Tuesday 5 September 2017

वात रोग – आयुर्वेद

आयुर्वेदिक ग्रन्थों के अनुसार वात 80 प्रकार का होता है एवं इसी से सामंजस्य रखता हुआ एक और रोग है जिसे बाय या वायु कहते हैं। यह 84 प्रकार का होता है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि जब वात एवं वायु के इतने प्रकार हैं, तो, यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात रोग है या बाय एवं यह किस प्रकार का है ? यह कठिन समस्या है और यही कारण है कि इस रोग की उपयुक्त चिकित्सा नहीं हो पाती है, जिससे इस रोग से पीड़ित 50 प्रतिशत व्यक्ति सदैव परेशान रहते हैं। उन्हें कुछ दिन के लिए इस रोग में राहत तो जरूर मिलती है, परन्तु पूर्णतया सही नहीं हो पाता है। इस रोग की चिकित्सा एलोपैथी के माध्यम से पूर्णतया सम्भव नहीं है, जबकि आयुर्वेद के माध्यम से इसे आज कल 90 प्रतिशत तक जरूर सही किया जा सकता है,
वात रोग लक्षण एवं परेशानी- इस रोग के कारण शरीर के सभी छोटे-बडे़ जोडो़ं व मांसपेशियों में दर्द व सूजन हो जाती है। गठिया में शरीर के एकाध जोड़ में प्रचण्ड पीड़ा के साथ लालिमायुक्त सूजन एवं बुखार तक आ जाता है। यह रोग शराब व मांस प्रेमियों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा जल्दी पकड़ता है। यह धीरे-धीरे शरीर के सभी जोड़ों तक पहुँचता है। संधिवात उम्र बढ़ने के साथ मुख्यतः घुटनों एवं पैरों के मुख्य जोड़ों को क्रमशः अपनी गिरफ्त में लेता हैं।
वात रोग की शुरूआत धीरे-धीरे होती है। शुरू में सुबह उठने पर हाथ पैरों के जोडा़ें में कड़ापन महसूस होता है और अंगुलियाँ चलाने में परेशानी होती है। फिर इनमें सूजन व दर्द होने लगता है और अंग-अंग दर्द से ऐंठने लगता है जिससे शरीर में थकावट व कमजोरी महसूस होती है। साथ ही रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है। इस रोग की वजह सेे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम पड़ जाती है। इसी के साथ छाती में इन्फेक्शन, खांसी, बुखार तथा अन्य समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। साथ ही चलना फिरना रुक जाता है।
इन सबसे खतरनाक कुलंग वात होता है। यह रोग कुल्हे, जंघा प्रदेश एवं समस्त कमर को पकड़ता है एवं रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। इस रोग में तीव्र चिलकन (फाटन) जैसा तीव्र दर्द होता है और रोगी बेचैन हो जाता है, यहाँ तक कि इसमें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यह रोग की सबसे खतरनाक स्टेज होती हैै। इस का रोगी दिन-रात दर्द से तड़पता रहता है और कुछ समय पश्चात् चलने-फिरने के काबिल भी नहीं रह जाता है। वह पूर्णतया बिस्तर पकड़ लेता है और चिड़चिड़ा हो जाता है।
लक्षण --- हाइपरयूरीसेमिया, वात रोग का मूल कारण होता है। यह कई कारणों से हो सकता है, जिनमें आहार, आनुवंशिक गड़बड़ी, या यूरेट, यूरिक एसिड के लवणों का कम उत्सर्जन शामिल हैं। लगभग 90% मामलों में हाइपरयूरीसेमिया का मुख्य कारण गुर्दों में यूरिक एसिड का कम उत्सर्जन होता है, जब कि ज़रुरत से अधिक उत्पादन 10% के कम मामलों में कारण होता है। हाइपरयूरीसेमिया वाले लगभग 10% लोगों में उनके जीवन काल में किसी न किसी बिंदु पर वात रोग विकसित हो जाता है। लेकिन, हाइपरयूरीसेमिया के स्तर के आधार पर, जोखिम अलग-अलग हो सकता है। जब स्तर 415 और 530 माइक्रोमोल/लीटर (7 और 8.9 मिलीग्राम/डेसीलीटर) के बीच हों, तो जोखिम 0.5% प्रति वर्ष होता है, जब कि 535 माइक्रोमोल/लीटर (9 मिलीग्राम/डेसीलीटर) से ऊपर के स्तरों वाले लोगों में यह जोखिम 4.5% प्रति वर्ष होता है

जीवन शैली---- लगभग 12% वात रोग का कारण आहार से संबंधित होता है और इसमें अल्कोहल, फ्रक्टोज-से मीठे किये गये पेय, मीट और समुद्री भोजन के उपभोग के साथ मज़बूत संबंध होता है। अन्य ट्रिगरों में शारीरिक बड़ी चोट और सर्जरी शामिल हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि आहार से संबंधित कारक जिन्हें कभी संबंधित समझा जाता था, वास्तव में संबंधित नहीं हैं, जिनमें प्यूरीन-से भरपूर सब्जियों (जैसे, सेम, मटर, मसूर और पालक) और कुल प्रोटीन का सेवन शामिल है। कॉफी, विटामिन Cऔर डेयरी उत्पादों का सेवन और साथ ही शारीरिक तंदरुस्ती, जोखिम को कम करते प्रतीत होते हैं। माना जाता है कि यह आंशिक रूप से इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने में उनके प्रभाव के कारण है !

वात रोग प्यूरीन चयापचय का एक विकार है, और उस समय होता है जब इसका अंतिम मेटाबोलाइट, यूरिक एसिड, मोनोसोडियम यूरेट के रूप में क्रिस्टलीकृत हो कर जोड़ों में, स्नायुओं पर और आसपास के ऊतकों में नीचे बैठ जाता है। उसके बाद यह क्रिस्टल एक स्थानीय प्रतिरक्षा-कीमध्यस्थता वाली सूजन वाली प्रतिक्रिया शुरू करता है, जिसमें सूजन प्रवाह के मुख्य प्रोटीनों में से एक इंटरल्यूकिन 1β होता है। मनुष्यों में विकास के साथ-साथ यूरीकेस, जो कि यूरिक एसिड को तोड़ता है और प्राइमेट्स की कमी ने इस समस्या को आम बना दिया है।
इस बात को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है कि क्या चीज़ यूरिक एसिड का अवक्षेपण शुरू करती है। जब कि यह सामान्य स्तरों पर क्रिस्टलों में परिवर्तित हो सकता है, स्तरों के बढ़ने पर ऐसा होने की अधिक संभावना होती है। गठिया का एक तीव्र प्रकरण शुरू करने में महत्वपूर्ण माने जाते अन्य कारकों में ठंडे तापमान, यूरिक एसिड के स्तरों में तेजी से बदलाव, एसिडोसिस, जोड़ जलयोजन और बाह्य मैट्रिक्स प्रोटीन, जैसे कि प्रोटियोग्लाईकैन्स, कोलेजन औरचोन्ड्रोयटिन सल्फेट शामिल है। कम तापमानों पर क्रिस्टलों के अवक्षेपण की बढ़ी हुई क्रिया आंशिक रूप से इस बात की व्याख्या करती है कि पैरों के जोड़ सबसे अधिक क्यों प्रभावित होते हैं। यूरिक एसिड में तेजी से बदलाव, कई कारणों से हो सकते हैं जिनमे आघात, शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी, मूत्रवर्धक दवाइयां और एलोप्यूरिनॉल को रोकना या शुरू करना शामिल हैं।उच्च रक्तचाप के लिए अन्य दवाओं की तुलना में कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स और लोसार्टन को वात रोग के कम जोखिम के साथ जोड़ा जाता है !

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