Wednesday 30 December 2020

50 घरेलु नुस्खों को जीवन में याद रखेगें तो कभी डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा


50 घरेलु नुस्खों को जीवन में याद रखेगें तो कभी डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा

साधारण छोटे-छोटे प्रयोग जिनको आप अवश्य अपनाए कुछ प्रयोग नीचे दिए गए है जो आपके घर में ही उपलब्ध है अजमाए और लाभ ले:-

(1) अजवायन का साप्ताहिक प्रयोग:-

सुबह खाली पेट सप्ताह में एक बार एक चाय का चम्मच अजवायन मुँह में रखें और पानी से निगल लें। चबाएँ नहीं। यह सर्दी,खाँसी,जुकाम, बदनदर्द,कमर-दर्द, पेट दर्द, कब्जियत और घुटनों के दर्द से दूर रखेगा। 10 साल से नीचे के बच्चों को आधा चम्मच 2 ग्राम और 10 से ऊपर सभी को एक चम्मच यानी 5 ग्राम लेना चाहिए !

(2) मौसमी खाँसी के लिये सेंधा नमक :-

सेंधा नमक की लगभग 5 ग्राम डली को चिमटे से पकड़कर आग पर, गैस पर या तवे पर अच्छी तरह गर्म कर लें। जब लाल होने लगे तब गर्म डली को तुरंत आधा कप पानी में डुबो कर निकाल लें और नमकीन गर्म पानी को एक ही बार में पी जाएँ। ऐसा नमकीन पानी सोते समय लगातार दो-तीन दिन पीने से खाँसी, विशेषकर बलगमी खाँसी से आराम मिलता है। नमक की डली को सुखाकर रख लें एक ही डली का बार बार प्रयोग किया जा सकता है।

(3) बैठे हुए गले के लिये मुलेठी का चूर्ण:-

मुलेठी के चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है या सोते समय एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को मुख में रख कर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रख कर जाएँ। प्रातः काल तक गला साफ हो जायेगा। गले के दर्द और सूजन में भी आराम आ जाता है।

(4) मुँह और गले के कष्टों के लिये सौंफ और मिश्री:-

भोजन के बाद दोनों समय आधा चम्मच सौंफ चबाने से मुख की अनेक बीमारियाँ और सूखी खाँसी दूर होती है, बैठी हुई आवाज़ खुल जाती है,गले की खुश्की ठीक होती है और आवाज मधुर हो जाती है।

(5) खराश या सूखी खाँसी के लिये अदरक और गुड़:-

गले में खराश या सूखी खाँसी होने पर पिसी हुई अदरक में गुड़ और घी मिलाकर खाएँ। गुड़ और घी के स्थान पर शहद का प्रयोग भी किया जा सकता है। आराम मिलेगा।

(6) पेट में कीड़ों के लिये अजवायन और नमक:-

आधा ग्राम अजवायन चूर्ण में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर रात्रि के समय रोजाना गर्म जल से देने से बच्चों के पेट के कीडे नष्ट होते हैं। बडों के लिये- चार भाग अजवायन के चूर्ण में एक भाग काला नमक मिलाना चाहिये और दो ग्राम की मात्रा में सोने से पहले गर्म पानी के साथ लेना चाहिये।

(7) अरुचि के लिये मुनक्का हरड़ और चीनी:-

भूख न लगती हो तो बराबर मात्रा में मुनक्का (बीज निकाल दें), हरड़ और चीनी को पीसकर चटनी बना लें। इसे पाँच छह ग्राम की मात्रा में (एक छोटा चम्मच), थोड़ा शहद मिला कर खाने से पहले दिन में दो बार चाटें।

(8) बदन के दर्द में कपूर और सरसों का तेल:-

10 ग्राम कपूर, 200 ग्राम सरसों का तेल- दोनों को शीशी में भरकर मजबूत ठक्कन लगा दें तथा शीशी धूप में रख दें। जब दोनों वस्तुएँ मिलकर एक रस होकर घुल जाए तब इस तेल की मालिश से नसों का दर्द, पीठ और कमर का दर्द और, माँसपेशियों के दर्द शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।

(9) जोड़ों के दर्द के लिये बथुए का रस:-

बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएँ। नित्य प्रातः खाली पेट लें या फिर शाम चार बजे। इसके लेने के आगे पीछे दो-दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें।

(10) पेट में वायु-गैस के लिये मट्ठा और अजवायन:-

पेट में वायु बनने की अवस्था में भोजन के बाद 125 ग्राम दही के मट्ठे में दो ग्राम अजवायन और आधा ग्राम काला नमक मिलाकर खाने से वायु-गैस मिटती है। एक से दो सप्ताह तक आवश्यकतानुसार दिन के भोजन के पश्चात लें।

(11) फटे हाथ पैरों के लिये सरसों या जैतून का तेल:-

नाभि में प्रतिदिन सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते और फटे हुए होंठ मुलायम और सुन्दर हो जाते है। साथ ही नेत्रों की खुजली और खुश्की दूर हो जाती है।

(12) सर्दी बुखार और साँस के पुराने रोगों के लिये तुलसी:-

तुलसी की 21 पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिल बट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भाँति पीस लें और 10 से 30 ग्राम मीठे दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खाएँ। दही खट्टा न हो। यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें। छोटे बच्चों को आधा ग्राम तुलसी की चटनी शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भूलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं।

(13) अधिक क्रोध के लिये आँवले का मुरब्बा और गुलकंद:-

बहुत क्रोध आता हो तो सुबह आँवले का मुरब्बा एक नग प्रतिदिन खाएँ और शाम को गुलकंद एक चम्मच खाकर ऊपर से दूध पी लें। क्रोध आना शांत हो जाएगा।

(14) घुटनों में दर्द के लिये अखरोट:-

सवेरे खाली पेट तीन या चार अखरोट की गिरियाँ खाने से घुटनों का दर्द मैं आराम हो जाता है।

(15) काले धब्बों के लिये नीबू और नारियल का तेल:-

चेहरे व कोहनी पर काले धब्बे दूर करने के लिये आधा चम्मच नारियल के तेल में आधे नीबू का रस निचोड़ें और त्वचा पर रगड़ें, फिर गुनगुने पानी से धो लें।

(16) कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण सुपारी से:-

भोजन के बाद कच्ची सुपारी 20 से 40 मिनट तक चबाएँ फिर मुँह साफ़ कर लें। सुपारी का रस लार के साथ मिलकर रक्त को पतला करने जैसा काम करता है। जिससे कोलेस्ट्राल में गिरावट आती है और रक्तचाप भी कम हो जाता है।

(17) मसूढ़ों की सूजन के लिये अजवायन:-

मसूढ़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूँदें पानी में मिला कर कुल्ला करने से सूजन में आराम आ जाता है।

(18) हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा:-

आँवले का मुरब्बा दिन में तीन बार सेवन करने से यह दिल की कम जोरी, धड़कन का असामान्य होना तथा दिल के रोग में अत्यंत लाभ होता है, साथ ही पित्त,ज्वर,उल्टी, जलन आदि में भी आराम मिलता है।

(19) शारीरिक दुर्बलता के लिये दूध और दालचीनी:-

दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह शाम दूध के साथ लेने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है और शरीर स्वस्थ हो जाता है। दो ग्राम दाल चीनी के स्थान पर एक ग्राम जायफल का चूर्ण भी लिया जा सकता है।

(20) हकलाना या तुतलाना दूर करने के लिये दूध और काली मिर्च:-

हकलाना या तुतलाना दूर करने के लिये 10 ग्राम दूध में 250 ग्राम काली-मिर्च का चूर्ण मिला कर रख लें। 2-2 ग्राम चूर्ण दिन में दो बार मक्खन के साथ मिला कर खाएँ।

(21) श्वास रोगों के लिये दूध और पीपल :-

एक पाव दूध में 5 पीपल डालकर गर्म करें, इसमें चीनी डाल कर सुबह और ‘शाम पीने से साँस की नली के रोग जैसे खाँसी, जुकाम, दमा, फेफड़े की कमजोरी तथा वीर्य की कमी आदि रोग दूर होते हैं।

(22) अच्छी नींद के लिये मलाई और गुड़:-

रात में नींद न आती हो तो मलाई में गुड़ मिला कर खाएँ और पानी पी लें। थोड़ी देर में नींद आ जाएगी।

(23) कमजोरी को दूर करने का सरल उपाय:-

एक-एक चम्मच अदरक व आंवले के रस को दो कप पानी में उबाल कर छान लें। इसे दिन में तीन बार पियें। स्वाद के लिये काला नमक या शहद मिलाएँ।

(24) घमौरियों के लिये मुल्तानी मिट्टी:-

घमौरियों पर मुल्तानी मिट्टी में पानी मिलाकर लगाने से रात भर में आराम आ जाता है।

(25) पेट के रोग दूर करने के लिये मट्ठा:-

मट्ठे में काला नमक और भुना जीरा मिलाएँ और हींग का तड़का लगा दें। ऐसा मट्ठा पीने से हर प्रकार के पेट के रोग में लाभ मिलता है। यह बासी या खट्टा नहीं होना चाहिये।

(26) खुजली की घरेलू दवा:-

फटकरी के पानी से खुजली की जगह धोकर साफ करें, उस पर कपूर को नारियल के तेल मिलाकर लगाएँ लाभ होगा।

(27) मुहाँसों के लिये संतरे के छिलके:-

संतरे के छिलके को पीसकर मुहाँसों पर लगाने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं। नियमित रूप से ५ मिनट तक रोज संतरों के छिलके का पिसा हुआ मिश्रण चेहरे पर लगाने से मुहाँसों के धब्बे दूर होकर रंग में निखार आ जाता है।

(28) बंद नाक खोलने के लिये अजवायन की भाप:-

एक चम्मच अजवायन पीस कर गरम पानी के साथ उबालें और उसकी भाप में साँस लें। कुछ ही मिनटों में आराम मालूम होगा।

(29) चर्मरोग के लिये टेसू और नीबू :-

टेसू के फूल को सुखा कर चूर्ण बना लें। इसे नीबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है।

(30) माइग्रेन के लिये काली मिर्च, हल्दी और दूध:-

एक बड़ा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण एक चुटकी हल्दी के साथ एक प्याले दूध में उबालें। दो तीन दिन तक लगातार रहें। माइग्रेन के दर्द में आराम मिलेगा।

(31) गले में खराश के लिये जीरा:-

एक गिलास उबलते पानी में एक चम्मच जीरा और एक टुकड़ा अदरक डालें ५ मिनट तक उबलने दें। इसे ठंडा होने दें। हल्का गुनगुना दिन में दो बार पियें। गले की खराश और सर्दी दोनों में लाभ होगा।

(32) सर्दी जुकाम के लिये दालचीनी और शहद:-

एक ग्राम पिसी दाल चीनी में एक चाय का चम्मच शहद मिलाकर खाने से सर्दी जुकाम में आराम मिलता है।

(33) टांसिल्स के लिये हल्दी और दूध:-

एक प्याला (200 मिली ली।) दूध में आधा छोटा चम्मच (2 ग्राम) पिसी हल्दी मिलाकर उबालें। छानकर चीनी मिलाकर पीने को दें। विशेषरूप से सोते समय पीने पर तीन चार दिन में आराम मिल जाता है। रात में इसे पीने के बात मुँह साफ करना चाहिये लेकिन कुछ खाना पीना नहीं चाहिये।

(34) ल्यूकोरिया से मुक्ति:-

ल्यूकोरिया नामक रोग कमजोरी,चिडचिडापन, के साथ चेहरे की चमक उड़ा ले जाता हैं। इससे बचने का एक आसान सा उपाय- एक-एक पका केला सुबह और शाम को पूरे एक छोटे चम्मच देशी घी के साथ खा जाएँ 11-12 दिनों में आराम दिखाई देगा। इस प्रयोग को 21 दिनों तक जारी रखना चाहिए।

(35) मधुमेह के लिये आँवला और करेला:-

एक प्याला करेले के रस में एक बड़ा चम्मच आँवले का रस मिला कर रोज पीने से दो महीने में मधुमेह के कष्टों से आराम मिल जाता है।

(36) मधुमेह के लिये काली चाय:-

मधुमेह में सुबह खाली पेट एक प्याला काली चाय स्वास्थ्यवर्धक होती है। चाय में चीनी दूध या नीबू नहीं मिलाना चाहिये। यह गुर्दे की कार्यप्रणाली को लाभ पहुँचाती है जिससे मधुमेह में भी लाभ पहुँचता है।

(37) उच्च रक्तचाप के लिये मेथी:-

सुबह उठकर खाली पेट आठ-दस मेथी के दाने निगल लेने से उच्चरक्त चाप को नियंत्रित करने में सफलता मिलती है।

(38) माइग्रेन और सिरदर्द के लिये सेब:-

सिरदर्द और माइग्रेन से परेशान हों तो सुबह खाली पेट एक सेब नमक लगाकर खाएँ इससे आराम आ जाएगा।

(39) अपच के लिये चटनी:-

खट्टी डकारें, गैस बनना, पेट फूलना, भूक न लगना इनमें से किसी चीज से परेशान हैं तो सिरके में प्याज और अदरक पीस कर चटनी बनाएँ इस चटनी में काला नमक डालें। एक सप्ताह तक प्रतिदिन भोजन के साथ लें, आराम आ जाएगा।

(40) मुहाँसों से मुक्ति:-

जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन तीनो का पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। रोज सोने से पहले 2-3 चुटकी भर के पावडर हथेली पर लेकर उसमें इतना पानी मिलाए कि उबटन जैसा बन जाए खूब मिलाएँ और फिर उसे चेहरे पर लगा लें और सो जाएँ, सुबह उठकर सादे पानी से चेहरा धो लें। 15 दिन तक यह काम करें। इसी के साथ प्रतिदिन 250 ग्राम मूली खाएँ ताकि रक्त शुद्ध हो जाए और अन्दर से त्वचा को स्वस्थ पोषण मिले। 15-20 दिन में मुहाँसों से मुक्त होकर त्वचा निखर जाएगी।

(41) जलन की चिकित्सा चावल से:-

कच्चे चावल के 8-10 दाने सुबह खाली पेट पानी से निगल लें। 21 दिन तक नियमित ऐसा करने से पेट और सीन की जलन में आराम आएगा। तीन माह में यह पूरी तरह ठीक हो जाएगी।

(42) दाँतों के कष्ट में तिल का उपयोग:-

तिल को पानी में 4 घंटे भिगो दें फिर छान कर उसी पानी से मुँह को भरें और 10 मिनट बाद उगल दें। चार पाँच बार इसी तरह कुल्ला करे, मुँह के घाव, दाँत में सड़न के कारण होने वाले संक्रमण और पायरिया से मुक्ति मिलती है।

(43) विष से मुक्ति:-

10-10 ग्राम हल्दी, सेंधा नमक और शहद तथा 5 ग्राम देसी घी अच्छी तरह मिला लें। इसे खाने से कुत्ते, साँप, बिच्छु, मेढक, गिरगिट, आदि जहरीले जानवरों का विष उतर जाता है।

(44) खाँसी में प्याज:-

अगर बच्चों या बुजुर्गों को खांसी के साथ कफ ज्यादा गिर रहा हो तो एक चम्मच प्याज के रस को चीनी या गुड मिलाकर चटा दें, दिन में तीन चार बार ऐसा करने पर खाँसी से तुरंत आराम मिलता है।

(45) स्वस्थ त्वचा का घरेलू नुस्खा:-

नमक, हल्दी और मेथी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, नहाने से पाँच मिनट पहले पानी मिलाकर इनका उबटन बना लें। इसे साबुन की तरह पूरे शरीर में लगाएँ और 5 मिनट बाद नहा लें। सप्ताह में एक बार प्रयोग करने से घमौरियों, फुंसियों तथा त्वचा की सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है। साथ ही त्वचा मुलायम और चमकदार भी हो जाती है।

(46) पेट साफ रखे अमरूद:-

कब्ज से परेशान हों तो शाम को चार बजे कम से कम 200 ग्राम अमरुद नमक लगाकर खा जाएँ, फायदा अगली सुबह से ही नज़र आने लगेगा। 10 दिन लगातार खाने से पुराने कब्ज में लाभ होगा। बाद में जब आवश्यकता महसूस हो तब खाएँ।

(47) पपीते के बीज के स्वास्थ्य हमारा:-

पके पपीते के बीजों को खूब चबा-चबा कर खाने से आँखों की रोशनी बढ़ती है। इन बीजों को सुखा कर पावडर बना कर भी रखा जा सकता है। सप्ताह में एक बार एक चम्मच पावडर पानी से फाँक लेन पर अनेक प्रकार के रोगाणुओं से रक्षा होती है।

(48) मुलेठी पेप्टिक अलसर के लिये:-

मुलेठी के बारे में तो सभी जानते हैं। यह आसानी से बाजार में भी मिल जाती है। पेप्टिक अल्सर में मुलेठी का चूर्ण अमृत की तरह काम करता है। बस सुबह शाम आधा चाय का चम्मच पानी से निगल जाएँ। यह मुलेठी का चूर्ण आँखों की शक्ति भी बढ़ाता है। आँखों के लिये इसे सुबह आधे चम्मच से थोड़ा सा अधिक पानी के साथ लेना चाहिये।

(49) सरसों का तेल केवल पाँच दिन:-

रात में सोते समय दोनों नाक में दो दो बूँद सरसों का तेल पाँच दिनों तक लगातार डालें तो खाँसी -सर्दी और साँस की बीमारियाँ दूर हो जाएँगी। सर्दियों में नाक बंद हो जाने के दुख से मुक्ति मिलेगी और शरीर में हल्कापन मालूम होगा।

(50) भोजन से पहले अदरक:-

भोजन करने से दस मिनट पहले अदरक के छोटे से टुकडे को सेंधा नमक में लपेट कर [थोड़ा ज्यादा मात्रा में ] अच्छी तरह से चबा लें। दिन में दो बार इसे अपने भोजन का आवश्यक अंग बना लें, इससे हृदय मजबूत और स्वस्थ बना रहेगा, दिल से सम्बंधित कोई बीमारी नहीं होगी और निराशा व अवसाद से भी मुक्ति मिल जाएगी

Sunday 27 December 2020

वात प्रकृति वाले लोग- लक्षण -निदान - उपचार

 


आयुर्विज्ञान के अनुसार मानव शरीर मुख्य रूप से पांच तत्वों (अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश) से मिलकर बना है। इन सभी तत्वों के बीच संतुलन की अवस्था मनुष्य के बेहतर स्वास्थ्य की ओर इशारा करती है। वहीं, इनमें से किसी एक का भी असंतुलन शारीरिक समस्याओं का कारण बन जाता है, जिसे त्रिदोषों और उसके उपदोषों में विभाजित किया गया है। शरीर के भागों और अंगों के हिसाब से त्रिदोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है, जिनके कई उपभाग भी है। विनय आयुर्वेदा के इस लेख में वातरोग क्या है, वात रोग के कारण और वात प्रकृति के लक्षण के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। साथ ही लेख में वात रोग को दूर करने के उपाय के विषय में भी जानकारी दी जाएगी। लेख में बताए गए उपाय वात संबंधी समस्या से राहत तो दिला सकते हैं, लेकिन पूर्ण उपचार साबित नहीं हो सकते। इसलिए, गंभीर अवस्था में डॉक्टरी से चेकअप करवाना जरूरी है। 

अपने आस पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्यादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नजर आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। 

वात दोष क्या है - 

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं। 



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वात के प्रकार  - शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

  1. प्राण
  2. उदान
  3. समान
  4. व्यान
  5. अपान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।

वात के गुण - रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।


वात प्रकृति की विशेषताएं --

आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैस कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं. इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं. स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.


 

वात बढ़ने के कारण ~~~~

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

वात बढ़ जाने के लक्षण - वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नजर आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नजर डालते हैं।

  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • सुई के चुभने जैसा दर्द
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
  • हड्डियों का खिसकना और टूटना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
  • अंगों का ठंडा और सुन्न होना
  • कब्ज़
  • नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
  • मुंह का स्वाद कडवा होना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

वात को संतुलित करने के उपाय --

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

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वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं 

  • घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।
  • नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में  तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।

वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए 

अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीजों के सेवन से परहेज करें।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
  • किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

जीवनशैली में बदलाव 

जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

  • एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
  • किसी शांत जगह पर जाकर रोजाना ध्यान करें।
  • गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। औषधियों से तैयार काढ़े को टब में डालें और उसमें कुछ देर तक बैठे रहें।
  • गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

वात में कमी के लक्षण और उपचार - वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइये पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

वात में कमी के लक्षण :

  • बोलने में दिक्कत
  • अंगों में ढीलापन
  • सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी
  • वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
  • पाचन में कमजोरी
  • जी मिचलाना

उपचार :- वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

 

साम और निराम वात - हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

  • मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
  • पाचन शक्ति में कमी
  • हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
  • आंत में गुडगुडाहट की आवाज
  • कमर दर्द

यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और कई बीमारियों होने लगती हैं। जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है. इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें। अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

विनय आयुर्वेदा का  दर्द केयर सिरप ( 300मिली व 600 मिली ) समस्त वात रोगो मे बहुत उपयोगी है आप घर बेठे ऑर्डर कर के मँगा सकते है साथ मे वात रोगी कॉल करके या व्हट्स अप पर अपनी समस्या बताकर उपचार व सलाह भी ले सकते है  मो - 8460783401

Thursday 24 December 2020

25 दिसबंर तुलसी पूजन दिवस विशेष- धर्म और स्वास्थ्य

25 दिसबंर तुलसी पूजन दिवस विशेष- धर्म और स्वास्थ्य


सनातन  धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। देश में शायद ऐसा कोई घर हो जहां तुलसी के पौधे को जगह न दी जाती हो। तुलसी का पौधा जितना पवित्र होता है उतना ही गुणकारी भी होता है। तुलसी के कई प्रकार होते हैं जैसे श्यामा तुलसी, राम तुलसी, विष्णु तुलसी, वन तुलसी, नींबू तुलसी। तुलसी के इन पांचों प्रकारों अपने-अपने लाभ होते हैं। आइए जानते हैं तुलसी के 10 लाभ।

1- तुलसी एक एंटीऑक्सीडेंट है। तुलसी के अर्क की बूंदे पानी में डालकर पीने से इम्युनिटी बढ़ती है। तुलसी के अर्क को 1 लीटर पानी में डालकर रखें और कुछ समय बाद उसका सेवन करें।

2- एंटी-फ्लू का काम करने वाली गुणकारी तुलसी बुखार, फ्लू, स्वाइन फ्लू, डेंगू, सर्दी, खांसी, जुखाम, प्लेग, मलेरिया जैसी बीमारियों से छुटकारा दिलाती है।

3- जान लें कि तुलसी एंटी-बायोटिक का भी काम करती है। प्रतिदिन इसका उपयोग करने से शरीर से हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं।

4- तुलसी में एंटी-इफ्लेमेन्ट्री के तत्व भरपूर होते हैं। इसके लगातार सेवन से रेड ब्लड सेल्स का शरीर में बढ़ोतरी होती है।

5- जानकारों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं में उल्टी की परेशानी होने पर भी तुलसी लाभकारी होती है।

6- शहद के साथ तुलसी का सेवन करने से सर्दी-जुकाम और गले का पीड़ा ठीक हो जाती है।

7- मुंह से आने वाली दुर्गंध से भी तुलसी निजात दिलाती है। साथ की दांत में  होंने वाली पीड़ा और मसूड़ों में खून निकलने की समस्या से तुलसी कारगर साबित होती है।

8- जानकारों की मानें तो तुलसी को शरीर पर रगड़ने से मच्छरों से बचा जा सकता है।

9- किसी घाव पर तुलसी की बूंद डालने से संक्रमण से बचा जा सकता है

10. कान में पीड़ा में होने पर तुलसी की बूंद गुनगुना करके कान में डालने से पीड़ा कम होती है।

Wednesday 23 December 2020

डिनर छोड़ें : चुस्त दुरुस्त निरोग रहें

बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार से एकबार पत्रकारों ने पूछा कि आपकी सेहत का क्या राज है। अक्षय कुमार का जवाब विल्कुल ही आयुर्वेद के सूत्रों पर आधारित था। अक्षय ने कहा कि मैं कभी भी सूरज डूबने के बाद डिनर (रात्रि भोजन) नहीं करता। हमेशा सूर्यास्त के पहले डिनर कर लेता हूं। इसके बाद अक्षय ने इसके फायदे बताए, तो सबलोग दंग रह गए और जब अक्षय ने सूर्यास्त के बाद डिनर करने के नुकसान बताए, तो लोग एकदम से डर गए।

दरअसल यह आयुर्वेद का सूत्र है—

चरक संहिता और अष्टांग संग्रह भी रात में खाने से बचने के लिए कहता हैं;क्योंकि उस समय जठराग्नि, जो खाना पचाने का काम करती हैं,बहुत कमजोर रहती है. जैसे-जैसे सूर्य ढलता है, जठराग्नि भी मंद पड़ने लगती है. 

सायं भुक्त्वा लघु हितं समाहितमना: शुचि:|
शास्तारमनुसंस्मृत्य स्वशय्यां चाथ संविशेत ||

रात्रौ तु भोजनं कुर्यातत्प्रथमप्रहरान्तरे|
किञ्चिदूनंसमश्नयाद्दुर्जरं तत्र पर्जयेत् ||

रात का भोजन सूर्यास्त के पूर्व ही कर लेना चाहिए और पेट भरकर नहीं खाना चाहिए, पेट को कुछ खाली रखकर ही भोजन करना चाहिए. 

हिंदुओं के प्राचीन शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि, “चत्वारि नरक्द्वाराणि प्रथमं रात्रिभोजनम्”, मतलब रात्रिभोजन नरक का पहला द्वार है| 'नरक के द्वार' से अभिप्राय यहां अस्वस्थता ही समझें.
 "जो व्यक्ति शराब, मांस, पेय, सूर्यास्त के बाद खाता है और जमीन के नीचे उगाई सब्जियों का उपभोग करता है; उस व्यक्ति के किये गए तीर्थयात्रा, प्रार्थना और किसी भी प्रकार कि भक्ति बेकार हैं|" 
- महाभारत (रिशिश्वरभरत)

जैन धर्म में भी सूर्यास्त के बाद भोजन निषिद्ध है. वे तो अबतक पालन कर रहे हैं. 

भगवान बुद्ध भी अपने भक्तों को आयुर्वेद का ये उपदेश देते हुए कहा करते थे कि स्वस्थ और युवा रहना चाहते हो, तो कभी भी सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करो। हमेशा सूर्य डूबने से पहले भोजन कर लो और किसी हाल में सूर्यास्त के बाद कुछ भी न खाओ। लोग उनकी बात मान कर ऐसा ही करते थे और मोटापे सहित कई गंभीर वीमारियों से बचे रहते थे, पर बाद में लोगों ने यह कहकर इसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया कि चूंकि प्राचीन काल में बिजली नहीं थी, इसीलिए लोग जल्दी खाना खा लेते थे। ऐसा कहने वाले लोगों ने देर रात डिनर करने की आदत लगायी. बहुत पहले लोग रात में नहीं खाते थे. गांव के लोग तो विल्कुल ही नहीं खाते थे. और, अब हाल यह है कि मोटापा दुनिया में महामारी बन चुका है। 
अब जब यही बात अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिक शोध (रिसर्च) के बाद कह रहे हैं, तो सबके कान खड़े हुए हैं।

अगर आप सूरज डूबने से पहले डिनर कर लेंगे, तो यह तय है कि आपको मोटापे की समस्या से कभी नहीं जूझना पड़ेगा और अगर आप मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं, तो आपको इससे जरूर मुक्ति मिल जाएगी। अगर आप कब्ज, गैस या दूसरी तरह की पेट की बीमारियों से जूझ रहे हैं या फिर पेट बाहर निकल रहा है, तो सूर्यास्त से पहले भोजन करना इसका रामबाण इलाज है। इससे कब्ज, गैस और दूसरी पेट की वीमारियों से मुक्ति मिलेगी। दरअसल डिनर करने और बेड पर सोने जाने के बीच गैप (समय का अंतर) होना चाहिए। ऐसा न हो कि रात 10 बजे डिनर किया और 10.30 बजे सो गए। जब ऐसा होता है, तो इससे पेट से संबंधित समस्याएं पैदा होती है। कब्ज, गैस और दूसरी समस्याएं होती हैं। इन्हीं समस्याओं से हृदय व्याधि भी होती है.

जब हम सोने जाते हैं तो हमारे शरीर के अधिकांश अंग रेस्ट मोड में चले जाते हैं;पर जब हम देर से डिनर करते हैं, तो हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम सोते वक्त भी पूरी तेजी से काम करता रहता है। इस वजह से गहरी नींद नहीं आती, नींद कई बार टूट भी जाती है, निद्रा-चक्र में व्यवधान होता है, जिससे कलेजे में जलन महसूस होता है. रात में भोजन करने से पेशाब में वृद्धि और उत्सर्जन की आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं, जिससे अनावश्यक निद्रा-नाश होता है. अगर हम सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेंगे, तो सुबह सोकर उठने पर खुद को ताजा-ताजा महसूस करेंगे। सुबह  से ही अच्छे मूड में बने रहेंगे. 

बहुत से लोग ये कहने लगते हैं कि हमारा जीवन शैली ही कुछ ऐसी है कि जल्दी नहीं खा सकते, पार्टियों में जाना पड़ता है या फिर प्रोफेशन ही ऐसा है। बॉलीवुड में अपनी फिटनेस के लिए खिलाड़ियों के खिलाड़ी के नाम से मशहूर अक्षय कुमार कहते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं सूर्यास्त के बाद डिनर नहीं करता। अगर अक्षय ऐसा कर सकते हैं, तो आप क्यों नहीं? आपको चुस्त-दुरुस्त और निरोगी बने रह
ना है, तो डिनर छोड़ ही दें. यह भारतीय संस्कृति है भी नहीं.
विनय आयुर्वेदा 

Sunday 20 December 2020

ऐसी वनस्पति(लकड़ी ) जो मधुमेह के अलावा अनेक रोग जड़ से खत्म कर देती है

प्रकृति ने हमे रोग से साथ उसके निवारण के लिए अनेक प्रदान की है जिसका उपयोग हमारे पूर्वज खुद करके स्वस्थ रहते थे उन्हें किसी चिकित्सक के पास नही जाना पड़ता था एक ऐसी वनस्पति(लकड़ी) के बारे में आपको जानकारी प्रदान कर रहा हु आप उपयोग करे यह लकड़ी आपको बाजार में मिल जाएगी बस ध्यान रहे लकड़ी सही हो .... अगर आपको न मिले मुझसे संपर्क करे 8460783401 
दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीने से आप कई बीमारियों से बचे रहते है। कुछ लोग तो स्वस्थ रहने के लिए तांबे या पीतल के बर्तन में भी पानी पीते है लेकिन क्या आप जानते है कि लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से आप कई बीमारियों से बच सकते है। पुराने समय में भी लोग लकड़ी के बर्तन में पानी पीते थे, जिससे वो कई गंभीर बीमारियों से दूर रहते थे। लकड़ी के बर्तन में पानी पीने शरीर में से जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं, जिससे आप कई बीमारियों से बचे रहते है। आज हम आपको बताएगे कि किस लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से आप अर्थराइटिस से लेकर डायबिटीज जैसी समस्याओं से बचे रह सकते है। तो आइए जानते है लकड़ी के बर्तन में पानी पीने के फायदे।
 

विजयसार की लकड़ी
भारत, नेपाल और श्रीलंका में पाई जाने वाली विजयसार की लकड़ी से बने बर्तन में पानी पीने से आपकी कई समस्याए दूर हो सकती है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार विजयसार की लकड़ी में औषधीय गुण होने के कारण इसमें पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते है। हल्‍के या गहरा लाल रंग की यह लकड़ी आपको किसी आयुर्वेदिक औषधि की दुकान से मिल जाएगी। इसके अलावा आप इस लकड़ी से बने गिलास लेकर इसमें पानी पी सकते है।

सेवन करने का तरीका
विजयसार की सूखी लकड़ी के 25 ग्राम टुकड़े को पीस लें। इसके बाद एक मिट्टी का बर्तन में पानी डालकर इस लकड़ी के पाउडर को मिक्स करें। सुबह इसे छानकर खाली पेट पीएं। इसके अलावा रोजाना दिन में 8-10 गिलास पानी इस लकड़ी के बर्तन में डालकर पीने से आप कई बीमारियों से बचे रह सकते है।
 

लकड़ी के बर्तन में पानी पीने के फायदे
1. डायबिटीज
इस लकडी के बर्तन में रात भर पानी रखें और सुुबह खाली पेट पीएं। इससे आपका शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए इस बर्तन में पानी पीना बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा इस लकड़ी के पाउडर पीने से आप डायबिटीज इस समस्या को खत्म भी कर सकते है।

2. अर्थराइटिस
हड्डियों के कमजोर होने की वजह से कई लोगों को गठिया और जो़ड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है, जिसे अर्थराइटिस भी कहते है।। ऐसे में इस लकड़ी के बर्तन या इसका पानी पीने से शरीर में 'यूरिक एसिड' कम होता हैं, इस रोग में राहत मिलती है।

3. दिल के रोग
स्वस्थ दिल के लिए 'ब्लड सर्कुलेशन' का ठीक से काम करना बहुत जरूरी है। इसके लिए लकड़ी के बर्तन में रखा पानी पीएं जिससे शरीर का कोलेस्ट्रोल 'कंट्रोल' में रहता है और दिल की बीमारियां नहीं होती।

4. उच्च रक्त-चाप
इस लकड़ी का या इसके बर्तन में पानी पीने से ब्लड प्रैशर कंट्रोल में रहता है। इससे आप उच्च रक्त-चाप की समस्या से बचे रहते है। इसके अलावा इसका पानी पीने से हाथ-पैरों के कंपन्‍न भी दूर होती है।

5. त्वचा के रोग
स्किन एलर्जी, खाज-खुजली और बार-बार फोडे-फिंसी होने की समस्या को दूर करने के लिए दिन में दो बार इस लकड़ी का पानी पीएं। इससे आपकी हर स्किन प्रॉब्लम दूर हो जाएगी।

6. वजन घटाना
इस लकड़ी का पानी पीने से शरीर का 'एक्स्ट्रा फैट' कम होता है, जिससे आपका मोटापा कुछ समय में ही कम होने लगता है। इसके अलावा इस लकड़ी के बर्तन में पानी पीने से वजन जल्दी कम होता है।

Wednesday 16 December 2020

सेहत का सबसे बड़ा खजाना - स्वस्थ रहने के लिए

Tuesday 15 December 2020

डायबिटीज --इनमें से कोई भी लक्षण दिखे तो करा लें जांच, हो सकती है डायबिटीज

 दुनियाभर में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले भारत में ही हैं. भारत की लगभग 5 फीसदी आबादी डायबिटीज से पीड़ित है. जिन लोगों में डायबिटीज होने की अधिक संभावना होती है, उनमें पहले से ही कई लक्षण सामने आते हैं. लेकिन, जानकारी न होने की वजह से लोग डायबिटीज के इन लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं, और समय पर इलाज ना होने की वजह से वो डायबिटीज की गिरफ्त में आ जाते हैं, सामान्यतः मधुमेह यानि डायबिटीज़ तीन प्रकार की होती है, टाइप- 1 डायबिटीज, टाइप- 2 डायबिटीज और टाइप- 1.5 डायबिटीज .

 डायबिटीज के क्या क्या लक्षण हो सकते हैं 

जरूरत से ज्यादा प्यास लगना 

वेसे तो भरपूर मात्रा मे पानी पीना आपकी सेहत के लिय लाभप्रद है लेकिन अगर आपको जरूरत से ज्यादा प्यास लगती है तो यह भी डायबिटीज के लक्षण हो सकते हैं. आपके ज्यादा प्यास लगने का सबसे बड़ा कारण आपका बार-बार टॉयलेट जाना है. ज्यादा भूख लगना, मुंह का सूखना या फिर एक दम से वनज बढ़ना या घटना भी टाइप- 2 डायबिटीज के लक्षण हैं।

अधिक थकान महसूस होना

अगर पूरी नींद लेने के बाद भी आपको थकान महसूस होती है तो ये भी चिंता का विषय हो सकता है. दरअसल, डायबिटीज से पीड़ित लोगों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट सही तरह से ब्रेक नहीं हो पाता है. इस वजह से खाने से मिलने वाली एनर्जी शरीर को पूरी तरह से नहीं मिलती है. थकान डायबिटीज टाइप 2 के आम लक्षणों में से एक है जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं.

बिना किसी वजह का वजन कम होना 

अगर आपका वजन बिना किसी वजह के कम हो रहा है तो ये डायबिटीज  का लक्षण हो सकता है. डायबिटीज़ एक मेटाबॉलिक समस्या है जिसमें आपके शरीर में ब्लड शुगर स्तर उच्च होता है. इसके दो कारण हो सकते हैं, या तो ये कि आपके शरीर में इंसुलिन का निर्माण न हो पा रहा हो या फिर ये कि आपका शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं कर पा रहा हो, या फिर ये दोनों ही कारण हो सकते हैं.

आंखों से धुंधला दिखाई देना 

डायबिटीज के लक्षणों में एक लक्षण ये भी है कि इस बीमारी में आंखों की रोशनी पर फर्क पड़ता है और आपको धुंधला दिखाई देता है. डायबिटीज की समस्या आपके आंखों के रेटिना औऱ उसकी महीन रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करती है, अगर समय पर इसका पता ना लगाया जाए तो आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक समस्या का सामना करना पड़ सकता है. इसके कारण आपके आंखों में सूजन आ जाती है औऱ यह सूजन आपकी आंखों में अनावश्यक रक्त वाहिकाएं बढा देती है जिससे खून आने की समस्या भी हो सकती है.

घाव का जल्दी ठीक नहीं होना 

डायबिटीज रोगियों में त्वचा का संक्रमण या घाव का रहता है खतरा. डायबिटीज के मरीजों को चोट लगने से परहेज करना चाहिए अन्यथा घाव जल्दी ठीक नहीं होता है, और कई बार तो पस बनने लगती है और इंसान के अंग को काटना भी पढ़ता है। इसके अलवा डायबिटीज के मरीज को जब चोट लगती है तो खून का बहना भी जल्द बंद नहीं होता है कई बार बहुत ज्यादा खून बह जाने से इंसान की जान चली जाती है।


Monday 14 December 2020

वर्तमान कोरोनाकाल में विटामिन ई की कमी आपको बीमार बना सकती है - विटामिन ई की कमी दूर करने के उपाय

वर्तमान कोरोनाकाल में विटामिन ई की कमी आपको बीमार बना सकती है - विटामिन ई की कमी दूर करने के उपाय
विटामिन ई हमारी बॉडी के लिए जरूरी पोष्क तत्व है जिसकी कमी से शरीर में कई तरह के रोग होने लगते हैं। विटामिन ई वसा में घुलनशील एक विटामिन है। इसकी मुख्य भूमिका एक एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करना है। कोरोनाकाल में बॉडी में विटामिन ई की कमी को जांचना बेहद जरूरी है। विटामिन ई इम्यून सिस्टम को वायरस और बैक्ट्रिया के खिलाफ मजबूत रखने के लिए मदद करता है। जब हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई नहीं मिल पाता तो हमारे शरीर में विटामिन ई की कमी होती है। विटामिन ई की आवश्यकता पुरूष और महिलाओं में उम्र और शारीरिक स्थिति के मुताबिक अलग-अलग होती है।

विटामिन ई की कमी के लक्षण: खड़ा होने में तकलीफ होना, मांस पेशियों का कमजोर होना, आंखों से धुंधला दिखाई देना, पाचन का कमजोर होना और तंदुरुस्त महसूस नहीं होना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है।
विटामिन ई की जांच और उसकी भरपाई:
मो ^^8460783401
खून में विटामिन ई की कमी को कुछ टेस्ट करके आसानी से जांचा जा सकता है। इस विटामिन की कमी की भरपाई डाइट के जरिए आसानी से की जा सकती है। आइए हम आपको बताते हैं कि आप अपनी डाइट में किन चीजों का सेवन करके विटामिन ई की कमी को दूर कर सकते हैं।

सूरजमुखी के बीज देंगे भरपूर विटामिन ई:

सूरजमुखी के बीज में विटामिन ई के अलावा मैग्नीशियम, कॉपर, विटामिन बी1, सेलेनियम और फाइबर मौजूद रहता है। आप सूरजमुखी के बीज को अपने ब्रेकफास्ट में बेहद आसानी से शामिल कर सकते हैं।
बादाम:

बॉडी में विटामिन ई की कमी को दूर करना है तो बादाम का सेवन करें। तकरीबन एक औंस बादाम से आपको 7.3 मिलीग्राम विटामिन ई प्राप्त होता है। वैसे बादाम के सेवन से आपकी याददाश्त तेज होती है, वजन कंट्रोल रहता है, मोटापा और दिल की बीमारियों का जोखिम भी कम होता है।

पाइन नट:

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक बादाम की तरह ही पाइन नट्स में भी विटामिन ई पाया जाता है। दो टेबलस्पून पाइन नट से आपको करीबन 3 मिलीग्राम विटामिन ई प्राप्त होता है।
एवोकैडो:

एवोकाडो कई पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है, जैसे पोटेशियम, ओमेगा −3 एस, और विटामिन सी और विटामिन के। आधा एवोकाडो भी आपके विटामिन ई की दैनिक आवश्यकता का 20 प्रतिशत तक होता है। वैसे आम और कीवी में भी विटामिन ई होता है, लेकिन एवोकाडो में विटामिन ई की मात्रा अधिक पाई जाती है।

पीनट बटर:

मूंगफली और उसकी मदद से बनने वाले मक्खन में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। महज दो टेबलस्पून पीनट बटर के सेवन से आप अपने शरीर के विटामिन ई की दैनिक आवश्यकता का 18 प्रतिशत प्राप्त कर सकते हैं। 

 




 

Saturday 12 December 2020

गिलोय के फायदे व उपयोग - उत्तम जैन (प्राकृतिक चिकित्सक)

गिलोय के फायदे - आयुर्वेद में अमृत तुल्य माने जाने वाली गिलोय को अमृता भी कहा जाता है गिलोय मानव जाति के लिए कितनी फायदेमंद है पढ़े 
1- डायबिटीज:-विशेषज्ञों के अनुसार गिलोय हाइपोग्लाईसेमिक एजेंट की तरह काम करती है और टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित रखने में असरदार भूमिका निभाती है। गिलोय जूस (giloy juice) ब्लड शुगर के बढे स्तर को कम करती है, इन्सुलिन का स्राव बढ़ाती है और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम करती है। इस तरह यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।  

2- डेंगू:-डेंगू से बचने के घरेलू उपाय के रुप में गिलोय का सेवन करना सबसे ज्यादा प्रचलित है। डेंगू के दौरान मरीज को तेज बुखार होने लगते हैं। गिलोय में मौजूद एंटीपायरेटिक गुण बुखार को जल्दी ठीक करते हैं साथ ही यह इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है जिससे डेंगू से जल्दी आराम मिलता है।
3- अपच:-अगर आप पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, एसिडिटी या अपच से परेशान रहते हैं तो गिलोय आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। गिलोय का काढ़ा, पेट की कई बीमारियों को दूर रखता है। इसलिए कब्ज़ और अपच से छुटकारा पाने के लिए गिलोय का रोजाना सेवन करें।

4- खांसी;-अगर कई दिनों से आपकी खांसी ठीक नहीं हो रही है तो गिलोय  का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है। गिलोय में एंटीएलर्जिक गुण होने के कारण यह खांसी से जल्दी आराम दिलाती है। खांसी दूर करने के लिए गिलोय के काढ़े का सेवन करें।

5- बुखार:-गिलोय या गुडूची (Guduchi) में ऐसे एंटीपायरेटिक गुण होते हैं जो पुराने से पुराने बुखार को भी ठीक कर देती है। इसी वजह से मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसे गंभीर रोगों में होने वाले बुखार से आराम दिलाने के लिए गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है।
6– इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक :-बीमारियों को दूर करने के अलावा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना भी गिलोय के फायदे  में शामिल है। गिलोय सत्व या गिलोय जूस (Giloy juice) का नियमित सेवन शरीर की इम्युनिटी पॉवर को बढ़ता है जिससे सर्दी-जुकाम समेत कई तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

7- पीलिया:-पीलिया के मरीजों को गिलोय के ताजे पत्तों का रस पिलाने से पीलिया जल्दी ठीक होता है। इसके अलावा गिलोय के सेवन से पीलिया में होने वाले बुखार और दर्द से भी आराम मिलता है। गिलोय स्वरस (Giloy juice) के अलावा आप पीलिया से निजात पाने के लिए गिलोय सत्व का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

कॅरोना आयुर्वेद दृष्टि में - एक उपचार

कोरोना एक कफ है, पर ये एक सूखा कफ है। हमारे डाक्टर जितनी भी एंटीबायटिक दवाईयां देते हैं वो कफ को सुखाने के लिए देते है लेकिन ये पहले ही सूखा हुआ कफ है तो इस पर कोई असर नहीं होता। इसी वजह से इसका इलाज अभी तक नहीं ढूंढा जा सका क्योंकि वो *अपने दायरे से हटकर नहीं सोच रहे।
पर आयुर्वेद में इसका बहुत ही सरल व सीधा निदान है। आयुर्वेद में कहा गया है कि कफ की बीमारी को काटना सबसे आसान है।
अब मैं इस बीमारी को काटने का सूत्र आपको समझाता हूं* जोकि पूर्णतः वैज्ञानिक है। आयुर्वेद के हिसाब से प्रत्येक खाद्य वस्तु के गुण बताएं गए है। जैसे हर खाद्य पदार्थ अपनी प्रकृति के अनुसार या तो कफनाशक (कफ को नष्ट करने वाले) होता है या कफवर्धक( कफ को बढाने वाले) होता है। अब जिसको कोरोना है उसको एक बंद कमरे में क्वारंटाईन करके हमें सीधा सा काम ये करना है कि उसको कफवर्धक खाद्य वस्तुओं को देना बंद करना है और ज्यादातर कफनाशक चीजों का सेवन कराना है।जब इस वायरस को अपने बढ़ने के लिए खाद्य पदार्थ ही नही मिलेगा और जो मिलेगा वह कफ को नष्ट करने वाला है तो मैं गारंटी देता हूं पांच दिन के अंदर यह नष्ट हो जाएगा और मरीज ठीक हो जाएगा।
अब कफवर्धक चीजों की लिस्ट देख लीजिए जो कि काफी लंबी हैः-
1. कोई भी घी, तेल,दूध, लस्सी,पनीर, दही।
2. प्याज, आलू, उडद की दाल, चने की दाल, अरबी, शकरकन्दी, फूलगोभी, बंदगोभी, शिमला मिर्च, टमाटर, लहसुन, मशरुम।
3. संतरा, सेब, केला, ग्लूकोज,
4.बिस्कुट, गेहूं का आटा, ब्रेड।

नोटः- अंग्रेजी डाक्टर यही गलती कर रहे है क्योंकि वो कफवर्धक चीजों का सेवन मरीज को करा रहे हैं।
कफनाशक चीजें देख लिजिए:
1. अदरक, हल्दी, तुलसी, काली मिर्च।
2. शिलाजीत, मुलेहठी, आमलकी रसायन, काला बांसा।
3. जौ की रोटी, मूंग दाल, घीया, तोरई, जीरा, सेंधा नमक,
4. मीठा अनार, चीकू, नारियल पानी।
मैं इसके पांच इलाज नीचे लिख रहा हूं, जिनमें से हर एक इलाज अपने आप में इसके निदान के लिए पर्याप्त है :

1. कोरोना मरीज को सिर्फ अदरख, हल्दी, तुलसी और काली मिर्च (पाउडर रुप में) का दूध देते रहे। गाय का दूध वो भी देशी हो तो सर्वोत्तम है। उसे कुछ और ना दे। दिन में तीन टाईम ये देते रहें। एक गिलास दूध में मिलाकर गर्म करके। हां वो पानी पी सकता है अगर चाहे तो, पर वो भी गर्म होना चाहिए। 5 दिन लगातार इस प्रक्रिया से मरीज पूर्णत स्वस्थ हो जाएगा और कोरोना खत्म हो जाएगा। इसे ऐसे समझें कफ का सोर्स बंद। कफ खत्म।
2. दिन में तीन टाईम दूध के साथ एक एक चम्मच शिलाजीत रोगी को दे। अर्थात तीन गिलास दूध और तीन चम्मच शिलाजीत। उसे कुछ और ना दे। शिलाजीत अत्यंत कफनाशक है। दिन में तीन टाईम ये देते रहें। एक गिलास दूध में मिलाकर गर्म करके। हां वो पानी पी सकता है अगर चाहे तो, पर वो भी गर्म होना चाहिए। 5 दिन लगातार इस प्रक्रिया से मरीज पूर्णत स्वस्थ हो जाएगा और कोरोना खत्म हो जाएगा। कफ नाशक चीजें इस कफजनित बीमारी को बहुत जल्द ठीक करेंगी।
3. एक चम्मच मुलेहठी को दूध के साथ दें। दिन में तीन बार। और हां दूध हमेशा गर्म ही होना चाहिए। उसे कुछ और ना दे। दिन में तीन टाईम ये देते रहें। एक गिलास दूध में मिलाकर गर्म करके। हां वो पानी पी सकता है अगर चाहे तो, पर वो भी गर्म होना चाहिए। 5 दिन लगातार इस प्रक्रिया से मरीज पूर्णत स्वस्थ हो जाएगा और कोरोना खत्म हो जाएगा। याद रखें ये शुगर के मरीज को ना दें क्योंकी मुलेहठी मीठी होने शुगर को बहुत ज्यादा बढा देती है।
4. अभ्रक भस्म (शतपुटी) शहद या मलाई या दुध में मिलाकर तीन वक्त दें खाली पेट। अभ्रक भस्म की मात्रा 1 ग्राम के आसपास होनी चाहिए। उसके लेने के दो घंटे बाद मरीज को एक गिलास दूध दें। ऐसा दिन में तीन बार करे। मरीज को और कुछ ना दे। लगातार पांच दिन यही प्रक्रिया चलनी चाहिए। हां गर्म पानी पी सकता है मरीज।
5.  काला बांसा को जलाकर उसकी राख शहद में मिलाकर दें। और दो घंटे बाद गाय का दूध दे एक गिलास गर्म। दिन में तीन बार ऐसा करे। लगातार पांच दिन यही करे।
दूध वैसे तो कफवर्धक है परन्तु गाय या बकरी का दूध में कफनाशक चीजें मिलाकर खाने से इसकी प्रवृत्ति बदल जाती है। भैंस का दूध ज्यादा कफवर्धक होता है बजाय की गाय या बकरी के दूथ के।इसके अलावा कुछ अन्य उपचार नीचे हैः
1. अन्य कफनाशक चीजों का सेवन। हां अनुपान रुप में सिर्फ गाय का गरम दूध ही लें।
2. जहां मरीज हो उस कमरे का तापमान 45-50 डिग्री तक रखें। उसे लगातार पसीना आएगा और उसका कफ जलना शुरु हो जाएगा। ये कोरोना के विकास के लिए विषम परिस्थिति का निर्माण करता है। जिससे इस वायरस को फैलने में स्वयं रुकावट हो जाएगी।
3. अगर पेशेंट में इतनी शक्ति है कि वो रनिंग कर सकता है तो वो आधा घंटा सवेरे आधा घंटा शाम को दौड लगाए चाहें कितना ही मंदी क्यों ना दौडा जाए पर लगातार आधा घंटा दौडते रहें। यहाँ विज्ञान ये है कि जब शरीर में मेहनत होती है तो सबसे पहले कफ जलता है। ऐसा करने से उसका कफ जलेगा। हां खान पान में ये ध्यान रखना है कि कोई भी कफवर्धक चीज ना ले। जौं की रोटी खाए। और घी या तोरी या मूंग की दाल खाए। वो भी कम।

   

Friday 11 December 2020

इम्यूनिटी पर होता है असर -आमला खाये सर्दियों में


सर्दियों  में आंवले  का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) सही बनी रहती है जिससे सर्दी-खांसी से बचा जा सकता है.

आंवला (Amla) एक ऐसा सूपर फूड है, जो सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है. आंवले में भरपूर मात्रा में विटामिन-सी (Vitamin-C), आयरन (Iron) और कैल्शियम (Calcium) पाया जाता है. आंवले की खास बात ये है कि इसको कई तरह से खाया जा सकता है. कुछ लोग आंवले का मुरब्बा खाते हैं, तो वहीं कुछ लोग आंवले का जूस, चटनी या अचार बनाकर अपनी पंसद अनुसार सेवन करते हैं. सर्दियों में गुड़ के साथ आंवले का सेवन करने से शरीर में गर्माहट बनी रहती है और कई बीमारियों से बचाव भी होता है. सर्दियों में आंवले का सेवन करने से इम्यूनिटी (Immunity) सही बनी रहती है जिससे सर्दी-खांसी से बचा जा सकता है. आइए आपको बताते हैं कि क्यों आपको ठंड के मौसम में आंवला जरूर खाना चाहिए.


इम्यूनिटी मजबूत करता है

आंवले में भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है. ये शरीर की इम्यूनिटी पावर मजबूत करने में मदद करता है जिससे शरीर बाहरी संक्रमण से बचा रहता है.

दिल के लिए फायदेमंद

आंवले में पाया जाने वाला विटामिन-सी दिल की सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. जो लोग बैड कोलेस्ट्रोल की समस्या से जूझ रहे हैं, उनको आंवले का सेवन जरूर करना चाहिए.

स्किन को खूबसूरत बनाए

स्किन की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए भी विटामिन सी जरूरी होता है. विटामिन सी के सेवन से स्किन टाइट रहती है. त्वचा पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती हैं. स्किन में ग्लो बना रहता है. इसके लिए आप चाहें तो दही में आंवले का पाउडर मिलाकर चेहरे पर लगा सकते हैं.

सूजन कम करता है

शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स हार्ट और स्किन के साथ शरीर की इम्यूनिटी पर भी बुरा असर डालते हैं. दरअसल, फ्री रेडिकल्स शरीर की सूजन के लिए भी जिम्मेदार होते हैं, जो कई सारी बीमारियों को जन्म देने का काम करते हैं. लेकिन आंवले में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स, फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रलाइज कर शरीर की सूजन को दूर करने में मदद करते है

Thursday 10 December 2020

सोरायसिस रोग - उपचार - परहेज

आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस वात और कफ दोषों के कारण होता है


सोरायसिस
 त्वचा से जुड़ी ऑटोइम्यून डिजीज है। इस रोग में त्वचा पर कोशिकाएं तेजी से जमा होने लगती हैं। सफेद रक्त कोशिकाओं के कम होने के कारण त्वचा की परत सामान्य से अधिक तेजी से बनने लगती है, जिसमें घाव (skin lesions) बन जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इन्वर्स सोरायसिस : शरीर के जो हिस्से मुड़ते हैं , वहां पर इसका सबसे ज़्यादा असर देखने को मिलता है. सोरायसिस एक स्किन संबंधी बीमारी है, जिसे स्किन का अस्थमा भी कहा जाता है। इसमें स्किन सेल्स काफी तेजी से बढ़ते हैं। इसमें स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी बन जाती है और वह छिल जाती है। 

इससे स्किन में शुष्कता आ जाती है और सफेद धब्बे पड़ जाते हैं  पस्ट्युलर सोरायसिस : इसमें लाल चकत्तों के इर्द-गिर्द सफेद चमड़ी जमा होने लगती है. - एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस : यह सोरॉसिस का सबसे ख़तरनाक रूप है जिसमें खुजली के साथ तेज़ दर्द भी होता है


सोयरायसिस रोग इतने प्रकार के होते हैंः-

प्लेक सोरायसिस (Plaque Psoriasis)

प्लेक सोरायसिस एक आम तरह का सोरायसिस है। 10 लोगों में 8 लोग इसी सोरायसिस के शिकार होते हैं। प्लेक सोरायसिस के कारण शरीर पर सिल्वर (चांदी) रंग और सफेद लाइन बन जाती है। इसमें लाल रंग के धब्बे के साथ जलन होने लगती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकती है, लेकिन ज्यादातर कोहनी, घुटने, सिर, पीठ में नीचे की ओर होती है। इसमें त्वचा पर लाल, छिलकेदार मोटे या चकत्ते निकल आते हैं। इनका आकार दो-चार मिमी से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है।

गटेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis)

यह अक्सर कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर होती है। यह छोटे-छोटे लाल-गुलाबी दानों के रूप में दिखाई पड़ती है। यह ज्यादातर हाथ के ऊपरी हिस्से, जांघ और सिर पर होती है। तनाव, त्वचा में चोट और दवाइयों के रिएक्शन के कारण यह रोग होता है।  इससे प्रभावित त्वचा पर प्लेक सोरायसिस की तरह मोटी परतदार नहीं होती है। अनेक रोगियों में यह अपने आप, या इलाज से चार छह हफ्तों में ठीक हो जाती है। कभी-कभी ये प्लाक सोरायसिस में भी परिवर्तित हो जाती है।

पस्चुलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis)

ये एक दुर्लभ तरह का रोग है। ये ज्यादातर वयस्क में पाया जाता है। इसमें अक्सर, हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लाल दानें हो जाते हैं, जिसमें मवाद हो जाता है। ये देखने में संक्रमित प्रतीत होता है। यह ज्यादातर हाथों और पैरों में होता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इसके कारण कई बार बुखार, मतली आदि जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। 

सोरियाटिक अर्थराइटिक (Psoriatic Arthritis)

ये सोरायसिस और अर्थराइटिस का जोड़ है। 70 फीसदी रोगियों में तकरीबन 10 साल की उम्र से इस सोरायसिस की समस्या रहती है। इसमें जोड़ों में दर्द, उंगलियों और टखनों में सूजन आदि जैसी समस्याएं होती हैं।

एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis)

इसमें चेहरे सहित शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लाल चकत्ते हो जाते हैं। शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है। हदय की गति बढ़ जाती है। यह पूरी त्वचा में फैल जाती है। इससे त्वचा में जलन भी होती है। इसमें खुजली, ह्रदय गति बढ़ने और शरीर का तापमान कम ज्यादा होने जैसी समस्याएं होती हैं। इसके कारण संक्रमण, निमोनिया भी हो सकता है

इन्वर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis)

इसमें स्तनों के नीचे, बगल, कांख, या जांघों के ऊपरी हिस्से में लाल-लाल बड़े चकत्ते बन जाते हैं। ये ज्यादा पसीने और रगड़ने के कारण होते हैं।

सोरायसिस रोग के लक्षण 

सोरायसिस होने पर ये लक्षण दिखाई देते हैंः-

  • त्वचा पर सूजन के साथ लाल चकत्ते होना
  • लाल चकत्तों पर सफेद पपड़ी जैसी मृत त्वचा होना
  • रूखी त्वचा होना और उसमें दरारें पड़ना, खून निकलना आदि
  • त्वचा के चकत्तों में दर्द होना
  • चकत्तों के आसपास खुजली और जलन महसूस होना
  • नाखून मोटे और उनमें दाग-धब्बे पड़ जाना
  • जोड़ों में दर्द और सूजन होना

सोरायसिस होने के कारण 

सोयरायसिस की समस्या इन कारणों से हो सकती हैः-

रोग प्रतिरोधक शक्ति के कमजोर होने से

जब शरीर की रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो जाती है, तो नयी कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैैं। यह त्वचा इतनी कमजोर होती है कि पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती हैं। इसमें लाल दाने और चकत्ते दिखाई देने लगते हैं। 


आनुवांशिक (वंशानुगत रूप से) 
रूप से

  • यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे को होती है।
  • अगर माता-पिता में से किसी एक को यह रोग है, तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 15% तक बढ़ जाती है।
  • अगर माता-पिता दोनों को यह बीमारी है तो बच्चों को यह रोग होने की सम्भावना 60% अधिक हो जाती है।

इन्फेक्शन (संक्रमण)

  • कई बार वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी इस रोग का कारण बनता है।
  • यदि आप गले के अलावा त्वचा के इंफेक्शन से पीड़ित हैं, तो ये सोरायसिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
  • यदि आपके घर में कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो यह समस्या आपको भी हो सकती है।

सोरायसिस होने के अन्य कारण

  • त्वचा पर कोई घाव जैसे- त्वचा कट जाना, मधुमक्खी काट लेना या धूप में त्वचा का झुलसना। यह सोयरासिस होने का कारण बन सकता है।
  • तनाव, धूम्रपान और अधिक शराब का सेवन करने से भी सोयरासिस से ग्रस्त हो सकते हैं।
  • शरीर में विटामिन डी की कमी होने, एवं उच्च रक्तचाप से संबंधित कुछ दवाइयां खाने से भी यह रोग होता है।
  • सोरायसिस से प्रभावित होने वाले अंग 

    सोरायसिस 20 से 30 वर्ष की आयु में होती है, जो शरीर के इन अंगों में हो सकती हैः-

    • हथेलियों
    • पांव के तलवे
    • कोहनी
    • घुटने
    • सोयसाइसिस पीठ पर अधिक होता है।
    • सोयराइसिस किसी भी उम्र में नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों को भी हो सकती है।

      सोरायसिस में आपका खान-पान 

      पोषण वाला भोजन नहीं खाने से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा तनाव और मानसिक विकार होने, शराब और धूम्रपान जैसी आदतों से भी सोरायसिस बढ़ सकता है। इसलिए सोयरासिस में आपका खान-पान ऐसा होना चाहिएः-

      • पौष्टिक भोजन का सेवन करें।
      • शराब, धूम्रपान आदि से दूर रहें।

      सोरायसिस में आपकी जीवनशैली 

      सोरायसिस में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए ताकि बीमारी जल्द ठीक हो सकेः-

      • तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
      • त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
      • सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।

      डॉक्टर की सलाह के बिना दवा ना लें

      दवा का साइड इफेक्ट भी सोरायसिस का कारण बनता है। दर्द-निवारक दवाएं, मलेरिया, ब्लडप्रेशर कम करने की दवाएं लेने से सोरायसिस की बीमारी हो सकती है। अगर बीमारी पहले से है तो अधिक बढ़ सकती है।

      शराब और धूम्रपान ना करें

      जो लोग नियमित रूप से मदिरापान और धूम्रपान करते हैं। उनको इस बीमारी का खतरा बहुत बढ़ जाता है।

    • सोरायसिस से ग्रस्त लोगों का आहार ऐसा होना चाहिएः-

      • अनाजपुराना चावलगेहूंजौ   दाल: अरहरमूंगमसूर दाल     फल एवं  सब्जीया सहजनटिण्डापरवललौकीतोरईखीराहरिद्रालहसुनअदरकअनारजायफल  अन्यअजवाइनशुंठीसौंफहिंगकाला नमकजीरालहसुनगुनगुना पानी का सेवन करें

सोरायसिस से ग्रस्त लोगों को इनका सेवन नहीं करना चाहिएः-

  • अनाजनया धानमैदा,
  • दालचनामटरउड़द
  • फल एवं सब्जियांपत्तेदार सब्जियाँ– सरसोंटमाटरबैंगननारंगीनींबूखट्टे अंगूरआलूकंदमूल
  • अन्यदहीमछलीगुड़दूधअधिक नमककोल्ड्रिंक्ससंक्रमित/फफूंदी युक्त भोजनअशुद्ध एवं संक्रमित जल
  • सख्त मनातैलीय मसालेदार भोजनमांसहार और मांसाहार सूपअचारअधिक तेलअधिक नमककोल्डड्रिंक्समैदे वाले पर्दाथशराबफास्टफूडसॉफ्टडिंक्सजंक फ़ूडडिब्बा बंद खाद्य पदार्थतला हुआ एवं कठिनाई से पाचन वाला भोजन
  • विरुद्ध आहारमछली + दूध      
  • सोरायसिस की बीमारी में आपकी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिएः-
    • दिन में न सोएं।
    • भोजन के बाद टहलें।
    • पहले वाला भोजन पचे बिना न खाएं।
    • हल्का व्यायाम करें।
    • तनाव मुक्त जीवनशैली जीने की कोशिश करें।
    • त्वचा को सूखा रखने की कोशिश करें।
    • सूरज की तेज रोशनी से त्वचा की रक्षा करें।
    • गुस्साडरऔर चिंता न करें।
    • पेशाब और शौच को न रोकें।
    • आसमान में बादल होने पर ठंडे जल का सेवन करें।
    • पूर्वी हवाओं का अत्यधिक सेवन करें।      
    • गर्म पानी में सेंधा नमक, मिनरल ऑयल, दूध या जैतून का तेल मिलाएं और उससे नहाएं। यह त्वचा को राहत प्रदान करती है और लालीपन औ जलन को भी कम करती है। नहाने के तुरंत बाहर मॉइश्चराइजर लगाएं। स्वस्थ आहार का सेवन करना सोरायसिस के दौरान एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 
    • आयुर्वेद मे  कुछ औषधिया पंचतिक्त गुगग्लू ,आरोग्यवर्धनी बटी , तालकेश्वर रस , गंधक रसायन , महा मंजिस्था घन , खदिरारिष्ट सहित अनेक औषधी उपयोगी है मगर बिना आयुर्वेदचार्य की सलाह से न लेवे - ज्यादा जानकारी के लिए - 8460783401 

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