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Friday 22 November 2019

छोटे-छोटे बीज में बड़े गुण, कोई हार्ट करे हेल्दी तो कोई शुगर करे कंट्रोल

चिया बीज कार्बोहाइड्रेट और फाइबर से समृद्ध होते हैं। ये शरीर के ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इससे पाचन भी बेहतर रहता है। चिया बीज प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड के अच्छे स्रोत हैं। चिया बीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में मदद करते हैं

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आपने चिया सीड्स के बारे में काफी सुना होगा, लेकिन आप इसके गुणों के बार में नहीं जानते होंगे। बहुत से ऐसे लोग भी होंगे जिन्होंने चिया सीड्स के बारे में बिल्कुल भी नहीं सुना होगा। अगर आप चिया सीड्स के बारे में नहीं जानते हैं तो मे  आपको इसके बारे में और साथ ही इसके खाने से क्या लाभ मिलता है कई लोग चिया सीड्स  को ही तुलसी का बीज समझ लेते हैं। आपको बता दें कि तुलसी के बीज को सब्जा बीज या तुकमलंगा बीज कहते हैं, लेकिन चिया सीड्स अलग होते हैं।  इसके फायदे क्या है यह इस लेख मे बताने जा रहा हु 
चिया सीड या चिया बीज मिंट प्रजाति के बीज होते हैं और ये देखने में बेहद छोटे होते हैं। यह सफेद, भूरे और काले रंग में होते हैं। यह सैलवीय हिस्पानिका नाम के पेड़ पर उगते हैं और यह बीज मैक्सिको में पाए जाते हैं। यह भारत में नहीं पाए जाते हैं, लेकिन अब यह भारत में भी बहुत प्रचलित हो रहे हैं। इसके सेवन से जबरदस्त उर्जा मिलती है और प्रोटीन भी काफी अच्छी मात्रा में पाई जाती है। चिया  सीड्स मे निम्न तत्व होते है 
  • फाइबर (Fiber)
  • ओमगा (Omega)
  • प्रोटीन (Protein)
  • विटामिन (Vitamin)
  • कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
  • फैट (Fat)
  • मैंगनीज (Mangneze)
  • फॉस्फोरस (Phosphorus)
  • कैल्शियम (Calcium)
  • पोटेशियम (Potassium)
  • कॉपर (Copper)
  • जिंक (Zinc)
  • विटामिन A, B, E, D
  • आयरन (Iron)
  • थायमिन (Thaimine)
  • नियमिन सल्फर (Sulphur)
  • अमिनो एसिड (Amino Acid) 

वजन करें कम (Helps in Weight Loss)

Chia Seeds in hindi
आज हर कोई मोटापे से परेशान हैं। मोटापा सिर्फ खूबसूरती नहीं बिगाड़ता बल्कि हेल्थ पर भी बड़ा असर डालता है। अगर आप भी अपना वजन कम करने की सोच रहे हैं तो चिया सीड का इस्तेमाल कर सकते हैं। एक गिलास पानी में कच्चा चिया बीज मिलाएं और अच्छे से मिलाने के बाद बीज के पानी में फूलने से पहले पी लें। इसके सेवन से आपको जल्दी भूख नहीं लगेगी और आपको वजन कम करने में मदद मिलेगी।

कब्ज में दे आराम

Chia Seeds in hindi
चिया बीज में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है जो पेट साफ करने में मदद करती है। पानी में चिया बीज मिला कर पीने से पेट अच्छे से साफ होता है और आपको कब्ज से राहत मिलती है। रिसर्च में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि चिया बीज का सेवन करने वाले लोगों का पेट अच्छे से साफ होता है और कब्ज की परेशानी नहीं होती है।

डॉयबटीज करे कंट्रोल

Chia Seeds in hindi
मधुमेह या डॉयबटीज की बीमारी अगर एक बार शरीर में आ जाए तो फिर इसे खत्म नहीं कर सकते, लेकिन कम कर सकते हैं। इस बीमारी में भी चिया बीज के सेवन से जबरदस्त फायदा मिलता है। मधुमेह में रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर के स्तर को सही करने के लिए किया जाता है। चिया में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो शुगर के मरीजों के लिए अच्छा होता है।

कैंसर के इलाज में लाभदायक

चिया में अल्फा-लिनोलिक एसिड होता है जो स्तन कैंसर (Breast cancer) के रोकथाम में काम आता है। इसमें अल्फा लिपोइक एसिड भी होता है जो कि ओमेगा – फैटी एसिड ही है। यह इतना प्रभावशाली होता है कि शरीर को बिना कोई नुकसान पहुंचाए कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में कारगार है। चिया में कैंसर जैसी भयानक बीमारी को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं।

कोलेस्ट्रॉल करे कम

Chia Seeds in hindi
बीज में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। इससे कोरोनरी हृदय रोग को रोकने में मदद मिलती है। इसमें मोनोअनस्यूटेटेड वसा होती है जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है। इसमें फाइबार की अच्छी मात्रा होती है जो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल दोनों को कम करती है।

दिल रखे मजबूत

चिया बीज ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को कम करता है इसलिए वह दिल के लिए बहुत लाभकारी होता है। चिया बीज में लिनोलेइक एसिड होता है जो फैटी एसिड का एक प्रकार है। यह शरीर के वसा में घूलने वाले विटामिन A, D, E, K को घूलने में मदद करता है। ओमेगा-3 से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल सही रहता है जिससे दिल मजबूत बनता है। चिया बीज खाने से आप दिल की कई बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
Chia Seeds in hindi

हड्डियां बनाएं मजबूत

चिया बीज में कैल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। कैल्शियम ही नहीं इसमें मैंगनीज भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने का काम करता है। साथ ही फॉस्फोरस का गुण होने की वजह से इसके सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं।

त्वचा बनाए खूबसूरत

  • आपके शरीर की बीमारियों को दूर करने के साथ साथ चिया बीज आपकी त्वचा का भी ख्याल रखता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है और त्वचा के रुखेपन को कम करता है। सर्दियों में इसका इस्तेमाल बेहद लाभकारी होगा।
  • चेहरे पर चिया बीज का फेस मास्क रोजाना लगाने से चेहरे के मुंहासे ठीक होते हैं।
  • त्वचा के सूखे हिस्से पर जहां नमी ना रहती हो जैसे कोहनी घूटने पर चिया बीज के तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे वहां की रुखी त्वचा में नमी आ जाती है। यह चेहरे के लिए एंटी ऑक्सीडेंट के रुप में काम करता है।
  • बढ़ती उम्र को रोकना हो तो चिया बीज का सेवन करना अच्छा माना जाता है।
  • इतना ही नहीं अगर आपको मूड अच्छा ना हो तो चिया सीड का इस्तेमाल करना चाहिए। चिया को रनिंग फूड या सुपरफूड भी कहते हैं जो मूड को अच्छा रखने का काम करती है। इससे डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है।

चिया सीड बढ़ाए उर्जा

शारीरिक बीमारियों से लड़ने के अलावा चिया के सेवन से उर्जा मिलती है। विटामिन B, आयरन और मैग्निशियम होने से इसका सेवन करना अच्छा रहता है। जिम जाने या एक्सरसाइज करने से पहले चिया का इस्तेमाल करने से ताकत मिलती है जिससे एक्सरसाइज के वक्त आप कमजोरी महसूस नहीं करते हैं।

कैसे खाएं चिया बीज (How to consume Chia seeds in hindi)

सबसे पहले चिया के बीज को रात भर पानी में भिगोकर रख दें। पानी में लंबे समय तक भिगने के बाद यह एक जैल के रुप में आ जाते हैं जिसका आप कैसे भी सेवन कर सकते हैं। यह आपके पाचन के लिए अच्छा होता है।
अगर जैल के रुप में नहीं तो पाउडर के रुप में भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। चिया के बीज को पीसकर इसका पाउडर बना लें। पहले चिया के बीज को पीस लें। इसके बाद पाउडर बनाकर रख लें। आप खाने या पीने की किसी भी चीज में इसे ऊपर से डालकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। दही में मिलाकर भी खा सकते हैं।

चिया बीज के नुकसान (Disadvantages of eating chia seeds in hindi)

चिया सीड के इतने सारे फायदे हैं, लेकिन इसके नुकसान को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। आइये डालते हैं एक नजर चिया बीज के नुकसान पर
  • इसके अधिक सेवन से एलर्जी भी हो सकती है। एलर्जी के चलते शरीर पर निशान, सांस लेने में दिक्कत, खुजली, दस्त, उल्टी जैसी समस्या हो सकती है। हर किसी के शरीर को चिया बीज फायदा पहुंचाए जरुरी नहीं है।
  • चिया कैंसर को जरुर ठीक करता है, लेकिन अगर आपको प्रोस्टेट कैंसर हो तो चिया बीज का इस्तेमाल ना करें। इसका सेवन सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर के लिए सही माना जाता है।
  • चिया बीज में फाइबर होता है जो वैसे तो पेट के लिए अच्छा है, लेकिन कुछ लोगों के लिए ज्यादा फाइबर का सेवन ठीक नहीं हैं उन्हें पेट की समस्या हो सकती है। इसे कम मात्रा में ले और पानी अच्छी मात्रा में पीएं।
  • फाइबर के ज्यादा सेवन से कब्ज और दस्त की समस्या हो सकती है। इसलिए इसका इस्तेमाल कम मात्रा में ही करें।
  • ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर के लिए अच्छा होता है, लेकिन इसके सेवन से खून पतला होता है। अगर आप पहले से खून को पतला करने की किसी दवा का इस्तेमाल कर रहे हो तो चिया का सेवन ना करें। अगर किसी सर्जरी की वजह से बहुत ज्यादा खून निकल चुका हो तो चिया का सेवन ना करें।

अलसी के फायदे -जो खाए अलसी जवानी ज़िंदाबाद, और बुढ़ापा बाय बाय

अलसी – एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन

अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का आज भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल प्रभाव एवं व्रणरोपण, रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाला होता है। यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, काॅपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।
अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।
ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।  आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।
अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।
अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।
मीनोपोज़ (माहवारी सम्बंधित) की तकलीफों पर पॉज़ लगा देती है अलसी।
पुरुषरोग में सस्टेन्ड रिलीज़ वियाग्रा है अलसी। जो अलसी खाये वो गाये जवानी ज़िंदाबाद बुढ़ापा बाय बाय।
पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी।
बॉडी बिल्डिंग के लिये नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
जोड़ की तकलीफों का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया विकल्प है अलसी।
क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है अलसी।
1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

अलसी सेवन का तरीकाः---  

हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।
इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।
अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।
इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।
बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।
अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा। इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)

Friday 14 December 2018

रसायन चिकित्सा - आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है


रसायन चिकित्सा - रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है। रसायन का सीधा सम्बन्ध धातु के पोषण से है। यह केवल औषध-व्यवस्था न होकर औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातुपोषण के माध्यम से दीर्घ आयुष्य, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं उत्तम बुद्धिशक्ति को उत्पन्न करना है। स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन करता है परंतु सूक्ष्म रूप से इसका सम्बन्ध मनःस्वास्थ्य से अधिक है। विशेषतः मेध्य रसायन इसके लिए ज्यादा उपयुक्त है। बुद्धिवर्धक प्रभावों के अतिरिक्त इसके निद्राकारी, मनोशांतिदायी एवं चिंताहारी प्रभाव भी होते हैं। अतः इसका उपयोग विशेषकर मानसिक विकारजन्य शारीरिक व्याधियों में किया जा सकता है।
रसायन सेवन में वय, प्रकृति, सात्म्य, जठराग्नि तथा धातुओं का विचार आवश्यक है। भिन्न-भिन्न वय तथा प्रकृति के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण तदनुसार किये गये प्रयोगों से ही वांछित फल की प्राप्ति होती है।
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1 से 2 चुटकी वचाचूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बाल्यावस्था में स्वभावतः बढ़ने वाले कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि कुशाग्र होती है।
11 से 20 साल तक के किशोंरों एवं युवाओं को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातुएँ पुष्ट होती हैं एवं शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
21 से 30 साल तक के लोगों को 1 चावल के दाने के बराबर शतपुटी लौह भस्म गोघृत में मिलाकर देने से रक्तधातु की वृद्धि होती है। इसके साथ सोने से पहले 1 चम्मच आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है।
31 से 40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का 10 से 15 मि.ली. रस अथवा उसका 1 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर देने से तनावजन्य मानसिक विकारों में राहत मिलती है व नींद अच्छी जाती है। उच्च रक्तचाप कम करने एवं हृदय को शक्ति प्रदान करने में भी वह प्रयोग बहुत हितकर है।
41 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को 1 ग्राम ज्योतिष्मिती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर देने तथा ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग करने से इस उम्र में स्वभावतः बढ़ने वाले वातदोष का शमन होता है एवं संधिवात, पक्षाघात (लकवा) आदि वातजन्य विकारों से रक्षा होती है।
51 से 60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति स्वभावतः घटने लगती है जो 1 ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गौघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से बढ़ती है। सोने से पूर्व 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ लेना भी हितकर है। गिलोय, गोक्षुर एवं आँवले से बना रसायन चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक सेवन करना अति उत्तम है।
मेध्य रसायनः शंखपुष्पी, जटामासी और ब्राह्मीचूर्ण समभाग मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से ग्रहणशक्ति व स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क को बल मिलता है, नींद अच्छी आती है एवं मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
आचार रसायनः केवल सदाचार के पालन से भी शरीर व मन पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं।