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Monday 2 November 2020

गठिया (Arthritis) क्या है ? उपचार व परहेज

 


गठिया (Arthritis) क्या है?

गठिया एक या कई और संयुक्त जोड़ों की सूजन है। गठिया के विभिन्न प्रकार हैं जो लोगों के बीच पाए जा सकते हैं, गठिया के प्रत्येक प्रकार के कारण अलग तरह का शारीरिक दर्द होता है। सबसे आम गठिया प्रकार पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस हैं। गठिया के कारण जोड़ों में दर्द और अकड़न होती है और उम्र के साथ तेज हो सकता है, हालांकि, कभी-कभी वे अप्रत्याशित रूप से भी प्रकट हो सकते हैं। अधिकांश समय, गठिया 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में और शायद ही कभी बच्चों में विकसित होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को गठिया होने का खतरा अधिक होता है, खासकर रूमेटाइड आर्थराइटिस के मामले में। दूसरी ओर, गाउट, एक अन्य प्रकार का गठिया पुरुषों में अधिक पाया जाता है। मोटापा गठिया का एक प्रमुख कारण अक्सर शरीर के अतिरिक्त वजन वाले लोगों में पाया जाता है।

गठिया के लक्षण क्या हैं

घुटने के गठिया के लक्षण अन्य सभी के बीच सबसे प्रमुख और आम हैं। सभी गठिया प्रकार के सामान्य गठिया लक्षणों में से कुछ इस प्रकार हैं:

  • जोड़ों में अत्यधिक दर्द
  • जोड़ों में अकड़न
  • सूजन
  • लाली
  • जॉइंट्स की गति में कठिनाई

इन लक्षणों में से अधिकांश सुबह के दौरान अनुभव किए जाने की अधिक संभावना है। प्रतिरक्षा प्रणाली की सूजन के कारण रुमेटीइड गठिया भी भूख न लगना या थकान का कारण बनता है। यह आगे एनीमिया में विकसित हो सकता है या मामूली बुखार का अनुभव करा सकता है।

आम गठिया प्रकार

यहाँ गठिया के दो सामान्य प्रकारों पर थोड़ा और विस्तार दिया गया है:

ऑस्टियोआर्थराइटिस

जब प्रत्येक हड्डी / जोड़ की छोर को कवर करने वाला लचीला उपास्थि (कार्टिलेज) नीचे हो जाता है, तो प्रभावित को ओस्टियोआर्थराइटिस का निदान किया जाता है। इस तरह के गठिया से जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है और सबसे अधिक प्रभाव घुटनों, कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में होती है।

रूमेटाइड आर्थराइटिस

यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों और उसके आसपास के ऊतकों में सूजन का कारण बनती है। यह शरीर के अन्य अंगों में सूजन का कारण बन सकता है और इस प्रकार इसे व्यवस्थित बीमारी के रूप में भी जाना जाता है।

जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस

जेआईए या जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस को किशोर रूमेटाइड आर्थराइटिस के रूप में भी जाना जाता है और दोनों ही शब्दों का परस्पर विनिमय किया जाता है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मूल रूप से एक पुरानी, ​​गैर संक्रामक, सूजन और ऑटोइम्यून संयुक्त बीमारी है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है।


गठिया उपचार:

गठिया का उपचार गठिया के प्रकार और इसकी डिग्री पर निर्भर करता है। गठिया के उपचार का मुख्य कार्य जोड़ों में दर्द को कम करना है। एक व्यक्ति के लिए जो उपचार काम कर सकता है, ज़रूरी नहीं के दूसरे के लिए भी काम करे। गठिया के दर्द के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सामान्य देखभाल तकनीकों में हीटिंग पैड या आइस पैक को जॉइंट्स पर रखना है। गठिया घुटने वाले लोग चलने के दौरान जॉइंट्स पर पड़ते हुए दबाव को कम करने के लिए वॉकर और या केन जैसी गतिशीलता के लिए सहायता उपकरणों का उपयोग करते हैं।

अधिक गंभीर मामलों में, डॉक्टर इस बीमारी के निदान के लिए निम्नलिखित गठिया उपचार का सुझाव दे सकते हैं:

गठिया के लिए दवाएं 

कुछ दवाएं हैं जो गठिया के इलाज के लिए ली जा सकती हैं।

  • दर्दनाशक – दर्द प्रबंधन के लिए मदद करता है
  • गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं – ये दवाएं गठिया के कारण होने वाले दर्द और सूजन को नियंत्रित करने में मदद करती हैं
  • मेन्थॉल या कैप्साइसिन – ये क्रीम जोड़ों से दूसरे हिस्सों में दर्द के संकेत के प्रसार को रोकते हैं
  • इम्यूनोसप्रेसेन्ट – ये दवाएं जोड़ों पर सूजन को कम करने में मदद करती हैं
  • नोट: गठिया के उपचार के लिए दवाएं केवल डॉक्टर की सिफारिशों के आधार पर ली जाती हैं, जो इसकी गंभीरता पर निर्भर करती है।

आर्थराइटिस के लिए सर्जरी

एक सामान्य तरीका यह होगा कि सर्जरी के जरिए उस विशेष जॉइंट् को आर्टिफिशल से बदल दिया जाए। सबसे आम जोड़ों का रिप्लेसमेंट गठिया घुटने और कूल्हों के लिए हैं।

आपकी उंगली या कलाई में गंभीर गठिया के मामले में, एक जॉइंट्स संलयन जहां आपकी हड्डियों के सिरों को एक साथ रखा जाता है जब तक वे ठीक नहीं होते हैं किया जाते हैं। ये तरीके केवल गठिया के गंभीर मामलों के लिए हैं, जहां गठिया का दर्द चरम पर है और जब गठिया में किसी भी तरह की दवा या फिजियोथेरेपी का असर नहीं होता है।

गठिया के लिए फिजियोथेरेपी

गठिया में प्रभावित जोड़ों को, फिजियोथेरेपी के अनुसार, व्यायाम करना शामिल है जो जॉइंट्स के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी आपके जोड़ को ठीक करने के लिए प्राकृतिक तरीकों में से एक है और इसे शुरुआती चरणों में ही शुरू करने की सलाह दी जाती है। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी सबसे आम घुटने में गठिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जब गठिया से पीठ और गर्दन में दर्द होता है।

गठिया के लिए जोखिम कारक क्या हैं:

  • पारिवारिक इतिहास – पर्यावरणीय कारकों के कारण गठिया जेनेटिक या वंशानुगत भी हो सकता है जो किसी के संपर्क में है।
  • आयु – गठिया दर्द और गठिया लक्षण उम्र के साथ बढ़ते हुए देखे जाते हैं।
  • पहले जोड़ों की चोट – एक जोड़े में चोट के साथ, शायद एक खेल के कारण, उस जोड़े में गठिया विकसित होने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए: बास्केट बॉल, लंबी कूद, आदि के दौरान जमीन पर खराब लैंडिंग के कारण घुटने में गठिया सबसे आम है।
  • मोटापा – शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों पर तनाव डालता है जो गठिया के प्रमुख कारणों में से एक है। मोटापे के कारण गठिया घुटने का सबसे आम मामला है।

गठिया की जटिलताएँ :

जोड़ों में गठिया के गंभीर मामले जैसे कलाई, उंगलियां, आदि गठिया के दर्द के कारण दैनिक कार्यों को करने में परेशानी का कारण हो सकते हैं। इसी तरह, घुटनों या कूल्हों, टखनों आदि में गठिया होने से आराम से चलने या बैठने में असुविधा हो सकती है। इस प्रकार, गठिया के लक्षण का पता चलते ही समस्या पर ध्यान देना बेहद जरूरी है और गठिया के लिए गठिया पुनर्वास या फिजियोथेरेपी शुरू करनी चाहिए ।

गठिया के साथ मदद करने के लिए जीवन शैली परिवर्तन

गठिया घुटने का दर्द सबसे आम है और एक स्वस्थ वजन बनाए रखने से गठिया के प्रभाव को कम किया जा सकता है, अगर एक जॉइंट पहले से ही प्रभावित हो गया हो। एक स्वस्थ आहार भी गठिया के लक्षणों को नियंत्रित करने में योगदान देता है, चाहे वह गठिया पीठ दर्द, गठिया गर्दन का दर्द या जोड़ों की सूजन हो। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी जोड़ों के उपचार का सबसे अच्छा तरीका है। गठिया के लिए भौतिक चिकित्सा केवल फिजियोथेरेपी तक सीमित नहीं है, बल्कि तैराकी जैसे अन्य व्यायामों तक भी फैली हुई है जो जोड़ों पर दबाव डाले बिना व्यायाम का एक शानदार रूप है।

बैठने और काम करते समय शरीर के स्थिर या खराब मुद्रा में होने के कारण भी गठिया हो सकता है। घर या कार्यालय में सरल व्यायाम गठिया को रोकने में मदद कर सकते हैं। कुछ सरल व्यायामों में शामिल हैं:

  • गर्दन की राहत के लिए – सिर झुका हुआ, गर्दन घुमाना।
  • डेस्क जॉब वाले लोगों के लिए – उन जोड़ों में तनाव को कम करने के लिए उंगली और अंगूठे का मोड़ और कलाई का घूमना
  • लेग रिलीफ के लिए- हैमस्ट्रिंग स्ट्रेच, लेग रेज और अन्य लेग स्ट्रेच। घुटने के गठिया के लक्षणों को विकसित होने वालों के लिए ये महत्वपूर्ण स्ट्रेच हैं।
  • उपचार --- विरेचन करें, एरंड तेल गुनगुने पानी से लें, अभ्यंगम करें, निर्गुन्डी तेल, पिंड तेल, सुकुमार तेल, गुडुची तेल, अदरक का पेस्ट लगाएं, शुंठी का पानी पिएं, लहसुन शहद के साथ लें, लहसुन का पेस्ट लगाएं, गुडुची चूर्ण खाएं, गुडुची काढ़ा पिएं। 
  • चूर्ण- नवकार्षिक चूर्ण, निम्बादि चूर्ण, चोबचीनी चूर्ण, गेहूं का चूर्ण, बकरी के दूध में मिलाकर लगाएं, दशमूल साधित छीर खाली पेट लें, हरीतिकी गुड़ के साथ लें, अपामार्ग का पौधा, गौ मूत्र में मिला लेप बना कर लगाएं, वरुण और शिग्रु के पेस्ट का लेप लगाएं, गुडुची, वासा, एरंड तेल का काढ़ा पिएं, लहसुन, लौंग,सौंफ, शुंठी का काढ़ा पिएं।पंचकर्मा

    वस्ति, विरेचन, अभ्यंगम, स्वेदन, लेप


Friday 22 November 2019

छोटे-छोटे बीज में बड़े गुण, कोई हार्ट करे हेल्दी तो कोई शुगर करे कंट्रोल

चिया बीज कार्बोहाइड्रेट और फाइबर से समृद्ध होते हैं। ये शरीर के ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इससे पाचन भी बेहतर रहता है। चिया बीज प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के अच्छे स्रोत हैं। चिया बीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में मदद करते हैं

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आपने चिया सीड्स के बारे में काफी सुना होगा, लेकिन आप इसके गुणों के बार में नहीं जानते होंगे। बहुत से ऐसे लोग भी होंगे जिन्होंने चिया सीड्स के बारे में बिल्कुल भी नहीं सुना होगा। अगर आप चिया सीड्स के बारे में नहीं जानते हैं तो मे  आपको इसके बारे में और साथ ही इसके खाने से क्या लाभ मिलता है कई लोग चिया सीड्स  को ही तुलसी का बीज समझ लेते हैं। आपको बता दें कि तुलसी के बीज को सब्जा बीज या तुकमलंगा बीज कहते हैं, लेकिन चिया सीड्स अलग होते हैं।  इसके फायदे क्या है यह इस लेख मे बताने जा रहा हु 
चिया सीड या चिया बीज मिंट प्रजाति के बीज होते हैं और ये देखने में बेहद छोटे होते हैं। यह सफेद, भूरे और काले रंग में होते हैं। यह सैलवीय हिस्पानिका नाम के पेड़ पर उगते हैं और यह बीज मैक्सिको में पाए जाते हैं। यह भारत में नहीं पाए जाते हैं, लेकिन अब यह भारत में भी बहुत प्रचलित हो रहे हैं। इसके सेवन से जबरदस्त उर्जा मिलती है और प्रोटीन भी काफी अच्छी मात्रा में पाई जाती है। चिया  सीड्स मे निम्न तत्व होते है 
  • फाइबर (Fiber)
  • ओमगा (Omega)
  • प्रोटीन (Protein)
  • विटामिन (Vitamin)
  • कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
  • फैट (Fat)
  • मैंगनीज (Mangneze)
  • फॉस्फोरस (Phosphorus)
  • कैल्शियम (Calcium)
  • पोटेशियम (Potassium)
  • कॉपर (Copper)
  • जिंक (Zinc)
  • विटामिन A, B, E, D
  • आयरन (Iron)
  • थायमिन (Thaimine)
  • नियमिन सल्फर (Sulphur)
  • अमिनो एसिड (Amino Acid) 

वजन करें कम (Helps in Weight Loss)

Chia Seeds in hindi
आज हर कोई मोटापे से परेशान हैं। मोटापा सिर्फ खूबसूरती नहीं बिगाड़ता बल्कि हेल्थ पर भी बड़ा असर डालता है। अगर आप भी अपना वजन कम करने की सोच रहे हैं तो चिया सीड का इस्तेमाल कर सकते हैं। एक गिलास पानी में कच्चा चिया बीज मिलाएं और अच्छे से मिलाने के बाद बीज के पानी में फूलने से पहले पी लें। इसके सेवन से आपको जल्दी भूख नहीं लगेगी और आपको वजन कम करने में मदद मिलेगी।

कब्ज में दे आराम

Chia Seeds in hindi
चिया बीज में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है जो पेट साफ करने में मदद करती है। पानी में चिया बीज मिला कर पीने से पेट अच्छे से साफ होता है और आपको कब्ज से राहत मिलती है। रिसर्च में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि चिया बीज का सेवन करने वाले लोगों का पेट अच्छे से साफ होता है और कब्ज की परेशानी नहीं होती है।

डॉयबटीज करे कंट्रोल

Chia Seeds in hindi
मधुमेह या डॉयबटीज की बीमारी अगर एक बार शरीर में आ जाए तो फिर इसे खत्म नहीं कर सकते, लेकिन कम कर सकते हैं। इस बीमारी में भी चिया बीज के सेवन से जबरदस्त फायदा मिलता है। मधुमेह में रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर के स्तर को सही करने के लिए किया जाता है। चिया में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो शुगर के मरीजों के लिए अच्छा होता है।

कैंसर के इलाज में लाभदायक

चिया में अल्फा-लिनोलिक एसिड होता है जो स्तन कैंसर (Breast cancer) के रोकथाम में काम आता है। इसमें अल्फा लिपोइक एसिड भी होता है जो कि ओमेगा – फैटी एसिड ही है। यह इतना प्रभावशाली होता है कि शरीर को बिना कोई नुकसान पहुंचाए कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में कारगार है। चिया में कैंसर जैसी भयानक बीमारी को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं।

कोलेस्ट्रॉल करे कम

Chia Seeds in hindi
बीज में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। इससे कोरोनरी हृदय रोग को रोकने में मदद मिलती है। इसमें मोनोअनस्यूटेटेड वसा होती है जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है। इसमें फाइबार की अच्छी मात्रा होती है जो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल दोनों को कम करती है।

दिल रखे मजबूत

चिया बीज ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को कम करता है इसलिए वह दिल के लिए बहुत लाभकारी होता है। चिया बीज में लिनोलेइक एसिड होता है जो फैटी एसिड का एक प्रकार है। यह शरीर के वसा में घूलने वाले विटामिन A, D, E, K को घूलने में मदद करता है। ओमेगा-3 से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल सही रहता है जिससे दिल मजबूत बनता है। चिया बीज खाने से आप दिल की कई बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
Chia Seeds in hindi

हड्डियां बनाएं मजबूत

चिया बीज में कैल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। कैल्शियम ही नहीं इसमें मैंगनीज भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने का काम करता है। साथ ही फॉस्फोरस का गुण होने की वजह से इसके सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं।

त्वचा बनाए खूबसूरत

  • आपके शरीर की बीमारियों को दूर करने के साथ साथ चिया बीज आपकी त्वचा का भी ख्याल रखता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है और त्वचा के रुखेपन को कम करता है। सर्दियों में इसका इस्तेमाल बेहद लाभकारी होगा।
  • चेहरे पर चिया बीज का फेस मास्क रोजाना लगाने से चेहरे के मुंहासे ठीक होते हैं।
  • त्वचा के सूखे हिस्से पर जहां नमी ना रहती हो जैसे कोहनी घूटने पर चिया बीज के तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे वहां की रुखी त्वचा में नमी आ जाती है। यह चेहरे के लिए एंटी ऑक्सीडेंट के रुप में काम करता है।
  • बढ़ती उम्र को रोकना हो तो चिया बीज का सेवन करना अच्छा माना जाता है।
  • इतना ही नहीं अगर आपको मूड अच्छा ना हो तो चिया सीड का इस्तेमाल करना चाहिए। चिया को रनिंग फूड या सुपरफूड भी कहते हैं जो मूड को अच्छा रखने का काम करती है। इससे डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है।

चिया सीड बढ़ाए उर्जा

शारीरिक बीमारियों से लड़ने के अलावा चिया के सेवन से उर्जा मिलती है। विटामिन B, आयरन और मैग्निशियम होने से इसका सेवन करना अच्छा रहता है। जिम जाने या एक्सरसाइज करने से पहले चिया का इस्तेमाल करने से ताकत मिलती है जिससे एक्सरसाइज के वक्त आप कमजोरी महसूस नहीं करते हैं।

कैसे खाएं चिया बीज (How to consume Chia seeds in hindi)

सबसे पहले चिया के बीज को रात भर पानी में भिगोकर रख दें। पानी में लंबे समय तक भिगने के बाद यह एक जैल के रुप में आ जाते हैं जिसका आप कैसे भी सेवन कर सकते हैं। यह आपके पाचन के लिए अच्छा होता है।
अगर जैल के रुप में नहीं तो पाउडर के रुप में भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। चिया के बीज को पीसकर इसका पाउडर बना लें। पहले चिया के बीज को पीस लें। इसके बाद पाउडर बनाकर रख लें। आप खाने या पीने की किसी भी चीज में इसे ऊपर से डालकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। दही में मिलाकर भी खा सकते हैं।

चिया बीज के नुकसान (Disadvantages of eating chia seeds in hindi)

चिया सीड के इतने सारे फायदे हैं, लेकिन इसके नुकसान को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। आइये डालते हैं एक नजर चिया बीज के नुकसान पर
  • इसके अधिक सेवन से एलर्जी भी हो सकती है। एलर्जी के चलते शरीर पर निशान, सांस लेने में दिक्कत, खुजली, दस्त, उल्टी जैसी समस्या हो सकती है। हर किसी के शरीर को चिया बीज फायदा पहुंचाए जरुरी नहीं है।
  • चिया कैंसर को जरुर ठीक करता है, लेकिन अगर आपको प्रोस्टेट कैंसर हो तो चिया बीज का इस्तेमाल ना करें। इसका सेवन सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर के लिए सही माना जाता है।
  • चिया बीज में फाइबर होता है जो वैसे तो पेट के लिए अच्छा है, लेकिन कुछ लोगों के लिए ज्यादा फाइबर का सेवन ठीक नहीं हैं उन्हें पेट की समस्या हो सकती है। इसे कम मात्रा में ले और पानी अच्छी मात्रा में पीएं।
  • फाइबर के ज्यादा सेवन से कब्ज और दस्त की समस्या हो सकती है। इसलिए इसका इस्तेमाल कम मात्रा में ही करें।
  • ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर के लिए अच्छा होता है, लेकिन इसके सेवन से खून पतला होता है। अगर आप पहले से खून को पतला करने की किसी दवा का इस्तेमाल कर रहे हो तो चिया का सेवन ना करें। अगर किसी सर्जरी की वजह से बहुत ज्यादा खून निकल चुका हो तो चिया का सेवन ना करें।

अलसी के फायदे -जो खाए अलसी जवानी ज़िंदाबाद, और बुढ़ापा बाय बाय

अलसी – एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन

अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का आज भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल प्रभाव एवं व्रणरोपण, रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाला होता है। यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, काॅपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।
अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।
ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।  आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।
अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।
अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।
मीनोपोज़ (माहवारी सम्बंधित) की तकलीफों पर पॉज़ लगा देती है अलसी।
पुरुषरोग में सस्टेन्ड रिलीज़ वियाग्रा है अलसी। जो अलसी खाये वो गाये जवानी ज़िंदाबाद बुढ़ापा बाय बाय।
पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी।
बॉडी बिल्डिंग के लिये नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
जोड़ की तकलीफों का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया विकल्प है अलसी।
क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है अलसी।
1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

अलसी सेवन का तरीकाः---  

हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।
इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।
अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।
इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।
बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।
अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा। इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)

Thursday 27 December 2018

पेट के लिए बढ़िया औषधि है हरड़ ओर हरड़ के फायदे - विनय आयुर्वेदा

                                  पेट के लिए बढ़िया औषधि है हरड़ 
  
हरड़  दो प्रकार की होती  हैं− बड़ी हरड़ और छोटी हरड़। बड़ी हरड़ में सख्त गुठली होती है जबकि छोटी हरड़ में कोई गुठली नहीं होती। वास्तव में वे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही तोड़कर सुखा लिए जाते हैं उन्हें ही छोटी हरड़ की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार छोटी हरड़ का प्रयोग निरापद होता है क्योंकि आंतों पर इसका प्रभाव सौम्य होता है। 
बवासीर, सभी उदर रोगों, संग्रहणी आदि रोगों में हरड़ बहुत लाभकारी होती है। आंतों की नियमित सफाई के लिए नियमित रूप से हरड़ का प्रयोग लाभकारी है। लंबे समय से चली आ रही पेचिश तथा दस्त आदि से छुटकारा पाने के लिए हरड़ का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार के उदरस्थ कृमियों को नष्ट करने में भी हरड़ बहुत प्रभावकारी होती है।
अतिसार में हरड़ विशेष रूप से लाभकारी है। यह आंतों को संकुचित कर रक्तस्राव को कम करती हैं वास्तव में यही रक्तस्राव अतिसार के रोगी को कमजोर बना देता है। हरड़ एक अच्छी जीवाणुरोधी भी होती है। अपने जीवाणुनाशी गुण के कारण ही हरड़ के एनिमा से अल्सरेरिक कोलाइटिस जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
इन सभी रोगों के उपचार के लिए हरड़ के चूर्ण की तीन से चार ग्राम मात्रा का दिन में दो−तीन बार सेवन करना चाहिए। कब्ज के इलाज के लिए हरड़ को पीसकर पाउडर बनाकर या घी में सेकी हुई हरड़ की डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में शहद या सैंधे नमक में मिलाकर देना चाहिए। अतिसार होने पर हरड़ गर्म पानी में उबालकर प्रयोग की जाती है जबकि संग्रहणी में हरड़ चूर्ण को गर्म जल के साथ दिया जा सकता है।
हरड़ का चूर्ण, गोमूत्र तथा गुड़ मिलाकर रात भर रखने और सुबह यह मिश्रण रोगी को पीने के लिए दें इससे बवासीर तथा खूनी पेचिश आदि बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा इन रोगों के उपचार के लिए हरड़ का चूर्ण दही या मट्ठे के साथ भी दिया जा सकता है।
लीवर, स्पलीन बढ़ने तथा उदरस्थ कृमि आदि रोगों की इलाज के लिए लगभग दो सप्ताह तक लगभग तीन ग्राम हरड़ के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। हरड़ त्रिदोष नाशक है परन्तु फिर भी इसे विशेष रूप से वात शामक माना जाता है। अपने इसी वातशामक गुण के कारण हमारा संपूर्ण पाचन संस्थान इससे प्रभावित होता है। यह दुर्बल नाड़ियों को मजबूत बनाती है तथा कोषीय तथा अंर्तकोषीय किसी भी प्रकार के शोध निवारण में प्रमुख भूमिका निभाती है।
अगर आपको गैस या कब्ज की शिकायत है तो काली हरड़ को चूसें। खाना खाने के बाद अच्छी तरह धुली हुई काली हरड़ मुंह में रख लें। अगर इसे चूस कर सेवन करने में दिक्कत महसूस करें तो रात में एक गिलास में 250 ग्राम पानी में एक हरड़ डाल दें औरसुबह सूर्योदय से पहले उस पानी को पी लें। कब्ज या गैस से पूरी तरह मुक्ति के लिए चार से छह महीने तक हरड़ का सेवन करें।
 हरड़ हमारे लिए बहुत उपयोगी है परन्तु फिर भी कमजोर शरीर वाले व्यक्ति, अवसादग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्रियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

Sunday 3 December 2017

यौन समस्याओं में रामबाण ओषधी है- अश्वगंधा

अश्वगंधा शुक्र धातु और वीर्य को बढ़ा कर चिर यौवन देने वाली महान औषिधि है

अश्वगंधा बलवर्धक वीर्यवर्धक व् शुक्रल अर्थात शुक्र धातु को पुष्ट करने वाली जड़ी बूटी है। पुरुष रोगों में ये बहुत महत्वपूर्ण है। अश्वगंधा को असगंध या वाजीगंधा भी कहा जाता है। इसका सेवन काम शक्ति को बढ़ाता है और यौवन प्रदान करता है। इसकी जड़ों का इस्तेमाल कई प्रकार की शक्तिवर्धक दवाओं को बनाने में किया जाता है।
अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन मानी गयी है। इसके गुणों की चिर पुरातन समय से लेकर अब तक सभी विद्वानो ने भरपूर सराहना की है। इसे पुरातन काल से ही आयुर्वेदज्ञों ने वीर्यवर्धक, शरीर में ओज और कांति लाने वाले, परम पौष्टिक व् सर्वांग शक्ति देने वाली, क्षय रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने वाली एवं वृद्धावस्था को लम्बे समय तक दूर रखने वाली सर्वोत्तम वनौषधि माना है। यह वायु एवं कफ के विकारों को नाश करने वाली अर्थात खांसी, श्वांस, खुजली, व्रण, आमवात आदि नाशक है। इसे वीर्य व् पौरुष सामर्थ्य की वृद्धि करने, शरीर पर मांस चढाने, स्तनों में दूध की वृद्धि करने, बच्चों को मोटा व् चुस्त बनाने तथा गर्भधारण के निमित व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
दुनिया में लोगों को सेक्स संबंधी समस्या सबसे ज़्यादा होती है। माना जाता है कि सेक्स प्रॉब्लम में अश्वगंधा रामबाण दवा होती है। इसमें ऐसे-ऐसे गुण होते हैं जो शरीर को ऊर्जा और क्षमता प्रदान करती है जिससे व्यक्ति में यौन क्षमता का विकास होता है और उसकी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
अश्वगंधा का सेवन करने से प्रजनन में इजाफा होता है। इससे स्पर्म काउंट बढ़ता है और वीर्य भी अच्छी मात्रा में बनता है। अश्वगंधा, शरीर को जोश देता है जिससे पूरे शरीर में आलस्य नहीं रहता है और थकान भी नहीं आती है। अश्वगंधा में जवानी को बरकरार रखने की काफी शक्ति होती है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
अश्वगंधा को इस्तेमाल करने की विधि- इसको निरंतर अगर सेवन करना हो तो आधा टी स्पून ही इस्तेमाल करना चाहिए। और ये रात को दूध के साथ अत्यंत गुणकारी हो जाता है. अश्वगंधा का इस्तेमाल सदैव दूध के साथ ही करना चाहिए.