Monday 17 December 2018

निरोगी रहने के नियम अपनाए स्वस्थ रहे - विनय आयुर्वेदा

स्वस्थ रहने के  नियम : जीवन में सुखी रहने के लिए अच्छी सेहत का होना बहुत जरूरी है. और अच्छी सेहत के लिए कुछ ऐसे नियम है जिनका पालन करते रहना चाहिए. क्यूंकि जीवन जीने का नियम सही नहीं होगा तो शरीर में बीमारियाँ बनी ही रहेंगी. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सेहत का ध्यान रखना बहुत कठिन हो गया है और इंसान छोटी छोटी बिमारियों के लिए भी दवाइयों पर निर्भर हो गया है. पहले के लोग बिना दवाइयों के ही निरोगी और लम्बा जीवन व्यतीत करते थे जबकि आज कल दवाओं का सेवन करने के बाद भी लोग निरोगी नहीं हो पा रहे है. इसका सबसे प्रमुख कारण है अनियमित जीवन शैली. आज के इस लेख में मैं आपको स्वास्थ्य जीवन जीने के  अनमोल नियम बताने जा रहा हूँ जिनमे से आप 10-5 नियमों का भी नियमित पालन करेंगे तो भी आप बहुत से रोगों से छुटकारा पा जायेंगे


निरोगी रहने के  नियम 

  1. नित्यप्रति सूर्योदय से पूर्व सोकर उठें । रात्रि में अधिक देर तक जागें नहीं । ऐसा करने से मस्तिष्क अतिरिक्त उर्जा मिलती है और रक्त संचार का संतुलन बना रहता है जिससे ब्लड प्रेशर इत्यादि की बीमारियों को कम करने में सहायता मिलती है और अनिद्रा रोग में भी लाभ मिलता है.
  2. प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम करें । तैरने से अच्छा व्यायाम हो जाता है । सप्ताह में कम से कम एक बार पूरे शरीर की 30 मिनट तक मालिश करें ।
  3. सुबह शाम टहलना लाभदायक है । नियमित रुप से टहलने से संपूर्ण शरीर में चुस्ती फुर्ती आती है, धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते है । हृदय रोग , मधुमेह और ब्लड प्रेशर में लाभ पहुंचता है ।
  4. धूप, ताजी हवा, साफ स्वच्छ पानी और सदा सात्विक भोजन स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी है ।
  5. नित्य योगासन व प्राणायाम करने से रोग नहीं होते और दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है ।
  6. स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है, इसलिये शरीर को स्वस्थ रखें । सदाचारी, निरोगी व्यक्ति सदा सुखी रहता है ।
  7. तेज रोशनी आंखों को नुकसान पहुंचाती है । यदि धूप इत्यादि में कार्य करना मजबूरी हो तो फोटोक्रोमेटिक चश्मे का प्रयोग करे.
  8. स्नान करते समय सिर पर जल डालना चाहिए, उसके बाद अंगो पर । जल न तो अति शीतल हो और न बहुत गर्म । स्नान के बाद किसी मोटे तौलिए से अच्छी तरह रगड़ कर पोछना चाहिए ।
  9. भोजन न करने से तथा अधिक भोजन करने से पाचकाग्नि दीप्त नही होती। भोजन के अयोग, हींन योग , मिथ्यायोग और अतियोग से भी पाचकाग्नि दीप्त नहीं होती है ।
  10. भोजन के बाद दांतो को अच्छी तरह साफ करें, अन्यथा अन्य कणों के दांतों में लगे रहने से उसमें सड़न पैदा होगी ।
  11. खूब गरम गरम खाने से दांत तथा पाचन शक्ति दोनों की हानि होती है । जरूरत से अधिक खाने से अजीर्ण होता है और यही अनेक रोगों की जड़ है ।
  12. भोजन के पश्चात तुरंत न लेटे कुछ देर टहलने के बाद ही विश्राम करे.
  13. रात में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक पाव ठंडे पानी में भिगो दें, सुबह छानकर उससे आंखें धोयें और बचे हुए जल को पी जाएं ।
  14. नित्य मुख धोने के समय ठंडे पानी से आंखों में छीटें लगाएं । इससे आंखे स्वस्थ रहती हैं ।
  15. हफ्ते दस दिन के अंदर पर कानों में तेल की कुछ बूंदें डालनी चाहिए । इससे कानो में मैल जमने नहीं पाता है
  16. बिस्तर के स्थान को साफ सुथरा रखें । नींद आने पर ही सोना चाहिए । बिस्तर पर पड़े पड़े नींद की राह देखना रोग को आमंत्रित करना है । दिन में सोने की आदत न डालें ।
  17. मच्छरों को दूर करने का उपाय करें । वे रोगों को फैलाने में सहायक होते हैं ।
  18. अगरबत्ती, कपूर अथवा चंदन का धुआँ घर में हर रोज कुछ क्षणों के लिए करें । इससे घर का वातावरण पवित्र होता है ।
  19. श्वांस सदा नाक से और सहज ढंग से ले । मुँह से स्वांस न ले , इस से आयु कम होती है ।
  20. अच्छा साहित्य पढ़ें । अश्लील एवं उत्तेजक साहित्य पढ़ने से बुद्धि भ्रस्ट होती है । दूसरों के गुणों को अपनाये ।
  21. सुबह उठते ही आधा लीटर से एक लीटर तक पानी पीना चाहिए । यदि पानी तांबे के बर्तन में रखा हुआ हो तो अधिक लाभप्रद होगा
  22. कपड़ छान किये नमक में कडुआ तेल मिलाकर दांत और मसूड़ों को रगड़कर साफ करना चाहिए । इससे दांत मजबूत होते हैं और पायरिया से भी मुक्ति मिल सकती है ।
  23. दूध का सेवन अवश्य करना चाहिए । इससे शरीर को पोषक तत्व की प्राप्ति होती है ।
  24. सप्ताह में केवल नींबू पानी पीकर एक दिन का उपवास करें । इससे पाचन शक्ति सशक्त होगी । यदि पूरा उपवास न कर सकें तो फल खाकर या फल का रस पीकर उपवास करें ।
  25. पचास से अधिक उम्र होने पर दिन में एक ही बार अन्न खाये । बाकी समय दूध और फल पर रहें ।
  26. भोजन करते समय और सोते समय किसी प्रकार की चिंता, क्रोध शोक न करें ।
  27. सोने से पहले पैरों को धोकर पोछ लेवें कोई अच्छी स्वास्थ्य संबंधी पुस्तक पढ़ने और अपने इष्टदेव को स्मरण करते हुए सोने से अच्छी नींद आती है ।
  28. रात्रि का भोजन सोने से तीन घंटे पहले करना चाहिए । भोजन के एक घंटा बाद फल या दूध लें ।
  29. सोते समय मुंह ढक कर नहीं सोयें । खिड़कियां खोलकर सोयें । सोने का बिस्तर बहुत मुलायम न हो ।
  30. सुबह-सुबह हरी दूब पर नंगे पाँव टहलना भी काफी लाभप्रद है । पैर पर दूब के दबाव से तथा पृथ्वी के सम्पर्क से कई रोगों की चिकित्सा स्वतः हो जाती है ।
  31. न तो इतना व्यायाम करना चाहिए और न ही इतनी देर टहलना चाहिए कि काफी थकावट आ जाए । टहलने और व्यायाम के लिए सूर्योदय का समय ही सबसे उत्तम है ।
  32. गरम दूध,चाय या गर्म जल पीकर तुरंत ठंडा पानी पीने से दांत कमजोर हो जाते हैं ।
  33. शयन करते समय सिर उत्तर या पश्चिम में रखकर नहीं सोना चाहिए ।
  34. कपड़ा, बिस्तर, कंघी, ब्रश, तौलिया, जूता-चप्पल आते वस्तुएं परिवार के हर व्यक्ति की अलग अलग होनी चाहिए । दूसरे की वस्तु उपयोग में न लायें।
  35. दिन और रात में कुल मिलाकर कम से कम तीन से चार लीटर पानी पीना चाहिए । इससे अशुद्धि मूत्र के दौरान निकल जाती है । रक्तचाप आदि पर नियंत्रण रहता है ।
  36. प्रौढावस्था शुरू होते ही चावल, नमक, घी, तेल,आलू और तली-भुनी चीजें खाना कम कर देना चाहिए ।
  37. केला दूध दही और मट्ठा एक साथ नहीं खाना चाहिए ।
  38. कटहल के बाद दही और मट्ठा एक साथ नहीं खाना चाहिए ।
  39. शहद के साथ उष्णवीर्य पदार्थों का सेवन ना करें ।
  40. दूध के साथ इन वस्तुओं का प्रयोग हानिकारक होता है -नमक, खट्टा फल, दही, तेल मूली और तोरई ।
  41. दही के साथ किसी भी प्रकार का उष्णवीर्य पदार्थ- कटहल, तेल, केला आदि खाने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । रात को दही खाना निषिध्द है । शरद् और ग्रीष्म ऋतु में दही खाने से पित्त का प्रकोष होता है ।
  42. दूध और खीर के साथ खिचड़ी नहीं खानी चाहिए
  43. पढ़ना-लिखना आदि आंखों के द्वारा होने वाला कार्य लगातार काफी देर तक ना करें ।
  44. गर्मी में धूप में आकर तत्काल स्नान न करें और न तो हाथ पैर या मुँह ही धोयें ।
  45. देर रात तक जागना या सुबह देर तक सोते रहना आंखों और स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है ।
  46. अधिक वसायुक्त आहार, धूम्रपान एवं मांसाहारी भोजन हृदय के लिए नुकसानदेह होते हैं । ये रक्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं ।
  47. नियमित व्यायाम से शरीर की क्षमता बढ़ती है । शरीर में हानिकारक तत्वों की मात्रा घटती है । नियमित योग एवं व्यायाम, कम वसायुक्त भोजन तथा नियमित दिनचर्या से अनेक रोग स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
  48. तम्बाकू, शराब, चरस, अफीम, गांजा आदि जहर से भी खतरनाक है । मादक द्रव्यों का सेवन करने न करें ।
  49. नियमित समय पर प्रातः जागकर शौच जाने वाला, समय पर भोजन करने और सोने वाला व्यक्ति संपन्न और बुद्धिमान होता है ।
  50. भोजन करने के बाद लघुशंका अवश्य करनी चाहिए । इससे गुर्दे स्वस्थ रहते हैं ।
  51. सही मुद्रा में चलने-बैठने का अभ्यास करना चाहिए । बैठते समय पीठ सीधी रखकर बैठें ।
  52. धूप, वर्षा और शीत की अति से शरीर को बचाना चाहिए ।
  53. अत्यधिक भीड़-भाड़ तथा सीलनयुक्त स्थान स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता ।
  54. प्रगाढ़ निद्रा में सोये व्यक्ति को नहीं जगाना चाहिए ।
  55. सुबह उठते ही यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि आज दिनभर न तो किसी की निंदा करूंगा और न ही क्रोध करके किसी को भला-बुरा कहूंगा ।
  56. फलों का सेवन भोजन करने से एक घंटा पूर्व करना चाहिए. भोजन करने के पश्चात् फलों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि फल पके होते है और उन्हें पचने में ज्यादा समय नहीं लगता है.
उपरोक्त नियमों में से जो भी कोई 5-10 नियम आपनी दिनचर्या में अपनी सहूलियत के हिसाब से आप कर सकते है उन्हें अपना ले. क्यूंकि नियमों का पालन करने से मानसिक शक्ति में भी वृद्धि होती है. और यहाँ पर तो आपको सेहत का खजाना भी मिल रहा है. तो देर किस बात की आज ही संकल्प ले  कि मुझे आज से ही  इन नियमों का पालन करना है. आशा करता हूँ आपको स्वस्थ रहने के विनय आयुर्वेदा की जानकारी अच्छी लगी होगी.

Sunday 16 December 2018

भीगी किशमिस खाये एनीमिया को दूर भगाये ओर इम्युनिटी बढ़ाये - श्री मदन जी मोदी

भीगी किशमिश खाएं, एनीमिया को दूर भगाएं और इम्यूनिटी बढ़ाएं
अगर आप भी  रोज नट्स और किशमिश खाते हैं, तो अच्छी बात है। मगर क्या आपको पता है कि अगर आप किशमिश को रात में भिगोकर खाते हैं, तो यह ज्यादा फायदेमंद हो जाता है। अगर आप रोजाना सिर्फ 10 किशमिश के दानों को रात में भिगोकर सुबह खाएं, तो इससे कई तरह के रोगों और बीमारियों से बचाव होगा। साथ ही सेहत भी बेहतर होगी। एक नजर इसके फायदों पर-
रात में भिगोएं 10 किशमिश
किशमिश खाने का सबसे अच्छा तरीका है कि इसे रात में पानी में भिगोकर रख दें और सुबह फूल जाने पर खाएं और किशमिश के पानी को भी पी लें। भीगी हुई किशमिश में आयरन, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम और फाइबर भरपूर होता है। इसमें मौजूद शुगर प्राकृतिक होती है इसलिए सामान्यतः इसका कोई नुकसान नहीं होता है, मगर डायबीटीज के मरीजों को किशमिश नहीं खानी चाहिए। किशमिश वास्तव में सूखे हुए अंगूर होते हैं। ये कई रंगों में मौजूद होते हैं, मसलन गोल्डन, हरा और काला। इसके अलावा आप कई सब्जियों के स्वाद को बेहतर बनाने के लिए भी किशमिश का इस्तेमाल कर सकते हैं।
बढ़ेगी रोगों से लड़ने की क्षमता
रात में भीगी हुई किशमिश खाने और इसका पानी पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट्स के कारण इम्यूनिटी बेहतर होती है, जिससे बाहरी वायरस और बैक्टीरिया से हमारा शरीर लड़ने में सक्षम होता है और ये बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
बीपी भी रहता सामान्य
रात की भिगाई हुई किशमिश वैसे तो सभी के लिए फायदेमंद है, मगर इसका लाभ उन लोगों को मिल सकता है, जो हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन से परेशान हैं। किशमिश शरीर के ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करती है। इसमें मौजूद पोटैशियम तत्व आपको हाइपरटेंशन से बचाता है।
शरीर में खून बढ़ाए
किशमिश के सेवन से आप एनीमिया से बचे रहते हैं, क्योंकि किशमिश आयरन का बेहतरीन स्रोत होता है। साथ ही इसमें विटामिन बी काम्प्लेक्स भी बहुतायत में पाया जाता है। ये सभी तत्व रक्त फॉर्मेशन में उपयोगी हैं।
किशमिश यानी मुनक्का पाचन तंत्र में बेहद फायदेमंद है। मिनरल्स की मात्रा काफी होती है। यह हड्डियों के लिए काफी अच्छा होता है। दिनभर में 10-12 किशमिश ली जा सकती हैं। एक बात हमेशा ध्यान रखें कि भीगी हुई किशमिश में कैलरी की मात्रा काफी ज्यादा होती है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि इसे ज्यादा मात्रा में न लें। इसे नियमित अपने आहार में शामिल करने से डाइजेशन में आराम मिलता है। असल में यह फाइबर से भरपूर होता है।

मुलहठी ( यष्टिमधु) के गुण व फायदे


मुलहठी एक प्रसिद्ध और सर्वसुलभ जड़ी है। काण्ड और मूल मधुर होने से मुलहठी को यष्टिमधु कहा जाता है। मधुक क्लीतक, जेठीमध तथा लिकोरिस इसके अन्य नाम हैं।  इस वृक्ष का भूमिगत तना (काण्ड) तथा जड़ सुखाकर छिलका हटाकर या छिलके सहित अंग प्रयुक्त होता है। सामान्यतः मुलहठी ऊँचाई वाले स्थानों पर ही होती है । भारत में जम्मू-कश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक इसे लगाने में सफलता मिली है। वैसे बाजार में अरब, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान से आयी मुलहठी ही सामान्यतः पायी जाती है। 
मुलेठी खांसी, गले की खराश, उदरशूल क्षयरोग, श्‍वासनली की सूजन तथा मिरगी आदि के इलाज में उपयोगी है। मुलेठी का सेवन आँखों के लिए भी लाभकारी है। इसमें जीवाणुरोधी क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटों में भी लाभदायक होता है। भारत में इसे पान आदि में डालकर प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार मुलेठी रस में मधुर (Sweet in taste), गुण में भारी, शीतल प्रकृति की, विपाक में मधुर, स्निग्ध, वात-पित्त नाशक, वीर्यवर्धक, नेत्रों के लिए हितकारी,  त्वचा की रंगत निखारने वाली, स्वर को सुधारने वाली, केशों के लिए बलवर्धक होती है। यह खांसी, दमा, कफ़, विकार, श्वास कष्ट, शुक्रदुर्बलता,  अल्सर, अम्ल-पित, आंतों की ऐंठन, हिचकी, पेशाब की जलन, मिर्गी, कब्ज , बवासीर, श्वेत प्रदर में गुणकारी है।

Saturday 15 December 2018

Exercise (व्यायाम) के समय सावधानी ओर पानी

मैं प्यास से मर रहा हूं... पानी हमारे स्वस्थ रहने के लिए कितना जरूरी


मैं प्यास से मर रहा हूं... यह शायद सबसे सटीक और सही वाक्य है। क्यों? क्योंकि हमारी जिंदगी पानी पर ही निर्भर है। जिस तरह एक कार को गैस, पेट्रोल या डीजल की जरूरत होती है, वैसे ही हमें पानी की जरूरत होती है। हमारे शरीर के सभी सेल्स और ऑर्गन्स को अपना कामकाज तरीके से करने के लिए पानी की जरूरत है।


जरूरी है शरीर में नमी- इंसानी शरीर के लिए सबसे जरूरी न्यूट्रिएंट्स में से है पानी। आमतौर पर शरीर का 60 से 75 फीसदी हिस्सा पानी होता है। पानी शरीर के तापमान को काबू में रखता है, जरूरी ऑर्गन्स की हिफाजत करता है, पाचन में मदद करता है, ऑक्सिजन और पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाता है। गैरजरूरी और जहरीले तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है। पानी की कमी से डीहाइड्रेशन, कब्ज, बेहोशी और तमाम दूसरी समस्याएं हो सकती हैं।
भोजन के बीच मे पानी पीना हितकर नहीं है भोजन करते समय ध्यान रखे भूख का 3 हिस्सा खाने के लिए 1 हिस्सा पानी के लिए खाली रखे ओर खाने के कम से कम 1 घंटे बाद पानी ले !   

कितना पानी पिएं?
एक इंसान को रोजाना औसतन 8 से 12 गिलास पानी की जरूरत होती है। अगर आप नियमित रूप से एक्सरर्साइज करते हैं तो आपको शरीर की नमी बनाए रखना मुश्किल होता है इसलिए एक्सर्साइज से पहले, एक्सर्साइज के दौरान और बाद में पानी पिएं।

व्यायाम से 1 घंटा पहले 1 गिलास पानी पिएं। व्यायाम के दौरान हर 15 से 30 मिनट में आधा गिलास और एक्सर्साइज के बाद दो गिलास पानी पिएं।

मिथ्याभ्रम  : व्यायाम के दौरान पानी पीने से दर्द या ऐंठन हो सकती है।


सच : यह सच के बिल्कुल उलट है। आपको एक्सर्साइज से पहले, एक्सर्साइज के दौरान और उसके बाद पानी की जरूरत होती है। एक्सर्साइज करने वाले शख्स के लिए पानी सबसे ज्यादा पोषक तत्व है। एक्सर्साइज के दौरान पानी या दूसरी तरल चीजों की कमी खासकर गर्मी के मौसम में, अकड़न, सिरदर्द, नमी की कमी की वजह बन सकती है। साथ ही एक्सर्साइज करने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। एक्सरर्साइज के दौरान थोड़ा-थोड़ा पानी पीने से व्यायाम  के वक्त पसीने के जरिए निकलने वाले जरूरी तत्वों की कमी पूरी हो जाती है।

Friday 14 December 2018

गॉलब्लेडर स्टोन का प्राकृतिक नुस्खा

https://vinayayayurved.blogspot.com/2018/11/blog-post_28.html

Rasayan chikitsa _रसायन चिकित्सा

https://vinayayayurved.blogspot.com/2018/12/blog-post_14.html

रसायन चिकित्सा - आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है


रसायन चिकित्सा - रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है। रसायन का सीधा सम्बन्ध धातु के पोषण से है। यह केवल औषध-व्यवस्था न होकर औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातुपोषण के माध्यम से दीर्घ आयुष्य, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं उत्तम बुद्धिशक्ति को उत्पन्न करना है। स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन करता है परंतु सूक्ष्म रूप से इसका सम्बन्ध मनःस्वास्थ्य से अधिक है। विशेषतः मेध्य रसायन इसके लिए ज्यादा उपयुक्त है। बुद्धिवर्धक प्रभावों के अतिरिक्त इसके निद्राकारी, मनोशांतिदायी एवं चिंताहारी प्रभाव भी होते हैं। अतः इसका उपयोग विशेषकर मानसिक विकारजन्य शारीरिक व्याधियों में किया जा सकता है।
रसायन सेवन में वय, प्रकृति, सात्म्य, जठराग्नि तथा धातुओं का विचार आवश्यक है। भिन्न-भिन्न वय तथा प्रकृति के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण तदनुसार किये गये प्रयोगों से ही वांछित फल की प्राप्ति होती है।
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1 से 2 चुटकी वचाचूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बाल्यावस्था में स्वभावतः बढ़ने वाले कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि कुशाग्र होती है।
11 से 20 साल तक के किशोंरों एवं युवाओं को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातुएँ पुष्ट होती हैं एवं शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
21 से 30 साल तक के लोगों को 1 चावल के दाने के बराबर शतपुटी लौह भस्म गोघृत में मिलाकर देने से रक्तधातु की वृद्धि होती है। इसके साथ सोने से पहले 1 चम्मच आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है।
31 से 40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का 10 से 15 मि.ली. रस अथवा उसका 1 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर देने से तनावजन्य मानसिक विकारों में राहत मिलती है व नींद अच्छी जाती है। उच्च रक्तचाप कम करने एवं हृदय को शक्ति प्रदान करने में भी वह प्रयोग बहुत हितकर है।
41 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को 1 ग्राम ज्योतिष्मिती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर देने तथा ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग करने से इस उम्र में स्वभावतः बढ़ने वाले वातदोष का शमन होता है एवं संधिवात, पक्षाघात (लकवा) आदि वातजन्य विकारों से रक्षा होती है।
51 से 60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति स्वभावतः घटने लगती है जो 1 ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गौघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से बढ़ती है। सोने से पूर्व 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ लेना भी हितकर है। गिलोय, गोक्षुर एवं आँवले से बना रसायन चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक सेवन करना अति उत्तम है।
मेध्य रसायनः शंखपुष्पी, जटामासी और ब्राह्मीचूर्ण समभाग मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से ग्रहणशक्ति व स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क को बल मिलता है, नींद अच्छी आती है एवं मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
आचार रसायनः केवल सदाचार के पालन से भी शरीर व मन पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं।

Tuesday 11 December 2018

Sciatica in Hindi आज आप जानेंगे साइटिका क्या है?, इसकी पहचान, साइटिका के लक्षण, साइटिका होने के कारण और साइटिका का इलाज क्या है Sciatica ke karan, lakshan, ilaj in hindi के बारें में। साइटिका साइटिक तंत्रिका (sciatic nerve) में एक प्रकार का दर्द है जो पीठ से होते हुए कूल्हों, नितंबों और पैर के निचले हिस्से को प्रभावित करती है। आमतौर पर साइटिका शरीर के सिर्फ एक तरफ के भाग को ज्यादा प्रभावित करती है। रीढ़ की हड्डी (spine) जब संकरी हो जाती है तो तंत्रिकाओं में अधिक दबाव पड़ने लगता है जिसके कारण इसमें सूजन और दर्द होता है एवं पैरों में सुन्नता महसूस होने लगती है।

साइटिका का दर्द बहुत गंभीर भी हो सकता है और कुछ मामलों में तो जल्दी इलाज कराने की भी आवश्यकता पड़ती है। जिन व्यक्तियों में साइटिका के कारण पैर कमजोर हो गए हों या आंत और ब्लैडर में परिवर्तन महसूस हो उन्हें सर्जरी कराने की जरूरत पड़ती है।
साइटिका के मुख्य लक्षण निम्न हैं
  • कमर में दर्द
  • पैर के पिछले हिस्से में दर्द होना और बैठने के बाद दर्द गंभीर हो जाना
  • कूल्हों में दर्द
  • पैरों में जलन या झुनझुनी का अनुभव
  • पैर को हिलाने-डुलाने में परेशानी, कमजोरी और सुन्नता का अनुभव
  • पैर के पिछले भाग में सिर्फ एक तरफ दर्द होना
  • तीव्र पीड़ा होना और उठने में परेशानी होना
साइटिका आमतौर पर शरीर के निचले भाग के सिर्फ एक हिस्से को प्रभावित करता है। साइटिका का दर्द कमर से पैर के जांघों और पैर के निचले हिस्सों में पहुंचता है। 

साइटिका होने के अन्य कारण इस प्रकार हैं – 

  • लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस – पीठ के निचले हिस्से (lower back) की रीढ़ की हड्डी संकरी हो जाती है। इस कारण साइटिका की समस्या पैदा हो जाती है।
  • स्पॉनडिलोलिस्थेसिस (spondylolisthesis) – एक ऐसी समस्या जिसमें डिस्क स्लिप नीचे से कशेरूकाओं के आगे निकल जाती हैं।
  • रीढ़ के भीतर ट्यूमर होना – यह तंत्रिका में साइटिका का कारण होता है।
  • संक्रमण (infection) – यह आमतौर पर रीढ़ को प्रभावित करता है।
  • कौडा एक्विना सिंड्रोम (Cauda equina syndrome) – साइटिका की यह सबसे गंभीर स्थिति है, हालांकि अमूमन यह जल्दी होता नहीं है लेकिन यह रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से की तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है। इसके लिए तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है।
  • इसके अलावा रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
सी भी प्रकार के खिंचाव वातवृद्धी या डेमेज के कारन पूरी नस मे दर्द होतां है जिसे हम आैर आप साइटीका (ग्रधसी) रोग से भी जानते है | यह रोग के बारे मे अगर देखा जाये तो यह रोग ज्यादातर महिलामे देखा जातां है तरहा तरहां के इलाज वं ऐलोपैथी आधुनिक दवाइयां सालो खाने के बावजूद भी यह रोग ठिक नही हो पातां है | जबकी आयुर्वेद थेरापी वं नेचरोपैथी मे इसका सटिक इलाज बतायां गयां है |*आयुर्वेदानुसार साइटिका रोग वातव्याधि है जो वात दूषित होने के कारन होने वाला रोग है आैर रोग की शरुआत यहां से होती है जबकी हमारे शरीरका अग्नी मंद हो मतलब की मंदाग्नी के कारन हमारा पाचन बिगड जातां है जिसके कारन हमे भयंकर कब्ज रहती है आैर आंतो मे पुरानां मल सडतां है आैर इससे वात उतपन्न होतां है | यह वात दूषित होकर साइटिक नामक नाडी मे प्रवेश करतां है आैर असह्य दर्द देतां है | जबकीकमर से शुरु होकर पिछे की तरफ से पुरे पैर मे लंभी नस होती है जिसको साइटिक वेइन कहते है | जो की बेक साइड मे होती है उसमे की आयुर्वेदिक शास्ञ वं ग्रंथो मे कुछ ही महिनो मे इस रोग से जड़ से निजात पा सकते है | आइये जानते है साइटिका को जड़ से समापेत करने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा के बारे मे |*
संजीवनी साइटिका स्पेशियल आैषधिय योग*
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*सिंहनाद गुगुल        40 ग्राम*
*ञिफला गुगुल        40 ग्राम*
*पुनर्नवां मंडुर.         20 ग्राम*
*महायोगराज गुगुल  20 ग्राम*
*निर्गुडी                   50 ग्राम*
*सौंठ.                      20 ग्राम*
*शुद्ध भल्लांतक      05 ग्राम*
*सहिंजन के पत्ते      30 ग्राम*
*सूतशेखर रस.       40 ग्राम*
*गोखरु कांटा         30 ग्राम*
कमर से शुरु होकर पिछे की तरफ से पुरे पैर मे लंभी नस होती है जिसको साइटिक वेइन कहते है | जो की बेक साइड मे होती है उसमे कीसी भी प्रकार के खिंचाव वातवृद्धी या डेमेज के कारन पूरी नस मे दर्द होतां है जिसे हम आैर आप साइटीका (ग्रधसी) रोग से भी जानते है | यह रोग के बारे मे अगर देखा जाये तो यह रोग ज्यादातर महिलामे देखा जातां है तरहा तरहां के इलाज वं ऐलोपैथी आधुनिक दवाइयां सालो खाने के बावजूद भी यह रोग ठिक नही हो पातां है | जबकी आयुर्वेद थेरापी वं नेचरोपैथी मे इसका सटिक इलाज बतायां गयां है |*
*आयुर्वेदानुसार साइटिका रोग वातव्याधि है जो वात दूषित होने के कारन होने वाला रोग है आैर रोग की शरुआत यहां से होती है जबकी हमारे शरीरका अग्नी मंद हो मतलब की मंदाग्नी के कारन हमारा पाचन बिगड जातां है जिसके कारन हमे भयंकर कब्ज रहती है आैर आंतो मे पुरानां मल सडतां है आैर इससे वात उतपन्न होतां है | यह वात दूषित होकर साइटिक नामक नाडी मे प्रवेश करतां है आैर असह्य दर्द देतां है | जबकी आयुर्वेदिक शास्ञ वं ग्रंथो मे कुछ ही महिनो मे इस रोग से जड़ से निजात पा सकते है | आइये जानते है साइटिका को जड़ से समापेत करने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा के बारे मे |*

Monday 10 December 2018

कड़वा चिरायता – गुणो से भरपूर


संस्कृत में किराततिक्त या भूनिम्ब के नाम से उल्लिखित चिरायता का वैज्ञानिक नाम स्वीर्टिया चिरेटा है. यह पूरे भारत में पाया जाता है लेकिन इसके बारे में सबसे पहले यूरोप में 1839 में पता चला था. स्वाद में बेहद कड़वा लगाने वाले चिरायता का औषधीय उपयोग त्वचा की समस्याओं, बुखार, सूजन आदि में किया जाता है. 2-3 फूट की ऊंचाई और चौड़ी पत्तियों वाली चिरायता का फल सफ़ेद रंग का होता है. चिरायता में सूखापन, गर्म, कड़वापन और तीखापन का गुण मौजूद होने के कारण इसका उपयोग कफ, पित्त और वात में संतुलनल बनाने के लिए भी किया जाता है. आइए चिरायता से होने वाले फायदे और नुकसान पर विस्तार से नजर डालें.

1. वजन कम करने में
वजन कम करना आज एक प्रमुख समस्या बन गया है. कई तरह की दवाएं आज बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन यदि अप चाहें तो चिरायता के प्रयोग से अपना वजन आसानी से कम कर सकते हैं. चिरायता में मौजूद मेथेनॉल आपका उपापचय बढ़ाकर आपका वजन कम करता है.
2.
प्रतिरक्षा तंत्र की मजबूती में
जाहिर है किसी भी रोग को ठीक करने या उसे न होने के लिए हमारे प्रतिरक्षा तंत्र का भलीभांति काम करना जरुरी है. चिरायता आपके शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती देने का काम करता है. इसके अलावा ये हमारे शरीर से तमाम विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम भी करता है.
3.
रक्तशोधक के रूप में
चिरायता स्वाद में कड़वा होता है. इसलिए ये भी करेला या नीम जो कि स्वाद में कड़वा होता है, की तरह ही एक रक्त शोधक के रूप में काम करता है. इसके साथ ही ये एनीमिया से भी आपको बचाता है.
4.
लीवर की समस्याओं में
चिरायता हमें लीवर की विभिन्न समस्याओं से लड़ने में भी मदद करती है. फैटी लीवर, सिरोसिस और कई अन्य लीवर से संबंधित बीमारियों को चिरायता लीवर की कोशिकाओं को रिचार्ज करके दूर करता है. चिरायता को एक अच्छा लीवर डिटॉक्सीफायर माना जाता है और ये लीवर की कोशिकाओं के काम-काज को उत्तेजित करती है.
5.
कब्ज में
कब्ज पेट से जुड़ी हुई बीमारी है. चिरायता इसके इलाज के लिए एक बहुत अच्छा विकल्प है. इसके लिए चिरायता के पौधे से बना काढ़ा तब तक पीना चाहिए जब तक की कब्ज ठीक न हो जाए.
6.
त्वचा रोगों में
चिरायता का अर्क त्वचा से संबंधित कई रोगों से आपकी रक्षा करता है. त्वचा पर चकते निकलना या सूजन में भी चिरायता का पेस्ट बनाकर लेप लगाने से ये आराम पहुंचाता है. इसके अलावा ये घावों और पिम्पल्स को भी ठीक करता है.
7.
सोरायसीस में
सोरायसिस के उपचार में भी चिरायता की सक्रीय भूमिका होती है. इसके लिए 4-4 ग्राम कुटकी और चिरायता एक कांच के बर्तन में 125 ग्राम पानी डालकर रख दें फिर अगली सुबह उस पानी को निथार कर पिएं और 3-4 घंटे तक कुछ न खाएं. लगातार दो सप्ताह ऐसा करने से आपको सोरायसिस में राहत मिलती है.
8.
शुगर को नियंत्रित करने में
रक्त शर्करा को नियंत्रित करने की चिरायता के क्षमता का उपयोग हम शुगर के उपचार में कर सकते हैं. इसका कड़वा स्वाद रक्त शर्करा के कई दोषों को दूर करने में हमारी मदद करता है. चिरायता अग्नाशयी कोशिकाओं में इन्सुलिन के उत्पादन को प्रोत्साहित करके रक्त शर्करा को कम करता है.
9.
गठिया में
गठिया एक ऐसी बिमारी है जिसमें जोड़ों में दर्द और कभी-कभी सूजन भी हो जाती है. चिरायता में सूजन को कम करने की क्षमता होती है जिसके कारण ये गठिया से भी हमें बचाता है. इसके अलावा इसमें दर्द, सूजन और लालिमा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है.
10.
आंत के लिए
जाहिर है आंत हमारे शरीर के प्रमुख अंगों में से है. इसमें आई खारबी के कारण कई तरह के विकार हो सकते हैं. आंत की कई बीमारियाँ तो इसमें होने वाले कीड़ों से भी होती है. चिरायता में पाया जाने वाला एंथेल्मिनेटिक गुण हमारे आंत में मौजूद कीड़ों को ख़त्म करता है.
11.
बुखार में
चिरायता का लाभ हमें बुखार जैसी कॉमन बीमारियों में भी नजर आता है. खासकरके मलेरिया बुहार में इसका बहुत लाभ मिलता है. बुजुर्गों के लिए तो चिरायता एक वरदान जैसा है क्योंकि इससे आप बहुत प्रभावशाली लेकिन कड़वी टॉनिक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.
12.
ब्लोटिंग में
चिरायता के कई उपयोगी गुणों में से एक ये भी है कि ये हमारे पेट में अम्ल उत्पादन को रोकती है. इसके अलावा ये आँतों की सुजन ठीक करके पेट को मजबूती भी देती है. इसकी सहायता से आप दस्त, गैस, ब्लोटिंग आदि समस्याओं से निपट सकते हैं.
13.
कैंसर में
कैंसर जैसी बेहद गंभीर बीमारियों से भी चिरायता हमें लड़ने में मदद करता है. जाहिर है कैंसर एक लगभग लाइलाज बिमारी के रूप में आज हमारे बीच मौजूद है. चिरायता का लाभ हमें लीवर कैंसर में मिल सकता है.
चिरायता के नुकसान
·         गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसका इस्तेमाल चिकत्सकीय परामर्श के बाद ही करें.
·         इसकी कड़वाहट से कुछ लोगों को उल्टी भी होने की संभावना रहती है.
·         मधुमेह के मरीज इसके इस्तेमाल में सावधानी बरतें

अगस्त-सितंबर के माह में रोगाणु अधिक मात्रा में फैलते हैं। इस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए महँगी दवाओं के स्थान पर घरेलू नुस्खे आजमाएँ। बरसों से हमारी दादी-नानी कड़वे चिरायते से बीमारियों को दूर भगाती रही है। दरअसलयह कड़वा चिरायता एक प्रकार की जड़ीबूटी है जो कुनैन की गोली से अधिक प्रभावी होती है। पहले इस चिरायते को घर में सूखा कर बनाया जाता था लेकिन आजकल यह बाजार में कुटकी चिरायते के रूप में उपलब्ध है। 

घर में चिरायता बनाने की विधि 
100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें। मात्र दो  दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा। बुखार ना होने की स्थिति में इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें। 

यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु झर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।



Thursday 29 November 2018

आप अपने भोजन में शामिल कर लेते हो तो आप निरोगी जीवन जी सकते है

आज में आपको कुछ छोटी पर अति महत्वपूर्ण जानकारी दे रहा हु जिन्हें अगर आप अपने भोजन में शामिल कर लेते हो तो आप निरोगी जीवन जी सकते है .......

हेल्थ बनाने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो न सिर्फ यह बहुत फायदेमंद
होता है क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे.....
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।
- अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।
- अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन ,कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
- अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है यह शरीर को सुंदर व स्वस्थ बनाता है।
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहुं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुद्घ करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुद्घ होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन फायदेमंद है।
- अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी, सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम
हड्डियों को मजबूत बनाता है।।।।।।।।।। उत्तम जैन

Wednesday 28 November 2018

गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा

आयुर्वेद का एक ऐसा चमत्कार जिसे देखकर एलॉपथी डॉक्टर्स भी अचरज करने लगे  जो डॉक्टर्स कहते थे के गाल ब्लैडर स्टोन अर्थात पित्त की थैली की पथरी निकल ही नहीं सकता, उनके लिए भी यह एक रिसर्च का विषय बन चुका है    सिर्फ एक नहीं अनेक मरीजों पर सफलता से आजमाया हुआ ये प्रयोग. जबकि इस प्रयोग की वास्तविक कीमत सिर्फ 30-40 रुपैये ही है. यह प्रयोग गाल ब्लैडर और किडनी  दोनों प्रकार के स्टोन को निकालने में बेहद कारगर है.

गाल ब्लैडर स्टोन की चमत्कारी दवा


अब आपको बताता हु यह   चमत्कारी दवा. ये कुछ और नहीं ये है गुडहल के फूलों का पाउडर अर्थात इंग्लिश में कहें तो Hibiscus powder. ये पाउडर बहुत आसानी से पंसारी से मिल जाता है. अगर आप गूगल पर Hibiscus powder नाम से सर्च करेंगे तो आपको अनेक जगह ये पाउडर online मिल जायेगा. और जब आप online इसको मंगवाए तो इसको देखिएगा organic hibiscus powder. आज कल बहुत सारी कंपनिया आर्गेनिक भी ला रहीं हैं तो वो बेस्ट रहेगा. मगर ध्यान रहे के ये पाउडर External use और internal Use के लिए अलग अलग आता है तो आपको सिर्फ Internal Use वाला ही लेना है. अगर ऐसा सही से ना लिखा हुआ हो तो आप गुडहल के फूलो कि पंखुड़ियों को धुप में सुखा लीजिये और इसका पाउडर कर लीजिये. कुल मिला कर बात ये है के इसकी उपलबध्ता बिलकुल आसान है. अब जानिये इस पाउडर को इस्तेमाल कैसे करना है.

गाल ब्लैडर स्टोन निकालने के लिए गुडहल के पाउडर के इस्तेमाल की विधि.

गुडहल का पाउडर एक चम्मच रात को सोते समय खाना खाने के कम से कम एक डेढ़ घंटा बाद गर्म पानी के साथ फांक लीजिये. ये थोडा कड़वा होता है  मगर ये इतना भी कड़वा नहीं होता के आप इसको खा ना सकें. इसको खाना बिलकुल आसान है. इसके बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है. स्टोन का साइज़ बहुत बड़ा होगा तो  उनको पहले दो दिन रात को ये पाउडर लेने के बाद सीने में अचानक बहुत तेज़ दर्द हो सकता है . मगर यह दर्द होता है  स्टोन के टूटने का.  अर्थात अगर स्टोन का साइज़ बड़ा है तो वो दर्द कर सकता है.

इस प्रयोग में बरती जाने वाली महत्वपूर्ण सावधानी.

पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन न करें। और अगर आपका स्टोन बड़ा है तो ये टूटने समय दर्द भी कर सकता है. और ये प्रयोग करने से पहले अगर आपका स्टोन आपकी cbd नलिका के साइज़ से बड़ा हो तो कृपया सिर्फ डॉक्टर की देख रेख में ही ये प्रयोग करें. और स्टोन को तोड़ने के लिए पाठकों से अनुरोध हैं के वो पहले 5 दिन हर रोज़ 5 गिलास सेब के जूस पियें. हर तीन घंटे के बाद एक गिलास सेब का जूस पीते रहें. और बाकी अपना खाना कम कर दीजिये. इस से 5 दिन में आपका स्टोन टुकड़े टुकड़े हो जायेगा. फिर दोबारा टेस्ट करवाएं. अगर स्टोन का साइज़ बड़ा रह जाए तो यह निकलने में cbd नलिका में फंस भी सकता है जो के अत्यंत खतरनाक हो सकता है. इसलिए जिन लोगों के स्टोन का साइज़ बड़ा हो वो केवल डॉक्टर की देख रेख में और अपने विवेक से इस प्रयोग को करें.

Sunday 25 November 2018

त्रिफला से कायाकल्प

                     त्रिफला से कायाकल्प-Triphala Rejuvenation
त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक व ऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्‍बे,गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।

हरड  - हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है

बहेडा - बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है

आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की  तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए।

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए । कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है  और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। 

1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

ओषधि के रूप में त्रिफला 

रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है। इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगा। शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।

एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है। त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है। त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।

चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।

त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है। 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।

5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।

त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।

डेढ़ माह तक नीचे बताए इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है कल्प के दिनों में खट्टे, तले हुए, मिर्च-मसालेयुक्त व पचने में भारी पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। 40 दिन तक मामरा बादाम का उपयोग विशेष लाभदायी होगा। कल्प के दिनों में नेत्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य करें।

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानीः दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाख जहर होता है । त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प - कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वर्ध्दाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और शुक्ष्म से शुक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने  भी लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।

ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।

उत्पाद विवरण- 
विनय त्रिफला रस (एलोवेरा युक्त ) – त्रिफला रस आयुर्वेद का वरदान है त्रिफला रस का प्रयोग आयुर्वेदचार्य सेकड़ो वर्षो से सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक करने में प्रयोग करते आ रहे है इसमें आयुर्वेद की मतानुसार वात ,पित और कफ तीन दोष माने गये है त्रिफला हरंड, बहेडा और आवला से मिलकर बनता है साथ मे एलोवेरा के संयोजन से ओर गुणकारी हो जाता है !और उक्त त्रिदोषो को दूर करता है इसके विस्तृत लाभ निम्न है :- • त्रिफला रस के सेवन से गैस,कब्ज ,एसिडिटी आदि की समस्या दूर होती है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है • यह लीवर की सभी समस्याओ को दूर कर लीवर को शक्ति प्रदान करता है • यह ब्लड प्रेसर को नियंत्रित करता है • यह केलोस्ट्रोल को संतुलित करता है • यह ह्रदय को शक्ति प्रदान कर ह्रदय गति को सामान्य करता है • त्रिफला रस का सेवन लाल रुधिर कणीकाओ के निर्माण को बढाता है • त्रिफला रस हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है • यह शरीर में इन्फेक्शन को रोकता है तथा सर्दी ,खासी ,कफ तथा एलर्जी में अत्यंत लाभ करी है • यह सीने एवं फेफड़ो में जमे हुए कफ को पिघलाकर बाहर निकालने में सहायक
विनय त्रिफला रस के लिए संपर्क करे - 84607 83401