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Thursday 31 August 2017

गठिया - अत्यंत पीडादायक बीमारी

क्या आप गठिया रोग से पीडित हैं?आमवात जिसे गठिया भी कहा जाता है अत्यंत पीडादायक बीमारी है।अपक्व आहार रस याने “आम” वात के साथ संयोग करके गठिया रोग को उत्पन्न करता है।अत: इसे आमवात भी कहा जाता है। इसमें जोडों में दर्द होता है, शरीर मे यूरिक एसीड की मात्रा बढ जाती है। छोटे -बडे जोडों में सूजन का प्रकोप होता रहता है। यूरिक एसीड के कण(क्रिस्टल्स)घुटनों व अन्य जोडों में जमा हो जाते हैं।जोडों में दर्द के मारे रोगी का बुरा हाल रहता है।गठिया के पीछे यूरिक एसीड की जबर्दस्त भूमिका रहती है। इस रोग की सबसे बडी पहचान ये है कि रात को जोडों का दर्द बढता है और सुबह अकडन मेहसूस होती है। यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोडों को स्थायी नुकसान हो सकता है।
गठिया रोग या संधिवात में रोगी के गांठों में असह्य दर्द होता है। यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित है। इसके संबंध खून में मूत्रीय अम्ल का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाए जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (प्रायः पादागुष्ठ (ग्रेट टो)) में तथा कभी कभी गुर्दे में भी क्रिस्टल भारी मात्रा में बढ़ता है। गठिया का रोग मसालेदार भोजन और शराब पीने से संबद्ध है। यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित है। इसके संबंध खून में मूत्रीय अम्ल का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाये जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (प्रायः पादागुष्ठ (ग्रेट टो) में तथा कभी कभी गुर्दे में भी क्रिस्टल भारी मात्रा में बढ़ता है।
यूरिक अम्ल मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्रायः गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक अम्ल का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक अम्ल के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा (जोड़ों के स्थल) हो जाते है। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं-
संकेत और लक्षण---
सभी गठिया विकारों के लिए आम लक्षण दर्द के विभिन्न स्तरों शामिल हैं, सूजन, जोड़ों की कठोरता और कभी कभी संयुक्त (एस) के चारों ओर एक निरंतर दर्द. एक प्रकार का वृक्ष और रुमेटी गठिया जैसी बीमारियों के भी लक्षण के एक किस्म के साथ शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित कर सकते हैं.
  • हाथ का उपयोग करने के लिए या चलने में असमर्थता
  • अस्वस्थता और थकान का अहसास
  • बुखार
  • नींद कम आना
  • मांसपेशियों में दर्द और बदन दर्द
  • चलते समय कठिनाई होना
  • मांसपेशियों में कमजोरी
  • लचीलेपन की कमी
  • एरोबिक फिटनेस में कमी
गठिया रोग प्रमुख कारण
  • औरतों में एसट्रोजन की कमी के कारण भी अर्थराइटिस होता है।
  • थइराइड में विकार के कारण भी यह बीमारी होती है।
  • त्वचा या खून की बीमारी जैसे ल्यूकेमिया आदि होने पर भी जोड़ों में दोष पैदा हो जाता है।
  • अधिक खन-पान और शारीरिक कामों में कमी के कारण, शरीर में आयरन और कैल्शियम की अधिकता होने से भी यह रोग हो सकता है।
  • कई बार शरीर के दूसरे अंगों के संक्रमण भी जोड़ों को प्रभावित करते हैं जैसे टाइफायड या पैराटाइफायड में बीमारी के कुछ हफ़्तों बाद घुटनों आदि में दर्द हो सकता है।
  • आतों को प्रभावित करने वाले रिजाक्स नामक किटाणु जोड़ों में भी विकार पैदा करते हैं।
  • पोषण की कमी के कारण , खा़सतौर से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से रिह्यूमेटायड आर्थराइटिस होता है जिससे जोड़ों में दर्द , सूजन गांठों में अकड़न आ जाती है।
आप सभी से मेरा अनुरोध है कि इस किसी एक लक्षण के होने पर कृपया करके आप तुरंत डा० से सम्पर्क करें , जिससे आप को यदि यह रोग हो रहा हो तो आरंभिक अवस्था में ही इससे छुटकारा मिल जाए

Wednesday 23 August 2017

संधिवात और आयुर्वेद

ऑस्टियोआर्थराइटिस को आयुर्वेद में संधिवात के रूप में जाना जाता है, जो कि जोडों का विकार है। इसका मतलब है, कि हमारे शरीर के निचले हिस्से की हड्डियों को सपोर्ट देने वाले सुरक्षात्मक कार्टिलेज और कोमल ऊतकों का किसी कारणवश टूटना शुरू होना हैं। इस हालत में किसी भी गतिविधि के बाद या आराम की लंबी अवधि के बाद जोड़ों का लचिलापन कम हो जाता है और वो सख्त हो जाते हैं, और दर्द दायक बनते हैं।
प्रमुख लक्षण (symtpoms):
संधिवात में शरीर के बड़े जोड़ जैसे घुटने व कूल्हे अधिक प्रभावित होते हैं. प्रभावित जोड़ों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं;
जोड़ों में दर्द
जोड़ों में सूज़न
प्रभावित जोड़ के ऊपर की त्वचा का गरम महसूस होना
चलने फिरने में कठिनाई का अनुभव होना – जब बीमारी पुरानी हो जाती है तो मामूली चलने या खड़े होने में भी अत्यधिक दर्द होता है.
आयुर्वेद चिकित्सा (Ayurvedic treatments):
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए एलोपैथिक दर्द निवारक दवाओं से उपचार के अलावा, आयुर्वेदिक इलाज भी उपलब्ध हैं व नए रोगी अथवा जो रोगी ऐलोपैथिक दवाओं का लम्बे समय से सेवन कर रहे हैं, वे आयुर्वेद चिकित्सा अपना सकते हैं, क्योंकि एलोपैथिक दर्द निवारक दवाओं का लम्बे समय तक सेवन किडनी व लीवर पर बुरा प्रभाव डाल सकता है. जैसा कि आप जानते हैं, आयुर्वेद कहता हैं की शरीर में तीन जीव-ऊर्जा या दोष होते हैं, जो हमारे शरीर के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। वात, कफ और पित्त यह उनके नाम हैं। जब एक व्यक्ति किसी भी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होता है, तब यह इन दोषों में असंतुलन की वजह से होता हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस वात दोष में एक असंतुलन के कारण होता है और इसलिए ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक इलाज में वात को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे व्यक्ति को दर्द से राहत मिलने में आसानी होती हैं। संधिवात के आयुर्वेदिक इलाज में निम्न औषधियों (herbs) की महत्वपूर्ण भूमिका है;

गुग्गुल – ऊतकों को मजबूत बनाने के लिए व यह एंटी-इंफ्लेमेटरी भी होता है जिससे दर्द कम होता है.
त्रिफला – विषैले तत्वो को शरीर से साफ करने का कार्य करता है.
अश्वगंधा – शरीर और मन को आराम और तंत्रिका तंत्र को उत्तेजना प्रदान करता है व स्ट्रेस को कम करता है.
कॅस्टर(एरंडी) तेल – दर्द होनेवाले क्षेत्र में लगाने के साथ, ही इसका सेवन भी लिया जा सकता है क्योंकि यह एक प्रभावी वातशामक औषधि है.
बला – शरीर में रक्त परिसंचरण को बढ़ाने के लिए, दर्द को कम करने के लिए, नसों को ठीक करने के साथ ही शरीर में ऊतकों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
शालाकी – अपने सूजन विरोधी गुणों के लिए और शरीर की हड्डियों के करीब के ऊतकों की मरम्मत करने में सक्षम होने के गुण के लिए उपयोगी हैं.
बाजार में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध हैं, जो ऑस्टियोआर्थराइटिस से राहत और ठीक करने में मददगार साबित होती हैं। हालांकि, चिकित्सक और एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना आवश्यक होता हैं, क्योंकि वो आपकी बीमारी के अनुसार सही दवा देने में सक्षम होते हैं। दवाओं के अलावा आयुर्वेद में
ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के लिए अन्य उपचार भी हैं। यह सब उपचार कई आयुर्वेदिक चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध होते हैं। इन उपचारों में से कुछ हैं –
अभ्यंग या वाह्य स्नेहन – यह एक हर्बल तेल मालिश है, जो ऊतकों को मजबूत बनाने और रक्त परिसंचरण में सुधार ला सकती हैं. वातदोष के शमन में तेलों की अहम् भूमिका होती है. अतः संधिवात के इलाज में आयुर्वेदीय औषधि सिद्ध तेलों द्वारा चिकित्सक के निर्देशन में की गयी मालिश बहुत लाभकारी सिद्ध होती है.
स्वेदन – एक औषधीय भाप स्नान शरीर दर्द को कम करने और शरीर के विषैले तत्वों को कम करने के लिए उपयोग किया जाता हैं. जानुबस्ति – यह घुटनों की आर्थराइटिस के लिए एक विशेष चिकित्सा है जिसमें घुटने की आयुर्वेदिक औषधि सिद्ध तेल से एक विशेष विधि द्वारा सिकाई की जाती है

अन्य ध्यान रखने वाली बातें
उपरोक्त उपचारों के अलावा, कुछ अन्य बातें भी हैं जिनको ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार करते वक्त ध्यान में रखा जाना चाहिए।

हर रोज 30 से 40 मिनट चलना खुद को बहुत थकाये नहीं
नियमित भोजन में घी और तेल को मध्यम मात्रा में शामिल करे, क्योंकि वह ऊतकों और जोड़ों चिकनापन और लचिलापन बनाए रखने में मदद करते हैं।
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से बचें, हर रोज ताजा खाना बनाए और जब खाना गरम हो तभी खाना खाने की कोशिश करे।
हर कीमत पर साफ्टड्रिंक और कार्बोनेटड पेय से बचें क्योंकि वे शरीर के कार्य़ को नुकसान पहुंचाते हैं।
मसालेदार, तीखा और अत्य धिक तेलयुक्त भोजन से बचें।

नोट: यह लेख पाठकों के ज्ञान वर्धन के लिए है, यहाँ बताई गयी औषधियों का सेवन व अन्य उपचार किसी क्वालिफाइड आयुर्वेद चिकिस्तक की देख-रेख में ही लें
नोट - संधिवात से जुडी समस्या से आप हमारे संस्थान पर भी सम्पर्क कर सकते है - ८४६०७८३४०१