Wednesday 20 September 2017

युवाओं में बढ़ता मानसिक तनाव

मानव जीवन की भूमिका बचपन है तो वृद्धावस्था उपसंहार है। युवावस्था जीवन की सर्वाधिक मादक व ऊर्जावान अवस्था होती है। इस अवस्था में किसी किशोर या किशोरी को उचित अनुचित का भलीभांति ज्ञान नहीं हो पाता है और शनै: शनै: यह मानसिक तनाव का कारण बनता है। मानसिक तनाव का अर्थ है मन संबंधी द्वंद्व की स्थिति। आज का किशोर, युवावस्था में कदम रखते ही मानसिक तनाव से घिर जाता है। आंखों में सुनहरे सपने होते हैं, लेकिन जमाने की ठोकर उन सपनों को साकार होने से पूर्व ही तोड़ देती है। युवा बनना कुछ चाहते हैं पर कुछ पर विवश हो जाते हैं। यहीं से मानसिक तनाव की शुरुआत होती है।
युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करके डॉक्टर, इंजीनियर बनकर धनोपार्जन कर सुख-सुविधा युक्त जीवन निर्वाह करना चाहते हैं, परंतु जब उनका उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता तो उनका मन असंतुष्ट हो उठता है और मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है। शिक्षा से प्राप्त उपलब्धियां उन्हें निर्थक प्रतीत होती हैं।
वर्तमान युग में लड़का हो या लड़की, सभी स्वावलंबी होना चाहते हैं, मगर बेरोजगारी की समस्या हर वर्ग के लिए अभिशाप सा बन चुकी है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह स्थिति अत्यंत कष्टदायी होती है। जब इस प्रकार की स्थिति हो जाती है तो जीवन में आए तनाव से मुक्ति पाने के लिए वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को बाध्य हो जाते हैं। महिलाओं की स्थिति तो पुरुषों की तुलना में ज्यादा ही खतरनाक है।
वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकरीबन 57 फीसद महिलाएं मानसिक विकारों की शिकार बनीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े पर गौर करें तो हम पाते हैं कि हर पांच में एक महिला और हर 12 में एक पुरुष मानसिक व्याधि का शिकार है। देश में लगभग 50 प्रतिशत लोग किसी न किसी गंभीर मानसिक विकार से जूझ रहे हैं। सामान्य मानसिक विकार के मामले में तो आंकड़ा और भी भयावह है। इनमें महिलाओं के आंकड़े सबसे अधिक हैं।
हमारा पारिवारिक और सामाजिक ढांचा ही ऐसा है कि मानसिक अवसाद या तनाव को बीमारी नहीं माना जाता, जबकि अवसाद जैसी समस्या को स्वीकारना और उसका हल खोजना छुपाने वाली बात नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो भारत अवसाद के मरीजों के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में से शुमार है। यहां तकरीबन 36 फीसद लोग गंभीर अवसाद से ग्रस्त हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और असफलता जैसी समस्याओं से जूझने वाले युवा अवसाद और तनाव झेलते हैं और इसके चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे में कुछ समय पहले आये एक सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं।
इस शोध के मुताबिक, उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। आत्महत्या से होने वाली मौतों में 40 फीसद अकेले चार बड़े दक्षिणी राज्यों में होती है। यह बात किसी से छिपी ही नहीं है कि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण में उत्तर से कहीं ज्यादा है। वहां रोजगार के भी बेहतर विकल्प रहे हैं, बावजूद इसके यहां तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या जैसे समाचार सुर्खियां बनते हैं। इनमें बड़ा प्रतिशत ऐसे युवाओं का है जो सफल हैं, शिक्षित हैं और धन दौलत तो इस पीढ़ी ने उम्र से पहले ही बटोर ली है।
मौजूदा दौर में समाज में आगे बढ़ने और सफल होने के जो मापदंड हैं, वे सिर्फ आर्थिक सफलता को ही सफलता मानते हैं। यह बात फिल्म से लेकर कारपोरेट वल्र्ड और सामान्य जन तक बर बराबर लागू होती है। पढ़ाई मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पाने का जरिया भर बन कर रह गई। इस दौड़ में शामिल युवा परिवार व समाज से दूर होते जा रहे हैं। उनके जीवन में न रचनात्मकता बची है और न आपसी लगाव का कोई स्थान रहा है, परिणाम सामने है।
आज जिस आयु वर्ग के युवा तनाव व अवसाद झेल रहे हैं, वे परिवार और समाज के सपोर्ट सिस्टम से दूर ही रहे हैं। इस पीढ़ी का लंबा समय घर से दूर पढ़ाई में बीतता है और नौकरी के लिए भी उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ता है। युवा घर से दूर रहकर करियर के शिखर पर तो पहुंच जाते हैं, पर मन और जीवन दोनों सूनापन लिए होता है।
उम्र के इस पड़ाव पर उनके पास भौतिक स्तर पर सब कुछ पा लेने का सुख तो है पर कुछ छूट जाने की टीस भी है। कभी-कभी यही अवसाद और अकेलापन असहनीय हो जाता है तो वे जाने-अनजाने जीवन के अंत की राह चुन लेते हैं या बीमारी में इतना घिर जाते हैं कि सुध-बुध खो जाती है। अवसाद के बढ़ते आंकड़े सोचने को विवश करते हैं कि क्या यह पीढ़ी इतना आगे बढ़ गयी है कि जीवन पीछे छूट गया है?
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सबसे बड़ी वजह है अवसाद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2020 तक मौत का सबसे बड़ा कारण अपंगता व अवसाद होगा। जिस युवा पीढ़ी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की आशाएं संजोए है, उसका यूं उलझना समाज व राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।
इन मानसिक तनाव से मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपाय उसका अपना विवेक है। संस्कारवान शिक्षा दीक्षा तथा नैतिकता के माध्यम से उसका रास्ता प्रशस्त होता है। इसके लिए दृढ़संकल्प, अदम्य साहस, अथक परिश्रम, धैर्य, यथार्थ को ज्ञान, सहनशीलता और सबसे अधिक स्वावलंबन, आत्म निर्णय एवं आत्मविश्वास की भी आवश्यकता होती है। यह जीवन एक साधना है। इसे आप एक नियमित दिनचर्या बनाकर, एक उद्देश्य को सामने रख कर जिएं। अपने अंदर अच्छे गुण पैदा करें। पुण्य कार्य करें।
धर्म के रास्ते पर चलते हुए अपने दुख के दिनों को धीरज के रास्ते बीतते हुए देखें। जीवन अवधि, सुख-दुख, धन, विद्या मनुष्य के जन्म से पहले ही निश्चित होता है। इसलिए न तो इनके बारे में चिंता करनी चाहिए और न भटकना चाहिए। फिर भी सब कुछ भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए।
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ को ध्यान में रखते हुए सदा कर्म करते रहना चाहिए। परेशानियों को हमेशा सबक की तरह लें, प्रकृति आपको सिखाना चाहती है। परीक्षा लेती है। कितने खरे उतरते हो। इस रोल के लिए आपको चुना गया है। आप चाहें तो टूटकर बिखर जाएं, आप चाहें तो निखर जाएं। अपनी ऊर्जा को सही दिशा दें। जब आप इस अहसास से भरे होंगे कि आपके आस-पास इतने सारे लोग, सब उस सर्व-शक्तिमान के अंश हैं, सिर्फ शरीर रूपी आवरण की वजह से भटके हुए हैं। तब आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर पायेंगे।
मन की नकेल अपने हाथ रखिए, चिंता और डर को हावी न होने दें। भाव और बुद्धि का सामंजस्य बिठाते हुए चलें। भाव के बिना सब नीरस है, बुद्धि के बिना सब आफत है। जो छूट गया है, जिसका आप दुख मना रहे हैं, चाहे वह महत्वाकांक्षाएं थीं या इच्छाएं, सुख-सुविधाएं या बड़े प्रिय अपने या मान-सम्मान या फिर सपने; वह तो महज बैसाखियां थीं जो आपने अपने जीने के लिए सहारे या कहिये बहाने की तरह खोज लिए थे।
आप अपने सहारे या अपने नूर के साथ चले ही कहां? आपने अपनी दुनिया भी इतनी सीमित कर ली थी, जरा अपनी दुनिया का दायरा बड़ा कीजिए, दूसरों का दुख नजर आएगा तो अपना दुख छोटा नजर आएगा। सकारात्मक चिंतन ही सही दिशा दे सकता है। जिंदगी एक तपस्या है, जीवन को साधकर एक साधक की तरह जिएं। ।

Tuesday 19 September 2017

कलौंजी – मौत को छोड़कर बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज कर सकती है

कलयुग में धरती पर संजीवनी है कलौंजी, अनगिनत रोगों को चुटकियों में ठीक करता है
कलौंजी का इतिहास बहुत पुराना है। सदियों से कलौंजी का प्रयोग एशिया, उत्तरी अफ्रीका और अरब देशों में मसाले व दवा के रूप में होता आया है। आयुर्वेद और पुराने इसाई ग्रंथों में इसका वर्णन है। ईस्टन के बाइबल शब्दकोश में हेब्र्यू शब्द का मतलब कलौंजी लिखा गया है। पहली शताब्दी में दीस्कोरेडीज नामक यूनानी चिकित्सक कलौंजी से जुकाम, सरदर्द और पेट के कीड़ों का उपचार करते थे। उन्होंने इसे दुग्ध वर्धक और मूत्र वर्धक के रूप में भी प्रयोग किया। रोम में इसे 'पेनासिया’ यानी हर मर्ज की रामबाण दवा माना जाता है।कलौंजी के बीजों का सीधा सेवन किया जा सकता है।एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित करके इसका सेवन कर सकते हैं।पानी में कलौंजी उबालकर छान लें और इसे पीएं।दूध में कलौंजी उबालें। ठंडा होने दें फिर इस मिश्रण को पीएं।कलौंजी को ग्राइंड करें तथा पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन करें।कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़क कर इसका सेवन करें ! 
रोगो मे सहायक -----
टाइप-2 डायबिटीज--प्रतिदिन 2 ग्राम कलौंजी के सेवन के परिणामस्वरूप तेज हो रहा ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है,बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है।

क्रम रोग का नामउपचार
1कैंसरकैंसर के उपचार में कलौंजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक गिलास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लें। लहसुन भी खुब खाएं। 2 किलो गेहूँ और 1 किलो जौ के मिश्रित आटे की रोटी 40 दिन तक खिलाएं। आलू, अरबी और बैंगन से परहेज़ करें।
2खाँसी व दमाछाती और पीठ पर कलौंजी के तेल की मालिश करें, तीन बड़ी चम्मच तेल रोज पीयें और पानी में तेल डाल कर उसकी भाप लें।
3अवसाद और सुस्तीएक गिलास संतरे के रस में एक बड़ी चम्मच तेल डाल कर 10 दिन तक सेवन करें। आप को बहुत फर्क महसूस होगा।
4स्मरणशक्ति और मानसिक चेतनाएक छोटी चम्मच तेल 100 ग्राम उबले हुए पुदीने के साथ सेवन करें।
5मधुमेहएक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।
6गुर्दे की पथरी और मूत्राशय की पथरीपाव भर कलौंजी को महीन पीस कर पाव भर शहद में अच्छी तरह मिला कर रख दें। इस मिश्रण की दो बड़ी चम्मच को एक कप गर्म पानी में एक छोटी चम्मच तेल के साथ अच्छी तरह मिला कर रोज नाश्ते के पहले पियें।
7उल्टी और उबकाईएक छोटी चम्मच कार्नेशन और एक बड़ी चम्मच तेल को उबले पुदीने के साथ दिन में तीन बार लें।
8हृदय रोग, रक्त चाप और हृदय की धमनियों का अवरोधजब भी कोई गर्म पेय लें, उसमें एक छोटी चम्मच तेल मिला कर लें, रोज सुबह लहसुन की दो कलियां नाश्ते के पहले लें और तीन दिन में एक बार पूरे शरीर पर तेल की मालिश करके आधा घंटा धूप का सेवन करें। यह उपचार एक महीने तक लें।
9सफेद दाग और कुष्ठ रोग15 दिन तक रोज पहले सेब का सिरका मलें, फिर कलौंजी का तेल मलें।
10कमर दर्द और गठियाहल्का गर्म करके जहां दर्द हो वहां मालिश करें और एक बड़ी चम्मच तेल दिन में तीन बार लें। 15 दिन में बहुत आराम मिलेगा।
11सिर दर्दमाथे और सिर के दोनों तरफ कनपटी के आस-पास कलौंजी का तेल लगायें और नाश्ते के पहले एक चम्मच तेल तीन बार लें कुछ सप्ताह बाद सर दर्द पूर्णतः खत्म हो जायेगा।
12अम्लता और आमाशय शोथएक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल एक प्याला दूध में मिलाकर रोज पांच दिन तक सेवन करने से आमाशय की सब तकलीफें दूर हो जाती है।
13बाल झड़नाबालों में नीबू का रस अच्छी तरह लगाये, 15 मिनट बाद बालों को शैंपू कर लें व अच्छी तरह धोकर सुखा लें, सूखे बालों में कलौंजी का तेल लगायें एक सप्ताह के उपचार के बाद बालों का झड़ना बन्द हो जायेगा।
14नेत्र रोग और कमजोर नजररोज सोने के पहले पलकों ओर आँखो के आस-पास कलौंजी का तेल लगायें और एक बड़ी चम्मच तेल को एक प्याला गाजर के रस के साथ एक महीने तक लें।
15दस्त या पेचिशएक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक चम्मच दही के साथ दिन में तीन बार लें दस्त ठीक हो जायेगा।
16रूसी10 ग्राम कलौंजी का तेल, 30 ग्राम जैतून का तेल और 30 ग्राम पिसी मेहंदी को मिला कर गर्म करें। ठंडा होने पर बालों में लगाएं और एक घंटे बाद बालों को धो कर शैंपू कर लें।
17मानसिक तनावएक चाय की प्याली में एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर लेने से मन शांत हो जाता है और तनाव के सारे लक्षण ठीक हो जाते हैं।
18स्त्री गुप्त रोगस्त्रियों के रोगों जैसे श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, प्रसवोपरांत दुर्बलता व रक्त स्त्राव आदि के लिए कलौंजी गुणकारी है। थोड़े से पुदीने की पत्तियों को दो गिलास पानी में डाल कर उबालें, आधा चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर दिन में दो बार पियें। बैंगन, आचार, अंडा और मछली से परहेज रखें।
19पुरूष गुप्त रोगस्वप्नदोष, स्तंभन दोष, पुरुषहीनता आदि रोगों में एक प्याला सेब के रस में आधी छोटी चम्मच तेल मिला कर दिन में दो बार 21 दिन तक पियें। थोड़ा सा तेल गुप्तांग पर रोज मलें। तेज मसालेदार चीजों से परहेज करें।

गेहूँ के ज्वारे उगाने की की विधि

इस लिंक को क्लिक करे गेहु के ज्वारे का फायदा ... 


उगाने की की विधि--घर पर गेहूँ के ज्वारे बनाना के लिए इन चीजों की आवश्यकता होगी।

आवश्यक सामान------

1-अच्छी किस्म के जैविक गेहूँ के बीज।

2-अच्छी उपजाऊ मिट्टी और उम्दा जैविक या गोबर की खाद।

3-मिट्टी के 10-12” व्यास के 3-4” गहरे सात गोलाकार गमले जिसमें भी नीचे छेद हों। आप अच्छे प्लास्टिक की 20”x10”x2” नाप की गार्डनिंग ट्रे, जिसमें नीचे कुछ छेद हो, भी ले सकते है। गेहूँ भिगोने के लिए कोई पात्र या जग।

4-मिक्सी या ज्यूसर।5-पानी देने के लिए स्प्रे-बोटल या पौधों को पानी पिलाने वाला झारा व कैंची।

विधि----

1- हमेशा जैविक बीज ही काम में लें, ताकि आपको हमेशा मधुर व उत्कृष्ट रस प्राप्त हो जो विटामिन और खनिज से भरपूर हो। रात को सोते समय लगभग 100 ग्राम गेहूँ एक जग में भिगो कर रख दें।

2- सभी गमलों के छेद को एक पतले पत्थर के टुकड़े से ढक दें। अब मिट्टी और खाद को अच्छी तरह मिलाएं। गमलों में मिटटी की डेढ़ दो इंच मोटी परत बिछा दें और पानी छिड़क दें। ध्यान रहे मिट्टी में रासायनिक खाद या कीटनाषक के अवशेष न हों और हमेशा जैविक खाद का ही उपयोग करें। पहले गमले पर रविवार, दूसरे गमले पर सोमवार, इस प्रकार सातों गमलो पर सातों दिनों के नाम लिख दें।

3- अगले दिन गेहुंओं को धोकर निथार लें। मानलो आज रविवार है तो उस गमले में, जिस पर आपने रविवार लिखा था, गेहूँ एक परत के रूप में बिछा दें। गेहुंओं के ऊपर थोड़ी मिट्टी डाल दें और पानी से सींच दें। गमले को किसी छायादार स्थान जैसे बरामदे या खिड़की के पास रख दें, जहां पर्याप्त हवा और प्रकाश आता हो पर धूप की सीधी किरणे गमलों पर नहीं पड़ती हो। अगले दिन सोमवार वाले गमले में गेहूँ बो दीजिये और इस तरह रोज एक गमले में गेहूँ बोते रहें।

4- गमलों में रोजाना कम से कम दो बार पानी दें ताकि मिट्टी नम और हल्की गीली बनी रहे। शुरू के दो-तीन दिन गमलों को गीले अखबार से भी ढक सकते हैं। जब गैहूँ के ज्वारे एक इंच से बड़े हो जाये तो एक बार ही पानी देना प्रयाप्त रहता है। पानी देने के लिए स्प्रे बोटल का प्रयोग करे। गर्मी के मौसम में ज्यादा पानी की आवश्यकता रहती है। पर हमेशा ध्यान रखे कि मिट्टी नम और गीली बनी रहे और पानी की मात्रा ज्यादा भी न हो।

5- सात दिन बाद 5-6 पत्तियों वाला 6-8 इन्च लम्बा ज्वारा निकल आयेगा। इस ज्वारे को जड़ सहित उखाड़ ले और पानी से अच्छी तरह धो लीजिए। इस तरह आप रोज एक गमले से ज्वारे तोड़ते जाइये और रोज एक गमले में ज्वारे बोते भी जाइये ताकि आपको निरन्तर ज्वारे मिलते रहे।

6- अब धुले हुए ज्वारों की जड़ काट कर अलग कर दें तथा मिक्सी के छोटे जार में थोड़ा पानी डालकर पीस लें और चलनी से गिलास में छानकर प्रयोग करे। ज्वारों के बचे हुए गुदे को आप त्वचा पर निखार लाने के लिए मल सकते हैं। आप हाथ से घुमाने वाले ज्यूसर से भी ज्यूस निकाल सकते हैं।

सेवन का तरीका----ज्वारे का रस सामान्यतः 60-120 एमएल प्रति दिन या प्रति दूसरे दिन खाली पेट सेवन करना चाहिये। यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो 30-60 एमएल रस दिन मे तीन चार बार तक ले सकते हैं। इसे आप सप्ताह में 5 दिन सेवन करें। कुछ लोगों को शुरू में रस पीने से उबकाई सी आती है, तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें। ज्वारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेब फल, अन्नानास आदि के रस को मिलाया जा सकता है। हां इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नीबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं क्योंकि खटाई ज्वारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है। इसमें नमक, चीनी या कोई अन्य मसाला भी नहीं मिलाना चाहिये। ज्वारे के रस की 120 एम एल मात्रा बड़ी उपयुक्त मात्रा है और एक सप्ताह में इसके परिणाम दिखने लगते हैं। डॉ॰ एन विग्मोर ज्वारे के रस के साथ अपक्व आहार लेने की सलाह भी देती थी।गेहूँ के ज्वारे चबाने से गले की खारिश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है। इसके रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है। स्त्रियों को ज्वारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गंध और खुजली में भी आराम मिलता है। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता है और त्वचा में चमक आती है।


गेहूँ के ज्वारे... शरीर के लिए अमृत केन्सर जेसी असाध्य बीमारी से भी मुक्त हो सकते है

प्राचीन काल से ही हिन्दुस्तान के चिकित्सक गेहूँ के ज्वारों को विभिन्न रोगों जैसे अस्थि-संध शोथ, कैंसर, त्वचा रोग, मोटापा, डायबिटीज आदि के उपचार में प्रयोग कर रहे हैं। हमारे कई त्योहारों पर गेहूँ के ज्वारों को उगाने, पूजा करने के रिवाज सदियों से चले आ रहे हैं। जब गेहूं के बीज को अच्छी उपजाऊ जमीन में बोया जाता है तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती है। जब यह अंकुरण पांच-छह पत्तों का हो जाता है तो अंकुरित बीज का यह भाग गेहूं का ज्वारा कहलाता है। औषधीय विज्ञान में गेहूं का यह ज्वारा काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। गेहूं के ज्वारे का रस कैंसर जैसे कई रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।
प्रकृति ने हमें स्वस्थ, ऊर्जावान, निरोगी और आयुष्मान रहने के लिए हमें अनेक प्रकार के पौष्टिक फल, फूल, मेवे, तरकारियां, जड़ी-बूटियां, मसाले, शहद और अन्य खाद्यान्न दिये हैं। ऐसा ही एक संजीवनी का बूटा है गेहूँ का ज्वारा। इसका वानस्पतिक नाम “ट्रिटिकम वेस्टिकम” है। डॉ॰ एन विग्मोर ज्वारे के रस को “हरित रक्त” कहती है। इसे गेहूँ का ज्वारा या घास कहना ठीक नहीं होगा। यह वास्तव में अंकुरित गेहूँ है।
गेहूँ का ज्वारा एक सजीव, सुपाच्य, पौष्टिक और संपूर्ण आहार है। इसमें भरपूर क्लोरोफिल, किण्वक (एंजाइम्स), अमाइनो एसिड्स, शर्करा, वसा, विटामिन और खनिज होते हैं। क्लोरोफिल सूर्यप्रकाश का पहला उत्पाद है अतः इसमें सबसे ज्यादा सूर्य की ऊर्जा  और भरपूर ऑक्सीजन भी होती है ! 
पोषक तत्व -- गेहूँ के ज्वारे क्लोरोफिल का सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं। इसमें सभी विटामिन्स प्रचुर मात्रा में होते हैं जैसे विटामिन ए, बी1, 2, 3, 5, 6, 8, 12 और 17 (लेट्रियल); सी, ई तथा के। इसमें केल्शियम, मेग्नीशियम, आयोडीन, सेलेनियम, लौह, जिंक और अन्य कई खनिज होते हैं। लेट्रियल या विटामिन बी-17 बलवान कैंसररोधी है और मेक्सिको के ओएसिस ऑफ होप चिकित्सालय में पिछले पचास वर्ष से लेट्रियल के इंजेक्शन, गोलियों और आहार चिकित्सा से कैंसर के रोगियों का उपचार होता आ रहा है।
पश्चिमी देशों में गेहूँ के ज्वारों से उपचार की पद्धति डॉ॰ एन. विग्मोर ने प्रारम्भ की थी। बचपन में उनकी दादी प्रथम विश्व युद्ध में घायल हुए जवानों का उपचार जड़ी-बूटियों, पैड़-पौधों और विभिन्न प्रकार की घासों से किया करती थी। तभी से उन्होंने जड़ी-बूटियों और विभिन्न घास के रस द्वारा बीमारियों के उपचार और अनुसंधान करना अपना शौक बना लिया। 50 वर्ष की उम्र में डॉ॰ एन. विग्मोर को आंत में कैंसर हो गया था। जिसके लिए उन्होंने गेहूँ के ज्वारों का रस और अपक्व आहार लिया और प्रसन्नता की बात थी कि एक वर्ष में वे कैंसर मुक्त हो गई। उन्होंने बोस्टन में एन विगमोर इन्स्टिट्यूट खोला जो आज भी काम कर रहा है। तब से लेकर अपनी मृत्यु तक वह गेहूँ के ज्वारे और अपक्व आहार द्वारा रोगियों का उपचार करती रही। उन्होंने इस विषय पर 35 पुस्तकें भी लिखी हैं ! 

गेहूँ के ज्वारे का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है क्लोरोफिल। यह क्लोरोप्लास्ट नामक विशेष प्रकार के कोषों में होता है। क्लोरोप्लास्ट सूर्यकिरणों की सहायता से पोषक तत्वों का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिक डॉ॰ बर्शर क्लोरोफिल को “संकेन्द्रित सूर्यशक्ति” कहते हैं। वैसे तो हरे रंग की सभी वनस्पतियों में क्लोरोफिल होता है, किंतु गेहूँ के ज्वारे का क्लोरोफिल श्रेष्ट है, क्योंकि क्लोरोफिल के अलावा इनमें 100 अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं।  सभी जानते हैं कि मानव रक्त में हीमोग्लोबिन होता है। इस हीमोग्लोबिन में एक लाल रंग का द्रव्य होता है जिसे हीम कहते हैं। हीम और क्लोरोफिल की रासायनिक संरचना में बहुत समानता होती है। दोनों में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के परमाणुओं की संख्या तथा उनका विन्यास लगभग एक जैसा होता है। हीम और क्लोरोफिल की संरचना में केवल एक ही अंतर है, क्लोरोफिल के केन्द्र स्थान में मेग्नीशियम होता है, जबकि हीमोग्लोबिन के केन्द्र स्थान में लौहा होता है।
हमारा रक्त हल्का क्षारीय है और उसका हाइड्रोजन अणु गुणांक pH 7.4 है। ज्वारे का रस भी हल्का क्षारीय है और उसका pH भी 7.4 है। इसलिए ज्वारे का रस शीघ्रता से रक्त में अवशोषित हो जाता है और शरीर के उपयोग में आने लगता है। गेहूँ के ज्वारे से मानव को संपूर्ण पोषण मिल जाता है। सावधानी पूर्वक चुनी हुई 23 किलो तरकारियों जितना पोषण 1 किलो गेहूँ के ज्वारे के रस से प्राप्त हो जाता है। सिर्फ ज्वारे का रस पीकर मानव पूरा जीवन बिता सकता है। 100 ग्राम ताजा रस में 90-100 मि.ग्राम क्लोरोफिल प्राप्त हो जाता है।
क्लोरोफिल से हमें मेग्नीशियम प्राप्त होता है। हमारी प्रत्येक कोशिका में मेग्नीशियम सूक्ष्म मात्रा में होता है। परंतु यह शरीर के लिए है बहुत महत्वपूर्ण। संपूर्ण शरीर में लगभग 50 ग्राम मेग्नीशियम होता है। मेग्नीशियम हमारी अस्थियों के निर्माण के लिए आवश्यक खनिज है। यह नाड़ियों और मांसपेशियों को तनाव रहित अवस्था में रखता है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, नाड़िओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता के लिये मैग्नेशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है। मैग्नेशियम शरीर के भीतर लगभग तीन सौ ऍन्जाइम्स की सक्रियता के लिए आवश्यक है। मैग्नेशियम के निम्न स्तरों और उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह में स्पष्ट अंतर्संबंध स्थापित हो चुका है। व्यायाम एवं शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम सम्पूरकों की आवश्यकता है। मैग्नेशियम की कमी से महिलाओं में कई समस्याएं दिखाई देती हैं, जैसे पाँवों की मांसपेशियाँ कमजोर होना (जिससे रेस्टलेस लेग सिंड्रोम होता है), पाँवों में बिवाइयां फटना, पेट की गड़बड़ी, एकाग्रता में कमी, रजोनिवृत्ति संबंधी समस्याओं का बढ़ना, मासिक-धर्म पूर्व के तनाव में वृद्धि आदि।
क्लोरोफिल से लाभ----- 
क्लोरोफिल हमें तीन प्रकार से लाभ देता है।
  1. शोधन – घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक है। यह फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को विसर्जन करता है।। यह कई रोग पैदा करने वाले जीवाणु को नष्ट करता है और उनके विकास को बाधित करता है। यकृत का शोधन करता है।
  2. एंटी-इन्फ्लेमेट्री – यह शरीर में इन्फ्लेमेशन को कम करता हैं। अतः आर्थ्राइटिस, आमाशय शोथ, आंत्र शोथ, गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभदायक हैं।
  3. पोषण – यह रक्त बनाता है, आंतों के लाभप्रद कीटाणुओं को भी पोषण देते हैं।   
  4. कैंसर गेहूँ के ज्वारे कैंसर पर कैसे असर दिखाते है???
    ऑक्सीजन को अनुसंधानकर्ता कैंसर कोशिकाओं को नेस्तनाबूत करने वाली 7.62x39 मि.मी. केलीबर की वो गोली मानते हैं, जो गेहूँ के ज्वारे रूपी ए.के. 47 बंदूक से निकल कर कैंसर कोशिकाओं को चुन-चुन कर मारती है। सर्व प्रथम तो इसमें भरपूर क्लोरोफिल होता है, जो शरीर को ऑक्सीजन से सराबोर कर देता है। क्लोरोफिल शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, मतलब कैंसर कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में कैंसर का दम घुटने कगता है।
    गेहूँ का ज्वारों में विटामिन बी-17 या लेट्रियल और सेलेनियम दोनों होते हैं। ये दोनों ही शक्तिशाली कैंसररोधी है। क्लोरोफिल और सेलेनियम शरीर की रक्षा प्रणाली को शक्तिशाली बनाते हैं। गेहूँ का ज्वारा भी रक्त के समान हल्का क्षारीय द्रव्य है। कैंसर अम्लीय माध्यम में ही फलता फूलता है।
    गेहूँ का ज्वारा में विटा-12 को मिला कर 13 विटामिन, कई खनिज जैसे सेलेनियम और 20 अमाइनो एसिड्स होते है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट किण्वक सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज और अन्य 30 किण्वक भी होते हैं। एस ओ डी सबसे खतरनाक फ्री-रेडिकल रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पिसीज को हाइड्रोजन परऑक्साइड (जिसमें कैंसर कोशिका का सफाया करने के लिए एक अतिरिक्त ऑक्सीजन का अणु होता है) और ऑक्सीजन के अणु में बदल देता है।
    सन् 1938 में महान अनुसंधानकर्ता डॉ॰ पॉल गेरहार्ड सीजर, एम.डी. ने बताया था कि कैंसर का वास्तविक कारण श्वसन क्रिया में सहायक एंजाइम साइटोक्रोम ऑक्सीडेज का नष्ट होना है। सरल शब्दों में जब कोशिका में ऑक्सीजन उपलब्ध न हो या सामान्य श्वसन क्रिया बाधित हो जाये तभी कैंसर जन्म लेता है। ज्वारों में एक हार्मोन एब्सीसिक एसिड (ए बी ए) होता है जो हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। डॉ॰ लिविंग्स्टन व्हीलर के अनुसार एब्सीसिक एसिड कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन हार्मोन को निष्क्रिय करता है और वे ए बी ए को कैंसर उपचार का महत्वपूर्ण पूरक तत्व मानती थी। डॉ॰ लिविंग्स्टन ने पता लगाया था कि कैंसर कोशिका कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन से मिलता जुलता हार्मोन बनाती हैं। उन्होंने यह भी पता लगाया था कि गेहूँ के ज्वारे को काटने के 4 घंटे बाद उसमें ए बी ए की मात्रा 40 गुना ज्यादा होती है। अतः उनके मतानुसार ज्वारे के रस को थोड़ा सा तुरंत और बचा हुआ 4 घंटे बाद पीना चाहिये।
    2- गेहूँ के ज्वारे में अन्य हरी तरकारियों की तरह IQ ऑक्सीजन होती है। मस्तिष्क और संपूर्ण शरीर ऊर्जावान तथा स्वस्थ रखने के लिए भरपूर ऑक्सीजन आवश्यक है।
    3- डॉ॰ बरनार्ड जेन्सन के अनुसार गेहूँ के ज्वारे का रस कुछ ही मिनटों में पच जाता है और इसके पाचन में बहुत कम ऊर्जा खर्च होती है।
    4- यह कीटाणुरोधी हैं, उन्हें नष्ट करता है और उनके विकास को बाधित करता है।
    5- यह शरीर से हानिकारक पदार्थों (टॉक्सिन्स), भारी धातुओं और शरीर में जमा दवाओं के अवशेष का विसर्जन करता है।
    6- यदि इसका सेवन 7-8 महीने तक किया जाये तो यह मुहाँसों और उनसे बने दाग, धब्बे और झाइयां सब साफ हो जाते हैं।
    7- यह त्वचा के लिए प्राकृतिक साबुन का कार्य करता हैं और शरीर को दुर्गंध रहित रखता है।
    8- यह दांतों को सड़न से बचाते है।
    9- यदि 5 मिनिट तक गेहूँ के ज्वारे का रस मुंह में तो दांत का दर्द ठीक करता है।
    10- इसके गरारे करने से गले की खारिश ठीक हो जाती है।
    11- गेहूँ के ज्वारे का रस नियमित पीने से एग्जीमा और सोरायसिस भी ठीक हो जाते हैं।
    12- ज्वारे का रस पीने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते हैं।
    13- ज्वारे का रस पीने से शरीर स्वस्थ, ऊर्जावान, सहनशील, आध्यात्मिक और प्रसन्नचित्त बना रहता है।
    14- यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
    15- यह समस्त रक्त संबन्धी रोगों के लिए रामबाण औषधि है।
    16- ज्वारे का रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों का शोधन होता है।
    17- यह कब्जी ठीक करता है।
    18- यह उच्च रक्तचाप कम करता है और केशिकाओं (Fine blood vessels or capillaries) का विस्तारण करता है।
    19- यह स्थूलता या मोटापा कम करता है क्यों कि यह भूख कम करता है, बुनियादी चयापचय दर और शरीर में रक्त के संचार को बढ़ाता है।......  गेहु के ज्वारे आप घर पर भी उगाकर नित्य सेवन कर सकते है ॥  गेहु के ज्वारे उगाने की विधी जानने के लिए इस लिंक पर जाए 

Monday 18 September 2017

आँख की पलक पर गुहेरी ( फुंसी )

गुहेरी या होर्डेओलम (stye or hordeolum) या अंजनी एक छोटा, छूने पर दर्द करने वाला उभार है जो पलक पर विकसित होती है और इसके कारण सूजन आ जाती है | गुहेरी पीड़ादायक और कुरूप हो सकती है लेकिन सामान्यतः ये गंभीर नहीं होतीं और घर पर प्रभावशाली रूप से उपचारित की जा सकती हैं | अगर घर पर की जाने वाली विधियों जैसे ऑइंटमेंट या गर्म सेक से कोई लाभ न हो तो चिकित्सीय मदद की आवश्यकता हो सकती है | अगर गुहेरी के कारण आपकी दृष्टी में कोई परिवर्तन होता है या आपको उस समय चेहरे या आँख पर कोई चोट लगी हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ या नजदीकी आपातकाल कक्ष में जाएँ 
अपनी पलक पर एक छूने पर दर्द करने वाले लाल उभार को देखें: गुहेरी मुंहासों के समान ही होती है जो पलक पर होते हैं | गुहेरी अक्सर स्किन की सतह पर रहने वाले बैक्टीरिया (सामान्यतः स्टेफ़ायलोकोकस या “स्टेफ” बैक्टीरिया) के कारण आँख में या आँख के पास संक्रमण उत्पन्न करने से होती है | सामान्यतः आप गुहेरी के रूप को देखकर उसकी पहचान कर सकते हैं-यह पलक पर छूने पर दर्द करने वाले लाल उभार होते हैं जो एक छोटे पस से भरे केंद्र को विकसित कर सकते हैं |गुहेरी पलक के अंदर की ओर बनती है और अंदर या बाहर की ओर बढती है | बाहरी गुहेरी में ज़ीस या मोल ग्लैंड्स शामिल होती हैं | आंतरिक गुहेरी में मिबोमियन ग्लैंड (meibomian gland) शामिल होती है और यह अंदर की ओर बढती है | एक आंतरिक गुहेरी सिर्फ एक संक्रमित चेलेज़ियन (chalazian) या पलकों की गिल्टी या ग्रंथि है 
गुहेरी को पहचानना सीखें: गुहेरी को पहचानने में चेलेजियन के साथ भ्रम हो सकता है जो आँख के पास एक उभार के रूप में दिखती है | गुहेरी और चेलेज़ियन दोनों का इलाज़ एक समान है इसलिए अगर आप इसे अलग से नहीं बता पाते तो कोई चिंता की बात नहीं है |एक गुहेरी या होर्डेओलम बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होती है | ये लाल उभार एक मुहांसे के समान अक्सर पस से भर जाते हैं | गुहेरी के कारण पलक में दर्द और सूजन होती है ”चेलेजियन” एक सिस्ट या तरल पदार्थ से भरी हुई थैली है जो छोटी तेल ग्रंथियों (मेबोमियन ग्लैंड्स) में विकसित होती है | ये अधिकतर पलक के अंदर की साइड पायी जाती हैं परन्तु ये दर्दरहित होती हैं | ”ब्लेफेराइटिस (Blepharitis) या वर्त्मशोध” पलक की सूजन होती है | इसके कई कारण होते हैं जिनमे संक्रमण, एलर्जी और अनुपचारित चेलेज़ियन आते हैं | ब्लेफेराइटिस (blepharitis) आपकी पलकों के किनारों को लाल और सूजनयुक्त बना देती है | आपकी पलकें खुजलीयुक्त, परतदार और कठिनाई से खुलने वाली हो सकती हैं 
सूजन देखें: सामान्यतः गुहेरी होने पर आपकी पलक सूज जाती है | कुछ केसेस में सूजन के कारण पलक पूरी तरह से बंद हो जाती है | यह सूजन लगभग तीन दिन तक बनी रहेगी जिसके बाद यह कभी-कभी अपने आप फूट कर बह जाती है | कभी-कभी, सूजन आँख के चारों ओर चेहरे के हिस्सों में फ़ैल जाती है, ऐसी स्थिति में आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए
अन्य लक्षणों से सावधान रहें: सूजी हुई पलक आँख को उत्तेजित कर सकती है जिसके कारण दर्द हो सकता है और पानी निकल सकता है | आपकी आँख प्रकाश के प्रति भी संवेदनशील हो सकती है | सूजन के कारण पलक झपकने में असुविधा हो सकती है

गुहेरी के लिए घरेलू उपचार--- 
एक गर्म सेक लगायें: घर पर किये जाने वाले गुहेरी के उपचार के लिए आँख पर 10-15 मिनट के लिए दिन में दो से तीन बार गर्म सेक लगाने की सलाह दी जाती है |[८]इससे उस जगह संचरण बढ़ेगा और गुहेरी के फूटकर बह जाने को गति मिलेगी | यह ज़रूरी है कि जैसे ही आप गुहेरी की पहचान करें, जल्दी से जल्दी गर्म सेक लगाना शुरू कर दें | अनुपचारित गुहेरी कई सप्ताह तक बनी रह सकती है लेकिन उपचार से यह सिर्फ कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है |गर्म सेक हमेशा “बंद” पलक पर उपयोग करें | ध्यान रखें कि सेक बहुत गर्म नहीं होना चाहिए अन्यथा इसके कारण आप जल सकते हैं | इसका टेस्ट अपनी स्किन के साफ़ हिस्से जैसे अपनी भुजा पर कुछ कुछ मिनट के लिए करें | अगर ये बहुत गर्म हो तो इसे कुछ मिनटों के लिए ठंडा होने दें और अपने चेहरे पर लगाने के पहले फिर से टेस्ट करें |
  • एक गर्म सेक बनाने के लिए, एक साफ़ टॉवल को गर्म पानी (उबलता हुआ नहीं) में भिगोकर निचोड़ें | लेट जाएँ और टॉवल को अपनी बंद पलक पर 10-15 मिनट के लिए लगायें | ज़रूरत पड़ने पर टॉवल को फिर से गर्म पानी में डुबोकर निचोड़ें |
  • वैकल्पिक रूप से, आप गीली टॉवल को एक गर्म पानी की बोतल के चारों ओर लपेट सकते हैं | लेट जाएँ और अपनी आँखें बंद करके बोतल को अपने चेहरे पर लगायें | इस विधि से टॉवल लम्बे समय तक गर्म बनी रहेगी |
  • आप एक मेडिकल स्टोर से बैकपैन के लिए उपयोग किये जाने वाले माइक्रोवेवल हीटिंग पैक (microwaveable heating pack) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं | इनसे गर्मी (heat) आती रहती है इसलिए छूने पर गर्म लगते हैं लेकिन पकड़ने में सुविधाजनक होते हैं | अगर आप इन्हें अपने हाथों में नहीं पकड़ सकते तो ये आपके चेहरे के लिए हैं बहुत गर्म हैं | ये लगभग 30 मिनट तक गर्म बने रहते हैं |
  • कुछ लोग अपनी पलकों पर गर्म नमीयुक्त टी बैग्स (tea bags) रखते हैं | ये छोटे होते हैं और अच्छी तरह से गर्म बने रहते हैं लेकिन किसी भीगे हुए कपडे की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली नहीं होते हैं
  • सामान्यतः मिलने वाली दवाइयाँ लें: मेडिकल स्टोर पर कई तरह की क्रीम, ऑइंटमेंट (ointment) और यहाँ तक कि मेडिकेटिड पैड्स (medicated pads) भी उपलब्ध होते हैं जो गुहेरी के कारण होने वाले आँख के संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं | ऐसा उपचार ढूंढें जिसकी सामग्री में पोलीमिक्सिन बी सल्फेट (polymyxin b sulfate) हो जो नेत्र संक्रमण को ठीक करने के लिए एक प्रभावशाली एंटीबायोटिक है सुनिश्चित करें कि ये आँखों के लिए सुरक्षित हैं | जब तक कोई इमरजेंसी न हो इस तरह बगैर प्रिशक्रिपशन के दवा (OTC) लेना टालें क्योंकि ज्यादातर ओप्थाल्मोलोजिस्ट्स इनकी सलाह नहीं देते क्योंकि ये सुरक्षित नहीं हैं, अगर इन्हें आँख में डालना ही पड़े तो हमेशा इनके ऑइंटमेंट (ointment) को डालें |ऐसे प्रोडक्ट से सावधान रहें जो दावा करते हैं कि वे तुरंत या रात भर में गुहेरी को हटा देंगे | ये सामान्यतः महंगे होते हैं और उतने जल्दी काम नहीं करते जिसका ये दावा करते हैं | सामान्यतः गुहेरी के ट्रीटमेंट में 2 से 4 दिन का समय लगता है 

Sunday 17 September 2017

सात साल अधिक जी सकते हैं केवल 25 मिनट टहल कर

  • नियमित मॉर्निंग वॉक करके आप खुद को रख सकते हैं फिट।
  • वॉक के लिए ऐसी जगह का चयन करें जहां पर हरियाली हो।
  • वॉक करने से पहले खूब सारा पानी पियें और वॉर्मअप करें।
  • आप दिल के मरीज हैं तो चिकित्‍सक की सलाह जरूर लें।

  • कहते हैं सुबह सवेरे घूमने जाने से सारा दिन अच्‍छा गुजरता है और यह बात है भी पूरी तरह सही। मॉर्निंग वॉक से आप रसार दिन तरोताजा महसूस करते हैं। सुबह जल्दी उठना सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। और सुबह की सैर के फायदों का तो कहना ही क्या। मॉर्निंग वॉक अच्छी सेहत की संजीवनी कहा जाना गलत नहीं होगा। मॉर्निंग वॉक फिट रहने का बहुत सरल और सुविधाजनक तरीका है। मॉर्निंग वॉक को अपनी दिनचर्या में शामिल कर आप सेहतमंद रह सकते हैं।सुबह की स्वच्छ हवा में सैर शरीर को प्रचुर मात्रा में ऑक्सींजन मिलती है। लेकिन, क्या आप सैर करने का सही तरीका जानते हैं। चलिए, हमारे साथ और जानिए मॉर्निंग वॉक के कुछ ऐसे टिप्स जिन्हें अपनाकर आप दोगुना फायदा उठा सकते हैं। हाल ही में जारी हुई एक शोध ने 25 मिनट टहलने के फायदे बताएं हैं। 25 मिनट टहलकर आप अपने उम्र से सात साल अधिक जी सकते हैं। यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी में एक स्टडी जारी हुई है जिसके अनुसार रोज की कसरत से आपकी उम्र बढ़ सकती है। यह स्टडी जर्मनी के सारलैंड यूनिवर्सिटी में 30 से 60 साल के 69 स्वस्थ लोगों पर शोध करके किया गया, जो रोज कसरत नहीं करते थे। शोधकर्ताओं के अनुसार केवल 25 मिनट टहल कर आपकी उम्र सात साल तक बढ़ सकती है। साथ ही शोधकर्ताओं के अनुसार रोजाना थोड़ी सी कसरत कर दिल का दौरा पड़ने की संभावना को काफी कम किया जा सकता है।
  • 90 साल तक बढ़ सकती है उम्र----समय और बुढ़ापा को कोई नहीं रोक सकता। लेकिन कहा जाता है ना मेहनत कर समय को अच्छा किया जा सकता है। उसी तरह मेहनत कर बुढ़ापे को भी कम किया जा सकता है। रोजाना की कसरत से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को कम किया जा सकता है। इस तरह लोग 70 की उम्र में भी जवान दिख सकते हैं और 90 साल तक भी जी सकते हैं।

25 मिनट तक टहलें----इस शोध के अनुसार सभी को रोजाना कम से कम 25 मिनट तक टहलना चाहिए और अच्छा व स्वस्थ खान-पान लेना चाहिए।




मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक अस्वास्थ्यता दुनियाभर में एक बडी समस्या है। मानसिक रोगों से ग्रस्त लोगों को शारीरिक रोगों से ग्रस्त लोगों के तुलना में कम सहानुभूति और देखभाल मिल पाती है। आचरण और व्यवहार में गड़बड़ियों और छोटी मोटी मनोवैज्ञानिक बीमारियों के रोगीयों का अक्सर दूसरे लोग मज़ाक ही उड़ाते हैं। मानसिक बीमारियों के प्रति हमें अपना रवैया बदलना चाहिए। ये बीमारियॉं उतनी ही वास्तविक होती हैं जितनी की शारीरिक बीमारियॉं और बहुत सी ऐसी बीमारियों में इलाज से फायदा हो सकता है। यह आम धारणा है कि मनोचिकित्सा में रोगीयो को पागल खाने में बंद कर देना, बिजली का झटका देना और नींद में रखना ही शामिल हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है।
ग्रामीण समुदाय में जहॉं मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत अधिक अभाव है और लोग जादू टोने आदि का सहारा लेते हैं। मानसिक रो्गीयो को भूतप्रेत की बाधा या देवी प्रकोप माना जाता है अत मंदिर या पीर की मजार पर प्रार्थना या अन्य पीडा दायक तरीको से इलाज किया जाता है ।
astrology-future
ज्योतिष और भविष्य में मानसिक बाधा का 
कोई इलाज नही, खाली समय गमाना है|
पीडित व्यक्ति ठीक इलाज नही मिलने के और अधिक हिसांत्मक या अस्वाभिेक रूप से शांत व्यवहार करता है। सही इलाज से ही उसे ठीक किया जा सकता है।लगभग हर समुदाय के एक प्रतिशत लोग किसी न किसी गंभीर मनोविकार से ग्रस्त होते हैं। इसलिए 500 की आबादी वाले गॉंव में 4 से 5 लोग मनोरोग के शिकार होंगे। इसके अलावा किसी भी समुदाय में करीब 10 प्रतिशत लोग किसी न किसी साधारण मानसिक रोग या असामान्य व्यवहार से व्यक्तित्व में गड़बड़ी के शिकार होते हैं। इनमें से बहुत लोगों को किसी न किसी मनोचिकित्सक की सहायता की ज़रूरत होती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में हम ऐसी समस्याओं को जल्दी ही पहचान सकते हैं और उन्हें मनोचिकित्सक सहायता दिला सकते हैं।
मानसिक अस्वास्थ्य के कारण-- मानसिक अस्वास्थ्य जन्मजात और बहुत से बाहरी कारणों से ग्रासीत होने (एक्याक्यार्ड) पर निर्भर करता है। जन्म के बाद के पहले साल में ही मस्तिष्क के आकार की वृद्धि पूरी हो जाती है। परन्तु मानसिक रूप से परिपक्व होने की प्रक्रिया वयस्क होने के शुरुआती समय तक चलती रहती है। दिमाग और बुद्धि पर जो कारक असर डालते हैं उनके बारे में नीचे दिया गया है।
शारीरिक कारण-- कुपोषण और अन्य शारीरिक कारणों से भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। मस्तिष्क आवरण शोथ (मैनेन्जाइटिस) से लंबे समय से ग्रसीत रोगी के लिए दिमाग की क्रिया पर असर पड़ सकता है। आतशक (सिफलिस ) की तीसरी अवस्था भी एक ऐसा ही और उदाहरण है।
नशीले पदार्थ- शराब पीने, भांग या ब्राउन शुगर आदि के सेवन से भी मानसिक बीमारियॉं हो जाती हैं।
परिवारिक कारण--
Family disciplineसामान्य बौध्दिक व मानसिक परिपक्वता के लिए माता पिता का प्यार और देखभाल बहुत ही ज़रूरी है। । बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, उन्हें मारना पीटना, बहुत अधिक अनुशासन या अनुशासन का पूर्ण अभाव, मॉं बाप में न बनना, घर में हिंसा आदि सब बच्चे के दिमाग पर असर डालते हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक प्यार भरे और स्वस्थ माहौल की बेहद ज़रूरत होती है। अपराध, बुरी आदतें और व्यक्तित्व की समस्याएं अक्सर ही घरेलू समस्याओं के कारण होती हैं।
सामाजिक कारण-- पूर्ण सामाजिक असमानता, मौकों का अभाव, असुरक्षा और यहॉं तक कि बहुत अधिक पैसा होने से भी व्यवहार में परेशानियॉं हो सकती हैं।
अनुवांशिकी-- कुछ एक मानसिक असामान्यता या गड़बड़ियॉं अनुवांशिक होती हैं। खास करके गंभीर बीमारियॉं जैसे कुछ हद तक अनुवंशिक होती है। परन्तु सभी मानसिक बीमारियॉं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे नहीं पहुँचती हैं। इसी तरह से सभी भाई बहनों में एक सी मानसिक गड़बड़ियॉं और असामान्यताएं नहीं होती हैं।

डेंगू बुखार

डेंगू बुखार एडीस नामक मच्छर द्वारा फैलने वाला वायरस के कारण होता है| आम तौर पर यह सर्दी बुखार जैसे प्रकट होता है मगर कभी कभी इससे मौत भी हो सकती है| यह अधिकतर शहरों और शहरों के आस पास होता है| यह बच्चों में अधिक खतरनाक होता है। डेंगू बुखार का कोई विशेष उपचार नहीं है|
यह कैसे फैलता है?

एडीस मच्छर साफ पानी में पनपते है, जैसे पानी टँकी, कूलर फेंके गये रबर टायर इत्यादि| डेंगू से मरीज के खून चूसने पर यह वायरस मच्छर के शरीर में प्रवेश करता है| यहॉं ४-१० दिन रहने के बाद यह मच्छर के लार से अन्य व्यक्ति में प्रवेश करता है| मरीज में लक्षण से शुरुआत के ४-५ दिन बाद तक इनके खून में वायरस मौजूद रहता है जहॉं से वह मच्छर के शरीर में जा सकता है|
लक्षण
मच्छर के काटने से ४-५ दिन बाद बुखार शुरू होता है| शुरुआत में यह अन्य सामान्य बुखार जैसे होता है| बुखार लगातार और अधिक रहता है| साथ में कोई दो और लक्षण मितली और उल्टी, चकता, मांसपेशी और जोडों में दर्द, शरीर में गिल्टियॉं होना या श्वेत रक्त कण कम होना|
गंभीर डेंगू होने के पहले खतरे के निशान होते है- पेट में दर्द, लगातार उल्टियॉं, जिगर फुलना, नाक मुँह या आंत से खून जाना, सुस्ती लगना, खून जॉंच में विशेष बदलाव दिखना| गंभीर डेंगू के स्थिती में तुरंत सही इलाज न करा जाए (खून चढाना, ब्लड प्रेशर बनाए रखना इत्यादि) तब मौत हो सकती है| इसे टूर्नि के टेस्तट से भी पता किया जा सकता है|
यह बताना मुश्किल होता है की किसे साधारण डेंगू होगा और किसे गंभीर डेंगू (जिसे पहले डेंगू हेमोराजिक फीवर और डेंगू शॉक सिण्ड्रोम कहा जाता था) होगा| लेकिन १४ वर्ष से कम उम्र में गंभीर डेंगू होने की संभावना अधिक होता है| डेंगू वाइरस से चार प्रकार होते है| एक प्रकार से संक्रमण होने के बाद कुछ महिनों तक डेंगू से सुरक्षा होती है मगर उसके बाद उसी या अनकय प्रकार के डेंगू वायरस से पुन: संक्रमण होने से गंभीर डेंगू होने का डर रहता है|
निदान
चिकित्सीय रूप से डेंगू और अन्य किसी भी वायरल बुखार में फर्क करना मुश्किल है। इस के लिए कोई निश्चित लक्षण या चिन्ह मौजूद नहीं हैं। मलेरिया और टाइफाइड से भी डेंगू के निदान में मुश्किल होती है। डेंगू माहमारी के समय बुखार के हर मामले को डेंगू ही मान कर चलना चाहिए।
डें.ही.बु के लिए टोरनीकैट टैस्ट
blood pressure
रक्तचाप ८० के उपर चढाने के बाद 
हाथ पर खून के छोटे धब्बे पानेपर 
डेंगू का घातक स्वरूप 
हम पहचान सकते है



यह पता करने के लिए कि डेंगू बुखार कहीं डें.ही.बु में तो नहीं बदल रहा हमारे पास एक आसान टैस्ट उपलब्ध है। रोगी की बांह पर खून का दबाव नापने वाले उपकरण की पट्टी कस कर बांध दें। दवाब को ४० मिली मीटर (शिराओं का दबाव) तक बढ़ाएं। बांह के आगे वाले हिस्से की त्वचा को ध्यान से देखें। अगर त्वचा पर छोटे छोटे लाल दाग दिखाई देते हैं तो इसका अर्थ है कि रोगी में रक्त स्त्राव की प्रवृति है। पट्टा खोल दें। ये टैस्ट बच्चों के मुकाबले बड़ों में ज़्यादा भरोसेमंद होता है।कोई भी दवा वायरस की इस बीमारी को नहीं रोक सकती। अगर रक्त स्त्राव शुरु हो जाए तो सिर्फ रोगी को सहारा देने वाले उपाय किए जा सकते हैं। सिर्फ डेंगू बुखार से पीड़ित व्यक्ति को सिर्फ पैरासिटेमॉल देना काफी है। परन्तु डें.ही.बु या उसका शक भी हो जाने पर रोगी को अस्पताल में भरती किया जाना ज़रूरी है। वहॉं उसे एक अलग वार्ड में रखा जाएगा। रोगी के पलंग पर तुरंत मच्छरदानी लगा दी जानी चाहिए इससे किसी दूसरे व्यक्ति को रोग न लगेगा। रक्त स्त्राव शुरु होते ही खून (खासकर के प्लेटलेट पॅक) देने की ज़रूरत पड़ जाती है। इसलिए पहले से ही खून देने वालों का इंतज़ाम कर लें।
एैस्परीन किसी भी हाल में नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे रक्त स्त्राव बढता है। पैरासिटेमॉल एकमात्र सुरक्षित दवा है। इसलिये डेंगू बुखार में खून की जॉंच में प्लेटलेट काऊंट का बडा महत्त्व है।
बचाव और नियंत्रण
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मच्छर नाशक छिडकाव
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मच्छर नाशक छिडकाव
डेंगू एक गंभीर बीमारी है और बहुत तेजी से फैलती है। इसलिए ज़्यादा ज़रूरी है कि इसकी रोकथाम की जाए। ऐसा उन जगहों को हटा कर किया जा सकता है जहॉं मच्छर प्रजनन करते हैं। ऐसा हर हफ्ते किया जाना चाहिए ताकि मच्छरों के लार्वा से पूरा मच्छर न बन सके। पानी के बर्तनों को खाली करें और नीचे से खुरच दें ताकी उनमें कोई भी अंडे बाकि न रहें।
फैलाव रोकने के लिए डेंगू के सभी रोगियों को अलग रखें। मच्छरों से फैलाव को रोकने के लिए कीटकनाशक मच्छरदानियों का इस्तेमाल ज़रूरी है। इस बीमारी से बचाव के लिए कोई भी ऐसी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। पर एक बार ये बीमारी होने पर करीब ४ महीनों के लिए प्रतिरक्षा हो जाती है। अगर कई बार डेंगू बुखार हो जाए तो उससे जिंदगी भर के लिए प्रतिरक्षा क्षमता उत्पन्न हो जाती है। मच्छरों पर मुहीम चलाकर, उनके प्रजनन के स्थान खतम करें। डेंगू बुखार से बचाव के लिए यही एकमात्र लंबे समय की तरकीब है।

मलेरिया

हर साल मलेरिया से काफी लोग बीमार होते हैं और काफी मौतें भी होती हैं। भारत का एक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम है, जो चार दशकों से चल रहा है। पर यह बीमारी देश में समा सी गई है। मुंबई शहरमें भी मलेरिया से मौते हो रही है। यहॉं बरसात में गढ्ढों में पानी, घरोंके उपरवाले पानी की टंकिया, गृहनिर्माण के कारण जमा हुआ पानी, आदि सब मच्छर पनपनेकी जगहें मौजूद होती है। गॉंवोसे आये मजदूर भी अपने साथ मलेरिया के परजीवी लाते है। इन सबके कारण मुंबई जैसे शहर भी मलेरिया के शिकार बन गये है।
मलेरिया एक छोटे से परजीवी, जिसे प्लासमोडियम कहते हैं, से होता है। यह मनुष्य में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। प्लासमोडिया चार तरह के होते हैं। परन्तु प्लासमोडियम वाईवैक्स और फॉल्सिपेरम सबसे ज़्यादा आम है। फालसीपेरम से होने वाला मलेरिया से मौत भी हो सकती है।
मच्छर से फैलाव ---- 
मलेरिया का परजीवी इंसान के शरीर में मादा ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से पहुँचता है। इसलिए मलेरिया उन क्षेत्रों और उन मौसम में ज़्यादा होता है जहॉं और जब ऐनोफ्लीज़ तरह के मच्छर ज़्यादा होते हैं। इसलिए भारत में जुलाई से नवम्बर के महीनों में मलेरिया ज़्यादा होता है इस मौसम में जगह जगह बरसात का पानी इकट्ठा होता है। यह शहरों के मुकाबले गॉंवों में ज़्यादा होता है।
मध्य भारत में सबसे ज्यादा मलेरिया होता है, अधिकांश जगहों पर मलेरिया बरसात के बाद बढता है| (अक्तुबर माह से)कई जगहों में मलेरिया ठंड के मौसम में होता है| (नवम्बर से फरवरी तक) जब की उडीसा के बहुत इलाकों में साल में दो बार बढता है – बरसातों के पहले जून में, और वर्षा के बाद अक्तुबर में, अत: हमारे देश में अलग अलग समय मलेरिया उभरता है| इसका मतलब यह नहीं है की अन्य समय मलेरिया नहीं फैलता- उडीसा में साल भर मलेरिया फैलता है और मौजूद रहता है| जब लोग गॉंव और छोटे शहर से काम के लिए शहरों में जाते है, उनमें से कई लोगों के शरीर में मलेरिया परजीवी रहने से, यह मच्छरों के माध्यम से शहर के लोगों में फैल सकता है|
मलेरिया का मच्छर
malaria-mosquito
मलेरिया के परजीवी मादा ऍनाफिलीस 
मच्छर के काटने पर वे शरीर में घुस जाते है
ऐनोफलीज़ मच्छर साफ पानी में प्रजनन करते हैं। (जबकि क्यूलैक्स प्रकार के मच्छर खड़े हुए गंदे पानी में प्रजनन करते हैं)। इसलिए ऐनोफलीज़ मच्छर के लिए इकट्ठा हुआ बरसात का पानी, सिंचाई के साधन और रसोई और गुसलखाने से निकले पानी में पनपता है। कुछ मच्छर प्रजाति झरनों और नहरों में भी प्रजनन करते हैं। इसलिए मलेरिया शहरों के मुकाबले गॉंवों में अधिक होता है। एनोफिलीस मच्छर को आसान से पहचान सकते है| उसका पिछला हिस्सा सिर के स्तर से ऊँचा रहता है| उसके लार्वा पानी के स्तह के समानांतर तैरता है|
मच्छर अंधेरे और गीले स्थानों पर छुपे रहते हैं। प्रजनन की जगह से एक किलो मीटर दूर भी मच्छर घूमते हैं। इसलिए चाहे गॉंव में केवल कुछ एक प्रजनन की जगहें हों, पूरा गॉंव मलेरिया से प्रभावित हो सकता है। इसलिए मलेरिया से बचने के लिए समुदाय के स्तर पर काम करने की ज़रूरत होती है। ऐनोफलीज़ मच्छर को पहचानना मुश्किल नहीं होता क्योंकि यह एक खास तरह से बैठता है। इसके लार्वा पानी की सतह के समानान्तर तैरते हैं। दूसरी ओर क्यूलैक्स के लार्वा पानी के अंदर एक खास कोण में रहते हैं। ये मच्छर मुख्यत: रात में ही हमला करते हैं। कुछ तरह के मच्छर जानवरों को भी काटते हैं। असल में केवल मादा मच्छर ही काटती है क्योंकि इसे अंडे देने के लिए खून की ज़रूरत होती है। नर मच्छर तो फूलों से ही अपना खाना लेता है।
मलेरिया का परजीवी
मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र में मनुष्य और मच्छर दोनों की ज़रूरत होती है।
मलेरिया के परजीवी के जीवन चक्र का मनुष्य के अंदर वाला हिस्सा
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खून में लाल रक्त कोशिका होती है 
जिस पर मलेरिया परजीवी का हमला होता है
जिस व्यक्ति को मलेरिया हुआ हो, उसके खून में मलेरिया का परजीवी आ जाता है। इसके बाद जिगरमें पहुँचते और पनपते है। हमले के १० से १५ दिनों में ये परजीवी नर या मादा रूप में बदल जाते हैं। जब कोई मच्छर यह खून चूसता है तो ये रूप उसके पाचन तंत्र में घुस जाते हैं।
मच्छर में फ्लायमोडियम परजीवी
१० से २० दिनों में नर और मादा तरह के परजीवी मच्छर के पाचन तंत्र में एक दूसरे से मिलते हैं और लाखों बीजाणु बना लेते हैं। ये बीजाणु मच्छर की लार की ग्रंथियों में आ जाते हैं। इसके बाद इस मच्छर के काटने से संक्रमण हो सकता है।
एक बार संक्रमण होनेपर एक मच्छर अपनी छोटी सी पूरी जिंदगी में संक्रमणकारी बना रहता है। दूसरी ओर मनुष्य के शरीर में रह रहे मलेरिया के परजीवी जिगर में निष्क्रिय पड़े रहते हैं। इसलिए मलेरिया महीनों और कई बार सालों बाद भी दोबारा हो सकता है। ऐसा फालसीपेरम को छोड़ कर सभी तरह के मलेरिया के परजीवियों में होता है।
रोग – विज्ञान
मच्छर के काटने से मनुष्य शरीर में घुसे स्पोरोज़ाइट तेजी से जिगर में पहुँच जाते हैं। वहॉं वो तेजी से मीरोजोइट रूप में बदल जाते हैं। इसके बाद वो लारको पर हमला करते हैं। यह प्रक्रिया मच्छर के काटने के १० – १५ दिनों बाद होता है।
लारको में ये परजीवी ४८ से ७२ घंटों में तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं। लारकोंमें हीमोग्लोबिन चट कर जाने के बाद वो कोशिकाओं से बाहर निकल जाते हैं। ऐसा लाखों लारको में एक साथ होता है। अब परजीवियों की एक नई फौज और लारको पर हमला करती है। कुछ दिनों तक यह चक्र चलता रहता है। इस दौरान कंपकंपी आती है और बुखार भी होता है। इसी कारण से मलेरिया का बुखार हर दूसरे या तीसरे दिन होता है। अगर परजीवियों की दो टोलियॉं लारको में से एक दिन छोड़ कर निकलती हैं तो बुखार रोज़ भी हो सकता है। क्यों की मलेरिया परजीवी लाखों लाल कोशिकाओं को तोड डालते है| मलेरिया के मरीजों में अक्सर खून की गंभीर कमी देखने को मिलती है|
तिल्ली का आकार बड़ा हो जाता है क्योंकि इसमें खराब हुई लारको का अंबार लग जाता है। कभी कभी मलेरिया का इलाज न होने पर तिल्ली में सूजन भी आ सकती है। ऐसी सूजी हुई तिल्ली ज़रा सी चोट से ही फट सकती है इससे गंभीर आंतरिक रक्त स्त्राव हो सकता है। बुखार के दो हफ्तों बाद, परजीवी गैमेटोसाइट याने नर-मादा रूप में बदल जाते हैं।
गर्भ के दौरान मलेरिया
गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने से गर्भपात, मरा भ्रूण पैदा होने, भ्रूण का वजन कम होने, या समय से पहले बच्चा होने की संभावना रहती है। इसे मॉं की मृत्यु तक हो सकती है। मलेरिया के परजीवियों को गर्भनाल से खास आकर्षण होता है। जहॉं से ये गर्भ में पल रहे शिशु तक भी पहुँच जाते हैं। ऐसे में भ्रूण को भी मलेरिया हो सकता है। इसी से भ्रूण की वृद्धि भी ठीक से नही होती। कभी कभी गर्भपात या मरा भ्रूण पैदा होने की संभावना रहती है।