Wednesday 23 March 2022

गुड़ खाकर पियें गर्म पानी, जड़ से खत्म हो जाएंगी ये 6 गंभीर बीमारी



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गुड़ काफी मीठा होता है और खाने में काफी स्वादिष्ट भी होता है। लेकिन फिर भी कई लोग नहीं जानते कि गुड़ का सेवन करने से व्यक्ति को कौन से फायदे होते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि रोज़ाना एक टुकड़ा गुड़ खाकर एक गिलास गर्म पानी पीने से कौन से रोग खत्म हो जाते हैं।

1. पेट हो जाएगा कम:  अगर आप अपने बढ़े हुए पेट को अंदर करना चाहते हैं, तो रात को 2 टुकड़े गुड़ खाकर गर्म पानी पी लीजिये। गुड़ में पोटेशियम, मैग्नीशियम, बिटामिन B1, B6 और विटामिन C होते हैं, जो एक्स्ट्रा कैलोरी बर्न करने में मदद करते हैं।

2. पेट से जुड़ी परेशानियाँ:  सोने से पहले 2 टुकड़े गुड़ खाकर गर्म पानी पीने से पेट संबंधी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। अगर आपको भी सुबह पेट साफ ना होने की शिकायत रहती है, तो यह उपाय जरूर आज़माया करें।

3. अनिद्रा की समस्या होगी दूर: अगर आपको रात में ठीक से नींद नहीं आती या बैचेनी महसूस होती है, तो गर्म पानी के साथ 1–2 टुकड़े गुड़ जरूर खाएं। गुड़ में मौजूद एंटी-डिप्रेसेंट गुण तनाव को कम करके गहरी नींद दिलाने में मदद करेंगे।

4. मुँह की बीमारियों को करे खत्म: रात को इलायची खाकर गर्म पानी पीने से मुँह में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं, जिससे आप कैविटी जैसी परेशानी से बचे रहते हैं। साथ ही, इससे मुँह की बदबू भी दूर होती है? औ मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं।

5. पथरी की समस्या को करे खत्म: सोने से पहले 1 टुकड़ा गुड़ को गर्म पानी के साथ खाने से पथरी जल्दी टूटकर पेशाब के रास्ते बाहर आ जाती है। साथ ही, गुड़ से सीने में जलन, और और जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।

6. बालों का झड़ना करे कम: प्रदूषण का अटैक, तनाव, और अहितकारी भोजन करने वालोंकगग बालों को कमजोर कर देती है, जिसके कारण वह झड़ने लगते हैं। लेकिन सोने से पहले एक टुकड़ा गुड़ खाकर पानी पीने से बालों का झड़ना बंद हो जाता है।
    
अच्युतानन्तगोविंद नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकल रोगा: अहम् सत्यं वदाम्यहम्।।

Thursday 20 May 2021

ब्लैक फंगस क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और इलाज

 


कोविड-19 (Covid-19) के बाद ब्लैक फंगस (Black Fungus) ने भारत में डर का माहौल गहरा दिया है। इसकी गंभीरता को देखते हुए कई राज्य सरकारों ने इसे भी महामारी घोषित कर दिया है। लेकिन, आखिर यह ब्लैक फंगस क्या है और क्या इसके कारण, लक्षण व इलाज (Black Fungus treatment) के बारे में हमारे पास पर्याप्त जानकारी मौजूद है या फिर हम सिर्फ इसके नाम यानी म्यूकॉरमायकोसिस (Mucormycosis) के अलावा कुछ नहीं जानते। आइए विस्तार से जानते हैं।

Mucormycosis (Black Fungus) म्यूकोरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस क्या है?
ब्लैक फंगस का मेडिकल नाम म्यूकॉरमायकोसिस है। जो कि एक दुर्लभ व खतरनाक फंगल संक्रमण है। ब्लैक फंगस इंफेक्शन वातावरण, मिट्टी जैसी जगहों में मौजूद म्यूकॉर्मिसेट्स नामक सूक्ष्मजीवों की चपेट में आने से होता है। इन सूक्ष्मजीवों के सांस द्वारा अंदर लेने या स्किन कॉन्टैक्ट में आने की आशंका होती है। यह संक्रमण अक्सर शरीर में साइनस, फेफड़े, त्वचा और दिमाग पर हमला करता है।

कोरोना और ब्लैक फंगस (Black Fungus and Coronavirus) में क्या है रिश्ता?
वैसे, तो हमारा इम्यून सिस्टम यानी संक्रमण व रोगों के खिलाफ लड़ने की क्षमता ब्लैक फंगस यानी म्यूकॉरमायकोसिस के खिलाफ लड़ने में सक्षम होता है। लेकिन, कोविड-19 (कोरोनावायरस) हमारे इम्यून सिस्टम  को बेहद कमजोर कर देता है। इसके साथ ही कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां व स्टेरॉयड भी इम्यून सिस्टम पर असर डाल सकते हैं। इन प्रभावों से कोरोना के मरीज का इम्यून सिस्टम बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसी कारण, कोविड-19 के मरीज का इम्यून सिस्टम ब्लैक फंगस के कारक सूक्ष्मजीवों (म्यूकॉर्मिसेट्स) के खिलाफ लड़ नहीं पाता।

किन लोगों को ज्यादा है ब्लैक फंगस का खतरा?
यह फंगल इंफेक्शन किसी भी उम्र व लिंग के लोगों को हो सकता है। हम अपनी जिंदगी में कई बार इसके संपर्क में आकर ठीक भी हो जाते होंगे और हमें पता भी नहीं लगता। क्योंकि, हमारा इम्यून सिस्टम म्यूकॉरमायकोसिस के खिलाफ आसानी से लड़ सकता है। मगर, जिन लोगों में किसी गंभीर बीमारी या दवाइयों के कारण इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, उन्हें इस फंगल इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। जैसे-

  • एचआईवी या एड्स
  • कैंसर
  • डायबिटीज
  • ऑर्गन ट्रांसप्लांट
  • व्हाइट ब्लड सेल का कम होना
  • लंबे समय तक स्टेरॉयड का इस्तेमाल
  • ड्रग्स का इस्तेमाल
  • पोषण की कमी
  • प्रीमैच्योर बर्थ, आदि
  • म्यूकॉरमायकोसिस ब्लैक फंगस के लक्षण (Mucormycosis or Black Fungus Symptoms)
    म्यूकॉरमायकोसिस के लक्षण हर मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह फंगस आपके शरीर के किस भाग पर विकसित हो रहा है। आइए इसके कुछ आम व प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं। जैसे-

    • बुखार
    • आंखों में दर्द
    • खांसी
    • आंख की रोशनी कमजोर होना
    • छाती में दर्द
    • सांस का फूलना
    • साइनस कंजेशन
    • मल में खून आना
    • उल्टी आना
    • सिरदर्द
    • चेहरे के किसी तरफ सूजन
    • मुंह के अंदर या नाक पर काले निशान
    • पेट में दर्द
    • डायरिया
    • शरीर पर कुछ जगह लालिमा, छाले या सूजन आना


    ब्लैक फंगस की जांच (Diagnosis of Black Fungus)
    ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) का पता लगाने के लिए डॉक्टर आपके शरीर का फिजिकल एग्जामिनेशन कर सकता है। इसके अलावा, वह आपके नाक व गले से नमूने लेकर जांच करवा सकता है। संक्रमित जगह से टिश्यू बायोप्सी करके भी इस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। जरूरत होने पर एक्सरे, सीटी स्कैन व एमआरआई भी किया जा सकता है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि फंगल इंफेक्शन शरीर के किस-किस भाग तक पहुंच गया है।

    म्यूकॉरमायकोसिस व ब्लैक फंगस का इलाज (Black Fungus Treatment)
    म्यूकॉरमायकोसिस का पता लगते ही आपको जल्द से जल्द इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए। जिससे शरीर में संक्रमण को तुरंत खत्म या नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए आपको डॉक्टर एंफोटेरिसिन-बी (Amphotericin B), पोसाकोनाजोल (Posaconazole) जैसी कुछ एंटीफंगल ड्रग्स को आईवी या गोली के द्वारा लेने की सलाद दे सकता है। कुछ गंभीर मामलों में संक्रमित क्षेत्रों से सर्जरी के द्वारा टिश्यू हटाए जाते हैं, ताकि यह दूसरे क्षेत्रों तक न फैले।

    ध्यान रखें कि यह जानकारी सिर्फ जागरुकता के लिए दी गई है। किसी भी दवा का इस्तेमाल या इस बीमारी का इलाज खुद न करें। डॉक्टर से सलाह लेना ही उचित है। यह जानकारी किसी भी डॉक्टरी सलाह का विकल्प नहीं है।

  • म्यूकॉरमायकोसिस के जोखिम
    ब्लैक फंगस के कारण आपको कई गंभीर जोखिम हो सकते हैं। जैसे-
    1. आपके आंखों की रोशनी चले जाना
    2. नर्व डैमेज
    3. नसों में खून के थक्के जमना या नसों का बाधित हो जाना
    समय पर इलाज न मिलने के कारण यह संक्रमण जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए, अगर आप आशंकित मरीजों की लिस्ट में आते हैं, तो आशंकित लक्षण दिखते ही बिना देर किए डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।

    क्या ब्लैक फंगस का बचाव किया जा सकता है? (Black Fungus Prevention)
    ब्लैक फंगस को रोकने के लिए आप कुछ हद तक सावधानी बरत सकते हैं। हालांकि, फिर भी इससे बचाव का वादा नहीं किया जा सकता। आइए, इन एहतियात को जानते हैं।

    1. धूल-मिट्टी वाली जगह पर जानें से बचें व मास्क का प्रयोग करें
    2. गंदे व संक्रमित पानी के संपर्क में आने से बचें
    3. इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाली चीजें खाएं
    4. योगा व एक्सरसाइज करें

    यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। इसलिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

Sunday 24 January 2021

मधुमेह ( शुगर / डाईबीटीज़ ) रोग , कारण व आयुर्वेद उपचार

 


मधुमेह ऐसी बीमारी है जो एक बार किसी के शरीर को पकड़ ले तो उसे फिर जीवन भर छोड़ती नहीं। इस बीमारी का जो सबसे बुरा पक्ष है वह यह कि यह शरीर में अन्य कई बीमारियों को भी निमंत्रण देती है।

शुगर लेवल कितना सही- आईएफजी में शुगर लेवल 100 से कम है तो सामान्य और 101 से 125 है तो प्री डायबिटीक और 126 एमजी/डीएल से ऊपर है तो डायबिटीक हैं। इसी तरह आईजीटी 140 से कम है तो सामान्य, 140-200 है तो प्री डायबिटीक और 200 एमजी/डीएल से ऊपर है तो डायबिटीक हैं

मधुमेह के लिए एक हर्बल नुस्खा काफी कारगार  जो एक प्रसिद्ध वैध द्वारा दिया  गया है  जो  मधु योग चूर्ण  व डाइबो रस  के नाम से सुप्रसिद्ध है काफी लोग इसे लेकर मधुमेह को नियंत्रित कर चुके है  आप हमे व्हट्स अप करके मँगा सकते है - 8460783401   


आजकल के इस भागदौड़ भरे युग में अनियमित जीवनशैली के चलते जो बीमारी सर्वाधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है वह है मधुमेह। मधुमेह को धीमी मौत भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है जो एक बार किसी के शरीर को पकड़ ले तो उसे फिर जीवन भर छोड़ती नहीं। इस बीमारी का जो सबसे बुरा पक्ष है वह यह है कि यह शरीर में अन्य कई बीमारियों को भी निमंत्रण देती है। मधुमेह रोगियों को आंखों में दिक्कत, किडनी और लीवर की बीमारी और पैरों में दिक्कत होना आम है। पहले यह बीमारी चालीस की उम्र के बाद ही होती थी लेकिन आजकल बच्चों में भी इसका मिलना चिंता का एक बड़ा कारण हो गया है।  

मधुमेह तीन प्रकार के होते हैं
टाइप 1 – यह एक ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर है, इसमें बीटा कोशिकाएं इंसुलिन नहीं बना पाती हैं। इस मधुमेह में मरीज़ को इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, ताकि शरीर में इंसुलिन की मात्रा सही तरीक़े से बनी रहे। यह डायबिटीज़ बच्चों और युवाओं को होने की आशंका ज़्यादा होती है।
टाइप 2 – इसमें शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है या फिर शरीर सही तरीके से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता।

गर्भावधि मधुमेह (gestational diabetes) – यह मधुमेह गर्भावस्था के दौरान होता है, जब खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इस दौरान, गर्भवती महिलाओं को टाइप 2 डायबिटीज़ होने का खतरा ज़्यादा रहता है।

मधुमेह कैसे होता है--- 

जब हमारे शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यही वह हार्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

यह रोग महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। मधुमेह ज्यादातर वंशानुगत और जीवनशैली बिगड़ी होने के कारण होता है। इसमें वंशानुगत को टाइप-1 और अनियमित जीवनशैली की वजह से होने वाले मधुमेह को टाइप-2 श्रेणी में रखा जाता है। पहली श्रेणी के अंतर्गत वह लोग आते हैं जिनके परिवार में माता-पिता, दादा-दादी में से किसी को मधुमेह हो तो परिवार के सदस्यों को यह बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है। इसके अलावा यदि आप शारीरिक श्रम कम करते हैं, नींद पूरी नहीं लेते, अनियमित खानपान है और ज्यादातर फास्ट फूड और मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं तो मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है।

बड़ा खतरा

डायबिटीज के मरीजों में सबसे ज्यादा मौत हार्ट अटैक या स्ट्रोक से होती है। जो व्यक्ति डायबिटीज से ग्रस्त होते हैं उनमें हार्ट अटैक का खतरा आम व्यक्ति से पचास गुना ज्यादा बढ़ जाता है। शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से हार्मोनल बदलाव होता है और कोशिशएं क्षतिग्रस्त होती हैं जिससे खून की नलिकाएं और नसें दोनों प्रभावित होती हैं। इससे धमनी में रुकावट आ सकती है या हार्ट अटैक हो सकता है। स्ट्रोक का खतरा भी मधुमेह रोगी को बढ़ जाता है। डायबिटीज का लंबे समय तक इलाज न करने पर यह आंखों की रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा भी हो सकता है।

मधुमेह के लक्षण

-ज्यादा प्यास लगना

-बार-बार पेशाब का आना

-आँखों की रौशनी कम होना

-कोई भी चोट या जख्म देरी से भरना

-हाथों, पैरों और गुप्तांगों पर खुजली वाले जख्म

बार-बर फोड़े-फुंसियां निकलना

-चक्कर आना

-चिड़चिड़ापन

मधुमेह से बचाव के यह कुछ उपाय आपके काम आएंगे

- अपने ग्लूकोज स्तर को जांचें और भोजन से पहले यह 100 और भोजन के बाद 125 से ज्यादा है तो सतर्क हो जाएं। हर तीन महीने पर HbA1c टेस्ट कराते रहें ताकि आपके शरीर में शुगर के वास्तविक स्तर का पता चलता रहे। उसी के अनुरूप आप डॉक्टर से परामर्श कर दवाइयां लें।

- अपनी जीवनशैली में बदलाव करें और शारीरिक श्रम करना शुरू करें। जिम नहीं जाना चाहते हैं तो दिन में तीन से चार किलोमीटर तक जरूर पैदल चलें या फिर योग करें।

- कम कैलोरी वाला भोजन खाएं। भोजन में मीठे को बिलकुल खत्म कर दें। सब्जियां, ताज़े फल, साबुत अनाज, डेयरी उत्पादों और ओमेगा-3 वसा के स्रोतों को अपने भोजन में शामिल कीजिये। इसके अलावा फाइबर का भी सेवन करना चाहिए।

- दिन में तीन समय खाने की बजाय उतने ही खाने को छह या सात बार में खाएं। 

- धूम्रपान और शराब का सेवन कम कर दें या संभव हो तो बिलकुल छोड़ दें।

आफिस के काम की ज्यादा टेंशन नहीं रखें और रात को पर्याप्त नींद लें। कम नींद सेहत के लिए ठीक नहीं है। तनाव को कम करने के लिए आप ध्यान लगाएं या संगीत आदि सुनें।

- नियमित रूप से स्वास्थ्य की जांच कराते रहें और शुगर लेवल को रोजाना मॉनीटर करें ताकि वह कभी भी लेवल से ज्यादा नहीं हो। एक बार शुगर बढ़ जाता है तो उसके लेवल को नीचे लाना काफी मुश्किल काम होता है और इस दौरान बढ़ा हुआ शुगर स्तर शरीर के अंगों पर अपना बुरा प्रभाव छोड़ता रहता है।

- गेहूं और जौ 2-2 किलो की मात्रा में लेकर एक किलो चने के साथ पिसवा लें। इस आटे की बनी चपातियां ही भोजन में खाएं।

- मधुमेह रोगियों को अपने भोजन में करेला, मेथी, सहजन, पालक, तुरई, शलगम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी, ब्रौकोली, टमाटर, बंद गोभी और पत्तेदार सब्जियों को शामिल करना चाहिए।

- फलों में जामुन, नींबू, आंवला, टमाटर, पपीता, खरबूजा, कच्चा अमरूद, संतरा, मौसमी, जायफल, नाशपाती को शामिल करें। आम, केला, सेब, खजूर तथा अंगूर नहीं खाना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर ज्यादा होता है।

- मेथी दाना रात को भिगो दें और सुबह प्रतिदिन खाली पेट उसे खाना चाहिए।

- खाने में बादाम, लहसुन, प्याज, अंकुरित दालें, अंकुरित छिलके वाला चना, सत्तू और बाजरा आदि शामिल करें तथा आलू, चावल और मक्खन का बहुत कम उपयोग करें।

मधुमेह का इलाज
मधुमेह के बारे में इतनी जानकारी आपको मिल ही गई है, तो अब उसके इलाज के बारे में भी जानकारी हासिल कर ली जाये।
इंसुलिन – टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ के कई मरीज़ इंसुलिन के इंजेक्शन का उपयोग करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इंसुलिन पंप की भी सलाह देते हैं।
सही खान-पान- मधुमेह के मरीज़ों को अपने खान-पान का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए। इसलिए, डॉक्टर डायबिटीज़ के लिए एक विशेष आहार चार्ट बनाते हैं और उसी के अनुरूप खान-पान की सलाह देते हैं। खाने में हरी पत्तीदार सब्ज़ियां, गाजर, टमाटर, संतरा, केला व अंगूर खा सकते हैं। इसके अलावा चीज़ और दही का भी सेवन करने की सलाह दी जाती है।
व्यायाम -खाने-पीने के अलावा डॉक्टर व्यायाम और योगासन करने की भी राय देते हैं। फिज़िकल एक्टिविटी करने से ब्लड ग्लूकोज़ लेवल संतुलित रहता है और आपका शरीर स्वस्थ रहता है। डॉक्टर, डायबिटीज़ के मरीज़ों को चलने, सुबह की सैर और हल्का-फ़ुल्का व्यायाम करने की राय देते हैं। ये डायबिटीज के इलाज के सबसे आसान तरीके हैं।
दवाइयां – डायबिटीज़ के मरीज़ों को दवाइयाें की भी सलाह दी आती है। डॉक्टर, मरीज़ की बीमारी के अनुसार ही दवाई देते हैं।

डायबिटीज़ या मधुमेह को काफी हद तक नियंत्रित करने के लिए कुछ घरेलू उपचार इस प्रकार हैं-
1. करेले का जूस
सामग्री
एक करेला
चुटकीभर नमक
चुटकीभर कालीमिर्च
एक या दो चम्मच नींबू का रस
बनाने की विधि
करेले को धोकर उसका जूस निकाल लें।
अब इसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च और नींबू का रस मिला लें।
अब इस मिश्रण को पीएं।
कब करें सेवन?
आप हर रोज़ सुबह खाली पेट इसका सेवन कर सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है ?
करेले में फाइबर होता है, जो एंटीडायबिटिक यौगिक है। इसमें ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को कम करने के गुण होते हैं।
2. दालचीनी
सामग्री
आधा चम्मच दालचीनी पाउडर
एक गिलास गर्म पानी
बनाने की विधि
गर्म पानी में दालचीनी पाउडर मिलाकर पीएं।
कब करें सेवन ?
इस मिश्रण को रोज़ सुबह पीएं।
कैसे फायदेमंद है ?
दालचीनी एक सुगंधित मसाला है, जिसका व्यापक रूप से विभिन्न व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। यह एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है। यह ऑक्सीडेटिव तनाव, जिससे मधुमेह होने की आशंका होती है, उसे कम करने में मदद करता है।
3. मेथी
सामग्री
दो चम्मच मेथी दाना
दो कप पानी
बनाने की विधि
दो चम्मच मेथी दाने में दो कप पानी मिलाएं।
अब इसे ढककर रात भर छोड़ दें।
अगले दिन पानी को छानकर खाली पेट पीएं।
कब करें सेवन ?
इसे हर सुबह पीएं, जिससे आपका ब्लड शुगर लेवल कम होगा।
कैसे फायदेमंद है ?
मेथी का उपयोग मसाले के तौर पर होता है। इसके अलावा एक स्टडी के अनुसार, मेथी में ब्लड ग्लूकोज कम करने के गुण होते हैं, जो टाइप 2 मधुमेह के इलाज में काफ़ी मददगार साबित हो सकते हैं।
4. एलोवेरा
सामग्री
एलोवेरा का रस
क्या करें?
हर रोज़ दिन में एक से दो बार बिना चीनी के एलोवेरा जूस का सेवन करें।
आप चाहें तो डॉक्टर से बात करके एलोवेरा का कैप्सूल भी ले सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है ?
हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि एलोवेरा में लिपिड और ब्लड शुगर को कम करने वाले गुण होते हैं। इसके लगातार सेवन से आपका ब्लड ग्लूकोज़ लेवल नियंत्रित रहता है।
5. आंवला
सामग्री
आंवले का रस
हल्दी
शहद
बनाने की विधि
आंवले के रस में चुटकीभर हल्दी और शहद मिलाकर पीएं। ऐसा करने से शुगर नियंत्रण में रहेगी।
कैसे है फायदेमंद?
आंवला में मौजूद क्रोमियम ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मददगार होता है। यह इंसुलिन के प्रवाह को भी बढ़ाता है। इस वजह से, यह मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए काफ़ी फायदेमंद होता है।
6. जामुन
सामग्री
जामुन
शहदकैसे खाएं?
आप एक चम्मच शहद के साथ जामुन का सेवन करें, ऐसा करने से आपका शुगर नियंत्रण में रहेगा। सिर्फ जामुन ही नहीं, बल्कि इसके पत्तों में भी डायबिटीज़ नियंत्रण करने के गुण मौजूद हैं। आप चाहे तो जामुन के बीज को पीसकर पाउडर बनाकर भी सेवन कर सकते हैं।
कब करें सेवन
आप हफ़्ते में एक या दो बार इसका सेवन ज़रूर करें।
कैसे है फायदेमंद?
इसमें मौजूद उच्च पोटैशियम मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
7. लहसुन
सामग्री
लहसुन के कुछ टुकड़े
कैसे इस्तेमाल करें ?
आप रोज़ सुबह लहसुन की एक या दो कली खा सकते हैं।
अगर आपको कच्चा लहसुन खाना पसंद नहीं, तो आप अपनी पसंदीदा सब्ज़ी बनाने के समय उसमें थोड़ा लहसुन डाल सकते हैं।
कैसे है फायदेमंद ?
जब लहसुन को पीसा या कुचला जाता है, तो इसमें से एलिसिन नाम का एंटीऑक्सीडेंट निकलता है। यह तत्व एंटीडायबिटिक होता है, जो मधुमेह को प्रभावी ढंग से रोकने में मदद करता है।
8. नीम
सामग्री
नीम के पत्ते
नीम का पेस्ट
नीम का कैप्सूल
कैसे खाएं ?
आप चाहें तो नीम के पत्तों को अच्छे से धोकर सुबह के समय खा सकते हैं।
एक चम्मच नीम के पेस्ट को पानी में मिलाकर सुबह-सुबह पी भी सकते हैं।
इसके अलावा, अगर आपको कच्चा नीम या नीम का पेस्ट पसंद नहीं है, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार नीम का कैप्सूल भी ले सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है ?
भारत में नीम के पत्तों, छाल और फलों को कई सालों से आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है। आयुर्वेद के अनुसार नीम में एंटीडाइबिटिक, एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। इसके अलावा, कुछ स्टडीज के अनुसार नीम में खून में ग्लूकोज कम करने वाले गुण होते हैं। इसके अलावा यह मधुमेह को रोकने में भी मददगार साबित हो सकता है। यहां तक कि नीम, मधुमेह के दौरान होने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव को भी रोक सकता है।
9. अमरूद
आप हर रोज़ अमरूद का सेवन का सकते हैं इससे डायबिटीज़ का असर कम होता है।
कैसे फायदेमंद है?
जापान के याकुल्ट सेंट्रल इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए शोध के अनुसार, अमरूद या अमरूद की पत्तियों की चाय मधुमेह के मरीज़ों में ब्लड ग्लूकोज़ को कम करने में सहायक है। अमरूद, अल्फा-ग्लूकोसाइडेज एंजाइम गतिविधि को कम कर मधुमेह में रक्त ग्लूकोज को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है। सप्ताह के लिए अमरूद की पत्तियों की चाय पीने से शरीर में ब्लड शुगर लेवल कम हो सकता है। अमरूद में फाइबर और विटामिन-सी के भी गुण हैं, जो वज़न को संतुलित रखते हैं।
10. दलिया
आप हर रोज़ एक कटोरा दलिया अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। आप चाहें तो रोज़ दिन में दो बार भी इसका सेवन कर सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है?
दलिया में प्रचुर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है। यह ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को नियंत्रित करता है और कोलेस्ट्रॉल को कम कर मधुमेह का उपचार करता है। इसके अलावा दलिया खाने से टाइप-2 मधुमेह के मरीज़ों के ग्लूकोज़ पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। दलिया में मौजूद बीटा-ग्लुकोन न सिर्फ ब्लड ग्लूकोज़ को कम करते हैं, बल्कि दिल की बीमारी से भी बचाते हैं । हालांकि, यह ज़रूरी नहीं कि सभी प्रकार का दलिया अच्छा हो, फ्लेवर्ड या तुरंत बनने वाले दलिया से दूर रहें, क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा होती है।
11. ग्रीन टी
हर रोज़ ग्रीन टी का सेवन करें। यह मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक साबित होती है, क्योंकि यह चयापचय प्रणाली (metabolic system) के काम को बढ़ाती है। रोज़ ग्रीन टी के सेवन से टाइप-2 डायबिटीज़ नियंत्रण में रहता है। ग्रीन टी में मौजूद पॉलीफेनॉल्स (polyphenols) शरीर में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित कर, मधुमेह के जोखिम को कम करता है। एक कोरियाई अध्ययन से पता चला है कि 6 या उससे अधिक कप ग्रीन टी पीने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा 33 प्रतिशत तक कम हो सकता है, लेकिन इस बारे में अपने डॉक्टर से परामर्श ज़रूर लें, क्योंकि एक दिन में 6 कप ग्रीन टी स्वास्थ्य के लिए बेहतर नहीं हो सकता है।
12. अदरक
सामग्री
थोड़ा सा कद्दूकस किया हुआ अदरक
एक कप पानी
कैसे सेवन करें?
एक पैन में कद्दूकस किए हुए अदरक को पानी में उबालें।
फिर पांच से दस मिनट बाद इस पानी को छान लें।
इसके बाद पानी को ठंडा कर तुरंत पी लें।
कितनी बार पिएं ?
आप इसे रोज़ एक या दो बार पी सकते हैं। अगर, आपको अदरक ऐसे पीना पसंद नहीं, तो आप इसे अपनी पसंदीदा सब्ज़ी में दाल सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है?
जब आप हर रोज़ अदरक का सेवन करेंगे तो इससे आपका ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रहेगा। अदरक की यह प्राकृतिक एंटीडाइबेटिक प्रकृति मधुमेह वाले लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हो सकती है।
13. कलौंजी तेल
सामग्री
5 एमएल कलौंजी तेल
एक कप काली चाय
बनाने की विधि
एक कप ब्लैक टी में 2.5 एमएल कलौंजी तेल मिलाएं।
इस मिश्रण को रोज़ पीएं।
कब करें सेवन?
आप रोज़ एक या दो बार (सुबह और रात में ) इसका सेवन कर सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है?
कलौंजी या कलौंजी का तेल डायबिटीज़ को नियंत्रित करने में मुख्य भूमिका निभाता है। यह न सिर्फ़ डायबिटीज़ के लिए एक अच्छा घरेलू उपचार माना जाता है, बल्कि यह ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को भी नियंत्रित करता है।
14. करी पत्ता
सामग्री
8-10 करी पत्ता
कैसे खाएं?
आप चाहे तो हर रोज़ करी पत्ता को धोकर खाएं या फिर भोजन बनाते समय उसमें थोड़े करी पत्ता का इस्तेमाल कर सकते हैं।
कब खाएं?
आप हर रोज़ अपने खाने में इसे शामिल कर सकते हैं।
कैसे फायदेमंद है?
करी पत्ते के सेवन से आपके शरीर में इंसुलिन की प्रक्रिया नियंत्रित रहती है और ब्लड ग्लूकोज़ लेवल भी कम होता है। इसके साथ ही करी पत्ता वजन कम करने और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी आपकी मदद करता है। साथ ही, डायबिटीज़ की रोकथाम करता है।
15. विटामिन
जिन लोगों को मधुमेह है, उन्हें विटामिन-बी की पर्याप्त मात्रा और ए, डी, ई व के जैसे वसा-घुलनशील विटामिन की आवश्यकता होती है। चूंकि, मधुमेह रोगियों को बार-बार पेशाब जाने की इच्छा होती है, इसलिए उनमें पानी के घुलनशील विटामिनों की कमी हो जाती है। ऐसे में उन्हें विटामिन युक्त आहार जैसे – गाजर, बादाम, पालक, चीज़ को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा मधुमेह के मरीज़ अपने डॉक्टर से अपने आहार चार्ट के बारे में सलाह ज़रूर लें।
नोट: अगर ऊपर दिए गए घरेलु उपचार में उपयोग की गए किसी भी चीज़ से आपको एलर्जी है, तो उसका सेवन करने से पहले आप अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर कर लें।
मधुमेह का परीक्षण
डायबिटीज़ का पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण आम स्वास्थ्य समस्याओं जैसे होते हैं। इसलिए, डायबिटीज़ के परीक्षण के बारे में भी जानना चाहिए।
ग्लूकोज फास्टिंग टेस्ट
यह ब्लड टेस्ट बहुत ही आम है। यह टेस्ट सुबह के समय बिना कुछ खाए-पिए किया जाता है। इससे ब्लड शुगर का सही स्तर जानने में मदद मिलती है। यह बहुत ही सुविधाजनक, सस्ता और घर पर भी किया जा सकता है।
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट
यह ब्लड टेस्ट पूरे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है।
ए1सी टेस्ट
इस टेस्ट में हर रोज़ ब्लड शुगर का उतार-चढ़ाव चेक करने की जगह, पिछले तीन से चार महीने के लेवल का पता किया जाता है। इस टेस्ट में हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ी ग्लूकोज की मात्रा के बारे में भी पता चलता है। इस टेस्ट में मरीज़ को फास्टिंग यानी भूखे रहने की ज़रूरत नहीं होती और यह दिन में किसी समय किया जा सकता है।
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट
इस टेस्ट के लिए कम से कम रात भर या छह से आठ घंटे कुछ खाना नहीं होता है। टेस्ट के करीब दो घंटे पहले ग्लूकोज़ का पानी पीना होता है। इसके बाद अगले दो घंटे तक ब्लड शुगर लेवल का नियमित रूप से परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षणों में से कुछ परीक्षण घर पर और कुछ परीक्षण डॉक्टर की निगरानी में किए जाते हैं।
अब चार्ट के जरिए जानते हैं शुगर का लेवल-
मधुमेह (डायबिटीज, शुगर) चार्ट
सामान्य या गैर-मधुमेह वाले व्यक्तियों में खाली पेट 72 से 99 मिलीग्राम/डीएल की रेंज में ब्लड शुगर होना चाहिए और खाने के दो घंटे बाद 140 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए। वहीं, मधुमेह के मरीज़ का ब्लड शुगर लेवल खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल या अधिक होता है, जबकि खाने के दो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल या उससे ज़्यादा होता है।
मधुमेह में क्या खाएं, क्या न खाएं
चूंकि, आपका आहार आपके ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में बहुत ही अहम् भूमिका निभाता है, इसलिए यह ज़रूरी है कि आप अपने आहार का मुख्य रूप से ध्यान रखें। डायबिटीज़ में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, इसका ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। इसलिए, लेख में इस सूची को भी आपके साथ साझा कर रहे हैं।
क्या खाएं?
केला – केला फाइबर से भरपूर होता है, जो किसी भी मधुमेह के मरीज़ के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
अंगूर – अंगूर में भी प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है, जो डाइबिटीज़ को नियंत्रित करता है।
कीवी – कीवी में कम कैलोरी और प्रचुर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है, जो डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए काफ़ी फायदेमंद होता है।
क्या न खाएं?
नीचे दिए गए ये खाद्य पदार्थ आपके ब्लड शुगर लेवल को तेज़ी से बढ़ा सकते हैं, इसलिए इन खाद्य पदार्थों के सेवन से जितना हो सके दूर रहें।
कोल्ड ड्रिंक
शहद
केक, पेस्ट्री, मिठाई
अत्यधिक चावल, पास्ता या सफ़ेद ब्रेड
डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ
आइए, कुछ सरल उपाय भी जान लें, जिनकी मदद से शुगर से बचा जा सकता है।
मधुमेह से बचाव
एक वक़्त था जब डायबिटीज़ आनुवंशिक बीमारी हुआ करती थी या फिर उम्र अधिक हो जाने पर ही हुआ करती थी, लेकिन आज की इस जीवनशैली के कारण मधुमेह किसी को भी हो सकता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि समय रहते इस पर ध्यान देकर, अपनी कुछ आदतों को बदलकर और अपनी दिनचर्या में कुछ बदलाव कर इस बीमारी से बचा जा सकता है और जिन्हें पहले से ही मधुमेह हैं, वो इसे नियंत्रित कर सकते हैं। नीचे हम ऐसी ही कुछ चीज़ों के बारे में बता रहे हैं।
वजन को नियंत्रण में रखें – हमेशा अपने वज़न का ध्यान रखें। मोटापा अपने साथ कई बीमारियों को लेकर आता है और डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। अगर आपका वज़न ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा हुआ या कम है, तो उस पर तुरंत ध्यान दें और वक़्त रहते इसे नियंत्रित करें।
तनाव से दूर रहें – मधुमेह होने के पीछे तनाव भी ज़िम्मेदार होता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि अपने मन को शांत रखें और उसके लिए आप योगासन व ध्यान यानी मेडिटेशन का सहारा लें।
नींद पूरी करें – पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेने से या नींद पूरी नहीं होने से भी कई बीमारियां होती हैं। डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। इसलिए समय पर सोएं और समय पर उठें।
धूम्रपान से दूर रहें – धूम्रपान से न सिर्फ लंग्स पर असर होता है, बल्कि अगर कोई मधुमेह रोगी धूम्रपान करता है, तो उसे ह्रदय संबंधी रोग होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
व्यायाम करें – शारीरिक क्रिया स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर कोई शारीरिक श्रम नहीं होगा, तो वज़न बढ़ने का ख़तरा बढ़ जाता है और फ़िर मधुमेह हो सकता है। इसलिए, जितना हो सके व्यायाम करें। अगर व्यायाम करने का मन न भी करें तो सुबह-शाम टहलने जरूर जाएं, योगासन करें या सीढ़ियां चढ़ें।
कुछ और टिप्स
सही आहार – शुगर के मरीज़ों को अपने खान-पान का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। शुगर में परहेज करने के लिए जितना हो सके बाहरी और तैलीय खाद्य पदार्थों से दूर रहें, क्योंकि इससे वज़न बढ़ने का ख़तरा रहता है और फिर मधुमेह। सही आहार अपनाएं, प्रोटीन व विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों को अपने डाइट में शामिल करें।
सही मात्रा में पानी पीएं – आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘जल ही जीवन है’। हमारे शरीर को पानी की सख्त ज़रूरत होती है, क्योंकि एक व्यस्क के शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है। सबसे ज़्यादा पानी एक शिशु और बच्चे में होता है। पानी से कई बीमारियां ठीक होती हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए भी पानी बहुत आवश्यक है। इसलिए, जितना हो सके पानी पीएं।
नियमित रूप से जांच – अपने ब्लड शुगर लेवल को जानने के लिए नियमित रूप से अपना डायबिटीज़ टेस्ट कराते रहें और उसका एक चार्ट बना लें, ताकि आपको अपने डायबिटीज़ के घटने-बढ़ने के बारे में पता रहे।
कम मीठा खाएं – ज़्यादा मीठा न खाएं, खासकर पेस्ट्री व केक जैसी चीज़ें। अगर आपको मीठा बहुत पसंद है, तो कोशिश करें कि घर में बनी कम मीठे वाली मिठाई ही खाएं और वो भी सीमित मात्रा में।
अगर आपको डायबिटीज़ नहीं है, तो आप एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर आगे भी अपने डायबिटीज़ होने की आशंका को रोक सकते हैं। इसके अलावा, जिन्हें मधुमेह है वो भी ऊपर दिए गए इन टिप्स को अपनाकर अपनी बीमारी को नियंत्रित कर सकते हैं।


Friday 8 January 2021

चर्बी की गांठ होने के प्रमुख लक्षण ओर उपचार

चर्बी की गांठ (Lipoma) के कई कारण हो सकते हैं. इनमें से कुछ मुख्य जन्मजात यानी आनुवंशिक भी हो सकते हैं. इसके अलावा घाव के कारण, मोटापा, अधिक शराब का सेवन करने या लिवर संबंधी रोगों के कारण भी ऐसा हो सकता है.

 




लाइपोमा चर्बी की गांठ होती है

-फैट सेल्स के बढ़ने के कारण, मसल और स्किन के बीच में ये फैट सेल्स ग्रो होकर चर्बी की गांठ बन जाते हैं

-स्किन में होने वाली सबसे कॉमन ट्यूमर है लाइपोमा

-सारे लाइपोमा बेनाइन ट्यूमर होते हैं, ये कैंसर में नहीं बदलते

-न इनमें दर्द होता है, न ही ये फैलते हैं

लाइपोमा शरीर में कहीं भी हो सकता है, गर्दन, चेहरा, पीठ, हाथ, पांव, पेट कहीं भी

-ये शरीर के अंदर भी उग सकती हैं

-एक बीमारी होती है जिसे कहते हैं डेर्कम डिजीज़, इसमें शरीर में कई लाइपोमा हो जाते हैं

-लाइपोमा छोटे, बड़े दोनों साइज़ के हो सकते हैं

-लाइपोमा मर्दों में ज़्यादा पाया जाता है

-100 लोगों में एक से दो लोगों को लाइपोमा की बीमारी रहती है 

चर्बी की गांठ होने के प्रमुख लक्षण - इसके लक्षण अन्य प्रकार की गांठ से अलग हो सकते हैं। यह गांठ गर्दन, कंधे, हाथ, कमर, पेट व जांघ पर नजर आते हैं. इस तरह की गांठ में ज्यादा दर्द नहीं होता है, लेकिन किसी नस पर दबाव पड़ने पर इसमें हल्का दर्द हो सकता है. कुछ लोगों को चर्बी की गांठ होने पर कब्ज की समस्या भी रहती है. 


अक्सर हम देखते हैं कि शरीर में किसी जगह पर गांठ हो जाती है. आम भाषा में इसे कई लोग चर्बी की गांठ (Lipoma) भी कहते हैं. इन गांठों में दर्द (Pain) तो नहीं होता है, लेकिन शरीर में दिखने में अजीब लगती है. कई बार लोग इस तरह की गांठ के कारण लज्जित भी महसूस करते हैं. अब मे आपको  चर्बी की गांठ होने के कारण, लक्षण और घरेलू नुस्खे के बारे में बता रहा हु  

इस कारण से होती है चर्बी की गांठ -चर्बी की गांठ के कई कारण हो सकते हैं. इनमें से कुछ मुख्य जन्मजात यानी आनुवंशिक भी हो सकते हैं. इसके अलावा घाव के कारण, मोटापा, अधिक शराब का सेवन करने या लिवर संबंधी रोगों के कारण भी ऐसा हो सकता है.

चर्बी की गांठ होने के प्रमुख लक्षण- इसके लक्षण अन्य प्रकार की गांठ से अलग हो सकते हैं। यह गांठ गर्दन, कंधे, हाथ, कमर, पेट व जांघ पर नजर आते हैं. इस तरह की गांठ में ज्यादा दर्द नहीं होता है, लेकिन किसी नस पर दबाव पड़ने पर इसमें हल्का दर्द हो सकता है. कुछ लोगों को चर्बी की गांठ होने पर कब्ज की समस्या भी रहती है.

इन घरेलू उपाय से दूर करें चर्बी की गांठ- गांठ पर रूई से रोज नींबू का पानी लगाए, इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी गुण जाते हैं, जो सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं. सेब का सिरका भी गांठ पर लगाया जा सकता है क्योंकि इसके इस्तेमाल से शरीर डिटॉक्सीफाई होता है, इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और रक्त संचार भी ठीक हो सकता है. गांठ पर हल्दी का पेस्ट लगाने से प्रभावित हिस्सा जल्द ठीक होने लगता है. हल्दी में एंटीसेप्टिक, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं. ये सूजन को कम करने और बैक्टीरिया को दूर करने का काम करते हैं.

लहसुन से भी चर्बी की गांठ का इलाज किया जा सकता है. इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो चर्बी की गांठ को कम करने के साथ-साथ बैक्टीरिया से बचाए रखने में भी मदद करते हैं. इन सबके अलावा खानपान का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए. विटामिन ए और विटामिन ई से भरपूर खाद्य पदार्थों का भरपूर सेवन करें और पानी भरपूर मात्रा में पिएं.

इन चीजों के सेवन से बचें- कॉफी और चाय में कैफीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो गांठ के बढ़ने का कारण बन सकता है. वहीं, तैलीय व मसाला युक्त खाने का भी परहेज करना चाहिए.

चर्बी की गांठ का इलाज- आयुर्वेद के अनुसार, ज्यादातर चर्बी की गांठ सर्जरी के माध्यम से ठीक की जा जाती है, लेकिन सर्जरी के बाद कई मामलो में इसके दुष्प्रभाव भी देखे गए हैं. वहीं, कुछ मामलों में इंजेक्शन लगाकर भी गांठ को सिकोड़ा या छोटा किया जा सकता है.

उपचार - लिपोमा का औषधियों के द्वारा इलाज
  1. कांचनार की पेड़ की छाल किसी भी प्रकार की गांठ के लिए लाभदायक है। इसके लिए 10-20 ग्राम छाल को 400 ग्राम पानी में पका लें। जब पानी 100 से 50 ग्राम रह जाए तो उसे छानकर पी लें।
  2. एक अनुभूत योग -- शीला सिंदूर - 4 ग्राम , ताम्र भष्म -1 ग्राम , प्रवाल पिष्टि 10ग्राम , मुकताशुकती  भस्म 5 ग्राम , गिलोय सत्व 10 ग्राम सभी को मिक्स करके 60 पुड़िया बना कर सुबह व रात्रि शहद के साथ लेवे साथ मे कांचनार कषाय का सेवन करे काफी अच्छा फायदा मिलेगा  

अस्वीकरण : इस लेख में दी गयी जानकारी कुछ खास स्वास्थ्य स्थितियों और उनके संभावित उपचार के संबंध में शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है। यह किसी योग्य और लाइसेंस प्राप्त चिकित्सक द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवा, जांच, निदान और इलाज का विकल्प नहीं है। यदि आप, आपका बच्चा या कोई करीबी ऐसी किसी स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहा है, जिसके बारे में यहां बताया गया है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। यहां पर दी गयी जानकारी का उपयोग किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या या बीमारी के निदान या उपचार के लिए बिना विशेषज्ञ की सलाह के ना करें। यदि आप ऐसा करते हैं तो ऐसी स्थिति में आपको होने वाले किसी भी तरह से संभावित नुकसान के लिए  विनय आयुर्वेदा जिम्मेदार नही  होगा।

Wednesday 6 January 2021

पैर का सूजन

 


स्वास्थ्य के प्रति अनदेखी करने से कभी-कभी पूरे शरीर में या फिर किसी अंग विशेष में सूजन आ जाती है विशेषकर पैरों में सूजन आना एक आम समस्या है लेकिन यदि ऐसा बार-बार हो तो यह शरीर में छिपी किसी बड़ी बीमारी का संकेत भी हो सकता है। यह शरीर में अत्यधिक पानी एकत्रित होने के कारण होता है और यह हृदय लिवर या किडनी की किसी समस्या का संकेत होता है। जब शरीर में अतिरिक्त पानी या फ्लूइड जमा हो जाता है तो शरीर में सूजन आने लगती है जिसे इडिमा कहा जाता है। जब यह सूजन टखनों, पैरों और टांगों में आती है तो उसे पेरीफेरल इडिमा कहते हैं। कभी-कभी लम्बे समय तक सफर करने या अनुचित आहार-विहार के कारण भी पैरों में हल्का सूजन आ जाना यह कोई बड़ी समस्या नहीं है लेकिन ज्यादा समय तक रहने वाला सूजन गंभीर बीमारी का संकेत होता है।

पैरों में सूजन होना क्या होता है? 

आयुर्वेद में शरीर में किसी भी अंग में आई सूजन को ‘शोथ’ कहा गया है। शोथ होने पर कफ और वात दोष मुख्य रूप से दूषित होते है। वात एवं कफवर्धक आहार के अत्यधिक सेवन एवं अनुचित जीवनशैली के यह दोष असंतुलित होकर शरीर में जिस जगह अवरूद्ध हो जाते है वहाँ पर शोथ उत्पन्न करते है।

एलोपैथिक उपचार में दी गई औषधियों के कारण ज्यादा मूत्र होने की वजह से सूजन कम होने लगता परंतु  इन दवाइयों के सेवन से व्यक्ति को साइड इफेक्टस होने का खतरा रहता है परंतु आयुर्वेदिक उपचार या प्राकृतिक उपचार होने की वजह से सूजन को ठीक करता है और शरीर पर इसके कोई विपरीत प्रभाव यानी साइड इफेक्ट्स नहीं पड़ते। आयुर्वेदिय उपचार केवल सूजन को नहीं बल्कि रोग को बिल्कुल ठीक करके शरीर को स्वस्थ बनाने में मदद करता है।

पैरों में सूजन होने के कारण (Causes of Swelling in Legs)

पैरों में सूजन होने के और भी बहुत सारे कारण होते हैं, वह हैं-

-पैर में मोच आना।

-दूर तक सैर करना।

-बहुत देर तक पैरों को लटका कर बैठना।

-ज्यादा देर तक खड़े रहना, व्यायाम या फिर खेल-कूद आदि।

-डीप वेन थ्रोम्बोसिस (Deep vein thrombosis (DVT) की समस्या।

-रेनल फेल्योर (Renal failure) के कारण।

-हृदय संबंधित रोग।

–उच्च रक्तचाप की समस्या होने पर।

-महिलाओं में गर्भावस्था के समय।

-कुछ महिलाओं में मासिक धर्म के एक सप्ताह पहले भी पैर में सूजन की समस्या देखी जाती हैं क्योंकि इस दौरान महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजेन (Estrogen) की मात्रा बढ़ जाती है जिसकी वजह से किडनी ज्यादा पानी रोकना शुरू कर देती है।

–अधिक वजन होना।

पैरों में सूजन से बचने के उपाय 

पैरों में सूजन होने से बचने के लिए जीवनशैली और आहार में कुछ बातों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता है-

-जंकफूड एवं प्रिजरवेटिव युक्त आहार का सेवन बिल्कुल न करें।

-संतुलित एवं सुपाच्य आहार लें, फाइबर युक्त आहार को अपने भोजन में शामिल करें जैसे- सेब, नाशपाती, केला, गाजर, चुकन्दर, ब्रोक्कली, अंकुरित अनाज, दालों में मूंग, मटर, राजमा, चने, जौ, बादाम, चिया के बीज आदि।

अधिक नमक एवं अधिक मीठे का सेवन न करें।

-प्रतिदिन चुकन्दर (Beetroot) का सेवन करें, यह मूत्रल (diuretic) होने के साथ ही सूजन को भी कम करता है।

-सब्जियों में कद्दू (Pumpkin) का सेवन अवश्य करें। इससे ज्यादा मूत्र निकलने लगता  है तथा सूजन को कम करने में मदद करता है।

-अधिक पानी का सेवन न करें।

-अपने पैरों को लटका कर न बैठें और बहुत दूर तक पैदल न चलें।

-मद्यसेवन एवं कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

-सुबह उठकर नियमित रूप से प्राणायाम करें।

 आयुर्वेदिक इलाज के दौरान इन चीजों से करे परहेज-

-जंक फूड, बासी भोजन, ठण्डे एवं खट्टे पदार्थों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

-अधिक पानी न पिएँ।

-नमक का सेवन बहुत कम करें।

-अधिक दूर तक पैदल नहीं चलना चाहिए।

Sunday 3 January 2021

जायफल के फायदे

जायफल है औषधीय गुणों की खान, सर्दी-जुकाम से लेकर लकवा तक में है कारगर

जायफल मसाला तो है ही, औषधीय गुणों की खान भी है। आइए जानते हैं इसके गुण कि किन-किन बीमारियों में कैसे प्रयोग कर सकते हैं।
आजकल सर्दी-जुकाम जैसी साधारण बीमारियों के लिए भी हम काफी परेशान हो जाते हैं और डॉक्टर के यहां दौड़े-दौड़े चले जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे किचन में जो चीजें मौजूद हैं, उनके गुणों के बारे में हमें नहीं पता। आज बात करते हैं प्रकृति के अनुपम उपहार जायफल की। इसे हम मसाले में तो प्रयोग करते हैं, लेकिन इसके और क्या-क्या औषधीय गुण हैं, इनको भी जानना जरूरी है। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है।
मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पर उपलब्ध हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का एक इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदार होता है। पकने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके कड़े खोल को तोड़ने पर भीतर से जायफल प्राप्त होता है। 

दस्त व मुहांसों में भी फायदेमंद
जायफल घिसकर उस पानी का सेवन करें व नाभि पर लेप लगाने से दस्त आने बन्द हो जाते हैं। मुहांसे होने पर जायफल को दूध में घिसकर चेहरे पर लेप लगाने से मुहांसे समाप्त हो जाते हैं।

पाचन तंत्र
आमाशय के लिए उत्तेजक होने से आमाशय में पाचक रस बढ़ता है, जिससे भूख लगती है। आंतों में पहुंचकर वहां से गैस हटाता है।

सर्दी-खांसी
सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।

स्वाभाविक गर्मी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।

बढ़ाए भूख
आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी, भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा।

दस्त और पेट दर्द
दस्त आ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये। एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये। सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं।

लकवा वाले अंगों में फूंकता है नई जान
लकवा का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिसकर रोज लेप करना चाहिए, दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की संभावना देखी गयी है।

प्रसव बाद कमर दर्द में फायदा
प्रसव के बाद अगर कमर दर्द खत्म नहीं हो रहा है तो जायफल पानी में घिसकर कमर पर सुबह-शाम लगाएं, एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा।

फटी एड़ियों पर लगाएं
फटी एडियों के लिए जायफल महीन पीसकर बिवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।

हृदय को बनाए मजबूत
जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है। पेट भी ठीक रहता है।

जी मिचलाए तो पिएं जायफल मिक्स पानी
जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है।

मिटा देता है पुराने घावों के निशानों को
कई बार त्वचा पर कुछ चोट के निशान रह जाते हैं तो कई बार त्वचा पर नील और इसी तरह के घाव पड़ जाते हैं। जायफल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करें। जहां भी आपकी त्वचा पर पुराने निशान हैं रोजाना मालिश से कुछ ही समय में वे हल्के होने लगेंगे। जायफल से मालिश से रक्त का संचार भी होगा और शरीर में चुस्ती-फुर्ती भी बनी रहेगी।

बढ़ाता है आंखों की रौशनी
इसे थोडा सा घिसकर काजल की तरह आंख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है और आंख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है।

शक्ति के साथ बढ़ाए आवाज में सम्मोहन भी
यह शक्ति भी बढाता है। जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है।

मिटाए चेहरे की झाईयां
चेहरे पर या फिर त्वचा पर पड़ी झाईयों को हटाने के लिए आपको जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसना चाहिए। घिसने के बाद इसका लेप बना लें और इस लेप का झाईयों की जगह पर इस्तेमाल करें, इससे आपकी त्वचा में निखार भी आएगा और झाईयों से भी निजात मिलेगी।

झुर्रियों का है दुश्मन
चेहरे की झुर्रियां मिटाने के लिए आप जायफल को पीसकर उसका लेप बनाकर झुर्रियों पर एक महीने तक लगाएंगे तो आपको जल्द ही झुर्रियों से निजात मिलेगी। जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है, मुहांसे ख़त्म होते हैं।

बार-बार लघुशंका जाने से मिलेगा छुटकारा
किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली 2-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये, दिन में एक बार, खाली पेट, 10 दिन लगातार।

बच्चों की करे सुरक्षा
बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये, फिर 3 चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को सुबह शाम चटायें।

आंखों के नीचे से मिटाए काला घेरा
आंखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए रात को सोते समय रोजाना जायफल का लेप लगाएं और सूखने पर इसे धो लें। कुछ समय बाद काले घेरे हट जाएंगे।

दूर भगाए अनिद्रा को
अनिद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इसका त्वचा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। त्वचा को तरोताजा रखने के लिए भी जायफल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको रोजाना जायफल का लेप अपनी त्वचा पर लगाना होगा। इससे अनिद्रा की शिकायत भी दूर होगी और त्वचा भी तरोताजा रहेगी।

दांत दर्द को करे तुरंत ठीक
दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।

पेट दर्द में फायदा
पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।

मुंह के छालों को करे ठीक
जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी।

दूध पाचन
शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।

शरीर में खून की कमी है?

 

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सही और संतुलित खान-पान ना होने से शरीर को सैंकड़ों बीमारियां जकड़ लेती हैं। इसके बाद शुरू होता है अस्पताल के चक्कर लगाना, तमाम मेडिकल टेस्ट और रुटीन चेकअप कराने का सिलसिला


शरीर में हीमोग्लोबिन कम होने का मतलब अनेकों बीमारियों को न्यौता देना है।  हीमोग्लोबिन एक आयरन युक्त प्रोटीन है। बिना आयरन के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन सकता। हीमोग्लोबिन खून को उसका लाल रंग देता है। यह फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचाता है। अगर शरीर में आयरन की कमी होगी तो हीमोग्लोबिन कम होगा, जिससे शरीर को मिलने वाले ऑक्सीजन में भी कमी होने लगेगी। पुरुषों की मुकाबले महिलाओं में आयरन की कमी ज्यादा देखने को मिलती है। पुरूषों में सामान्य हीमोग्लोबिन 13.5-17.5  ग्राम और महिलाओं में 12.0-15.5 ग्राम प्रति डीएल होना चाहिए। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होना एनीमिया कहलाता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार हीमोग्लोबिन कम होने पर ऐसा जरुरी नहीं है कि आपको किसी तरह की कोई बीमारी ही हो। ये समस्या गर्भवती महिलाओं में आमतौर पर पाई जाती है। इतना ही नहीं महिलाओं में पीरियड्स के समय ज्यादा ब्लीडिंग, हृदय संबंधी बीमारियां, पेट से संबंधित बीमारियां, कैंसर, विटामिन बी12 की कमी और शरीर में फोलिक एसिड की कमी की वजह से भी हीमोग्लोबिन की कमी होने के साथ शरीर में खून की कमी होने लगती है। इसके अलावा हीमोग्लोबिन कम होने पर कई लक्षण भी नजर आने लगते हैं।हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब पुरुषों में हीमोग्लोबिन का स्तर 13.5 ग्राम /100 मिली. से कम होता है और महिलाओं में जब हीमोग्लोबिन का लेवल 12.0 ग्राम/100 मिली. से कम होता है तो ऐसे में उनके शरीर में रक्त की कमी होने के साथ ही कई तरह की बीमारियां अपना शिकार बनाने लगती हैं।


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शरीर में खून की कमी होने के कारण:

1. पोषक तत्वों की कमी 

2. आयरन की कमी

3. विटामिन बी-12 की कमी

4. फॉलिक एसिड की कमी

5. स्मोकिंग

6. एजिंग 

7. ब्लीडिंग   

हीमोग्लोबिन कम होने के लक्षण:

-जल्दी थकान होना 

-त्वचा का फीका, पीला दिखना

-आंखों के नीचे काले घेरे होना 

-सीने और सिर में दर्द होना

-तलवे और हथेलियों का ठंडा पड़ना

-शरीर में तापमान की कमी होना 

-चक्कर और उल्टी आना, घबराहट होना 

-पीरियड्स के दौरान अधिक दर्द होना 

-सांस फूलना, धड़कनें तेज होना

-अक्सर टांगें हिलाने की आदत 

-बालों का अधिक झड़ना 

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए ये खाएं:

अनार

एक अनार हमें सौ बीमारियों से लड़ने की क्षमता देता है। अनार आयरन कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और विटामिन से भरपूर होता है। अनार शरीर में खून की कमी को बेहद जल्द पूरा करता है। 

चुकंदर 

चुकंदर शरीर में खून की मात्रा बढ़ाने का रामबाण इलाज है। चुकंदर का जूस लगातार पीने से खून साफ रहता है और शरीर में खून की कमी भी नहीं होती। चुकंदर में आयरन के तत्‍व अधिक मात्रा में होते हैं, जिससे नया खून जल्दी बनता है।

केला 

केले में मौजूद प्रोटीन, आयरन और खनिज शरीर में खून बढ़ाते हैं। 

गाजर 

लगातार गाजर का जूस पीने या गाजर खाने से शरीर में खून की कमी को पूरा किया जा सकता है।

अमरूद

पका अमरूद खाने से शरीर में हीमोग्लोबीन की कमी नहीं होती।

सेब

अगर आप एनीमिया से ग्रसित हैं तो सेब खाना लाभकारी रहेगा। सेब खाने से शरीर में हीमोग्लोबीन की मात्रा बढ़ती है। 

अंगूर

अंगूर में विटामिन, पोटैशियम, कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। अंगूर में ज्यादा आयरन होने से यह शरीर में हीमोग्लोबीन बढ़ाने में सहायक है। अंगूर हमारी त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

संतरा 

संतरा विटामिन-सी के अलावा फॉस्फोरस, कैल्शियम और प्रोटीन का बेहतरीन स्त्रोत है। संतरा खाने से शरीर में ना केवल खून बढ़ता है बल्कि खून साफ भी रहता है।

टमाटर 

टमाटर सब्जी ही नहीं, बल्कि एक पौष्टिक और गुणकारी फल है। टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन-सी होता है। टमाटर का सूप या टमाटर खाने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है।


हरी सब्जियां और सलाद 

शरीर में आयरन की कमी दूर करने के लिए पालक, सरसों, मेथी, धनिया, पुदीना, बथुआ, ब्रोकली, गोभी, बीन्स, खीरा खूब खाएं। शरीर में हीमोग्लोबीन बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां भोजन में शामिल करें। पालक के पत्तों में सबसे अधिक आयरन पाया जाता है। 

सूखे मेवे

हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए खजूर, बादाम और किशमिश खाएं। इनमें आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है। रोजाना दूध के साथ खजूर खाने से शरीर को बहुत-से फायदे होते हैं। खजूर खाने से शरीर को भरपूर मात्रा में आयरन मिलता है। भागदौड़ भरी जिंदगी में सही खानपान न करने और किसी भी समय कुछ भी खा लेने वाली आदत के कारण शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी होने लगती है। जिस वजह से रेड ब्लड सेल्स नष्ट होने शुरू हो जाते हैं और शरीर में खून की कमी होने लगती है। हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शरीर में रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन की संख्या कम होने पर कई बीमारियां होने लगती है।

गुड़

गुड़ एक प्राकृतिक खनिज है जो आयरन का प्रमुख स्रोत है। यह विटामिन से भरपूर होता है। गुड़ शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है। लगातार गुड़ खाने से पेट की समस्‍याओं से भी निजात पायी जा सकती है।

इसके अलावा शरीर में आयरन और विटामिन बी-12 की कमी को पूरा करने के लिए मीट, चिकन, मछली, अंडे का भी सेवन कर सकते हैं। बता दें, अंडे के पीले भाग में भरपूर मात्रा में विटामिन बी-12 पाया जाता है।