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Wednesday 28 October 2020

पेट की गैस


 

पेट में गैस (pet me gas) की समस्या को पेट में वायु बनना या गैस बनना आदि भी बोला जाता है। इसे पेट या आँतों की गैस और पेट फूलना भी कहते हैं। आजकल अस्वस्थ आहार और सुस्त जीवनशैली के कारण पेट में गैस की समस्या होना आम बात हो गई है। आयुर्वेद के अनुसार, पेट के जितने भी रोग हैं वे सभी शरीर के त्रिदोष के कारण होते हैं। इसलिए वात, पित्त, कफ दोषों को शांत करके पेट के रोग जैसे गैस की समस्या (gas ki problem ka ilaj) को ठीक किया जा सकता है।

गैस की बीमारी स्वतंत्र रोग न होकर पाचनतंत्र से संबंधित खराबी के कारण होने वाली बीमारी है। कई बार गैस के कारण इतना तेज दर्द होने लगता है कि बीमारी गंभीर बन जाती है। इतना ही नहीं पेट में गैस होने पर अनेक तरह की बीमारियां होने की संभावना भी बन जाती है। इसलिए आइए जानते हैं कि पेट में गैस की समस्या क्यों होती है, गैस की समस्या से होने वाले रोग कौन-कौन से हैं, और पेट में गैस होने पर घरेलू इलाज कैसे किया जाना चाहिए।

पेट में गैस होना क्या है? (What is Gas?)

जब खाना खाते हैं तब पाचनक्रिया के दौरान हाइड्रोजन, कार्बनडाइऑक्साइड और मिथेन गैस निकलता है जो गैस या एसिडिटी होने का कारण बनता है। जठराग्नि की कमजोरी से मल, वात आदि रोग हो जाते हैं। इससे अन्य कई रोग होने लगते हैं। मल की अधिकता के कारण जठराग्नि कमजोर होने लगती है। जब पाचन सही प्रकार से नहीं होता है तो पेट में बनने वाली अपान वायु तथा प्राण वायु बहार नहीं निकल पाती है। गैस से होने वाले रोग से बचने के लिए आपको आयुर्वेदिक उपाय करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त, कफ को शांत करके पेट में गैस की समस्या को ठीक किया जा सकता है। तीनों दोषों को शांत करने के लिए जौ, मूँग, दूध, आसव, मधु, इत्यादि का सेवन करना चाहिए

पेट में गैस बनने के लक्षण (Symptoms of Gas in Hindi)

पेट में गैस बनने पर पेट में दर्द होने लगता है, लेकिन इसके अलावा और भी लक्षण है जो एसिडिटी होने पर नजर आते हैं-

  • सुबह जब मल का वेग आता है तो वो साफ नहीं होता है और पेट फूला हुआ प्रतीत होता है।
  • पेट में ऐंठन और हल्के-हल्के दर्द का आभास होना।
  • चुभन के साथ दर्द होना तथा कभी-कभी उल्टी होना।
  • सिर में दर्द रहना भी इसका एक मुख्य लक्षण हैं।
  • पूरे दिन आलस जैसा महसूस होता है

    पेट में गैस बनने के कारण (Causes of Gas in Hindi)

    आयुर्वेद में वात, पित्त एवं कफ इन तीन दोषों के असंतुलन से ही सारे रोग होते हैं, तथा इनके सामान्य अवस्था में रहने से व्यक्ति रोगरहित रहता है। उदररोगों में उदरवायु सबसे आम समस्याओं में से एक देखी जाती है, यह वात के कारण होने वाला रोग है। अनुचित आहार-विहार के कारण वात प्रकुपित होकर अनेक रोगों को जन्म देता है तथा पेट में गैस की समस्या से व्यक्ति को जूझना पड़ता है। आयुर्वेद में वायु के पाँच प्रकार बताए गए हैं- प्राण, उदान, समान, व्यान एवं अपान वायु। उदर वायु समान एवं अपान वायु की विकृति से उत्पन्न होती है। लेकिन इसके पीछे बहुत सारे आम कारण होते हैं जिनके वजह से गैस होती है, चलिये इनके बारे में पता लगाते हैं।

    • अत्यधिक भोजन करना
    • बैक्टीरिया का पेट में ज्यादा उत्पादन होना
    • भोजन करते समय बातें करना और भोजन को ठीक तरह से चबाकर न खाना।
    • पेट में अम्ल का निर्माण होना।
    • किसी-किसी दूध के सेवन से भी गैस की समस्या हो सकती है।
    • अधिक शराब पीना
    • मानसिक चिंता या स्ट्रेस
    • एसिडिटी, बदहजमी, विषाक्त खाना खाने से, कब्ज और कुछ विशेष दवाओं के सेवन
    • मिठास और सॉरबिटोल युक्त पदार्थों के अधिक सेवन से गैस बनता है।
    • सुबह नाश्ता न करना या लम्बे समय तक खाली पेट रहना।
    • जंक फूड या तली-भुनी चीजें खाना।
    • बासी भोजन करना।
    • अपनी दिनचर्या में योग और व्यायाम को शामिल न करना।
    • बीन्स, राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल का अधिक सेवन करना।
    • कुछ खाद्य पदार्थों से कुछ लोगों को गैस बन जाता है जबकि कुछ लोगों को उससे कोई गैस नहीं बनता है जैसे; सेम, गोभी, प्याज, नाशपाती, सेब, आडू, दूध और दूध उत्पादों से अधिकांश लोगों को गैस बनती है।
    • खाद्य पदार्थ जिनमें वसा या प्रोटीन के बजाय कार्बोहाइड्रेट का प्रतिशत ज्यादा होता है, के खाने से ज्यादा गैस बनती है।
    • भोजन में खाद्य समूह में कटौती की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि आप अपने आप को आवश्यक पोषक तत्वों से वंचित भी नहीं रख सकते हैं, अक्सर, जैसे ही एक व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, कुछ एंजाइमों का उत्पादन कम होने लगता है और कुछ खाद्य पदार्थों से अधिक गैस भी बनने लगती है।
    • यहां तक कि स्तनपान करने वाले शिशुओं में उदरवायु यानि पेट में दर्द होने की समस्या अक्सर देखी जाती है। उचित प्रकार से स्तनपान न कराने या माता द्वारा वात बढ़ाने वाले आहार लेने से ऐसी समस्या हो जाती है। वहीं भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों में वातवर्धक आहार, फास्ट फूड, जंक फूड इन सब के सेवन से उदरवायु की समस्या देखी जाती है

      पेट में गैस बनने से रोकने के उपाय 

      अगर खाना खाने के बाद एसिडिटी हो रहा है या हमेशा किसी न किसी कारण गैस का प्रॉबल्म हो रहा है तो इसको रोकने के लिए अपने आहार योजना और जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए।

      सबसे पहले आहार योजना के बारे में जानते हैं-

      • क्योंकि पेट में गैस वात दोष के कारण होने वाली समस्या है अत वातशामक आहार एवं उचित जीवनशैली के द्वारा गैस की समस्या से राहत (pet me gas ke upay) मिलती है।
      • अपने आहार में बदलाव करें- सेम, गोभी, प्याज जैसे खाद्य पदार्थ की मात्रा का ध्यान रखें, हालांकि, इससे पहले कि आप इन चीजों को खाना छोड़ दे एक या दो सप्ताह इन्हें खाकर यह पता लगा लें कि आपकों किस चीज से नुकसान पहुँचता है, अपने आहार का ट्रैक रखें।
      • मिठास या सॉरबिटोल युक्त उत्पादों से बचें, जो चीनी मुक्त मिठाई और कुछ दवाओं में प्रयोग किया जाता है।
      • चाय और रेड वाइन भी अधोवायु को रोकने में मदद करता है
      • अब आता है जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाने से गैस से राहत मिल सकती है,जैसे-

        • सुबह उठकर प्राणायाम एवं योगासन करें।
        • भोजन को चबा-चबा कर खाएं, जल्दी-जल्दी भोजन न खाएं।
        • पवनमुक्तासन, वज्रासन तथा उष्ट्रासन करें।
        • वज्रासन, खाने के बाद करने से गैस होने से रोका जा सकता है। इसको करने के लिए घुटने मोड़कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें। 5 से 15 मिनट तक करें। गैस पाचन शक्ति कमजोर होने से होती है। यदि पाचन शक्ति बढ़ा दें तो गैस नहीं बनेगी। योग की अग्निसार क्रिया से आंतों की ताकत बढ़कर पाचन सुधरेगा।
        • वज्रासन करने से पेट में गैस नहीं बनती। योग की अग्निसार क्रिया से आँतों की ताकत बढ़कर पाचन में सुधार होता है।
        • सोडा और प्रीजरवेटिव युक्त जूस न पिएं।
        • पानी अधिक पिएं।
        • जंक फूड, बासी भोजन तथा दूषित पानी से जितना हो सके बचें।
        • पेट में गैस बनना आम बात है लेकिन कई बार इसकी वजह से सीने में भी दर्द होने लगता है। गैस भयंकर तरीके से सिर में चढ़ जाती है और उल्टियां तक आने लगती है। अगर आपको भी खतरनाक तरीके से गैस बनती है तो आप देसी दवाई की जगह घरेलू उपायों के जरिए इस बीमारी को जड़ से खत्म कर सकते हैं। दरअसल, गैस बनने से पेट फूलने लगता है और पाचन संबंधी दिक्कत पैदा हो जाती है। अगर आपको ज्यादा गैस बनती है तो इसे बिल्कुल भी हल्के में न लें क्योंकि इसकी वजह से आपको घातक पेट के रोग हो सकते हैं। पेट फूलने और गैस बनने पर आप घर में ही मौजूद चीजों से इसका इलाज कर सकते हैं और इस बीमारी से जड़ से छुटकारा पा सकते हैं
        • पेट में गैस की समस्या से छूटकारा पाने के आसान से घरेलू उपाय:

          1. नीबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।

          2. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।

          3. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।

          4. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।

          5. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
          6. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फादा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।

          7. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।

          8. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।

          9. पुदीने की पत्तियों को उबाल कर पीने से गैस से निजात मिलती है।

          10. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।

          11. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।

          12. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।

Saturday 16 September 2017

अल्सर की असलियत

भागदौड़ भरे इस माहौल में न तो लोगों के खाने का समय तय है, न सोने का। एक्सर्साइज करना तो दूर, समय की दुहाई देकर वे दफ्तर की सीढि़यां चढ़ने से भी परहेज करते हैं। तनाव इस कदर हावी है कि सपने में भी या तो ड्राइविंग करते रहते हैं या दफ्तर की फाइलें पीछा नहीं छोड़तीं। ऐसे में कई बीमारियां चुपके से घर कर जाती हैं। ऐसी ही एक बीमारी है पेप्टिक अल्सर, जो शरीर में ज्यादा एसिडिटी की वजह से होती है ! 


पेप्टिक अल्सर की वजह, लक्षण और इलाज----
क्या होता है पेप्टिक अल्सर- पेप्टिक अल्सर एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेट की अंदरूनी दीवारों पर छाले पड़ जाते हैं। बीमारी बढ़ जाने पर ये छाले गहरे घाव में बदल जाते हैं और मरीजों को ज्यादा परेशानी होने लगती है। गलत खानपान की वजह से जब पेट में एसिड ज्यादा बनने लगता है तो यह स्थिति पैदा हो जाती है। यह बीमारी बैक्टिरिया के इंफेक्शन की वजह से भी होती है।

एसिड रिफ्लक्स डिजीज--- जब हम भोजन करते हैं तो आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक<relatedplaceholder/> एसिड बनता है, जिससे भोजन का पाचन होता है। बदहजमी की वजह से कभी-कभी एसिड ऊपर की ओर आहार नली में चला जाती है। इससे जलन महसूस होती है। इसका असर गले, दांत, सांस आदि पर पड़ने लगता है। इससे सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है, आवाज भारी हो जाती है और मुंह में छाले पड़ जाते हैं। इस तरह की स्थितियों को एसिड रिफ्लक्स डिजीज कहा जाता है। 
कितनी तरह का अल्सर-- 
गैस्ट्रिक अल्सर - इसमें भोजन के बाद पेट में दर्द होने लगता है। डाइजीन जैसी दवाएं लेने के बाद आराम मिल जाता है।
ड्यूडिनल अल्सर-  खाली पेट रहने से दर्द होता है। भोजन करने के बाद दर्द ठीक हो जाता है। अगर 15 लोगों को ड्यूडेनल अल्सर होता है तो मुश्किल से 1 या 2 लोग गैस्ट्रिक अल्सर के शिकार होते हैं।
इसोफेगल अल्सर : इसमें आहार नली के निचले हिस्से में छाले पड़ जाते हैं या छिद्र हो जाते हैं। इससे आहार नली में तेज जलन होती है।

पेप्टिक अल्सर की वजह-- एसिड की अधिकता : पेट में ज्यादा मात्रा में एसिड बनना पेप्टिक अल्सर की मुख्य वजह है। इसके लिए ज्यादा मिर्च-मसाले वाला खाना और गलत खानपान जिम्मेदार है।

एच-पायलोरी इंफेक्शन : 1980 में एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने एच-पायलोरी (हेलिकोबेक्टर पायलोरी) नामक बैक्टिरिया का पता लगाया था। उन्होंने माना था कि सिर्फ खान-पान और पेट में एसिड बनने से पेप्टिक अल्सर नहीं होते, बल्कि इसके लिए एक बैक्टिरिया भी दोषी है। इसका नाम एच-पायलोरी रखा गया। एंडोस्कोपी से इसकी स्थिति का पता चलता है। पेप्टिक अल्सर के लिए एच-पायलोरी बैक्टिरिया जिम्मेदार है, फिर भी 90 फीसदी लोगों के पेट में इस बैक्टिरिया के होने के बावजूद उनमें अल्सर नहीं होता। 10 फीसदी लोगों में इस बैक्टिरिया के होने के बावजूद अल्सर होता है।

पेनकिलर्स का इस्तेमाल : कई पेनकिलर्स और बुखार उतारने की दवाएं नॉन-स्टिरॉयडल एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) की कैटिगरी में आती हैं। इनमें एस्प्रिन, आइब्रुफेन और नेप्रेक्सिन समूह की दवाएं प्रमुख हैं। इन दवाओं को ज्यादा लेने से एसिड बनता है।

तनाव : तनाव की वजह से एसिड ज्यादा बनता है। बाद में यही पेप्टिक अल्सर का रूप ले लेता है।

स्मोकिंग : स्मोकिंग पेप्टिक अल्सर की एकमात्र वजह नहीं है, लेकिन यह अल्सर के जोखिम को बढ़ा देता है। स्मोकिंग की वजह से अल्सर की दवा का असर कम हो जाता है।

लक्षण---- पेट के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द होना अल्सर का लक्षण हो सकता है।

भोजन के बाद जब पेट में दर्द हो और डाइजिन जैसी एंटी-एसिड दवाओं से राहत मिले तो इसे गैस्ट्रिक अल्सर का लक्षण माना जाता है। ड्यूडिनल अल्सर में खाली पेट दर्द होता है और भोजन के बाद दर्द से राहत मिलती है। अक्सर इसका दर्द रात को होता है। अगर दर्द छाती के पास हो तो इसे एसिडिटी रिफ्लेक्शन का असर समझना चाहिए। इससे दिल के दर्द का शक होता है। दिल का दर्द छाती के ऊपरी हिस्से में होता है और कभी-कभी एसिडिटी की वजह से भी उसी जगह दर्द होता है, इसलिए बिना जांच के अंतर समझ पाना आसान नहीं है। पेप्टिक अल्सर होने से मरीज को भूख कम लगती है। सामने खाना होने पर भी खाने की इच्छा नहीं होती।
उलटी होना या उलटी जैसा महसूस होना अल्सर का लक्षण माना जा सकता है। जब अल्सर बढ़ जाता है, तो खून की उलटी हो सकती है। ऐसे में स्टूल (मल) का रंग काला हो जाता है।

अल्सर से बचाव--रेशे वाला भोजन लें और मिर्च-मसाले का इस्तेमाल कम करें।चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, जंक फूड कम लें।खाना समय पर और तसल्ली से खाएं।टेलिविजन देखते हुए खाना न खाएं।रात के खाने और सोने के बीच कम-से-कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए। जूस, लस्सी या मीठे तरल पदार्थ पीने में लोग जल्दबाजी करते हैं। यह गलत है। ऐसी चीजों को धीरे-धीरे पीना चाहिए। धीरे-धीरे पीने से मुंह का सलाइवा इसमें मिल जाता है, जिससे ये चीजें जल्दी पच जाती हैं। स्मोकिंग से परहेज करें।तनावमुक्त रहने की कोशिश करें।नियमित व्यायाम करें।दवाएं डॉक्टरों की सलाह से ही लें।अगर अल्सर हो जाए, तो एनएसएडी समूह की दवा न लें।पेनकिलर्स के रूप में क्रोसिन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्या है इलाज

1. एलोपैथी

एंटी-अल्सर किट : पेप्टिक अल्सर में 10 दिन की दवा दी जाती है। इसे एंटी-अल्सर किट कहते हैं। इसमें खासतौर से पीपीआई (प्रोटॉन पंप इनहिबिटर), क्लैरीथ्रोमाइसिन और एमॉक्सिस्लिन ग्रुप की दवाएं होती हैं। इनसे एसिड का असर कम हो जाता है। मरीज को ये दवाएं डॉक्टर द्वारा बताए गए परहेज के साथ लेनी चाहिए।
ऑपरेशन : पहले पेप्टिक अल्सर की वजह से ब्लड आने की स्थिति में ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती थी, लेकिन अब एंडोस्कोपी की मदद से इलाज किया जाता है।

क्या है एंडोस्कोपी-----
एंडोस्कोपी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शरीर के अंदरूनी हिस्सों के बारे में एंडोस्कोप की मदद से पता लगाया जाता है। एंडोस्कोप पतला लचीला ट्यूब होता है, जिसके एक सिरे पर रोशनी की व्यवस्था होती है और इसमें विडियो कैमरा लगा होता है। इसकी मदद से कंप्यूटर स्क्रीन पर शरीर के भीतरी हिस्सों की तस्वीरें देखी जाती हैं। पेप्टिक अल्सर के मामले में इसे मुंह के रास्ते या मलद्वार से शरीर में प्रवेश कराया जाता है। इसका इस्तेमाल मरीज को बिना बेहोश किए किया जाता है। जब अल्सर फट जाता है या अल्सर के घाव गहरे होकर धमनी को डैमेज कर देते हैं, तो एंडोस्कोप की मदद से खून के बहाव को रोका जाता है। उसके बाद दवा से इलाज किया जाता है।

2. होम्योपैथी----
अर्सेनिकल एल्बम, फॉस्फोरस, सल्फर, आयरिस वर्सिकोलर, कैली बायक्रोमिकम, आर्जेंटम नाइट्र्किम, ग्राफिक आदी हैं।इन दवाओं का चयन होम्योपैथी डॉक्टर की सलाह पर करना चाहिए। मरीज और मर्ज के इतिहास को बेहतर जानने के बाद ही डॉक्टर दवाओं का चयन करते हैं। 

3. आयुर्वेद---
सतशेखर रस की 2 टैब्लेट दिन में तीन बार लें।

कामदूध रस की 2 टैब्लेट दिन में तीन बार लें।

4. घरेलू उपचार----
पोहा (बिटन राइस) और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। 20 ग्राम चूर्ण को 2 लीटर पानी में सुबह घोलकर रख लें और रात में पूरा पी जाएं। रोज सुबह तैयार करें और दोपहर बाद या शाम से पीना शुरू कर दें। इस घोल को 24 घंटे में खत्म कर देना है।

दूध गैस्ट्रिक एसिड बनाता है, लेकिन आधा कप ठंडे दूध में आधा नीबू निचोड़कर पिया जाए तो वह पेट को आराम देता है। जलन का असर कम हो जाता है।

पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में लेकर जूस बना लें। सुबह-शाम एक-एक कप पीने से पेप्टिक अल्सर के मरीजों को आराम मिलता है।गाय के दूध से बने कच्चे घी का इस्तेमाल फायदेमंद होता है।बादाम पीसकर बनाए गए दूध से मरीज को काफी लाभ पहुंचता है। ड्रम स्टिक (सहजन) के पत्ते को पीसकर दही के साथ पेस्ट बनाकर लें। 

5. यौगिक क्रियाएं--- पेप्टिक अल्सर को दूर करने के लिए योगासन नहीं हैं, लेकिन एसिड की अधिकता को कम करने के लिए योग कारगर है।वज्रासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन करने से एसिड का असर कम होता है।जलनेति जैसी यौगिक क्रियाएं भी उपयोगी हैं।अनुलोम-विलोम, शीतली और सीत्कारी जैसे प्राणायाम से फायदा मिलता है।पेप्टिक अल्सर ने अगर गंभीर रूप ले लिया हो तो योगासन नहीं करने चाहिए। यौगिक क्रियाएं किसी योगाचार्य की सलाह और देखरेख में ही करें।