Friday 18 May 2018

राजवैध रसायन वटी पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

https://vinayayurveda.com/product/rajvaidya-rasayan-vati-200-pills/
राजवैध रसायन वटी एक आयुर्वेदिक दवा है जो पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह पुरुषों की शक्ति को बढ़ाती है और शरीर की कोशिकायों को मजबूत बनाती है।इसके सेवन से से थकावट,चिड़चिडापन,काम में मन लगना ,शररिक कमजोरी,शरीर में दर्द,जोड़ो में दर्द,सास फलने जैसे बीमारियो दूर होती है। यह रक्त और वीर्य वर्धक है।  यह इरेक्टाइल डिसफंक्शन, नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष आदि के इलाज के लिए लाभकारी है। इसमें प्रमुख द्रव्य शुद्ध शिलाजीत है जो एक रसायन है और बल्य औषधि का कार्य करता है। इस योग में त्रिफला और भूमि आमला है जो शुक्रशोधक है। ये पुरुषो के लिए बहुत ही उतम टॉनिक है। इसमें मौजूद भूमि आमला और त्रिफला शरीर को शुद्ध करने के लिए भी एक अद्भुत प्राकृतिक औषधि हैं। इसमें मौजूद अश्वगंधा शुक्रजनन का कार्य करता है। राजवैध रसायन वटी में अश्वगंधा मौजूद है जो पुरुषों के प्रजनन अंगो पर प्रभाव डालती हैं और वीर्य की गुणवत्ता और मात्रा को भी बढ़ाने में सहायक है। इस का दूसरा घटक भूमि आमला शरीर की कमजोरी को कम करता है और इम्युनिटी को भी बढ़ाता है और त्रिफला तीन जड़ी-बूटियों (आमला, हरड़ और बहेड़ा) का मिश्रण हैं जो शरीर की गन्दगी को बाहर निकालने में सहायता करता हैं और पाचन क्रिया भी ठीक रखता हैं।

घटक द्रव्य---- 

  • लोह भस्म (५० मिलीग्राम ) आइरन का ऑक्साइड हाओ और आयुर्वेद में इसका उपयोग अधिक मात्र में किया जाता है क्यूंकी ये क्रोनिक बीमारियो के इलाज और फंडू रोग या अनेयमिया को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
  • वंग भस्म (१० मिलीग्राम )इसे हल्का,दस्तावर,रूखा,गरम,पितकरक,मान गया है। इसे प्रमुख रूप से कफ,कृमि,पांडु और श्रवास रोगो में प्रयोग किया जाता है।
  • असगंद( ५० मिलीग्राम )अश्वगंधा को असगंद नाम से जाना जाता है। इसकी जड़ को सुखकर पाउडर बनाकर वाट कफ,बलवर्धक रसायन की तरह प्रयोग किया जाता है।
  • गोखरू( २५ मिलीग्राम )ये आयुर्वेद सबसे प्रमुख ओषधि है क्यूकी ये पेशाब के रोगो एवं पुरुषो के योन कमजोरी के लिए प्रयोग में लिया जाता है।
  • कौच बीज (९० मिलीग्राम)इसके सेवन से टेस्टोस्टेरोन ,लुटिनीसिंग आदि में प्रयोग में लिया जाता है। मनशिक तनाव,नसो की कमजोरी,की एक अछि ओषधि है।
  • सौठ,मिर्च ,पिपली (१० मिलीग्राम )ये आम दोष जैसे विषाक्त और अपशिस्त को दूर करता है। ये बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उटेजित करता है।
  • मूसली(२५ मिलीग्राम)ये पुरुष प्रजनन प्रणाली को दुरुस्त करती है। मूसली की जड़ो में पुरुषो की योन की कमजोरी के लिए एक पोशाक या टॉनिक के रूप में कार्य करती है।
  • शुद्ध शिलाजीत (५० मिलीग्राम) शुद्ध शिलाजीत पुरुषों में शुक्राणुओ की संख्या बढ़ाता है। ये पुरुषो के प्रमेह की अत्यंत आतम दवा है।जो योन विकारो के उपचार के लिए इसतमाल किया जाता है।
  • अभ्रक भस्म १० मिलीग्राम
  • स्वर्ण मक्षिक भस्म १० मिलीग्राम
  • यशद भस्म ४० मिलीग्राम
  • मुक्ता पिसती १० मिलीग्राम
  • जायफल २० मिलीग्राम
  • दालचीनी २० मिलीग्राम
  • जावित्री १० मिलीग्राम
  • केसर २० मिलीग्राम
  • मंजीत १० मिलीग्राम
  • अनंत मूल १० मिलीग्राम
  • ब्रहमी १० मिलीग्राम
  • स्वर्ण भस्म १० मिलीग्राम
  • त्रिफला चूर्ण ६० मिलीग्राम
  • भूमि आमला १० मिलीग्राम
  • राजवैध रसायन वटी में निम्नलिखित औषधीय गुण है:
    १) रसायन द्रव्य जो शरीर क बीमारियो में रक्षा करे साथ ही वृद्धवस्था को दूर रखने में सहायक हो ।
    २) शोथहर द्रव्य जो शोथ या शरीर में सूजन को दूर कर।
    ३) वृष्य वा वाजीकरणद्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करता है।जो बलकरक बाजीकरक और व्रीयवर्धक हो।
    ४) शुक्रजनन,शुक्रस्तम्भन, शुक्रशोधन द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे।
    ५) रक्त प्रसाधन द्रव्य जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बूस्टर हो ।

गंभीर से गंभीर रोग में शीघ्र स्वस्थ होने की विधि

                                                     गंभीर से गंभीर रोग में शीघ्र स्वस्थ होने की विधि
1)प्रति दिन रात समय से सो जाओ लगभग रात्रि 10 बजे अथवा जैसे ही सहज नींद आ जाये,प्रातः जल्दी उठे अथवा जैसे सहज हो, अपने आलस को सहजता मत समझ लेना है।लगभग 7 घण्टे की नींद लेना उचित है।
2)सुबह उठकर ताजा जल 2-3 गिलास बैठकर जरूर पिए । फिर नित्य कर्म से निवृत होकर टहलने जरूर जाय, व्यायाम जरूर करे,हल्का पसीना आना चाहिए ।
3)गहरी लंबी धीमे धीमे नाभि तक स्वास छोड़ना लेना जरूर करे,दिन के समय भी जब भी याद आये , गहरी लम्बी स्वास ले छोड़े।ज्यादा से ज्यादा गहरी लम्बी धीमी स्वास की आदत डालें , नाभि तक गहरी लंबी धीमी स्वास लेनी है छोड़नी है ।जिससे शरीर में प्राण की मात्रा बढे।
4)जब आप स्वास को ले रहे है आँखे धीमे से बंद कर ले और आती जाती स्वास को पहले कुछ दिन नाक के नथुने से बहार आते अंदर जाते महसूस करे देखे,अपना पूरा ध्यान इस बात पर रहे कैसे स्वास आप धीमे धीमे अंदर ले रहे है ।उस स्वास को उसके स्वाद को महसूस करे। कैसे धीमे धीमे बहार निकाल रहे है।शुरू शुरू में 1 घण्टे ध्यान में सुबह व शाम बैठे या खड़े होकर जिस भी स्थिति में सहज हो , अपनी गहरी स्वास के आने जाने को ध्यान करे ।
                                                         विनय त्रिफला रस सेवन करे निरोगी रहे 
5)जब आप स्वास ले रहे होते है ध्यान पूरा नाक के नथुने से अंदर प्रवेश करती व बाहर निकलती प्राण वायु पर हो।
साथ ही साथ। “””स्वस्थ हूँ””” के भाव को हर स्वास के साथ करे।
6) कुछ दिन इस तरह ध्यान करने से आप नाक के नथुनों से आज्ञा चक्र तक दोनों भौहों के मध्य माथे तक कुछ शितलता खिंचाव महसूस करेंगे,वायु के घर्षण को महसूस करेंगे।
7)तब आप दोनों भौहों के मध्य माथे पर ही अपना ध्यान ,स्वास की शितलता पर ले जाकर आते जाते स्वास को महसूस करेंगे और अपने भाव को सतत हर आती जाती स्वास के साथ दोहराएंगे।”””” स्वस्थ हूँ””” ऐसा सिर्फ भाव ही नही करना है अपने स्वास्थ्य को महसूस करे। उसके घटने को महसूस करे ।प्राण के रूप में जो संजीवनी हममे प्रवेश कर रही है की वो लगातार आपको स्वस्थ बनाए हुए है। बार बार हर स्वास के साथ “””” स्वस्थ हूँ”””, “””” स्वस्थ हूँ””” दोहराए अपने भाव को प्रगाढ़ करे।
8)शुरू शुरू में उपरोक्त कार्य एक घण्टे सुबह एक घण्टे शाम ताजी स्वच्छ वायु में करे। हर आती जाती स्वास के साथ आप एक ही भाव गहरे में रखे”””स्वस्थ हूँ”””, “”” स्वस्थ हूँ”””।इस मंत्र को ही दोहराना है।
9)”” स्वस्थ हूँ”” ये आपका मंत्र है। इसको हर स्वास के साथ जोड़ देना है। जो कार्य हमने 1 घण्टे सुबह 1 घण्टे शाम किया इसको अपने पूरे 24 घण्टे पर फैला दो।ध्यान के समय के अलावा जब आप ये कर रहे है आँख बंद करने की भी जरूरत नही।एक धारा सतत चित में प्रगाढ़ होती रहे “””” स्वस्थ हूँ”””” और परमात्मा के प्रति धन्यवाद के भाव से भरे।रात को सोने से पूर्व इसी भाव के साथ सो जाय ,जिससे रात भर ये मंत्र काम करता रहे,साथ ही साथ परमात्मा के अनुग्रह का भाव धन्यवाद का भाव रहे।
10)आप जैसे सहज महसूस करे इस अभ्यास को करे।
मूल बात ये है कि हमे मन से ये बार बार दोहराना है कि “””स्वस्थ हूँ””” साथ में गहरी लंबी धीमी नाभि तक स्वास का अभ्यास करना है दोनों को जोड़ देना है।
11) यह शिव सूत्र है “””चित ही मंत्र है””” आप जो भी मन से दोहराते है वही घटने लगता है।जो भी दोहराओगे वही घटने लगेगा।वही घटता भी है। आपके मन के द्वारा जो भी बार बार पुनरुक्ति की जाती है वह चित की धारा में प्रवाह बन जाता है।वही शक्ति बन जाती है।वही आपके याद करते ही प्रकट होने लगती है।मन शरीर दो नही एक ही है।मन पर जो जो घटेगा शरीर पर लक्षण आने शुरू हो जाते है।दोनों एक दूसरे से गहरे में जुड़े है।
12) उपरोक्त प्रक्रिया में एक बात और जोड़ लीजिये यदि आप किसी गंभीर बीमारी से , रोग से ग्रसित है , शीघ्र स्वस्थ होना चाहते है तो आप अपने दोनों हाथों की हथेलियां आपस में टकराए । यह एक दिन में कम से कम 500 बार जोर जोर से हथेलियां टकराकर बजाये।हर टकराहट के साथ एक ही भाव की आप “”” स्वस्थ है””” ये मंत्र बन जाय।आपके गहरे में ये भाव एक धारा प्रवाह बन जाय।आपका अंतश इस जगत में फैले प्राण प्रवाह को संजीवनी को आपमें तेजी प्रवेश के लिए तैयार होगा । वो सभी ग्रन्थियां जो मन व शरीर के स्तर पर गलत जीवन शैली से पैदा हो गयी टूट जायेगी।
13)आप कितनी भी गंभीर बीमारी से, लाइलाज बीमारी से ग्रसित है इस सूत्र को समझ कर उपयोग कर इसका लाभ ले सकते है।आप साधना शुरू होने के उपरांत 15 दिन में एक बार चेकअप जरूर कराये,सतत लगे रहे,आपको लाभ जरूर मिलेगा।धीमे धीमे ये बात प्रगाढ़ होना शुरू हो जायेगी की आप स्वस्थ हो रहे है।एक क्रम तेजी से आपको स्वस्थ करने में विकसित होने लगेगा।
जब तक आप पूर्ण स्वस्थ न हो जाये सतत इस प्रक्रिया में लगे रहना है।परमात्मा के प्रति एक अनुग्रह ,धन्यवाद के भाव से भरे आगे बढ़ना होता रहे तो बड़ा सहयोगी होगा।पूरा अस्तित्व आपको स्वस्थ किये जाने के प्रवाह से भर उठेगा।
14) पूर्व में सभी मंत्रो का निर्माण इसी मन की प्रक्रिया को ध्यान में रख कर किया गया था जो हम विस्मृत कर चुके है।इस विधि के संबंध में किसी पूर्वाग्रह से भरे बिना पहले करे देखे,परिणाम निश्चित है।ये पूरा वैज्ञानिक है।आप हर 15 दिन पर अपना चेकअप कराकर अपनी प्रगति रिपोर्ट बनाये।आप समझ जाएंगे ये कारगर है।ये गहरे से गहरे सूत्रों में से एक है।
उत्तम विद्रोही जैन
विनय प्राकृतिक व आयुर्वेदिक उपचार केंद्र
उधना – सूरत
संपर्क – 8460783401

Wednesday 18 April 2018

डायबिटिज (मधुमेह Diabetes) - इससे आप परेशान न हो बस इन बातों का ध्यान रखे

डायबिटिज मधुमेह Diabetes - देश में जिन बिमारी ने ज्यादा लोगों को घेर रखा है, उसमें से एक मधुमेह है ।रक्त शर्करा (शुगर) का स्तर सामान्य से अधिक वृद्धि करने के कारण होने वाले बीमारी रोग है जिसे डॉक्टरी भाषा में hyperglycemia कहा जाता है। मधुमेह के लक्षण इतने धीरे धीरे प्रकट होते हैं कि साधारणत: रोगी का ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता Normal Blood Glucose Level सामान्य रक्त शर्करा स्तर, 3.9 - 5.5 mmol/L(70 से 100 मिलीग्राम / डीएल) होना चाहिए। हालांकि, ब्लड शुगर लेवल दिन भर उतार चढ़ाव होता रहता। डायबिटिज के सबसे आम रूप - टाइप 2 मधुमेह,डायबिटिज है। टाइप 2 मधुमेह है, शरीर ठीक से इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाता। अदरक एक ऐसा कंद है,जिसमें डायबिटिज को काबू में रखने के अनेक गुण पाये जाते है । डायबिटिज में सबसे बडी परेशानी ये होती है कि कोशिकाएँ खाना पचने के बाद शरीर में बनने वाले शुगर को अवशोषित नहीं कर पाती । इसकी वजह से शरीर में इन्सुलिन की कमी हो जाती है । अदरक शरीर की कोशिकाओं को शुगर अवशोषित करने में मदद करता है । डायबिटीज के रोगियों को बडा खतरा आखों की रोशनी खोने का होता है । अदरक का अर्क न केवल मोतियाबिन्द रोकता है बल्कि इससे पीड़ित रोगी में ये रोग बढ़ने की गति को भी कम कर देता है । अदरक सेवन से आँखों की रोशनी भी बढ़ती है ।साथ मे विनय त्रिफला रस एलोवेरा युक्त सेवन करने मधुमेह मे फायदा के साथ आंखो की रोशनी भी तेज होती है ! मधुमेह के लिए विनय डाइबो रस का सेवन मधुमेह को नियंत्रित करता है ! 
मधुमेह रोगियो के मधुमेह आहार योजना---- 
मधुमेह को रोकने और नियंत्रित करने के लिए कदम उठाते हुए अभाव का कष्‍ट सहने की जरूरत नहीं है। न ही आपको मिठाई को पूरी तरह छोड़ने की जरूरत है। बल्कि जीवन भर हेल्‍दी डाइट लेना महत्‍वपूर्ण है। फाइबर से उच्‍च और शुगर और फैट में कम और दिल के लिए स्‍वस्थ आहार मधुमेह प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण होता है। मधुमेह से पी‍ड़‍ित लोग स्‍वस्‍थ खान-पान और दैनिक आहार योजना बनाकर ब्‍लड शुगर के स्‍तर को नियंत्रित कर सकते हैं।
मधुमेह को नियंत्रण करने के लिए आपको कुछ उपायों पर अमल करना होगा। इसके लिए आपको अपने आहार को छोटे भागों में विभाजित करना होगा। नियमित रूप से अपने सभी आहार को लेने कोशिश करें। इसके अलावा अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट, मिनरल और फाइबर से परिपूर्ण खाने की कई आइटम को जोड़ने का प्रयास करें।
सुबह जल्दी : 6-7 बादाम / 1-2 अखरोट।
नाश्ते में आइटम : 1 कटोरी ओट्स/ दूध/ /मल्‍टीग्रेन ब्रेड/सब्जियां/दही/टोस्ट।
सुबह का नाश्ता : आप पपीता, नारियल और छाछ आदि सहित मौसमी फल जोड़ सकते हैं।
दोपहर के भोजन के मेनू: सलाद, सब्जियां, दाल, चपाती, दही, चावल, पनीर  आदि।
शाम का नाश्ता : फल और स्‍नैक्‍स जैसे ढोकला, इडली, भुना हुआ नमकीन और मुरमुरा आदि।
रात के खाने से पहले : मिक्स्ट सब्जियों का सूप।
रात का भोजन: चपाती, सब्जी, दाल, हरा सलाद।
मधुमेह होने पर चीनी को बिल्‍कुल नहीं लेना यह हम सभी के दिमाग में बैठा हुआ है। लेकिन अच्‍छी खबर यह है कि स्‍वस्‍थ आहार योजना को ठीक से लागू करने पर आप अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों का आनंद ले सकते हैं। मिठाई को सीमा से दूर रखने की जरूरत नहीं है जब तक यह एक स्वस्थ भोजन योजना का हिस्सा है या व्‍यायाम के साथ जुड़ा हुआ है। बहुत ज्यादा प्रोटीन, विशेष रूप से पशु प्रोटीन, खाना इंसुलिन प्रतिरोध का कारण बन सकता है। जो वास्‍तव में मधुमेह का एक महत्वपूर्ण कारक है। संतुलित आहार एक कुंजी है। एक स्‍वस्‍थ आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा शामिल होता है। हमारे शरीर को ठीक ढ़ंग से काम करने के लिए तीनों की जरूरत होती है। संतुलित आहार खाना सेहत की कुंजी होती है। सर्विंग का साइज और कार्बोहाइड्रेट का प्रकार विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता हैं। इसलिए होलग्रेन कार्बोहाइड्रेट पर ध्‍यान दें क्‍योंकि यह फाइबर का अच्छा स्रोत होता हैं। आसानी से पच जाता है और रक्त में शुगर के स्तर को सही रखता है। दूध कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का सही संयोजन होता है और यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।  दैनिक आहार में दूध के दो गिलास पीना एक अच्‍छा विकल्‍प है !अपने आहार में उच्‍च फाइबर सब्जियां जैसे मटर, सेम, ब्रोकोली, पालक और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें। इसके अलावा दालें भी एक स्वस्थ विकल्प हैं और इसे आपके आहार का हिस्सा होना चाहिए।फाइबर से भरपूर फल जैसे पपीता, सेब, संतरा, नाशपाती और अमरूद का सेवन भी करना चाहिए। आम, केले और अंगूर में शुगर की उच्‍च मात्रा होने के कारण इन फलों को सेवन कम करना चाहिए।कृत्रिम स्‍वीटनर मूल रूप से शुगर से मिलने वाली कैलोरी को कम करता है। इन गोलियों का सेवन एक दिन में 6 गोलियों से कम होना चाहिए क्‍योंकि ज्‍यादा लेने से इसके साइड इफेक्‍ट होने लगते है। हालांकि, संयम एक बेहतर तरीका से जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण होता है। मधुमेह नियंत्रित किया जा सकता है अगर डॉक्टर और रोगी संयोजन के साथ काम करें।यदि आप मोटे हैं, तो मधुमेह की रोकथाम वजन घटाने पर निर्भर हो सकती है। वजन का हर एक किलो कम करना आपके स्वास्थ्य में सुधार कर सकता हैं और आपके लिए आश्चर्यजनक हो सकता है। कम कार्बोहाइड्रेंट आहार और आहार योजना आपको वजन कम करने में मदद कर सकती हैं।हम में से ज्‍यादातर लोग विटामिन डी को महत्‍वपूर्ण नहीं समझते हैं। लेकिन यह मधुमेह से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसलिए विटामिन डी के स्तर की जांच की जानी चाहिए। कम विटामिन डी मधुमेह का कारण भी हो सकता है। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत धूप पड़ना है।मधुमेह रोगियों के लिए बिना तेल के खाना बनाना सीखना होगा। परिष्कृत उत्पाद ( चीनी, सफेद आटा, सफेद चावल, फलों का रस आदि) खाना बंद करना होगा। साथ ही प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ खाने बंद करने होगें। इसके अलावा डेयरी उत्पाद खाने और पीने बंद करने होगें।
नोट - मधुमेह रोगी विनय त्रिफला रस व  विनय डाइबो रस  का सेवन कर 2 माह मे बेहतरीन रिजल्ट प्राप्त कर सकते है  !
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Monday 12 March 2018

स्नायु संस्थान (मस्तिष्क) की कमज़ोरी में अमृत है -आंवला

आंवले के  फायदे----  ख़राब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम करना : अगर आप हाई कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित हैं तो सिर्फ एक ग्लास आंवले का जूस आपके लिये बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। जर्नल मेनोपॉज में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, आंवले के नियमित सेवन से ख़राब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा ये ट्राईग्लीसेराइड लेवल को कम करके इंसुलिन रेजिस्टेंस को भी बढ़ा देते हैं।

बालों के लिये फायदेमंद : विटामिन सी और एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण आंवले के जूस का नियमित सेवन आपके बालों के लिये वरदान है। ये बालों को तेजी से बढ़ाने के अलावा उन्हें मजबूत और काला बनाये रखते हैं।

त्वचा के लिये फायदेमंद : आंवले में एंटी-आक्सीडेटिव क्षमताएं होने के कारण यह आपकी त्वचा को हमेशा यंग बनाये रखते हैं और बढती उम्र के प्रभावों को आपसे दूर रखते हैं।

सर्दी-जुकाम से राहत : आंवले में ऐसे कई औषधीय गुण होते हैं जिनसे यह आपको सर्दी जुकाम जैसी आम बीमारियों से लम्बे समय तक बचाये रखते हैं।


(आमला जूस के जगह  विनय त्रिफला रस भी ले सकते है ऊपर के लिंक पर क्लिक करे  )

डायबिटीज को कंट्रोल करना : जर्नल फ़ूड एंड फंक्शन में 2004 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार आंवले में गैलिक एसिड, गैलोटेनिन, एलैजिक एसिड और कोरिलैगिन पाये जाने और उनके एंटी-डायबिटिक क्षमताओं के कारण यह आपके ब्लड ग्लूकोज लेवल को कम करते हैं और आपके डायबिटीज को नियंत्रण में रखते हैं। इसलिए रोजाना जूस पीना न भूलें।

कैंसर से बचाव : आंवले में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी क्षमताएं होने के कारण इसके जूस का नियमित सेवन हमारे शरीर को कैंसर से बचाने में मदद करता है।

पौरुष लाइफ बेहतर बनाने में मददगार : आंवले में शक्तिवर्धक गुण पाये जाते हैं, साथ ही ये विटामिन सी के भी मुख्य स्रोत होते हैं जिस कारण ये पौरुष को बढ़ाने में मदद करता है। अंतरंग के दौरान आपकी क्षमता को भी बढ़ाने में मदद करते हैं जिससे आपकी लाइफ़ और बेहतर हो जाती है।

आप चाहे तो आवले का मुरब्बा भी ले सकते है आंवले का मुरब्बा शीतल और तर होता हैं, आंवला नेत्रों के लिए हितकारी, रक शोधक, दाहशामक तथा हृदय, मस्तिष्क, यकृत, आंते, आमाशय को शक्ति प्रदान करने वाला होता हैं। इसके सेवन से स्मरण शक्ति तेज़ होती हैं। मानसिक एकाग्रता बढ़ती हैं। मानसिक दुर्लब्ता के कारण चक्कर आने की शिकायत दूर हो जाती हैं। सवेरे उठते ही सर दर्द और चक्कर आते हो तो इस से लाभ मिलता हैं।

सेवन विधि – प्रतिदिन प्रात: खाली पेट ९० ग्राम ( दो चम्मच भर ) मुरब्बा लगातार तीन-चार सपताह तक नाश्ते के रूप में ले, विशेषकर गर्मियों में। चाहे तो इसके लेने के पंद्रह मिनट बाद गुनगुना दूध भी पिया जा सकता है। चेत्र या क्वार मांस में इसका सेवन करना विशेष लाभप्रद है।  ऐसा मुरब्बा विधार्थियो और दिमागी काम करने वालो की मस्तिष्क की शक्ति और कार्यक्षमता बढ़ाने और चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए अमृत है। इससे विटामिन सी, ए, कैलशियम, लोहा का अनूठा संगम है। 100 ग्राम आंवले के गूदे में 720 मिलीग्राम विटामिन सी, 15 आइ. यू. विटामिन ए, 50 ग्राम कैल्शियम, 1.2 ग्राम लोहा पाया जाता है। आंवला ही एक ऐसा फल है जिसे पकाने या सुखाने पर भी इसके विटामिन नष्ट नही होते।

Friday 9 March 2018

विनय त्रिफला रस (एलोवेरा युक्त ) आयुर्वेद का वरदान

विनय त्रिफला रस (एलोवेरा युक्त ) – त्रिफला रस आयुर्वेद का वरदान है त्रिफला रस का प्रयोग आयुर्वेदचार्य सेकड़ो वर्षो से सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक करने में प्रयोग करते आ रहे है इसमें आयुर्वेद की मतानुसार वात ,पित और कफ तीन दोष माने गये है त्रिफला हरंड, बहेडा और आवला से मिलकर बनता है साथ मे एलोवेरा के संयोजन से ओर गुणकारी हो जाता है !और उक्त त्रिदोषो को दूर करता है इसके विस्तृत लाभ निम्न है :-
• त्रिफला रस के सेवन से गैस,कब्ज ,एसिडिटी आदि की समस्या दूर होती है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है
• यह लीवर की सभी समस्याओ को दूर कर लीवर को शक्ति प्रदान करता है
• यह ब्लड प्रेसर को नियंत्रित करता है
• यह केलोस्ट्रोल को संतुलित करता है
• यह ह्रदय को शक्ति प्रदान कर ह्रदय गति को सामान्य करता है
• त्रिफला रस का सेवन लाल रुधिर कणीकाओ के निर्माण को बढाता है
• त्रिफला रस हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है
• यह शरीर में इन्फेक्शन को रोकता है तथा सर्दी ,खासी ,कफ तथा एलर्जी में अत्यंत लाभ करी है
• यह सीने एवं फेफड़ो में जमे हुए कफ को पिघलाकर बाहर निकालने में सहायक है
• यह मस्तिष्क को शक्ति प्रदान कर एकाग्रता को बढाता है तथा डिप्रेशन से बचाता है
• यह नर्वर्स सिस्टम को शक्ति प्रदान कर उससे सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करता है
• त्रिफला रस आँखों के लिए टॉनिक का कार्य करता है यह आँखों की रोशनी को बढाता है तथा आँखों पर पड़ने वाले मधुमेह के प्रभाव को भी दूर करता है
• यह मानसिक तनाव व मानसिक थकान को भी कम करता है
• त्रिफला रस गुर्दों को संक्रमण से बचाता है तथा पथरी बनने से रोकता है
• यह पौरुष शक्ति को बढाता है
• यह शुक्राणु की संख्या बढाता है तथा स्वाथ्य शुक्राणु के निर्माण में सहायक है
• महिलाओ में अनियमित महावारी अति रक्त स्त्राव एवं ल्यूकोरिया आदि की समस्या में अत्यंत लाभकारी है
• यह अग्नाशय की बीटा सेल्स को इन्सुलिन के निर्माण के लिए उत्तेजित करता है अत: मधुमेह में अत्यंत लाभकारी है
• यह त्वचा के लिए भी एक टॉनिक का कार्य करता है यह त्वचा को कील ,मुहासे व झाइयो से बचाता है
• यह शरीर में कोशिकाओं के अनियमित विभाजन को रोकता है अथार्त शरीर में कैंसर की सम्भावना को कम करता है
• यह शरीर का डीटाकशिफ़िक्तिओन करता है
नोट :- गर्भवती महिलाये त्रिफला रस का सेवन न करे
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Saturday 24 February 2018

मोटापा (अंग्रेज़ी: Obesity)



मोटापा (अंग्रेज़ी: Obesity) वो स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है।
[1] यह आयु संभावना को भी घटा सकता है।
[2 शरीर भार सूचकांक (बी.एम.आई), मानव भार और लंबाई का अनुपात होता है, जब २५ कि.ग्रा./मी.२ और ३० कि.ग्रा/मी२ के बीच हो, तब मोटापा-पूर्व स्थिति; और मोटापा जब ये ३० कि.ग्रा/मी.२ से अधिक हो।
[3] मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा हुआ है, जैसे हृदय रोग, मधुमेह, निद्रा कालीन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर और अस्थिसंध्यार्ति
[4 ] मोटापे का प्रमुख कारण अत्यधिक कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन, शारीरिक गतिविधियों का अभाव, आनुवांशिकी का मिश्रण हो सकता है। हालांकि मात्र आनुवांशिक, चिकित्सकीय या मानसिक रोग के कारण बहुत ही कम संख्या में पाये जाते हैं।
उचित वजन— एक युवा व्यक्ति के शरीर का अपेक्षित वजन उसकी लंबाई के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि उसका शारीरिक गठन अनुकूल लगे। शरीर के वजन को मापने के लिए सबसे साधारण उपाय है बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) और यह शरीर के व्यक्ति की लंबाई को दुगुना कर उसमें वजन किलोग्राम से भाग देकर निकाला जाता है।वजन कम करने के लिए लिये उपभोग की जाने वाले खाद्य पदार्थों में यह ध्यान रखना चाहिए कि उनमें प्रोटीन की मात्रा अधिक हो और चर्बी तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो।
भार/लंबाई अनुपात वर्गीकरण
< 18.5 कम भार
18.5–24.9 सामान्य भार
25.0–29.9 अधिक भार
30.0–34.9 श्रेणी-१ मोटा
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Monday 1 January 2018

वात, पित्त और काफ यह त्रिदोष का संतुलित रहना जरुरी - शरीर की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा

आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा विद्रोही आवाज के स्वास्थ्य ब्लॉग के माध्यम से जाने 
 आचार्य चरक, सुश्रुत, वाग्भट जैसे कई बड़े आयुर्वेद तज्ञ ने हजारो वर्षों तक आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से कई लोगो का उपचार किया हैं और करोडो लोगो पर किये गए उपचार के अनुभव पर आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का मूल सिद्धांत निर्माण किया हैं। आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं हैं, 
आयुर्वेद का मतलब हैं – जीवन जीने का सही तरीका ! 
आयुर्वेद शास्त्र में अनेक गंभीर रोगों की चिकित्सा के साथ-साथ देनिक जीवन में हमारे स्वास्थ्य के रक्षण हेतु किस तरह आहार-विहार करना चाहिए इसका सम्पूर्ण ज्ञान दिया हुआ हैं। पंचकर्म  आयुर्वेद में शरीर की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा का वर्णन किया हुआ हैं। आयुर्वेद के सिद्धांत अनुसार शरीर के स्वस्थ रहने के लिए वात, पित्त और कफ यह त्रिदोष का संतुलित रहना जरुरी हैं। इनमे से किसी भी एक दोष का भी असंतुलित होने से शरीर में विषैला रोगकारक तत्व आम की निर्मिती होती जिससे शरीर बिमार पड़ सकता हैं। पंचकर्म चिकित्सा से शरीर का शोधन कर त्रिदोषो को संतुलित किया जाता है और विषैले तत्व को शरीर से बाहर निकाला जाता हैं।  
पंचकर्म चिकित्सा में वमन, विरेचन, नस्य, बस्ती और रक्तमोक्षण इन पांच क्रियाओ का समावेश होता हैं। पंचकर्म करने से पहले स्नेहन और स्वेदन यह दो पूर्वकर्म किये जाते हैं। 
स्नेहन ( Oil Massage ) – जिस कर्म से शरीर में स्निग्धता, मृदुता और द्रवता निर्माण होता है उसे स्नेहन कहा जाता हैं। स्नेहन पूर्वकर्म में औषधि युक्त तेल या घी से शरीर की मालिश की जाती हैं। कभी -कभी स्नेहन करने के लिए घी या मीठी चीज खिलाया या पिलाया भी जाता हैं। स्नेहन करने से शरीर पृष्ट और मजबूत होता है और पंचकर्म सहन करने योग्य बनता हैं। 
स्वेदन  (Sweating ) – जिस प्रक्रिया में शरीर में से स्वेद (Sweat) निकलता है उसे स्वेदन कर्म कहते हैं। स्नेहन करने के बाद औषधियुक्त पानी की बाष्प ( Steam ), गर्म कपडे, पत्थर या रेत से ऊष्मा देकर शरीर का स्वेदन किया जाता हैं।पूर्वकर्म करने से दोष / आम (Toxic substance) आसानी से पंचकर्म करने पर बाहर निकाल दिया जाता है 
(Vomiting) – जिस प्रक्रिया में प्रकुपित दोष (पित्त और कफ)आमाशय (Stomach) से बाहर उलटी द्वारा बाहर निकाला जाता है उसे वमन कहते हैं। वमन पंचकर्म में विशेष विधि के बाद मदनफल आदि औषधि देकर व्यक्ति को उलटी करायी जाती हैं। अंतर्विष जो आमाशय (Stomach), शरीर स्त्रोतस (Systems) और कोशिकाओं (Tissue / cells) में से संचित मल को वमन क्रिया द्वारा निकाला जाता हैं। दमा, अपस्मार, मोटापा, अम्ल पित्त, ह्रदय रोग जैसे अनेक रोग में वमन चिकित्सा लाभदायी हैं। 
विरेचन ( Purgation ) – प्रकुपित दोष, विशेषतः पित्त दोष को गुद्मार्ग से बाहर निकालने को विरेचन कहते हैं। विरेचन द्वारा प्रकुपित दोष का निर्हरण केवल intestine या गुद मार्ग से नहीं होता अपितु संपूर्ण शरीर से होता हैं। कुष्ठ, अर्श, भगंदर, अरुचि, योनी दोष और स्तन दोष जैसे अनेक रोगों में विरेचन चिकित्सा से लाभ होता हैं। 
बस्ति ( Enema ) – बस्ति चिकित्सा प्रक्रिया में औषध युक्त तेल अथवा क्वाथ (Medicated water) गुदमार्ग, मूत्रमार्ग से विशेष यंत्र द्वारा प्रविष्ट किया जाता है। बस्ति का उपयोग सिर से पाँव तक सभी रोगों में किया जाता हैं। बस्ति चिकित्सा का उपयोग आमवात, संधिवात, मधुमेह, पक्षाघात, कब्ज जैसे अनेक रोग में सफलता पूर्वक किया जाता हैं।
नस्य (Nasal drops) – औषधी युक्त स्नेह, चूर्ण को नासा (Nose) मार्ग से देने के क्रिया को नस्य कर्म कहते हैं। नाक को शिर का द्वार समझा जाता हैं और इस द्वार से दी जानेवाली दवा समूर्ण शरीर पर कार्य करती हैं। शिरोरोग, सिरदर्द, माइग्रेन, अजीर्ण, साइनोसाइटिस इत्यादि अनेक रोग में नस्य क्रिया की जाती हैं। 
रक्तमोक्षण (Blood letting) – दूषित रक्त को शरीर से बाहर निकालने के विधि को रक्त मोक्षण कहा गया हैं। शस्त्र या जलौका (Leech) का उपयोग कर दूषित रक्त शरीर से बाहर निकाला जाता हैं। त्वचा रोग, रक्त वाहिनी रोग में इससे लाभ होता हैं।आजकल मनुष्य का जीवन अधिकाधिक यांत्रिक होते जा रहा हैं। अत्याधिक गतिमान जीवन में मानव के आहार-विहार में अनियमितता आ गयी हैं। जिस तरह समय-समय पर कार या साइकिल जैसे यंत्रों के ठीक से चलने के लिए सर्विसिंग की जरुरत होती है उसी तरह हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर की पंचकर्मों द्वारा शुद्धि भी जरुरी हैं। 

Saturday 30 December 2017

द्रोणपुष्पी के फायदे - उपयोग

द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) जिसे हम गुम्मा के नाम से भी जानते है । यह पुरे भारत में पाया जाता है । यह विशेष कर ईंख के खेतो में मिल जाता है ।हिमालय के पहाड़ो पर बहुतायत मात्रा में मिलता है । 
इसे हिंदी में – गुम्मा , दणहली 
 मराठी में – तुंबा 
संस्कृत में - द्रोणपुष्पी  
तमिल में – तुम्बरी ।
तेलगु में – मयपातोसि 
बंगाली में – हलक्स , पलधया 
गुजराती में -कुबो आदि नाम से जाना जाता है । द्रोणपुष्पी के पौधा दो से चार फुट लम्बा एवं चार – पांच शाखाओं वाली गुम्बजकार होता है । द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) ( गुम्मा ) के पौधे पर सफेद रंग के छोटे छोटे रोयें होते है ।इसके पत्ते 2-3इंच लम्बे रोयेदार एवं दांतेदार किनारे वाले होते है ।इसके फूल प्याले जैसे आकृति के सफेद और गुच्छेदार होते है ।फूल के प्रत्येक गुच्छे पर दो पत्तियां लगी रहती है ।इसके जड़ पतली एवं 5 से 6 इंच लम्बे होते है । जिसकी गन्ध तेज होती है । इसका प्रयोग से अनेको रोग दूर हो जाते हैं ।यह उदर – रोग , बिष दोष , यकृत विकार , पक्षाघात आदि में बहुत ही लाभप्रद औषधि है ।

फायदे - उपयोग  

( 1) विषम -ज्वर – गुम्मा या द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) के टहनी या पट्टी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे । इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है ।
( 2 ) सुखा रोग में – सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है । गुम्मा के टहनी या पत्ते को पिस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करे ।इस सुखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है ।
( 3 ) साँप के काटने पर :- किसी भी व्यक्ति को कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो उसे द्रोणपुष्पी ( Leucas aspera ) के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए ।अगर वयक्ति बेहोश हो गया हो तो गुम्मा (द्रोणपुष्पी ) के रस निकाल कर उसके कान , मुँह और नाक के रास्ते टपका दे ।इसे व्यक्ति अगर मरा नही हो तो निश्चित ही ठीक हो जाएगा ।ठीक होने के बाद उसे कुछ घण्टे तक सोन न दे ।

Friday 22 December 2017

आपके दांत चलेंगे बुढ़ापे तक अगर थोड़ी सावधानी रखे

आप सिर्फ इसलिए दांत ब्रश नहीं करते हैं, कि हंसते समय दांत सफेद दिखें या सांस की दुर्गंध से बचाया जा सकें, बल्कि आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है। जब आप ब्रश करते हैं, तो आप अपने दांतो में चिपके प्लाक (plaque) को निकालते हैं— प्लाक दांतो पर चिपकी बैक्टीरिया की एक पतली परत है जिसकी वजह से आपकी दांतो में कैविटी, मसूड़ों में बीमारी, और अगर आप इसे काफी समय तक अनदेखा करते हैं, तो शायद आपके दांत भी गिर जाएंगे! बदबूदार मुंह से आने वाली दुर्गंधित सांस लोगों को आपसे दूर रख सकती है, खासकर, आपसे बड़े भाई-बहनों को। आपको यह तो पता ही है, कि “क्यों” ब्रश करना चाहिए, परंतु अगर आप सीखना चाहते हैं कि कैसे दांतों को सही तरीके से ब्रश करें, तो यह लेख आपके लिए ही है। आइए इसे पढ़ें!
कई लोगों को लगता है कि दांत साफ करने से सिर्फ दांतों का पीलापन दूर होता है। फिर चाहे कैसे मर्जी ही ब्रश कर लो। जबकि ये सोच बहुत गलत है। क्योंकि सही तरीके से ब्रश न करने पर या फिर गलत ब्रश का चुनाव करने पर दांत संबंधी कई रोग हमें घेर लेते हैं। अगर सही तरीके से ब्रश न किया जाये तो दांतों में कैविटी, पायरिया, आदि की समस्‍या होना आम बात हो जाती है। इसलिए ब्रश करते वक्‍त सावधानी बरतें और इसमें जल्‍दबाजी न करें।
वैसे तो सभी लोग नियमित रूप से दांतों की सफाई करते हैं, लेकिन टूथब्रश करने का सही तरीका बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा। असल में दांत साफ करने के लिए जो समय आदर्श माना जाता है वह 3 मिनट का होता है। एक शोध के अनुसार लेकिन आजकल बिजी लाइफस्टाइल के चलते लोग दांत साफ करने में भी खानापूर्ति करते हैं। जिसके चलते ब्रश का समय आजकल सिर्फ 1 मिनट रह गया है। आज हम आपको ऐसी कुछ बातें बता रहे हैं जिन्हें ब्रश करते वक्त आपको ध्यान रखनी चाहिए। आइए जानते हैं क्या हैं वो बातें—

न करें 2 बार से ज्यादा ब्रश

कई लोग बहुत जल्दी जल्दी दांत साफ करते हैं और साफ दांत के लालच में दिन में 3 से 4 बार भी ब्रश कर लेते हैं। लेकिन एक दिन में तीन बार से ज्‍यादा ब्रश करना, जलन के साथ दांतों की जड़ों को भी कमजोर करता है। इसलिए इसलिए दिन में दो बार ही ब्रश करें।

कैसा हो टूथ ब्रश

मुलायम नायलॉन के रेशे वाले टूथब्रश का चयन करें। यह टूथब्रश, अन्य सख्त टूथब्रश के मुकाबले, ऊपर नीचे ब्रश करते समय, मसूड़ों या दांत के इनेमल को नुकसान पहुंचाए बिना, आपके दांतो में लगे प्लाक और फंसे अन्नकणों को निकालता है। टूथब्रश ऐसा होना चाहिए जिसे आप आराम से पकड़ सकें, मतलब ब्रश की पकड़ सही हो, ब्रश का आकार छोटा होना चाहिए, ताकि वह आसानी से सभी दांतों तक पहुंच सकें, खासकर पीछे वाले दांत (जैसे दाढ़, अग्रदाढ़ और अक्ल दाढ़)। अगर ब्रश पीछे वाले दांतों तक नहीं पहुंच रहा है, तो शायद उसका आकार बड़ा है।
  1. सही समय पर टूथब्रश के ना बदलने पर भी कई समस्याएं होने लगती हैं। जिसके चलते दांतों की सफाई सही तरीके से नहीं हो पाती और इनसे संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है। बीमारी से पी‍ड़ि‍त लोगों को तो शरीर में कीटाणुओं और जीवाणुओं के प्रवेश से बचने के लिए टूथब्रश की स्‍वच्‍छता पर बहुत ध्‍यान देना चाहिए।
  2. अकसर लोगों का टूथब्रश खरीदते समय इस बात पर ध्‍यान ही नहीं जाता कि बहुत सख्‍त ब्रिसल्‍स वाले ब्रश मसूड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए ‌मुलायम टूथब्रश ही लें। जो दांतों के बीच आसानी से जा सकें और जिनसे मसूड़ों के छिलने का डर भी न हो।

सफाई

दंत और मसूड़ों की समस्या, जैसे कैविटीज़ (cavities) होने से रोकना, दांत का मैल (Tartar), दांतो और मसूड़ों में झनझनाहट (sensitivity), मसूड़ों में सूजन (gingivitis), और दांतो में दाग से निवारण पाने के लिए खास टूथपेस्ट का चयन कर सकते हैं। यह फैसला आपको लेना है, कि आपके दांतो के लिए कैसा टूथपेस्ट सही है, या अपने डेंटिस्ट या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लें।
ब्रश करने के बाद कुल्ला करने के तरीके का भी हमारे दंत स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। क्‍योंकि ठीक से कुल्‍ला न करने के कारण दांतों में बैक्‍टीरिया विकसित होने लगते हैं। इसके अलावा टूथपेस्ट में फंसे हुए कणों से छुटकारा पाने के लिए अच्‍छी तरह से ब्रश को धोना भी बहुत जरूरी होता है।

दांतों को फ्लॉस करें:

दांतों को फ्लॉस करना, दांतों को ब्रश करने जितना ही जरूरी है, क्योंकि यह जमे हुए प्लाक, बैक्टीरिया, और दांतों के बीच फंसे अन्नकणों को निकालता है, जहां मुलायम, ढीले पड़े रेशे वाले टूथपेस्ट, ऊपर/नीचे ब्रश करने पर भी नहीं पहुंच पाते हैं। दांतों को ब्रश करने से “पहले” आपको फ्लॉस करना चाहिए, ताकि कोई फंसे हुए अन्नकण या बैक्टीरिया मुंह से बाहर निकल आते हैं।
याद रखें ध्यानपूर्वक फ्लॉस करें। फ्लॉस दांतों के बीच “अचानक टूट जाने से” आपके दांतों में तेज़ झनझनाहट हो सकती है, इसलिए ऐसा करने से बचें।
अगर आपको फ्लॉस करना अजीब लगता है, या आपके दांतों में ब्रेसेस (braces) लगे हैं, तो आप टूथपिक का इस्तेमाल कर सकते हैं। टूथपिक, छोटी सी लकड़ी या प्लास्टिक की स्टीक होती है, जो आप दांतों के बीच डाल सकते हैं, और फ्लॉस की तरह ही दांतों की सफाई कर सकते हैं, अगर आपके दांतों के बीच काफी जगह है तो।

कम मात्रा में टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें:

अपने टूथब्रश पर मटर जितना टूथपेस्ट लगाएं। ब्रश पर ज्यादा टूथपेस्ट लगाने से, ब्रश करते समय ज्यादा झाग निकल सकता है, जिससे बार-बार थूकने के लिए, और जल्दी पेस्ट खत्म करने के लिए आप मजबूर हो जाएंगे। इसके अलावा, फ्लोराइड टूथपेस्ट निगलने का खतरा बढ़ जाता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है।
अगर ब्रशिंग करना दर्दनाक लगता है, तो सावधानीपूर्वक दांतो पर ऊपर/नीचे ब्रश करने का प्रयत्न करें या अपने टूथपेस्ट को सेन्सिटिव दांतो के लिए उपयुक्त टूथपेस्ट से बदल दें।

कम से कम तीन मिनट तक ब्रश करें:

एक साथ सिर्फ कुछ दांत ब्रश करने से शुरूआत करते हुए, पूरे दांतो की सफाई करके एक दौर पूरा करें (मतलब निचली तरफ के बाहरी दांतों के बायें ओर से शुरू करते हुए दाहिनी तरफ तक ब्रश करें, फिर ऊपरी तरफ बाहरी दांतों के दाहिनी ओर से बायें तरफ तक ब्रश करें, फिर ऊपरी दांतों के पिछली तरफ बायें ओर से दाहिनी तरफ तक ब्रश करें, और फिर निचले दांतों के पिछली तरफ बायें ओर से शुरू करके दाहिनी ओर तक ब्रश करें), ताकि हर जगह पर, हर दांत की सफाई में कम से कम 12 से 15 सेकंड समय आप दे सकें। अगर ऐसा करने से मदद मिलती है, तो आप अपने दांतो को चार हिस्सों में बांट लें: जैसे ऊपरी दांतों की बायें तरफ, ऊपरी दांतों की दाहिनी तरफ, पिछले दांतों की बायें तरफ तथा पिछली दांतों की दाहिनी तरफ। अगर आप ब्रश करने के लिए हर जगह के लिए 30 सेकंड का समय देते हैं, तो पूरे दांतों को ब्रश करने के लिए आपको दो मिनट का समय लगेगा।

Sunday 10 December 2017

महिलाओं में माहवारी सम्बंधित समस्त समस्याओं का समाधान

महिलाओं में माहवारी सम्बंधित समस्त समस्याओं का समाधान-एक बार जरूर पढ़ें
माहवारी के समय अत्यधिक और अनियमित रक्त स्त्राव और माहवारी आने से पहले होने वाली समस्याएं जैसे – जी मिचलाना, उलटी, कमर दर्द, थकावट वगैरह होना मुख्यतः हार्मोनल असंतुलन (estrogenऔरprogesteroneका असंतुलन ) होने के कारण होती है। जिससे गर्भाशय में संकुचन ज्यादा होने लगता है, अत्यधिक और अनियमित (imbalance) रक्तस्त्राव को नियमित करने के लिए एक बहुत ही सरल और Scientifically प्रमाणित  घरेलु उपाय जो महिलाओं को उनके रसोई घर में आसानी से मिल जायेगा। अगर कोई PCOS की समस्या से पीड़ित है तो वो भी इसे ले सकते हैं
ये एक प्रकार कि हार्मोनल समस्या है जो मुख्यता  ovaries से  एण्ड्रोजन हारमोंस के सामान्य से ज्यादा निकलने के कारण हो जाती है. जिससे हार्मोनल असंतुलन हो जाता है, इसका महिलाओ में मुख्य कारण insulin resistance  है जिसमे insulin की मात्रा सामान्य से कही ज्यादा हो जाती है जो  हार्मोनल imbalance (estrogen और Progesterone का असंतुलन) कर देते है. Insulin resistance pcos का एक मुख्य कारण माना गया है. इसके साथ साथ दालचीनी गर्भाश्य में रक्त के सर्कुलेशन को बढ़ाता है जो गर्भाश्य को पोषण देता है। PCOS की समस्या में दालचीनी एलोपैथिक दवा Metformin (anti diabetic) की तरह काम करती है मेटफॉर्मिन PCOS एवं PCOS से related बांझपन के इलाज में काम आती है।
प्रयोग के लिए अवश्यक सामग्री
  • 1 कप नारियल का दूध (नारियल का दूध बनाने के लिए पानी वाले नारियल (ये हरा नारियल नहीं है) को कद्दूकस (Grated) करके उसको ब्लेंडर या मिक्सर में एक कप पानी डाल कर Blend करते रहें, जब तक की वो बिलकुल दूध की ना तरह दिखने लगे, फिर उसे किसी कपडे या छलनी से छान लें।
  • 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
  • 1  छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर (2 ग्राम से ज्यादा न लें)
  • 1/4 चम्मच अदरक रस (2 ग्राम से ज्यादा न लें)
मिठास के लिए आप इसमें कोई भी Sweetener मिला सकते हैं। 
आप इसे लगातार 1 महीने तक लें, दिन में एक बार। खाना खाने के बाद लें, खाली  पेट सेवन ना करें
बनाने का तरीका----नारियल के दूध को गर्म करे, पहले हल्दी डालिए, थोड़ी देर हिलाने के बाद इसमें दालचीनी और अदरक डालिए. अगर आप इसमें कोई sweetener डालना चाहते हैं तो स्वादानुसार डाल लीजिये। नारियल दूध के अन्दर Lauric Acid पाया जाता है, जो बहुत अच्छा anti-bacterial, anti Viral और anti Fungal है। जो Vagina (योनी) में होने वाले fungal और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाता है।  ये नारी के प्रजनन तन्त्र को इन्फेक्शन से बचने के लिए काफी लाभदायक है।
हल्दी में Curcumin पाया जाता है जो एक बहुत अच्छा दर्द निवारक और anti-inflammatory (सूजन को कम करता है) ये शारीर में Prostaglandin की मात्र को कम करता है ये Prostaglandin गर्भाशय में संकुचन पैदा करता है जो Bleeding को बढ़ाता है. इस तरह हल्दी bleeding को कम करने में बहुत सहायक है ।
हल्दी प्राकृतिक रूप से estrogen की मात्रा को कम करती है।  Estrogen Harmone की मात्रा सामान्य से ज्यादा होने की वजह से माहवारी में अनिमियतता आती है तो हल्दी उसको भी ठीक करती है।
दालचीनी गर्भाशय में रक्त के सर्कुलेशन को बढ़ाता है जो गर्भाशय को पोषण देता है। PCOS की समस्या में दालचीनी एलोपैथिक दवा Metformin (anti diabetic) की तरह काम करती है मेटफॉर्मिन PCOS एवं PCOS से related बांझपन के इलाज में काम आती है। ये bleeding रोकने में भी सहायक है।
अदरक में gingerol पाया जाता है जो एक बहुत ही अच्छा anti-inflammatory (सूजन को कम करता है) जो गर्भाशय में होने वाली किसी भी प्रकार की सूजन को कम करता।  ये शरीर में Prostaglandin की मात्र को कम करता है।
यह भी पढे -  स्त्री की समस्याएँ व उनका समाधान

Friday 8 December 2017

ऑस्टियोपोरोसिस ( अस्थिसुषिरता ) रोग और इसे से जुड़े आहार,परहेज और घरेलु इलाज

ऑस्टियोपोरोसिस  ( Osteoporosis ) – कमजोर हड्डियाँ: घरेलु उपचार, इलाज़ और परहेज 
अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस   ( Osteoporosis ) में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द “ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना” में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। 
ऑस्टियोपोरोसिस ( Osteoporosis ) को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं।  दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है

लेने योग्य आहार कैल्शियम हड्डियों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने वाला प्रमुख पोषक तत्व है। कैल्शियम के उत्तम भोज्य स्रोतों में हैं ! 

डेरी: डेरी उत्पाद जैसे दूध, दही, पनीर कैल्शियम से समृद्ध होते हैं। 
भाजी और हरी सब्जियाँ: कई सब्जियाँ, विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियाँ, कैल्शियम का समृद्ध स्रोत हैं। शलजम की सब्जी, सरसों का साग, कोलार्ड की सब्जी, केल, रोमैन लेट्यूस, अजमोदा, ब्रोकोली, धनिया, पत्तागोभी, समर स्क्वाश, हरी फलियाँ, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, अस्पार्गस, और क्रिमिनी मशरुम का सेवन करें।
औषधीय वनस्पतियाँ और मसाले: कैल्शियम के हलके किन्तु स्वादिष्ट प्रभाव के लिए, अपने भोजन में तुलसी, पुदीना, सौंफ के बीज, दालचीनी, पेपरमिंट की पत्तियों, लहसुन, अजवाइन, रोजमेरी, और अजमोदा का प्रयोग करें।
अन्य आहार: कैल्शियम के अन्य बढ़िया स्रोतों में मछली, संतरे, बादाम, तिल होते हैं। साथ ही कैल्शियम की शक्ति से युक्त आहारों जैसे दलिया और संतरे के रस को ना भूलें।  विटामिन डी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में सहायता करता है। विटामिन डी की सर्वाधिक मात्रा सूर्य के प्रकाश से और अन्य भोज्य स्रोतों जिनमें वसायुक्त मछली, लीवर, अंडे, शक्तियुक्त आहारों जैसे कम वसा युक्त दूध आदि हैं, से प्राप्त होती है।  
रिसर्च के अनुसार अपने आहार को नारियल के तेल के साथ मिलाकर खाने से एस्ट्रोजेन की कमी से होने वाली हड्डियों के नुकसान को रोका जा सकता है। नारियल के तेल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हड्डियों के ढांचें को नियंत्रित करके रखते हैं और हॉर्मोन्स में आने वाले बदलाव की वजह से हड्डियों को पहुंचने वाले नुकसान से भी बचाता है। इसके साथ ही ये तेल शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम को अवशोषित करने में मदद करता है। ये दो आवश्यक पोषण तत्व हड्डियों की मजबूती को बढ़ाने को नियंत्रित रखने में बेहद ज़रूरी हैं। 

नारियल के तेल का इस्तेमाल दो तरीकों से करें

पहला तरीका= रोज़ाना तीन चम्मच नारियल के तेल का सेवन करें इससे ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद मिलती है।
दूसरा तरीका= इसके अलावा आप पूरे शरीर पर कुछ मिनट तक नारियल के तेल से मसाज कर सकते हैं। फिर गर्म पानी से नहाएं। इस तरह आप रोज़ाना ये प्रक्रिया करें। इस तरह करने से आपकी हड्डियों पर बेहद अच्छा प्रभाव पड़ेगा।इसके साथ ही खाना बनाने के लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल करें।
 परहेज करें- प्रोसेस्ड मीट, जैसे कि टर्की और सूअर का गोश्त, तथा हॉट डॉग। फ़ास्ट फ़ूड, जैसे कि पिज़्ज़ा, बर्गर, टेकोस और फ्राइज।प्रोसेस्ड आहार, जिनमें शीतगृह में रखे सामान्य और कम कैलोरी वाले भोज्य पदार्थ आते हैं।कैन में बंद सामान्य सूप और सब्जियाँ तथा उनके रस।  भुने उत्पाद, जिनमें ब्रेड और नाश्ते के विभिन्न दलिए आते हैं।

 योग और व्यायाम- वृद्धजनों में हड्डी के घनत्व को बचाए रखने में व्यायाम प्रमुख भूमिका निभाता है। आपको फ्रैक्चर होने की संभावना को कम करने हेतु सुझाए गए व्यायामों में हैं 

भार वहन करने वाले व्यायाम — पैदल चलना, दौड़ना, टेनिस खेलना, नृत्य करना।
खुले उठाए जाने वाले वजन, वजन की मशीनें, स्ट्रेच बैंड
संतुलन साधने वाले व्यायाम– ताई ची, योग पतवारनुमा मशीनें जिनमें गिरने का खतरा हो ऐसे व्यायाम ना करें। साथ ही, उच्च-दबाव डालने वाले व्यायाम जो वृद्धजनों में फ्रैक्चर कर सकते हों, उन्हें ना करें।

Osteoporosis के घरेलू उपाय (उपचार)

चलने हेतु सहायता का प्रयोग करें। यदि आप अस्थिर होते हैं, तो लकड़ी या वॉकर का प्रयोग करें।  ( Osteoporosis )
स्नानगृह में पकड़ने हेतु खम्भा लगवाएँ और हाथ धोने के स्थान तथा टब के पास ऐसा पैरपोश लगवाएँ जो फिसलता ना हो। भारी वस्तुओं को उठाते या ले जाते समय सहायता लें।, मजबूत जूते पहनें खासकर ठण्ड या बारिश के दौरान 
ये निश्चित करें कि आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी है।  शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और सप्ताह के अधिकतर दिनों में वजन-वहन करने वाले व्यायाम करें, जैसे पैदल चलना आदि .