Showing posts with label किडनी. Show all posts
Showing posts with label किडनी. Show all posts

Wednesday 28 November 2018

गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा

आयुर्वेद का एक ऐसा चमत्कार जिसे देखकर एलॉपथी डॉक्टर्स भी अचरज करने लगे  जो डॉक्टर्स कहते थे के गाल ब्लैडर स्टोन अर्थात पित्त की थैली की पथरी निकल ही नहीं सकता, उनके लिए भी यह एक रिसर्च का विषय बन चुका है    सिर्फ एक नहीं अनेक मरीजों पर सफलता से आजमाया हुआ ये प्रयोग. जबकि इस प्रयोग की वास्तविक कीमत सिर्फ 30-40 रुपैये ही है. यह प्रयोग गाल ब्लैडर और किडनी  दोनों प्रकार के स्टोन को निकालने में बेहद कारगर है.

गाल ब्लैडर स्टोन की चमत्कारी दवा


अब आपको बताता हु यह   चमत्कारी दवा. ये कुछ और नहीं ये है गुडहल के फूलों का पाउडर अर्थात इंग्लिश में कहें तो Hibiscus powder. ये पाउडर बहुत आसानी से पंसारी से मिल जाता है. अगर आप गूगल पर Hibiscus powder नाम से सर्च करेंगे तो आपको अनेक जगह ये पाउडर online मिल जायेगा. और जब आप online इसको मंगवाए तो इसको देखिएगा organic hibiscus powder. आज कल बहुत सारी कंपनिया आर्गेनिक भी ला रहीं हैं तो वो बेस्ट रहेगा. मगर ध्यान रहे के ये पाउडर External use और internal Use के लिए अलग अलग आता है तो आपको सिर्फ Internal Use वाला ही लेना है. अगर ऐसा सही से ना लिखा हुआ हो तो आप गुडहल के फूलो कि पंखुड़ियों को धुप में सुखा लीजिये और इसका पाउडर कर लीजिये. कुल मिला कर बात ये है के इसकी उपलबध्ता बिलकुल आसान है. अब जानिये इस पाउडर को इस्तेमाल कैसे करना है.

गाल ब्लैडर स्टोन निकालने के लिए गुडहल के पाउडर के इस्तेमाल की विधि.

गुडहल का पाउडर एक चम्मच रात को सोते समय खाना खाने के कम से कम एक डेढ़ घंटा बाद गर्म पानी के साथ फांक लीजिये. ये थोडा कड़वा होता है  मगर ये इतना भी कड़वा नहीं होता के आप इसको खा ना सकें. इसको खाना बिलकुल आसान है. इसके बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है. स्टोन का साइज़ बहुत बड़ा होगा तो  उनको पहले दो दिन रात को ये पाउडर लेने के बाद सीने में अचानक बहुत तेज़ दर्द हो सकता है . मगर यह दर्द होता है  स्टोन के टूटने का.  अर्थात अगर स्टोन का साइज़ बड़ा है तो वो दर्द कर सकता है.

इस प्रयोग में बरती जाने वाली महत्वपूर्ण सावधानी.

पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन न करें। और अगर आपका स्टोन बड़ा है तो ये टूटने समय दर्द भी कर सकता है. और ये प्रयोग करने से पहले अगर आपका स्टोन आपकी cbd नलिका के साइज़ से बड़ा हो तो कृपया सिर्फ डॉक्टर की देख रेख में ही ये प्रयोग करें. और स्टोन को तोड़ने के लिए पाठकों से अनुरोध हैं के वो पहले 5 दिन हर रोज़ 5 गिलास सेब के जूस पियें. हर तीन घंटे के बाद एक गिलास सेब का जूस पीते रहें. और बाकी अपना खाना कम कर दीजिये. इस से 5 दिन में आपका स्टोन टुकड़े टुकड़े हो जायेगा. फिर दोबारा टेस्ट करवाएं. अगर स्टोन का साइज़ बड़ा रह जाए तो यह निकलने में cbd नलिका में फंस भी सकता है जो के अत्यंत खतरनाक हो सकता है. इसलिए जिन लोगों के स्टोन का साइज़ बड़ा हो वो केवल डॉक्टर की देख रेख में और अपने विवेक से इस प्रयोग को करें.

Wednesday 25 October 2017

अश्वगंधा से किडनी Failure और Dialysis से किसी को भी बचा सकता है

किडनी फेल  होना  Chronic kidney Diseases अंतिम चरण होता है, मुख्यता किडनी फ़ैल होने का कारण मधुमेह और उच्च रक्तचाप  को माना गया है. इसके इलावा कई प्रकार के Genetic Disorder और किडनी से रिलेटेड बीमारिया जैसे urinary Tract Disorder, Nephrotic syndrome आदि भी आगे जाकर किडनी फेल होने  का मुख्य कारण बनती है. इसके अतिरिक्त हर्दयघात और रक्तवाहिनियो में अचानक आई सिकुडन भी किडनी फ़ैल होने का कारण बन सकती है 
आज हम विद्रोही आवाज स्वास्थ्य ब्लॉग  में आपको इस प्रकार की प्राकर्तिक ओषधि के बारे में बताने जा रहे है जो न केवल किडनी की बीमारिया होने से रोकती है,बल्कि Chronic Kidney Diseases(CKD) को भी ठीक कर सकती है.
Ayurved में अश्वगंधा (Withania Somnifera) या जिसको Indian Ginseng भी कहते है,अश्वगंधा में पाए जाने वाले रसायन Withaferin A और Withanolide D इतने अदभुद  है कि ये अश्वगंधा  को kidney की बीमारियों रोकने और किडनी को बचाने के लिए एक बहुत ही अच्छे विकल्प  के तोर पर खड़ा करते है.
Diabetes ना केवल किडनी को नुकसान पहुचाती है बल्कि किडनी के फ़िल्टर सिस्टम को भी खराब कर देता है .जिससे Albumin जैसे protien भी पेशाब  में आना शुरू हो जाते है अगर Diabetes का पहले ही पता लग जाये तो किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है अगर अश्वगंधा का लगातार सेवन किया जाता है तो ये blood glucose लेवल को कम करता है इसके साथ साथ insulin senstivity को भी बढाता है जिससे रक्त में ग्लूकोस की मात्रा सामान्य हो जाती है .
जब blood pressure बढ़ जाता है तो किडनी की रक्तवाहिनिया धीरे धीरे नष्ट होना शुरू हो जाती है .जिससे किडनी का फिल्टर system गड़बड़ा जाता है जिससे किडनी अतिरिक्त फ्लूइड फ़िल्टर नहीं कर पाती जिससे  BP और बढ़ता जाता है शोध में पता लगा है की अश्वगंधा की जड़ का पाउडर दूध के साथ लेने से बढ़ा हुआ BP कम हो जाता है .
अश्वगंधा के सेवन से पेशाब खुलकर लगता है ,जिससे किडनी की फिल्ट्रेशन की प्रकिया सही रहती है और हानिकारक पदार्थ भी शरीर से यूरिन के द्वारा बाहर निकल जाते है जिससे edema (शरीर में पानी भर जाना ) की समस्या भी नहीं रहती है .अश्वगंधा blood में bad cholesterol की मात्रा को कम करता है . जिससे BP सामान्य रहता है और रक्त का सर्कुलेशन बिना रुकावट के होने से किडनी की फिल्ट्रेशन रेट बढ़ जाती है .
दवाओ की अधिक मात्रा लेने से, वातावरण में ज्यादा टोक्सिन होने से ये हमारे शरीर में जाकर किडनी पर अतिरिक्त दबाव डालते है जिससे Nephrotoxicity होने के चांसेस बढ़ जाते है. जिससे किडनी को नुकसान होता है और हमारे शरीर का इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस गड़बड़ा जाता है अश्वगंधा इस प्रकार के toxins को ख़तम करता है
अश्वगंधा एक Antioxidant के तरह काम करता है Antibiotic की ज्यादा मात्रा का सेवन करने से उनके साइड इफ़ेक्ट के रूप में toxic फ्री रेडिकल बनते है जो किडनी को बहुत नुकसान पहुचाते है ये फ्री रेडिकल्स किडनी की बीमारियों और किडनी डैमेज होने का मूल कारण है इससे कैंसर भी हो सकता है . अश्वगंधा में पाए जाने वाले रसायन इन फ्री रेडिकल्स को बनने से रोकते है और इन फ्री रेडिकल्स को नष्ट भी करते है .अश्वगंधा में पाए जाने वाली ये Antioxidant प्रॉपर्टीज किडनी की कोशिकाओ को नष्ट होने से बचाती है.एक शोध के मुताबिक अश्वगंधा किडनी की क्रियात्मक इकाई नेफ्रॉन को डैमेज होने से बचाता है. एवं डैमेज नेफ्रॉन को ठीक भी कर सकता है.
अश्वगंधा में पाया जाने वाला रसायन Withaferin A बहुत से कैंसर को रोक सकता है.ये Apoptosis (कैंसर कोशिका को नष्ट करना)प्रकिया द्वारा कैंसर की कोशिकाओ को नष्ट करता है .अश्वगंधा में पाए जाने वाले प्राकर्तिक स्टेरॉयड कैंसर के दर्द और हर प्रकार की सुजन को कम करते है . किडनी की कुछ बीमारिया  जैसे Nephritis और Glomerulonephritis भी एक प्रकार की सुजन ही है. अश्वगंधा इन बीमारियों को होने से रोक सकता है जो आगे जाकर किडनी फ़ैल होने का कारण बन सकती है .

Monday 2 October 2017

पुनर्नवा किडनी को पुनर्जीवन देने के लिए अकेला ही काफी


पुनर्नवा का  बोटैनिकल नाम BOERHAHAVIA DIFFUSSA है . अंग्रेज़ी में इसे HOG WEED भी कहते है  यह NYCTAGINACEAE FAMILY से आता है .पुनर्नवा के पुरे पोधे में ही औषधीय गुण होते है . विशेषकर इसके जड़ो ओर पतियों मेंऔषधीय गुण काफी मात्र में गुण पाए जाते है. खेतों में पैदा होने वाले या अक्सर ही किसी भूमि पर अपने आप उग जाने वाले इस खरपतवार के गुण देख कर आप वाकई हैरान हो जायेंगे. हम आज आपको एक ऐसा ही इसका प्रयोग बताने जा रहें हैं जिसको करने से किडनी के समस्त रोग सही हो सकता है, यहाँ तक के जिन रोगियों का डायलिसिस चल रहा है, वो भी अपने रोग से मुक्ति पा सकते हैं. अगर यूँ कहें के ये किडनी के समस्त रोगों के लिए रामबाण हैं तो ये गलत नहीं होगा.

पुनर्नवा की पहचान और अन्य भाषाओँ में नाम.

वानस्पतिक नाम – Boerhavia Diffusa Linn
संस्कृत – पुनर्नवा, शोथघ्नी, विशाख, श्वेतमूला, दिर्घपत्रिका, कठिल्ल्क,, शशिवाटिका, चिराटका
हिंदी – लाल पुनर्नवा, सांठ, गदहपूरना,
उर्दू – बाषखीरा
कन्नड़ – सनाडीका Sanadika
गुजरती – राती साटोडी (Rati Satodi), Vasedo (वसेड़ो)
तमिल – mukurattei, Mukaratte
Telugu – Atianamidi
Bangali – Punarnoba, sveta punarnaba
nepali – onle sag
punjabi – khattan
marathi – punarnava, ghentuli
malyalam – Thazuthama, Tavilama
English – Erect Boerhavia, Spiderling, Spreading hog weed, Horse Purslane, Pigweed,
Arbi – Handakuki, Sabaka
Farsi – Devasapat

पुनर्नवा में पाए जाने वाले मुख्य रसायन –

PUNARNAVOSIDE, PUNARNAVINE  नामक ALKALOID पाए जाते है. LIRIODENDRIN  नामक lignans पुनर्नवा की जड़ में पाए जाते है. Potasium nitrate, ursolic acid, rotenoid भी पुनर्नवा में पाए जाते है. Only Ayurved इसके अतिरिक्त पुनर्नवा के धरती के उपरी हिस्से   में 15 amino acid पाए जाते है .जिनमे 6 अवश्यक एमिनो अम्ल है जो हमारे शरीर में नहीं बनते हमें बाहर  से भोजन के रूप में लेने पड़ते हैं. पुनर्नवा के जड़ में 14 एमिनो अम्ल पाए जाते है, जिनमे 7 अवश्यक एमिनो अम्ल है. जो हमारे शरीर में नहीं बनते और इनको हमें बाहर से ही लेना पड़ता है.

पुनर्नवा के kidney रोगों में लाभ

पुनर्नवा chronic renal failure ,chronic kidney diseases, nephrotic syndrome, urinary tract infection अर्थात kidney की बड़ी से बड़ी बीमारी को अकेले ठीक करने की क्षमता रखता है.
पुनर्नवा में मौजूद  punarnavoside जो कि एक alkaloid है, एक बहुत अच्छा diuretic है. Diuretic एक तरह का रसायन होता है जो urine की मात्रा को बढाता है जिससे urine खुलकर आ जाता है ओर शरीर में किडनी के बीमारी होने से पैदा होने वाली सुजन (जिसको edema कहा जाता है)कम हो जाती है इसके साथ ही punarnavoside एक बहुत अच्छा antibacterial, anti-inflamatory और antispasmodic antifibronolytic है.
antibacterial effect– bacterial infection को रोकता है .
anti-inflammatory effect -सुजन को कम करता है जो इन्फेक्शन से हो जाती है .
antispasmodic effect -यह खिचाव को कम करता है, जिससे दर्द कम होता है.
antifibronolytic effect -यह urine में आने वाले blood  को रोकता है जो कि urinary tract इन्फेक्शन में अक्सर हो जाता है इसे haematuria कहते है. जिसमे RBC urine में आना शुरू हो जाते है.
जो कि urinary tract infection मुख्यता  बार बार होनर वाले uti में काफी लाभकारी है । Only Ayurved इसमें मौजूद पोटैशियम नाइट्रेट भी diuretic का काम करता है।जो मूत्र को शरीर से बाहर निकालता है।जिससे kidney failure के मुख्य लक्षण edema में आराम मिलता है।

गर्भावस्था में होने वाले urinary tract इन्फेक्शन में भी पुनर्नवा बहुत उपयोगी है.

Nephrotic sndrome Treatment in Ayurved

यह एक प्रकार कि kidney कि समस्या होती है जिसमे शरीर से प्रोटीन urine के माध्यम से बहार निकलना शुरू हो जाता है ओर शरीर पर सुजन आ जाती है ओर kidney का फिल्ट्रेशन system ख़राब हो जाता है .इस समय पुनर्नावा का उपयोग किसी संजीवनी से कम नही है क्योकि इसमें मोजूद एमिनो अम्ल शरीर में हुए प्रोटीन कि कमी को पूरी करते है तथा urine में होने वाले protein lose को भी कम करते है और kidney dysfunction से होने वाली सूजन जिसे edema कहते है को भी कम करता है.

Kidney Failure Treatment In Ayurved.

पुनर्नवा chronic renal failure, chronic kidney diseases, urinary tract infection अर्थात kidney की बड़ी से बड़ी बीमारी को अपने अन्दर पाए जाने वाले विशेष रसायनों की वजह से अकेले ही ठीक करने की क्षमता रखता है.

Dialysis prevention In Ayurveda

पुनर्नवा urine output को काफी बढ़ा देता है, जिससे वो रोगी जो पेशाब ना उतरने की वजह से dialysis करवाते हैं उनको इसकी  जरुरत भी नहीं पड़ती है.

Prevent Kidney Transplant In Ayurved

अगर आपको डॉक्टर ने किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के लिए कह भी दिया हो, तो आप रोजाना इस पुरे पौधे का जड़ समेत रस निकाल कर सुबह शाम पियें. 50 – 50 मि.ली. एक से 6 महीने तक लें, ये अवधि रोगी के रोग की स्थिति के अनुसार कम या बढ़ सकती है. और वो इसको अपनी चल रही दवाई के साथ निसंकोच ले सकता है.

control blood presure For Kidney Patient

Nephrotic syndromechronic renal failure ओर chronic kidney disease में blood presssure बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, पुनर्नावा में पाए जाने वाला lignane  LIRIODENDRIN एक प्राकर्तिक calcium channel blocker है जोकि blood vessel को relax रखता है जिससे blood pressure नार्मल हो जाता है. Diuretic होने के कारण पुनर्नवा मूत्र की अधिक मात्रा किडनी से निकलता है। इसलिए Blood pressure संतुलित रखता है। यह एलॉपथी में बी पी को कम करने के लिए दी जाने वाली Calcium Channel Blocker – Nifedipine की तरह काम करती है. जो के मुख्यतः किडनी रोगी को Renal Failure के केस में दी जाती है.

कैसे करें सेवन.--इसको सुबह खाली पेट इसके पूरे पौधे का स्वरस निकाल कर 50 मिली सुबह और 50 मिली शाम को दीजिये. यह रोगी के रोग के अनुसार 1 से 6 महीने तक दीजिये.

स्वरस निकालने की विधि.-- किसी भी पौधे का स्वरस निकालने के लिए पहले उसको अच्छे से साफ़ कर लो, उसके बाद में पौधे को अच्छे से पत्थर पर कूट कर इसको चटनी जैसा बना लो, और फिर इसको किसी सूती कपडे से छान लीजिये. या फिर ऐसा करें, घर में मिक्सर ग्राइंडर में अच्छे से थोडा पानी मिला कर ग्राइंड कर लो और फिर इसको किसी सूती कपडे से छान लो. और यह ही रोगी को दीजिये.

Wednesday 6 September 2017

किडनी रोग - लक्षण - आहार

हमारे शरीर के हानिकारक पदार्थो को शरीर से छानकर बाहर निकलने का काम किडनी का ही होता है! किडनी हमारे शरीर के लिए रक्त शोधक का काम करती है, हम जो कुछ भी खाते है उसमे से विषैले तत्वों और नुकसान पहुचने वाले पदार्थो को यूरिनरी सिस्टम (मूत्राशय) के जरिये बाहर निकाल देती है जिससे के शरीर ठीक तरीके से काम कर सके और जहरीले तत्व कोई हानि नहीं पंहुचा सके!
हमें देश में दिन प्रति दिन ये बीमारी विकराल रूप से बड रही हैऔर इस बीमारी की वजह से लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है! दुख की बात तो ये है के इस बीमारी का बहुत देर से पता चलता  है जब तक किडनी 60-65% तक ख़राब हो चुकी होती है! इस रोग में बहूत सावधानी बरतनी पड़ती है!

किडनी रोग के लक्षण क्या है ?

इस रोग का पता वैसे तो जल्दी नहीं लग पता लेकिन अगर सावधानी रखी जाए और लक्षणों पर गौर किया जाए तो निम्न लक्षण के जरिये इसका पता चलता है-
Although It is hard to know kidney disease in early stage, but if we keep awareness and look on its symptoms then we can know about this disease.
  • हाथ पैर व आँखों के नीचे का भाग में सुजन आ जाती है!- Swelling on hand and under eye.
  • रोगी को भूख नहीं लगती है और शरीर में खून की कमी होने लगती है!- Patient will not feel hungry and he or she may suffer with anemia disease.
  • शरीर में खुजली होना, बार बार मूत्र आना, कमजोरी महसूस होती है!- patient feels itching and feels to pass urine many times.
  • शरीर पीला पड़ जाता है व उलटी होने के साथ जी मचलाता है!
  • सांसे फूलने लगती है और हाजमा भी खराब रहता है! Patient feels constipation and his digestion system do not works well.

किडनी के रोग को 4 भागो (4 stages )में बाटा गया है ! 

इस रोज के चरणों को पहचानने के लिए इसे विभिन्न भागो में बांटा गया है, जिसके जरिये रोगी की स्थिति का पता चलता है और उसी के हिसाब से उसका इलाज सही प्रकार से किया जा सकता है!-

किडनी रोग का पहला चरण (Kidney Disease First Stage)

नार्मल क्रीयेटीनिन, एक पुरुष के 1 डेसिलीटर खून में .6-1.2 मिलीग्राम और एक महिला के खून में 0.5-1.1 मिलीग्राम EGFR (Estimated Glomerular Filtration rate) सामान्यत: ९० या उससे ज्यादा होता है!

दूसरा चरण ( Second Stage):

इस stage में EGFR कम हो जाता है जो 90% - 60% तक हो जाता है, लेकिन फिर भी क्रीयेटीनिन सामान्य ही रहता है! लेकिन मूत्र में प्रोटीन ज्यादा आने लगता है!

तीसरा चरण (Third Stage):

इस stage में EGFR और घट जाता है जो 60-30 के बीच हो जाता है और क्रीयेटीनिन बढ़ जाता है! इस चरण में ही किडनी रोग के लक्षण दिखाई पड़ने लगते है, पेशाब में यूरिया बढ़ने से खुजली होने लगती है, मरीज एनेमिया से भी ग्रसित हो सकता है!

चौथा चरण (Forth Stage): 

इस चरण में EGFR 30-50 तक आ जाता है और थोरी सी भी लापरवाही खतरनाक हो सकती है इसमे क्रीयेटीनिन भी 2-4 के बीच हो जाता है! अगर सावधानी नहीं बरती गई तो डायलेसिस या फिर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है!

पाचवां चरण (Fifth Stage):

इसमे EGFR 15 से नीचे (कम ) हो जाता है तथा क्रीयेटीनिन 4-5 या अधिक होता है  इसमे मरीज को डायलेसिस या ट्रांसप्लांट तक करानी पड़ जाती है!

किडनी रोग का इलाज क्या है? Kidney Disease Treatment

इसके इलाज में रोगी को रीनल रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ती है, वैसे तो पूर्णता: इलाज किडनी ट्रांसप्लांट के द्वारा ही हो सकता है! परन्तु जब तक मरीज का ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता है तब तक डायलेसिस के जरिये ही काम लिया जा सकता है! वैसे तो डॉक्टर्स का कहना है के खाने पिने में लापरवाही ना की जाए और खाना ठीक प्रकार से लिया जाए तो डायलेसिस से भी काम चल जाता है! इसमे रोगी को अपना खाना डाइट चार्ट के हिसाब से लेना चाहिए और रोजाना बिना किसी प्रकार के लापरवाही किये नियमित तरीके से रूटीन फॉलो करते हुए डायलेसिस समय समय पर करवाता रहे तो वो काफी लम्बे समय तक (कई सालो तक) जीवित रह सकता है!

किडनी ट्रांसप्लांट स्थाई इलाज व उपाय है (Kidney Transplant is Permanent Solution):

डायलेसिस तो अस्थाई इलाज है इस बीमारी का पूर्णता: ठीक होने ले लिए किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी होता है इस रोग में! इसके लिए मरीज को किडनी प्रदान करने वाले किसी डोंनर (Donner) की जरूरत होती है जिसका ब्लड ग्रुप मरीज के साथ मिलना जरूरी होता है! इसमे ट्रांसप्लांट के वक़्त दोनों व्यक्तियों का (मरीज और किडनी डोंनर) के शरीर से टिश्यू लेकर उसका मिलान किया जाता है!
इस बीच कई दुसरे जरूरी टेस्ट भी किये जाते है! जिससे ये पता चलता है के ट्रांसप्लांट के लिए डोंनर और मरीज दोनों के लिए सब ठीक है के नहीं! ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बाद किडनी प्रदान करने वाला यक्ति तो केवल कुछ दिन में ही अपनी जिंदगी सामान्य तरीके से जीना शुरू कर देता है, लेकिन रोगी को फिर भी कुछ समय तक सावधानी की जरूरत पड़ती है!

किडनी रोगों में आहार----- 

किडनी रोगों में प्रोटीन, सोडियम और पोटैशियम की मात्रा कम लेनी चाहिए. ये तत्व अधिक मात्रा में लेने पर हानिकारक हैं, जबकि शरीर के लिए जरूरी भी हैं. इस कारण इन्हें पूरी तरह से लेना बंद भी नहीं किया जा सकता है. अत: इस रोग में डायट के मामले में काफी परहेज रखना पड़ता है ! किडनी शरीर से अनावश्यक और जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल कर डिटॉक्सीफिकेशन का कार्य करता है. किडनी की विभिन्न बीमारियों और विभिन्न अवस्थाओं में खान-पान का परहेज अलग-अलग होता है. यह कई बातों पर निर्भर करता है. खान-पान में परहेज करके किडनी के कई रोगों से बचा जा सकता है. इसके परहेज में मुख्यत: प्रोटीन, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस व तरल पदार्थों की मात्रा आती है. सामान्यत: जानकारी के अभाव में मरीज अनावश्यक परहेज करने लगते हैं, जिससे भोजन स्वादहीन, रंगहीन और पौष्टिकता विहीन हो जाता है. लगातार ऐसा भोजन करने से मरीज शिकायत करने लगते हैं कि धीरे-धीरे जीभ का स्वाद जा रहा है.
 
ये सावधानियां बरतें- 
प्रोटीन : प्रोटीन की मात्रा संयमित की जाती है. ज्यादा प्रोटीन बीमारी बढ़ा सकता है. चूंकि प्रोटीन कोशिकाओं और शारीरिक क्रियाकलापों के लिए जरूरी है. अत: इसे बंद करने के बजाय कम किया जाता है. सामान्यत: किडनी रोग में 0.5-0.8 मिग्रा/ किलोग्राम रोज के हिसाब से प्रोटीन युक्त फूड दिया जाता है.
 
सोडियम : एक चम्मच नमक दिन भर के लिए काफी है. प्रोस्सड फूड, जंक फूड आदि में ज्यादा मात्रा में सोडियम और प्रिजर्वेटिव होते हैं. अत: इनसे बचना चाहिए. दो ग्राम नमक में 400 मिग्रा सोडियम होता है.
 
पोटैशियम : गुरदे की कुछ बीमारियों में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने लगती है, जो खतरनाक है. भोजन में पोटैशियम की मात्रा का निर्धारण बीमारी के स्तर को देख कर किया जाता है.
 
फॉस्फोरस : ज्यादा मात्रा में फॉस्फोरस किडनी फेल्योर के साथ-साथ हड्डी रोग या हृदय रोग के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है. इसकी मात्रा भी संतुलित होनी चाहिए.
 
पेय-पदार्थ : पानी तभी पीएं जब ज्यादा प्यास लगी हो. 500-700 मिली पानी रोज अन्य पेय पदार्थों के अलावा दिया जाता है. नमक ज्यादा खाने से प्यास भी ज्यादा लगती है. ज्यादा प्यास लगने पर मुंह पोंछने से लाभ होता है.
 
भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए नीबू, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज का प्रयोग करें. इनमें पोटैशियम कम और विटामिन सी, ए , बी 6, फॉलिक एसिड, फाइबर इत्यादि अच्छी मात्रा में होता है, जो लाभदायक है.
 
बाजरा, ज्वार, मकई, चना, चना दाल, मटर, खेसारी दाल, लाल चना, धनिया पत्ती, अरबी, शक्करकंद, मूली, बैगन, कटहल, धनिया, जीरा, गाय व बकरी का दूध, फूलगोभी, चुकंदर, कटहल मीटर, शरबत, आइसक्रीम, मिल्क शेक, आचार, पापड़, चटनी, बेकिंग पाउडर इत्यादि. स्किम्ड मिल्क, छाछ, कद्दू, खीरा, भिंडी, हरा पपीता, झिंगनी, कुम्हरा, परवल, करेला, आलू, गाजर, सेब, अंगूर, पपीता (हल्का उबाल कर पानी हटा देने से सोडियम-पोटािशयम की मात्रा में कमी आ जाती है) अत: इन्हें किडनी रोग में दे सकते हैं

Sunday 27 August 2017

आपकी किडनी खतरे में है तो ये देगी आपको ये संकेत

किडनी जो शरीर को De toxification और साफ़ सफाई के लिए इश्वर ने हमारे शरीर में दी है, हमारी गलत आदतों या शुगर या ब्लड प्रेशर की दवाई या फिर Genetic कारणों से खराब हो जाती है, मगर कई बार हमको इसका पता बहुत देर बाद पता चलता है. ये पोस्ट डालने का अर्थ आपको डराने का नहीं, बस यही है के आप समय से इस बीमारी को पहचान लें और इसका शुरू में इलाज बहुत आसान है, तो आइये जानते हैं इसके खराब के Symptoms और इसको सही करने की विधि भी जानेंगे.
किडनी फेल की होने की अंतिम स्थिति से तात्पर्य किडनी के पूरी तरह काम न कर पाने से है। यदि कोई व्यक्ति किडनी फेल होने की अंतिम स्थिति में होता है तो उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता। इस अवस्था में Dialysis ही एकमात्र हल होता है. Dialysis के जरिये शरीर का अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकाला जाता है.
अत: यह महत्वपूर्ण है कि जब भी आपको किडनी से संबंधित कोई समस्या आए तो आप तुरंत किसी योग्य व पेशेवर चिकित्सक की सलाह लें। यहाँ किडनी फेल होने की चेतावनी से संबंधित लक्षणों के बारे में बताया गया है।
अपने तथा अपने प्रिय लोगों के स्वाथ्य का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है अत: इन लक्षणों के बारे में जानें।
  • मुँह से बदबू निकलना और स्वाद भी खराब हो जाना – अगर दूसरे लक्षण नजर में नहीं भी आ रहे हैं तो यह लक्षण साफ नजर आता है। किडनी के खराब होने के कारण रक्त में यूरिया का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण मुँह से बदबू निकलने लगता है और जीभ का स्वाद भी बिगड़ जाता है।
  • एडेमा: – एडेमा के पहले चरण में केवल पैरों में सूजन आती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किडनी शरीर से पानी बाहर नहीं निकाल पाती। इससे शरीर में पानी भर जाने की समस्या हो जाती है।
  • एनीमिया: किडनी का एक मुख्य काम शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण को व्यवस्थित बनाये रखना है। दुर्भाग्य से जब किडनी फेल होना शुरू होती है तो लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में कमी आ जाती है जिसके कारण एनीमिया होता है।
  • हेमेट्युरिया: – जब किडनी फेल होना प्रारंभ होती है तो आपके मूत्र में रक्त के लाल थक्के दिखाई देते हैं। किडनी की समस्या होने पर विभिन्न लोगों को विभिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे मूड स्विंग्स (मूड में बदलाव), भ्रम और मतिभ्रम।
  • पीठ में तेज़ दर्द: – यह दर्द बहुत अधिक तीव्र होता है तथा शरीर के एक ओर के पिछले हिस्से में होता है। यह दर्द पेट में नीचे की ओर होता हुआ कमर और अंडकोष तक भी पहुँच सकता है।
  • मूत्र त्याग में कमी: – मूत्रत्याग के समय मूत्र की कम मात्रा का आना हर बार किडनी की समस्या की ओर संकेत नहीं करता परन्तु यदि आपको ऐसा लगता है कि शरीर से निकलने वाले इस तरल पदार्थ की मात्रा में कमी आई है तो आपको चिकित्सीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
  • झाग (foam) जैसा मूत्र – मूत्र त्याग करने के बाद जब उसमें झाग जैसा पैदा होने लगता है तब यह किडनी के खराब होने के प्रथम लक्षणों के संकेत होते हैं। डॉ. दीपा जयराम, मुम्बई की प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट के अनुसार यह शरीर से प्रोटीन के निकलने के कारण होता है जो किडनी के बीमारी के दूसरे लक्षणों में शामिल होता है।
  • भूख कम लगना – शरीर में अवांछित पदार्थ ज़रूरत से ज़्यादा जम जाने के कारण यह लक्षण महसूस होने लगता है। दीपा जयराम के अनुसार किडनी के बीमारी के कारण दूसरे लक्षण समझ में आए न आए यह लक्षण ज़रूर नजर आता है। इसलिए जैसे ही यह लक्षण समझ में आए तुरन्त डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए।
  • साँस लेने में असुविधा – जब किडनी की अवस्था खराब होने लगती है तो लंग्स में फ्लूइड जमने लगता है जिसके कारण साँस लेने में असुविधा होने लगती है। अनीमीआ के कारण शरीर में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है जिसके कारण भी साँस लेने में असुविधा होने लगती है।
  • उद्वेग: – जब किडनी फेल होना प्रारंभ होती है तो शरीर के कुछ हिस्सों में उद्वेग, कंपन या अनैच्छिक हलचल होने लगती है।
  • मूत्र में असामान्य और गंदी बदबू आना: – ऐसे व्यक्ति जिनकी किडनी फेल हो रही हो उनके मूत्र से मीठी और तीख़ी गंध आती है।
  • त्वचा में रैशेज़ और खुजली – वैसे तो यह लक्षण कई तरह से बीमारियों के लक्षण होते हैं लेकिन किडनी के खराब होने पर शरीर में विषाक्त पदार्थों के जम जाने के कारण शरीर के त्वचा के ऊपर रैशेज़ और खुजली निकलने लगते हैं।
  • मतली और उल्टी – शरीर में विषाक्त पदार्थों का स्तर बढ़ जाने के कारण मतली और उल्टी होने लगता है।
  • मल में रक्त आना मल में रक्त आना भी कभी कभी किडनी फेल होने की ओर संकेत करता है।
  • ऐसे कोई संकेत मिले तो आप अपना GFR टेस्ट ज़रूर करवा लें. इस टेस्ट को आप नीचे बताई गयी रिपोर्ट से समझे


समझे Kidney GFR को

जब GFR 15 से कम हो जाए तो ही डॉक्टर Dialysis के लिए बोलता है, अगर ये इस से बढ़ी हो तो डॉक्टर इंतजार करेगा, मगर आज कल डॉक्टर सिर्फ Creatinine टेस्ट करवा कर ही बोल देते हैं के Dialysis करवाओ, इसकी ज़रूरत तभी पड़ती है, जब आपका GFR लेवल कम हो जाए. अन्यथा आपको इसकी ज़रूरत नहीं.

अभी जान लीजिये इसके लिए कुछ उपचार.

सबसे पहले तो जिस रोगी को ये बीमारी है उसकी चाय और चीनी बिलकुल बंद कर दो. ये बिलकुल ज़हर के समान है, सुबह लैट्रीन जाने से पहले एक ग्लास पानी में निम्बू निचोड़ कर उसमे आधा चम्मच मीठा सोडा मिला कर पियो. अगर आपको पोटैशियम बढ़ा हुआ हो तो निम्बू मत डालिए इसमें सिर्फ मीठा सोडा मिला कर पीजिये, इसके बाद लैट्रीन जाने के बाद गोखरू कांटे वाला काढ़ा पीजिये, इसमें 50 ग्राम छोटा गोखरू डालिए, 10 ग्राम पुनर्नवा, और 10 ग्राम कासनी के बीज डालकर इसको 500 ml पानी में धीमी आंच पर 100 ml रहने तक पकाएं. इसको 50 ml सुबह पीजिये, इसके एक घंटे के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है. और यही काढ़ा शाम को सोने से एक घंटे पहले लें. और तब भी एक घंटे के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है.
और कई लोगों को पेशाब की कोई समस्या नहीं होती मगर फिर भी शरीर में सूजन होती है, इसका कारण खून की कमी भी हो सकती है. इसलिए घबराएं नहीं, बस अपनी जांच करवा लीजिये.
 ये छोटे गोखरू की फोटो है-----