Friday 15 September 2017

पंचगव्य... गाय के दूध, घृत, दही, गोमूत्र और गोबर



गाय के दूध, घृत, दही, गोमूत्र और गोबर के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार होता है। पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। 
यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।
गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है।यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है। दुग्धाहार, श्रेष्ठाहार- दूध स्तनधारी प्राणियों के लिये वरदान है उस ईश्वर का जिसने दुनिया में उन्हें भेजा। गाय के साथ-साथ भैंस और बकरी के दूध का भी हम इस्तेमाल करते हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य हो जो दूध का पान किए बगैर ही बड़ा हो गया हो। “मातृ क्षीरंत अमृतं शिशुभ्य:” मां का दूध बच्चे के लिये अमृत है। गौमाता की सुरक्षा के लिए संकल्प लीजिए, गौमाता की पूजा के लिये संकल्प लीजिए। चाहे किसी भी जाति सम्प्रदाय के हों, दूध पीने की आदत डालें। प्रक्रिया जो भी हो, मांस लाल होता है, दूध सफेद होता है। सफेद यानी शांति का प्रतीक। यह भी ईश्वर का एक संकेत ही है।
गाय को लेकर विशेष चर्चा इसलिए है कि गाय को बचाने के प्रयास हो रहे हैं। गाय हमारी माता है। हम सब उसके बच्चे हैं, उसके दूध पर आश्रित हैं। गाय का दूध गिलास में लेकर हम पीते हैं तो यह पुष्टिका है, कम से कम इतना तो कहा जा सकता है। गाय के दूध की उपयोगिता का वर्णन प्राय: असंभव है। ये बड़ी-बड़ी डेयरियां कहां से चलती हैं? ये पकवान कहां से बनते हैं? ये चाकलेट कहां से बनती है? ये मिठाइयां कहां से बनती हैं? स्वादिष्ट पनीर, दही, मावा सब के सब दूध से ही ताे बनते हैं। एक तरह से दूध न होता तो संसार नहीं होता।
गौमाता को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है, तो गौमाता उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है।यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये।गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपर कभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है।गौमाता को घर पर रखकर कभी भूखी – प्यासी नहीं रखना चाहिये, न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये। ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये, जो गाय को भूखी – प्यासी रखता है उसका कभी श्रेय नहीं होता।नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये। गौग्रास निकालना चाहिये। गौ ग्रास का बड़ा महत्व है।गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की “२१ पीढियाँ” तर जाती है।गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवा करे, यवनों को और कसाई को न बेचे। अनाधिकारी को गाय दान देने से घोर पाप लगता है।नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोबर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता के गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये।गाय के दूध, घी, दही, गोबर और गौमूत्र, इन पाँचो को ‘पञ्चगव्यऽ के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है।कहते हैं गौ के “गोबर में लक्ष्मी जी” और “गौ मूत्र में गंगा जी” का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है।जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है।नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये। यदि नित्य न हो सके तो “गोपाष्टमी” के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये।गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये। गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धाम की प्राप्ति होती है।यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर में बल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है। गाय सर्वतीर्थमयी है। गौ की सेवा से घर बैठे ही ३३ करोड़ देवी – देवताओ की सेवा हो जाती है। ओर इसी गोमाता से हमे पंचगव्य प्राप्त होता है अब आपको इसकी जानकारी दूंगा क्या हैं पंचगव्य घृत ?
पंचगव्य घृत किस रोगों में काम आता हैं ??
आयुर्वेद में, पंचगव्य गाय से प्राप्त पांच महत्वपूर्ण पदार्थों, दूध, घी, दही मूत्र और गोबर का वर्णन करने के लिये प्रयुक्त शब्द हैं  पंचगव्य घृत, पंचगव्य के सभी पांच घटकों से तैयार किया जाता हैं । इसे यकृत रोग, बुखार, एनीमिया और एक टॅोनिक के रूप में प्रयोग किया जाता हैं । इसके सेवन से शरीर में ताकात आती हैं । यह पौष्टिक होने के साथ-साथ शरीर के भीतर की रूक्षता को दुर करता हैं ओर कब्ज़ से राहत देता है । यह पाचक और बस्ती को शुद्ध करता हैं । यह धातुक्षीणता को दूर करता है ओर शरीर को सबल बनाता है ।
*पंचगव्य घृत के घटक Ingredients of Panchgvya Ghrita*
- गोमय स्वरस (3.0721)
- क्षिर Milk - 3.0721
- दधि Curd - 3.072 kg
- गो मूत्र cow's urine - 3.0721
- घी Go ghirta - 768 g
पंचगव्य घृत के लाभ / फायदे (Benefits Of Panchgvya Ghrita)*
- यह यकृत की रक्षा करता है ।
- इसमे रक्त शोधन गुण हैं ।
- यह मुख्य रुप से तंत्रिका और मनोवैज्ञानिक रोगो में प्रयोग किया जाता हैं ।
- यह स्त्रोंतों को साफ करता हैं ।
- यह विशेष रुप से मिरगी, उन्माद / मनोविकृति ओर तंत्रिकाजन्य विकारों में अत्यन्त लाभप्रद है ।
- यह अत्यंत पौष्टिक है ।
- यह वजन, कान्ति, और पाचन को बढ़ाता है ।
- यह धातुओं को पुष्ट करता हैं ।
- यह पित्त विकार को दूर करता है ।
*पंचगव्य घृत के चिकित्सीय उपयोग*
- मिरगी
- पागलपन
- पीलिया
- मलेरिया / टाइफाइड, विषम ज्वर
- मनोभ्रंश, अवसाद और अल्जाइमर रोग
- ओबसेसिव कम्पलसिव डिसओडॅर
सेवन विधि और मात्रा Dosage Of Panchgvya Ghrita
- 5 ग्राम - 12 ग्राम दिन में दो बार, सुबह ओर शाम लें ।
- इसे गाय के दुध साथ लें ।
- यह डोक्टर द्वारा निर्देशित रुप में लें ।

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