Saturday 28 October 2017

लीवर कैंसर (Liver Cancer)

लीवर कैंसर (Liver Cancer)
मानव शरीर अपनी आवश्यकता अनुसार ही नई कोशिकाओं का निर्माण करता है। कुछ कोशिकाओं का एक ऐसा समूह होता है जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ता है और विकसित होता है। उनकी बढ़त नियंत्रित नहीं होती है। इन कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाएं कहते हैं। 
ये कोशिकाएं दो प्रकार की होती है जिसमें पहला बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumour) जिसे कैंसर रहित कहा जाता है और दूसरा मेलिगनेन्ट ट्यूमर (Malignant Tumour) जिसे कैंसर वाला कहा जाता है। बिनाइन ट्यूमर कोशिकाओं की बढ़त बहुत धीमी होती है ये फैलती नहीं है। मेलिगनेंट ट्यूमर कोशिकाएं तेजी के साथ बढ़ती हैं और अपने पास के सामान्य ऊतकों (Tissues) को भी नष्ट करती है। ये संपूर्ण शरीर में फैल जाती हैं।

कैंसर शब्द का उपयोग उस समय किया जाता है जब मेलिगनेन्ट ट्यूमर होता है जो अपनी असीमित बढ़त से मानवीय शरीर को प्रभावित करने लगता है और कैंसर कोशिकाओं को मानवीय ऊतकों (Tissues) में भेजने लगता है। लिवर या यकृत कैंसर लीवर की कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि होती है, लिवर के ऊतक में ट्यूमर की संरचनाओं को हिपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (Hepatocellular carcinoma) कहा जाता है।

लीवर कैंसर के प्रकार (Types of Liver Cancer)
लिवर कैंसर के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं: इनका नाम लिवर के उस हिस्से पर रखा जाता है जिसमें कैंसर सबसे पहले विकसित होता है। सामान्यतः होने वाला लिवर कैंसर, लिवर की प्रमुख कोशिकाओं में शुरू होता है। यह हीपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (Hepatocellular carcinoma) कहलाता है। कोलेंजियोकार्सिनोमा (Cholangiocarcinoma) पित्त नली (Bile Duct) को ढकने वाली कोशिकाओं में शुरू होता है।

लीवर कैंसर के लक्षण

Friday 27 October 2017

प्लेटलेट्स से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

प्लेटलेट्स की कमी होने का नुकसान शरीर एवं स्वास्थ्य को भुगतना पड़ता है, जानिये इनको कैसे पूरा करेँ
एक स्वस्थ शरीर की निशानी है शरीर में प्लेटलेट्स की सही मात्रा होना एवं उनका सही तरीके से काम करना लेकिन प्लेटलेट्स की कमी होने का नुकसान शरीर एवं स्वास्थ्य को भुगतना पड़ता है, शरीर में प्‍लेटलेट्स की संख्‍या कम होने की स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के नाम से जाना जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति में सामान्य प्लेटलेट काउंट ब्‍लड में 150 हजार से 450 हजार प्रति माइक्रोली टर होते है लेकिन जब यह काउंट 150 हजार प्रति माइक्रोलीटर से नीचे चला जाये तो इसे लो प्लेटलेट माना जाता है। कुछ खास तरह की दवाओं, आनुवंशिक रोगों, कुछ खास तरह के कैंसर, कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट, अधिक एल्कोहल के सेवन व कुछ खास तरह के बुखार जैसे डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया के होने पर भी ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती हैँ लेकिन घबराएं बिल्कुल नहीं क्‍योंकि कुछ आहारों की मदद से ब्‍लड प्‍लेटलेट्स को प्राकृतिक रूप से बढ़ाया जा सकता है :-

चुकंदर :चुकंदर का सेवन प्‍लेटलेट को बढ़ाने वाला एक लोकप्रिय आहार है. प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और हेमोस्टैटिक गुणों से भरपूर होने के कारण, चुकंदर प्‍लेटलेट काउंट को कुछ ही दिनों बढ़ा देता है. अगर दो से तीन चम्मच चुकंदर के रस को एक गिलास गाजर के रस में मिलाकर पिया जाये तो ब्लड प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ती हैं. और इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट की मौजूदगी के कारण यह शरीर की प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ाते हैं।

पपीता :पपीता के फल और पत्तियां दोनों का ही इस्‍तेमाल कुछ ही दिनों के भीतर कम प्‍लेटलेट को बढ़ाने में मदद करते हैं. 2009 में, मलेशिया में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एशियाई संस्थान में शोधकर्ताओं ने पाया कि डेगू बुखार में गिरने वाले प्‍लेटलेट को पपीता के पत्ते के रस के सेवन से बढ़ाया जा सकता है, आप चाहें तो पपीते की पत्तियों को चाय की तरह भी पानी में उबालकर पी सकते हैं, इसका स्वाद ग्रीन टी की तरह लगेगा।

नारियल पानी :शरीर में ब्‍लड प्‍लेटलेट को बढ़ाने में नारियल का पानी भी बहुत मददगार होता है, नारियल पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स अच्छी मात्रा में होते हैं, इसके अलावा यह मिनरल का भी अच्छा स्रोत है जो शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं ।

आंवला : प्‍लेटलेट को बढ़ाने के लिए आंवला लोकप्रिय आयुर्वेदिक उपचार है. आंवला में मौजूद भरपूर मात्रा में विटामिन सी प्‍लेटलेट्स के उत्‍पादन को बढ़ाने और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है. नियमित रूप से सुबह के समय खाली पेट 3-4 आंवला खाये. यह आप दो चम्‍मच आंवले के जूस में शहद मिलाकर भी ले सकते हैं।

कद्दू : कद्दू कम प्‍लेटलेट कांउट में सुधार करने वाला एक और उपयोगी आहार है. यह विटामिन ए से समृद्ध होने के कारण प्‍लेटलेट के उचित विकास का समर्थन करने में मदद करता है. यह कोशिकाओं में उत्‍पादित प्रोटीन को नियंत्रित करता है, जो प्‍लेटलेट के स्‍तर को बढ़ाने के लिए महत्‍वपूर्ण होता है. कद्दू के आधे गिलास जूस में एक से दो चम्मच शहद डालकर दिन में दो बार लेने से भी ब्‍लड में प्लेटलेस्ट की संख्या बढ़ती है।

गिलोय :गिलोय का जूस ब्‍लड में प्‍लेटलेट को बढ़ाने में काफी मददगार होता है. डेंगू के दौरान नियमित रूप से इसके सेवन से ब्लड प्लेट्स बढ़ने लगती हैं और आपकी प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है. दो चुटकी गिलोय के सत्व को एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार लें या फिर गिलोय की डंडी को रात भर पानी में भिगो कर सुबह उसका छना हुआ पानी पी लें. इससे ब्‍लड में प्‍लेटलेट बढ़ने लगते हैं।

पालक : पालक विटामिन ‘के’ का एक अच्‍छा स्रोत है और अक्सर कम प्लेटलेट विकार के इलाज में मदद करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. विटामिन ‘के’ सही तरीके से होनी वाली ब्‍लड क्‍लॉटिंग के लिए आवश्‍यक है. इस तरह से यह बहुत अधिक ब्‍लीडिंग के खतरे को कम करता है. दो कप पानी में 4 से 5 ताजा पालक के पत्‍तों को डालकर कुछ मिनट के लिए उबाल लें. इसे ठंडा होने के लिए रख दें. फिर इसमें आधा गिलास टमाटर मिला दें. इसे मिश्रण को दिन में तीन बार पीयें. इसके अलावा आप पालक का सेवन सूप, सलाद, स्‍मूदी या सब्‍जी के रूप में भी कर सकते हैं।

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Wednesday 25 October 2017

अश्वगंधा से किडनी Failure और Dialysis से किसी को भी बचा सकता है

किडनी फेल  होना  Chronic kidney Diseases अंतिम चरण होता है, मुख्यता किडनी फ़ैल होने का कारण मधुमेह और उच्च रक्तचाप  को माना गया है. इसके इलावा कई प्रकार के Genetic Disorder और किडनी से रिलेटेड बीमारिया जैसे urinary Tract Disorder, Nephrotic syndrome आदि भी आगे जाकर किडनी फेल होने  का मुख्य कारण बनती है. इसके अतिरिक्त हर्दयघात और रक्तवाहिनियो में अचानक आई सिकुडन भी किडनी फ़ैल होने का कारण बन सकती है 
आज हम विद्रोही आवाज स्वास्थ्य ब्लॉग  में आपको इस प्रकार की प्राकर्तिक ओषधि के बारे में बताने जा रहे है जो न केवल किडनी की बीमारिया होने से रोकती है,बल्कि Chronic Kidney Diseases(CKD) को भी ठीक कर सकती है.
Ayurved में अश्वगंधा (Withania Somnifera) या जिसको Indian Ginseng भी कहते है,अश्वगंधा में पाए जाने वाले रसायन Withaferin A और Withanolide D इतने अदभुद  है कि ये अश्वगंधा  को kidney की बीमारियों रोकने और किडनी को बचाने के लिए एक बहुत ही अच्छे विकल्प  के तोर पर खड़ा करते है.
Diabetes ना केवल किडनी को नुकसान पहुचाती है बल्कि किडनी के फ़िल्टर सिस्टम को भी खराब कर देता है .जिससे Albumin जैसे protien भी पेशाब  में आना शुरू हो जाते है अगर Diabetes का पहले ही पता लग जाये तो किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है अगर अश्वगंधा का लगातार सेवन किया जाता है तो ये blood glucose लेवल को कम करता है इसके साथ साथ insulin senstivity को भी बढाता है जिससे रक्त में ग्लूकोस की मात्रा सामान्य हो जाती है .
जब blood pressure बढ़ जाता है तो किडनी की रक्तवाहिनिया धीरे धीरे नष्ट होना शुरू हो जाती है .जिससे किडनी का फिल्टर system गड़बड़ा जाता है जिससे किडनी अतिरिक्त फ्लूइड फ़िल्टर नहीं कर पाती जिससे  BP और बढ़ता जाता है शोध में पता लगा है की अश्वगंधा की जड़ का पाउडर दूध के साथ लेने से बढ़ा हुआ BP कम हो जाता है .
अश्वगंधा के सेवन से पेशाब खुलकर लगता है ,जिससे किडनी की फिल्ट्रेशन की प्रकिया सही रहती है और हानिकारक पदार्थ भी शरीर से यूरिन के द्वारा बाहर निकल जाते है जिससे edema (शरीर में पानी भर जाना ) की समस्या भी नहीं रहती है .अश्वगंधा blood में bad cholesterol की मात्रा को कम करता है . जिससे BP सामान्य रहता है और रक्त का सर्कुलेशन बिना रुकावट के होने से किडनी की फिल्ट्रेशन रेट बढ़ जाती है .
दवाओ की अधिक मात्रा लेने से, वातावरण में ज्यादा टोक्सिन होने से ये हमारे शरीर में जाकर किडनी पर अतिरिक्त दबाव डालते है जिससे Nephrotoxicity होने के चांसेस बढ़ जाते है. जिससे किडनी को नुकसान होता है और हमारे शरीर का इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस गड़बड़ा जाता है अश्वगंधा इस प्रकार के toxins को ख़तम करता है
अश्वगंधा एक Antioxidant के तरह काम करता है Antibiotic की ज्यादा मात्रा का सेवन करने से उनके साइड इफ़ेक्ट के रूप में toxic फ्री रेडिकल बनते है जो किडनी को बहुत नुकसान पहुचाते है ये फ्री रेडिकल्स किडनी की बीमारियों और किडनी डैमेज होने का मूल कारण है इससे कैंसर भी हो सकता है . अश्वगंधा में पाए जाने वाले रसायन इन फ्री रेडिकल्स को बनने से रोकते है और इन फ्री रेडिकल्स को नष्ट भी करते है .अश्वगंधा में पाए जाने वाली ये Antioxidant प्रॉपर्टीज किडनी की कोशिकाओ को नष्ट होने से बचाती है.एक शोध के मुताबिक अश्वगंधा किडनी की क्रियात्मक इकाई नेफ्रॉन को डैमेज होने से बचाता है. एवं डैमेज नेफ्रॉन को ठीक भी कर सकता है.
अश्वगंधा में पाया जाने वाला रसायन Withaferin A बहुत से कैंसर को रोक सकता है.ये Apoptosis (कैंसर कोशिका को नष्ट करना)प्रकिया द्वारा कैंसर की कोशिकाओ को नष्ट करता है .अश्वगंधा में पाए जाने वाले प्राकर्तिक स्टेरॉयड कैंसर के दर्द और हर प्रकार की सुजन को कम करते है . किडनी की कुछ बीमारिया  जैसे Nephritis और Glomerulonephritis भी एक प्रकार की सुजन ही है. अश्वगंधा इन बीमारियों को होने से रोक सकता है जो आगे जाकर किडनी फ़ैल होने का कारण बन सकती है .

Wednesday 4 October 2017

आपके पेट में भोजन पच रहा है, या सड़ रहा है

‘पहला सुख निरोगी काया’ स्वस्थ शरीर स्वस्थ दिमाग के निर्माण में सहायक होता है। स्वस्थ रहने की पहली शर्त है आपकी पाचन शक्ति का सुदृढ़ होना। भोजन के उचित पाचन के अभाव में शरीर अस्वस्थ हो जाता है, मस्तिष्क शिथिल हो जाता है और कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। जिस प्रकार व्यायाम में अनुशासन की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार भोजन में भी अनुशासन महत्वपूर्ण है। अधिक खाना, अनियमित खाना, देर रात तक जागना, ये सारी स्थितियां आपके पाचन तंत्र को प्रभावित करती हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि पाचन शक्ति को दुर्बल होने से बचाएं। पाचन तंत्र की दुर्बलता दूर करने के लिए खाना खाने के बाद पेट मे खाना पचेगा या खाना सड़ेगा ये जानना बहुत जरुरी है।
दूध,दही छास,लस्सी, ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया ये सब कुछ हमको उर्जा देता है | और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है | पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है “अमाशय” उसी स्थान का संस्कृत नाम है “जठर”| उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है ” epigastrium “|
ये एक थेली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान है इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है | हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है|
आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे”जठराग्न”। ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है  ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी | यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई| ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है  अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया| और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है  अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी| आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी| अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है, एक क्रिया है जिसको हम कहते हे “Digestion” और दूसरी है “fermentation”

फर्मेंटेशन का मतलब है सडन और डायजेशन का मतलब हे पचना 
आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा| ये तभी होगा जब खाना पचेगा| ये तो हुई खाना पचने की बात.खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल ,LDL-VLDL| और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !
पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता हैजिसे आप heart attack कहते हैं !तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिएऔर खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है

Tuesday 3 October 2017

किडनी स्टोन में रामबाण है कुलथी की दाल और बकरी का दूध

आयुर्वेद के अनुसार दोषों का प्रकोप होने से पथरी होती है। यह सफेद रंग की, स्पर्श में चिकनी, आकार में बड़ी व महुए के फूल जैसी होती है। लाल, पीली, काली या भिलावे की गुठली के समान पथरी पित्तज पथरी कहलाती है। जबकि सांवली, कठोर स्पर्श वाली, टेढ़ी-मेढ़ी व खुरदरी कदंब के फूल जैसी पथरी वात दोष के कारण होती है।

संकेत एवं लक्षण-भूख कम लगना, यूरिन में दिक्कत, हल्का बुखार व कमजोरी जैसे लक्षण पथरी के संकेत हैं। वैसे पथरी छोटी हो तो उसका कोई लक्षण या दर्द नहीं होता। पथरी जिस स्थान पर होती है उसी जगह पर दर्द होता है। जब पथरी किसी वजह से हिलती है तो काफी दर्द व उल्टी भी आ सकती है। कई बार यूरिन के साथ ब्लड आने लगता है।मुख्य वजह व रोग का पुराना होना-सुश्रुत संहिता के अनुसार शरीर में दोष बढऩा, दिन में सोना, जंकफूड व अधिक भोजन करना, ज्यादा ठंडा या मीठा खाने से पथरी होती है। कमजोरी, थकावट, वजन घटना, भूख न लगना, खून की कमी, प्यास अधिक लगना, दिल में दर्द होना और उल्टी आना ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें तो पथरी के पुराने होने का संकेत हो सकते हैं।

ये हैं उपाय-

* कुलथी की दाल में पथरी को तोडऩे की क्षमता होती है जिससे पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।
* सुश्रुत संहिता में पथरी होने पर देसी घी से उपचार बताया गया है। देसी घी का अधिक सेवन करने से पथरी आसानी से बाहर निकल जाती है।
* दर्द होने पर उस स्थान पर सेक से लाभ होता है। वैसे पथरी को शुरुआती अवस्था में ही बढऩे से रोकना चाहिए।
* गोखरू के बीज का चूर्ण शहद व बकरी के दूध के साथ एक सप्ताह पीने से पथरी में आराम मिलता है।
* पथरी के रोगी टमाटर, चावल व पालक नहीं खाएं।

Monday 2 October 2017

पुनर्नवा किडनी को पुनर्जीवन देने के लिए अकेला ही काफी


पुनर्नवा का  बोटैनिकल नाम BOERHAHAVIA DIFFUSSA है . अंग्रेज़ी में इसे HOG WEED भी कहते है  यह NYCTAGINACEAE FAMILY से आता है .पुनर्नवा के पुरे पोधे में ही औषधीय गुण होते है . विशेषकर इसके जड़ो ओर पतियों मेंऔषधीय गुण काफी मात्र में गुण पाए जाते है. खेतों में पैदा होने वाले या अक्सर ही किसी भूमि पर अपने आप उग जाने वाले इस खरपतवार के गुण देख कर आप वाकई हैरान हो जायेंगे. हम आज आपको एक ऐसा ही इसका प्रयोग बताने जा रहें हैं जिसको करने से किडनी के समस्त रोग सही हो सकता है, यहाँ तक के जिन रोगियों का डायलिसिस चल रहा है, वो भी अपने रोग से मुक्ति पा सकते हैं. अगर यूँ कहें के ये किडनी के समस्त रोगों के लिए रामबाण हैं तो ये गलत नहीं होगा.

पुनर्नवा की पहचान और अन्य भाषाओँ में नाम.

वानस्पतिक नाम – Boerhavia Diffusa Linn
संस्कृत – पुनर्नवा, शोथघ्नी, विशाख, श्वेतमूला, दिर्घपत्रिका, कठिल्ल्क,, शशिवाटिका, चिराटका
हिंदी – लाल पुनर्नवा, सांठ, गदहपूरना,
उर्दू – बाषखीरा
कन्नड़ – सनाडीका Sanadika
गुजरती – राती साटोडी (Rati Satodi), Vasedo (वसेड़ो)
तमिल – mukurattei, Mukaratte
Telugu – Atianamidi
Bangali – Punarnoba, sveta punarnaba
nepali – onle sag
punjabi – khattan
marathi – punarnava, ghentuli
malyalam – Thazuthama, Tavilama
English – Erect Boerhavia, Spiderling, Spreading hog weed, Horse Purslane, Pigweed,
Arbi – Handakuki, Sabaka
Farsi – Devasapat

पुनर्नवा में पाए जाने वाले मुख्य रसायन –

PUNARNAVOSIDE, PUNARNAVINE  नामक ALKALOID पाए जाते है. LIRIODENDRIN  नामक lignans पुनर्नवा की जड़ में पाए जाते है. Potasium nitrate, ursolic acid, rotenoid भी पुनर्नवा में पाए जाते है. Only Ayurved इसके अतिरिक्त पुनर्नवा के धरती के उपरी हिस्से   में 15 amino acid पाए जाते है .जिनमे 6 अवश्यक एमिनो अम्ल है जो हमारे शरीर में नहीं बनते हमें बाहर  से भोजन के रूप में लेने पड़ते हैं. पुनर्नवा के जड़ में 14 एमिनो अम्ल पाए जाते है, जिनमे 7 अवश्यक एमिनो अम्ल है. जो हमारे शरीर में नहीं बनते और इनको हमें बाहर से ही लेना पड़ता है.

पुनर्नवा के kidney रोगों में लाभ

पुनर्नवा chronic renal failure ,chronic kidney diseases, nephrotic syndrome, urinary tract infection अर्थात kidney की बड़ी से बड़ी बीमारी को अकेले ठीक करने की क्षमता रखता है.
पुनर्नवा में मौजूद  punarnavoside जो कि एक alkaloid है, एक बहुत अच्छा diuretic है. Diuretic एक तरह का रसायन होता है जो urine की मात्रा को बढाता है जिससे urine खुलकर आ जाता है ओर शरीर में किडनी के बीमारी होने से पैदा होने वाली सुजन (जिसको edema कहा जाता है)कम हो जाती है इसके साथ ही punarnavoside एक बहुत अच्छा antibacterial, anti-inflamatory और antispasmodic antifibronolytic है.
antibacterial effect– bacterial infection को रोकता है .
anti-inflammatory effect -सुजन को कम करता है जो इन्फेक्शन से हो जाती है .
antispasmodic effect -यह खिचाव को कम करता है, जिससे दर्द कम होता है.
antifibronolytic effect -यह urine में आने वाले blood  को रोकता है जो कि urinary tract इन्फेक्शन में अक्सर हो जाता है इसे haematuria कहते है. जिसमे RBC urine में आना शुरू हो जाते है.
जो कि urinary tract infection मुख्यता  बार बार होनर वाले uti में काफी लाभकारी है । Only Ayurved इसमें मौजूद पोटैशियम नाइट्रेट भी diuretic का काम करता है।जो मूत्र को शरीर से बाहर निकालता है।जिससे kidney failure के मुख्य लक्षण edema में आराम मिलता है।

गर्भावस्था में होने वाले urinary tract इन्फेक्शन में भी पुनर्नवा बहुत उपयोगी है.

Nephrotic sndrome Treatment in Ayurved

यह एक प्रकार कि kidney कि समस्या होती है जिसमे शरीर से प्रोटीन urine के माध्यम से बहार निकलना शुरू हो जाता है ओर शरीर पर सुजन आ जाती है ओर kidney का फिल्ट्रेशन system ख़राब हो जाता है .इस समय पुनर्नावा का उपयोग किसी संजीवनी से कम नही है क्योकि इसमें मोजूद एमिनो अम्ल शरीर में हुए प्रोटीन कि कमी को पूरी करते है तथा urine में होने वाले protein lose को भी कम करते है और kidney dysfunction से होने वाली सूजन जिसे edema कहते है को भी कम करता है.

Kidney Failure Treatment In Ayurved.

पुनर्नवा chronic renal failure, chronic kidney diseases, urinary tract infection अर्थात kidney की बड़ी से बड़ी बीमारी को अपने अन्दर पाए जाने वाले विशेष रसायनों की वजह से अकेले ही ठीक करने की क्षमता रखता है.

Dialysis prevention In Ayurveda

पुनर्नवा urine output को काफी बढ़ा देता है, जिससे वो रोगी जो पेशाब ना उतरने की वजह से dialysis करवाते हैं उनको इसकी  जरुरत भी नहीं पड़ती है.

Prevent Kidney Transplant In Ayurved

अगर आपको डॉक्टर ने किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के लिए कह भी दिया हो, तो आप रोजाना इस पुरे पौधे का जड़ समेत रस निकाल कर सुबह शाम पियें. 50 – 50 मि.ली. एक से 6 महीने तक लें, ये अवधि रोगी के रोग की स्थिति के अनुसार कम या बढ़ सकती है. और वो इसको अपनी चल रही दवाई के साथ निसंकोच ले सकता है.

control blood presure For Kidney Patient

Nephrotic syndromechronic renal failure ओर chronic kidney disease में blood presssure बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, पुनर्नावा में पाए जाने वाला lignane  LIRIODENDRIN एक प्राकर्तिक calcium channel blocker है जोकि blood vessel को relax रखता है जिससे blood pressure नार्मल हो जाता है. Diuretic होने के कारण पुनर्नवा मूत्र की अधिक मात्रा किडनी से निकलता है। इसलिए Blood pressure संतुलित रखता है। यह एलॉपथी में बी पी को कम करने के लिए दी जाने वाली Calcium Channel Blocker – Nifedipine की तरह काम करती है. जो के मुख्यतः किडनी रोगी को Renal Failure के केस में दी जाती है.

कैसे करें सेवन.--इसको सुबह खाली पेट इसके पूरे पौधे का स्वरस निकाल कर 50 मिली सुबह और 50 मिली शाम को दीजिये. यह रोगी के रोग के अनुसार 1 से 6 महीने तक दीजिये.

स्वरस निकालने की विधि.-- किसी भी पौधे का स्वरस निकालने के लिए पहले उसको अच्छे से साफ़ कर लो, उसके बाद में पौधे को अच्छे से पत्थर पर कूट कर इसको चटनी जैसा बना लो, और फिर इसको किसी सूती कपडे से छान लीजिये. या फिर ऐसा करें, घर में मिक्सर ग्राइंडर में अच्छे से थोडा पानी मिला कर ग्राइंड कर लो और फिर इसको किसी सूती कपडे से छान लो. और यह ही रोगी को दीजिये.

Friday 29 September 2017

सिर दर्द बदहजमी गैस और रूसी आदि दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

सिर दर्द , बदहजमी, गैस और रूसी आदि दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

सर दर्द से राहत के लिए- 

१. तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है.
२ .नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा.
३. सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा.
४. सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है.
५. लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है.
६. लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर २ , ३ बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा.
७. चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा.
८. हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा.
९ .सफ़ेद  सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी.

 बालों की रूसी दूर करने के लिए – 

१. नारियल के तेल में निम्बू का रस पकाकर रोजाना सर की मालिश करें.
२. पानी में भीगी मूंग को पीसकर नहाते समय शेम्पू की जगह प्रयोग करें.
३. मूंग पावडर में दही मिक्स करके सर पर एक घंटा लगाकर धो दें.
४ रीठा पानी में मसलकर उससे सर धोएं.
५. मछली, मीट अर्थात nonveg त्यागकर केवल पूर्ण शाकाहारी भोजन का प्रयोग भी आपकी सर की रूसी दूर करने में सहायक होगा.

गैस व् बदहजमी दूर करने के लिए

१. भोजन हमेशा समय पर करें.
२. प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें.
३. हींग, लहसुन, चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें, व् प्रतिदिन एक गोली खाएं.
४. भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें.
५. लहसुन, जीरा १० ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं.
६. सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं.
७. लौंग का उबला पानी रोजाना पियें.
८. जीरा, सौंफ, अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें,शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें.

Thursday 28 September 2017

अचानक अधिक व्यायाम हृदय के लिए है घातक


विद्रोही आवाज समाचार पत्र की एनरोइड ऐप अपने मोबाइल में प्ले स्टोर से नीचे दिए लिंक से या प्ले स्टोर में vidrohi awaz सर्च https://goo.gl/CR1JfP डाउनलोड करे बहुत छोटी ऐप है ज्यादा स्पेस नही लेती है 
हृदय के लिए व्यायाम जरूरी है. व्यायाम से हम तनाव से भी बच सकते हैं, जो हृदय रोगों का बड़ा कारण है. जो लोग सप्ताह में एक या दो बार अत्यधिक व्यायाम करते हैं, वे अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, क्योंकि शरीर अचानक पड़े इस अतिरिक्त भार के लिए तैयार नहीं होता.
रक्त संचार प्रणाली फेफड़े और हृदय से संचालित होती है. पुरुष का हृदय 350 ग्राम, जबकि स्त्री का 250 ग्राम वजनी होता है. हृदय एक पंप की तरह है, जो शरीर में फेफड़ों के बीच, बायीं ओर स्थित होता है. हमारा हृदय रोजाना करीब 15 हजार लीटर खून पंप करता है.
सबसे मजबूत मांसपेशी हृदय की ही होती है. जिनका वजन अधिक होता है, उनके हृदय को अधिक श्रम करना पड़ता है. जो व्यायाम नहीं करते और केवल भोजन को नियंत्रित रखने पर जोर देते हैं, उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.  सम्यक व्यायाम से ही हमारा हृदय ठीक से काम करने में सक्षम हो सकता है.
गोमुखासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय के पीछे की थायमस ग्रंथि प्रभावित होती है. रोग प्रतिरोधक सफेद रक्त कणिकाएं इसी से बनती हैं.
विधि : बैठ कर दायें पैर को इस प्रकार मोड़ें कि एड़ी गुदा के नीचे आ जाये. फिर बायें पैर को मोड़ कर इस प्रकार रखें कि बायां घुटना दायें घुटने पर आ जाये तथा बायीं एड़ी दायें नितंब के पास आ जाये. बायें हाथ को ऊपर से तथा दायें हाथ को नीचे से कमर पर लाएं और दोनों हाथों की मुड़ी हुई उंगलियों को इंटरलॉक कर लें. 
सांस सामान्य और गर्दन सीधी रखें. ऊपरवाली भुजा का कंधे से कोहनी तक का भाग ऊपर कान से सटा रहे. कुछ देर इस अवस्था में रुकें और फिर इसे ही दूसरे पैर से दुहराएं. ध्यान मूलाधार चक्र पर रहे.
वज्रासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय की पंपिंग प्रणाली मजबूत होती है. इस आसन से पिंडलियों पर भी दबाव बनता है, जिससे अशुद्ध रक्त स्वतः हृदय की ओर जाने लगता है.
विधि : आसन पर बैठ कर, दोनों पैरों के पंजों और एड़ियों को मिलाएं तथा पंजों को तानें. घुटनों को मोड़ कर पैरों को नितंबों के नीचे ले आएं. एड़ियां खुली रहें, लेकिन पैरों के अंगूठे मिले रहें. दोनों नितंब एड़ियों के बीच खाली स्थान पर रहें. 
दोनों हाथों को घुटनों पर रखें. कमर और गर्दन एकदम सीध में रहें. ध्यान मणिपुर चक्र पर रहे.
मस्त्सासन : इससे दमा तथा श्वसन सहित फेफड़ों के कई रोग दूर होते हैं. यह दो तरीकों से किया जाता हैः पद्मासन में और पांव सीधा रख कर.
विधि : पीठ के बल लेटकर पद्मासन लगाएं. दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें. माथा जमीन से सटाएं. इस स्थिति में दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़कर कुछ देर रुकें. फिर गर्दन सीधी करें, दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें. 
शरीर को ऊपर उठाएं. गर्दन को तीन-चार बार दायें-बायें व क्लॉकवाइज तथा एंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं. फिर विश्राम मुद्रा में आ जाएं. पांव सीधा रख कर करने के लिए, पीठ के बल लेट कर दोनों पैरों की एड़ियों और पंजों को मिलाएं. गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर सिर को धरती से लग जाने दें. रीढ़ को थोड़ा ऊपर उठाएं और इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें. थोड़ी देर बाद वापस आ जाएं.
खास बात : अभ्यास में नये लोगों को किसी कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करना चाहिए.
उष्ट्रासन 
इससे छाती चौड़ी होती है. फेफड़ों में लचीलापन आता है. हृदय की ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा सांस रोकने की क्षमता बढ़ती है. हृदय रोगों को ठीक करने में यह बहुत उपयोगी है.
विधि : वज्रासन में बैठ कर घुटनों के बल इस प्रकार खड़े हो जाएं कि घुटनों और पंजों के बीच कंधों जितना अंतराल रहे. पंजे लेटे हुए हों. दोनों हाथों को कमर पर रखें, ताकि अंगूठे रीढ़ के निचले भाग पर मिल जाएं. चारों उंगलियां आगे की तरफ हों. सांस भरते हुए कमर के निचले भाग से धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकें. हथेलियों को तलवों पर रखें. कुछ पल बाद वज्रासन में वापस आ जाएं.

मखाने खाने से डायबिटीज, किडनी, पाचन, मर्दाना कमजोरी, प्रजनन क्षमता सहित अनेक रोगों में चमत्कारिक फायदे

मखाने देखने में तो गोल मटोल सूखे दिखाई देते है पर यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होते है । हमारे स्वास्थ्य को तंदरूस्त रखने में मदद करते है। मखानों का प्रयोग हम भोजन में भी कर सकते है। मखाने में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में पाए जाते है। मखानों से तैयार खीर बहुत ही स्वादिष्ट होती है। सब्जी और भुजिया में भी मखाने डालें जाते हैं। मखाने खाने से शरीर को कई रोगों से छुटकारा मिलता है 

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मखाना हम खाते रहते हैं उपवास मेंखीर के रूप में या नमकीन भुने रूप में  मखाना कमल का बीज नहीं होता है ,इसकी एक अलग प्रजाति है, यह भी तालाबों में ही पैदा होता है लेकिन इसके पौधे बहुत कांटेदार होते हैं ,इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं घुसता,जिसमे मखाने के पौधे होते हैं। इसकी खेती बिहार के मिथिलांचल में होती है मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है । उपवास में इसका विशेष रूप से उपयोग होता है । पूजा एवं हवन में भी यह काम आता है । इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं । क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है । 
अधिकांशतः ताकत के लिए दवाये मखाने से बनायी जाती हैं।केवल मखाना दवा के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता .इसलिए इसे सहयोगी आयुर्वेदिक औषधि भी कहते हैं।
इसके औषधीय गुणों के चलते अमरीकन हर्बल फूड प्रोडक्ट एसोसिएशन द्वारा इसे क्लास वन फूड का दर्जा दिया गया है। यह जीर्ण अतिसार, ल्यूकोरिया, शाुणुओं की कमी आदि में उपयोगी है। इसमें एन्टी-ऑक्सीडेंट होने से यह श्वसन तंत्र, मूत्र-जननतंत्र में लाभप्रद है। यह ब्लड प्रेशर एवं कमर तथा घुटनों के दर्द को नियंत्रित करता है। इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम एवं फास्फोरस के अतिरिक्त केरोटीन, लोह, निकोटिनिक अम्ल एवं विटामिन बी-1 भी पाया जाता है । मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति १०० ग्राम 1.4 मिलीग्राम लौह पदार्थ मौजूद होता है।

मखाना बनाने की विधि ----

  • मखाने के क्षुप कमल की तरह होते हैं और उथले पानी वाले तालाबों और सरोवरों में पाए जाते है। मखाने की खेती के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षिक आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए।
  • मखाने की खेती के लिए तालाब चाहिए होता है जिसमें 2 से ढाई फीट तक पानी रहे। इसकी खेती में किसी भी प्रकार की खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खेती के लिए, बीजों को पानी की निचली सतह पर 1 से डेढ़ मीटर की दूरी पर डाला जाता है। एक हेक्टेयर तालाब में 80 किलो बीज बोए जाते हैं।
  • बुवाई के महीने दिसंबर से जनवरी के बीच के होते है। बुवाई के बाद पौधों का पानी में ही अंकुरण और विकास होता है। इसकी पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसके पत्ते बड़े और गोल होते हैं और हरी प्लेटों की तरह पानी पर तैरते रहते हैं।
  • अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगना शुरू हो जाता है। फूल बाहर नीला, और अन्दर से जामुनी या लाल, और कमल जैसा दिखता है। फूल पौधों पर कुछ दिन तक रहते हैं।
  • फूल के बाद कांटेदार-स्पंजी फल लगते हैं, जिनमें बीज होते हैं। यह फल और बीज दोनों ही खाने योग्य होते हैं। फल गोल-अण्डाकार, नारंगी के तरह होते हैं और इनमें 8 से 20 तक की संख्या में कमलगट्टे से मिलते जुलते काले रंग के बीज लगते हैं। फलों का आकार मटर के दाने के बराबर तथा इनका बाहरी आवरण कठोर होता है। जून-जुलाई के महीने में फल १-२ दिन तक पानी की सतह पर तैरते हैं। फिर ये पानी की सतह के नीचे डूब जाते हैं। नीचे डूबे हुए इसके कांटे गला जाते हैं और सितंबर-अक्टूबर के महीने में ये वहां से इकट्ठा कर लिए जाते हैं  

    बीजों से मखाना कैसे बनता है?

    • फलों में से बीजों को निकाल लिया जाता है। धूप में इन बीजों को सुखाया जाता है। सूखे बीजों को लोहे की कढ़ाई में सेंका जाता है। सेंकने से बीजों की अन्दर की नमी भाप में बदल जाती है और जब इन सिंके हुए बीजों को कड़ी सतह पर रखकर लकड़ी के हथौड़ों से पीटते हैं तो गर्म बीजों का कड़क खोल फट जाता है और अब बीज फटकर मखाना बन जाता है। इन्हें रगड़ कर साफ़ किया जाता है और पॉलिथीन में पैक कर दिया जाता है।

    मखाना  के आयुर्वेदिक गुण 

    • पाचन में सुधार करे :- मखाना एक एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण, सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से पच जाता है। बच्‍चों से लेकर बूढे लोग भी इसे आसानी से पचा लेते हैं। इसका पाचन आसान है इसलिए इसे सुपाच्य कह सकते हैं। इसके अलावा फूल मखाने में एस्‍ट्रीजन गुण भी होते हैं जिससे यह दस्त से राहत देता है और भूख में सुधार करने के लिए मदद करता है।
    • एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर :- मखाना उम्र के असर को भी बेअसर होता है। यह नट्स एंटी-ऑक्‍सीडेंट से भरपूर होने के कारण उम्र लॉक सिस्‍टम के रूप में काम करता है और आपको बहुत लंबे समय तक जवां बनाता है। मखाना प्रीमेच्‍योर एजिंग, प्रीमेच्‍योर वाइट हेयर, झुर्रियों और एजिंग के अन्‍य लक्षणों के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
    • डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद :- डायबिटीज चयापचय विकार है, जो उच्च रक्त शर्करा के स्तर के साथ होता है। इससे इंसुलिन हार्मोंन का स्राव करने वाले अग्न्याशय के कार्य में बाधा उत्‍पन्‍न होती है। लेकिन मखाने मीठा और खट्टा बीज होता है। और इसके बीज में स्‍टार्च और प्रोटीन होने के कारण यह डायबिटीज के लिए बहुत अच्‍छा होता है।
    • किडनी को मजबूत बनाये :- मखाने का सेवल किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है। फूल मखाने में मीठा बहुत कम होने के कारण यह स्प्लीन को डिटॉक्‍सीफाइ करने, किडनी को मजबूत बनाने और ब्‍लड का पोषण करने में मदद करता है। साथ ही मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है।
    • दर्द से छुटकारा दिलाये :- मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है। साथ ही इसके सेवन से शरीर के किसी भी अंग में हो रहे दर्द जैसे से कमर दर्द और घुटने में हो रहे दर्द से आसानी से राहत मिलती है।
    • नींद न आने की समस्या से छुटकारा :- मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है।
    • कमजोरी दूर करना :- मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है। मखाने में मौजूद प्रोटीन के कारण यह मसल्स बनाने और फिट रखने में मदद करता है।
    • मखाना शरीर के अंग सुन्‍न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है।
    • प्रेगनेंट महिलाओं और प्रेगनेंसी के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये।
    • मखाना का सेवन करने से शरीर के किसी भी अंग में हो रही दर्द से राहत मिलती है।
    • मखाना का सेवन करने से शरीर में हो रही जलन से भी राहत मिलती है।
    • मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है। ६-मखानों के सेवन से दुर्बलता मिटती है तथा शरीर पुष्ट होता है।
    • वीर्य की कमी, मर्दाना कमजोरी, शुक्रमेह में इसे हलवे के साथ खाना चाहिए।
    • आटे, घी, चीनी के हलवे मखाने डाल कर खाने से गर्भाशय की कमजोरी और प्रदर की समस्या दूर होती है