Wednesday 6 September 2017

किडनी रोग - लक्षण - आहार

हमारे शरीर के हानिकारक पदार्थो को शरीर से छानकर बाहर निकलने का काम किडनी का ही होता है! किडनी हमारे शरीर के लिए रक्त शोधक का काम करती है, हम जो कुछ भी खाते है उसमे से विषैले तत्वों और नुकसान पहुचने वाले पदार्थो को यूरिनरी सिस्टम (मूत्राशय) के जरिये बाहर निकाल देती है जिससे के शरीर ठीक तरीके से काम कर सके और जहरीले तत्व कोई हानि नहीं पंहुचा सके!
हमें देश में दिन प्रति दिन ये बीमारी विकराल रूप से बड रही हैऔर इस बीमारी की वजह से लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है! दुख की बात तो ये है के इस बीमारी का बहुत देर से पता चलता  है जब तक किडनी 60-65% तक ख़राब हो चुकी होती है! इस रोग में बहूत सावधानी बरतनी पड़ती है!

किडनी रोग के लक्षण क्या है ?

इस रोग का पता वैसे तो जल्दी नहीं लग पता लेकिन अगर सावधानी रखी जाए और लक्षणों पर गौर किया जाए तो निम्न लक्षण के जरिये इसका पता चलता है-
Although It is hard to know kidney disease in early stage, but if we keep awareness and look on its symptoms then we can know about this disease.
  • हाथ पैर व आँखों के नीचे का भाग में सुजन आ जाती है!- Swelling on hand and under eye.
  • रोगी को भूख नहीं लगती है और शरीर में खून की कमी होने लगती है!- Patient will not feel hungry and he or she may suffer with anemia disease.
  • शरीर में खुजली होना, बार बार मूत्र आना, कमजोरी महसूस होती है!- patient feels itching and feels to pass urine many times.
  • शरीर पीला पड़ जाता है व उलटी होने के साथ जी मचलाता है!
  • सांसे फूलने लगती है और हाजमा भी खराब रहता है! Patient feels constipation and his digestion system do not works well.

किडनी के रोग को 4 भागो (4 stages )में बाटा गया है ! 

इस रोज के चरणों को पहचानने के लिए इसे विभिन्न भागो में बांटा गया है, जिसके जरिये रोगी की स्थिति का पता चलता है और उसी के हिसाब से उसका इलाज सही प्रकार से किया जा सकता है!-

किडनी रोग का पहला चरण (Kidney Disease First Stage)

नार्मल क्रीयेटीनिन, एक पुरुष के 1 डेसिलीटर खून में .6-1.2 मिलीग्राम और एक महिला के खून में 0.5-1.1 मिलीग्राम EGFR (Estimated Glomerular Filtration rate) सामान्यत: ९० या उससे ज्यादा होता है!

दूसरा चरण ( Second Stage):

इस stage में EGFR कम हो जाता है जो 90% - 60% तक हो जाता है, लेकिन फिर भी क्रीयेटीनिन सामान्य ही रहता है! लेकिन मूत्र में प्रोटीन ज्यादा आने लगता है!

तीसरा चरण (Third Stage):

इस stage में EGFR और घट जाता है जो 60-30 के बीच हो जाता है और क्रीयेटीनिन बढ़ जाता है! इस चरण में ही किडनी रोग के लक्षण दिखाई पड़ने लगते है, पेशाब में यूरिया बढ़ने से खुजली होने लगती है, मरीज एनेमिया से भी ग्रसित हो सकता है!

चौथा चरण (Forth Stage): 

इस चरण में EGFR 30-50 तक आ जाता है और थोरी सी भी लापरवाही खतरनाक हो सकती है इसमे क्रीयेटीनिन भी 2-4 के बीच हो जाता है! अगर सावधानी नहीं बरती गई तो डायलेसिस या फिर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है!

पाचवां चरण (Fifth Stage):

इसमे EGFR 15 से नीचे (कम ) हो जाता है तथा क्रीयेटीनिन 4-5 या अधिक होता है  इसमे मरीज को डायलेसिस या ट्रांसप्लांट तक करानी पड़ जाती है!

किडनी रोग का इलाज क्या है? Kidney Disease Treatment

इसके इलाज में रोगी को रीनल रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ती है, वैसे तो पूर्णता: इलाज किडनी ट्रांसप्लांट के द्वारा ही हो सकता है! परन्तु जब तक मरीज का ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता है तब तक डायलेसिस के जरिये ही काम लिया जा सकता है! वैसे तो डॉक्टर्स का कहना है के खाने पिने में लापरवाही ना की जाए और खाना ठीक प्रकार से लिया जाए तो डायलेसिस से भी काम चल जाता है! इसमे रोगी को अपना खाना डाइट चार्ट के हिसाब से लेना चाहिए और रोजाना बिना किसी प्रकार के लापरवाही किये नियमित तरीके से रूटीन फॉलो करते हुए डायलेसिस समय समय पर करवाता रहे तो वो काफी लम्बे समय तक (कई सालो तक) जीवित रह सकता है!

किडनी ट्रांसप्लांट स्थाई इलाज व उपाय है (Kidney Transplant is Permanent Solution):

डायलेसिस तो अस्थाई इलाज है इस बीमारी का पूर्णता: ठीक होने ले लिए किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी होता है इस रोग में! इसके लिए मरीज को किडनी प्रदान करने वाले किसी डोंनर (Donner) की जरूरत होती है जिसका ब्लड ग्रुप मरीज के साथ मिलना जरूरी होता है! इसमे ट्रांसप्लांट के वक़्त दोनों व्यक्तियों का (मरीज और किडनी डोंनर) के शरीर से टिश्यू लेकर उसका मिलान किया जाता है!
इस बीच कई दुसरे जरूरी टेस्ट भी किये जाते है! जिससे ये पता चलता है के ट्रांसप्लांट के लिए डोंनर और मरीज दोनों के लिए सब ठीक है के नहीं! ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बाद किडनी प्रदान करने वाला यक्ति तो केवल कुछ दिन में ही अपनी जिंदगी सामान्य तरीके से जीना शुरू कर देता है, लेकिन रोगी को फिर भी कुछ समय तक सावधानी की जरूरत पड़ती है!

किडनी रोगों में आहार----- 

किडनी रोगों में प्रोटीन, सोडियम और पोटैशियम की मात्रा कम लेनी चाहिए. ये तत्व अधिक मात्रा में लेने पर हानिकारक हैं, जबकि शरीर के लिए जरूरी भी हैं. इस कारण इन्हें पूरी तरह से लेना बंद भी नहीं किया जा सकता है. अत: इस रोग में डायट के मामले में काफी परहेज रखना पड़ता है ! किडनी शरीर से अनावश्यक और जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल कर डिटॉक्सीफिकेशन का कार्य करता है. किडनी की विभिन्न बीमारियों और विभिन्न अवस्थाओं में खान-पान का परहेज अलग-अलग होता है. यह कई बातों पर निर्भर करता है. खान-पान में परहेज करके किडनी के कई रोगों से बचा जा सकता है. इसके परहेज में मुख्यत: प्रोटीन, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस व तरल पदार्थों की मात्रा आती है. सामान्यत: जानकारी के अभाव में मरीज अनावश्यक परहेज करने लगते हैं, जिससे भोजन स्वादहीन, रंगहीन और पौष्टिकता विहीन हो जाता है. लगातार ऐसा भोजन करने से मरीज शिकायत करने लगते हैं कि धीरे-धीरे जीभ का स्वाद जा रहा है.
 
ये सावधानियां बरतें- 
प्रोटीन : प्रोटीन की मात्रा संयमित की जाती है. ज्यादा प्रोटीन बीमारी बढ़ा सकता है. चूंकि प्रोटीन कोशिकाओं और शारीरिक क्रियाकलापों के लिए जरूरी है. अत: इसे बंद करने के बजाय कम किया जाता है. सामान्यत: किडनी रोग में 0.5-0.8 मिग्रा/ किलोग्राम रोज के हिसाब से प्रोटीन युक्त फूड दिया जाता है.
 
सोडियम : एक चम्मच नमक दिन भर के लिए काफी है. प्रोस्सड फूड, जंक फूड आदि में ज्यादा मात्रा में सोडियम और प्रिजर्वेटिव होते हैं. अत: इनसे बचना चाहिए. दो ग्राम नमक में 400 मिग्रा सोडियम होता है.
 
पोटैशियम : गुरदे की कुछ बीमारियों में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने लगती है, जो खतरनाक है. भोजन में पोटैशियम की मात्रा का निर्धारण बीमारी के स्तर को देख कर किया जाता है.
 
फॉस्फोरस : ज्यादा मात्रा में फॉस्फोरस किडनी फेल्योर के साथ-साथ हड्डी रोग या हृदय रोग के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है. इसकी मात्रा भी संतुलित होनी चाहिए.
 
पेय-पदार्थ : पानी तभी पीएं जब ज्यादा प्यास लगी हो. 500-700 मिली पानी रोज अन्य पेय पदार्थों के अलावा दिया जाता है. नमक ज्यादा खाने से प्यास भी ज्यादा लगती है. ज्यादा प्यास लगने पर मुंह पोंछने से लाभ होता है.
 
भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए नीबू, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज का प्रयोग करें. इनमें पोटैशियम कम और विटामिन सी, ए , बी 6, फॉलिक एसिड, फाइबर इत्यादि अच्छी मात्रा में होता है, जो लाभदायक है.
 
बाजरा, ज्वार, मकई, चना, चना दाल, मटर, खेसारी दाल, लाल चना, धनिया पत्ती, अरबी, शक्करकंद, मूली, बैगन, कटहल, धनिया, जीरा, गाय व बकरी का दूध, फूलगोभी, चुकंदर, कटहल मीटर, शरबत, आइसक्रीम, मिल्क शेक, आचार, पापड़, चटनी, बेकिंग पाउडर इत्यादि. स्किम्ड मिल्क, छाछ, कद्दू, खीरा, भिंडी, हरा पपीता, झिंगनी, कुम्हरा, परवल, करेला, आलू, गाजर, सेब, अंगूर, पपीता (हल्का उबाल कर पानी हटा देने से सोडियम-पोटािशयम की मात्रा में कमी आ जाती है) अत: इन्हें किडनी रोग में दे सकते हैं

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