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Thursday 7 September 2017

मिर्गी (अपस्मार ) की विशेष जानकारी ओर सलाह

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मिर्गी (अपस्मार )  अंग्रेजीEpilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है। १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिरगी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैमानव मस्तिष्क कई खरब तंत्रिका कोशिकाओं से निर्मित होता है। इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता कार्य-कलापों को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क के समस्त कोषों में एक विद्युतीय प्रवाह होता है जो नाड़ियों द्वारा प्रवाहित होता है। ये सारे कोष विद्युतीय नाड़ियों के माध्यम से आपस में संपर्क बनाये रखते हैं, लेकिन कभी मस्तिष्क में असामान्य रूप से विद्युत का संचार होने से व्यक्ति को एक विशेष प्रकार के झटके लगते हैं और वह मूर्छित हो जाता है। ये मूर्छा कुछ सेकिंड से लेकर ४-५ मिनट तक चल सकती है। मिर्गी रोग दो प्रकार का हो सकता है आंशिक तथा पूर्ण। आंशिक मिर्गी में मस्तिष्क का एक भाग अधिक प्रभावित होता है। पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क के दोनों भाग प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार अनेक रोगियों में इसके लक्षण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रायः रोगी व्यक्ति कुछ समय के लिए चेतना खो देता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार सूअर की आंतों में मिलने वाले फीताकृमि के संक्रमण से भी मिर्गी की संभावना रहती है। इस कृमि का सिस्ट यदि किसी प्रकार मस्तिष्क में पहुँच जाए तो उसके क्रियाकलापों को प्रभावित कर सकता है, जिससे मिर्गी की आशंका बढ़ जाती है।दौरों की अवधि कुछ सेकेंड से लेकर दो-तीन मिनट तक होती है। और यदि यह दौरे लंबी अवधि तक के हों तो चिकित्सक से तत्काल परामर्श लेना चाहिये। कई मामलों में मिरगी की स्थिति पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अलग होती है। दोनों की स्थिति में अंतर का प्रमुख कारण महिलाओं और पुरुषों में शारीरिक और सामाजिक अंतर का होना होता है। जब रोगी को दौरे आ रहे हों, या बेहोश पडा हो, झटके आ रहे हों तो उसे साफ, नरम जगह पर करवट से लिटाकर सिर के नीचे तकिया लगाकर कपडे ढीले करके उसके मुंह में जमा लार या थूक को साफ रुमाल से पोंछ देना चाहिये। दौरे का काल और अंतराल समय ध्यान रखना चाहिये। ये दौरे दिखने में भले ही भयानक होते हों, पर असल में खतरनाक नहीं होते। दौरे के समय इसके अलावा कुछ और नहीं करना होता है, व दौरा अपने आप कुछ मिनटों में समाप्त हो जाता है। उसमें जितना समय लगना है, वह लगेगा ही। ये ध्यान-योग्य है कि रोगी को जूते या प्याज नहीं सुंघाना चाहिये। ये गन्दे अंधविश्वास हैं व बदबू व कीटाणु फैलाते हैं। इस समय हाथ पांव नहीं दबाने चाहिये न ही हथेली व पंजे की मालिश करें क्योंकि दबाने से दौरा नहीं रुकता बल्कि चोट व रगड़ लगने का डर रहता है। रोगी के मुंह में कुछ नहीं फंसाना चाहिये। यदि दांतों के बीच जीभ फंसी हो तो उसे अंगुली से अंदर कर दें अन्यथा दांतों के बीच कटने का डर रहता है।
मिरगी के रोगी सामान्य खाना खा सकते हैं अतएव उन्हें भोजन का परहेज नहीं रखना चाहिये। इस अवस्था में व्रत, उपवास, रोजे आदि रखने से कुछ रोगियों में दौरे बड़ सकते हैं अतः इनसे बचना चाहिये। यदि अन्न न लेना हो तो दूध या फलाहार द्वारा पेट आवश्यक रूप से भरा रखना चाहिये।
वस्तुत: अपस्मार या मिर्गी तंत्रिकातंत्रीय विकार (neurological disorder) के कारण होता है। ये बीमारी मस्तिष्क के विकार के कारण होती है। यानि मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर अकड़ जाता है जिसको अंग्रेजी में सीज़र डिसॉर्डर ( seizure disorder) भी कहते हैं।वैसे तो इस बीमारी का पता 3000 साल पहले लग चुका था लेकिन इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं हैं उसके कारण इसका सही तरह से इलाज की बात करने की बात लोग सोचते बहुत कम हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी को भूत-प्रेत का साया समझते हैं और उसका सही तरह से इलाज करवाने के जगह पर झाड़-फूंक करवाने ले जाते हैं। यहां कि तक लोग मिर्गी के मरीज़ को पागल ही समझ लेते हैं। जिन महिलाओं को मिर्गी का रोग होता है उनकी शादी होनी मुश्किल होती है क्योंकि लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज़ को बच्चा नहीं हो सकता है या बच्चे भी माँ के कारण इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। मिर्गी का मरीज़ पागल नहीं होता है वह आम लोगों के तरह ही होता है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया भी सामान्य होती है। मिर्गी का मरीज़ शादी करने के योग्य होता/होती है और वे बच्चे को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखते हैं सिर्फ उनको डॉक्टर के तत्वाधान में रहना पड़ता है।
कारण--- मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है तब मस्तिष्क के काम में प्रॉबल्म आना शुरू हो जाता है। इसके कारण मिर्गी के मरीज़ को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाता है आदि। वैसे तो इसके रोग के होने के सही कारण के बारे में बताना कुछ मुश्किल है। कुछ कारणों के मस्तिष्क पर पड़ सकता है असर, जैसे-
• सिर पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण।
• जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
• ब्रेन ट्यूमर।
• दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
• ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुँचती है।
• न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।
• जेनेटिक कंडिशन।
• कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
• ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।
डॉ. अर्जुन श्रीवास्तव, न्यूरोसर्जन और स्पाइन ट्रस्ट इंडिया के ट्रस्टी के अनुसार बच्चों में लगभग तीस प्रतिशत मामलों में पांच वर्षों से पहले इस बीमारी के होने की संभावना नजर आती है।
लक्षण---वैसे तो मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्षण नजर आते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज़ के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं, वे हैं-
• अचानक हाथ,पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
• सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
• मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
• पेट में गड़बड़ी।
• जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
• मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।
विज्ञान के अनुसार मिर्गी रोग का निर्धारण मरीज़ के मेडिकल हिस्ट्री को देखकर ही पता लगाया जा सकता है। मरीज़ के घर के लोग या दोस्त परिजन मरीज़ के दौरे के समय ही हालत और शारीरिक प्रक्रिया में बदलाव के बारे में सही तरह से बयान कर सकते हैं। डॉक्टर मरीज़ के पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को चेक करने के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल साइन को भी एक्जामीन करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इस रोग का पता ई.ई.जी (electroencephalogram (EEG), सी.टी.स्कैन या एम.आर.आई (CT scan or MRI) और पेट (positron emission tomography (PET) scan) के द्वारा लगाते हैं।
उपचार-----मिर्गी के रोग का एक ही उपचार हो सकता है, वह है दौरे के समय सीज़र को कंट्रोल में करना। इसके लिए एन्टी एपिलेप्टिक ड्रग (anti-epileptic drug (AED) थेरपी और सर्जरी होती है। र जिन लोगों पर ये ड्रग काम नहीं करता है उन्हें सर्जरी करने की सलाह दी जाती है।
खानपान- रिसर्च के अनुसार मिर्गी के रोगी को ज्यादा फैट वाला और कम कार्बोहाइड्रेड वाला डायट लेना चाहिए। इससे सीज़र पड़ने के अंतराल में कमी आती है।
रोकथाम---मिर्गी रोग होने का कारण सही तरह से पता नहीं होने के वजह से रोकथाम का भी पता सही तरह से चल नहीं पाया है। प्रेगनेंसी के दौरान सही तरह से देखभाल करने पर शिशुओं में होने की संभावना को कम किया जा सकता है। जेनेटिक स्क्रीनिंग होने से माँ को बच्चे में इसके होने का पता चल जाता है। सिर में चोट लगने की संभावना को कम करने से कुछ हद तक इस रोग के होने की खतरे को कम किया जा सकता है।
मिर्गी का दौरा बार-बार पड़ने की संभावना को कम करने के लिए-
• डॉक्टर द्वारा दिए गए दवा का सही तरह सेवन करनाः
• पर्याप्त नींद और एक ही समय में सोने की आदत का पालन करना।
• तनाव से दूर रहें।
• संतुलित आहार।
• नियमित रूप से चेक-अप करवाते रहें।
मिर्गी का प्राथमिक उपचार  -
प्राकृतिक उपचार की दृष्टि से देखा जाए तो मिर्गी का दौरा तब पड़ता है जब शरीर में खान पान की वजह से विषैला पदार्थ इक्कठा हो जाता है. अगर आपके सामने किसी व्यक्ति को दौरा पड़ जाए तो सबसे पहले उसके आसपास की हवा को ना रुकने दें, फिर उसे दाई या फिर बायीं करवट में लिटा दें, इसके बाद उसके मुहँ पर पानी के छीटें मारते रहें, किसी तरह उसका मुहँ खोलें और उसके दांतों के नीचे कोई कपड़ा या कुछ रख दें, इससे रोगी की जीभ काटने से बचती है. ध्यान रहें कि ना तो उसे कुछ खिलाने का प्रयास करें और ना ही कुछ पिलाने का.
मिर्गी के रोगी के लिए उपचार ( Home Treatment for Epilepsy Attack ) :
·     तुलसी और सीताफल ( Basil and Pumpkin ) : मिर्गी का दौरा आने पर रोगी की नाक में तुलसी के रस और सेंधा नमक के मिश्रण को टपकायें. अगर आसपास तुलसी का पौधा ना हो तो उसकी नाक में सीताफल के पत्तों का रस डालें.
·     करौंदे ( Gooseberry ) : मिर्गी से पीड़ित रोगियों को समय समय पर करौंदे के पत्तों से बनी चटनी का सेवन करना चाहियें. अगर वे रोग इसे खा सके तो ये उनके लिए अधिक बेहतर रहेगा.
·     सफ़ेद प्याज ( White Onion ) : साथ ही रोगियों को रोजाना 1 चम्मच सफ़ेद प्याज का रस पानी के साथ पीना चाहियेंइससे उनको दौरे आने बंद हो जाते है.
·     शहतूत ( Mulberry ) : रोगी को होश में आने के बाद शहतूत और सेब का रस निकालकर उसमें थोड़ी हिंग मिलाकर खिलानी चाहियें ताकि दौरे का प्रभाव शीघ्र खत्म हो सके और वो जल्द ही सामान्य हो जाए.
·     सुंघायें ( Smell These ) : रोगी को पानी में पीसी हुई राईकपूरतुलसी रसलहसुन रसआक की जड़ की छाल का रसनीम्बू रस व हिंग में से किसी भी चीज को सुंघाया जा सकता है.
 व्यायाम : नित्य प्रतिदिन घुमने और व्यायाम करने से आपके मन को शान्ति मिलेगी और आपका शरीर भी स्वस्थ व रोगमुक्त रहेगा. आसनों में शीर्षासन और सर्वांगासन आपके लिए सर्वोताम है किन्तु ध्यान रहे कि आसन खाली पेट करने है. हल्के व्यायाम के बाद आपको बाथटब में नहाना चाहियें. नहाने के बाद ढीले और आरामदेह कपड़ों पहने ताकि शरीर में हवा आती जाती रहे और आपको घुटन महसूस ना हो
 दिनचर्या : कहीं भी अकेले ना जाएँ,सीढ़ी भी ना चढ़ें और चढ़ें तो किसी को साथ लेकर चढ़ें,आग और पानी से दूर रहेंसाइकिल या गाडी ना चलायें,गुस्सा या झगडा ना करेंअधिक ऊँचे स्थान पर ना जाएँअगर मल या मूत्र त्याग के लिए जाना है तो तुरंत चले जाएँ इन्हें रोकने की कोशिश ना करेंकरवट लेकर सोयेंसोते वक़्त ध्यान रखें कि आपका सिर उत्तर दिशा में हो.