Tuesday 10 November 2020

एक टेस्ट - अर्थराइटिस के मरीजों के लिए फायदेमंद है व अर्थराइटिस ( गठिया) के कारण व घरेलू उपचार

 




जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है

सी रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्या है?

सी रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है, जो शरीर में सी रिएक्टिव प्रोटीन प्रोटीन की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। सीआरपी एक प्रोटीन है जिसे लिवर बनाता है। सीआरपी के जरिए शरीर में सूजन का भी पता लगाया जाता है। आमतौर पर हमारे रक्त में सी रिएक्टिव प्रोटीन की मात्रा कम होती है। 

सीआरपी का हाई लेवल कई गंभीर बीमारियों की तरफ इशारा करता है, लेकिन इससे शरीर में कहां और किस कारण सूजन है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। शरीर में सूजन के कारणों का पता लगाने के लिए डॉक्टर अन्य परीक्षण यानि टेस्ट की सलाह दे सकते हैं।

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्यों किया जाता है?

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट शरीर में सूजन का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट से शरीर में सूजन है या नहीं, इसका पता लगाया जाता है। हालांकि, यह टेस्ट शरीर में सूजन के कारणों की जानकारी नहीं देता है। अगर इस टेस्ट से शरीर में सूजन होने के बारे में पता चलता है, तो डॉक्टर आपको नीचे बताए गए टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं :

  1. अर्थराइटिस (Arthritis)
  2. ल्यूपस (Lupus)
  3. वाहिकाशोध

डेली रूटीन का सबसे ज्यादा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। ऐसे में हमे कई बीमारियों का शिकार होना पड़ता है। उन्हीं में से एक है अर्थराइटिस। ये एक ऐसी बीमारी है जो शरीर को काफी तकलीफ देने का काम करती है। पहले अर्थराइटिस को बड़ी उम्र की बीमारी माना जाता था। लेकिन आजकल युवाओं में भी इस बीमारी के काफी लक्षण देखे जा रहे हैं। वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन लोगों में शारीरिक मेहनत और व्यायाम में कमी और साथ ही खान-पान की गड़बड़ी और अनियमित जीवनशैली है इसका बड़ा कारण है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस, अर्थराइटिस का ही एक प्रकार है जो किसी भी उम्र के शख्स में हो सकता है। ये महिलाओं में काफी आम है और अक्सर मध्यम आयु में होता है। अर्थराइटिस के दूसरे प्रकार की तरह ही इसमें भी जोड़ों में सूजन और दर्द की समस्या होती है। जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस 

अगर आप भी रूमेटाइड अर्थराइटिस का शिकार है तो आपके जोड़ों में दर्द होता रहेगा। आपको बता दें कि इसका कारण ये है कि जोड़ों में सूजन रहती है। सूजन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो तब होती है जब आपका इम्यून सिस्टम बाहरी आक्रमणकारी (फॉरेन इनवेडर) पर हमला करता है।

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) एक प्रोटीन होता है। जिसका आपका लीवर बनाता है। ये प्रोटीन आपके खून में पाया जाता है। सूजन के समय आपके खून में सीआरपी का स्तर बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, जब आपको कोई इन्फेक्शन होता है तो आपके खून में सीआरपी स्तर बढ़ जाता है। जब इन्फेक्शन पर नियंत्रित हो जाता है तो उच्च सीआरपी स्तर गिर जाता है।

सीआरपी और रूमेटाइड अर्थराइटिस की पहचान

  • लैब टेस्ट, जैसे कि रूमेटाइड कारक की पहचान के लिए ब्लड स्कैनिंग। 
  • आपके जोड़ों की सूजन और दर्द।
  • लक्षणों की अवधि। 
  • सीआरपी टेस्ट(CRP TEST)

    सीआरपी टेस्ट के लिए आपको खून का सैंपल देना पड़ता है। इसके बाद उसे लैब में ले जाया जाएगा और फिर जब रिपोर्ट आने पर आपको उसे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। इसके बाद आपका डॉक्टर आपको बताएगा कि आपको किस तरह की दवाइयों की जरुरत है। सीआरपी टेस्ट के लिए खून देने में किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

    सीआरपी(CRP) स्तर को बढ़ाना

    अगर रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए आपका टेस्ट किया जा रहा है तो आपका डॉक्टर आपको स्टैंडर्ड सीआरपी टेस्ट करवाने के लिए कहेगा, बजाय कि हाई-सेंसीटीविटी टेस्ट के। स्टैंडर्ट टेस्ट के साथ सीआरपी के उच्च स्तर का पता लगाया जा सकता है। सीआरपी का बढ़ा हुआ स्तर किसी सूजन की बीमारी का संकेत हो सकता है, लेकिन यह रूमेटाइड अर्थराइटिस की निश्चित पहचान कर पाने में सक्षम नहीं है।
  • इलाज

    रूमेटाइड अर्थराइटिस का इलाज आपको बहुत ही ध्यान से कराना होता है। आपको समय के साथ इलाज कराना बहुत जरूरी हो जाता है। डॉक्टर आपको समय-समय पर सीआरपी टेस्ट कराने की सलाह दे सकता है। आपका सीआरपी स्तर इस बात का संकेत दे सकता है कि आपका ट्रीटमेंट कैसा चल रहा है। 
    अगर आपका ऐसे में आपका सीआरपी स्तर गिर गया है तो इसका मतलब है दवाई अपना असर दिखा रही है। इसके अलावा अगर आपका सीआरपी स्तर बढ़ गया है तो डॉक्टर समझ जाएगा कि आपको नए इलाज की जरुरत है।
  • अर्थराइटिस ( गठिया)
  • गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है।लोगों की बढ़ती उम्र के साथ अक्सर देखा जा रहा कि गठिया रोग (आर्थराइटिस) उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रहा है। 


    कच्चे आलू से फायदा

    आलू रसोईघर बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि आलू से हम कई तरह कि डिश तैयार करते हैं। इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि गठिया के रोग में आलू रामबाण साबित होता है। आपको बता दें कि कच्चे आलू का रस गठिया के इलाज में बहुत फायदेमंद होता है। कच्चे आलू के रस में एन्टी इंफ्लैमटोरी गुण होने के चलते यह गर्दन, कोहनी, कंधा और घुटनों के दर्द में बहुत राहत पहुंचात है। कच्चे आलू के रस को पीने से उन लोगों को भी फायदा मिलता है जो लोग लंबे समय से आर्थराइटिस के दर्द से परेशान हैं। कच्चे आलू के रस को निकालने के लिए उसे बिना छीले ही पतले टुकड़ों में काट लें। इसके बाद आलू के टुकड़ों को पानी में रात भर के लिए ढककर रख दें। सुबह खाली पेट इस पानी को पीएं। इससे जरूर लाभ मिलेगा। कच्चे आलू के रस से गठिया रोग का इलाज सदियों से किया जा रहा है।

    इनका सेवन भी फायदेमंद
    1- सब्जियों का जूस
    2- तिल के बीज
    3- लहसुन
    4- केला
    5- मूंग की दाल का सूप
  • गठिया रोग में सेम और अन्य फलीदार सब्जियों (बींस), चेरी, मशरूम, ओट्स, चौलाई, संतरा, भूरे चावल, हरी पत्तेदार सब्जियां, मेथी, सोंठ, नाशपाती, गेहूं का अंकुर, सूरजमुखी के बीज, कद्दू, अंडा, (सोया मिल्क, सोया बडी, सोया पनीर, टोफू आदि) पपीता, ब्रोकली, लाल शिमला मिर्च, अजवायन, अनानास, अनार, आडू, अंगूर, आम, एलोवेरा, आंवला, सेब, केला, तरबूज, लहसुन, आलूबुखारा, सूखे आलूबुखारे, ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी डेयरी पदार्थ जैसे दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर आदि) कैल्शियम का अच्छा स्रोत है इन्हें आप ले सकते है लेकिन बेहतर यह होगा की आप गठिया रोग में दूध-दही भी कम मात्रा में ही लें. कैल्शियम की पूर्ति फलों और सब्जियों से करें गठिया रोग में फलो और सब्जियों में सहिजन, बथुआ, मेथी, सरसों का साग, ककड़ी, लौकी, तुरई, पत्ता गोभी, परवल, गाजर, अजमोद,आलू, शकरकंद, अदरक, करेला, लहसुन का सेवन करें. गठिया के रोगी को चौलाई की सब्जी भी फायदा करती है.गठिया रोग में अधिक पानी युक्त फल जैसे खरबूजा, तरबूज, पपीता, खीरा अधिक खाएं. गठिया रोग में हींग, शहद, अश्वगंधा और हल्दी भी लाभकारी हो सकते हैं

  • गठिया की चपेट में भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, वैसे-वैसे रोगी के लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है। जानकारों का मानना है कि देश में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की बीमारी से पीड़ित हैं। जिस तेजी से यह बीमारी बढ़ रही है, आने वाले कुछ सालों में आर्थराइटिस लोगों को शारीरिक रूप से अक्षम बनाने में चौथा प्रमुख कारण होगा। भारतीय लोग आनुवांशिक तौर पर घुटने की आर्थराइटिस से अधिक ग्रस्त होते हैं। बताते चलें कि चीन में करीब 6.5 करोड़ लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जो भारत में घुटने की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या से आधे से भी कम है।

  • क्यों होता है गठिया
    जब हड्डियों के जोड़ों में यूरिक एसिड जमा हो जाता है तो वह गठिया का रूप ले लेता है। इसके बाद रोगी के एक या एक से अधिक जोड़ों में दर्द, अकड़न और सूजन आ जाती है। गठिया के अधिक बढ़ जाने पर रोगी को चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। इसके अलावा जोड़ों में गांठे पड़ जाती हैं, जो रोगी को बहुत दर्द पहुंचाती हैं। जोड़ों में गांठ होने के कारण इसे गठिया कहते हैं। यूरिक एसिड कई तरह के खाद्य पदार्थों को खाने से बनता है

गिलोय के फायदे - जो जीवन मे भर दे अमृत

गिलोय के फायदे :-
1- डायबिटीज:-विशेषज्ञों के अनुसार गिलोय हाइपोग्लाईसेमिक एजेंट की तरह काम करती है और टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित रखने में असरदार भूमिका निभाती है। गिलोय जूस (giloy juice) ब्लड शुगर के बढे स्तर को कम करती है, इन्सुलिन का स्राव बढ़ाती है और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम करती है। इस तरह यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।  

2- डेंगू:-डेंगू से बचने के घरेलू उपाय के रुप में गिलोय का सेवन करना सबसे ज्यादा प्रचलित है। डेंगू के दौरान मरीज को तेज बुखार होने लगते हैं। गिलोय में मौजूद एंटीपायरेटिक गुण बुखार को जल्दी ठीक करते हैं साथ ही यह इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है जिससे डेंगू से जल्दी आराम मिलता है।

3- अपच:-अगर आप पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, एसिडिटी या अपच से परेशान रहते हैं तो गिलोय आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। गिलोय का काढ़ा, पेट की कई बीमारियों को दूर रखता है। इसलिए कब्ज़ और अपच से छुटकारा पाने के लिए गिलोय का रोजाना सेवन करें।

4- खांसी;-अगर कई दिनों से आपकी खांसी ठीक नहीं हो रही है तो गिलोय  का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है। गिलोय में एंटीएलर्जिक गुण होने के कारण यह खांसी से जल्दी आराम दिलाती है। खांसी दूर करने के लिए गिलोय के काढ़े का सेवन करें।

5- बुखार:-गिलोय या गुडूची (Guduchi) में ऐसे एंटीपायरेटिक गुण होते हैं जो पुराने से पुराने बुखार को भी ठीक कर देती है। इसी वजह से मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसे गंभीर रोगों में होने वाले बुखार से आराम दिलाने के लिए गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है।

6– इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक :-बीमारियों को दूर करने के अलावा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना भी गिलोय के फायदे  में शामिल है। गिलोय सत्व या गिलोय जूस (Giloy juice) का नियमित सेवन शरीर की इम्युनिटी पॉवर को बढ़ता है जिससे सर्दी-जुकाम समेत कई तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

7- पीलिया:-पीलिया के मरीजों को गिलोय के ताजे पत्तों का रस पिलाने से पीलिया जल्दी ठीक होता है। इसके अलावा गिलोय के सेवन से पीलिया में होने वाले बुखार और दर्द से भी आराम मिलता है। गिलोय स्वरस (Giloy juice) के अलावा आप पीलिया से निजात पाने के लिए गिलोय सत्व का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

Sunday 8 November 2020

लकवा (पैरालिसिस) : कारण, प्रकार और उपाय






आयुर्वेद  के अनुसार पैरालिसिस यानि लकवा या पक्षाघात एक वायु रोग है, जिसके प्रभाव से संबंधित अंग की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने और महसूस करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं। आयुर्वेद में पैरालिसिस के 5 प्रकार बताए गए हैं और इसके लिए कोई विशेष
 कारण जिम्मेदार नहीं होता, बल्कि इसके कई कारण हो सकते हैं।

कारण : युवावस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशीले पदार्थों का सेवन, आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है। सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत अति भागदौड़, क्षमता से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम, अति आहार आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।


आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात के प्रकार :  
 
1 अर्दित : सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानि फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह स्थिर होकर मुख प्रभावित होता है और स्थिर हो जाता है। 
 2 एकांगघात : इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क के बाहरी भाग में समस्या होने से एक हाथ या एक पैर कड़क हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या सुषुम्ना नाड़ी में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात यानि मोनोप्लेजिया कहते हैं।
3 सर्वांगघात : इसे सर्वांगवात रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है, इसलिए इसे सर्वांगघात यानि डायप्लेजिया कहते हैं। 
 
4  अधरांगघात : इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है। यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है। जब लकवा 'अपर मोटर न्यूरॉन' प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है
5  बाल पक्षाघात : बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कीड़ा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर उसे नुकसान पहुंचाता है तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली शाखा क्रियाहीन हो जाती है। इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और यह ज्यादातर 6-7 माह की आयु से ले कर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।
घरेलू चिकित्सा

लकवा एक कठिन रोग है और इसकी चिकित्सा किसी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक से ही कराई जानी चाहिए। इस रोग के प्रभाव को कम करने में सहायक घरेलू नुस्खे प्रस्तुत हैं। ले‍कि‍न यह सम्पूर्ण चिकित्सा करने वाला सिद्ध हो, यह जरूरी नहीं।

1. बला मूल (जड़) का काढ़ा सुबह-शाम पीने से आराम होता है।
2. उड़द, कौंच के छिलकारहित बीज, एरण्डमूल और अति बला, सब 100-100 ग्राम ले कर मोटा-मोटा कूटकर एक डिब्बे में भरकर रख लें। दो गिलास पानी में 6 चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा गिलास बचे तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। यह काढ़ा सुबह व शाम को खाली पेट पिलाएं।
3. लहसुन की 4 कली सुबह और शाम को दूध के साथ निगलकर ऊपर से दूध पीना चाहिए। लहसुन की 8-10 कलियों को बारीक काटकर एक कप दूध में डालकर खीर की तरह उबालें और शकर डालकर उतार लें। यह खीर रोगी को भोजन के साथ रोज खाना चाहिए
4. तुम्बे के बीजों को पानी में पीसकर लकवाग्रस्त अंग पर लेप करने से लाभ होता है।
5. सौंठ और सेंधा नमक बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चूर्ण को नकसीर की भांति दिन में 2-3 बार सूंघने से लाभ होता है।
6. जंगली कबूतर की बीट और आंकड़े (अर्क या मदार) का दूध बराबर मात्रा में लेकर खरल में घोटें। इसकी 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। सुबह-शाम 1-1 गोली दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
7. कुचलादि वटी- शुद्ध कुचला 10 ग्राम, खरल में डालकर इसमें आवश्यक मात्रा में पानी डालकर अच्छी तरह घुटाई करें। जब महीन घुट जाए तब इसकी 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें और छाया में सुखा लें। सुबह-शाम 1-1 गोली बने हुए सादे पान में रखकर एक माह तक सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा
रसराज रस व वृहत वात चिंतामणि रस 5-5 ग्राम, एकांगवीर रस, वात गजांकुश रस, पीपल 64 प्रहरी, तीनों 10-10 ग्राम। सबको मिलाकर पीसकर एक जान कर लें। इनकी 60 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया शहद के साथ एक माह सेवन करें। इसके एक घंटे बाद रास्नाशल्लकी वटी व महायोगराज गूगल स्वर्णयुक्त 2-2 गोली दूध के साथ लें। भोजन के बाद, दोनों वक्त, महारास्नादि काढ़ा और दशमूलारिष्ट 4-4 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पिएं। मालिश के लिए महानारायण तेल, महामाष तेल व बला तेल- तीनों 50-50 मि.ली. लेकर एक ही शीशी में भरकर मिला लें। दिन में दो बार लकवाग्रस्त अंग पर यह तेल लगाकर मालिश करें।
पथ्य : लकवाग्रस्त रोगी के लिए गाय या बकरी का दूध व घी, पुराना चावल, गेहूं, तिल, परवल, सहिजन की फली, लहसुन, उड़द या मूंग की दाल, पका अनार, खजूर, मुनक्का, अंजीर, आम, फालसा आदि का सेवन करना, तेल मालिश करना और गर्म जल से स्नान करना व गर्म पानी पीना पथ्य यानि फायदेमंद है।
अपथ्य : उड़द व मूंग के अतिरिक्त सभी दालें, आलू, ठंडा जल, ठंडा स्थान, ठंडी हवा, सुपारी, तेज मिर्च-मसाले, वातकारक पदार्थ, खटाई, बासा भोजन, मैथुन करना और अपच रहना अपथ्य यानि नुकसान दायक है।

Saturday 7 November 2020

अनिद्रा ( नींद )से जुड़े रोग उपचार ओर कारण


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः  

          सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् 

अनिद्रा या उन्निद्र रोग (इनसॉम्निया) में रोगी को पर्याप्त और अटूट नींद नहीं आती, जिससे रोगी को आवश्यकतानुसार विश्राम नहीं मिल पाता और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बहुधा थोड़ी सी अनिद्रा से रोगी के मन में चिंता उत्पन्न हो जाती है, जिससे रोग और भी बढ़ जाता है। स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद सोना जरूरी है, लेकिन आजकल कई लोग अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं। इस बीमारी को अंग्रेजी में इंसोमनिया (Insomnia) कहा जाता है। यह एक प्रकार का नींद संबंधी विकार है। इसमें व्यक्ति को सोने में असुविधा, नींद की कमी या नींद पूरी नहीं हो पाने की समस्या रहती है। ऐसा होने से स्वास्थ्य पर असर होता है और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगती हैं।

इसके मुख्य रूप से दो प्रकार माने गए हैं---- 

1. एक्यूट इंसोमनिया - यह अनिद्रा का एक आम प्रकार होता है। यह समस्या कुछ दिनों या हफ्तों के लिए हो सकती है। इसके कारण बहुत ही सामान्य हो सकते हैं जैसे - काम का दवाब, कोई पारिवारिक चिंता, कोई घटना या अन्य कोई समस्या।

2. क्रॉनिक इंसोमनिया – अनिद्रा की यह समस्या गंभीर हो सकती है। यह महीने भर या उससे भी ज्यादा दिनों तक रह सकती है। ज्यादातर मामलों में यह सेकंडरी होती है। क्रॉनिक इंसोमनिया किसी अन्य समस्या के लक्षण या साइड इफेक्ट जैसे - कुछ चिकित्सा स्थितियां, दवाएं और अन्य नींद विकार आदि की ओर इशारा हो सकता है। इसके अलावा, कैफीन, तंबाकू और शराब जैसे खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन भी इसका कारण हो सकता है। कुछ मामलों में यह समस्या तनाव या फिर लंबी यात्रा के कारण भी हो सकती है।

आमतौर पर अनिद्रा का कारण तनाव व थकावट हो सकती है, लेकिन इसके कुछ निम्न कारण भी हो सकते हैं

  • हर रोज सोने के समय में बदलाव होना।
  • दोपहर में सोना या झपकी लेना।
  • सोते वक्त ज्यादा शोर होना या रूम में अधिक लाइट होना।
  • व्यायाम न करना।
  • सोते वक्त मोबाइल व टीवी जैसे उपकरणों का उपयोग करना।
  • धूम्रपान करना।
  • पूरे दिन कैफीन युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • कुछ खास तरह की दवाइयों का सेवन करना।
  • रात के वक्त काम करना। चिंता या तनाव।
  • कुछ खास तरह के नींद संबंधी विकार।
  • शरीर में कोई परेशानी होना या स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होना जैसे - मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, तनाव।
  • जीवनशैली में बदलाव
  • अनिद्रा या सोने में असमर्थता, एक विकार है, जिसे नींद न आना या लंबे समय तक न सो पाने की समस्या से जाना जाता है। अनिद्रा में सामान्यत: संकेत और लक्षण दोनों पाये जाते है, जिसमें सोने में लगातार परेशानी के साथ कई नींद, चिकित्सा, और मनोरोग विकार जुड़े हैं।
     

    जब सोने के बाद जागते है तब विशिष्ट रूप कार्यात्मक (कार्य करने में) नुकसान होता है इसे अनिद्रा कहा जाता है। अनिद्रा किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन यह विशेषकर बुजुर्गों में बेहद सामान्य है। अनिद्रा को अल्पावधि या तीव्र और चिरकालीन या  दीर्घकालिक अनिद्रा में वर्गीकृत किया जाता है।
     
    1. अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा: यह एक महीने से कम अवधि तक अच्छी नींद में असमर्थता है। जब नींद की शुरुआत या नींद को बनाए रखने में कठिनाई होती है या नींद, जो कि स्फूर्ति के बिना या खराब गुणवत्ता के साथ होती है, तब अनिद्रा उपस्थित होती है। इस प्रकार की अनिद्रा नींद के लिए पर्याप्त अवसर और परिस्थितियां के बावजूद उपस्थित होती है तथा जिसके परिणामस्वरुप दैनिक प्रणाली में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा को अल्पकालिक अनिद्रा या तनाव संबंधी अनिद्रा के नाम से भी जाना जाता है। 
     
    2. चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा: यह एक महीने से अधिक समय तक रहती है। यह किसी अन्य विकार या प्राथमिक विकार के कारण हो सकती है। तनाव वाले हार्मोन के उच्च स्तर से पीड़ित लोगों या साइटोकिंस के स्तर में बदलाव के कारण चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा से पीड़ित होने का ज़ोखिम अधिक होता है।
    इसका प्रभाव इसके कारणों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। उसमें मांसपेशियों में थकान, मतिभ्रम और/या मानसिक थकान शामिल हो सकती हैं। जो लोग इस विकार से पीड़ित हैं, उनमें मतिभ्रम होता हैं। उन्हें वास्तव में जो वस्तु नहीं होती, किसी और वस्तु में उसके होने का अहसास होने लगता है। चिरकालीन या दीर्घकालिक अनिद्रा दोहरी दृष्टि उत्पन्न कर सकता है।
  • नींद ऐसी चीज है जो किसी को पत्थर पर सोने से ही आ जाती है और किसी को मखमली बिस्तर पर भी नहीं आती ।

    अनिद्रा, दुनिया भर की आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है, जो हर उम्र के पुरुषों और महिलाओं में हो सकती है। अनिद्रा की परिभाषा बहुत सरल है। नींद ना आना, या लंबे समय तक ना सो पाने की समस्या को अनिद्रा कहते हैं। अनिद्रा के विभिन्न प्रकारों से लोग पीड़ित हैं। अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा, अनिद्रा का एक आम प्रकार है, यह कुछ दिनों के लिए होती है या कुछ दवाएं या जीवनशैली में किये गये मामूली बदलावों से होती है। अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए रहें और गंभीर रुप से आपके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, तो यह एक बहुत गंभीर और चिरकारी समस्या है जिसे सही, पेशेवर चिकित्सक की जरुरत है। अगर एक व्यक्ति 30 दिनों से भी अधिक समय तक के लिये ठीक से ना सो पाएं तो इसका अर्थ यह है कि वह चिरकालीन अनिद्रा का शिकार है। चिरकालीन अनिद्रा से पीड़ित मरीज़ों को "इंसोम्नियाक्स" कहा जाता है।

    प्रमुख कारण :
    आयुर्वेद के अनुसार वात और पित्त बढ़ जाने से अनिद्रा की स्थिति आती है। वात-पित्त मानसिक तनाव के कारण बढ़ता है। इसके बाद कुंठित भावनाओं का स्थान आता है। तीन हफ्तों तक जारी रहने वाली अनिद्रा को ट्रांजियंट इनसोम्निया कहा जाता है। इसका मुख्य कारण मानसिक संघर्ष, अपरिचित या नया वातावरण, सदमा, प्रियजनों की मृत्यु, तलाक या नौकरी में बदलाव आदि हो सकते हैं। नींद ना आने का सबसे प्रमुख कारण टेंशन होता है|शोर-शराबे वाली जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, कम शारीरिक व्यायाम व कम मेहनत करना , ज्यादा शराब सेवन करने से भी नींद नहीं आती है|

    मेरा तो अनुभव यह है कि अधिकतर लोग - जो भूख न लगने या नींद न आने की शिकायत करते हैं, उनकी वास्तविक समस्या होती है, समय पर नींद न आना, अथवा भूख न लगना। इस के लिये शरीर की 'घड़ी' को 'सेट' करना पड़ता है - यानी कि खाने और सोने का सही समय निर्धारित करना. इनके लिये सही समय का पालन न किया जाये तो व्यवस्था बिगड़ सकती है - यह देरी से होने वाले क्रिकेट या फुटबाल के मैच छोड़ने पड सकते है !

    और एक (महान ?) लेखक का कहना है कि
    1. 'भूख और नींद शारीरिक मेहनत से कमाई जाती है'
    2. मेरा तो अनुभव यह है कि अधिकतर लोग - जो भूख न लगने या नींद न आने की शिकायत करते हैं, उनकी वास्तविक समस्या होती है, समय पर नींद न आना, अथवा भूख न लगना। इस के लिये शरीर की 'घड़ी' को 'सेट' करना पड़ता है - यानी कि खाने और सोने का सही समय निर्धारित करना. इनके लिये सही समय का पालन न किया जाये तो व्यवस्था बिगड़ सकती है 

    अनिद्रा नुक्सान :
    अवसाद और चिंता
    मानसिक और शारीरिक थकावट
    संक्रमण और रोगों से धीमी गति से वसूली
    कम ध्यान अवधि
    चिड़चिड़ापन
    सुस्ती
    जागने के बाद आपको खुमारी या सर भारी.
    गुस्सा, व धीरे -2 डिप्रेशन
    असामान्य व्यवहार

    अनिद्रा का सीधा असर हमारे शरीर की चयापचय प्रक्रिया (Metabolic Process) पर पड़ता है और इससे मधुमेह (Diabetes), वज़न का बढ़ना (Weight Gain), उच्च रक्त चाप (High Blood pressure) जैसी बीमारियां हो सकती हैं।यह पाया गया है कि नींद की क्षति रोगक्षम (इम्यून) प्रणाली को प्रभावित करती है।शोधकर्ताओं ने पाया कि नींद की कमी ह्रदय रोग से मृत्यु के खतरे को दुगुने से अधिक बढ़ा देती है, लेकिन बहुत अधिक नींद भी मृत्यु के खतरे को दुगुना करने के साथ जुड़ी हो सकती है, हालांकि मुख्य रूप से ह्रदय रोग से नहीं.अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए हो जाय तो यह शरीर के लिए गंभीर और चिरकारी हो जाती है जिसका इलाज़ अच्छे चिकित्सक से ही करवाना चाहिए।

    उपाय :
    - आपका रुटीन कितना भी व्यस्त क्यों न हो लेकिन अच्छी नींद आए इसके लिए सबसे जरूरी है कि आप अपने सोने का एक समय तय करें।
    - नियमित व्यायाम की आदत डालें, इससे नींद अच्छी आती है, पर सोने से पहले व्यायाम नहीं करना चाहिए।
    - सोने के कमरे को शांत व अंधकारमय रखना ।
    - सोने व उठने की नियमित दिनचर्या बनाना।
    -. शयन के समय शवासन का नियमित अभ्यास।
    - सोते समय सकारात्मक विचारों द्वारा मान को शांत रखना।
    - देर रात तक पार्टियों व टीवी देखने की आदत छोड़ें।
    - दिन में नहीं सोयें ताकि रात में अच्छी नींद आये।
    - सोने से पहले हाथ, पैर धोयें या स्नान कर लें।
    - चाय और कॉफी जैसे पेय भी रात में न लें।
    - बहुत अधिक मसालेदार और हैवी भोजन रात में न करें।
    - भगवान का भजन कर लें या कोई मंत्र जैसे-गायत्री मंत्र का जपकर लें तो भी नींद आ जाती है।
    - सोने से पहले हाथ-पैर साफ करें और फिर अपने तलवों की मसाज करें। इससे शरीर का रक्त प्रवाह सही रहता है और थकान दूर होती है। अच्छी नींद के लिए रोज सोने से पहले इस मसाज से आपकी अनिद्रा की समस्या दूर हो जाएगी।
    - कुछ ऐसे भी योग हैं जिन्हें करने से नींद अच्छी आती है। जैसे शवासन, वज्रासन, भ्रामरी प्राणायम आदि। इन्हें नियमित रूप से करने से अनिद्रा की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा और थकान पूरी तरह दूर होगी।
    - रात्रि को सोने से पहले सरसों का तेल गुनगुना करके उसकी 4-4 बूंदे दोनों कानों में डालकर ऊपर से साफ रूई लगाकर सोने से गहरी नींद आती है।
    - रात को निद्रा से पूर्व रूई का एक फाहा सरसों के तेल से तर करके नाभि पर रखने से और ऊपर से हलकी पट्टी बाँध लेने से लाभ होता है।
    - सोते समय पाँव गर्म रखने से नींद अच्छी आती है (विशेषकर सर्दियों में)।
    - सोने से दो घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। भोजन के बाद स्वच्छ, पवित्र तथा विस्तृत स्थान में अच्छे, अविषम एवं घुटनों तक की ऊँचाई वाले शयनासन पर दक्षिण की ओर सिर करके हाथ नाभि के पास रखकर व प्रसन्न मन से ईश्वरचिंतन करते-करते सो जाना चाहिए।
    - रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक गहरी निद्रा लेने मात्र से आधे रोग ठीक हो जाते हैं।
    - जब आप शयन करें तब कमरे की खिड़कियाँ खुली हों।
    - नींद से उठते ही तुरंत बिस्तर का त्याग नहीं करना चाहिए। पहले दो-चार मिनट बिस्तर में ही बैठकर परमात्मा का ध्यान करना चाहिए कि 'हे प्रभु ! आप ही सर्वनियंता हैं, आप की ही सत्ता से सब संचालित है। हे भगवान, इष्टदेव, गुरुदेव जो भी कह दो। मैं आज जो भी कार्य करूँगा परमात्मा सर्वव्याप्त हैं, इस भावना से सबका हित ध्यान में रखते हुए करूँगा।' ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।
    स्वस्थ रहने के लिए कम से कम छः घंटे और अधिक से अधिक साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए, इससे कम ज्यादा नहीं। वृद्ध को चार व श्रमिक को छः से साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए।

    इन्हें भी आजमायें :
    - अपने शरीर व मन-मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए। सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए। पूरी साँस लेना व छोड़ना है। अब कल्पना करें कि आप समुद्र के किनारे लेटकर योगनिद्रा कर रहे हैं। आप के हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं। अपने आप से कहें कि मैं योगनिद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ।
    - कल्पना करें कि धरती माता ने आपके शरीर को गोद में उठाया हुआ है। अब मन को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे, सभी उंगलियों पर ले जाइए। कलाई, कोहनी, भुजा व कंधे पर ले जाइए। इसी प्रकार अपने मन को बाएं हाथ पर ले जाएं। दाहिना पेट, पेट के अंदर की आंतें, जिगर, अग्नाशय दाएं व बाएं फेफड़े, हृदय व समस्त अंग शिथिल हो गए हैं।
    हृदय के यहाँ देखिए हृदय की धड़कन सामान्य हो गई है। ठुड्डी, गर्दन, होठ, गाल, नाक, आँख, कान, कपाल सभी शिथिल हो गए हैं। अंदर ही अंदर देखिए आप तनाव रहित हो रहे हैं। सिर से पाँव तक आप शिथिल हो गए हैं। ऑक्सीजन अंदर आ रही है। कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर जा रही है। आपके शरीर की बीमारी बाहर जा रही है। अपने विचारों को तटस्थ होकर देखते जाइए।
    अब अपनी कल्पना में गुलाब के फूल को देखिए। चंपा के फूल को देखिए। पूर्णिमा के चँद्रमा को देखिए आकाश में तारों को देखिए। उगते हुए सूरज को देखिए। बहते हुए झरने को देखिए। तालाब में कमल को देखिए। समुद्र की शुद्ध वायु आपके शरीर में जा रही है और बीमारी व तनाव बाहर जा रहा है। इससे आप स्वस्थ हो रहे हैं। आप तरोताजा हो रहे हैं।
    सामने देखिए समुद्र में एक जहाज खड़ा है। जहाज के अंदर जलती हुई मोमबत्ती को देखिए। जहाज में दूसरी तरफ एक लालटेन जल रहा है उस जलती हुई लौ को देखिए। सामने देखिए खूब जोरों की बरसात हो रही है। बिजली चमक रही है, चमकती हुई बिजली को देखिए। बादल गरज रहे हैं। गरजते हुए बादल की आवाज सुनिए। नाक के आगे देखिए। ऑक्सीजन आपके शरीर में जा रही है। कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर जा रही है।
    अपने मन को दोनों भौहों के बीच में लाएँ व योगनिद्रा समाप्त करने के पहले अपने आराध्य का ध्यान कर व अपने संकल्प को 3 बार अंदर ही अंदर दोहराए। लेटे ही लेटे बंद आँखों में तीन बार ओऽम्‌ का उच्चारण करिए। फिर दोनों हथेलियों को गरम करके आँखों पर लगाएँ व पाँच बार सहज साँस लीजिए। अब अंदर ही अंदर देखिए आपका शरीर, मन व मस्तिष्क तनाव रहित हो गया है।आप स्वस्थ व तरोताजा हो गए हैं। जिस तरह से कार की बैटरी चार्ज हो जाती है।
    आयुर्वेद :
    - सोने से पहले रात को इक सेब का मुरब्बा गरम दूध के साथ लें.
    - तीन ग्राम ताज़े पोदीने के पत्ते २०० ग्राम पानी में २ मिनिट तक उबालने के बाद छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना गुनगुना रात को सोने से पहले पी जाएँ. ३-४ हफ्ते इसे आजमायें फिर देखिये.
    - 6 ग्राम खसखस 250 ग्राम पानी में पीसकर कपड़े से छान लें और उसमें 25 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य प्रातः सूर्योदय के बाद या सायं 4 बजे एक बार लें।
    - शंखपुष्पी और जटामासी का 1 चम्मच सम्मिश्रित चूर्ण सोने से पहले दूध के साथ लें।
    - नींद न आने पर तुलसी के पांच पत्तों को खाने और रात को सोते समय तकिए के आस-पास फैलाकर रखने से इसकी सुगंध से नींद आने लगती है।
  • अनिद्रा से संबंधित तथ्य :

    1. अनिद्रा यदि चंद दिनों से ही है तो यह प्राय: किसी घरेलू या दफ्तर के तनाव से है. घबराने की बात नहीं. शायद दवा की जरूरत भी नहीं.

    2. यदि अनिद्रा दो-तीन-चार सप्ताह तक खिंच जाए तो कुछ दिनों के लिए डॉक्टर की नींद की दवा ले लें. ऐसा प्राय: तनाव से तो होता ही है, किसी बीमारी या सर्जरी से उठने के बाद भी हो सकता है.

    3. हां, यदि अनिद्रा कई महीनों या सालों से है तो इसे पूरी जांच और इलाज की आवश्यकता है. इसमें मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलकर डिप्रेशन आदि की आशंका की जांच भी हो सकती है. थायरॉयड, अस्थमा, हृदय रोग, पार्किन्सोनिज्म, माइग्रेन, यहां तक कि असामान्य किस्म की मिर्गी तक की संभावना रहती है.

     4. अनिद्रा का एक बड़ा कारण आपकी ‘खराब स्लीप हाइजीन’ भी हो सकती है. ‘स्लीप हाइजीन’ में बहुत सी बातें आती है. बिस्तर अधिक गद्देदार हो, सोने के कमरे में बहुत रोशनी या शोर हो, साथ वाला खर्राटे मारता हो, लात चलाता हो, यहां तक कि दीवार घड़ी जोर से टिकटिक करती हो तो यह खराब ‘स्लीप हाइजीन’ है. यदि सोने से पहले आप ऑफिस के तनाव में लगे रहें, ठूसकर खा लिया है, गर्म पानी से स्नान कर लिया है, कसरत कर ली है - तो ये सब भी निद्रा विरोधी हैं.

    5. जहां तक दारू की बात है तो पीकर आप सो तो जाएंगे परंतु रातभर टूट-टूटकर ही नींद आएगी या आने के कुछ देर बाद जो टूटेगी तो फिर आएगी ही नहीं. आज दो पेग में आई है, बाद में तीन में आएगी और फिर चार पेग में भी नहीं आएगी.

    6. क्या अनिद्रा किसी मानसिक रोग का लक्षण है? हां, यह संभव है. बेचैनी, अवसाद (डिप्रेशन) तथा मूड डिसऑर्डर में भी अनिद्रा हो सकती है. डिप्रेशन इस मामले में अनोखा है कि इसके रोगी को अनिद्रा भी हो सकती है और वह अति निद्रा का शिकार होकर दिन-रात सोता पड़ा भी रह सकता है. डिप्रेशन की दवाइयां भी अनिद्रा पैदा कर सकती है.

    7. कई बीमारियों में अनिद्रा एक महत्वपूर्ण कारक तथा लक्षण हो सकता है. सांस की बीमारी, हार्ट के पंप के कमजोर हो जाने पर होने वाला फेफड़ों का कंजेशन, मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति), किडनी व लीवर खराब होने में अनिद्रा ही एक प्रमुख शिकायत हो सकती है.

    8. नई जगह पर, होटल के कमरे में, अस्पताल में, जीवन में कुछ नया घट जाने पर, कोई महत्वपूर्ण तारीख पास आने पर नींद गड़बड़ हो ही सकती है. इसे ‘एडजस्टमेंट अनिद्रा’ कहते हैं. यह स्वत: ठीक हो जाती है.

    9. ऊंचे पहाड़ों पर पहुंचने पर नींद डिस्टर्ब हो सकती है. इसे ‘एल्टीट्यूड अनिद्रा’ कहते हैं. इसके लिए नींद दवा नहीं बल्कि डायमोक्स नामक दवा लेनी पड़ती है. जो इन स्थानों से एडजस्ट करने के लिए दी जाती है

    दिन के समय उनींद रहना-  दिन के समय नींद के झोंके आने की बात प्राय: मरीज स्वयं नहीं मानता. साथ वाले बताते हैं. ऐसे लोग मीटिंग में, गाड़ी चलाते हुए, मशीन पर काम करते हुए अचानक झपकी ले लेते हैं. यह ‘स्लीप एपनिया’ नाम की बीमारी हो सकती है जिससे आदमी रात में खर्राटे मारता है, सोते हुए उसकी सांस तेज होती-रुकती है और मरीज को पता भी नहीं होता. वह बस दिन भर उनींदा रहता है. यदि ऐसा है तो इसे नजरअंदाज न करें. जांच से एक बार इसका कारण पता चल जाएगा तो फिर इसे ठीक भी किया जा सकता है. नींद की दवाई डॉक्टर की सलाह पर ही लें. हो सके तो बस कुछ समय के लिए ही. यदि अनिद्रा की क्रॉनिक बीमारी है और नींद की दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ें तो इन्हें बीच-बीच में रोक लें. इन्हें लगातार लेंगे तो इनका असर खत्म हो जाएगा       

    आयुर्वेद के अनुसार वात और पित्त बढ़ जाने से अनिद्रा की स्थिति आती है। वात-पित्त मानसिक तनाव के कारण बढ़ता है। इसके बाद कुंठित भावनाओं का स्थान आता है। तीन हफ्तों तक जारी रहने वाली अनिद्रा को ट्रांजियंट इनसोम्निया कहा जाता है। इसका मुख्य कारण मानसिक संघर्ष, अपरिचित या नया वातावरण, सदमा, प्रियजनों की मृत्यु, तलाक या नौकरी में बदलाव आदि हो सकते हैं। नींद ना आने का सबसे प्रमुख कारण टेंशन होता है|शोर-शराबे वाली जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, कम शारीरिक व्यायाम व कम मेहनत करना , ज्यादा शराब सेवन करने से भी नींद नहीं आती है| आधुनिक रिसर्च के अनुसार इस तरह की समस्याओं का कारण हमारी बदलती जीवनशैली भी है। हमारे पास ऐसे बहुत से मरीज आते हैं जो कहते हैं कि उन्हें नींद नहीं आती।

    अनिद्रा के लक्षण और इससे नुक्सान 

    १. सुस्ती- अनिद्रा के कारण लोगों में दिखाई देने वाला एक आम लक्षण है.

    २. जागने के बाद आपको खुमारी या सर भारी होने का अहसास होता है.  

    ३. जब एक व्यक्ति की रोज की नींद पूरी नहीं होती तो उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन होने लगता है.

    ४. ऐसे लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आने लगता है और वे धीर धीरे डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं.

    ५. उनका व्यवहार असामान्य होने लगता है।

    ६. अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए हो जाय तो यह शरीर के लिए गंभीर और चिरकारी हो जाती है जिसका इलाज़ अच्छे चिकित्सक से ही करवाना चाहिए।

    ७. अगर एक व्यक्ति 30 दिनों से भी अधिक समय तक के लिये ठीक से ना सो पाएं तो इसका अर्थ यह है कि वह चिरकालीन अनिद्रा का शिकार है।

    ८. अनिद्रा के कारण साइकोसोमैटिक परेशानियां जैसे डीप्रेशन, घबराहट, आत्मबल की कमी जैसी समस्याएं भी होती हैं।

  •  उपचार----- 

    प्रारम्भ में हम इसका उपचार बिना दवाइयों के ही करते है. इनमे कुछ आसान उपाय अपनाने होते हैं जैसे-

     १. नियमित व्यायाम की आदत डालें, इससे नींद अच्छी आती है, पर सोने से पहले व्यायाम नहीं करना चाहिए।

    २. सोने के कमरे को शांत व अंधकारमय रखना ।

    ३. सोने व उठने की नियमित दिनचर्या बनाना।

    ४. शयन के समय शवासन का नियमित अभ्यास।

    ५. सोते समय सकारात्मक विचारों द्वारा मान को शांत रखना।

     रोगियों के ध्यान रखने के लिए ज़रुरी बातें

     १. अगर नींद नहीं आ रही हो तो अभी बिस्तर पर न जाएं।

    २. बिस्तर पर लेटे लेटे नींद का इंतजार न करें। तभी लेटें , जब नींद आने की फीलिंग हो।

    ३. हर सुबह एक निश्चित समय पर उठें। रात को निश्चित समय पर सोएं।

    ४. देर रात तक पार्टियों व टीवी देखने की आदत छोड़ें।

    ५. दिन में नहीं सोयें  ताकि रात में अच्छी नींद आये।

    ६. सोने से पहले व्यायाम करके भोजन करें। सोने से पहले हाथ, पैर धोयें या स्नान कर लें।

    ७. सोने से पहले रात को इक सेब का मुरब्बा गरम दूध के साथ लें.

    ८. तीन ग्राम ताज़े पोदीने के पत्ते २०० ग्राम पानी में २ मिनिट तक उबालने के बाद छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना गुनगुना रात को सोने से पहले पी जाएँ. ३-४ हफ्ते इसे आजमायें फिर देखिये.

    ९. कुछ धार्मिक रोगियों से बात करने पर पता चला कि भगवान का भजन कर लें या कोई मंत्र जैसे-गायत्री मंत्र का जपकर लें तो भी नींद आ जाती है।

    योग चिकित्सा

    नींद लाने के लिए कई आसान उपाय बताये गये हैं। भारत में योग उनमें से एक उपाय है। पश्चिमी देशों में संगीत को महत्व दिया गया है। अनिद्रा दूर करने का एक तरीका ध्यान भी है। सुबह और शाम लगभग 20 मिनट तक किए गए योगासनों के जरिए शरीर को उतना ही लाभ पहुंचाया जा सकता है, जितना आठ घंटे की नींद लेने से होता है। योगासन हमारे शरीर के तंत्रिका तंत्र को सक्रिय बनाते हैं। ये तनाव से राहत दिलाने में मदद करते हैं, जोकि अनिद्रा का सबसे आम कारण है। शवासन एक ऐसी मुद्रा है जो हमें तनाव से मुक्त कर अनिद्रा से छुटकारा पाने में मदद करती है। इसे केवल 20 मिनट कीजिये; आपको अवश्य ही आराम मिलेगा ऐसा हमारा अनुभव है.

    आपको सलाह दी जाती है कि अगर आप सामान्य उपचार द्वारा ठीक नहीं हो पा रहे हैं तो इसके विशेषज्ञ से मिलकर रोग को जल्दी से जल्दी दूर करने का प्रयास करें जिससे आपकी सेहत अच्छी हो सके.

     


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  • उत्तम जैन (प्राकृतिक चिकित्सक )8460783401 


श्वसन तंत्र के रोग



श्वसन तंत्र के रोग रोग आपके फेफड़ों में ऑक्सीजन और अन्य गैसों को ले जाने वाली नलियों को प्रभावित करता है। यह श्वसन प्रणाली में मार्ग को संकीर्ण व अवरुद्ध कर सकता है। फेफड़े का कैंसर, अस्थमा, तपेदिक, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और ब्रोन्किइक्टेसिस आम वायुमार्ग की बीमारियां हैं। श्वसन तंत्र की बीमारिया बहुत आम हैं। पाचन तंत्र की तरह श्वसन तंत्र को भी बाहरी चीजों का कहीं ज़्यादा सामना करना पड़ता है। इसीलिए श्वसन तंत्र की एलर्जी और संक्रमण इतनी आम है। हवा से होने वाली संक्रमण से बचना उतना आसान नहीं है जितना कि खाने व पानी से होने वाली संक्रमण से बचाव करना। बेहतर आहार, घर और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता (जैसे धुम्रपान से परहेज) यही सामान्यतया महत्वपूर्ण है। लगातार बढ़ रहा वायु प्रदूषण भी साँस की बीमारियों के लिए काफी नुकसानदेह है।
श्वसन तंत्र की सभी बीमारियों में खॉंसी होना सबसे आम है। खॉंसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। यह असल में किसी न किसी बीमारी का लक्षण है। परन्तु अक्सर इलाज बीमारी के बजाय खॉंसी पर केन्द्रित हो जाता है, जो गलत है। खॉंसी के लिए दिए जाने वाले सिरप आम तौर पर असरकारी नहीं होते। परेशानी की जगह और कारण का निदान ज़रूरी है। श्ससन तंत्र की रचना और कार्य की जानकारी से हमें मदद मिल सकती है। श्वसन तंत्र मानों एक उल्टा पेड़ है। इसमें सूक्ष्म नलिकाओं और वायुकोश की हवा के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। छाती की पेशियाँ और फेफड़ों के नीचे का पेशीय पर्दा (मध्य पट) या ड्याफ्राम हवा के अवागमन में मदद करते हैं। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में नाक, गला और स्वरयंत्र (लैरींक्स) आते हैं। श्वसन तंत्र के निचले भाग में मुख्य श्वास नली और इसकी शाखाएँ यानि श्वसनी, छोटी शाखाएँ और लाखों वायुकोश (एल्वियोलाई) जिनके साथ सूक्ष्म केश नलिकाओं का जाल होता है। श्वसन तंत्र को ऊपरी और निचले भागों में बॉंटकर समझने से आसानी रहती है। ऊपरी भाग का संक्रमण आमतौर पर खुद ठीक हो जाने वाली होता हैं। परन्तु निचले भाग का संक्रमण आम तौर पर गम्भीर होता हैं और कभी कभी जानलेवा हो सकता है।
श्वसन तंत्र के रोग का आयुर्वेदिक इलाज – 
किसी भी रोगी के श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों का इलाज करने से पहले रोगी की गहरी जानकारी लेना ज़रूरी है। उसके कामकाज के बारे में जानना भी ज़रूरी है। अंस्बेस्टॉस, कोल, सिलिका, बगॅस, आयर्न ऑक्साइड, रुई के तंतु और पालतू पशुओं से रोगी का संबंध तो नहीं यह भी देखना होता है। अगर इन चीज़ों से उसका संबंध हो तो कितने समय तक रहा और बचाव के उपायों के बारे में भी जानना ज़रूरी है।

धूम्रपान और वायु प्रदूषण श्वसन समस्याओं के दो सामान्य कारण हैं।

यदि रोगी को श्वसन संबंधित लक्षणों के साथ समस्याएं हैं तो निम्नलिखित बीमारियां हो सकती हैं-:

अस्थमा- रोग ---- 

 (सर्दी ज़ुकाम)

छींक आना

सांस लेने में खराब गंध

सिरदर्द, और आँखे लाल होना खुजली और पानी निकलना 

गले में खारिश

गंध की कमी

अवरुद्ध या कंजस्टेड नाक

क्रोनिक लेरिंजिटिस

आवाज़ का बैठना

गले मे ख़राश

स्पासमोडिक खाँसी

कुछ मामलों में बुखार

निगलने में कठिनाई

सूजी हुई लसीका ग्रंथियां

गले में दर्द

ब्रोंकाइटिस (कास रोग , खाँसी)

 खांसी

गले में जलन/खराश

छाती में जकड़ाहट 

सांस फूलना

ब्रोन्कियल अस्थमा (श्वास रोग )

छाती में जकड़ाहट

खाँसी आना

घरघराहट

जल्दी जल्दी सांस आना

साइनोसाइटिस (नज़ला)

छींक आना

सिर व् शरीर में भारी पन

नाक का अवरुद्ध होना या  नाक का बहना

इंफ्लुएंजा

खांसी

नाक की मांसपेशियों मई दर्द होना और सिरदर्द होना

बुखार

नाक का बहना

थकान

गले में खरास

ठंड लगना

टांसिलिटिस

खांसी

टॉन्सिल पर सूजन

गले में दर्द और निगलने में कठिनाई

बुखार


श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियाँ कई कारणों से हो सकती है जैसे – 
पालतू पशु और जंगली पशुओं का संबंध श्वसन संबंधी रोगों में महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। इनके संपर्क से वायु कोष सिकुड़ने लगते हैं।पशुओं की एलर्जी के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।बीड़ी या सिगरेट पीने के कारण भी श्वसन संबंधी रोग हो सकते हैं।मद्यपान करनेवाले लोगों में नशे की वजह से एस्पिरेशन न्युमोनिया होता पाया गया है।रक्तवाहिनी में इंजेक्शन से नशा करनेवाले लोगों में फेफडों में फोड़े एबसेस हो सकते हैं।रोगी के पारिवारिक इतिहास में निकट संबंधियों को दमा और सिस्टिक फायब्रोसिस तो नहीं यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है।

श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण :- कोई भी बीमारी लक्षणों के रूप में ही परिलक्षित होती है। साँस संबंधी बीमारी के प्रमुख लक्षण – साँस फूलना, साँस तेज़ी से चलना, जुकाम, सर्दी, खाँसी आदि होते हैं। श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग नाक, नाक के आस-पास के सायनस, श्वास नलिकाएँ, फेफड़े, सीना, पेट, सीने और पेट के बीच मांसपेशियों का परदा डायफ्राम आदि हैं। साँस फूलने से रोगी को साँस लेने में कष्ट होता है। इस तकलीफ के कारणों का पता लगाना ज़रूरी होता है।
2) खाँसी : खाँसी श्वसन तंत्र के रोगों का प्रमुख लक्षण है। खाँसी के साथ निकलती बलगम की मात्रा और रंग के द्वारा निदान किया जा सकता है। फेफड़ों में मवाद होना, ब्रॉन्कायटिस और न्युमोनिया के कुछ प्रकारों में चिपचिपा और दुर्गंधयुक्त कफ निकलता है। पुराने ब्रॉन्कायटिस में कफ का रंग हरा सा होता है। पल्मोनरी एडिमा में झागयुक्त, गुलाबी रंग का कफ निकलता है। रात में सो जाने के बाद ज़ोर की खाँसी उठती है। साँस फूलती है। यह लक्षण दमा और हृदय रोग दोनों ही में होता है तब विशेष निदान की आवश्यकता होती है। दीर्घकालीन खाँसी में थूक की जाँच करके टी.बी. का निराकरण अवश्य करवाना चाहिए।

3) थूक में रक्त : खखारने के बाद यदि खून निकले तो रोगी बहुत घबरा जाते हैं और तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं। जीवाणुओं के संसर्ग से भी रक्त आ सकता है। टी.बी., हृदय रोग, कैंसर, फेफड़े का फोड़ा एबसेस आदि बीमारियों में थूक में रक्त आना एक लक्षण होता है। कई बार अन्ननलिका या जठर से रक्तस्राव हो तो वह भी थूक के साथ निकलता है। ऐसे समय रक्त किस अंग से बह रहा है इसका निदान आवश्यक है।

4) छींकें आना : छींक आना एक रिफ्लेक्स एक्शन है। प्रतिक्षिप्त क्रिया है। जब छीकों की संख्या ज़्यादा हो, लगातार छींकें आने लगें तो यह एलर्जी या इंफेक्शन हो सकता है।

ये श्वसन तंत्र के रोगों के प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों की और कुछ परीक्षणों की सहायता से रोग का निदान और इलाज किया जा सकता है। शरीर में आयु के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है। उन्हें रोका नहीं जा सकता। इनकी तीव्रता कम की जा सकती है। ये परिवर्तन देर से हो इसका प्रयास किया जा सकता है। आयुर्वेद में आहार, विहार और औषध ये तीन सूत्र बताए गए हैं।

श्वसन तंत्र के रोगी का आहार :

वृद्धावस्था में वात दोष में वृद्धि हो जाती है। धातु कमज़ोर हो जाते हैं। पाचन शक्ति मंद हो जाती है। इसके लिए वातशामक हलका आहार लिया जाना चाहिए।

दूध और घी का उचित मात्रा में सेवन करें।मूंग की खिचड़ी, चावल, ज्वार की रोटी, चावल की रोटी और गेहूँ की रोटी लें।सब्ज़ी, सेवई की खीर और छाछ लें।पपीता और सेब लें।सूखे अंजीर और काली मुनक्का लें।अदरक और काले नमक को चबाकर खाने से मुँह का स्वाद ठीक होगा और पाचन भी सुधरेगा।आयु बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। आहार की मात्रा में बदलाव करना उचित होता है। रात्रि भोजन कम कर दें।सूप, पतली दाल आदि अधिक लें।

साँस संबंधी बीमारियों को काबू में रखने के लिए बेकरी पदार्थ, खमीर के पदार्थ, खट्टे पदार्थ, दही, चावल, शीत पेय, आइस्क्रीम, फ्रिज में रखा भोजन, लस्सी, बर्फ डाला हुआ गन्ने का रस, केला, ककड़ी, तरबूज़, आदि भोज्य पदार्थ बंद कर दें।मेवा अवश्य लें।
श्वसन तंत्र के रोग में सावधानी और बचाव के उपाय :--
वात दोष न बढ़े इसलिए पूरी नींद लें।वृद्धावस्था में दोपहर में सोना ठीक है।आयुर्वेद के अनुसार पूरी देह पर तेल मालिश करके स्नान करें। संभव न हो तो हथेली, तलुए, सिर और कान में तेल का प्रयोग करें। तिल का तेल सर्वोत्तम है।नियमित अभ्यंग (मालिश) से वात संतुलन होता है। धातु की संपन्नता होती है।प्राणायाम और योगासन करें।श्वसन तंत्र के रोगों से बचने के लिए देर तक जागना, पंखे की हवा, ठंढा वातावरण इन सब से बचें।डॉक्टर की सलाह से कसरत करें।फर्श पर न सोएँ।पैरों में चप्पल पहनें।वर्षा और शीत ऋतु में गर्म कपड़े पहनें।
श्वसन तंत्र के रोग की आयुर्वेदिक दवाएँ और उपचार :--

वृद्धावस्था के कारण धातु का क्षय होता है। इसे रोकने के लिए पंचकर्म करवाएं। इसके अंतर्गत शरीर को तेल से मालिश करना, सेकना, क्षीर बस्ति, नस्य आदि वैद्य की सलाह से करवाएँ।
पंचकर्म के साथसाथ रसायन चिकित्सा आवश्यक है।प्रदूषण से बचाव के लिए पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का सही उपयोग ज़रूरी है।वर्धमान पिप्पली रसायन, लाक्षा क्षीरपाक, च्यवनप्राश, धात्री रसायन का उपयोग श्वसन तंत्र के रोगों में प्रमुखता से किया जाता है।प्रदूषण से बचना कठिन होता जा रहा है। इसका मुकाबला करने के लिए शरीर को सब धातुओं से संपन्न होना आवश्यक है। उपरोक्त आहार, विहार, पंचकर्म और रसायन चिकित्सा का उपयोग करें। इनके उपयोग से हम प्रदूषण से होनेवाले श्वसन तंत्र के रोगों से बचाव कर सकते हैं।