Friday 30 October 2020

बवासीर रोग उसके कारण व उपचार

 




बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कहीं पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।

1- खूनी बवासीर :- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाता है।

2-बादी बवासीर :- बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर में बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अँग्रेजी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम कैंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।

रोग निदान के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में कुछ घरेलू उपायों द्वारा रोग की तकलीफों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिये तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात में सेवन करें। तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें। रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है। गुदा के भीतर रात के सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवायुक्त बत्ती या क्रीम का प्रवेश भी मल निकास को सुगम करता है। गुदा के बाहर लटके और सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नेशियम सल्फेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधने से भी लाभ होता है। मलत्याग के पश्चात गुदा के आसपास की अच्छी तरह सफाई और गर्म पानी का सेंक करना भी फायदेमंद होता है। यदि उपरोक्त उपायों के पश्चात भी रक्त स्राव होता है तो चिकित्सक से सलाह लें। इन मस्सों को हटाने के लिये कई विधियां उपलब्ध है। मस्सों में इंजेक्शन द्वारा ऐसी दवा का प्रवेश जिससे मस्से सूख जायें। मस्सों पर एक विशेष उपकरण द्वारा रबर के छल्ले चढ़ा दिये जाते हैं, जो मस्सों का रक्त प्रवाह अवरूध्द कर उन्हें सुखाकर निकाल देते हैं। एक अन्य उपकरण द्वारा मस्सों को बर्फ में परिवर्तित कर नष्ट किया जाता है। शल्यक्रिया द्वारा मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है।


बवासीर दो प्रकार की होती है - खूनी बवासीर और बादी वाली बवासीर। खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है और उनसे खून गिरता है जबकि बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है और मस्सों में खाज पीडा और सूजन होती है। अतिसार, संग्रहणी और बवासीर यह एक दूसरे को पैदा करने वाले होते है।

मनुष्य की गुदा में तीन आवृत या बलियां होती हैं जिन्हें प्रवाहिणी, विर्सजनी व संवरणी कहते हैं जिनमें ही अर्श या बवासीर के मस्से होते हैं आम भाषा में बवासीर को दो नाम दिये गए है बादी बवासीर और खूनी बवासीर। बादी बवासीर में गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रकाल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है। रोगजनक अर्श के लक्षण उपस्थित प्रकार पर निर्भर करते हैं। आंतरिक अर्श में आम तौर पर दर्द-रहित गुदा रक्तस्राव होता है जबकि वाह्य अर्श कुछ लक्षण पैदा कर सकता है या यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) हो तो गुदा क्षेत्र में काफी दर्द व सूजन होता है। बहुत से लोग गुदा-मलाशय क्षेत्र के आसपास होने वाले किसी लक्षण को गलत रूप से “बवासीर” कह देते हैं जबकि लक्षणों के गंभीर कारणों को खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि बवासीर के सटीक कारण अज्ञात हैं, फिर भी कई सारे ऐसे कारक हैं जो अंतर-उदर दबाव को बढ़ावा देते हैं- विशेष रूप से कब्ज़ और जिनको इसके विकास में एक भूमिका निभाते पाया जाता है।

हल्के से मध्यम रोग के लिए आरंभिक उपचार में फाइबर (रेशेदार) आहार, जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से लिए जाने वाले तरल पदार्थ की बढ़ी मात्रा, दर्द से आराम के लिए NSAID (गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवा) और आराम, शामिल हैं। यदि लक्षण गंभीर हों और परम्परागत उपायों से ठीक न होते हों तो अनेक हल्की प्रक्रियाएं अपनायी जा सकती हैं। शल्यक्रिया का उपाय उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनमें इन उपायों का पालन करने से आराम न मिलता हो। लगभग आधे लोगों को, उनके जीवन काल में किसी न किसी समय बवासीर की समस्या होती है। परिणाम आमतौर पर अच्छे रहते हैं 

  • बवासीर के रोगी को बादी और तले हुये पदार्थ नही खाने चाहिये, जिनसे पेट में कब्ज की संभावना हो
  • हरी सब्जियों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिये,
  • बवासीर से बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि शौच करने उपरान्त जब मलद्वार साफ़ करें तो गुदा द्वार को उंगली डालकर अच्छी तरह से साफ़ करें, इससे कभी बवासीर नही होता है। इसके लिये आवश्यक है कि मलद्वार में डालने वाली उंगली का नाखून कतई बडा नही हो, अन्यथा भीतरी मुलायम खाल के जख्मी होने का खतरा होता है। प्रारंभ में यह उपाय अटपटा लगता है पर शीघ्र ही इसके अभ्यस्त हो जाने पर तरोताजा महसूस भी होने लगता है।
  • सबसे पहले रोग में मुख्य कारण कब्ज को दूर करना चाहिए जिसके लिए ठण्डा कटि स्नाना व एनिमा लेना चाहिए पेट पर ठण्डी मिट्टी पट्टी रखनी चाहिए लेकिन यदि सूजन ज्यादा हो तो एनिमा लेने की बजाय त्रिफला आदि चूर्ण का सेवन करना चाहिए गुदा पर ठण्डी मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए। और सूजन दूर होने पर ही तेज आदि लगाकर एनिमा लेना चाहिए। उपवास करना चाहिए और यदि उपवास ना कर सके तो फलाहार या रसा हार पर रखना चाहिए और साथ-साथ आसन, प्राणायाम, कपाल भाति आदि करने से इस भयंकर रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

    बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार • डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेते रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग 4- 5 दिन में एक बार करें। 3 बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है। साथ में हरड या बाल हरड का नित्य सेवन करने और अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से लाभ मिलता है। • नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है। • करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे। • अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। आप लेक्टूलोज़ जैसी सौम्य रेचक औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। • आराम पहुंचानेवाली क्रीम, मरहम, वगैरह का प्रयोग आपको पीड़ा और खुजली से आराम दिला सकते हैं। • ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती। बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह। बवासीर की रोकथाम: • अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें। • तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें http://www.vinayayurveda.com 




Wednesday 28 October 2020

फुटपाथ की चाट खाना कितना हानिकारक


                       संसार में प्रत्येक जीव ,वृक्ष ,जंतु को भोजन अनिवार्य हैं .मानव को तो गर्भ से ही माता से भोजन ,पोषण मिलता हैं .और वह उन्ही पर निर्भर रहता हैं .इसीलिए माँ को गर्भस्थ शिशु हेतु उचित आहार विहार की व्यवस्था की जाती हैं और उसके पोषण के अनुसार गर्भस्थ शिशु का विकास होता हैं .इसी प्रकार पेड़ पौधों को भी पोषण की जरुरत होती हैं .शिशु के जन्मते ही उसे स्तनपान की जरुरत होती हैं .और इस समय माँ को यह निर्देशित किया जाता हैं की वह पथ्य,अपथ्य का ख्याल रखे .उसके आहार का प्रभाव नवजात  शिशु पर उसके स्तनपान से पड़ता हैं .जैसे जैसे शिशु बढ़ता हुआ चलने फिरने लगता हैं वैसे वैसे उसकी रूचि बढ़ती जाती हैं .और फिर स्कूल ,कॉलेज ,ऑफिस शादी  विवाह के बाद जीवन में बदलाव आता हैं .
                         वर्तमान में समय का अभाव,आर्थिक सम्पन्नता  और आलस्य के कारण घरों में चटपटी चीज़ों को बनाने का चलन प्रायः कम या बंद हो गया और चटकोरी जिव्हा होने के कारण बाहर का या होटल का या सड़क किनारे खड़े ठेलों के द्वारा अपनी रूचि के अनुसार चाट खाना शुरू होता हैं ..बाजार के गोलगप्पे ,कचोरी समोसा ,भेलपुरी आदि सबको आकर्षित करती हैं .पर भारत में जबतक सड़क के किनारे की चाट न खाये तब तक उसे संतुष्टि नहीं होती ऐसा क्यों ? ये फुटपाथ की चाट हो या सुसज्जित होटल की चाट हमारे जेबों पर डाका डालती हैं और इसके अलावा क्या खिलाया जाता हैं किसी को नहीं मालूम .फुटपाथ की चाट बिना भेदभाव के गरीब अमीर को पसंद होती हैं पर ये सब इंद्रधनुषी और चकाचौध वाली होती हैं .चाट खाने में कोई बुराई नहीं हैं पर  क्या खा रहे हैं ,यह समझना /जानना जरुरी होना चाहिए .जो भी खा रहे हैं वे कितनी साफ़ शुद्ध और स्वच्छतापूर्ण हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक न हो .
                                  अधिकांश  होटल या फुटपाथ की चाट या खाने पीने की वस्तुओं में सफाई न होने से चूहे आदि का मल अधिकांश पाया जाता हैं कारण उनके यहाँ घर जैसी सफाई या देखरेख नहीं होती .फुटपाथ के खाने में इ कोलाई बेक्टेरिया की अधिकतम मात्रा पायी जाती हैं जिससे दस्त ,उलटी या दोनों की संभावना होती हैं .हमारे मष्तिस्क में यह धारणा रहती हैं की इस स्थानों पर शुद्ध खाना मिलता हैं .आपने ध्यान दिया होगा की फुटपाथ पर ठेला लगाने वाले जन सुविधाओं से निकटतम स्थान पर ,खुले  स्थान पर या किसी कोने में लगते हैं जहाँ नाली .या गटर  की गन्दगी होती हैं ,अधिकतर चाट या होटल के नजदीक सैलून होते हैं ,ऐसे स्थानों पर शुद्धता ,सफाई कैसे हो सकती हैं ! बहुत कम चाट वाले अपने हाथों में दस्ताने पहनकर बनाते और परोसते हैं .इसके अलावा भेलपुरी वाले कच्चे प्याज़, आलू ,धनिया ,मिर्ची ,नीबू ,नमक का खुले में उपयोग करते हैं जहाँ मख्खिया भिनभिनाती हैं और वे गंदे हाथों से बनाते हैं .जिससे बीमार होने  की संभावना बनी रहती हैं .
                         इसी प्रकार फलों के रस की दूकान और ठेलों में भी बहुत बीमारी होने का खतरा होता हैं .जहाँ तक हो अपने विश्वनीय फल विक्रेता से ही फल खरीदना  उचित होता हैं कारण फलों को रसायनों से भी पकाया जाता हैं ,रासायनिक फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं जबकि हम स्वास्थ्यवर्धन के लिए खाते हैं ..खासतौर पर यह सुनिश्चित नहीं रहता की उनके द्वारा जो बर्तन उपयोग किये जाते हैं वे कितने साफ़ सुथरे होते हैं .कभी कभी यह भी देखा जाता हैं की होटल वाले अपनी कढ़ाई आदि बाहर रख देते हैं जिसे कुत्ते ,अन्य जानवर चाटकर साफ़ करते हैं .रस में जो बर्फ डाला जाता हैं वह बहुत गंदे पानी से बनता हैं और विशेषकर मेडिकल कॉलेजों या हॉस्पिटल जहाँ पर शवगृह होते हैं उनके पास के रस विक्रेता शवगृह का बर्फ उपयोग करते हैं ! गर्मियों में लम्बी कतारों में रस की दुकानों में  शुद्ध रस कीआवाज़ लगाते हैं उनके यहाँ अधिकांश कटे ,खुले फलो का उपयोग होता हैं और तपती गर्मी में वे फल ताज़े हो नहीं सकते .जिनमे मख्खियां ,चीटियां ,भुनगे भिनभिनाते रहते हैं .इसी कारण घातक बिमारियों के साथ पीलिया होने की संभावना होती हैं .यह सामान्य मान्यता हैं की फलों को ढंककर ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए .न होने पर दूषित और विषैले होने लगते हैं .इसके न होने पर संक्रमण होने का अवसर अधिकतर होता हैं .
                          इनसे बचने के लिए कुछ उपाय की आवश्यकता होती हैं .जहाँ तक हो बाहर की चाट न खाये ,यदि खाये तो उचित स्थान से खाये ,खाने के पहले उस चाट ठेले के उपयोग होने वाले बर्तन और परोसने वाले बर्तनों की सफाई ठीक हैं या नहीं .आसपास कोई गन्दगी तो नहीं हैं .बेचने वाला दस्ताने का उपयोग या  सफाई का ध्यान रखता हैं या नहीं .जहाँ तक बिना बर्फ का फलो का रस का उपयोग करे व उस दुकान के जग ,गिलास साफ़ हैं या नहीं .कटे सड़े फलों का उपयोग तो नहीं हो रहा हैं .होटल या फूटपाथकी चाट की सफाई की बात करे तो वह होना संभव नहीं हैं .यह मान्यता मिलने लगी की होटल या चाट दुकान में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता हैं पर व्यवहारिक धरातल में उतनी नहीं हैं .इसके लिए जरुरी हैं की स्वच्छत्ता की जरुरत बहुत होती हैं .आजकल सामान्य बीमारी होने पर लाखो रुपये खर्च होना मामूली बात हैं .साथ ही उसने द्वारा उपयोग करने वाला कपड़ा का बहुत महत्व होता हैं ,कारण उससे वे सब काम करते हैं और उस गंदे कपडे के द्वारा बीमारियां आसानी से फैलने लगती हैं .इसके लिए उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला कपडा गरमपानी में डाल कर सर्फ़ आदि से धो कर उपयोग करना चाहिए .तथा होटल वालों को थोड़े लोभ के कारण घटिया सामग्री उपयोग नहीं करना चाहिए .और उनको इस भांति सामग्री निर्मित की जानी चाहिए जिसे वे स्वयं उपयोग कर सके ,नहीं तो पता चला वह दूसरी दुकान पर चाट खाने जाता हैं .
                 होटल का खाना आमतौर पर बंद करना संभव न हो तो कम से ऐसे स्थान का चयन करे जहाँ साफ़ सफाई ,उच्चतम क्वालिटी का सामान उपयोग होता हों अन्यथा खाने के बाद रोगों को आमंत्रण देने की अपेक्षा न खाये या घर में बनाये.आजकल संदिग्ता/शक /संदेह  करना जरुरी हैं .चाट खाना मना नहीं हैं वशर्ते वे सफाई से बने जिससे हमारा स्वाद भी बना रहे और बिना आमंत्रण के कोई रोग न फैले .
            

पेट की गैस


 

पेट में गैस (pet me gas) की समस्या को पेट में वायु बनना या गैस बनना आदि भी बोला जाता है। इसे पेट या आँतों की गैस और पेट फूलना भी कहते हैं। आजकल अस्वस्थ आहार और सुस्त जीवनशैली के कारण पेट में गैस की समस्या होना आम बात हो गई है। आयुर्वेद के अनुसार, पेट के जितने भी रोग हैं वे सभी शरीर के त्रिदोष के कारण होते हैं। इसलिए वात, पित्त, कफ दोषों को शांत करके पेट के रोग जैसे गैस की समस्या (gas ki problem ka ilaj) को ठीक किया जा सकता है।

गैस की बीमारी स्वतंत्र रोग न होकर पाचनतंत्र से संबंधित खराबी के कारण होने वाली बीमारी है। कई बार गैस के कारण इतना तेज दर्द होने लगता है कि बीमारी गंभीर बन जाती है। इतना ही नहीं पेट में गैस होने पर अनेक तरह की बीमारियां होने की संभावना भी बन जाती है। इसलिए आइए जानते हैं कि पेट में गैस की समस्या क्यों होती है, गैस की समस्या से होने वाले रोग कौन-कौन से हैं, और पेट में गैस होने पर घरेलू इलाज कैसे किया जाना चाहिए।

पेट में गैस होना क्या है? (What is Gas?)

जब खाना खाते हैं तब पाचनक्रिया के दौरान हाइड्रोजन, कार्बनडाइऑक्साइड और मिथेन गैस निकलता है जो गैस या एसिडिटी होने का कारण बनता है। जठराग्नि की कमजोरी से मल, वात आदि रोग हो जाते हैं। इससे अन्य कई रोग होने लगते हैं। मल की अधिकता के कारण जठराग्नि कमजोर होने लगती है। जब पाचन सही प्रकार से नहीं होता है तो पेट में बनने वाली अपान वायु तथा प्राण वायु बहार नहीं निकल पाती है। गैस से होने वाले रोग से बचने के लिए आपको आयुर्वेदिक उपाय करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त, कफ को शांत करके पेट में गैस की समस्या को ठीक किया जा सकता है। तीनों दोषों को शांत करने के लिए जौ, मूँग, दूध, आसव, मधु, इत्यादि का सेवन करना चाहिए

पेट में गैस बनने के लक्षण (Symptoms of Gas in Hindi)

पेट में गैस बनने पर पेट में दर्द होने लगता है, लेकिन इसके अलावा और भी लक्षण है जो एसिडिटी होने पर नजर आते हैं-

  • सुबह जब मल का वेग आता है तो वो साफ नहीं होता है और पेट फूला हुआ प्रतीत होता है।
  • पेट में ऐंठन और हल्के-हल्के दर्द का आभास होना।
  • चुभन के साथ दर्द होना तथा कभी-कभी उल्टी होना।
  • सिर में दर्द रहना भी इसका एक मुख्य लक्षण हैं।
  • पूरे दिन आलस जैसा महसूस होता है

    पेट में गैस बनने के कारण (Causes of Gas in Hindi)

    आयुर्वेद में वात, पित्त एवं कफ इन तीन दोषों के असंतुलन से ही सारे रोग होते हैं, तथा इनके सामान्य अवस्था में रहने से व्यक्ति रोगरहित रहता है। उदररोगों में उदरवायु सबसे आम समस्याओं में से एक देखी जाती है, यह वात के कारण होने वाला रोग है। अनुचित आहार-विहार के कारण वात प्रकुपित होकर अनेक रोगों को जन्म देता है तथा पेट में गैस की समस्या से व्यक्ति को जूझना पड़ता है। आयुर्वेद में वायु के पाँच प्रकार बताए गए हैं- प्राण, उदान, समान, व्यान एवं अपान वायु। उदर वायु समान एवं अपान वायु की विकृति से उत्पन्न होती है। लेकिन इसके पीछे बहुत सारे आम कारण होते हैं जिनके वजह से गैस होती है, चलिये इनके बारे में पता लगाते हैं।

    • अत्यधिक भोजन करना
    • बैक्टीरिया का पेट में ज्यादा उत्पादन होना
    • भोजन करते समय बातें करना और भोजन को ठीक तरह से चबाकर न खाना।
    • पेट में अम्ल का निर्माण होना।
    • किसी-किसी दूध के सेवन से भी गैस की समस्या हो सकती है।
    • अधिक शराब पीना
    • मानसिक चिंता या स्ट्रेस
    • एसिडिटी, बदहजमी, विषाक्त खाना खाने से, कब्ज और कुछ विशेष दवाओं के सेवन
    • मिठास और सॉरबिटोल युक्त पदार्थों के अधिक सेवन से गैस बनता है।
    • सुबह नाश्ता न करना या लम्बे समय तक खाली पेट रहना।
    • जंक फूड या तली-भुनी चीजें खाना।
    • बासी भोजन करना।
    • अपनी दिनचर्या में योग और व्यायाम को शामिल न करना।
    • बीन्स, राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल का अधिक सेवन करना।
    • कुछ खाद्य पदार्थों से कुछ लोगों को गैस बन जाता है जबकि कुछ लोगों को उससे कोई गैस नहीं बनता है जैसे; सेम, गोभी, प्याज, नाशपाती, सेब, आडू, दूध और दूध उत्पादों से अधिकांश लोगों को गैस बनती है।
    • खाद्य पदार्थ जिनमें वसा या प्रोटीन के बजाय कार्बोहाइड्रेट का प्रतिशत ज्यादा होता है, के खाने से ज्यादा गैस बनती है।
    • भोजन में खाद्य समूह में कटौती की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि आप अपने आप को आवश्यक पोषक तत्वों से वंचित भी नहीं रख सकते हैं, अक्सर, जैसे ही एक व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, कुछ एंजाइमों का उत्पादन कम होने लगता है और कुछ खाद्य पदार्थों से अधिक गैस भी बनने लगती है।
    • यहां तक कि स्तनपान करने वाले शिशुओं में उदरवायु यानि पेट में दर्द होने की समस्या अक्सर देखी जाती है। उचित प्रकार से स्तनपान न कराने या माता द्वारा वात बढ़ाने वाले आहार लेने से ऐसी समस्या हो जाती है। वहीं भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों में वातवर्धक आहार, फास्ट फूड, जंक फूड इन सब के सेवन से उदरवायु की समस्या देखी जाती है

      पेट में गैस बनने से रोकने के उपाय 

      अगर खाना खाने के बाद एसिडिटी हो रहा है या हमेशा किसी न किसी कारण गैस का प्रॉबल्म हो रहा है तो इसको रोकने के लिए अपने आहार योजना और जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए।

      सबसे पहले आहार योजना के बारे में जानते हैं-

      • क्योंकि पेट में गैस वात दोष के कारण होने वाली समस्या है अत वातशामक आहार एवं उचित जीवनशैली के द्वारा गैस की समस्या से राहत (pet me gas ke upay) मिलती है।
      • अपने आहार में बदलाव करें- सेम, गोभी, प्याज जैसे खाद्य पदार्थ की मात्रा का ध्यान रखें, हालांकि, इससे पहले कि आप इन चीजों को खाना छोड़ दे एक या दो सप्ताह इन्हें खाकर यह पता लगा लें कि आपकों किस चीज से नुकसान पहुँचता है, अपने आहार का ट्रैक रखें।
      • मिठास या सॉरबिटोल युक्त उत्पादों से बचें, जो चीनी मुक्त मिठाई और कुछ दवाओं में प्रयोग किया जाता है।
      • चाय और रेड वाइन भी अधोवायु को रोकने में मदद करता है
      • अब आता है जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाने से गैस से राहत मिल सकती है,जैसे-

        • सुबह उठकर प्राणायाम एवं योगासन करें।
        • भोजन को चबा-चबा कर खाएं, जल्दी-जल्दी भोजन न खाएं।
        • पवनमुक्तासन, वज्रासन तथा उष्ट्रासन करें।
        • वज्रासन, खाने के बाद करने से गैस होने से रोका जा सकता है। इसको करने के लिए घुटने मोड़कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें। 5 से 15 मिनट तक करें। गैस पाचन शक्ति कमजोर होने से होती है। यदि पाचन शक्ति बढ़ा दें तो गैस नहीं बनेगी। योग की अग्निसार क्रिया से आंतों की ताकत बढ़कर पाचन सुधरेगा।
        • वज्रासन करने से पेट में गैस नहीं बनती। योग की अग्निसार क्रिया से आँतों की ताकत बढ़कर पाचन में सुधार होता है।
        • सोडा और प्रीजरवेटिव युक्त जूस न पिएं।
        • पानी अधिक पिएं।
        • जंक फूड, बासी भोजन तथा दूषित पानी से जितना हो सके बचें।
        • पेट में गैस बनना आम बात है लेकिन कई बार इसकी वजह से सीने में भी दर्द होने लगता है। गैस भयंकर तरीके से सिर में चढ़ जाती है और उल्टियां तक आने लगती है। अगर आपको भी खतरनाक तरीके से गैस बनती है तो आप देसी दवाई की जगह घरेलू उपायों के जरिए इस बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं। दरअसल, गैस बनने से पेट फूलने लगता है और पाचन संबंधी दिक्कत पैदा हो जाती है। अगर आपको ज्यादा गैस बनती है तो इसे बिल्कुल भी हल्के में न लें क्योंकि इसकी वजह से आपको घातक पेट के रोग हो सकते हैं। पेट फूलने और गैस बनने पर आप घर में ही मौजूद चीजों से इसका इलाज कर सकते हैं और इस बीमारी से जड़ से छुटकारा पा सकते हैं
        • पेट में गैस की समस्या से छूटकारा पाने के आसान से घरेलू उपाय:

          1. नीबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।

          2. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।

          3. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।

          4. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।

          5. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
          6. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फादा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।

          7. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।

          8. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।

          9. पुदीने की पत्तियों को उबाल कर पीने से गैस से निजात मिलती है।

          10. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।

          11. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।

          12. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।

Monday 26 October 2020

योग ओर स्वास्थ्य

 

योग ओर स्वास्थ्य

योग एक ऐसी कला / प्रकिया है : जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का प्रयास किया जाता है ! इन तीनो के एक साथ आने से जो अनंत ऊर्जा मिलती है, यह ऊर्जा ही जीवनी-शक्ति कहलाती है ! इस शक्ति के द्वारा हम न सिर्फ एक अच्छा स्वास्थय प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को सार्थक और सफल बना सकते हैं ! यह जीवनी- शक्ति अनमोल है और योग द्वारा हम इसे आसानी के साथ हासिल कर सकते हैं 
व्यायाम का एक प्राचीन रूप जो भारतीय समाज में हजारों साल पहले विकसित हुआ था और तब से लगातार इसका अभ्यास किया जा रहा है। इसमें किसी व्यक्ति को अच्छे आकार में रखने के लिए और बीमारियों और अक्षमताओं के विभिन्न रूपों से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न प्रकार के अभ्यास शामिल हैं। यह ध्यान के लिए एक मजबूत तरीका भी माना जाता है जो मन और शरीर को शांत करने में मदद करता है। आज दुनिया भर में योग का अभ्यास किया जा रहा है। दुनिया भर के लगभग 2 अरब लोग योगाभ्यास करते हैं।
योग बहुत सुरक्षित है और किसी के द्वारा भी कभी भी बच्चों द्वारा सुरक्षित रूप से इसका अभ्यास किया जा सकता है। योग शरीर, मन और आत्मा का संतुलन बनाने के लिए शरीर के अंगों को एक साथ लाने का एक अभ्यास है। मन-शरीर संबंध को संतुलित करके प्रकृति से जुड़ने के लिए योग सबसे अनुकूल विधि है। यह एक प्रकार का व्यायाम है जो संतुलित शरीर के माध्यम से किया जाता है और आहार, श्वास और शारीरिक मुद्राओं पर नियंत्रण पाने की आवश्यकता होती है। यह शरीर के विश्राम के माध्यम से शरीर और मन के ध्यान से जुड़ा हुआ है।
यह तनाव और चिंता को कम करके शरीर और मस्तिष्क के उचित स्वास्थ्य प्राप्त करने के साथ-साथ मन और शरीर पर नियंत्रण करने के लिए बहुत उपयोगी है। बहुत सक्रिय और मांग करने वाले जीवन विशेष रूप से किशोरों और वयस्कों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए दैनिक आधार पर एक अभ्यास के रूप में योग किसी के द्वारा भी किया जा सकता है। यह स्कूल, दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों के जीवन के कठिन समय और दबाव का सामना करने में मदद करता है। योग अभ्यास के माध्यम से व्यक्ति अपनी समस्याओं और दूसरों द्वारा दिए गए तनाव को गायब कर सकता है। यह शरीर, मन और प्रकृति के बीच के संबंध को आसानी से पूरा करने में मदद करता है।
योग सभी के जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर और मन के बीच संबंधों को संतुलित करने में मदद करता है। यह व्यायाम का प्रकार है जो नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक अनुशासन सीखने में मदद करता है  योग में प्राणायाम और कपाल भांति शामिल हैं जो सबसे अच्छे और प्रभावी श्वास व्यायाम में से एक हैं। योग एक थेरेपी है जो नियमित रूप से अभ्यास करने पर धीरे-धीरे बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद करती है। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि योग व्यायाम का एक रूप है जिसमें शरीर के अंग को खींचना और मोड़ना शामिल है लेकिन योग सिर्फ व्यायाम से कहीं अधिक है। योग मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक पथ के माध्यम से जीवन जीने की कला या कला है। यह शांति प्राप्त करने और आंतरिक स्वयं की चेतना में टैप करने की अनुमति देता है।
यह सीखने में भी मदद करता है कि कैसे मन, भावनाओं और कम शारीरिक जरूरतों की खींचातानी से ऊपर उठकर दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। योग एक शरीर, मन और ऊर्जा के स्तर पर काम करता है।  योग का अभ्यास करने का एक मुख्य लाभ यह है कि यह तनाव को प्रबंधित करने में मदद करता है। तनाव इन दिनों आम है और एक के शरीर और दिमाग पर विनाशकारी प्रभाव पड़ने के लिए जाना जाता है। तनाव के कारण लोगों में स्लीपिंग डिसऑर्डर, गर्दन में दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, तेज हृदय गति, पसीने से तर हथेलियां, असंतोष, गुस्सा, अनिद्रा और ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
योग को समय की अवधि में इस प्रकार की समस्याओं को ठीक करने के लिए वास्तव में प्रभावी माना जाता है। यह ध्यान और साँस लेने के व्यायाम से तनाव को प्रबंधित करने में एक व्यक्ति की मदद करता है और एक व्यक्ति की मानसिक भलाई में सुधार करता है। नियमित अभ्यास से मानसिक स्पष्टता और शांति मिलती है जिससे मन शांत होता है