Sunday 16 December 2018
मुलहठी ( यष्टिमधु) के गुण व फायदे
Saturday 15 December 2018
मैं प्यास से मर रहा हूं... पानी हमारे स्वस्थ रहने के लिए कितना जरूरी
जरूरी है शरीर में नमी- इंसानी शरीर के लिए सबसे जरूरी न्यूट्रिएंट्स में से है पानी। आमतौर पर शरीर का 60 से 75 फीसदी हिस्सा पानी होता है। पानी शरीर के तापमान को काबू में रखता है, जरूरी ऑर्गन्स की हिफाजत करता है, पाचन में मदद करता है, ऑक्सिजन और पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाता है। गैरजरूरी और जहरीले तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है। पानी की कमी से डीहाइड्रेशन, कब्ज, बेहोशी और तमाम दूसरी समस्याएं हो सकती हैं।
कितना पानी पिएं?
एक इंसान को रोजाना औसतन 8 से 12 गिलास पानी की जरूरत होती है। अगर आप नियमित रूप से एक्सरर्साइज करते हैं तो आपको शरीर की नमी बनाए रखना मुश्किल होता है इसलिए एक्सर्साइज से पहले, एक्सर्साइज के दौरान और बाद में पानी पिएं।
व्यायाम से 1 घंटा पहले 1 गिलास पानी पिएं। व्यायाम के दौरान हर 15 से 30 मिनट में आधा गिलास और एक्सर्साइज के बाद दो गिलास पानी पिएं।
मिथ्याभ्रम : व्यायाम के दौरान पानी पीने से दर्द या ऐंठन हो सकती है।
सच : यह सच के बिल्कुल उलट है। आपको एक्सर्साइज से पहले, एक्सर्साइज के दौरान और उसके बाद पानी की जरूरत होती है। एक्सर्साइज करने वाले शख्स के लिए पानी सबसे ज्यादा पोषक तत्व है। एक्सर्साइज के दौरान पानी या दूसरी तरल चीजों की कमी खासकर गर्मी के मौसम में, अकड़न, सिरदर्द, नमी की कमी की वजह बन सकती है। साथ ही एक्सर्साइज करने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। एक्सरर्साइज के दौरान थोड़ा-थोड़ा पानी पीने से व्यायाम के वक्त पसीने के जरिए निकलने वाले जरूरी तत्वों की कमी पूरी हो जाती है।
Friday 14 December 2018
रसायन चिकित्सा - आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है
रसायन सेवन में वय, प्रकृति, सात्म्य, जठराग्नि तथा धातुओं का विचार आवश्यक है। भिन्न-भिन्न वय तथा प्रकृति के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण तदनुसार किये गये प्रयोगों से ही वांछित फल की प्राप्ति होती है।
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1 से 2 चुटकी वचाचूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बाल्यावस्था में स्वभावतः बढ़ने वाले कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि कुशाग्र होती है।
11 से 20 साल तक के किशोंरों एवं युवाओं को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातुएँ पुष्ट होती हैं एवं शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
21 से 30 साल तक के लोगों को 1 चावल के दाने के बराबर शतपुटी लौह भस्म गोघृत में मिलाकर देने से रक्तधातु की वृद्धि होती है। इसके साथ सोने से पहले 1 चम्मच आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है।
31 से 40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का 10 से 15 मि.ली. रस अथवा उसका 1 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर देने से तनावजन्य मानसिक विकारों में राहत मिलती है व नींद अच्छी जाती है। उच्च रक्तचाप कम करने एवं हृदय को शक्ति प्रदान करने में भी वह प्रयोग बहुत हितकर है।
41 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को 1 ग्राम ज्योतिष्मिती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर देने तथा ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग करने से इस उम्र में स्वभावतः बढ़ने वाले वातदोष का शमन होता है एवं संधिवात, पक्षाघात (लकवा) आदि वातजन्य विकारों से रक्षा होती है।
51 से 60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति स्वभावतः घटने लगती है जो 1 ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गौघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से बढ़ती है। सोने से पूर्व 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ लेना भी हितकर है। गिलोय, गोक्षुर एवं आँवले से बना रसायन चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक सेवन करना अति उत्तम है।
मेध्य रसायनः शंखपुष्पी, जटामासी और ब्राह्मीचूर्ण समभाग मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से ग्रहणशक्ति व स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क को बल मिलता है, नींद अच्छी आती है एवं मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
आचार रसायनः केवल सदाचार के पालन से भी शरीर व मन पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं।
Tuesday 11 December 2018
- कमर में दर्द
- पैर के पिछले हिस्से में दर्द होना और बैठने के बाद दर्द गंभीर हो जाना
- कूल्हों में दर्द
- पैरों में जलन या झुनझुनी का अनुभव
- पैर को हिलाने-डुलाने में परेशानी, कमजोरी और सुन्नता का अनुभव
- पैर के पिछले भाग में सिर्फ एक तरफ दर्द होना
- तीव्र पीड़ा होना और उठने में परेशानी होना
साइटिका होने के अन्य कारण इस प्रकार हैं –
- लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस – पीठ के निचले हिस्से (lower back) की रीढ़ की हड्डी संकरी हो जाती है। इस कारण साइटिका की समस्या पैदा हो जाती है।
- स्पॉनडिलोलिस्थेसिस (spondylolisthesis) – एक ऐसी समस्या जिसमें डिस्क स्लिप नीचे से कशेरूकाओं के आगे निकल जाती हैं।
- रीढ़ के भीतर ट्यूमर होना – यह तंत्रिका में साइटिका का कारण होता है।
- संक्रमण (infection) – यह आमतौर पर रीढ़ को प्रभावित करता है।
- कौडा एक्विना सिंड्रोम (Cauda equina syndrome) – साइटिका की यह सबसे गंभीर स्थिति है, हालांकि अमूमन यह जल्दी होता नहीं है लेकिन यह रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से की तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है। इसके लिए तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
संजीवनी साइटिका स्पेशियल आैषधिय योग*
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
*सिंहनाद गुगुल 40 ग्राम*
*ञिफला गुगुल 40 ग्राम*
*पुनर्नवां मंडुर. 20 ग्राम*
*महायोगराज गुगुल 20 ग्राम*
*निर्गुडी 50 ग्राम*
*सौंठ. 20 ग्राम*
*शुद्ध भल्लांतक 05 ग्राम*
*सहिंजन के पत्ते 30 ग्राम*
*सूतशेखर रस. 40 ग्राम*
*गोखरु कांटा 30 ग्राम*
Monday 10 December 2018
कड़वा चिरायता – गुणो से भरपूर
वजन कम करना आज एक प्रमुख समस्या बन गया है. कई तरह की दवाएं आज बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन यदि अप चाहें तो चिरायता के प्रयोग से अपना वजन आसानी से कम कर सकते हैं. चिरायता में मौजूद मेथेनॉल आपका उपापचय बढ़ाकर आपका वजन कम करता है.
2. प्रतिरक्षा तंत्र की मजबूती में
जाहिर है किसी भी रोग को ठीक करने या उसे न होने के लिए हमारे प्रतिरक्षा तंत्र का भलीभांति काम करना जरुरी है. चिरायता आपके शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती देने का काम करता है. इसके अलावा ये हमारे शरीर से तमाम विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम भी करता है.
3. रक्तशोधक के रूप में
चिरायता स्वाद में कड़वा होता है. इसलिए ये भी करेला या नीम जो कि स्वाद में कड़वा होता है, की तरह ही एक रक्त शोधक के रूप में काम करता है. इसके साथ ही ये एनीमिया से भी आपको बचाता है.
4. लीवर की समस्याओं में
चिरायता हमें लीवर की विभिन्न समस्याओं से लड़ने में भी मदद करती है. फैटी लीवर, सिरोसिस और कई अन्य लीवर से संबंधित बीमारियों को चिरायता लीवर की कोशिकाओं को रिचार्ज करके दूर करता है. चिरायता को एक अच्छा लीवर डिटॉक्सीफायर माना जाता है और ये लीवर की कोशिकाओं के काम-काज को उत्तेजित करती है.
5. कब्ज में
कब्ज पेट से जुड़ी हुई बीमारी है. चिरायता इसके इलाज के लिए एक बहुत अच्छा विकल्प है. इसके लिए चिरायता के पौधे से बना काढ़ा तब तक पीना चाहिए जब तक की कब्ज ठीक न हो जाए.
6. त्वचा रोगों में
चिरायता का अर्क त्वचा से संबंधित कई रोगों से आपकी रक्षा करता है. त्वचा पर चकते निकलना या सूजन में भी चिरायता का पेस्ट बनाकर लेप लगाने से ये आराम पहुंचाता है. इसके अलावा ये घावों और पिम्पल्स को भी ठीक करता है.
7. सोरायसीस में
सोरायसिस के उपचार में भी चिरायता की सक्रीय भूमिका होती है. इसके लिए 4-4 ग्राम कुटकी और चिरायता एक कांच के बर्तन में 125 ग्राम पानी डालकर रख दें फिर अगली सुबह उस पानी को निथार कर पिएं और 3-4 घंटे तक कुछ न खाएं. लगातार दो सप्ताह ऐसा करने से आपको सोरायसिस में राहत मिलती है.
8. शुगर को नियंत्रित करने में
रक्त शर्करा को नियंत्रित करने की चिरायता के क्षमता का उपयोग हम शुगर के उपचार में कर सकते हैं. इसका कड़वा स्वाद रक्त शर्करा के कई दोषों को दूर करने में हमारी मदद करता है. चिरायता अग्नाशयी कोशिकाओं में इन्सुलिन के उत्पादन को प्रोत्साहित करके रक्त शर्करा को कम करता है.
9. गठिया में
गठिया एक ऐसी बिमारी है जिसमें जोड़ों में दर्द और कभी-कभी सूजन भी हो जाती है. चिरायता में सूजन को कम करने की क्षमता होती है जिसके कारण ये गठिया से भी हमें बचाता है. इसके अलावा इसमें दर्द, सूजन और लालिमा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है.
10. आंत के लिए
जाहिर है आंत हमारे शरीर के प्रमुख अंगों में से है. इसमें आई खारबी के कारण कई तरह के विकार हो सकते हैं. आंत की कई बीमारियाँ तो इसमें होने वाले कीड़ों से भी होती है. चिरायता में पाया जाने वाला एंथेल्मिनेटिक गुण हमारे आंत में मौजूद कीड़ों को ख़त्म करता है.
11. बुखार में
चिरायता का लाभ हमें बुखार जैसी कॉमन बीमारियों में भी नजर आता है. खासकरके मलेरिया बुहार में इसका बहुत लाभ मिलता है. बुजुर्गों के लिए तो चिरायता एक वरदान जैसा है क्योंकि इससे आप बहुत प्रभावशाली लेकिन कड़वी टॉनिक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.
12. ब्लोटिंग में
चिरायता के कई उपयोगी गुणों में से एक ये भी है कि ये हमारे पेट में अम्ल उत्पादन को रोकती है. इसके अलावा ये आँतों की सुजन ठीक करके पेट को मजबूती भी देती है. इसकी सहायता से आप दस्त, गैस, ब्लोटिंग आदि समस्याओं से निपट सकते हैं.
13. कैंसर में
कैंसर जैसी बेहद गंभीर बीमारियों से भी चिरायता हमें लड़ने में मदद करता है. जाहिर है कैंसर एक लगभग लाइलाज बिमारी के रूप में आज हमारे बीच मौजूद है. चिरायता का लाभ हमें लीवर कैंसर में मिल सकता है.
घर में चिरायता बनाने की विधि
Thursday 29 November 2018
आप अपने भोजन में शामिल कर लेते हो तो आप निरोगी जीवन जी सकते है
हेल्थ बनाने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो न सिर्फ यह बहुत फायदेमंद
होता है क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे.....
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।
- अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।
- अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन ,कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
- अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है यह शरीर को सुंदर व स्वस्थ बनाता है।
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहुं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुद्घ करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुद्घ होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन फायदेमंद है।
- अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी, सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है।।।।।।।।।। उत्तम जैन
Wednesday 28 November 2018
गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा
गाल ब्लैडर स्टोन की चमत्कारी दवा
गाल ब्लैडर स्टोन निकालने के लिए गुडहल के पाउडर के इस्तेमाल की विधि.
इस प्रयोग में बरती जाने वाली महत्वपूर्ण सावधानी.
Sunday 25 November 2018
त्रिफला से कायाकल्प
त्रिफला से कायाकल्प-Triphala Rejuvenation
हरड - हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है
बहेडा - बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है
आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
कुछ विशेषज्ञों कि राय है की तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए।
कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए । कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है।
1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
ओषधि के रूप में त्रिफला
रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगा। शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है। त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है। त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।
त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है। 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
डेढ़ माह तक नीचे बताए इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।
सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है कल्प के दिनों में खट्टे, तले हुए, मिर्च-मसालेयुक्त व पचने में भारी पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। 40 दिन तक मामरा बादाम का उपयोग विशेष लाभदायी होगा। कल्प के दिनों में नेत्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य करें।
मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।
सावधानीः दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाख जहर होता है । त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।
त्रिफला से कायाकल्प - कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?
एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।
पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और शुक्ष्म से शुक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने भी लगती हैं।
दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।
ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।
Friday 14 September 2018
मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ
भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
मैदा ----- इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। –
मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये और सीमित उपयोग करे .
अन्यथा मैदा खाएं और अनेकों बीमारियां बुलाएँ .
मैदा खाओ ओर अनगिनत रोग बुलाओ
मैदा खाओ और अनगिनित रोग बुलाओ
भारतीय दूसरों की नक़ल करने में बहुत माहिर हैं खास तौर पर बुराइयां या नुकसानदायक आदतें या भोज्य पदार्थ .हमारे यहाँ पहले घर में ही मैदा तैयार कर उसका उपयोग करते थे .पर अब आर्थिक समृद्धि ,आराम तलब जिंदगी ने हमें अब नाश्ता ,या खाना रेडीमेड खाने की परम्परा बन गयी हैं .घर की मैदा अच्छे गुणवत्ता वाले गेंहू की बनती थी ,उसमे दोष कम होता था .अब बाजार में बनने वाला खाद्य पदार्थ औसतन घटिया गुणवत्ता का ,सस्ता ,सड़ा,बिना छाना बीना मय कचरे के बनाया जाता हैं .यदि आप उस स्थान का स्वयं अपनी नंगी आँखों से निरिक्षण कर ले तो आप उसका उपयोग न करेंगे .उस स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी और उस स्थान की सफाई का कोई मानक नहीं होता हैं ,उसमे कीड़े ,मकोड़े ,इल्ली आदि सब पीस दी जाती हैं .और कौन किस दिनांक का दिया या प्रदाय किया जा रहा हैं इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं .
इसके बाद बहुतायत से बनाने वाले और बेचने वाले अपनी पैकिंग पर विशेष ध्यान देते हैं ,उसमे वे घटिया स्तर का तेल ,मसाला का उपयोग वह भी स्वच्छता के अभाव में बनता हैं .यह दशा प्रायः हर खाद्य सामग्री पर लागु होती हैं ,हम चूँकि किसी विशेष विक्रेता पर अधिक विश्वास कर उपयोग करते हैं पर मानकता का कोई मापदंड नहीं होता हैं .इसका लाभ उनके द्वारा लिया जा रहा हैं और हम अपना धन देकर बिना जाँच किये उपयोग कर अनगिनित असाध्य बीमारियों को स्वयं बुला रहे हैं और उसके बाद इलाज़ में पैसा खर्चते हैं .यहाँ किसी को डरा नहीं रहा हूँ पर वास्तविकता उजागर कर रहा हूँ .इसके बाद भी आप उपयोग करने से नहीं चूकेंगे .
मैदा ----- इसको यदि आसान भाषा में समझे तो मैदा आटे का री-फाइन्ड रूप होता है। इसे बारीक और महीन बनाने के लिए कई बार पीसा जाता है। ऐसा करने से अच्छी क्वालिटी का मैदा तो मिल जाता है, लेकिन उसमें मौजूद सभी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद फाइबर खत्म हो जाते हैं।
मैदा, रिफाइंड शुगर, सोफ्ट ड्रिंक जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ बाजार में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अधिकतर अपरिहार्य हैं। मैदा से बने अधिकांश खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट हैं, लेकिन ये वास्तव में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
आज देखा जाए तो जानकारी के अभाव में लोग ज्यादा से ज्यादा मैदा का सेवन करते हैं। भारत के कोने-कोने में मैदा से बनी चीजें बेची जा रही है और लोग बड़े ही चाव से इसका सेवन कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ज्यादा सेवन कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
मैदा से बने खाद्य पदार्थों जैसे नूडल्स, पास्ता, व्हाइट ब्रेड, आदि में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा नंबर है जो हमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा के स्तर पर भोजन के प्रभाव के बारे में बताता है। चूंकि मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, यह ब्लडस्ट्रीम में जल्दी शुगर को रिलीज करेगा। यह एक तेज इंसुलिन प्रतिक्रिया का कारण बनता है। इसे ज्यादा समय तक सेवन करने से सूजन, इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 मधुमेह को जन्म दे सकता है।
मैदा खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) भी बढ़ता हैं। इससे शरीर चर्बी, क्लोग्स धमनी, रक्तचाप बढ़ता है, ब्लड शुगर में बाधा आती है और मूड स्विंग का कारण बनता है। लोग इसे खाते हैं क्योंकि वे शायद इसके परिणामों से अनजान हैं।
यदि आप पहले से ही फैट से पीड़ित है और आप उस फैट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप अपनी डाइट से मैदा को हटा दें। दरअसल बहुत ज्यादा मैदा खाने से शरीर का वजन बढ़ना शुरु हो जाता है और आप मोटापे के शिकार होने लगते हैं। यही नहीं इससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल और खून में ट्राइग्लीसराइड भी बढ़ता है। –
मैदे में ग्लूटन होता है, जो फूड एलर्जी को जन्म दे सकता है। मैदे में भारी मात्रा में ग्लूलटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है। वहीं गेंहू के आटे में ढेर सारा फाइबर और प्रोटीन पाया जाता है। मैदा एनाफिलैक्सिस को ट्रिगर कर सकता है जिसमें रेपिड पल्स दर, गले की सूजन और सांस लेने में कठिनाई होती है।
मैदा एक रिफाइंड आटा है जो पेट के लिये अच्छा नहीं है। इसलिए इसमें कोई फाइबर नहीं है। इससे पाचन, कब्ज जैसी समस्याएं होती हैं। सही से पाचन न होने कारण इसका कुछ हिस्सा आंत में चिपक जाता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।
कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीवीडी) दुनिया में मौत का एक प्रमुख कारण है। कार्डियोवैस्कुलर बीमारी दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के लिए एक सामान्य शब्द है। मैदा खाने से ब्लड शुगर बढ़ता है और खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, फिर इससे शरीर में केमिकल रिएक्शन होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां हो सकती हैं।
शोध के अनुसार, अम्लीय खाद्य पदार्थों (जैसे पिज्जा, पास्ता, बर्गर और अन्य मैदा उत्पाद) हड्डी के घनत्व को प्रभावित करता है। दरअसल मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम को खींच लेता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
एक नए ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के मुताबिक, मैदा खाने से टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर पर भोजन के प्रभाव को मापता है। इसे ज्यादा खाने से शुगर लेवल तुरंत ही बढ़ जाता है। मैदा, केक, और बिस्कुट जैसे उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थ नाटकीय रूप से ब्लड शुगर को बढ़ाते हैं।
इसके अलावा मैदा बहुत दिनों तक उपयोग न हो तो उसमे सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती हैं ,वे जीव मैदे के समान होने से समझ में नहीं आते और अनावश्यक जीव हिंसा के साथ उनका भक्षण भी करते हैं .
मैदा का बहुलता से उपयोग होटल में होता हैं ,वहां पर बनने वाली रोटियां जैसे तंदूर रोटी ,मिस्सी रोटी या चपाती और अन्य जो भी रोटियां बनती हैं वे शुद्ध मैदा की बनती हैं .इसी प्रकार समोसा ,त्योहारों में मैदा से बनने वाला सामान अत्यंत घातक हो जाता हैं .
आजकल ब्रेड, केक पानी पूरी (फुलकी) और विदेशों के नक़ल वाली खाद्य सामग्र्री पिज़्ज़ा ,बर्गर पूर्णतया अखाद्य हैं क्योकि उनमे अप्रत्यक्ष रूप में अंडे की जर्दी का उपयोग होता ही हैं .और भी हैं .
इसके अलावा उपरोक्त बीमारियां आपको उपहार में मिल जाती हैं .इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं .यदि मैदा खाना हैं तो घर में कुछ मेहनत कर बनाये और सीमित उपयोग करे .
अन्यथा मैदा खाएं और अनेकों बीमारियां बुलाएँ .