Tuesday 10 November 2020

एक टेस्ट - अर्थराइटिस के मरीजों के लिए फायदेमंद है व अर्थराइटिस ( गठिया) के कारण व घरेलू उपचार

 




जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है

सी रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्या है?

सी रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है, जो शरीर में सी रिएक्टिव प्रोटीन प्रोटीन की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। सीआरपी एक प्रोटीन है जिसे लिवर बनाता है। सीआरपी के जरिए शरीर में सूजन का भी पता लगाया जाता है। आमतौर पर हमारे रक्त में सी रिएक्टिव प्रोटीन की मात्रा कम होती है। 

सीआरपी का हाई लेवल कई गंभीर बीमारियों की तरफ इशारा करता है, लेकिन इससे शरीर में कहां और किस कारण सूजन है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। शरीर में सूजन के कारणों का पता लगाने के लिए डॉक्टर अन्य परीक्षण यानि टेस्ट की सलाह दे सकते हैं।

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट क्यों किया जाता है?

सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट शरीर में सूजन का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट से शरीर में सूजन है या नहीं, इसका पता लगाया जाता है। हालांकि, यह टेस्ट शरीर में सूजन के कारणों की जानकारी नहीं देता है। अगर इस टेस्ट से शरीर में सूजन होने के बारे में पता चलता है, तो डॉक्टर आपको नीचे बताए गए टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं :

  1. अर्थराइटिस (Arthritis)
  2. ल्यूपस (Lupus)
  3. वाहिकाशोध

डेली रूटीन का सबसे ज्यादा असर हमारे शरीर पर पड़ता है। ऐसे में हमे कई बीमारियों का शिकार होना पड़ता है। उन्हीं में से एक है अर्थराइटिस। ये एक ऐसी बीमारी है जो शरीर को काफी तकलीफ देने का काम करती है। पहले अर्थराइटिस को बड़ी उम्र की बीमारी माना जाता था। लेकिन आजकल युवाओं में भी इस बीमारी के काफी लक्षण देखे जा रहे हैं। वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन लोगों में शारीरिक मेहनत और व्यायाम में कमी और साथ ही खान-पान की गड़बड़ी और अनियमित जीवनशैली है इसका बड़ा कारण है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस, अर्थराइटिस का ही एक प्रकार है जो किसी भी उम्र के शख्स में हो सकता है। ये महिलाओं में काफी आम है और अक्सर मध्यम आयु में होता है। अर्थराइटिस के दूसरे प्रकार की तरह ही इसमें भी जोड़ों में सूजन और दर्द की समस्या होती है। जब आपका इम्यून सिस्टम आपके जोड़ों पर हमला करता है तो आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या का सामना करना पड़ता है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस 

अगर आप भी रूमेटाइड अर्थराइटिस का शिकार है तो आपके जोड़ों में दर्द होता रहेगा। आपको बता दें कि इसका कारण ये है कि जोड़ों में सूजन रहती है। सूजन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो तब होती है जब आपका इम्यून सिस्टम बाहरी आक्रमणकारी (फॉरेन इनवेडर) पर हमला करता है।

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन

सी-रिऐक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) एक प्रोटीन होता है। जिसका आपका लीवर बनाता है। ये प्रोटीन आपके खून में पाया जाता है। सूजन के समय आपके खून में सीआरपी का स्तर बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, जब आपको कोई इन्फेक्शन होता है तो आपके खून में सीआरपी स्तर बढ़ जाता है। जब इन्फेक्शन पर नियंत्रित हो जाता है तो उच्च सीआरपी स्तर गिर जाता है।

सीआरपी और रूमेटाइड अर्थराइटिस की पहचान

  • लैब टेस्ट, जैसे कि रूमेटाइड कारक की पहचान के लिए ब्लड स्कैनिंग। 
  • आपके जोड़ों की सूजन और दर्द।
  • लक्षणों की अवधि। 
  • सीआरपी टेस्ट(CRP TEST)

    सीआरपी टेस्ट के लिए आपको खून का सैंपल देना पड़ता है। इसके बाद उसे लैब में ले जाया जाएगा और फिर जब रिपोर्ट आने पर आपको उसे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। इसके बाद आपका डॉक्टर आपको बताएगा कि आपको किस तरह की दवाइयों की जरुरत है। सीआरपी टेस्ट के लिए खून देने में किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

    सीआरपी(CRP) स्तर को बढ़ाना

    अगर रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए आपका टेस्ट किया जा रहा है तो आपका डॉक्टर आपको स्टैंडर्ड सीआरपी टेस्ट करवाने के लिए कहेगा, बजाय कि हाई-सेंसीटीविटी टेस्ट के। स्टैंडर्ट टेस्ट के साथ सीआरपी के उच्च स्तर का पता लगाया जा सकता है। सीआरपी का बढ़ा हुआ स्तर किसी सूजन की बीमारी का संकेत हो सकता है, लेकिन यह रूमेटाइड अर्थराइटिस की निश्चित पहचान कर पाने में सक्षम नहीं है।
  • इलाज

    रूमेटाइड अर्थराइटिस का इलाज आपको बहुत ही ध्यान से कराना होता है। आपको समय के साथ इलाज कराना बहुत जरूरी हो जाता है। डॉक्टर आपको समय-समय पर सीआरपी टेस्ट कराने की सलाह दे सकता है। आपका सीआरपी स्तर इस बात का संकेत दे सकता है कि आपका ट्रीटमेंट कैसा चल रहा है। 
    अगर आपका ऐसे में आपका सीआरपी स्तर गिर गया है तो इसका मतलब है दवाई अपना असर दिखा रही है। इसके अलावा अगर आपका सीआरपी स्तर बढ़ गया है तो डॉक्टर समझ जाएगा कि आपको नए इलाज की जरुरत है।
  • अर्थराइटिस ( गठिया)
  • गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है।लोगों की बढ़ती उम्र के साथ अक्सर देखा जा रहा कि गठिया रोग (आर्थराइटिस) उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रहा है। 


    कच्चे आलू से फायदा

    आलू रसोईघर बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि आलू से हम कई तरह कि डिश तैयार करते हैं। इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि गठिया के रोग में आलू रामबाण साबित होता है। आपको बता दें कि कच्चे आलू का रस गठिया के इलाज में बहुत फायदेमंद होता है। कच्चे आलू के रस में एन्टी इंफ्लैमटोरी गुण होने के चलते यह गर्दन, कोहनी, कंधा और घुटनों के दर्द में बहुत राहत पहुंचात है। कच्चे आलू के रस को पीने से उन लोगों को भी फायदा मिलता है जो लोग लंबे समय से आर्थराइटिस के दर्द से परेशान हैं। कच्चे आलू के रस को निकालने के लिए उसे बिना छीले ही पतले टुकड़ों में काट लें। इसके बाद आलू के टुकड़ों को पानी में रात भर के लिए ढककर रख दें। सुबह खाली पेट इस पानी को पीएं। इससे जरूर लाभ मिलेगा। कच्चे आलू के रस से गठिया रोग का इलाज सदियों से किया जा रहा है।

    इनका सेवन भी फायदेमंद
    1- सब्जियों का जूस
    2- तिल के बीज
    3- लहसुन
    4- केला
    5- मूंग की दाल का सूप
  • गठिया रोग में सेम और अन्य फलीदार सब्जियों (बींस), चेरी, मशरूम, ओट्स, चौलाई, संतरा, भूरे चावल, हरी पत्तेदार सब्जियां, मेथी, सोंठ, नाशपाती, गेहूं का अंकुर, सूरजमुखी के बीज, कद्दू, अंडा, (सोया मिल्क, सोया बडी, सोया पनीर, टोफू आदि) पपीता, ब्रोकली, लाल शिमला मिर्च, अजवायन, अनानास, अनार, आडू, अंगूर, आम, एलोवेरा, आंवला, सेब, केला, तरबूज, लहसुन, आलूबुखारा, सूखे आलूबुखारे, ब्लूबेरी और स्ट्रॉबेरी डेयरी पदार्थ जैसे दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर आदि) कैल्शियम का अच्छा स्रोत है इन्हें आप ले सकते है लेकिन बेहतर यह होगा की आप गठिया रोग में दूध-दही भी कम मात्रा में ही लें. कैल्शियम की पूर्ति फलों और सब्जियों से करें गठिया रोग में फलो और सब्जियों में सहिजन, बथुआ, मेथी, सरसों का साग, ककड़ी, लौकी, तुरई, पत्ता गोभी, परवल, गाजर, अजमोद,आलू, शकरकंद, अदरक, करेला, लहसुन का सेवन करें. गठिया के रोगी को चौलाई की सब्जी भी फायदा करती है.गठिया रोग में अधिक पानी युक्त फल जैसे खरबूजा, तरबूज, पपीता, खीरा अधिक खाएं. गठिया रोग में हींग, शहद, अश्वगंधा और हल्दी भी लाभकारी हो सकते हैं

  • गठिया की चपेट में भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, वैसे-वैसे रोगी के लिए चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और रीढ़ की हड्डी पर होता है। इसके साथ ही अंगुलियों के जोड़ों, कलाई, कूल्हों और पैरों के जोड़ों को भी प्रभावित करता है। भारत में हर दूसरा या तीसरा मरीज घुटने की परेशानी से जूझ रहा है। जानकारों का मानना है कि देश में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की बीमारी से पीड़ित हैं। जिस तेजी से यह बीमारी बढ़ रही है, आने वाले कुछ सालों में आर्थराइटिस लोगों को शारीरिक रूप से अक्षम बनाने में चौथा प्रमुख कारण होगा। भारतीय लोग आनुवांशिक तौर पर घुटने की आर्थराइटिस से अधिक ग्रस्त होते हैं। बताते चलें कि चीन में करीब 6.5 करोड़ लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जो भारत में घुटने की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या से आधे से भी कम है।

  • क्यों होता है गठिया
    जब हड्डियों के जोड़ों में यूरिक एसिड जमा हो जाता है तो वह गठिया का रूप ले लेता है। इसके बाद रोगी के एक या एक से अधिक जोड़ों में दर्द, अकड़न और सूजन आ जाती है। गठिया के अधिक बढ़ जाने पर रोगी को चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। इसके अलावा जोड़ों में गांठे पड़ जाती हैं, जो रोगी को बहुत दर्द पहुंचाती हैं। जोड़ों में गांठ होने के कारण इसे गठिया कहते हैं। यूरिक एसिड कई तरह के खाद्य पदार्थों को खाने से बनता है

No comments:

Post a Comment