Friday 14 September 2018

मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ

मैदा खाओ और अनगिनित रोग बुलाओ
          
    भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं  खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे  यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
                    इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे  घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव  में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
    मैदा -----   इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
         मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
      आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
         मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे  नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
        मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
         यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। – 
           मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
          मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
            कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
        शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम  को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
      एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
                 इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
               मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
            आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर  पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
                  इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये  और सीमित उपयोग करे .
               अन्यथा मैदा खाएं और  अनेकों बीमारियां बुलाएँ .
       

मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ

मैदा खाओ और अनगिनित रोग बुलाओ
          
    भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं  खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे  यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
                    इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे  घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव  में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
    मैदा -----   इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
         मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
      आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
         मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे  नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
        मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
         यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। – 
           मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
          मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
            कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
        शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम  को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
      एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
                 इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
               मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
            आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर  पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
                  इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये  और सीमित उपयोग करे .
               अन्यथा मैदा खाएं और  अनेकों बीमारियां बुलाएँ .
       

फुटपाथ की चाट खाना कितना हानिकारक

फुटपाथ की चाट खाना कितना हानिकारक !---------डॉक्टर अरविन्द जैन भोपाल

                       संसार में प्रत्येक जीव ,वृक्ष ,जंतु को भोजन अनिवार्य हैं .मानव को तो गर्भ से ही माता से भोजन ,पोषण मिलता हैं .और वह उन्ही पर निर्भर रहता हैं .इसीलिए माँ को गर्भस्थ शिशु हेतु उचित आहार विहार की व्यवस्था की जाती हैं और उसके पोषण के अनुसार गर्भस्थ शिशु का विकास होता हैं .इसी प्रकार पेड़ पौधों को भी पोषण की जरुरत होती हैं .शिशु के जन्मते ही उसे स्तनपान की जरुरत होती हैं .और इस समय माँ को यह निर्देशित किया जाता हैं की वह पथ्य,अपथ्य का ख्याल रखे .उसके आहार का प्रभाव नवजात  शिशु पर उसके स्तनपान से पड़ता हैं .जैसे जैसे शिशु बढ़ता हुआ चलने फिरने लगता हैं वैसे वैसे उसकी रूचि बढ़ती जाती हैं .और फिर स्कूल ,कॉलेज ,ऑफिस शादी  विवाह के बाद जीवन में बदलाव आता हैं .
                         वर्तमान में समय का अभाव,आर्थिक सम्पन्नता  और आलस्य के कारण घरों में चटपटी चीज़ों को बनाने का चलन प्रायः कम या बंद हो गया और चटकोरी जिव्हा होने के कारण बाहर का या होटल का या सड़क किनारे खड़े ठेलों के द्वारा अपनी रूचि के अनुसार चाट खाना शुरू होता हैं ..बाजार के गोलगप्पे ,कचोरी समोसा ,भेलपुरी आदि सबको आकर्षित करती हैं .पर भारत में जबतक सड़क के किनारे की चाट न खाये तब तक उसे संतुष्टि नहीं होती ऐसा क्यों ? ये फुटपाथ की चाट हो या सुसज्जित होटल की चाट हमारे जेबों पर डाका डालती हैं और इसके अलावा क्या खिलाया जाता हैं किसी को नहीं मालूम .फुटपाथ की चाट बिना भेदभाव के गरीब अमीर को पसंद होती हैं पर ये सब इंद्रधनुषी और चकाचौध वाली होती हैं .चाट खाने में कोई बुराई नहीं हैं पर  क्या खा रहे हैं ,यह समझना /जानना जरुरी होना चाहिए .जो भी खा रहे हैं वे कितनी साफ़ शुद्ध और स्वच्छतापूर्ण हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक न हो .
                                  अधिकांश  होटल या फुटपाथ की चाट या खाने पीने की वस्तुओं में सफाई न होने से चूहे आदि का मल अधिकांश पाया जाता हैं कारण उनके यहाँ घर जैसी सफाई या देखरेख नहीं होती .फुटपाथ के खाने में इ कोलाई बेक्टेरिया की अधिकतम मात्रा पायी जाती हैं जिससे दस्त ,उलटी या दोनों की संभावना होती हैं .हमारे मष्तिस्क में यह धारणा रहती हैं की इस स्थानों पर शुद्ध खाना मिलता हैं .आपने ध्यान दिया होगा की फुटपाथ पर ठेला लगाने वाले जन सुविधाओं से निकटतम स्थान पर ,खुले  स्थान पर या किसी कोने में लगते हैं जहाँ नाली .या गटर  की गन्दगी होती हैं ,अधिकतर चाट या होटल के नजदीक सैलून होते हैं ,ऐसे स्थानों पर शुद्धता ,सफाई कैसे हो सकती हैं ! बहुत कम चाट वाले अपने हाथों में दस्ताने पहनकर बनाते और परोसते हैं .इसके अलावा भेलपुरी वाले कच्चे प्याज़, आलू ,धनिया ,मिर्ची ,नीबू ,नमक का खुले में उपयोग करते हैं जहाँ मख्खिया भिनभिनाती हैं और वे गंदे हाथों से बनाते हैं .जिससे बीमार होने  की संभावना बनी रहती हैं .
                         इसी प्रकार फलों के रस की दूकान और ठेलों में भी बहुत बीमारी होने का खतरा होता हैं .जहाँ तक हो अपने विश्वनीय फल विक्रेता से ही फल खरीदना  उचित होता हैं कारण फलों को रसायनों से भी पकाया जाता हैं ,रासायनिक फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं जबकि हम स्वास्थ्यवर्धन के लिए खाते हैं ..खासतौर पर यह सुनिश्चित नहीं रहता की उनके द्वारा जो बर्तन उपयोग किये जाते हैं वे कितने साफ़ सुथरे होते हैं .कभी कभी यह भी देखा जाता हैं की होटल वाले अपनी कढ़ाई आदि बाहर रख देते हैं जिसे कुत्ते ,अन्य जानवर चाटकर साफ़ करते हैं .रस में जो बर्फ डाला जाता हैं वह बहुत गंदे पानी से बनता हैं और विशेषकर मेडिकल कॉलेजों या हॉस्पिटल जहाँ पर शवगृह होते हैं उनके पास के रस विक्रेता शवगृह का बर्फ उपयोग करते हैं ! गर्मियों में लम्बी कतारों में रस की दुकानों में  शुद्ध रस कीआवाज़ लगाते हैं उनके यहाँ अधिकांश कटे ,खुले फलो का उपयोग होता हैं और तपती गर्मी में वे फल ताज़े हो नहीं सकते .जिनमे मख्खियां ,चीटियां ,भुनगे भिनभिनाते रहते हैं .इसी कारण घातक बिमारियों के साथ पीलिया होने की संभावना होती हैं .यह सामान्य मान्यता हैं की फलों को ढंककर ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए .न होने पर दूषित और विषैले होने लगते हैं .इसके न होने पर संक्रमण होने का अवसर अधिकतर होता हैं .
                          इनसे बचने के लिए कुछ उपाय की आवश्यकता होती हैं .जहाँ तक हो बाहर की चाट न खाये ,यदि खाये तो उचित स्थान से खाये ,खाने के पहले उस चाट ठेले के उपयोग होने वाले बर्तन और परोसने वाले बर्तनों की सफाई ठीक हैं या नहीं .आसपास कोई गन्दगी तो नहीं हैं .बेचने वाला दस्ताने का उपयोग या  सफाई का ध्यान रखता हैं या नहीं .जहाँ तक बिना बर्फ का फलो का रस का उपयोग करे व उस दुकान के जग ,गिलास साफ़ हैं या नहीं .कटे सड़े फलों का उपयोग तो नहीं हो रहा हैं .होटल या फूटपाथकी चाट की सफाई की बात करे तो वह होना संभव नहीं हैं .यह मान्यता मिलने लगी की होटल या चाट दुकान में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता हैं पर व्यवहारिक धरातल में उतनी नहीं हैं .इसके लिए जरुरी हैं की स्वच्छत्ता की जरुरत बहुत होती हैं .आजकल सामान्य बीमारी होने पर लाखो रुपये खर्च होना मामूली बात हैं .साथ ही उसने द्वारा उपयोग करने वाला कपड़ा का बहुत महत्व होता हैं ,कारण उससे वे सब काम करते हैं और उस गंदे कपडे के द्वारा बीमारियां आसानी से फैलने लगती हैं .इसके लिए उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला कपडा गरमपानी में डाल कर सर्फ़ आदि से धो कर उपयोग करना चाहिए .तथा होटल वालों को थोड़े लोभ के कारण घटिया सामग्री उपयोग नहीं करना चाहिए .और उनको इस भांति सामग्री निर्मित की जानी चाहिए जिसे वे स्वयं उपयोग कर सके ,नहीं तो पता चला वह दूसरी दुकान पर चाट खाने जाता हैं .
                 होटल का खाना आमतौर पर बंद करना संभव न हो तो कम से ऐसे स्थान का चयन करे जहाँ साफ़ सफाई ,उच्चतम क्वालिटी का सामान उपयोग होता हों अन्यथा खाने के बाद रोगों को आमंत्रण देने की अपेक्षा न खाये या घर में बनाये.आजकल संदिग्ता/शक /संदेह  करना जरुरी हैं .चाट खाना मना नहीं हैं वशर्ते वे सफाई से बने जिससे हमारा स्वाद भी बना रहे और बिना आमंत्रण के कोई रोग न फैले .
            डॉक्टर अरविन्द जैन संस्थापक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753

Thursday 30 August 2018

आयुर्वेद मे सात्विक , राजसिक व तामसिक आहार

आयुर्वेद मे सात्विक , राजसिक व तामसिक आहार


भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन

राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.
सात्विक भोजन-
सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.
सात्विक व्यक्तित्व-
जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.
राजसिक भोजन
राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.
राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.
राजसिक व्यक्तित्व
राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.
तामसिक भोजन
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.
मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.
तामसिक व्यक्तित्व
तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना आ जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.
    सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

Friday 24 August 2018

फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण ) -------बचाव

फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण ) -------बचाव ------------डॉक्टर अरविन्द जैन भोपाल
            वायरस, बैक्टीरिया, फंगल, और परजीवी सभी त्वचा संक्रमण का कारण बन सकता है। फंगल संक्रमण आमतौर पर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। हालांकि घरेलू नुस्खे के जरिए फंगल इन्फेक्शन का इलाज किया जा सकता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, मधुमेह, खराब स्वच्छता, गर्म वातावरण में रहने, खराब ब्लड सर्कुलेशन और त्वचा की चोट आदि फंगल इन्फेक्शन के कारण है।
             सोडियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, और मैग्नीशियम से भरपूर सेब का सिरका या एप्पल साइडर सिरका किसी भी प्रकार के फंगल इंफेक्शकन के लिए बहुत आम इलाज है। एंटीमाइक्रोबील गुणों की उपस्थिति के कारण सेब साइडर सिरका, संक्रमण पैदा करने वाले कवक को मारने में मदद करता है।
        यदि आपके पैर की अंगुली में फंगस है, तो आप पानी में एक सेब का सिरका डालिए और उसमें पैर को डुबो दीजिए। आप चाहे तो सीधे भी लगा सकते हैं। इसकी हल्‍‍की एसिडिक प्रकृति संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद करता है और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ावा देता है।
         ट्री टी ऑयल के तेल में प्राकृतिक एंटीफंगल कंपाउंड होते हैं जो फुंगी या बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं जो फंगल संक्रमण का कारण बनता है। इसके अलावा, इसके एंटीसेप्टिक गुण शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण के फैलाव को रोकते हैं।
         इसके लिए आप ट्री टी ऑयल और जैतून का तेल या बादाम के तेल को बराबर मात्रा में मिलाएं तथा इसे प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं। आपको जरूर फायदा मिलेगा।
       प्रोबायोटिक्स जीवित सूक्ष्मजीव हैं जो कुछ बीमारियों को रोकने और इलाज में मदद कर सकते हैं। फंगल इंफेक्शरन के घरेलू नुस्खे में दही का इस्ते‍माल कर सकते हैं।
      सादा दही में मौजूद प्रोबायोटिक्स् लैक्टिक एसिड का निर्माण कर कवक के विकास को जांच में रखता है। इसके लिए आप कॉटन बॉल पर दही को संक्रमित हिस्से पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर गुनगुने पानी से धो लें।
         लहसुन खनिजों का एक अच्छा स्रोत है, जिसमें फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और तांबा शामिल है। फंगल संक्रमण के इलाज के लिए लहसुन का उपयोग एक लोकप्रिय उपाय है। एंटीफंगल गुणों के कारण लहसुन किसी भी प्रकार के संक्रमण का बहुत ही प्रभावी उपाय है।
           इसके अलावा इसमें एंटीबैक्टीमरियल और एंटीबायोटिक गुण भी मौजूद होते हैं जो रिकवरी की प्रक्रिया के लिए महत्वूपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके लिए आप दो लहसुन की कली को लीजिए और उसे कुचल लीजिए। उसमें जैतून के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर बारीक पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्टक को संक्रमित हिस्से पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर गुनगुने पानी से त्वचा के उस हिस्से को धो लें।
        मिडयम चेन फैटी एसिड की उपस्थिति के कारण नारियल का तेल किसी भी प्रकार के फंगल संक्रमण के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में काम करता है।
       संक्रमण के लिए जिम्मेदार फंगल को मारने के लिए ये फैटी एसिड प्राकृतिक फंगीसाइड के रूप में काम करते हैं। इसके लिए आप धीरे-धीरे प्रभावित क्षेत्र पर नारियल के तेल को रगड़ें और इसे अपने आप सूखने दें। जब तक संक्रमण साफ नहीं हो जाता तब तक आप इसे दो या तीन बार दोहराइए।
             इसके अलावा हल्दी का उपयोग भी लाभकारी होता हैं .हल्दी के पाउडर को बेसन के साथ मिलकर कुछ बुँदे कोई भी तेल जैसे सरसों ,नारियल ,तिली  का तेल डालकर उबटन जैसा बनाकर लेप लगाए और सूखने पर उसको आराम से रगड़ कर मैल निकल ले .
             फंगस संक्रमण बरसात के दिनों में अधिक होता हैं .हम अधिकतर नमी या गीले वाले अंडरवियर .बनियान आदि पहनते हैं जिससे बहुत शीघ्रता से यह संक्रमण फैलता हैं .बहुत दिनों तक रखे हुए कपडे जैसे पल्ली ,गद्दे ,कम्बल आदि में भी वहुत अधिक संक्रमण होते हैं .
                    वर्तमान में पैक्ड फूड्स जैसे बिस्किट्स ,टोस्ट ,ब्रेड ,मैदा ,सूजी ,बाजार का आटा बेसन ,पिज़्ज़ा बर्गर आदि में अधिक खतरा होता हैं .क्योकि इन वस्तुओं के निर्माण करते समय स्वछता का ध्यान नहीं रखा जाता हैं जितना आवश्यक होता हैं .
    डॉक्टर अरविन्द जैन ,संस्थापक शाकाहार परिषद्, A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड भोपाल