Sunday 25 August 2019

एक्जिमा के लक्षण, कारण, इलाज और प्राकृतिक उपचार

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आज हम यहाँ एक्जिमा के विषय में हम यहां पर चर्चा करेंगे। एक्जिमा रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में बहुत ही अच्छे तरीके से बताया गया है। हम ध्यान पूर्वक इसका अध्ययन कर चिकित्सक की देखरेख में रहकर अपने जीवन में प्रयोग करें तो अवश्य सफलता मिल सकती है। अब हम एक्जिमा रोग का कारण, लक्षण एवं उसके प्राकृतिक उपचार के विषय में  पुराने रोगों की गृह चिकित्सा में वर्णित एक्जिमा पर विचार करें।सामान्यतः चर्मरोग के अन्तर्गत एक्जिमा को बहुत खराब रोग माना जाता है आयुर्वेद में तो इसे कुष्ठ रोग के अन्तर्गत रखा गया है। इसलिए इसके विषय में जानना अत्यन्त आवश्यक है। जितने चर्मरोग होते हैं, उनके प्रायः आधे ही इस जाति के हैं।यह विभिन्न शरीर में विभिन्न रूप से प्रकट होता है। फिर भी इसके दो भाग किये जा सकते हैं –

एक्जिमा के प्रकार (Eczema Types)

  • रसस्रावी एक्जिमा (Weeping Eczema)
  • सूखा एक्जिमा (Dry Eczema)
पहले त्वचा के ऊपर एक स्थान लाल हो जाता है और उसमें सूजन आ जाता है तथा उसके बाद छोटे-छोटे लाल फुन्सियां दिखाई देती हैं।बाद में फुन्सियाँ फैलकर एकत्र हो जाते हैं तथा उनसे प्रचुर दूषित क्लेद निकलने लगता है।इसके साथ प्रायः ही खाज रहती है तथा कभी-कभी रोगी दर्द भी अनुभव करता है।ऐसी अवस्था साधारणतः कई सप्ताह रहती है। इसके बाद रोग छूट गया-सा मालूम पड़ता है।किन्तु प्रायः ही यह लौट आता है तथा अन्त में आक्रान्त अंश की चमड़ी मोटी हो जाती है और कभी तो वह अंक फूल जाता है।जब एक्जिमा से रस नहीं निकलता तब उसे सूखा एक्जिमा कहते हैं।इसमें भी प्रबल खाज रहती है तथा आक्रान्त स्थान से पतला-पतला मरा हुआ चमड़ा निकल आता है।जब विभिन्न कारणों से रक्त दूषित होता है तथा उसके फलस्वरूप त्वचा की रोग-प्रतिरोध क्षमता घट जाती है, तभी केवल यह रोग होता है।इसलिये गठिया, वातरोग, पायरिया, मूत्रायंत्र के रोग, खून का अत्यधिक अम्लत्व एवं अजीर्ण और कोष्ठ बद्धता आदि के द्वारा जिनका रक्त दूषित हो उठता है, वे ही साधारणतः इस एक्जिमा (Eczema) रोग से आक्रान्त होते हैं।अधिकांश अवस्था में रक्त का यह विष कोष्ठबद्धता से आता है।कोष्ठवद्धता के कारण रक्त के भीतर जो विष ग्रहीत होता है वही शरीर की रोग-प्रतिरोध क्षमता घटकर विभिन्न चर्मरोग उत्पन्न कर देता है।इसके अतिरिक्त त्रुटिपूर्ण खाद्य अस्वास्थ्यकर जीवन यापन तथा औषधि द्वारा विभिन्न रोग दबा देने के फलस्वरूप बहुत अवस्था में इस रोग के लिए उपयुक्त जमीन गठित होती है।अत्यन्त कठिन श्रेणी का एक्जिमा होने पर तीन महीने चिकित्सा ग्रहण करना कर्तव्य है।
इस समय एकदम खट्टा और नमक-वर्जित खाद्य खाना आवश्यक है। दीर्घ दिन उपवास लेने से भी रोग अपेक्षाकृत सहज ही आरोग्य प्राप्त करता है। सब प्रकार से चर्मरोगियों को ही कोस्ठसुद्धि की सफाई के सम्बन्ध में विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है।कारण, रोगी की जो गति त्वचा की ओर रहती है, वह आँत की ओर लौटा लाना, अर्थात् आँत की राह पर विष बाहर निकाल देना ही इस रोग की प्रधान चिकित्सा है। इसलिये पथ्य की ओर सदा ही ध्यान देना उचित है।उपयुक्त खाद्य ग्रहण से और खुली हवा में व्यायाम ग्रहण के द्वारा स्वास्थ्य की उन्नति कर सकें तो रोग आरोग्य के पथ पर बहुत दूर अग्रसर हो जाता है।इसके साथ साधारण स्वास्थ्य-नीति भी यथासाध्य मानकर चलना चाहिये कारण बहुत अवस्था में औषधि से जो लाभ नहीं होता,उससे कहीं अधिक लाभ होता है पथ्य की देखभाल और साधारण स्वास्थ्य नीति के अनुसरण से।

इस एक्जिमा (Eczema) रोग में पथ्य आहार विशेष रूप से पुष्टिकर, सहजपाच्य, अनुत्तेजक तथा क्षारधर्मी होना आवश्यक है।

इसलिये रोगों का प्रधान पथ्य ही होना उचित है ताजे और सूखे फल, सलाद, दही और मट्ठा।दही भी स्वस्थ गाय से संग्रहीत कच्चे दूध द्वारा जमाना उचित है। रोग की प्रबल अवस्था में और सब खाद्य छोड़कर केवल से सब पथ्य ही ग्रहण करना उचित है।इन सब खाद्यों के द्वारा ही सन्तुलित खाद्य शरीर में ग्रहीत हो सकता है।