Thursday 29 November 2018

आप अपने भोजन में शामिल कर लेते हो तो आप निरोगी जीवन जी सकते है

आज में आपको कुछ छोटी पर अति महत्वपूर्ण जानकारी दे रहा हु जिन्हें अगर आप अपने भोजन में शामिल कर लेते हो तो आप निरोगी जीवन जी सकते है .......

हेल्थ बनाने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो न सिर्फ यह बहुत फायदेमंद
होता है क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे.....
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।
- अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।
- अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन ,कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
- अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है यह शरीर को सुंदर व स्वस्थ बनाता है।
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहुं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुद्घ करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुद्घ होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन फायदेमंद है।
- अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी, सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम
हड्डियों को मजबूत बनाता है।।।।।।।।।। उत्तम जैन

Wednesday 28 November 2018

गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा

आयुर्वेद का एक ऐसा चमत्कार जिसे देखकर एलॉपथी डॉक्टर्स भी अचरज करने लगे  जो डॉक्टर्स कहते थे के गाल ब्लैडर स्टोन अर्थात पित्त की थैली की पथरी निकल ही नहीं सकता, उनके लिए भी यह एक रिसर्च का विषय बन चुका है    सिर्फ एक नहीं अनेक मरीजों पर सफलता से आजमाया हुआ ये प्रयोग. जबकि इस प्रयोग की वास्तविक कीमत सिर्फ 30-40 रुपैये ही है. यह प्रयोग गाल ब्लैडर और किडनी  दोनों प्रकार के स्टोन को निकालने में बेहद कारगर है.

गाल ब्लैडर स्टोन की चमत्कारी दवा


अब आपको बताता हु यह   चमत्कारी दवा. ये कुछ और नहीं ये है गुडहल के फूलों का पाउडर अर्थात इंग्लिश में कहें तो Hibiscus powder. ये पाउडर बहुत आसानी से पंसारी से मिल जाता है. अगर आप गूगल पर Hibiscus powder नाम से सर्च करेंगे तो आपको अनेक जगह ये पाउडर online मिल जायेगा. और जब आप online इसको मंगवाए तो इसको देखिएगा organic hibiscus powder. आज कल बहुत सारी कंपनिया आर्गेनिक भी ला रहीं हैं तो वो बेस्ट रहेगा. मगर ध्यान रहे के ये पाउडर External use और internal Use के लिए अलग अलग आता है तो आपको सिर्फ Internal Use वाला ही लेना है. अगर ऐसा सही से ना लिखा हुआ हो तो आप गुडहल के फूलो कि पंखुड़ियों को धुप में सुखा लीजिये और इसका पाउडर कर लीजिये. कुल मिला कर बात ये है के इसकी उपलबध्ता बिलकुल आसान है. अब जानिये इस पाउडर को इस्तेमाल कैसे करना है.

गाल ब्लैडर स्टोन निकालने के लिए गुडहल के पाउडर के इस्तेमाल की विधि.

गुडहल का पाउडर एक चम्मच रात को सोते समय खाना खाने के कम से कम एक डेढ़ घंटा बाद गर्म पानी के साथ फांक लीजिये. ये थोडा कड़वा होता है  मगर ये इतना भी कड़वा नहीं होता के आप इसको खा ना सकें. इसको खाना बिलकुल आसान है. इसके बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है. स्टोन का साइज़ बहुत बड़ा होगा तो  उनको पहले दो दिन रात को ये पाउडर लेने के बाद सीने में अचानक बहुत तेज़ दर्द हो सकता है . मगर यह दर्द होता है  स्टोन के टूटने का.  अर्थात अगर स्टोन का साइज़ बड़ा है तो वो दर्द कर सकता है.

इस प्रयोग में बरती जाने वाली महत्वपूर्ण सावधानी.

पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन न करें। और अगर आपका स्टोन बड़ा है तो ये टूटने समय दर्द भी कर सकता है. और ये प्रयोग करने से पहले अगर आपका स्टोन आपकी cbd नलिका के साइज़ से बड़ा हो तो कृपया सिर्फ डॉक्टर की देख रेख में ही ये प्रयोग करें. और स्टोन को तोड़ने के लिए पाठकों से अनुरोध हैं के वो पहले 5 दिन हर रोज़ 5 गिलास सेब के जूस पियें. हर तीन घंटे के बाद एक गिलास सेब का जूस पीते रहें. और बाकी अपना खाना कम कर दीजिये. इस से 5 दिन में आपका स्टोन टुकड़े टुकड़े हो जायेगा. फिर दोबारा टेस्ट करवाएं. अगर स्टोन का साइज़ बड़ा रह जाए तो यह निकलने में cbd नलिका में फंस भी सकता है जो के अत्यंत खतरनाक हो सकता है. इसलिए जिन लोगों के स्टोन का साइज़ बड़ा हो वो केवल डॉक्टर की देख रेख में और अपने विवेक से इस प्रयोग को करें.

Sunday 25 November 2018

त्रिफला से कायाकल्प

                     त्रिफला से कायाकल्प-Triphala Rejuvenation
त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक व ऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्‍बे,गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।

हरड  - हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है

बहेडा - बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है

आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की  तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए । कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है  और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। 

1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

ओषधि के रूप में त्रिफला 

रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगा। शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।

एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है। त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है। त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।

चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।

त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है। 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।

5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।

त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।

डेढ़ माह तक नीचे बताए इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है कल्प के दिनों में खट्टे, तले हुए, मिर्च-मसालेयुक्त व पचने में भारी पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। 40 दिन तक मामरा बादाम का उपयोग विशेष लाभदायी होगा। कल्प के दिनों में नेत्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य करें।

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानीः दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाख जहर होता है । त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प - कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वर्ध्दाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और शुक्ष्म से शुक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने  भी लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।

ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।

उत्पाद विवरण- 
विनय त्रिफला रस (एलोवेरा युक्त ) – त्रिफला रस आयुर्वेद का वरदान है त्रिफला रस का प्रयोग आयुर्वेदचार्य सेकड़ो वर्षो से सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक करने में प्रयोग करते आ रहे है इसमें आयुर्वेद की मतानुसार वात ,पित और कफ तीन दोष माने गये है त्रिफला हरंड, बहेडा और आवला से मिलकर बनता है साथ मे एलोवेरा के संयोजन से ओर गुणकारी हो जाता है !और उक्त त्रिदोषो को दूर करता है इसके विस्तृत लाभ निम्न है :- • त्रिफला रस के सेवन से गैस,कब्ज ,एसिडिटी आदि की समस्या दूर होती है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है • यह लीवर की सभी समस्याओ को दूर कर लीवर को शक्ति प्रदान करता है • यह ब्लड प्रेसर को नियंत्रित करता है • यह केलोस्ट्रोल को संतुलित करता है • यह ह्रदय को शक्ति प्रदान कर ह्रदय गति को सामान्य करता है • त्रिफला रस का सेवन लाल रुधिर कणीकाओ के निर्माण को बढाता है • त्रिफला रस हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है • यह शरीर में इन्फेक्शन को रोकता है तथा सर्दी ,खासी ,कफ तथा एलर्जी में अत्यंत लाभ करी है • यह सीने एवं फेफड़ो में जमे हुए कफ को पिघलाकर बाहर निकालने में सहायक
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Friday 14 September 2018

मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ

मैदा खाओ और अनगिनित रोग बुलाओ
          
    भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं  खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे  यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
                    इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे  घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव  में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
    मैदा -----   इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
         मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
      आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
         मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे  नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
        मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
         यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। – 
           मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
          मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
            कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
        शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम  को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
      एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
                 इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
               मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
            आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर  पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
                  इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये  और सीमित उपयोग करे .
               अन्यथा मैदा खाएं और  अनेकों बीमारियां बुलाएँ .
       

मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ

मैदा खाओ और अनगिनित रोग बुलाओ
          
    भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं  खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे  यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
                    इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे  घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव  में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
    मैदा -----   इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
         मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
      आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
         मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे  नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
        मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
         यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। – 
           मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
          मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
            कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
        शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम  को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
      एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
                 इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
               मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
            आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर  पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
                  इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये  और सीमित उपयोग करे .
               अन्यथा मैदा खाएं और  अनेकों बीमारियां बुलाएँ .
       

फुटपाथ की चाट खाना कितना हानिकारक

फुटपाथ की चाट खाना कितना हानिकारक !---------डॉक्टर अरविन्द जैन भोपाल

                       संसार में प्रत्येक जीव ,वृक्ष ,जंतु को भोजन अनिवार्य हैं .मानव को तो गर्भ से ही माता से भोजन ,पोषण मिलता हैं .और वह उन्ही पर निर्भर रहता हैं .इसीलिए माँ को गर्भस्थ शिशु हेतु उचित आहार विहार की व्यवस्था की जाती हैं और उसके पोषण के अनुसार गर्भस्थ शिशु का विकास होता हैं .इसी प्रकार पेड़ पौधों को भी पोषण की जरुरत होती हैं .शिशु के जन्मते ही उसे स्तनपान की जरुरत होती हैं .और इस समय माँ को यह निर्देशित किया जाता हैं की वह पथ्य,अपथ्य का ख्याल रखे .उसके आहार का प्रभाव नवजात  शिशु पर उसके स्तनपान से पड़ता हैं .जैसे जैसे शिशु बढ़ता हुआ चलने फिरने लगता हैं वैसे वैसे उसकी रूचि बढ़ती जाती हैं .और फिर स्कूल ,कॉलेज ,ऑफिस शादी  विवाह के बाद जीवन में बदलाव आता हैं .
                         वर्तमान में समय का अभाव,आर्थिक सम्पन्नता  और आलस्य के कारण घरों में चटपटी चीज़ों को बनाने का चलन प्रायः कम या बंद हो गया और चटकोरी जिव्हा होने के कारण बाहर का या होटल का या सड़क किनारे खड़े ठेलों के द्वारा अपनी रूचि के अनुसार चाट खाना शुरू होता हैं ..बाजार के गोलगप्पे ,कचोरी समोसा ,भेलपुरी आदि सबको आकर्षित करती हैं .पर भारत में जबतक सड़क के किनारे की चाट न खाये तब तक उसे संतुष्टि नहीं होती ऐसा क्यों ? ये फुटपाथ की चाट हो या सुसज्जित होटल की चाट हमारे जेबों पर डाका डालती हैं और इसके अलावा क्या खिलाया जाता हैं किसी को नहीं मालूम .फुटपाथ की चाट बिना भेदभाव के गरीब अमीर को पसंद होती हैं पर ये सब इंद्रधनुषी और चकाचौध वाली होती हैं .चाट खाने में कोई बुराई नहीं हैं पर  क्या खा रहे हैं ,यह समझना /जानना जरुरी होना चाहिए .जो भी खा रहे हैं वे कितनी साफ़ शुद्ध और स्वच्छतापूर्ण हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक न हो .
                                  अधिकांश  होटल या फुटपाथ की चाट या खाने पीने की वस्तुओं में सफाई न होने से चूहे आदि का मल अधिकांश पाया जाता हैं कारण उनके यहाँ घर जैसी सफाई या देखरेख नहीं होती .फुटपाथ के खाने में इ कोलाई बेक्टेरिया की अधिकतम मात्रा पायी जाती हैं जिससे दस्त ,उलटी या दोनों की संभावना होती हैं .हमारे मष्तिस्क में यह धारणा रहती हैं की इस स्थानों पर शुद्ध खाना मिलता हैं .आपने ध्यान दिया होगा की फुटपाथ पर ठेला लगाने वाले जन सुविधाओं से निकटतम स्थान पर ,खुले  स्थान पर या किसी कोने में लगते हैं जहाँ नाली .या गटर  की गन्दगी होती हैं ,अधिकतर चाट या होटल के नजदीक सैलून होते हैं ,ऐसे स्थानों पर शुद्धता ,सफाई कैसे हो सकती हैं ! बहुत कम चाट वाले अपने हाथों में दस्ताने पहनकर बनाते और परोसते हैं .इसके अलावा भेलपुरी वाले कच्चे प्याज़, आलू ,धनिया ,मिर्ची ,नीबू ,नमक का खुले में उपयोग करते हैं जहाँ मख्खिया भिनभिनाती हैं और वे गंदे हाथों से बनाते हैं .जिससे बीमार होने  की संभावना बनी रहती हैं .
                         इसी प्रकार फलों के रस की दूकान और ठेलों में भी बहुत बीमारी होने का खतरा होता हैं .जहाँ तक हो अपने विश्वनीय फल विक्रेता से ही फल खरीदना  उचित होता हैं कारण फलों को रसायनों से भी पकाया जाता हैं ,रासायनिक फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं जबकि हम स्वास्थ्यवर्धन के लिए खाते हैं ..खासतौर पर यह सुनिश्चित नहीं रहता की उनके द्वारा जो बर्तन उपयोग किये जाते हैं वे कितने साफ़ सुथरे होते हैं .कभी कभी यह भी देखा जाता हैं की होटल वाले अपनी कढ़ाई आदि बाहर रख देते हैं जिसे कुत्ते ,अन्य जानवर चाटकर साफ़ करते हैं .रस में जो बर्फ डाला जाता हैं वह बहुत गंदे पानी से बनता हैं और विशेषकर मेडिकल कॉलेजों या हॉस्पिटल जहाँ पर शवगृह होते हैं उनके पास के रस विक्रेता शवगृह का बर्फ उपयोग करते हैं ! गर्मियों में लम्बी कतारों में रस की दुकानों में  शुद्ध रस कीआवाज़ लगाते हैं उनके यहाँ अधिकांश कटे ,खुले फलो का उपयोग होता हैं और तपती गर्मी में वे फल ताज़े हो नहीं सकते .जिनमे मख्खियां ,चीटियां ,भुनगे भिनभिनाते रहते हैं .इसी कारण घातक बिमारियों के साथ पीलिया होने की संभावना होती हैं .यह सामान्य मान्यता हैं की फलों को ढंककर ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए .न होने पर दूषित और विषैले होने लगते हैं .इसके न होने पर संक्रमण होने का अवसर अधिकतर होता हैं .
                          इनसे बचने के लिए कुछ उपाय की आवश्यकता होती हैं .जहाँ तक हो बाहर की चाट न खाये ,यदि खाये तो उचित स्थान से खाये ,खाने के पहले उस चाट ठेले के उपयोग होने वाले बर्तन और परोसने वाले बर्तनों की सफाई ठीक हैं या नहीं .आसपास कोई गन्दगी तो नहीं हैं .बेचने वाला दस्ताने का उपयोग या  सफाई का ध्यान रखता हैं या नहीं .जहाँ तक बिना बर्फ का फलो का रस का उपयोग करे व उस दुकान के जग ,गिलास साफ़ हैं या नहीं .कटे सड़े फलों का उपयोग तो नहीं हो रहा हैं .होटल या फूटपाथकी चाट की सफाई की बात करे तो वह होना संभव नहीं हैं .यह मान्यता मिलने लगी की होटल या चाट दुकान में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता हैं पर व्यवहारिक धरातल में उतनी नहीं हैं .इसके लिए जरुरी हैं की स्वच्छत्ता की जरुरत बहुत होती हैं .आजकल सामान्य बीमारी होने पर लाखो रुपये खर्च होना मामूली बात हैं .साथ ही उसने द्वारा उपयोग करने वाला कपड़ा का बहुत महत्व होता हैं ,कारण उससे वे सब काम करते हैं और उस गंदे कपडे के द्वारा बीमारियां आसानी से फैलने लगती हैं .इसके लिए उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला कपडा गरमपानी में डाल कर सर्फ़ आदि से धो कर उपयोग करना चाहिए .तथा होटल वालों को थोड़े लोभ के कारण घटिया सामग्री उपयोग नहीं करना चाहिए .और उनको इस भांति सामग्री निर्मित की जानी चाहिए जिसे वे स्वयं उपयोग कर सके ,नहीं तो पता चला वह दूसरी दुकान पर चाट खाने जाता हैं .
                 होटल का खाना आमतौर पर बंद करना संभव न हो तो कम से ऐसे स्थान का चयन करे जहाँ साफ़ सफाई ,उच्चतम क्वालिटी का सामान उपयोग होता हों अन्यथा खाने के बाद रोगों को आमंत्रण देने की अपेक्षा न खाये या घर में बनाये.आजकल संदिग्ता/शक /संदेह  करना जरुरी हैं .चाट खाना मना नहीं हैं वशर्ते वे सफाई से बने जिससे हमारा स्वाद भी बना रहे और बिना आमंत्रण के कोई रोग न फैले .
            डॉक्टर अरविन्द जैन संस्थापक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753