छालरोग या सोरियासिस (अंग्रेज़ी:Psoriasis) एक चर्मरोग है। सामान्य भाषा में इसे अपरस भी कहते हैं। यह रोग एक असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। छाल रोग सामान्यतः बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह दीर्घकालिक विकार है जिसका अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। इसके सही कारणों की जानकारी नहीं है। अद्यतन सूचना से यह मालूम होता है कि सोरिआसिस निम्नलिखित दो कारणों से होता हैः
- वंशानुगत पूर्ववृत्ति
- स्वतः असंक्राम्य प्रतिक्रिया
- पहचान ------ लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतः त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 सप्ताह का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को सोरिआसिस होने पर त्वचा कोशिकाएं 3 से 4 दिन में ही झड़ने लगती है। यही अधिकाधिक त्वचा कोशिकाओं का झड़ाव त्वचा पर छालरोग के घाव पैदा कर देता है। छालरोग में त्वचा पर लाल, खुरदरे धब्बे, खुजली और मोटापा, चिटकना और हथेलियों या पैर के तलवों में फफोले पड़ना, के लक्षण से पहचाने जाते हैं। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है।कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की खराबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं। छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग आर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता ! प्राय सोरायसिस के रोगी अपने इस रोग को आम दाद-खाज खुजली के रोग से जोड़कर लंबे समय तक इसका उपचार कराने से कतराते रहते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि जब यह रोग काफी पुराना तथा जटिल हो जाता है तब रोगी इसके इलाज के लिए चिंतित होता है। रोग के संदर्भ में विशेष बात यह ध्यान देने योग्य है कि रोग जितना पुराना हो जाता है उसके उपचार में उतना ही समय लगता है
- क्या है सोरायसिस
मनुष्य की सामान्य त्वचा पर सोरायसिस रोग पपड़ीदार, रक्तिम;रक्तवर्णितद्ध वह विकार है जो चकतों के रूप में अलग से उभरे होते हैं। यह कुछ-कुछ मछली की उपरी खाल की तरह होते हैं। यह चकते प्राय हाथ-पैर, घुटनों, कोहनी, सिर के बालों के नीचे और पीठ के निचले हिस्सों पर देखने को मिलते हैं। इन चकतों का आकार मुख्यत 2-4 मिमि से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है, जिनमें खुजली की शिकायत भी रोगी को होती है। आयुर्वेद में इस रोग को एककुष्ठ कहा जाता है। यह रोग सामान्यतया शरीर में हो जाने वाली दाद-खाज से भिन्न प्रकृति का है। जहां दाद-खाज का घरेलू उपचार संभव है वहीं सोरायसिस के रोगी को चिकित्सकीय उपचार की परम आवश्यकता होती है। उपयुक्त उपचार के अभाव में रोगी के प्राणों पर भी संकट उत्पन्न हो सकता है।सोरियासिस (PSORIASIS) "अपरस रोग / छाल रोग" :
[1] सोरायसिस (Psoriasis) त्वचा पर होने वाली Autoimmune रोग है | जिसके होने से त्वचा का कोशिका मरने लगता है और लाल एवं सफ़ेद धब्बे के रूप में शारीर में दिखने लगता है | यह रोग प्रतिराकक्षा प्रणाली के गलत संदेश के कारण कोशिकाओ की तीव्र वृद्धि दर के कारण उत्पन होता है | लोग इस बीमारी को छुवाछुत मानते है ,परंतू यह बीमारी छुवाछुत के कारण नहीं फैलता है | यह genetic एवं और immune system से सम्बंधित है, न की छुआछुत से | यह बीमारी किसी को भी हो सकता है ,चाहे वो लड़का हो या लड़की | यह शारीर के किसी भी भाग में हो सकता है | एक बार यह किसी के शारीर में होने के बाद ऊम्र भर रह जाता है |[2] सोरियासिस / अपरस रोग / छाल रोग (अंग्रेज़ी: PSORIASIS) एक प्रकार का असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार (चर्मरोग) है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। यह रोग सर्दियों के मौसम में होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। छाल रोग सामान्यतया बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह ऐसा दीर्घकालिक विकार है जिसका यह अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। सोरियासिस में त्वचा में कोशिकाओं की संख्या बढने लगती है। चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी लाल रंग की पपडीदार चमडी से ढक जाता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर व्यक्तियों की हाथों-पैरों, कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों, घुटनों, खोपडी तथा कंधों पर होता है।[3] सोरायसिस रोग जब किसी व्यक्ति को हो जाता है तो जल्दी से ठीक होने का नाम नहीं लेता है। यह छूत का रोग नहीं है। इस रोग का शरीर के किसी भाग पर घातक प्रभाव नहीं होता है। जब यह रोग किसी को हो जाता है तो उस व्यक्ति का सौन्दर्य बेकार हो जाता है तथा वह व्यक्ति भद्दा दिखने लगता है। यदि इस बीमारी के कारण भद्दा रूप न हो और खुजली न हो तो सोरायसिस के साथ आराम से जिया जा सकता है।[4] सोरायसिस रोग होने के लक्षण-जब किसी व्यक्ति को सोरायसिस हो जाता है तो उसके शरीर के किसी भाग पर गहरे लाल या भूरे रंग के दाने निकल आते है। कभी-कभी तो इसके दाने केवल पिन के बराबर होते हैं। ये दाने अधिकतर कोहनी, पिंडली, कमर, कान, घुटने के पिछले भाग एवं खोपड़ी पर होते हैं। कभी-कभी यह रोग नाम मात्र का होता है और कभी-कभी इस रोग का प्रभाव पूरे शरीर पर होता है। कई बार तो रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने का अनुमान भी नहीं होता है। शरीर के जिस भाग में इस रोग का दाना निकलता है उस भाग में खुजली होती है और व्यक्ति को बहुत अधिक परेशान भी करती है। खुजली के कारण सोरायसिस में वृद्धि भी बहुत तेज होती है। कई बार खुजली नहीं भी होती है। जब इस रोग का पता रोगी व्यक्ति को चलता है तो रोगी को चिंता तथा डिप्रेशन भी हो जाता है और मानसिक कारणों से इसकी खुजली और भी तेज हो जाती है।
सोरायसिस रोग के हो जाने के कारण और भी रोग हो सकते हैं जैसे- जुकाम, नजला, पाचन-संस्थान के रोग, टान्सिल आदि। यदि यह रोग 5-7 वर्ष पुराना हो जाए तो संधिवात का रोग हो सकता है।[5] सोरियासिस का शरीर पर प्रभाव क्षेत्र:-अपरस रोग में रोगी की त्वचा पर जगह-जगह लाल-लाल से खुरदरे दाग-धब्बे हो जाते हैं। जितने यह दाग-धब्बे भयानक लगते हैं उतनी ज़्यादा इनमें खुजली नहीं होती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी (लाल) होकर सूज जाता है और फिर त्वचा के ऊपर सफेद सादी, सूखी एवं कड़ी खाल (त्वचा की पतली परत) जम जाते हैं। त्वचा सूखकर फट सी जाती है। जब ऊपर की पपड़ी उतरती हैं तो त्वचा से रक्त निकलने लगता हैं। लेकिन इसमें से कुछ मवाद आदि नहीं निकलता। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है|[6] दीर्घकालिक प्रभाव-छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग ऑर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता।[7] सोरायसिस रोग होने का कारण:-१=अंत:स्रावी ग्रन्थियों में कोई रोग होने के कारण सोरायसिस रोग हो सकता है।
२=पाचन-संस्थान में कोई खराबी आने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
३=बहुत अधिक संवेदनशीलता तथा स्नायु-दुर्बलता होने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।
४=खान-पान के गलत तरीकों तथा असन्तुलित भोजन और दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी सोरायसिस रोग हो सकता है।
५=असंयमित जीवन जीने, जीवन की विफलताएं, परेशानी, चिंता तथा एलर्जी के कारण भी यह रोग हो सकता है।[8] अति शीघ्र बढ़ने या ख़राब होने का कारण:-कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की ख़राबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बीटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं।[9] Psoriasis के प्रकार:-सोरायसिस के मुख़्य प्रकार जो की उनके लक्षणों और होने वाले भागो के अनुसार बांटे गए है -1 -पट्टिका psoriasis:यह बात के रोगियों को पीड़ा से psoriasis के सब के साथ 80% psoriasis है के प्रकार व्यापक अधिकांश. यह चांदी सफेद रंग और लाल रंग के धब्बे सूजन के पैमाने से भिन्न है. एक यह घुटने, कोहनी, पीठ के निचले हिस्से पर खोज सकते हैं, और खोपड़ी, लेकिन यह कहीं भी हो सकता है.2-उलटा छालरोग:
कांख, स्तनों के नीचे, कमर, त्वचा गुप्तांग क्षेत्र में सिलवटों, नितंबों सबसे आम जगहों पर जहां उलटा छालरोग से पता चला है.3-Erythrodermic छालरोग:Erythrodermic सोरायसिस बीमारी का सबसे अधिक भाग के भड़काऊ प्रकार है कि अक्सर पूरे शरीर पर फैल रहा है के लिए एक है. Erythrodermic छालरोग अक्सर अस्थिर पट्टिका psoriasis के लिए नेतृत्व कर सकते हैं. प्रासंगिक, व्यापक, उज्ज्वल लालिमा इस अवधि के दौरान त्वचा की मुख्य विशेषताएं हैं.4-Guttate छालरोग:अभिव्यक्ति छोटे आकार के छोटे लाल धब्बे बचपन या जवानी अवधि में शुरुआत के माध्यम से पता चला है.5-Pustular psoriasis:एक नियम के रूप में वयस्कों में मनाया, pustular psoriasis के आसपास लालिमा के साथ मवाद के गैर संक्रामक फफोले के माध्यम से प्रकट होता है. रोग के रूप में यह एक संक्रमण नहीं है, नहीं फैलता है.6-Palmo पदतल Psoriasis:पीपीपी या Palmo पदतल Psoriasis (Palmoplantar Pustulosis) काफी अलग तरह से प्रकट होता है. स्पॉट हथेलियों और तलवों पर स्थित हैं|7-कील Psoriasis: नाखून परिवर्तन8-खोपड़ी Psoriasis:यह सिर के पीछे होता है, लेकिन खोपड़ी के अन्य क्षेत्रों में भी यह हो सकता है.9-Psoriatic गठिया:Psoriatic गठिया में दर्द होता है और ज्यादा रोग जोड़ों के आसपास सूजन, जोड़ों का दर्द, तराजू, लाली बढ़ती है, त्वचा के घावों psoriatic गठिया के दौरान देखा जाता है.[10] रोक थाम:-• धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं।
• मद्यपान और धूम्रपान न करें।
• स्थिति को और बिगाड़ने वाली औषधी का सेवन न करें।
• तनाव पर नियंत्रण रखें।
• त्वचा का पानी से संपर्क सीमित रखें।
• फुहारा और स्नान को सीमित करें, तैरना सीमित करें।
• त्वचा को खरोंचे नहीं।
• ऐसे कपड़े पहने जो त्वचा के संपर्क में आकर उसे नुकसान न पहुंचाएँ।
• संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं।[11] प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:
• ज़्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ें न खाएं।• सोरियासिस या अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए।
• अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिकाई करके गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
• रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है।
• रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
• अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नीबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए।
• अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
• अपरस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
• अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
• रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए।
• रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
• रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।[12] सोरियासिस (छाल रोग) का घरेलू नुस्खों से इलाज-• बादाम 10 नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह नुस्खा अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है।
• एक चम्मच चंदन का पावडर लें। इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतार लें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शक्कर मिला दें। यह दवा दिन में 3 बार पियें। बहुत कारगर उपाय है।
• पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। ऊपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें। हथेली से दबाकर सपाट कर लें। इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है।
• पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होता है।
• नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है।
• शिकाकाई पानी में उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है।
• केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपड़ा लपेटें।
• इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना जरूरी है। सर्दी के दिनों में 3 लीटर और गर्मी के मौसम मे 5 से 6 लीटर पानी पीने की आदत बनावें। इससे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलेंगे।
•विटामिन `ई´ युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करने से यह रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।[13] आहार का महत्त्व-१-व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है।
२-सोरायसिस रोग से पीड़ित रोगी को दूध या उससे निर्मित खाद्य पदार्थ, मांस, अंडा, चाय, काफी, शराब, कोला, चीनी, मैदा, तली भुनी चीजें, खट्टे पदार्थ, डिब्बा बंद पदार्थ, मूली तथा प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
३-जौ, बाजरा तथा ज्वार की रोटी इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक है।
४-नारियल, तिल तथा सोयाबीन को पीसकर दूध में मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
आंवले का प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
५-इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फलों का रस (गाजर, खीरा, चुकन्दर, सफेद पेठा, पत्तागोभी, लौकी, अंगूर आदि फलों का रस) पीना चाहिए। इसके बाद कुछ सप्ताह तक रोगी व्यक्ति को बिना पका हुआ भोजन खाना चाहिए जैसे- फल, सलाद, अंकुरित दाल आदि और इसके बाद संतुलित भोजन करना चाहिए।
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