दिमागी धुंधलापन
विटामिन डी---विटामिन डी की कमी का संबंध डिप्रेशन, डीमेंटिया और ऑटिज्म से है। सर्दियों के महीनों में खासतौर पर हमारे शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। इसका कारण ये है कि इस समय सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता, जो कि विटामिन डी का प्रमुख स्रोत है। इस कमी से बचने के लिए हमें विटामिन डी के विकल्प अपनाने की जरूरत है।
विटामिन बी समूह--- विटामिन बी समूह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के सही से काम करने में मदद करता है। यह ब्रेन, स्पाइनल कोर्ड और नसों के कुछ तत्वों की रचना में भी सहायक होते हैं। विटामिन बी समूह की शरीर में अगर कमी हो जाए तो स्मरण शक्ति कमजोर हो सकती है। आप अचानक थकान महसूस कर सकते हैं, डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।  
फोलेट--- जिन लोगों में फोलेट का स्तर निम्न होता है उन पर डिप्रेशन की दवाओं का केवल 7 प्रतिशत असर होता है। इस वजह से काफी मनोचिकित्सक डिप्रेशन के इलाज और डिप्रेशन की दवा का असर बढ़ाने के लिए, डेप्लिन नाम की फोलेट की दवा खाने की सलाह देते हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं तो गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां, बींस, सिट्रस फल व जूस लें  
ऐमीनो ऐसिड्स---प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक्स आपके दिमाक को सही ढंग से काम करने में मदद करते हैं। ऐमीनो ऐसिड्स की कमी से सुस्ती, एकाग्रता की कमी व डिप्रेशन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। ऐमीनो ऐसिड्स के अच्छे स्रोत बीफ, अंडे, मछली, बींस, सीड्स और नट्स हैं। रोजमर्रा की डाइट में इन्हें शामिल करने से शरीर में ऐमीनो ऐसिड्स की कमी धीरे धीरे दूर हो जाती है। 
 जिंक--- ज़िंक बायोकैमिकल रिएक्शन से बचाता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और श्वेत रुधिर कणिकाओं की संख्या बढ़ाकर एंटीबॉडीज़ के उत्पादन को सुगम बनाता है। ज़िंक की कोइ दैनिक खुराक तय नहीं है, और मीट, समुद्री भेजन और दूध-मेवे इसके प्रमुख स्रोत हैं

    Wednesday 20 September 2017

    युवाओं में बढ़ता मानसिक तनाव

    मानव जीवन की भूमिका बचपन है तो वृद्धावस्था उपसंहार है। युवावस्था जीवन की सर्वाधिक मादक व ऊर्जावान अवस्था होती है। इस अवस्था में किसी किशोर या किशोरी को उचित अनुचित का भलीभांति ज्ञान नहीं हो पाता है और शनै: शनै: यह मानसिक तनाव का कारण बनता है। मानसिक तनाव का अर्थ है मन संबंधी द्वंद्व की स्थिति। आज का किशोर, युवावस्था में कदम रखते ही मानसिक तनाव से घिर जाता है। आंखों में सुनहरे सपने होते हैं, लेकिन जमाने की ठोकर उन सपनों को साकार होने से पूर्व ही तोड़ देती है। युवा बनना कुछ चाहते हैं पर कुछ पर विवश हो जाते हैं। यहीं से मानसिक तनाव की शुरुआत होती है।
    युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करके डॉक्टर, इंजीनियर बनकर धनोपार्जन कर सुख-सुविधा युक्त जीवन निर्वाह करना चाहते हैं, परंतु जब उनका उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता तो उनका मन असंतुष्ट हो उठता है और मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है। शिक्षा से प्राप्त उपलब्धियां उन्हें निर्थक प्रतीत होती हैं।
    वर्तमान युग में लड़का हो या लड़की, सभी स्वावलंबी होना चाहते हैं, मगर बेरोजगारी की समस्या हर वर्ग के लिए अभिशाप सा बन चुकी है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह स्थिति अत्यंत कष्टदायी होती है। जब इस प्रकार की स्थिति हो जाती है तो जीवन में आए तनाव से मुक्ति पाने के लिए वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को बाध्य हो जाते हैं। महिलाओं की स्थिति तो पुरुषों की तुलना में ज्यादा ही खतरनाक है।
    वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकरीबन 57 फीसद महिलाएं मानसिक विकारों की शिकार बनीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े पर गौर करें तो हम पाते हैं कि हर पांच में एक महिला और हर 12 में एक पुरुष मानसिक व्याधि का शिकार है। देश में लगभग 50 प्रतिशत लोग किसी न किसी गंभीर मानसिक विकार से जूझ रहे हैं। सामान्य मानसिक विकार के मामले में तो आंकड़ा और भी भयावह है। इनमें महिलाओं के आंकड़े सबसे अधिक हैं।
    हमारा पारिवारिक और सामाजिक ढांचा ही ऐसा है कि मानसिक अवसाद या तनाव को बीमारी नहीं माना जाता, जबकि अवसाद जैसी समस्या को स्वीकारना और उसका हल खोजना छुपाने वाली बात नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो भारत अवसाद के मरीजों के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में से शुमार है। यहां तकरीबन 36 फीसद लोग गंभीर अवसाद से ग्रस्त हैं।
    आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और असफलता जैसी समस्याओं से जूझने वाले युवा अवसाद और तनाव झेलते हैं और इसके चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे में कुछ समय पहले आये एक सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं।
    इस शोध के मुताबिक, उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। आत्महत्या से होने वाली मौतों में 40 फीसद अकेले चार बड़े दक्षिणी राज्यों में होती है। यह बात किसी से छिपी ही नहीं है कि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण में उत्तर से कहीं ज्यादा है। वहां रोजगार के भी बेहतर विकल्प रहे हैं, बावजूद इसके यहां तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या जैसे समाचार सुर्खियां बनते हैं। इनमें बड़ा प्रतिशत ऐसे युवाओं का है जो सफल हैं, शिक्षित हैं और धन दौलत तो इस पीढ़ी ने उम्र से पहले ही बटोर ली है।
    मौजूदा दौर में समाज में आगे बढ़ने और सफल होने के जो मापदंड हैं, वे सिर्फ आर्थिक सफलता को ही सफलता मानते हैं। यह बात फिल्म से लेकर कारपोरेट वल्र्ड और सामान्य जन तक बर बराबर लागू होती है। पढ़ाई मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पाने का जरिया भर बन कर रह गई। इस दौड़ में शामिल युवा परिवार व समाज से दूर होते जा रहे हैं। उनके जीवन में न रचनात्मकता बची है और न आपसी लगाव का कोई स्थान रहा है, परिणाम सामने है।
    आज जिस आयु वर्ग के युवा तनाव व अवसाद झेल रहे हैं, वे परिवार और समाज के सपोर्ट सिस्टम से दूर ही रहे हैं। इस पीढ़ी का लंबा समय घर से दूर पढ़ाई में बीतता है और नौकरी के लिए भी उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ता है। युवा घर से दूर रहकर करियर के शिखर पर तो पहुंच जाते हैं, पर मन और जीवन दोनों सूनापन लिए होता है।
    उम्र के इस पड़ाव पर उनके पास भौतिक स्तर पर सब कुछ पा लेने का सुख तो है पर कुछ छूट जाने की टीस भी है। कभी-कभी यही अवसाद और अकेलापन असहनीय हो जाता है तो वे जाने-अनजाने जीवन के अंत की राह चुन लेते हैं या बीमारी में इतना घिर जाते हैं कि सुध-बुध खो जाती है। अवसाद के बढ़ते आंकड़े सोचने को विवश करते हैं कि क्या यह पीढ़ी इतना आगे बढ़ गयी है कि जीवन पीछे छूट गया है?
    अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सबसे बड़ी वजह है अवसाद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2020 तक मौत का सबसे बड़ा कारण अपंगता व अवसाद होगा। जिस युवा पीढ़ी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की आशाएं संजोए है, उसका यूं उलझना समाज व राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।
    इन मानसिक तनाव से मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपाय उसका अपना विवेक है। संस्कारवान शिक्षा दीक्षा तथा नैतिकता के माध्यम से उसका रास्ता प्रशस्त होता है। इसके लिए दृढ़संकल्प, अदम्य साहस, अथक परिश्रम, धैर्य, यथार्थ को ज्ञान, सहनशीलता और सबसे अधिक स्वावलंबन, आत्म निर्णय एवं आत्मविश्वास की भी आवश्यकता होती है। यह जीवन एक साधना है। इसे आप एक नियमित दिनचर्या बनाकर, एक उद्देश्य को सामने रख कर जिएं। अपने अंदर अच्छे गुण पैदा करें। पुण्य कार्य करें।
    धर्म के रास्ते पर चलते हुए अपने दुख के दिनों को धीरज के रास्ते बीतते हुए देखें। जीवन अवधि, सुख-दुख, धन, विद्या मनुष्य के जन्म से पहले ही निश्चित होता है। इसलिए न तो इनके बारे में चिंता करनी चाहिए और न भटकना चाहिए। फिर भी सब कुछ भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए।
    ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ को ध्यान में रखते हुए सदा कर्म करते रहना चाहिए। परेशानियों को हमेशा सबक की तरह लें, प्रकृति आपको सिखाना चाहती है। परीक्षा लेती है। कितने खरे उतरते हो। इस रोल के लिए आपको चुना गया है। आप चाहें तो टूटकर बिखर जाएं, आप चाहें तो निखर जाएं। अपनी ऊर्जा को सही दिशा दें। जब आप इस अहसास से भरे होंगे कि आपके आस-पास इतने सारे लोग, सब उस सर्व-शक्तिमान के अंश हैं, सिर्फ शरीर रूपी आवरण की वजह से भटके हुए हैं। तब आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर पायेंगे।
    मन की नकेल अपने हाथ रखिए, चिंता और डर को हावी न होने दें। भाव और बुद्धि का सामंजस्य बिठाते हुए चलें। भाव के बिना सब नीरस है, बुद्धि के बिना सब आफत है। जो छूट गया है, जिसका आप दुख मना रहे हैं, चाहे वह महत्वाकांक्षाएं थीं या इच्छाएं, सुख-सुविधाएं या बड़े प्रिय अपने या मान-सम्मान या फिर सपने; वह तो महज बैसाखियां थीं जो आपने अपने जीने के लिए सहारे या कहिये बहाने की तरह खोज लिए थे।
    आप अपने सहारे या अपने नूर के साथ चले ही कहां? आपने अपनी दुनिया भी इतनी सीमित कर ली थी, जरा अपनी दुनिया का दायरा बड़ा कीजिए, दूसरों का दुख नजर आएगा तो अपना दुख छोटा नजर आएगा। सकारात्मक चिंतन ही सही दिशा दे सकता है। जिंदगी एक तपस्या है, जीवन को साधकर एक साधक की तरह जिएं। ।

    Sunday 17 September 2017

    मानसिक स्वास्थ्य

    मानसिक अस्वास्थ्यता दुनियाभर में एक बडी समस्या है। मानसिक रोगों से ग्रस्त लोगों को शारीरिक रोगों से ग्रस्त लोगों के तुलना में कम सहानुभूति और देखभाल मिल पाती है। आचरण और व्यवहार में गड़बड़ियों और छोटी मोटी मनोवैज्ञानिक बीमारियों के रोगीयों का अक्सर दूसरे लोग मज़ाक ही उड़ाते हैं। मानसिक बीमारियों के प्रति हमें अपना रवैया बदलना चाहिए। ये बीमारियॉं उतनी ही वास्तविक होती हैं जितनी की शारीरिक बीमारियॉं और बहुत सी ऐसी बीमारियों में इलाज से फायदा हो सकता है। यह आम धारणा है कि मनोचिकित्सा में रोगीयो को पागल खाने में बंद कर देना, बिजली का झटका देना और नींद में रखना ही शामिल हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है।
    ग्रामीण समुदाय में जहॉं मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत अधिक अभाव है और लोग जादू टोने आदि का सहारा लेते हैं। मानसिक रो्गीयो को भूतप्रेत की बाधा या देवी प्रकोप माना जाता है अत मंदिर या पीर की मजार पर प्रार्थना या अन्य पीडा दायक तरीको से इलाज किया जाता है ।
    astrology-future
    ज्योतिष और भविष्य में मानसिक बाधा का 
    कोई इलाज नही, खाली समय गमाना है|
    पीडित व्यक्ति ठीक इलाज नही मिलने के और अधिक हिसांत्मक या अस्वाभिेक रूप से शांत व्यवहार करता है। सही इलाज से ही उसे ठीक किया जा सकता है।लगभग हर समुदाय के एक प्रतिशत लोग किसी न किसी गंभीर मनोविकार से ग्रस्त होते हैं। इसलिए 500 की आबादी वाले गॉंव में 4 से 5 लोग मनोरोग के शिकार होंगे। इसके अलावा किसी भी समुदाय में करीब 10 प्रतिशत लोग किसी न किसी साधारण मानसिक रोग या असामान्य व्यवहार से व्यक्तित्व में गड़बड़ी के शिकार होते हैं। इनमें से बहुत लोगों को किसी न किसी मनोचिकित्सक की सहायता की ज़रूरत होती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में हम ऐसी समस्याओं को जल्दी ही पहचान सकते हैं और उन्हें मनोचिकित्सक सहायता दिला सकते हैं।
    मानसिक अस्वास्थ्य के कारण-- मानसिक अस्वास्थ्य जन्मजात और बहुत से बाहरी कारणों से ग्रासीत होने (एक्याक्यार्ड) पर निर्भर करता है। जन्म के बाद के पहले साल में ही मस्तिष्क के आकार की वृद्धि पूरी हो जाती है। परन्तु मानसिक रूप से परिपक्व होने की प्रक्रिया वयस्क होने के शुरुआती समय तक चलती रहती है। दिमाग और बुद्धि पर जो कारक असर डालते हैं उनके बारे में नीचे दिया गया है।
    शारीरिक कारण-- कुपोषण और अन्य शारीरिक कारणों से भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। मस्तिष्क आवरण शोथ (मैनेन्जाइटिस) से लंबे समय से ग्रसीत रोगी के लिए दिमाग की क्रिया पर असर पड़ सकता है। आतशक (सिफलिस ) की तीसरी अवस्था भी एक ऐसा ही और उदाहरण है।
    नशीले पदार्थ- शराब पीने, भांग या ब्राउन शुगर आदि के सेवन से भी मानसिक बीमारियॉं हो जाती हैं।
    परिवारिक कारण--
    Family disciplineसामान्य बौध्दिक व मानसिक परिपक्वता के लिए माता पिता का प्यार और देखभाल बहुत ही ज़रूरी है। । बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, उन्हें मारना पीटना, बहुत अधिक अनुशासन या अनुशासन का पूर्ण अभाव, मॉं बाप में न बनना, घर में हिंसा आदि सब बच्चे के दिमाग पर असर डालते हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक प्यार भरे और स्वस्थ माहौल की बेहद ज़रूरत होती है। अपराध, बुरी आदतें और व्यक्तित्व की समस्याएं अक्सर ही घरेलू समस्याओं के कारण होती हैं।
    सामाजिक कारण-- पूर्ण सामाजिक असमानता, मौकों का अभाव, असुरक्षा और यहॉं तक कि बहुत अधिक पैसा होने से भी व्यवहार में परेशानियॉं हो सकती हैं।
    अनुवांशिकी-- कुछ एक मानसिक असामान्यता या गड़बड़ियॉं अनुवांशिक होती हैं। खास करके गंभीर बीमारियॉं जैसे कुछ हद तक अनुवंशिक होती है। परन्तु सभी मानसिक बीमारियॉं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे नहीं पहुँचती हैं। इसी तरह से सभी भाई बहनों में एक सी मानसिक गड़बड़ियॉं और असामान्यताएं नहीं होती हैं।