Friday 6 November 2020

आम्लपित ( ऐसिडिटी ) रोग - कारण -उपाय - परहेज


किसी भी रोग की चिकित्सा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि
, रोग के कारण क्या है और उसके लक्षण क्या है? लक्षणो से पता चलता है कि, रोग किन दोषों के कुपित होने से हुआ है। आयुर्वेद में मुख्य तीन दोष है। कफ, पित्त और वायु। इन तीनों में से किसी एक, दो या तीनों दोषों के कुपित होने से रोग होता है।

वायु से 80 प्रकार के रोग होते है (जैसे पक्षाघात)। अगर शरीर में या शरीर के किसी अंग में दर्द होता है तो जरूर वायु ही करणभूत होगा। वायु का प्रकोप हमेशा दोपहर के बाद बढ़ जाता है और शाम को बहुत दर्द होता है। यह वायु के लक्षण है।

पित्त से 40 प्रकार के रोग होते है (जैसे अम्लपित्त)। शरीर में जलन के लिये पित्त ही करणभूत है। इसका प्रकोप दोपहर को ज्यादा होता है।


अम्लपित्त के कारण:

परस्पर विरुद्ध (मछली, दूध आदि), दूषित, अम्ल, विदाही (जलन करनेवाला) और पित्त को कुपित करनेवाले पदार्थ खाने-पीने से पित्त कुपित होता है और अपने करणों से संचित हुआ पित्त अम्लपित्त रोग (Acidity) उत्पन्न कर देता है। इस रोग को एसिडिटी और Heartburn भी कहते है।  

अम्लपित्त के लक्षण (Acidity Symptoms):

भोजन का ठीक परिपाक नहीं होता, अनायास थकावट मालूम होती है, उबकाई, कड़ुवी और खट्टी डकारें आती है, शरीर में भारीपन रहता है, ह्रदय और कंठ में जलन होता है, अरुचि होती है। इन लक्षणों को देखकर वैध अम्लपित्त रोग (Acidity) निश्चित करते है।
अम्लपित्त की चिकित्सा: घरेलू नुस्खे, शास्त्रोक्त औषधियाँ और पेटंटेड औषधियाँ।


अधोगत अम्लपित्त के लक्षण:

प्यास, मूर्छा, भ्रम (चक्कर), मोह तथा पीला, काला या लाल रंग का पित्त गुदा मार्ग से गिरता है और दुर्गंध आती है, उबकाई, कोठ, मंदाग्नि, रोमांच, पसीना और शरीर में पीलापन ये लक्षण अम्लपित्त की अधोगति होने पर प्रकट होते है। (सदा नहीं रहते, कभी-कभी होते है)

ऊर्ध्वगत अम्लपित्त के लक्षण:

उल्टी का रंग हारा, पीला, नीला या कुछ लाल होता है। मांस के धोवन के समान अथवा अत्यंत चिकना और स्वच्छ होता है। भोजन विदग्ध होने पर अथवा बिना भोजन किये ही तिक्त और अम्लपित्त वमन (उल्टी) होता है। इसी प्रकार की डकारें भी आती है। ह्रदय, कंठ, कोख में जलन और सिर में पीड़ा होती है।

कफ-पित्त के लक्षण:

हाथ-पाँव में जलन और बड़ी गर्मी मालूम होती है। भोजन में अत्यंत अरुचि, बुखार, शरीर में खुजली होती है, सैंकड़ों फुंसियाँ निकलती है या चकते पड़ जाते है। ऊपर कहे रोग समूह भी होते है। ये लक्षण कफ-पित्त के है।

वातयुक्त अम्लपित्त (एसिडिटी), वात-कफयुक्त अम्लपित्त और कफयुक्त अम्लपित्त को बुद्धिमान वैध दोषों के लक्षण देखकर पहचाने, क्योंकि यह रोग वैधों को छर्दि (उल्टी) और अतिसार (Diarrhoea) के भ्रम में डाल देता है। उनके लक्षण अलग-अलग होते है।

वातयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

कंप, प्रलाप (बेहोशी में बोलना), मूर्छा, अंगों में झुन-झूनाहट, अंगों में पीड़ा, अंधकार-सा मालूम होना, चक्कर, मोह और रोमांच होता है।

कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

रोगी कफ थूकता है, शरीर में भारीपन और जड़ता होती है, अरुचि होती है, शरीर में टूटने की सी पीड़ा होती है, शरीर शीतल बना रहता है, उल्टी होती है, मुंह में कफ भरा-सा रहता है, जठराग्नि और बल की क्षीणता होती है, शरीर में खुजली होती है, नींद अधिक आती है।

वात-कफयुक्त अम्लपित्त के लक्षण:

इस में वात और कफ दोनों के लक्षण प्रकट होते है। खट्टी, कड़ुवी, चरपरी डकारें आती है और ह्रदय, कोख और कंठ में जलन होती है); चक्कर, मूर्छा, अरुचि, उल्टी, आलस्य, शिर में पीड़ा, मुंह से लार गिरना और मुंह में मिठास मालूम होना, ये लक्षण प्रकट होते है। 

कुछ वर्ष पहले हम जल्दबाजी, चिंता और तीखा आहार यह एसिडिटी के कारण मानते थे। लेकिन इससे केवल तत्कालिक एसिडिटी होती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अब इसका असली कारण एच. पायलोरी जीवाणु है। यह संक्रमण दूषित खान-पान से होता है।

कुछ लोगों को गरम खाना, शराब, ऍलर्जी और तले हुए पदार्थों के कारण तत्कालिक अम्लपित्त होता है। ज्यादातर यह शिकायत कुछ समय बाद या उल्टी के बाद रूक जाती है। गर्भावस्था में कभी कभी अंतिम महिनों में जादा आम्लता महसूस होती है। तंबाखू खाने से या धूम्रपान के कारण ऍसिडिटी होती है। अरहर या चना दाल या बेसन के कारण कुछ लोगों को अम्लपित्त होता है। मिर्च खाने से भी ऍसिडिटी होती है। कुछ दवाओं के कारण पेट में ऍसिडिटी- जलन होती है

जब गलत खानपान और अपच के कारण पेट में पि‍त्त के विकृत होने पर अम्ल की अधिकता हो जाती है, तो उसे अम्लपित्त कहते हैं। यही अम्लपित्त हाईपर एसिडिटी कहलाता है। आइए जानते हैं, इसके कारण, लक्षण और इससे बचने के उपाय - 

एसिडिटी की शुरुवात मुह में पानी छूटकर और जी मचलने से होती है। ऍसिडिटी का दर्द सादे भोजन से कम होता है, लेकिन तीखे भोजन से तुरंत शुरू होता है। अम्लपित्तवाला दर्द छाती और नाभी के दरम्यान अनुभव होता है। जलन निरंतर होती है लेकिन ऐंठन-दर्द रूक रूक के होता है। कभी कभी दर्द असहनीय होता है।

पीड़ित व्यक्ति दर्द स्थान उंगली से अक्सर सूचित कर सकता है। पेट-छाती की जलन कभी कभी दिल के दौरे से ही होती है। ऐसा दर्द छाती से पीठ की ओर चलता है इसके साथ पसीना, सांस चलना, घबडाहट आदि लक्षण होते है। 

अम्लपित्त या जलन तत्कालिक हो तो अकसर उल्टी से ठीक हो जाती है। अन्यथा अन्न पाचन के बाद आगे चलकर याने १-२ घंटो में तकलीफ रूक जाती है। अम्लपित्त जलन पर एक सरल उपाय है अँटासिड की दवा। इसकी १-२ गोली चबाकर निगले या ५-१० मिली. पतली दवा पी ले।  आयुर्वेद के अनुसार सूतशेखर मात्रा अँटासिड के लिये एक अच्छा विकल्प है।

तीखे, मसालेदार और जादा गरम पदार्थ, तंबाकू, धूम्रपान और शराब सेवन न करे। अरहर, चनादाल या बेसन से मूँग अच्छा होता है। अम्लपित्त ऍलर्जी का प्रभाव हो तो आहार में उस चीज का पता करना पडेगा। जाहिर है की इस पदार्थ को न खाए। योगशास्त्रनुसार तनाव से छुटकारा होने पर ऍसिडिटी कम होती है। इसके लिये योग उपयोगी है।एच. पायलोरी जीवाणू संक्रमण टालने के लिए खाना पीना साफ़ सुथरा होना चाहिए। दर्द और जलन अक्सर होती रहे तो जल्दी ही डॉक्टर से मिलकर अल्सर याने छाला टालना चाहिए

अम्लपित्त (Acidity) के घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद और हानीरहित होते है और काम भी अच्छा करते है। हमने आप के लिये कुछ बहुत ही उपयोगी घरेलू नुस्खे चुने है। शास्त्रोक्त और पेटंटेड दवा भी आपकी जानकारी के लिये लिख रहे है।

अम्लपित्त के घरेलू उपाय: ---

शंख भस्म 1 ग्राम और सौंठ का चूर्ण आधा ग्राम ले। दोनों को शहद के साथ मिलाकर चाटने से अम्लपित्त (Acidity) दूर हो जाता है।

50 ग्राम प्याज को काटकर गाय के ताजे दही मे मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) ठीक हो जाता है

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

इमली के चिया (बीज रहित) का चूर्ण 100 ग्राम, जीरा 25 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनाकर शीशी मे सुरक्षित रखे। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा मे सुबह-शाम जल के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी) मे अवश्य लाभ होता है।

दालचीनी 2 ग्राम, छोटी इलायची 5 ग्राम, अनारदाना 2 ग्राम, पोदीना शुष्क 3 ग्राम, काला जीरा 1 ग्राम, मुनक्का 5 ग्राम, पानी 90 ग्राम, गुलकंद 20 ग्राम ले। उपरोक्त सभी औषधियों को पानी मे पीसकर तथा गुलकंद को मल-छानकर पिलाना अम्लपित्त मे विशेष लाभकारी है। यह अम्लपित्त नाशक उत्तम (पेय) सीरप है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती तथा त्रिफला का क्वाथ बनाय ठंडा होने पर शहद मिलाकर पीने से अनेक प्रकार के पित्तरोग तथा अम्लपित्त (एसिडिटी) नष्ट होता है।

अड़ूसा, गिलोय व बड़ी कटेरी के क्वाथ को शहद मिलाकर पीने से मनुष्य अम्लपित्त, खांसी, श्वास, बुखार और उल्टी को जीतता है।

शहद के साथ पीपल अम्लपित्त को नष्ट करती है। इसी प्रकार जंबीरी नींबू का स्वरस सायंकाल पीने से अम्लपित्त नष्ट होता है।

गुड, छोटी पीपल और हरड़ समान भाग ले गोली बना सेवन करने से अम्लपित्त (Acidity) व कफ नष्ट होता तथा अग्नि दीप्त होती है।

निम्ब का पंचांग (फूल, फल, पत्र, छाल तथा मूल) मिलित 1 भाग, विधारा 2 भाग, सत्तू 10 भाग, तथा शक्कर से मीठाकर ठंडे जल के साथ शहद मिलाकर पीने से पित्त-कफज शूल तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।  

चूर्ण: छोटी इलायची, वंशलोचन, हरड़, तेजपात, छोटी-बड़ी दोनों दालचीनी, पिपरामूल, चंदन, नागकेशर इनका चूर्ण कर समान भाग मिश्री मिलायके सेवन करे तो घोर अम्लपित्त को आठ दिन में दूर करें। यह बौद्धसर्वस्व में लिखा है।

गिलोय, नीम की छाल, परवल के पत्ते और त्रिफला के क्वाथ को शीतल होने पर मधु मिलाकर पिवे, तो अत्यंत कठिन और अनेक रूपवाला अम्लपित्त-रोग दूर हो जाता है। मात्रा: 4 तोला (1 तोला = 11.66 ग्राम)

भोजन के बाद आंवले के चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कंठदाह (गले में जलनयुक्त) अम्लपित्त बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।

त्रिफला, परवल, कुटकी इनके क्वाथ में खांड, मुलहठी का चूर्ण तथा शहद को डालकर पीने से बुखार, उल्टी तथा अम्लपित्त नष्ट होता है।

हरड़, पीपल, द्राक्षा, खांड, धनियाँ तथा जवासा; इनके चूर्ण को शहद के साथ चाटने से अम्लपित्त नष्ट होता है। मात्रा: 4-6 ग्राम।

गिलोय, खैर, मुलेठी और दारूहल्दी के (4 तोला) क्वाथ में मधु मिलाकर पान करे (पिवे) अथवा मुनक्का, मधु और गुड मिलाकर हरीतकी का सेवन करे तो अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

नीम का पंचांग (छाल, पत्र, पुष्प, मूल और फल) 1 भाग, विधारा 2 भाग और जव का सत्तू 10 भाग, इन औषधों में आवश्यकतानुसार चीनी मिला देवें। मात्रा – 2 तोले। मधु और शीतल जल के साथ। इस औषध के सेवन करने से दारुण अम्लपित्त-रोग और पित्त कफज शूल दूर हो जाते है।

2-3 ग्राम पीपर के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करने से अम्लपित्त रोग नष्ट हो जाता है। सायंकाल में 2-3 तोला नींबू का स्वरस पीने से भी अम्लपित्त रोग शांत हो जाता है।

मुनक्का 50 ग्राम, सौंफ 25 ग्राम दोनों को यवकूट (पीसकर) कर 200 ग्राम पानी मे रात्री को भिगो दे। तदुपरान्त प्रातःकाल मसलकर छान ले और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से अम्लपित्त मे लाभ होता है

शास्त्रोक्त दवाए (Ayurvedic Medicine for Acidity): नीचे दी गई शास्त्रोक्त दवाओ का अम्लपित्त में उपयोग होता है।   

सब प्रकार के अम्लपित्त पर हितावह: (Ayurvedic Medicine for Acidity)

(1)जीरकादि मोदक

(2)कूष्मांडावलेह

(3)द्राक्षावलेह

(4)सूतशेखर रस

(5) शुंठीखंड

वातप्रकोप सहित अम्लपित्त पर:

(1)रौप्य भस्म  

(2)अविपत्तिकरचूर्ण

पेट में व्रण (ulcer) पर:

ताप्यादि लोह

पित्त की तीक्ष्णता और अम्लता को कम करने हेतु:

प्रवाल पिष्टी

कामदूधा रस

ताप्यादि लोह

सूतशेखर रस

अन्य अम्लपित्त नाशक योग:

कुष्मांड अवलेह

शुंठी खंड

शतावरी धृत

जीरकाद्य धृत: गौ का धृत (घी) 128 तोला, कल्क (आर्द्र औषध को शीला पर पीस देवे अथवा शुष्क औषध को जल देकर अच्छी तरह पीस देवे तो उसे कल्क कहते है) के लिये धनिया और जीरा मिलाकर 32 तोला, पाक के लिये जल 6 सेर 32 तोला विधिपूर्वक पकावे। इसके सेवन से अम्लपित्त, मंदाग्नि, तथा उल्टी अच्छी हो जाती है। मात्रा: 6-6 ग्राम सुबह-शाम


Thursday 5 November 2020

अनुलोम विलोम प्राणायाम : विधि और लाभ



👩🏻1⃣👉🏿अनुलोम विलोम प्राणायाम क्या है👈🏿अनुलोम विलोम एक प्राणायाम है। इसे अंग्रेजी मैं Alternate Nostril Breathing कहते हैं। और इसे नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते है। यहाँ पर अनुलोम और विलोम दोनों अलग अलग शब्द है जिनका अलग अलग अर्थ है जैसे अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अनुलोम विलोम प्रणायाम में सांस लेने और छोड़ने की विधि को बार-बार दोहराया जाता है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। *तो जानते है इस प्राणायाम को कैसे करें और क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए और इसके क्या क्या फायदे हैं➖*

*👩🏻2⃣👉🏿अनुलोम विलोम करने की विधि👈🏿* सबसे पहले एक आरामदायक मुद्रा मैं बेठ जाएँ । यहाँ पर एक ध्यान देने की बात है की जब आप इस प्राणायाम की शुरुआत करते हैं तो पहले बाएं नाक छिद्र से ही करें और अंत भी इससे ही करें । अब नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें…अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें…याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया 10-15 मिनट तक दुहराएं। सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए।हमारे शरीर की सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है। बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और बायी नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी कहते है। चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम  हवा अन्दर जती है।थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रहता है।

*👩🏻3⃣👉🏿अनुलोम विलोम प्राणायाम के फायदे➖👇🏾👇🏾👇🏾*

*🌹1⃣👉🏿हार्ट ब्लाँकेज में फायदेमंद👈🏿*  इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हार्ट की ब्लाँकेज से राहत मिलती है।हार्ट ब्‍लॉकेज दिल की धड़कन से संबंधित समस्‍या है। कई बार बच्‍चों में यह समस्‍या जन्‍मजात होती है, जबकि कुछ लोगों में यह समस्‍या बड़े होने के बाद शुरू होती है। जन्‍मजात होने वाली समस्‍या को कोनगेनिटल हार्ट ब्‍लॉक जबकि बड़े होने पर हार्ट ब्‍लॉकेज की होने वाली समस्‍या को एक्‍वीरेड हार्ट ब्‍लॉक कहते हैं।

*🌹2⃣👉🏿सकारात्मक सोच बढाने हेतु👈🏿*  इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हम अपनी स्मरणशक्ति व् सकारात्मक सोच बढ़ा सकते हैं। जब हमारी सोच सकारात्मक बन जाती है तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आने लगते है ।और इसके साथ-साथ ही इसके अभ्यास से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती हैं।

*🌹3⃣👉🏿मन व् दिमाग को करे शांत👈🏿* इसके नियमित अभ्यास से मानसिक तनाव दूर होकर मन शांत होता है ।चिकित्सा शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है। तो आप इन सब से छुटकारा पाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम को करें।

*🌹4⃣👉🏿इन बिमारियों को ठीक करता है👈🏿* आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज घीसना, हाई ब्लड प्रेशर और लो ब्लड प्रेशर दोनों ही ठीक हो जाते हैं।

*🌹5⃣👉🏿किडनी को ठीक रखता है👈🏿* किडनी स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती।वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं।

*🌹6⃣👉🏿कैंसर रोग में फायदेमंद👈🏿* इस प्राणायाम से कैंसर रोग में भी लाभ मिलता है |कर्कट रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि, रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है।

*🌹7⃣👉🏿स्मरण शक्ति बढती है👈🏿* इसके नियमित अभ्यास से स्मरण शक्ति बढती है ।स्मरण शक्ति हमेशा ध्यान और मन की एकाग्रता पर ही निर्भर होती हैं I हम जिस तरफ जितना अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे उस तरफ हमारी विचार शक्ति उतनी ही अधिक तीव्र हो जायेगी।

*🌹8⃣👉🏿सर्दी जुकाम को ठीक करता है👈🏿* इस प्राणायाम से सर्दी जुकाम से राहत मिलती है।सामान्य ज़ुकाम को नैसोफेरिंजाइटिस, राइनोफेरिंजाइटिस, अत्यधिक नज़ला या ज़ुकाम के नाम से भी जाना जाता है। यह ऊपरी श्वसन तंत्र का आसानी से फैलने वाला संक्रामक रोग है जो अधिकांशतः नासिका को प्रभावित करता है।

*🌹9⃣👉🏿ब्रेन ट्युमर में फायदेमंद👈🏿* इस प्राणायाम को करने से ब्रेन ट्यूमर में काफी लाभ मिलता है।मस्तिष्क अर्बुद (ब्रेन ट्यूमर) मस्तिष्क में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि है जो कैंसरयुक्त या कैंसरविहीन हो सकती है। इसकी परिभाषा असामान्य और अनियंत्रित कोशिका विभाजन से उत्पन्न किसी भी अन्तः कपालिकय अर्बुद के रूप में की जाती है, जो साधारणतः या तो मस्तिष्क के भीतर कपाल नाड़ियों में, मस्तिष्क के आवरणों में, कपाल, पीयूष और पीनियल ग्रंथियों, या प्राथमिक तौर पर अन्य अवयवों में स्थित कैंसरों से फैल कर उत्पन्न होता है।

*🌹🔟👉🏿रोग-प्रतिकारक शक्ती बढती है👈🏿* इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ जाती है।अगर हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ति सही है तो हम बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं |

*🌹1⃣1⃣👉🏿शरीर के तापमान को रखे संतुलित👈🏿*  इसके नियमित अभ्यास से शरीर का तापमान संतुलित रहता है।जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है।

*🌹1⃣2⃣👉🏿शुगर की बीमारी में फायदेमंद👈🏿* सुगर के रोगियों के लिए यह प्राणयाम बहुत ही लाभदायक है ।डायबिटीज या मधुमेह उस चयापचय बीमारी को कहा जाता है, जहाँ व्यक्ति जिसमे व्यक्ति के खून में शुगर (रक्त शर्करा) की मात्रा जरुरत से ज्यादा हो जाती है।

*🌹1⃣3⃣👉🏿फेफड़ों को मजबूत बनता है👈🏿*  इसका सबसे अच्छा फायदा ये है की ये हमारे फेफड़ों को मजबूत बनाता है ।फेफड़े हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग हैं। इंसान हर रोज करीब 20 हजार बार सांस लेता है और हर सांस के साथ जितनी ज्यादा ऑक्सीजन शरीर के अंदर पहुंचती है, शरीर उतना ही सेहतमंद बना रहता है। इसके लिए जरूरी है कि फेफड़ेे स्वस्थ रहें।

*🌹1⃣4⃣👉🏿ह्रदय रोगों में फायदेमंद👈🏿*  इस प्राणायाम के अभ्यास से हम ह्रदय के ज्यादातर सभी रोगों को नष्ट कर सकते हैं क्यूंकि ह्रदय से भी हमारे बहुत से रोग उत्पन्न होते हैं जैसे हर्ट अटैक, ब्लोकैज इत्यादि | अगर हमारा हर्दय सही है तो हम इन रोगों से छुटकारा पा सकते हैं।

*🌹1⃣5⃣👉🏿एकाग्रता को बढाता है👈🏿* मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढती है ।हालांकि एकाग्रता को बढ़ाना एक मुश्किल काम है, पर यह नामुमकिन नहीं है. एकाग्रता को बढ़ाने के लिए ढृढ़ता बेहद जरूरी है|

*🌹1⃣6⃣👉🏿Oxygen की मात्रा को रखे संतुलित👈🏿* भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करने से से व्यक्ति के शरीर में oxygen की मात्रा हमेशा संतुलित रहती है। और इसके साथ-साथ ही शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है । शरीर मे ऑक्सीजन का स्तर 99% होना चाहिए, यह 96% से कम हो जाए तो व्यक्ति हाइपोऑक्सिया का शिकार हो जाता है। फेफड़ों के रोग होने पर सबसे पहले ऑक्सीजन का स्तर घटता है।

*🌹1⃣7⃣👉🏿पेट की चर्बी को करता है कम👈🏿* यह प्राणायाम पेट की चर्बी को कम करने में हमारी मदद करता है ।पेट की चर्बी या शरीर के अन्य भागों की चर्बी, वसा की एक विशेष रूप से हानिकारक प्रकार है जो आपके अंगों के आसपास जमा होती है।

*🌺4⃣👉🏿सावाधानी बरतें👈🏿* यह प्राणायम हमेशा खाली पेट करें।भोजन करने के तुरंत बाद इस प्राणायाम को कभी न करें बल्कि 4-5 घंटे का अन्तराल करें सुबह साम खाली पेट आप इस प्राणायाम को कर सकते हैं।साँस लेते समय मन ही मन मे ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए। क्यूंकि इस उच्चरण से हमरे मन पर सकारात्मक प्रभाव प्रभाव पड़ता है।

*👩🏻5⃣👉🏿ध्यान देने योग्य बात👈🏿* *शुगर, ब्लड प्रेशर और गर्भवती महिलायों को इस प्राणायाम को करते समय सांस ज्यादा देर तक नहीं रोकनी चाहिए।

Tuesday 3 November 2020

स्वास्थ्य : गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा

स्वास्थ्य : गाल ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन निकालने का नुस्खा: आयुर्वेद का एक ऐसा चमत्कार जिसे देखकर एलॉपथी डॉक्टर्स भी अचरज करने लगे  जो डॉक्टर्स कहते थे के गाल ब्लैडर स्टोन अर्थात पित्त की थैली की...

पेशाब से जुड़ी समस्याएं और हर्बल नुस्ख़े



50 वर्ष की उम्र पार करते ही महिलाओं व पुरुषों में बार-बार लघुशंका की शिकायतें शुरू हो जाती है, इसके अलावा पेशाब में संक्रमण की समस्याएं भी देखने आती हैं। समय पर सटीक इलाज और सावधानी के अभाव में यह बीमारी लगातार बढ़ती जाती है 

पेशाब में संक्रमण होना या मूत्र विसर्जन के दौरान दाह होना जैसी समस्याएं बेहद आम है। अक्सर खान-पान में गड़बड़ी और जीवनचर्या में अचानक आए बदलाव की वजह से कई बार इस तरह की समस्याओं का सामना करना होता है। अक्सर देखा गया है कि 50 वर्ष की उम्र पार करते ही महिलाओं व पुरुषों में बार-बार लघुशंका की शिकायतें शुरू हो जाती है, इसके अलावा पेशाब में संक्रमण की समस्याएं भी देखने आती हैं। समय पर सटीक इलाज और सावधानी के अभाव में यह बीमारी लगातार बढ़ती जाती है। बुजुर्गों में मुख्यत: इसका कारण पेशाब में इंफेक्शन होना ही होता है। इसके अलावा महिलाओं में मासिक चक्र के बंद होने के बाद हार्मोन में परिवर्तन, गलत खान-पान एवं मधुमेह भी एक खास वजह होती है। पेशाब से जुड़ी इस तरह की समस्याओं से करीब 50 फीसदी से ज्यादा पुरुष, 60 फीसदी से ज्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं। इन सब के अलावा बच्चों में भी मूत्र से जुड़े अनेक विकार देखे जा सकते हैं जिनमें से प्रमुख बिस्तर पर पेशाब करना है। यदि संतुलित जीवनशैली को अपनाया जाए, सही भोज्य पदार्थों और आदतों को अपना कर इस तरह की अनेक समस्याओं से बचा जा सकता है

सुदूर ग्रामीण अंचलों में आज भी पारंपरिक हर्बल जानकार आस-पास उपलब्ध जड़ी-बूटियों की मदद से इन समस्याओं का निदान करते हैं, चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ खास नुस्खों की जिन्हें आज भी पारंपरिक वैद्य अपनाए हुए हैं, हालांकि इनमें से अनेक नुस्खों पर किसी तरह की वैज्ञानिक शोध नहीं हुई है। अत: पाठकों से अनुरोध है कि अपने चिकित्सक की जानकारी में इन नुस्खों का आजमाएं। 
1. पेशाब में संक्रमण होने की दशा में डांग-गुजरात के आदिवासी रोगियों को एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद और दो चम्मच दालचीनी की छाल का चूर्ण मिलाकर देते हैं।

2. पीपल के सूखे फल मूत्र संबंधित रोगों के निवारण के लिये काफी कारगर माने जाते हैं। आदिवासी इसके सूखे फलों का चूर्ण तैयार कर प्रतिदिन एक चम्मच चूर्ण को शक्कर या थोड़े से गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को देते हैं, माना जाता है कि इससे पेशाब संबंधित समस्याओं जैसे पेशाब में जलन होना, खासकर प्रोस्ट्रेट की समस्याओं में रोगी को बेहतर महसूस होता है।

3. पारंपरिक हर्बल जानकारों के अनुसार जिन्हें अक्सर पेशाब में जलन की शिकायत हो, उन्हें फूल गोभी की सब्जी ज्यादा खानी चाहिए। फूलगोभी को साफ धोकर कच्चा चबाया जाना भी काफी हितकर होता है

4. पेशाब में जलन होने पर अमलतास के फल के गूदे, अंगूर और पुनर्नवा की समान मात्रा (प्रत्येक 6 ग्राम) लेकर 250 मिली पानी में उबाला जाता है और 20 मिनट तक धीमी आँच पर उबाला जाता है। ठंडा होने पर रोगी को दिया जाए तो पेशाब में जलन होना बंद हो जाती है।

5. नींबू का रस एक चम्मच, 2 चम्मच शक्कर और चुटकी भर नमक पानी में मिलाकर पीने से पेशाब की जलन में आराम मिलता है। मध्य प्रदेश में आदिवासी हर्बल जानकार इस दौरान नाभि पर चूना लेपित कर देते हैं और रोगी को ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं। 

6. छुई-मुई के पत्तों (करीब 4 ग्राम) को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है। आदिवासी मानते हैं कि पत्तियों के रस की 4 चम्मच मात्रा दिन में एक बार लेने से भी फायदा होता है। 

7. तेजपान की पत्तियों का चूर्ण पेशाब संबंधित समस्याओं में काफी फायदा करता है। दिन में दो बार 2-2 ग्राम चूर्ण का सेवन खाना खाने के बाद किया जाए तो पेशाब से जुड़ी कई तरह की समस्याओं से निजात मिल जाती है।

8. पेशाब में जलन होने पर बरगद की हवाई जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2 ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

 9. पातालकोट के आदिवासी सफेद मूसली की जड़ों के चूर्ण के साथ इलायची मिलाकर दूध में उबालते हैं और पेशाब में जलन की शिकायत होने पर रोगियों को दिन में दो बार पीने की सलाह देते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इलायची शांत प्रकृति की होती है और ठंडक देती है। 

10. आदिवासियों की मानी जाए तो जिन्हें पेशाब करने के समय जलन की शिकायत होती है उनके लिए आँवला एक फायदेमंद उपाय है। आँवले के फलों का रस तैयार कर इसमें स्वादानुसार शक्कर और शहद और घी मिलाकर पिया जाए तो पेशाब की जलन शाँत हो जाती है।


11. पेशाब करते समय यदि जलन महसूस हो तो गिलोय के तने का चूर्ण (10 ग्राम), आंवला के फलों का चूर्ण (10 ग्राम), सोंठ चूर्ण (5 ग्राम), गोखरु के बीजों का चूर्ण (3 ग्राम) और अश्वगंधा की जड़ों का चूर्ण (5 ग्राम) लिया जाए और इसे 100 एमएल पानी में उबाला जाए, प्राप्त काढ़े को रोगी को दिन में एक बार प्रतिदिन एक माह तक दिया जाना चाहिए।

12. ताजा मक्का के भुट्टे को पानी में उबाल लिया जाए और छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन और गुर्दों की कमजोरी भी दूर होती है। 

13. अश्वगंधा की जड़ों का रस और आंवला के फलों का रस समान मात्रा में (आधा-आधा कप) लिया जाए तो मूत्राशय और मूत्र मार्ग में पेशाब करते समय जलन की शिकायत खत्म हो जाती है और माना जाता है कि यह पथरी को गलाकर पेशाब मार्ग से बाहर भी निकाल फेंकता है। 

14. सौंफ की जड़ों का रस (25 एमएल) दिन में दो बार लेने से पेशाब से जुड़ी समस्याओं में तेजी से राहत मिलती है। पातालकोट में आदिवासी सौंफ, कुटकी और अदरक के मिश्रण को लेने की सलाह देते हैं। 

15. पुर्ननवा की जड़ों को दूध में उबालकर पिलाने से बुखार में तुरंत आराम मिलता है। इसी मिश्रण को अल्पमूत्रता और मूत्र में जलन की शिकायत से छुटकारा मिलता है। 

16. डाँग के आदिवासी तरबूत का रस मिट्टी के बर्तन में लेकर उसे रात के समय में खुले आसमान में रख देते है ताकि इस पर ओंस की बूंदे पड़े, सुबह इसमें चीनी मिलाकर उस रोगी को देते है जिसके लिंग पर घाव हुआ हो और मूत्र दाह में जलन होती हो। माना जाता है कि इस तरह की समस्याओं के लिए यह उपाय काफी कारगर है।

17. जिन्हें पेशाब होने में तकलीफ होती है उन्हें दूध के साथ पान के पत्ते को उबालकर पीना चाहिए, माना जाता है कि पान पेशाब होना सामान्य कर देता है।

 18. पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार जिन्हें पेशाब के दौरान दर्द होने की शिकायत हो, उन्हें सागौन के फूलों का काढा तैयार करके पीने से लाभ मिलता है। 

19. लगभग 15 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर लेने से पेशाब करते समय होने वाले दर्द से निजात मिलती है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार दूबघास की पत्तियों को पानी के साथ मसलकर स्वादानुसार मिश्री डालकर अच्छी तरह से घोट लेते हैं फिर छानकर इसकी 1 गिलास मात्रा रोजाना पीने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है।

 20. आदिवासियों का मानना है कि जिन पुरुषों को स्पर्मेटोरिया (पेशाब और मल करते समय वीर्य जाने की शिकायत) हो उन्हे गेंदा के फूलों (करीब 10 ग्राम) का रस पीना चाहिए।

21. पेशाब से जुड़ी समस्याओं और पथरी के दर्द में राहत के लिए तुलसी भी रामबाण की तरह ही है। तुलसी की पत्तियों का चूर्ण और हर्रा के फलों का चूर्ण मिलाकर खाने से पेशाब करते समय होने वाले दर्द में काफी आराम मिलता है। 

22. गोखरू संपूर्ण पौधे का चूर्ण शहद या मिश्री के साथ पीने से पेशाब का बार-बार आना बंद हो जाता है। डाँग- गुजरात के आदिवासी बार-बार पेशाब आने की समस्या के निदान के लिए गोखरू के बीज, विदारीकन्द का कंद और आँवला के फ़लों का चूर्ण समान मात्रा (लगभग 5 ग्राम) लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर खाने की सलाह देते हैं, आराम मिल जाता है। 

23. मक्के के उबल जाने के बाद इस पानी की एक गिलास मात्रा में एक चम्मच शहद मिलाकर रख दिया जाए, पहले मक्के के उबले दानों को चबाया जाए और अंत में शहद मिले पानी को पी लिया जाए तो यह किडनी और मूत्र तंत्र को बेहतर बनाता है। किडनी और मूत्र तत्र की सफाई के लिए यह उत्तम फार्मूला है। आदिवासियों के अनुसार ऐसा करने से किडनी, मूत्र नली और मूत्राशय में पथरी होने की संभावनांए भी खत्म हो जाती हैं।

 24. जिन्हें पेशाब जाने में दिक्कत आती है, उन्हें धनिया के बीजों (एक चम्मच) को कुचलकर गुनगुने पानी के साथ पीना चाहिए, पेशाब का आना नियमित और निरंतर हो जाता है।

25. जिन्हें बार-बार पेशाब जाने की शिकायत होती है उन्हें तिल और अजवायन के बीजों की समान मात्रा को तवे पर भूनकर दिन में कम से कम दो बार अवश्य सेवन करना चाहिए। 

26. पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार करीब 20 ग्राम मक्के के दानों को कुचलकर एक गिलास पानी में खौलाया जाए और जब यह आधा शेष बचे तो इसमें एक चम्मच शहद की भी डाल दी जाए, इस मिश्रण को बच्चों को दिन में 3 बार देने से वे बिस्तर में पेशाब नहीं करते है। 

27. चुटकी भर राई के चूर्ण को पानी के साथ घोलकर बच्चों को देने से वे रात में बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं।

28. पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि जामुन के बीजों का चूर्ण की 2-2 ग्राम मात्रा बच्चों को देने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं। 

29. शक्कर और पिसा हुआ सूखा सिंघाड़ा की समान मात्रा (50- 50 ग्राम) लेकर मिला लिया जाए और चुटकी भर चूर्ण पानी के साथ सुबह शाम देने से बच्चे बिस्तर में पेशाब करना बंद कर देते है। 

30. अनार के छिलकों को सुखाकर कुचल लिया जाए और इस चूर्ण का आधा चम्मच बच्चों आधा कप पानी में मिलाकर बच्चों को एक सप्ताह तक हर रात दिया जाए तो जल्द ही बिस्तर में पेशाब करने की समस्या में आराम मिलता है


Monday 2 November 2020

लीवर को मजबूत करने के लिए क्या खाना चाहिए -वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

लीवर को मजबूत करने के लिए क्या खाना चाहिए -----वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल 

                     

आज के समय में हर कोई लीवर को मजबूत करने के लिए क्या खाना चाहिए के बारे में जानना चाहता है क्‍योंकि स्वस्थ्य शरीर के लिए लीवर का स्‍वस्‍थ्‍य होना बहुत ही आवश्‍यक है। जिगर कार्बोहाइड्रेट को तोड़ने, ग्‍लूकोज बनाने और शरीर को डिटॉक्‍स करने में सहायक होता है। लीवर को मजबूत करने के उपाय आपके लीवर को पोषक तत्‍वों को संग्रहीत करने में सहायता करते हैं। लीवर को मजबूत बनाने के तरीके में आप घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। लीवर के कमजोर होने से यकृत रोग और कई गंभीर समस्‍याएं हो सकती हैं। हालांकि डॉक्‍टर से संपर्क कर लीवर को मजबूत करने की दवा भी ली जा सकती है। लेकिन लीवर को मजबूत करने के घरेलू उपाय भी होते हैं। स्‍वस्‍थ लीवर की खुराक के रूप में खाद्य पदार्थ और जड़ी बूटीयों का सेवन किया जा सकता है।
                 आज के व्‍यस्‍त जीवन में लोगों को स्‍वस्‍थ आहार करने का समय नहीं मिलता है। जो लीवर सहित कई गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं का कारण बन सकता है। अधिकांश लोगों का प्रश्‍न होता है कि लीवर को मजबूत कैसे बनाएं या लीवर को मजबूत करने का नुस्‍खा क्‍या है। जबकि इस प्रश्‍न का हल उनके नियमित आहार में छिपा है। यकृत या लीवर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आप स्‍वस्‍थ आहार और औषधीय जड़ी बूटीयों का सेवन कर सकते हैं। आइए जाने जिगर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आप किन खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं।
                 लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए हल्‍दी बहुत ही प्रभावी होती है। हल्‍दी में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं साथ ही इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट की उच्‍च मात्रा भी होती है। नियमित रूप से हल्‍दी का सेवन करने से हेपेटाइटिस बी और सी के वायरस के प्रभाव और प्रसार को रोका जा सकता है। लीवर को मजबूत करने के तरीके में आप हल्‍दी को अपने आहार में शामिल करने के साथ दूध में मिलाकर भी उपभोग कर सकते हैं। इसके लिए आप प्रतिदिन सुबह और रात में सोने से पहले 1 गिलास गुनगुने दूध में 1 चुटकी हल्‍दी पाउडर मिलाकर पिएं।
             जिगर संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में पपीता बहुत ही प्रभावी होता है। लीवर को मजबूत करने के लिए आप पपीता को अपने नियमित आहार में शामिल कर लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं। पपीता का सेवन विशेष रूप से यकृत सिरोसिस  के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है। आप लीवर मजबूत बनाने के घरेलू उपाय के रूप में पपीता के पत्‍ते के रस का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं। आप नियमित रूप सेू पपीता के पत्‍ते के 2 चम्‍मच रस में 1 चम्‍मच नींबू का रस मिलाएं और दिन में 2 बार सेवन करें। ऐसा करने से आपके लीवर में मौजूद संक्रमण को कम करने में मदद मिलती है।
                           सेब का सिरका लिवर को डिटॉक्‍स करने में मदद करता है। यदि आप भी अपने लीवर को साफ रखना  चाहते हैं तो भोजन करने से पहले थोड़े से सेब के सिरका का सेवन करें। ऐसा करने से सेब का सिरका शरीर में मौजूद वसा को चयापचय करता है। आप अपने लीवर को मजबूत बनाने के लिए सेब के सिरका का कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं। जैसे कि – 1 गिलास पानी में 1 चम्‍मच सेब का सिरका मिलाएं और सेवन करें। विकल्‍प के रूप में आप 1 चम्‍मच सेब के सिरका और 1 चम्‍मच शहद को 1 गिलास पानी में मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं। दिन में 2 से तीन बार इस मिश्रण का सेवन लीवर को साफ करने का सबसे अच्‍छा तरीका है।
                      लीवर हमारे शरीर का सबसे महत्‍वपूर्ण अंग है जिसे स्‍वस्‍थ रखना बहुत ही आवश्‍यक है। लीवर को मजबूत करने के घरेलू नुस्‍खे में आप आंवला का उपयोग कर सकते हैं। आंवला में लीवर-सुरक्षात्‍मक गुण होते हैं साथ ही इसमें विटामिन सी भी अच्‍छी मात्रा में होता है। लीवर मजबूत करने के उपाय में आप प्रतिदिन  2-4 कच्‍चे आंवले का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा विकल्‍प के रूप में आप आंवले के मुरब्‍बे का भी सेवन कर सकते हैं। यह लीवर मजबूत करने का सबसे अच्‍छा विकल्‍प है।
                आपके स्‍वस्‍थ शरीर के लिए लीवर का स्‍वस्‍थ रहना बहुत ही आवश्‍यक है। क्‍योंकि शरीर को ऊर्जा प्राप्‍त करने में लीवर का विशेष योगदान होता है। आप भी स्‍वस्‍थ लीवर के लिए खुराक के रूप में एवोकैडो और अखरोट जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं। एवोकैडो और अखरोट में ग्लूटेथिओन  की अच्‍छी मात्रा होती है जो लीवर में विषाक्‍तता को जमा होने से रोकता है। आप भी अपने लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य और मजबूत बनाने वाले आहार में अखरोट और एवोकैडो आदि को शामिल कर सकते हैं।
                      लीवर खराब होने पर या लीवर की खराबी होने पर अलसी के बीजों का सेवन किया जाना चाहिए। अलसी के बीज में फाइटोकोन्स्टिट्यूएंटस  की मौजूदगी होती है। जिसके कारण यह रक्‍त में हार्मोन के फैलने से रोकता है और यकृत पर तनाव को कम करता है। यदि आपके लीवर में किसी प्रकार का इंफेक्‍शन है तो तुरंत ही डॉक्‍टर की सलाह लें। साथ ही उपचार प्रक्रिया को तेज करने के लिए आप अपने आहार में अलसी के बीजों को शामिल करें।
                 अस्‍वस्‍थ लीवर को स्‍वस्थ्‍य बनाने के लिए मुलैठी  एक प्रभावी जड़ी बूटी है। लीवर की क्षतिग्रस्‍त स्थिति को ठीक करने के लिए कई औषधीय और आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में मुलैठी का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। मुलैठी की चाय बनाने के लिए आप मुलैठी की जड़ को पीस लें और उबलते पानी में डालें। कुछ देर के बाद आप इस मिश्रण को छान लें और ठंडा होने दें। लीवर संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए इस पेय का नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए।
                       सिंहपर्णी (डंडेलियन) रूट चाय उन उपायों में से एक है जो लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने में सहायक है। गलत खान पान और अधिक नशा करने के कारण लीवर को क्षति से बचाने के लिए आप नियमित रूप से इस औषधीय चाय का सेवन कर सकते हैं। डंडेलियन  पौधे की थोड़ी सी जड़ को पानी में उबालें और दिन में 2 बार 1-1 कप डंडेलियन चाय का सेवन करें। इस तरह आप लीवर संबंधी समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकते हैं।
                       एक अध्‍ययन के अनुसार अंगूर का फल, अंगूर का जूस और अंगूर के बीज लीवर के लिए फायदेमंद होते हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि अंगूर और अंगूर के बीजों में एंटीऑक्‍सीडेंट की उच्‍च मात्रा होती है। ये एंटीऑक्‍सीडेंट लीवर की सूजन को कम करने और जिगर की क्षति को रोकने में सहायक होते हैं। इसके अलावा अंगूर में मौजूद अन्‍य पोषक तत्‍वों और यौगिकों को आहार में शामिल करने के लिए आप अन्‍य खाद्य पदार्थो के साथ भी अंगूर का भी उपयोग कर सकते हैं।
                        आप अपने शरीर में फाइबर की कमी को दूर करने के लिए ओटमील को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। फाइबर की उच्‍च मात्रा होने के कारण स्‍वस्‍थ लीवर के लिए खुराक के रूप में ओटमील सबसे अच्‍छा विकल्‍प माना जाता है। इसमें मौजूद फाइबर सामग्री पाचन प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होती है। ओटमील में बीटा-ग्‍लूकेन्‍स  नामक यौगिक उच्‍च मात्रा में होते हैं। एक अध्‍ययन के अनुसार बीटा-ग्‍लूकन शरीर में जैविक रूप से सक्रिय रहते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं। ओटमील को अपने आहार में शामिल करना आपके लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने का सबसे आसान और अच्‍छा तरीका है। जो न केवल आपके लीवर बल्कि पूरे शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने में सहायक है।
                    किसी भी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के इलाज की बजाय बचाव के तरीके बेहतर होते हैं। यदि आप स्‍वस्‍थ्‍य जीवनशैली और स्‍वस्‍थ आहार का नियमित उपभोग करते हैं तो आपके बीमार होने की संभावना कम होती है। लेकिन यदि आप लीवर की समस्‍या से परेशान हैं तो आपको विशेष इलाज की आवश्‍यकता है। लीवर खराब होने पर अन्‍य पौष्टिक आहार के साथ आप लहसुन का नियमित सेवन करें यह लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य को उत्‍तेजित करने में सहायक है। एक अध्‍ययन के अनुसार लहसुन का नियमित सेवन एनएएफएलडी (NAFLD) वाले लोगों में शरीर के वजन और वसा की मात्रा को कम करता है। इस तरह से आप अपने लीवर को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और उचित वजन प्राप्‍त करने के लिए नियमित आधार पर लहसुन का सेवन कर सकते हैं।
                          बहुत अधिक वसा और फैटी भोजन करना लीवर के लिए हानिकारक होता है। लेकिन कुछ विशेष प्रकार के स्‍वस्‍थ वसा का सेवन लीवर के लिए लाभकारी भी होते हैं। आप अपने लीवर को साफ करने के उपाय में जैतून के तेल का सेवन कर सकते हैं। एक अध्‍ययन के अनुसार दैनिक आहार में जैतून के तेल को शामिल करने से ऑक्‍सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा जैतून तेल के एंटीऑक्‍सीडेंट लीवर में मौजूद विषाक्‍तता को प्रभावी रूप से दूर करने में सहायक होते हैं। जैतून के तेल में असंतृप्‍त फैटी एसिड की उच्‍च मात्रा होती है जो लीवर को साफ करने और स्‍वस्‍थ रखने में सहायक होते हैं। आप भी लीवर को मजबूत करने के लिए ऑलिव आइल का प्रयोग कर सकते हैं।
                   गाजर में पौधे आधारित फलेवोनोइड्स  और बीटा-कैरोटीन ( की उच्‍च मात्रा होती है जो लीवर के समग्र स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ाने में सहायक होते हें। आप अपने लिवर के लिए जूस के रूप में गाजर का उपयोग कर सकते हैं। गाजर में विटामिन ए की उच्‍च मात्रा होती है जो यकृत की बीमारियों को रोकने में आपकी मदद कर सकता है।
              एलोवेरा का उपयोग कई प्रकार से किया जाता हैं जैसे गूदा,को आटा  में गूथ कर रोटी बनाकर ,स्वरस   पत्तों ,के रूप में 
                आरोग्यवर्धिनी वटी,कुमारीआसव भी लाभकारी हैं 
                वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद A2 /104 , पेसिफिक ब्लू ,नियर  डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753

गठिया (Arthritis) क्या है ? उपचार व परहेज

 


गठिया (Arthritis) क्या है?

गठिया एक या कई और संयुक्त जोड़ों की सूजन है। गठिया के विभिन्न प्रकार हैं जो लोगों के बीच पाए जा सकते हैं, गठिया के प्रत्येक प्रकार के कारण अलग तरह का शारीरिक दर्द होता है। सबसे आम गठिया प्रकार पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस हैं। गठिया के कारण जोड़ों में दर्द और अकड़न होती है और उम्र के साथ तेज हो सकता है, हालांकि, कभी-कभी वे अप्रत्याशित रूप से भी प्रकट हो सकते हैं। अधिकांश समय, गठिया 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में और शायद ही कभी बच्चों में विकसित होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को गठिया होने का खतरा अधिक होता है, खासकर रूमेटाइड आर्थराइटिस के मामले में। दूसरी ओर, गाउट, एक अन्य प्रकार का गठिया पुरुषों में अधिक पाया जाता है। मोटापा गठिया का एक प्रमुख कारण अक्सर शरीर के अतिरिक्त वजन वाले लोगों में पाया जाता है।

गठिया के लक्षण क्या हैं

घुटने के गठिया के लक्षण अन्य सभी के बीच सबसे प्रमुख और आम हैं। सभी गठिया प्रकार के सामान्य गठिया लक्षणों में से कुछ इस प्रकार हैं:

  • जोड़ों में अत्यधिक दर्द
  • जोड़ों में अकड़न
  • सूजन
  • लाली
  • जॉइंट्स की गति में कठिनाई

इन लक्षणों में से अधिकांश सुबह के दौरान अनुभव किए जाने की अधिक संभावना है। प्रतिरक्षा प्रणाली की सूजन के कारण रुमेटीइड गठिया भी भूख न लगना या थकान का कारण बनता है। यह आगे एनीमिया में विकसित हो सकता है या मामूली बुखार का अनुभव करा सकता है।

आम गठिया प्रकार

यहाँ गठिया के दो सामान्य प्रकारों पर थोड़ा और विस्तार दिया गया है:

ऑस्टियोआर्थराइटिस

जब प्रत्येक हड्डी / जोड़ की छोर को कवर करने वाला लचीला उपास्थि (कार्टिलेज) नीचे हो जाता है, तो प्रभावित को ओस्टियोआर्थराइटिस का निदान किया जाता है। इस तरह के गठिया से जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है और सबसे अधिक प्रभाव घुटनों, कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में होती है।

रूमेटाइड आर्थराइटिस

यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो जोड़ों और उसके आसपास के ऊतकों में सूजन का कारण बनती है। यह शरीर के अन्य अंगों में सूजन का कारण बन सकता है और इस प्रकार इसे व्यवस्थित बीमारी के रूप में भी जाना जाता है।

जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस

जेआईए या जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस को किशोर रूमेटाइड आर्थराइटिस के रूप में भी जाना जाता है और दोनों ही शब्दों का परस्पर विनिमय किया जाता है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मूल रूप से एक पुरानी, ​​गैर संक्रामक, सूजन और ऑटोइम्यून संयुक्त बीमारी है। जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है।


गठिया उपचार:

गठिया का उपचार गठिया के प्रकार और इसकी डिग्री पर निर्भर करता है। गठिया के उपचार का मुख्य कार्य जोड़ों में दर्द को कम करना है। एक व्यक्ति के लिए जो उपचार काम कर सकता है, ज़रूरी नहीं के दूसरे के लिए भी काम करे। गठिया के दर्द के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सामान्य देखभाल तकनीकों में हीटिंग पैड या आइस पैक को जॉइंट्स पर रखना है। गठिया घुटने वाले लोग चलने के दौरान जॉइंट्स पर पड़ते हुए दबाव को कम करने के लिए वॉकर और या केन जैसी गतिशीलता के लिए सहायता उपकरणों का उपयोग करते हैं।

अधिक गंभीर मामलों में, डॉक्टर इस बीमारी के निदान के लिए निम्नलिखित गठिया उपचार का सुझाव दे सकते हैं:

गठिया के लिए दवाएं 

कुछ दवाएं हैं जो गठिया के इलाज के लिए ली जा सकती हैं।

  • दर्दनाशक – दर्द प्रबंधन के लिए मदद करता है
  • गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं – ये दवाएं गठिया के कारण होने वाले दर्द और सूजन को नियंत्रित करने में मदद करती हैं
  • मेन्थॉल या कैप्साइसिन – ये क्रीम जोड़ों से दूसरे हिस्सों में दर्द के संकेत के प्रसार को रोकते हैं
  • इम्यूनोसप्रेसेन्ट – ये दवाएं जोड़ों पर सूजन को कम करने में मदद करती हैं
  • नोट: गठिया के उपचार के लिए दवाएं केवल डॉक्टर की सिफारिशों के आधार पर ली जाती हैं, जो इसकी गंभीरता पर निर्भर करती है।

आर्थराइटिस के लिए सर्जरी

एक सामान्य तरीका यह होगा कि सर्जरी के जरिए उस विशेष जॉइंट् को आर्टिफिशल से बदल दिया जाए। सबसे आम जोड़ों का रिप्लेसमेंट गठिया घुटने और कूल्हों के लिए हैं।

आपकी उंगली या कलाई में गंभीर गठिया के मामले में, एक जॉइंट्स संलयन जहां आपकी हड्डियों के सिरों को एक साथ रखा जाता है जब तक वे ठीक नहीं होते हैं किया जाते हैं। ये तरीके केवल गठिया के गंभीर मामलों के लिए हैं, जहां गठिया का दर्द चरम पर है और जब गठिया में किसी भी तरह की दवा या फिजियोथेरेपी का असर नहीं होता है।

गठिया के लिए फिजियोथेरेपी

गठिया में प्रभावित जोड़ों को, फिजियोथेरेपी के अनुसार, व्यायाम करना शामिल है जो जॉइंट्स के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी आपके जोड़ को ठीक करने के लिए प्राकृतिक तरीकों में से एक है और इसे शुरुआती चरणों में ही शुरू करने की सलाह दी जाती है। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी सबसे आम घुटने में गठिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जब गठिया से पीठ और गर्दन में दर्द होता है।

गठिया के लिए जोखिम कारक क्या हैं:

  • पारिवारिक इतिहास – पर्यावरणीय कारकों के कारण गठिया जेनेटिक या वंशानुगत भी हो सकता है जो किसी के संपर्क में है।
  • आयु – गठिया दर्द और गठिया लक्षण उम्र के साथ बढ़ते हुए देखे जाते हैं।
  • पहले जोड़ों की चोट – एक जोड़े में चोट के साथ, शायद एक खेल के कारण, उस जोड़े में गठिया विकसित होने की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए: बास्केट बॉल, लंबी कूद, आदि के दौरान जमीन पर खराब लैंडिंग के कारण घुटने में गठिया सबसे आम है।
  • मोटापा – शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों पर तनाव डालता है जो गठिया के प्रमुख कारणों में से एक है। मोटापे के कारण गठिया घुटने का सबसे आम मामला है।

गठिया की जटिलताएँ :

जोड़ों में गठिया के गंभीर मामले जैसे कलाई, उंगलियां, आदि गठिया के दर्द के कारण दैनिक कार्यों को करने में परेशानी का कारण हो सकते हैं। इसी तरह, घुटनों या कूल्हों, टखनों आदि में गठिया होने से आराम से चलने या बैठने में असुविधा हो सकती है। इस प्रकार, गठिया के लक्षण का पता चलते ही समस्या पर ध्यान देना बेहद जरूरी है और गठिया के लिए गठिया पुनर्वास या फिजियोथेरेपी शुरू करनी चाहिए ।

गठिया के साथ मदद करने के लिए जीवन शैली परिवर्तन

गठिया घुटने का दर्द सबसे आम है और एक स्वस्थ वजन बनाए रखने से गठिया के प्रभाव को कम किया जा सकता है, अगर एक जॉइंट पहले से ही प्रभावित हो गया हो। एक स्वस्थ आहार भी गठिया के लक्षणों को नियंत्रित करने में योगदान देता है, चाहे वह गठिया पीठ दर्द, गठिया गर्दन का दर्द या जोड़ों की सूजन हो। गठिया के लिए फिजियोथेरेपी जोड़ों के उपचार का सबसे अच्छा तरीका है। गठिया के लिए भौतिक चिकित्सा केवल फिजियोथेरेपी तक सीमित नहीं है, बल्कि तैराकी जैसे अन्य व्यायामों तक भी फैली हुई है जो जोड़ों पर दबाव डाले बिना व्यायाम का एक शानदार रूप है।

बैठने और काम करते समय शरीर के स्थिर या खराब मुद्रा में होने के कारण भी गठिया हो सकता है। घर या कार्यालय में सरल व्यायाम गठिया को रोकने में मदद कर सकते हैं। कुछ सरल व्यायामों में शामिल हैं:

  • गर्दन की राहत के लिए – सिर झुका हुआ, गर्दन घुमाना।
  • डेस्क जॉब वाले लोगों के लिए – उन जोड़ों में तनाव को कम करने के लिए उंगली और अंगूठे का मोड़ और कलाई का घूमना
  • लेग रिलीफ के लिए- हैमस्ट्रिंग स्ट्रेच, लेग रेज और अन्य लेग स्ट्रेच। घुटने के गठिया के लक्षणों को विकसित होने वालों के लिए ये महत्वपूर्ण स्ट्रेच हैं।
  • उपचार --- विरेचन करें, एरंड तेल गुनगुने पानी से लें, अभ्यंगम करें, निर्गुन्डी तेल, पिंड तेल, सुकुमार तेल, गुडुची तेल, अदरक का पेस्ट लगाएं, शुंठी का पानी पिएं, लहसुन शहद के साथ लें, लहसुन का पेस्ट लगाएं, गुडुची चूर्ण खाएं, गुडुची काढ़ा पिएं। 
  • चूर्ण- नवकार्षिक चूर्ण, निम्बादि चूर्ण, चोबचीनी चूर्ण, गेहूं का चूर्ण, बकरी के दूध में मिलाकर लगाएं, दशमूल साधित छीर खाली पेट लें, हरीतिकी गुड़ के साथ लें, अपामार्ग का पौधा, गौ मूत्र में मिला लेप बना कर लगाएं, वरुण और शिग्रु के पेस्ट का लेप लगाएं, गुडुची, वासा, एरंड तेल का काढ़ा पिएं, लहसुन, लौंग,सौंफ, शुंठी का काढ़ा पिएं।पंचकर्मा

    वस्ति, विरेचन, अभ्यंगम, स्वेदन, लेप


Sunday 1 November 2020

विटामिन बी 12 दिल और दिमाग के लिए है बेहद जरूरी- कमी के लक्षण और उपाय

 

विटामिन बी 12 आपके मस्तिष्क, तंत्रिका और दिल को हेल्दी बनाए रखने में महत्वपूर्ण है. शाकाहारी और वेगन डाइट फॉलो करने वाले लोगों में भी इसकी कमी पायी जाती हैं

मल्टीविटामिन की गोलियां और ऐसे ही अन्य ‘ट्रेस एलीमेंट (वे धातुएं जो शरीर के लिए जरूरी होती हैं)’ मिलाकर बनाई जाने वाली ताकत की गोलियों का एक मायावी बाजार दवाइयों की दुनिया में है. छोटी-मोटी कंपनियों से लेकर बड़ी दवाई कंपनियां भी इस तरह की गोलियां बेचने के धंधे में हैं. लोग भी अक्सर बिना किसी कारण, इन्हें यूं ही लेते रहते हैं और भ्रम में रहते हैं कि हम ताकत की गोलियां खा रहे हैं.वैसे यह सही है कि विटामिनों की जरूरत शरीर के लगभग हर कार्य-व्यापार में है - एंजाइम्स की एक्टिविटी में, को-फैक्टर्स की एक्टिविटी में, शरीर के सेल्स के हर पल सक्रिय रहने के लिए, रक्त जमने के लिए - बहुत सारी शारीरिक गतिविधियों में इनका बड़ा ही महत्वपूर्ण रोल है. परंतु जब तक हमें डॉक्टरी जांच से यह ना पता चले कि शरीर में कौन-सा विटामिन कम होने से क्या खराबी हो रही है, तब तक यूं ही बेमतलब इन गोलियों को अंदाजे से खाने का कोई लाभ नहीं होने वाला. तो आइए पहले समझें कि वास्तव में विटामिंस होते क्या हैं और इनकी कमियों से हमें क्या-क्या हो सकता है विटामिन बी12 हमारे शरीर की तमाम सेल्स, चाहे वे हमारी चमड़ी में हों, आंत में या मुंह में, की कार्यप्रणाली के लिए यह जरूरी विटामिन है. इन सभी सेल्स का नियंत्रण इनमें स्थित न्यूक्लियस के डीएनए और आरएनए द्वारा होता है. और इनके लिए यह एक अनिवार्य विटामिन है. बी12 न मिले तो यह न्यूक्लियस काम ही नहीं करेगा, इसीलिए इसकी कमी हो तो हर सेल ठीक से काम करना बंद कर देगी

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यही विटामिन बी12 हमारे नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली को दुरुस्त रखने का काम भी करता है. यानी यह मस्तिष्क और शरीर की सारी तंत्रिकाओं में करंट के बहने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. तभी अगर इस विटामिन की कमी हो जाए तो हमें कई न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम पैदा हो सकती हैं. फिर विटामिन बी12 उन सेल्स के मैच्योर होने में भी बहुत जरूरी कारक है जो हमारी हड्डियों में रहकर रक्त बनाते हैं. इसीलिए शरीर में बी12 न हो तो हमें एक अलग ही किस्म का एनीमिया हो सकता है जिसे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया कहते हैं.

इस विटामिन का बेहद जरूरी संगी-साथी फॉलिक एसिड होता है. यह भी इन सारे कामों में बराबर का रोल अदा करता है. इसीलिए कई बार तो शरीर में बी12 की मात्रा ठीक-ठाक भी रही हो लेकिन यदि फॉलिक एसिड की कमी हो जाए तब भी वे बीमारियां आ सकती हैं जो आमतौर पर बी12 की कमी से हुई मानी जाती हैं. तो वे शाकाहारी लोग जो दूध, दही या पनीर भी नहीं लेते या नहीं ले पाते या बस कभी-कभी ही लेते हैं, उनमें विटामिन बी12 की कमी पैदा हो जाना एक आम स्वास्थ्य समस्या है. हमारे देश में एक बड़ी आबादी शाकाहारी है और अगर वह दूध-दही या पनीर भी नहीं लेती तो उसके लिए विटामिन बी12 की कमी का खतरा हमेशा रहता है. इसकी कमी के लक्षण अचानक सामने नहीं आते. बल्कि इसका तो अक्सर पता ही नहीं चल पाता क्योंकि डॉक्टर तक इस बारे में उस तरह से नहीं जानते या सोच पाते. इसी चक्कर में न जाने कितने विटामिन बी12 की कमी वाले लोगों का हमारे यहां डायग्नोसिस नहीं हो पाता.

क्या सिर्फ जरूरी भोजन की कमी से ही विटामिन बी12 की कमी हो सकती है?

ऐसा नहीं है. कई बार विटामिन बी12 और फॉलिक एसिड युक्त भोजन लेने के बाद भी शरीर में इनकी कमी हो सकती है. क्योंकि हो सकता है यह सब आपके शरीर में तो जा रहा हो लेकिन आपकी आंतों में न के बराबर पच पाता हो. एट्राफिक गैस्ट्राइटिस और परनीसियस एनीमिया जैसी जटिल बीमारियों में यह हो सकता है. ऐसे में बी12 की कमी हो सकती है. यही स्थिति पेट के ऑपरेशन में आंत का कुछ हिस्सा निकाल देने के बाद भी हो सकती है और आंतों में सूजन की बीमारी (इनफ्लेमटरी वाली बीमारियां) में भी.

शरीर में कभी-कभी फॉलिक एसिड की मांग जरूरत से बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसा अमूमन गर्भवती स्त्रियों और नियमित डायलिसिस वाले मरीजों के साथ होता है. साथ ही गठिया आदि बीमारियों के लिए कुछ विशेष दवाइयां देने पर भी शरीर में फॉलिक एसिड की गंभीर कमी हो जाती है. इसलिए इन सारी स्थितियों में डॉक्टर पहले फॉलिक एसिड की गोलियां भी दे देता है 

दरअसल ये दोनों विटामिन एक संगत में काम करते हैं. इसीलिए डॉक्टर भी विटामिन बी12 की कमी वाले मरीज को अकेला बी12 न देकर हमेशा इसे फॉलिक एसिड के साथ ही देते हैं.

विटामिन बी12 केवल मांस, मछली, दूध और पनीर से ही प्राप्त होता है. यह न तो हरी सब्जियों में होता है, न फलों में, जैसा कि हमें प्राय: गलतफहमी रहती है. हां फॉलिक एसिड लगभग हर भोज्य पदार्थ में मौजूद होता है – सारी सब्जियों में और फलों में. मीट-मछली में भी यह पाया जाता है. परंतु इनकी दिक्कत यह है कि इन्हें देर तक गर्म करने पर इनका फॉलिक एसिड नष्ट हो जाता है.

विटामिन बी 12 आपके शरीर की ऊर्जा को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी होता है. यह आपके मस्तिष्क के कार्य, तंत्रिका कार्य और दिल को हेल्दी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह आपके शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को हेल्दी रखने और इसके उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है. आपके शरीर में विटामिन बी 12 का एक पर्याप्त स्टोर होता है जोकि लंबे समय तक चलता है. मगर तनाव, एसिडिटी और कुछ दवाओं के सेवन से इसके कार्य में हस्तक्षेप हो सकता है जिससे यह शरीर से जल्दी-जल्दी अवशोषित हो सकता है. अगर आप थकान या अपने पैरों में ज्यादा दर्द महसूस करते हैं, तो आपमें विटामिन बी 12 की कमी हो सकती है.

विटामिन बी 12 रोगाणुओं द्वारा बनाया गया है. जब आप पानी को साफ करने के लिए क्लोरीन डालकर बैक्टीरिया को मारते हैं या उबला हुआ पानी पीते हैं तो ऐसे में इन पदार्थों में विटामिन बी 12 की कमी हो जाती है. इसके अलावा शाकाहारी और वेगन डाइट फॉलो करने वाले लोगों में भी इसकी कमी पायी गई हैं, तो आइए आज हम आपको कुछ ऐेसे खाद्य पदार्थ बताने जा रहे हैं, जिनके माध्यम से विटामिन बी 12 कमी से बचा जा सकता है.
क्या होता है विटामिन बी 12 कम होने पर?
जिन लोगों में B12 कम होता है उनमें हीमोग्लोबिन का स्तर भी कम हो जाता है. विटामिन बी -12 की कमी का कम स्तर कुल होमोसिस्टीन सांद्रता में पर्याप्त वृद्धि की वजह बन सकता है. हाई होमोसिस्टीन लेवल, जो विटामिन बी 12 की कमी से होता है जैसे कोरोनरी दिल के रोग और स्ट्रोक की समस्या का पैदा होना. ऐसे में विटामिन बी 12 और फोलेट का संयोजन होमोसिस्टीन के लेवल को कम कर देता है. इसकी कमी से एनीमिया भी हो सकता है जिसे मेगालोब्लास्टिक भी कहा जाता है. इसके अलावा विटामिन बी 12 एथलीट और खिलाड़ियों के लिए भी बेहद आवश्यक होती है, क्योंकि यह उनके प्रदर्शन को बेहतर बना सकती है. इसके साथ ही इसकी कमी मानसिक तौर पर इन लक्षणों को भी दिखा सकती है, जैसे-
- यह डीएनए और आपके तंत्रिका तंत्र का सहयोग करता है.
-शोधकर्ताओं ने विटामिन बी 12 की कमी को मनोभ्रंश से जोड़ा है.
-यह अल्जाइमर और एकाग्रता की कमी को भी बढ़ा सकता है.

क्या हैं विटामिन बी 12 के खाद्य स्रोत?
-यह मुख्य रूप से अंडे, मछली, टर्की, चिकन, दूध उत्पादों जैसे पशु स्रोतों में पाया जाता है.
-पनीर, खोया, दही, दूध पाउडर आदि इसके एकमात्र गैर-पशु स्रोत हैं.
-इसके अलावा खमीर, सी फूड्स, काजू और तिल भी इसके अच्छे सोर्स हैं.
कितना सेवन किया जा सकता है विटामिन बी 12 का?
बिटामिन बी 12 की कमी वाला इंसान, हर हफ्ते 2,500 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 के सप्लीमेंट का सेवन कर सकता है. बढ़ती उम्र के साथ इसके अवशोषण में गिरावट आ जाती है, इसलिए 65 वर्ष से ज्यादा वर्ष के लोगों को 1,000 माइक्रोग्राम का ही सेवन करना चाहिए.
क्या विटामिन बी 12 की ज्यादा मात्रा आपके शरीर के लिए नुकसानदेह है?
यह एक पानी में घुलने वाला विटामिन होता है, इसलिए इसके नुकसान होने की संभावना भी कम होती है. लेकिन इसके सेवन से पहले किसी चिकित्सक से परामर्श लेना बेहतर होता है.
विटामिन बी 12 स्तर शरीर में कैसे घटने लगता है
विटामिन बी 12 की कमी में एंटासिड जैसे पैंटोप्राज़ोल, ओमेप्राज़ोल, नेक्सियम आदि योगदान करते हैं. मधुमेह की दवा मेटफॉर्मिन से भी विटामिन बी 12 का स्तर कम हो जाता है. ऑटो इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्याओं जैसे छोटी आंत, क्रॉन की बीमारी, सीलिएक रोग भी विटामिन बी 12 की कमी का कारण होते हैं.
आप विटामिन बी 12 को अपने आहार में कैसे शामिल कर सकते हैं?
भारतीय आहार विटामिन बी 12 खाद्य पदार्थों से भरपूर होते हैं. जैसे-
- लस्सी ,- छाछ -पनीर -अंडा भुर्जी -दही -चावल -चिकन और मछली
- तिल के लड्डू, काजू के लड्डू, काजू की बर्फी, मेवा बर्फी
क्या विटामिन बी 12 का जरूरी है टेस्ट कराना?
हां, खासकर अगर आप एक शाकाहारी हैं और लंबे वक्त तक आप एसिडिटी या अन्य मेडिकल समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में आपको हर 6 महीने में इसकी जांच करानी चाहिए.
क्या विटामिन बी 12 सप्लीमेंट्स ही काफी है या Iv थेरेपी भी जरूरी होती है?
विटामिन बी 12 के  सप्लीमेंट्स उन लोगों के लिए होते हैं जिनमें इसकी कमी होती है. इसलिए इसका सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है. इसकी कमी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और अगर आपने विटामिन बी 12 के स्तर की जांच अभी तक नहीं करवाई है, तो आप इसकी जांच अवश्य करवाएं

इन विटामिनों की कमी कैसे पहचानें?

कई ऐसी स्थितियां हैं जिनमें हमें इन विटामिनों की कमी का संदेह होना चाहिए. जैसे –

1. अगर हमें खून की ऐसी कमी (एनीमिया) हो जाए जो सामान्य तौर पर दिए जाने वाले आयरन कैप्सूल लेने से ठीक न हो पा रही हो

2. यदि हमें बहुत थकान लगती हो लेकिन आम जांचों द्वारा भी जिसका कोई कारण साफ न हो पा रहा हो

3. यदि हाथ-पांव में अकारण झुनझुनी होती हो

4. यदि मुंह में बार-बार छाले आ जाते हों

5. यदि हमारी जीभ के दाने सपाट होकर वह सपाट जैसी हो गई हो

6. यदि हमारे होंठ किनारे से कट-पिट जाते हों

7. यदि हमारी भूख खत्म हो रही हो और इसका कोई साफ कारण न मिल रहा हो

8. यदि स्मरण शक्ति कम हो रही हो और लगभग डिमेंशिया जैसी स्थिति पैदा हो रही हो

9. यदि किसी को ऐसा एनीमिया हो जिसके साथ हल्का पीलिया भी रहता हो.

10. यदि चमड़ी का रंग पीला सा होता जा रहा हो

11. यदि चलने में लड़खड़ाहट होती हो, गिरने का डर लगता हो

12. यदि बार-बार दस्त लगते हों और वे ठीक न हो रहे हों

तो आपने यहां देखा कि ऐसी बहुत सी स्थितियां बनती हैं जिन्हें हम सामान्य कमजोरी मानकर छोड़ देते हैं, वे बी12 कमी से हो सकती हैं. ऐसी आशंका हो तो खून की एक मात्र जांच से इसका पता लगाया जा सकता है. और पता चल जाए तो फिर आसानी से इलाज भी संभव है.

इसके साथ यह भी याद रहे कि फॉलिक एसिड की कमी के कारण औरतों में बांझपन और नवजात शिशु में पैदाइशी होंठ या तालू कटा हुआ भी हो सकता है या न्यूरल डक्ट डिफेक्ट (मस्तिष्क या तंत्रिकातंत्र से जुड़ी बीमारियां) के साथ भी बच्चा पैदा हो सकता है.

हमारा शरीर विटामिन बी 12 खुद नहीं बनाता है। ऐसे में हमारे लिए जरूरी है कि अपनी डाइट में भरपूर मात्रा में विटामिन बी 12 लें। विटामिन बी 12 हमारे तंत्रिका तंत्र की रक्षा करता है और लाल रक्त कोशिकाओं का विभाजन कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। इसलिए खाने में ऐसी चीजें शामिल करें जो विटामिन बी 12 के अच्छे स्त्रोत हों उम्र के हिसाब से शरीर को विटामिन बी 12 की अलग-अलग मात्रा में जरूरत होती है। एक से तीन साल की उम्र वाले बच्चों के शरीर को हर रोज 0.9 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 की जरूरत होती है। जबकि, चार से आठ साल के बच्चों को रोज 1.2 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 की जरूरत होती है नौ से 13 साल की उम्र के बच्चों को हर रोज 1.8 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 की जरूरत होती है। वहीं वयस्कों को हर रोज 2.4 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 की जरूरत होती है। गर्भवती महिलाओं को हर रोज 2.6 माइक्रोग्राम विटामिन बी 12 की आवश्यकता होती है।विटामिन बी 12 की कमी को पूरा करने के लिए आपको हेल्दी फूड लेने की जरूरत है। आपको अपने आहार में दूध को शामिल करना चाहिए। एक गिलास दूध में आपको अपनी रोज की जरूरत का विटामिन बी 12 का 20 फीसदी मिल जाएगादही में भी विटामिन बी 12 की अच्छी मात्रा होती है। अपने आहार में विटामिन बी 12 की जरूरत को पूरा करने के लिए आपको रोज दही का सेवन करना चाहिए। दही में आपको 51 से लेकर 79 फीसदी विटामिन बी 12 मिल जाएगा।आप अपने आहार में पनीर शामिल करें। पनीर में भरपूर मात्रा में विटामिन बी 12 होता है। तीस ग्राम पनीर में आपको अपनी जरूरत का 36 फीसदी विटामिन बी 12 मिल जाएगा।

नोट-  शाकाहार भोजन हर मनुष्य के लिए उत्तम आहार है ब्लॉग मे उलेखित मांसाहार जानकारी के लिए बताया है शाकाहारी व्यक्ति शाकाहारी व्यक्ति शाकाहार का ही सेवन करे  




चिकनगुनिया


 

चिकनगुनिया, वायरल इन्फैक्शन के कारण, मानसून के मौसम के दौरान आम तौर पर होने वाली कुछ बीमारियों में से एक है। यह बीमारी मनुष्यों में, चिकनगुनिया वायरस ले जाने वाले मच्छरों के काटने के कारण होती है!ऐडीस इजिप्ती और एडीस एल्बोपिक्टस मच्छर वे हैं जो वायरस लेकर आते हैं।

चिकनगुनिया के क्या कारण है?

मच्छर से उत्पन्न बीमारी, चिकनगुनिया, मुख्यत:,एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में होने वाली बीमारी है जो ,तेजी से खतरनाक होती जा रही है। चिकनगुनिया वायरस व्यक्ति से व्यक्ति में संचारित होता है अगर, उपरोक्त प्रजातियों की मादा मच्छर उन्हें काटती हैं तो। बीमारी आमतौर पर काटने के 4 से 6 दिनों तक अपने लक्षण दिखाना शुरू नहीं करती है। ये मच्छर आमतौर पर दिन और दोपहर के समय में काटते हैं, और चिकनगुनिया के मच्छर घर से ज्यादा बाहर काटते हैं। हालांकि, वे घर के अंदर भी पैदा हो सकते हैं।

आइए अब इस बीमारी के कुछ सामान्य लक्षणों पर नज़र डालें-

लक्षण

विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों के बारे में निम्नलिखित बताता है -–

1. अचानक बुखार

2. हड्डियों में दर्द

3. मांसपेशियों में दर्द

4. सरदर्द

5. नोसिया

6. थकान

7. रैशेस

हालांकि, ये लक्षण बहुत सामान्य लगते हैं और कई अन्य कारणों से भी हो सकते हैं, लेकिन यदि यह कुछ दिनों से अधिक समय तक बने रहते हैं तो सलाह दी जाती है कि आप खुद की जांच चिकित्सकीय पेशेवर द्वारा करा लें।अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो यह आंखों के नुकसान के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल और हृदय संबंधी जटिलताओं सहित बड़े नुकसान का कारण बन सकता है। पुराने मरीजों में, यदि इसका इलाज नहीं किया जाएं तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।

मलेरिया और चिकनगुनिया के बीच समानताएं

मलेरिया

मलेरिया अक्सर 'मादा एनोफ़िलिस' मच्छर के काटने से होता है. मच्छर आमतौर पर गंदे व जमे पानी के साथ पर्यावरण में होते हैं.

अब, रोग की पहचान एक कठिन काम हो सकता है।. ज्यादातर मामलों में, मलेरिया के लक्षण मच्छर काटने के 8-25 दिनों के बाद शुरू होते हैं यही कारण है कि प्रारंभिक प्रयोगशाला परीक्षण काफी लंबे समय तक उचित परिणाम नहीं देता है.

तेज बुखार सबसे समान्य संकेत है जो आमतौर पर मरीज़ मे विकसित हो सकता है. शरीर का तापमान ज्यादा से ज्यादा 104'F हो सकता है. इसमें अक्सर ठंड लगती है जो मांसपेशियों में जलन पैदा करती है और उसके बाद तापमान में वृद्धि होती है.

मलेरिया के मरीजों में आमतौर पर पसीना या कंपकंपी, आलस्य, पीलिया और सांस लेने में कठिनाई देखी गई है.

जैसे ही आप उपर्युक्त लक्षणों में से किसी एक का अनुभव करते हैं, तो तुरंत इसका निदान कराएं.

मलेरिया के, आमतौर पर, विशिष्ट लक्षण नहीं होते हैं, इसलिए निदान करना मुश्किल हो सकता है.

CHIKUNGUNYA

चिकनगुनिया में घातक जटिलताएं बहुत कम देखी जाती है. रक्त और मूत्र परीक्षण से बीमारी का पता लगाया जा सकता है. चिकनगुनिया में कुल ल्यूकोसाइट की गणना कम हो जाती है. चूंकि लेप्टोस्पिरोसिस में गुर्दे हमेशा प्रभावित होते हैं, इसलिए इन मामलों में मूत्र परीक्षण में असामान्यताएं दिखती है.

निम्नलिखित संकेतों वाले किसी भी मरीज़ को तुरंत निर्धारित चिकित्सकीय और प्रयोगशाला परीक्षणों के माध्यम से निदान करना चाहिए:

हाइपोटेंशन (रक्तचाप में गिरावट)

रक्त्स्त्राव

तेज़ बुखार

सांस फूलना

अल्टर्ड सेंसरियम

मूत्र में कमी आना

पीलिया

ऐंठन

समानताएं ढूंढना

दोनों बिमारियां मच्छरों द्वारा होती हैं.

आम तौर पर, दोनों ही बीमारियों में सांस लेने में तकलीफ और तेज़ सरदर्द होता हैं.

दोनों वायरस हर 2-3 दिनों के बाद तेज़ बुखार का कारण बनते हैं.

दोनों के लिए निदान एक ही प्रयोगशाला परीक्षण के माध्यम से किया जाता है.

सामान्य सर्दी, कंपकंपी और कम रक्तचाप इन बीमारियों के समान लक्षण हैं.

बचाव--- 

स्वस्थ्य रहने और चिकनगुनिया वायरस से सुरक्षित रहने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है मच्छरों से बचना ऐसी कई चीज़े है जो मच्छरों से बचने के लिए की जा सकती है और उनके बढ़ने को रोका जा सकता है। आइए बचाव के कुछ तरीकों पर नज़र डालें:

1. सुनिश्चित करें कि आसपास कोई भी जमा हुआ पानी न हों। ऐसे पानी को अपने गार्डन में डाल दें, सुनिश्चित करें कि आपकी बाल्टियां खाली रहें, और आसपास की सभी नालियां बंद हों!

2. मच्छरों को दूर रखने के सबसे प्रभावी तरीके को अथार्त काला हिट, का उपयोग करें।

3. खिड़किया बंद रखें, जिससे सुनिश्चित हो कि मच्छर अंदर न आएं