Sunday 30 June 2019

डायबिटीज वाले चावल न खाए - मदन मोदी

डायबिटीज वाले चावल न खाएं...
पैकेट वाले महंगे चावल सेहत के लिए खतरनाक....
अनपॉलिश्ड माने जाने वाले महंगे और पैकेज्ड ब्राउन राइस हकीकत में सफेद हो सकते हैं और काफी पॉलिश किए हुए भी। इसके अलावा, कथित तौर पर 'डायबीटिक फ्रेंडली' यानी शुगर के मरीजों के लिए बेहतर कहे जाने वाली वराइटी भी आधा उबले हुए चावल हैं। मद्रास डायबीटिक रिसर्च फाउंडेशन (MDRF) के फूड साइंटिस्टों ने सुपर मार्केट के 15 तरह के 'हेल्दी' चावलों का टेस्ट किया। टेस्ट के नतीजे चौंकाने वाले थे। ज्यादातर मामलों में पैकेट पर जिन दावों का जिक्र किया गया, वे हकीकत से कोसों दूर पाए गए।
लो GI का दावा हकीकत से परे
सबसे चौंकाने वाला नतीजा ब्राउन राइस के एक ब्रैंड का रहा, जिसका दावा था कि उसका ग्लिसेमिक इंडेक्स (GI) महज 8.6 है। इंटरनैशनल GI टेबल में किसी चावल में इतने कम GI का आज तक कभी कोई जिक्र ही नहीं आया है। चावल में निम्नतम GI करीब 40 के आस-पास पाया गया है। दरअसल, GI किसी खाद्य पदार्थ में कार्बोहाइड्रेट का स्तर बताता है। कार्बोहाइड्रेट से खून में ग्लूकोज का स्तर प्रभावित होता है। कम GI वाले खाद्य पदार्थ सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैं। 55 से नीचे GI को कम माना जाता है। 44-69 GI को मध्यम और 70 से ऊपर को उच्च माना जाता है। कम GI वाले खाद्य पदार्थ न सिर्फ ब्लड शुगर घटाते हैं, बल्कि हृदय से जुड़ी बीमारियों और टाइप 2 डायबीटीज का भी खतरा कम करते हैं। दाल और सब्जियों में कम GI होता है, जबकि अनाजों में GI का स्तर आम तौर पर मध्यम होता है।
दावों से उलट ब्राउन राइस अनपॉलिश्ड नहीं, आधे उबले हुए
जांच में चावल को आधा उबला हुआ ब्राउन राइस पाया गया। ये चावल अनपॉलिश्ड नहीं थे। आधे उबले होने की वजह से उनका कलर ब्राउन था। पकाते वक्त ये चावल और ज्यादा पानी सोखते हैं, जिससे उनमें स्टार्च का स्तर बढ़ता है। नतीजतन GI का स्तर भी बढ़ जाता है।
कम पॉलिश किए गए चावलों में हाई GI होता है। आधे उबले हुए चावल भी पॉलिश्ड हैं, इसलिए वे उतने हेल्दी नहीं हैं। चावल को आधा इसलिए उबाला जाता है ताकि उसमें विटमिन बी बढ़ सके और ज्यादा वक्त तक खराब न हो, लेकिन इससे जर्म और ब्रान का लेयर हट जाता है जिस वजह से GI बढ़ जाता है।
कोई भी चावल शुगरफ्री नहीं होता, जीरो कोलेस्ट्रॉल के दावे भी भ्रामक
शुगरफ्री और जीरो कोलेस्ट्रॉल के दावे भी हकीकत से दूर हैं। जीरो कोलेस्ट्रॉल का दावा भ्रामक है। जहां तक शुगरफ्री चावल का दावा है तो चावल में जो स्टार्च होता है, वह पाचन के वक्त ग्लूकोज में बदल जाता है। इस तरह कोई भी चावल शुगरफ्री हो ही नहीं सकता।
इसलिए पैकेट पर छपे दावों पर मत जाइए और याद रखिए कि चावल को उचित मात्रा में ही खाएं। खासकर शुगर के मरीज जीरो कोलेस्ट्रॉल और शुगरफ्री जैसे दावों की बातों में न आएं। शुगर के मरीज और मोटापा घटाने की इच्छा रखने वाले लोग चावल न खाएं.

Sunday 23 June 2019

कड़वे अनुभवों और बुरी यादों को इस तरह बाहर निकाल सकता है हमारा मस्तिष्क

मदन मोदी --
हम चाहे कितनी ही कोशिश क्यों ना कर लें, लेकिन कभी कभार हम उन पुरानी और दर्दनाक यादों को कभी भी अपने जहन से नहीं निकाल पाते। कुछ घटनाएं, लोग, जगहें ऐसी होती हैं जिनके साथ हमारे बहुत बुरे अनुभव जुड़े होते हैं और हम उनसे जुड़ी यादों को किसी भी तरह अपने मन-मस्तिष्क से निकाल देना चाहते हैं.
भूल नहीं सकते
"हम माफ तो कर सकते हैं, लेकिन भूल नहीं सकते"....यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं, बल्कि पूरी तरह व्यवहारिक तथ्य है। किसी को माफ करना आसान है, लेकिन उसके द्वारा किए गए कृत्यों को भूलना बहुत मुश्किल। वही कृत्य और उनके साथ बिताए गए पल ताउम्र एक दर्द की तरह हमारे साथ रहते हैं और हम उन्हें भूल पाने में असहाय हो जाते हैं।
अद्भुत शक्तियां
लेकिन एक सच यह भी है कि आप पुरानी यादों के साथ इतना जुड़े रहेंगे तो नई यादें कैसे बनाएंगे..? नई यादों के लिए बहुत आवश्यक है कि आप उन कड़वे अनुभवों को भूल जाएं। लेकिन यह संभव कैसे है..? मनोविज्ञान का कहना है कि मानव मस्तिष्क में सेव और डिलीट करने जैसी अद्भुत शक्तियां हैं, जिनका उपयोग कर अपने इस काम को भी साधा जा सकता है।
जानें कैसे...?
चलिए जानते हैं किस तरह आप अपने मन-मस्तिष्क से उन कड़वी यादों को निकालकर बाहर कर सकते हैं।
जी भरकर सोएं
जब आप कम सोते हैं या हर समय थके हुए रहते हैं तो आपका दिमाग हर तरीके की यादों को सहेजना शुरू कर देता है। ऑफिस में कोई झगड़ा हुआ और आपके पास कोई जरूरी काम भी पूरा करना है तो आपका दिमाग उस झगड़े पर ज्यादा फोकस रहेगा, बजाय उस प्रोजेक्ट को पूरा करने के। जब आप पर्याप्त नींद लेते हैं तो आपके दिमाग के सेल्स भी सजग हो जाते हैं और अच्छी-बुरी यादों में फर्क करने लगते हैं। वे आपके दिमाग से बुरी यादों को बाहर कर देते हैं। इतना ही नहीं जब आपका मस्तिष्क आराम करता है तो वह 60% तक आपको उन बुरी यादों से मुक्त कर देता है, क्योंकि कहीं ना कहीं वे यादें उसके लिए बेकार ही हैं।
स्वयं को व्यस्त रखें
स्वयं को व्यस्त रखना उन बुरी यादों से मुक्ति पाने का सबसे सशक्त तरीका है। दिन के 7-8 घंटे आप स्वयं को व्यस्त रखें और इतनी ही नींद भी लें... आपकी लाइफ अपने आप पटरी पर आ जाएगी और आंतरिक खुशी भी महसूस करने लगेंगे।
व्यायाम करें
यहां व्यायाम का अर्थ केवल जिम जाकर पसीना बहाना ही नहीं है, बल्कि आपको ब्रेन गेम्स भी खेलने चाहिए। शरीर और दिमाग की मजबूती आपको जल्द से जल्द उन यादों से बाहर निकाल सकती है।

Wednesday 19 June 2019

रजस्वला स्त्री अपवित्र क्यों होती है

रजस्वला स्त्री अपवित्र क्यों होती है?

इस विषय पर भारतीय महर्षियों ने ही जाना और तदनुकूल विविध नियमों की रचना की। विदेशों में भी इस संबंध में नए सिरे से अन्वेषण हुआ है और हो भी रहे है।

रजोदर्शन क्या है?
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इस विषय का विवेचन करते हुए भगवान धन्वन्तरि ने लिखा है ।

*मासेनोपचितं काले धमनीभ्यां तदार्तवम्।*

*ईषत्कृष्ण विदग्धं च वायुर्योनिमुखं नयेत।।*

( सुश्रुत शारीरस्थान अ.3 वाक्य

अर्थात् - स्त्री के शरीर में वह आर्तव (एक प्रकार का रूधिर) एक मास पर्यन्त इकट्ठा होता रहता है। उसका रंग काला पड़ जाता है। तब वह धमनियों द्वारा स्त्री की योनि के मुख पर आकर बाहर निकलना प्रारम्भ होता है इसी को रजोदर्शन कहते हैं।

रजोदर्शन की उपरोक्त व्याख्या से हमें ज्ञात होता है कि स्त्री के शरीर से निकलने वाला रक्त काला तथा विचित्र गन्धयुक्त होता है। अणुवीक्षणयन्त्र द्वारा देखने पर उसमें कई प्रकार के विषैले कीटाणु पाये गए हैं। दुर्गंधादि दोषयुक्त होने के कारण उसकी अपवित्रता तो प्रत्यक्ष सिद्ध है ही। इसलिए उस अवस्था में जब स्त्री के शरीर की धमनियां इस अपवित्र रक्त को बहाकर साफ करने के काम पर लगी हुई है और उन्हीं नालियों से गुजरकर शरीर के रोमों से निकलने वाली उष्मा तथा प्रस्वेद के साथ रज कीटाणु भी बाहर आ रहे होते हैं, तब यदि स्त्री के द्वारा छुए जलादि में वे संक्रमित हो जाएं तथा मनुष्य के शरीर पर अपना दुष्प्रभाव डाल दें, तो इसमें क्या आश्चर्य?

अस्पतालों में हम प्रतिदिन देखते हैं कि डाक्टर ड्रेसिंग का कार्य करने से पहले और बाद अपने हाथों तथा नश्तर आदि को - हालांकि वे देखने में साफ सुथरे होते हैं - साबुन तथा गर्म पानी से अच्छी तरह साफ करते हैं। हमने कभी सोचा है? ऐसा क्यों करते हैं? एक मूर्ख की दृष्टि में यह सब, समय साबुन और पानी के दुरूपयोग के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, किन्तु डाक्टर जानता है कि यदि वह ऐसा नहीं करे तो वह कितने व्यक्तियों की हत्या का कारण बन जाये। इसी सिद्धांत को यहाँ लिजिए और विचार करें कि उस दुर्गंध तथा विषाक्त किटाणुओं से युक्त रक्त के प्रवहरण काल में स्त्री द्वारा छुई हुई कोई वस्तु क्यों न हानिकारक होगी?

" भारतीय मेडिकल एसोसिएशन " ने नवम्बर १९४९ के अंक में डा.रेड्डी तथा डॉ.गुप्ता ने लिखा है कि - पाश्चात्य डॉक्टरों ने भी रजस्वला के स्राव में विषैले तत्वों का अनुसंधान किया है। १९२० में डोक्टर सेरिक ने अनुभव किया कि कुछ फूल रजस्वला के हाथ में देते ही कुछ समय में मुरझा जाते हैं, १९२३ में डाक्टर मिकवर्ग और पाइके ने यह खोज निकाला कि - रजस्वला स्त्री का प्रभाव पशुओं पर भी पड़ता है। उन्होंने देखा कि उसके हाथों में दिए हुए मेंढक के हृदय की गति मन्द पाई गई है। १९३० में डोक्टर लेनजो भी इसी परिणाम पर पहुंचे और उन्होंने अनुभव किया कि कुछ काल तक मेंढक को रजस्वला के हाथ पर बैठा रखने से मेंढक की पाचन शक्ति में विकार आ गया। डॉक्टर पालेण्ड तथा डील का मत है कि यदि खमीर, रजस्वला स्त्री के हाथों से तैयार कराया जायेगा तो कभी ठीक नहीं उतरता। यह सब परिक्षण किए गए प्रयोग है।

आप घर पर भी कुछ प्रयोग कर सकते हैं - जैसे तुलसी या किसी भी अन्य पौधे को रजस्वला के पास चार दिनों के लिए रख दिजीये वह उसी समय से मुरझाना प्रारंभ कर देंगे और एक मास के भीतर सूख जाएंगा।

रजोदर्शन एक प्रकार से स्त्रियों के लिए प्रकृति प्रदत्त विरेचन है। ऐसे समय उसे पूर्ण विश्राम करते हुए इस कार्य को पूरा होने देना चाहिए। यदि ऐसा न होगा तो दुष्परिणाम भुगतने पडेंगे।

अतः अनिवार्य है की रजस्वला स्त्री को पुर्ण सम्मान से आराम कराना चाहिए। उस चार दिनों तक वह दिन में शयन न करें, रोवे नहीं, अधिक बोले नहीं, भयंकर शब्द सुने नहीं, उग्र वायु का सेवन तथा परिश्रम न करें क्यों - कि हमारे और आपके भविष्य के लिए यह जरूरी है क्योंकि रजस्वला धर्म संतानोत्पति का प्रथम चरण है।

इस विषय पर लिंगपुराण के पूर्वभाग अध्याय ८९ श्लोक ९९ से ११९ में बहुत ही विशद वर्णन किया गया है। उसमें रजस्वला के स्त्री के कृत्य और इच्छित संतानोत्पति के लिए इस कारण को उत्तरदायी बताया गया है इससे शरीर शुद्धि होती है।

लिंग पुराण में एक स्थान पर लक्ष्मी जी और सरस्वती जी के द्वारा शिवलिंग की पूजा का वर्णन है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी भी मंदिर में चाहे वह शिव का हो या किसी और देवता का उसमें महिलाओं को पूजा करने से कोई भी रोकना नहीं चाहिए। किन्तु वर्तमान समय की महिलाए रजस्वला समय में भी घर और बाहर कार्यरत रहती है। यही हमारे समाज की दुर्गति का कारण है।

*यदि हम बात करें कि मंदिर में क्यों प्रवेश नहीं करना चाहिए ?*

इसका बहुत बड़ा कारण है कि मंदिर की औरा शक्ति बेहद सघन होती है, हम जो भी पूजा पाठ घर पर करते है, उसकी सात्विक ऊर्जा मंदिर से बेहद कम होती है। जब भी शरीर से स्राव (विरेचन) होता है, उस व्यक्ति की सात्विक ऊर्जा घट जाती है। यह विरेचन चाहे मल के द्वारा हो, मूत्रके द्वारा हो, पसीने के द्वारा हो, या मासिक स्राव द्वारा। जैसे ही यह वेस्टेज शरीर से बाहर निकलता है, हमारा शरीर पुनः ऊर्जा से भर जाता है। लेकिन मल, मूत्र, रोकने वाले से पूँछिये वह कितना बेचैन होता है, जब वह शरीर से नहीं निकलता है।
हमारा शरीर सात चक्रों के कारण चुम्बकीय प्रभाव में रहता है, परन्तु इस चुम्बकीय ऊर्जा का स्तर हर व्यक्ति में रज, सत, तम अनुसार कम ज्यादा होता है। मनीषियों, क्रांतिकारियों की सात्विक ऊर्जा सबसे अधिक होती है। इस उर्जा का संबंध सात्विकता से भी है। चाहे वह भोजन के रूप में हो या मंत्र रूप में या प्रकृति के सानिध्य रूप में हो।  जब भी मंदिर के भीतर बहने वाली चुम्बकीय तरंगों को काटा जाता है तो उसका प्रभाव काटने वाली वस्तु पर भी होता है। इसलिए मंदिरों में एक नियम बनाया गया कि स्त्री मासिक के दौरान अपनी तामसिक या राजसिक तरंगों से मंदिर की औरा प्रभावित ना करे, बल्कि उन दिनों विश्राम करे, विरेचक पदार्थ को निकलने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करे। जिस प्रकार शौच में बैठा हुआ व्यक्ति भोजन नहीं करता है, उसी तरह स्राव के दिनों में भी कोई भी वस्तु प्रभु को अर्पण नहीं करनी चाहिए।।

धर्मस्य मूलम् ज्ञानम्
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Monday 17 June 2019

प्रोसेस्ड फूड के है शौकीन तो जान ले होने वाली बीमारी के बारे में - मदन मोदी

प्रोसेस्ड फूड के हैं शौकीन, जान लें इससे होने वाली बीमारियों के बारे में
सभी जानते हैं कि प्रोसेस्ड और जंक फूड खाना सेहत के लिए कितना नुकसानदायक है। लेकिन इसके बावजूद लोग इस अनहेल्दी फूड से खुद को दूर नहीं रख पाते। नतीजा यह होता है कि हार्ट डिजीज के अलावा हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और डायबीटीज जैसी बीमारियां घेर लेती हैं। इसलिए बेहतर होगा कि प्रोसेस्ड फूड को आप हमेशा के लिए बाय-बाय बोल दें। प्रोसेस्ड फूड आइटम्स खाना कैसे नुकसान पहुंचाता है, आइए जानते हैं:
1- प्रोसेस्ड फूड का सेवन पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन पर बुरा असर डालता है। दरअसल, प्रॉसेसिंग में इस्तेमाल की जाने वाली स्ट्रिप्स पोषक तत्वों को खत्म कर देती हैं. उदाहरण के तौर पर जब गेहूं को प्रोसेस कर आटा बनाया जाता है तो इसमें व्याप्त जिंक की तीन-चौथाई मात्रा खत्म हो जाती है जो महत्वपूर्ण मिनरल है।
2- प्रोसेस्ड फूड के सेवन से कैंसर होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। पिछले साल आई एक स्टडी के अनुसार, जिन फूड आइटम्स में फ्लेवर्स और ऐडिटिव होते हैं, उनके सेवन से कैंसर का खतरा अधिक रहता है।
3- प्रोसेस्ड फूड में चीनी की अत्यधिक मात्रा होती है। चीनी के अलावा काफी फैट और सोडियम भी होता है जो सेहत के लिए सही नहीं है। इससे मोटापा, डायबीटीज और दिल की बीमारियां हो सकती हैं।
4- इनमें कार्बोहाइड्रेट काफी मात्रा में होते हैं। हालांकि सभी कार्बोहाइड्रेट्स नुकसानदायक नहीं होते, लेकिन इनमें से कुछ ऐसे होते हैं जिनकी वजह से ब्लड शुगर लेवल तेजी से बढ़ जाता है और वह डायबीटीज का कारण बन जाता है।
5- प्रोसेसिंग के दौरान खाने-पीने की चीजों से फाइबर पूरी तरह से निकाल दिया जाता है। इसकी वजह से आसानी से बॉडी में अब्जॉर्ब नहीं होते और पाचन संबंधी परेशानी हो जाती है।
मदन मोदी

Sunday 9 June 2019

किडनी डायलीसीस क्यों ????

किडनी डायलीसिस क्यों......?

किडनी स्वस्थ अवस्था में  इर्यथ्रोपोइटिन नाम का हार्मोन बनाती हैं। यह हार्मोन शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह का कार्य करने वाले लाल रक्त कणों की संख्या में इजाफा करता है। किडनी में लाखों मिनी फिल्टर होते हैं जिन्हें नेफरोंस कहते हैं जो पूरी जिंदगी खून साफ करने का काम करते हैं। किडनी में होने वाले इस सफाई सिस्टम के कारण हमारे शरीर से हानिकारक केमिकल्स पेशाब के साथ बह जाते हैं।
किडनी के अन्य कामों में लाल रक्त कण का बनना और फायदेमंद हार्मोंस रिलीज करना शामिल हैं। किडनियों द्वारा रिलीज किए गए हार्मोंस के द्वारा ब्लड प्रेशर नियंत्रित किया जाता है और हड्डियों के लिए बेहद जरूरी विटामिन डी का निर्माण किया जाता है।
किडनी इसके अलावा शरीर में पानी और अन्य जरूरी तत्व जैसे मिनरल्स, सोडियम, पोटेसियम और फॉस्फोरस का रक्त में संतुलन बनाए रखती हैं।
उम्र बढ़ने पर किडनी की कार्यशीलता भी प्रभावित होती है परंतु कुछ ऐसे कारण होते हैं जिनसे समय के पहले ही किडनी से जुडी समस्याएं सामने आ सकती हैं। ये समस्याएं कुछ कारणों से हो सकती हैं जिनमें किडनी की बीमारियों से जुड़ा पारिवारिक इतिहास,डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर, नशा और अधिक वजन शामिल हैं।

युरिनरी फंक्शन में बदलाव :

सबसे पहला लक्षण जो उभर कर आता है वह है युरिनरी फंक्शन में बदलाव।  किडनी में उत्पन्न समस्या के चलते युरीन (पेशाब) के रंग, मात्रा और कितने बार पेशाब आती है में बदलाव आ जाएगा। इसके अलावा आप इन लक्षणों पर ध्यान दे सकते हैं।
*  रात में बार बार पेशाब आना।
* पेशाब की इच्छा होना परंतु बाथरूम में जाने पर पेशाब न होना।
* हमेशा से ज्यादा गहरे रंग में पेशाब आना।
* झाग वाली और बुलबुलों वाली पेशाब आना।
* पेशाब में खून दिखना।
*पेशाब करने में दर्द होना या जलन होना।
*पीठ दर्द का कारण न समझ पाना:
आपकी पीठ और पेट के किनारों में बिना वजह दर्द महसूस करना किडनी में इंफेक्शन या किडनी संबंधी बिमारियों के लक्षण हो सकते हैं।
इसके अलावा शरीर अकड़ना और जोड़ों में समस्या सामने आती है।
पीठ में नीचे की तरफ होने वाले दर्द की एक वजह किडनी में पथरी भी हो सकती है।
पोलिसासिस्टिक रेनाल डिजिज एक वंशानुगत बीमारी है जिससे किडनी के सिस्ट में पानी भर जाता है
शरीर में सूजन आना:
सूजन हाथों, पैरों, जोड़ों, चेहरे और आंखों के नीचे हो सकती है। अगर आप अपनी त्वचा को उंगली से दबाएं और डिम्पल थोड़ी देर तक बने रहें तो डॉक्टर के पास जाने में देर न करें।
चक्कर आना और कमजोरी :
किडनी के कार्य सही न होने से ब्लड प्यूरीफाई होने में मुश्किल होती है, जिससे गंदगी शरीर मे ही रुकने लगती है। शरीर में एनीमिया की स्थिति बनने से सर घुमना, हल्का सरदर्द, बैलेंस न बनना जैसे लक्षण उभरते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एनीमिया की वजह से दिमाग तक जरूरी मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता।
साँस फूलना और सांस लेने में परेशानी उत्पन्न होना।
स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना :
  अचानक से त्वचा फटना, रेशेज होना, अजीब लगना और बहुत ज्यादा खुजली महसूस होना शरीर की गंदगी के एकत्रित होने के परिणाम हो सकते हैं। शरीर में कैल्सियम और फॉस्फोरस की मात्रा प्रभावित हो जाती है जिससे अचानक से बहुत ज्यादा खुजली होने लगती है
उल्टियां आना :
किडनी से जुड़ी समस्याओं के परिणामस्वरूप उल्टी आना।

गीली सी ठंड लगना : अच्छे मौसम के बावजूद अजीब सी ठंड लगना और कभी-कभी ठंड लगकर बुखार भी आ जाना।

अच्छे स्वास्थ्य की पहचान है कि शरीर के सभी अवयव सही और सुचारू रूप से काम करें। उन अवयवों में किडनी का सही काम करना बहुत जरूरी है। उपर्युक्त किसी भी तरह के लक्षणों को अनदेखा न करें। वरना आप डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट तक कि समस्या तक पहुँच सकते है।

Thursday 6 June 2019

स्वास्थ्य : क्या आप जानते आखिर सेहत का अर्थ क्‍या है ?

आमतौर पर स्वास्थ्य का मतलब समझा जाता है रोग-रहित जीवन। लेकिन क्या सचमुच यही स्वास्थ्य है? तो फिर स्वस्थ रहने का मतलब क्या है? 
और कैसे रहें स्वस्थ्य ? 
‘स्वास्थ्य’ का अंग्रेजी पर्याय ‘हेल्थ’ मूलतः ‘होल’ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ‘संपूर्ण’। यानी जब हम कहते है, ‘स्वस्थ महसूस कर रहा हूं’, मतलब, अपने भीतर हमें एक पूर्णता का अहसास होता है। चिकित्सकीय दृष्टि से यदि हम बीमारियों से मुक्त हैं तो हमें स्वस्थ माना जाता है। लेकिन यही स्वास्थ्य नहीं है। अगर हम देह, मन और आत्मा से एक पूर्ण मनुष्य जैसा महसूस करते हैं, तभी हम वास्तव में स्वस्थ हैं। ऐसे अनेक लोग हैं जो चिकित्सकीय दृष्टि से स्वस्थ हैं, पर वे सच्चे अर्थ में स्वस्थ नहीं हैं, क्योंकि वे अपने भीतर तंदुरुस्ती का एहसास नहीं कर रहे होते।
यदि कोई संपूर्णता और एकत्व का अनुभव करना चाहता है, तो ज़रूरी है कि उसका शरीर,
मन और मुख्य रूप से उसकी ऊर्जा एक खास स्तर की तीव्रता में उसके भीतर काम करें। अब चिकित्सा विज्ञान के अनुसार कोई शारीरिक रूप से स्वस्थ हो सकता है, पर उसकी ऊर्जा शिथिल हो सकती है। किसी व्यक्ति को यह पता नहीं चलता कि क्यों भीतरी और बाहरी जीवन में चीजें वैसी नहीं हो रही जैसा उन्हें होना चाहिय? क्योंकि वह अपनी ऊर्जा की कुशलता की परवाह नहीं करता।

शरीर और मन की हर स्थिति ऊर्जा पर आधारित होती है

जीवन में आप जिन भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों से गुजरते हैं, उनका एक आधार ऊर्जा होता है। उनका एक रासायनिक आधार भी होता है। आधुनिक एलौपेथिक दवाइयाँ एक प्रकार से सिर्फ रसायन ही हैं। आपके शरीर में कोई समस्या पैदा हुई और आपने कोई दवा ले ली। यानी आप एक रसायन लेकर अपने अंदर एक संतुलन बनाते हैं। अगर आप एक असर को कम करने के लिये या दूसरे असर को ब़ढाने के लिये किसी रसायन का उपयोग करते हैं, तो उसका एक दुष्प्रभाव भी होता है जिसे आमतौर पर आप उसका ‘साइड इफेक्ट’ कहते हैं। फिर इस साइड इफेक्ट के लिये एक तोड़ होता है, फिर उस तोड़ के लिये एक दूसरा तोड़ होता है। यानी यह एक अंतहीन श्रृंखला है।
आपके शरीर में जो भी रासायनिक स्तर पर हो रहा है, उसे केवल अपनी ऊर्जा द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए अपनी ऊर्जा को एक खास तरह से सक्रिय करना होगा। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में अम्ल की अधिकता हो जाए तो आप उसे क्षार-युक्त दवा देते हैं। लेकिन अम्ल की अधिकता होती क्यों है? उसके मन, उसके शरीर और मुख्य रूप से उसकी ऊर्जा के कार्य करने के ढंग के कारण।

योग में सिर्फ ऊर्जा को ठीक किया जाता है

 योग में जब हम स्वास्थ्य कहते हैं, हम शरीर को नहीं देखते, हम मन को नहीं देखते, हम सिर्फ ऊर्जा के ढंग को देखते हैं। अगर आपका ऊर्जा-शरीर सही संतुलन और पूर्ण प्रवाह में है, तो आपका स्थूल शरीर और मानसिक शरीर पूर्ण स्वस्थ होंगे, इसमें कोई शक नहीं है। ऊर्जा-शरीर को पूर्ण प्रवाह में रखने का मतलब किसी तरह की हीलिंग या वैसी किसी चीज से नहीं है। यह तो अपने मौलिक ऊर्जा-तंत्र में जाकर उसे उचित ढंग से सक्रिय करना है। मौलिक योग-साधना के अभ्यास के द्वारा अपनी ऊर्जा को इस तरह स्थापित करना है कि शरीर और मन स्वाभाविक रूप से कुशल रहें।
जब स्वास्थ्य की बात आती है, तो कोई भी इंसान पूर्णतः बेदाग स्थितियों में नहीं पलता। हम जो भोजन करते हैं, हम जिस हवा में सांस लेते हैं, हम जो पानी पीते हैं, रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव, ये सब हमें कई प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं। संसार में हम जितने अधिक सक्रिय रहते हैं, उतनी ही नकारात्मक चीजों के संपर्क में आते हैं जो हमारे रसायनिक संतुलन को बिगाड़ देती हैं, हमारे लिए स्वास्थ्य-समस्याएं खड़ी कर देती हैं। लेकिन, यदि अपने तंत्र में ऊर्जा को सही ढंग से तैयार किया जाए और उसे सक्रिय रखा जाए, तो इन चीजों का असर नहीं होगा। भौतिक और मानसिक शरीर पूरी तरह स्वस्थ रहेंगे, इसमें कोई शक नहीं।

आपने खुद को भौतिक और तार्किक तक सीमित किया है

 जीवन कई तरह से सक्रिय है। मान लीजिए, आप बिजली के बारे में कुछ नहीं जानते। आप नहीं जानते बिजली क्या है। हॉल में अंधेरा है। अगर मैं आपसे कहूं सिर्फ यह बटन दबाइये और सारे हॉल में रोशनी फैल जाती है, क्या आप मेरा विश्वास करेंगे? नहीं। ऐसे में अगर मेरे बटन दबाने से रोशनी प्रकट हो जाती है, तो आप इसे एक चमत्कार कहेंगे। सिर्फ इसलिये कि आप नहीं जानते बिजली कैसे कार्य करती है। इसी तरह, जीवन अनेक प्रकार से घटित होता है लेकिन आपने खुद को सिर्फ भौतिक व तार्किक तक सीमित कर रखा है - अनुभव में भौतिक और सोच में तार्किक।

अभी चिकित्सा विज्ञान सिर्फ स्थूल शरीर को जानने तक सीमित है। यदि इससे परे कुछ होता है, आप सोचते हैं यह चमत्कार है। मैं बस इसे एक दूसरे प्रकार का विज्ञान कहता हूं, इतना ही है। यह एक दूसरे प्रकार का विज्ञान है। आपके अन्दर की जीवन-ऊर्जा ने आपके संपूर्ण शरीर का निर्माण किया - ये अस्थियां, यह मांस, यह हृदय, ये गुर्दे और हर चीज। आप क्या सोचते हैं यह स्वास्थ्य पैदा नहीं कर सकती? यदि अपनी ऊर्जा को पूर्ण प्रवाह और उचित संतुलन में रखा जाए, तो ये महज स्वास्थ्य को बनाए रखने से ज्यादा बहुत कुछ करने में सक्षम है

Wednesday 5 June 2019

शरीर में कैसा भी जहर हो, काली जीरी निकाल फेंकेगी बाहर




काली जीरी एक छोटे आकार का, औषधीय गुणों से भरपूर पौधा होता है। काली जीरी स्वाद में तीखी और तेज होती है हमारे मन और मस्तिष्क को ज्यादा उत्तेजित करती है। चरक संहिता में स्पष्ट उल्लेख है कि शरीर में कैसा भी जहर हो काली जीरी उसको नष्ट करने की क्षमता रखती है। हालांकि यह सामान्य जीरे की ही तरह है, लेकिन इसका रंग काला होता है और यह आम जीरे से मोटा होता है।

          


खून की सफाई में कारगरयह औषधीय पौधा बहुत सी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है। यह शुगर (डायबिटीज) पर नियंत्रण में उपयोगी है और आपके बालों की देखभाल और वृद्धि में लाभ पहुंचाता है। साथ ही चर्म रोगों में फायदेमंद है। यह आपके कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। यह खून की सफाई में कारगर है और पेट के कीड़े नष्ट करता है। कुष्ठ रोगियों को भी इससे लाभ हुआ है। यूरिन संबंधी समस्याओं के निदान के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह गर्भाशय के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, मेथी और अजवाइन के साथ लेने पर वजन घटाने में उपयोगी और जहरीले जीवों के काटने या डंक लगने पर इसका उपयोग लाभ देता है। काली जीरी का उपयोग गठिया, हड्डियां, आँखों की समस्याओं के निदान, और बालों के विकास आदि के लिए भी किया जा सकता है।
वजन घटाने के लिए भी है प्रभावीकाली जीरी में आपकी पाचन शक्ति बढ़ाने की क्षमता है। जिन लोगों को कब्ज या पेट वाली बीमारियाँ है वे इसमें दो अन्य औषधियां मिलाकर प्रयोग करें। इस मिश्रण को त्रियोग कहा जाता है। तीनों औषधियों में मैथीदाना, जमाण और काली जीरी का सही अनुपात होता है। यह तीनों चीजें आपको आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। वजन घटाने के लिए भी यह प्रभावी मानी जाती है। इसके लिए आप 20 ग्राम काली जीरी को 100 ग्राम मेथी और 40 ग्राम अजवाइन में मिलाएं, और सभी को हल्के से भून लें। इसके बाद इस मिश्रण को हवाबंद डिब्बे में रखें, ताकि ये हवा के संपर्क में लगातार न रहे। रोज सोने के पूर्व हल्के गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। यह महिलाओं के लिए वजन घटाने का एक विशेष उपाय है, इस पाउडर से पाचन में भी सुधार होता है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहतरचरक संहिता में बताया गया है कि स्पष्ट है कि शरीर में कैसा भी जहर हो काली जीरी उसको नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसमें शरीर में मौजूद हर प्रकार के कीड़ों को नष्ट करने की भी मारक क्षमता है। ५ ग्राम काली जीरी लेकर उसको २०० ग्राम पानी में धीमी आंच पर उबालें। जब पानी की मात्रा घटकर १०० ग्राम बच जाए तो उसको थोड़ा ठंडा करके पी जाएँ। लेकिन याद रखें, ये बहुत कड़वा होता है। केवल ५-६ दिन तक पीना पर्याप्त होता है। इसकी तासीर गर्म होती है और सभी के लिए उपयोगी और उपयुक्त हो यह आवश्यक नहीं है। इसलिए इसके प्रयोग से पहले किसी अच्छे आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लेने की सावधानी अवश्य बरतें।

Thursday 3 January 2019

शरीर की सम्पूर्ण सफाई करने के लिए विशेष - शरीर शोधन चूर्ण


शरीर की सम्पूर्ण सफाई करने के लिए ये चूर्ण बहुत विशेष है. इस चूर्ण का उपयोग विशेष शरीर की सम्पूर्ण गंदगी को बाहर निकालने के लिए, आँतों की सफाई के लिए, पेट की सफाई के लिए, लीवर, तिल्ली, शूल एवम गर्भ के रोगों में भी बहुत लाभदायी है. 
                 कालादाना – 30 ग्राम. (कालादाना को कृष्ण बीज भी कहते हैं.)
                                                                सोनामुखी– 30 ग्राम व  काला नमक – 10 ग्राम.
सबसे पहले काले दाने और सनाय को पीस कूट कर छान लो, पीछे नमक को पीस छान कर उसी चूर्ण में मिला दो. इसी को शरीर शोधन चूर्ण कहते हैं.यह चूर्ण कब्ज मिटाने और दस्त खोलने में विचित्र है.यह चूर्ण यकृत, प्लीहा, शूल, और गर्भाशय, के रोगों में भी दिया जाता है, इनके सिवा, जिन रोगों में दवा देने से पहले कोठा साफ़ करने (पेट को बिलकुल साफ़) की ज़रूरत होती है, उन सबमे इसे दे सकते हैं. इसमें यह खूबी है के इससे पतला दस्त नहीं आता पर कोठे का सारा मल, बंधे हुए दस्त के रूप में निकल जाता है. इसकी सेवन की मात्रा 2 ग्राम से 5 ग्राम तक की है. एक दो दिन रात को सोते समय एक मात्रा चूर्ण फांक कर  ऊपर से गुनगुना जल पीना चाहिए. सवेरे ही एक या दो दस्त खुलासा होने से शरीर हल्का हो जाता है. पहले इसे थोड़ी मात्रा में सेवन करना चाहिए, पीछे मात्रा बढ़ा सकते हैं. लेकिन इस निर्देश के साथ के बलाबल अनुसार आरम्भ में मात्रा कम लें. अन्यथा पतले दस्त हो सकते हैं. इस दवा के खाने से पेट में दर्द सा होता है. क्यूंकि यह चूर्ण आँतों में जमे हुए मल को खुरचता है. ऐसी दशा में थोड़ी सी सौंफ मुंह में रख कर चूसने से शीघ्र ही मल निकल जाता है

Thursday 27 December 2018

हरड़े

https://youtu.be/XD1_snU2nGc

पेट के लिए बढ़िया औषधि है हरड़ ओर हरड़ के फायदे - विनय आयुर्वेदा

                                  पेट के लिए बढ़िया औषधि है हरड़ 
  
हरड़  दो प्रकार की होती  हैं− बड़ी हरड़ और छोटी हरड़। बड़ी हरड़ में सख्त गुठली होती है जबकि छोटी हरड़ में कोई गुठली नहीं होती। वास्तव में वे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही तोड़कर सुखा लिए जाते हैं उन्हें ही छोटी हरड़ की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार छोटी हरड़ का प्रयोग निरापद होता है क्योंकि आंतों पर इसका प्रभाव सौम्य होता है। 
बवासीर, सभी उदर रोगों, संग्रहणी आदि रोगों में हरड़ बहुत लाभकारी होती है। आंतों की नियमित सफाई के लिए नियमित रूप से हरड़ का प्रयोग लाभकारी है। लंबे समय से चली आ रही पेचिश तथा दस्त आदि से छुटकारा पाने के लिए हरड़ का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार के उदरस्थ कृमियों को नष्ट करने में भी हरड़ बहुत प्रभावकारी होती है।
अतिसार में हरड़ विशेष रूप से लाभकारी है। यह आंतों को संकुचित कर रक्तस्राव को कम करती हैं वास्तव में यही रक्तस्राव अतिसार के रोगी को कमजोर बना देता है। हरड़ एक अच्छी जीवाणुरोधी भी होती है। अपने जीवाणुनाशी गुण के कारण ही हरड़ के एनिमा से अल्सरेरिक कोलाइटिस जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
इन सभी रोगों के उपचार के लिए हरड़ के चूर्ण की तीन से चार ग्राम मात्रा का दिन में दो−तीन बार सेवन करना चाहिए। कब्ज के इलाज के लिए हरड़ को पीसकर पाउडर बनाकर या घी में सेकी हुई हरड़ की डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में शहद या सैंधे नमक में मिलाकर देना चाहिए। अतिसार होने पर हरड़ गर्म पानी में उबालकर प्रयोग की जाती है जबकि संग्रहणी में हरड़ चूर्ण को गर्म जल के साथ दिया जा सकता है।
हरड़ का चूर्ण, गोमूत्र तथा गुड़ मिलाकर रात भर रखने और सुबह यह मिश्रण रोगी को पीने के लिए दें इससे बवासीर तथा खूनी पेचिश आदि बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा इन रोगों के उपचार के लिए हरड़ का चूर्ण दही या मट्ठे के साथ भी दिया जा सकता है।
लीवर, स्पलीन बढ़ने तथा उदरस्थ कृमि आदि रोगों की इलाज के लिए लगभग दो सप्ताह तक लगभग तीन ग्राम हरड़ के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। हरड़ त्रिदोष नाशक है परन्तु फिर भी इसे विशेष रूप से वात शामक माना जाता है। अपने इसी वातशामक गुण के कारण हमारा संपूर्ण पाचन संस्थान इससे प्रभावित होता है। यह दुर्बल नाड़ियों को मजबूत बनाती है तथा कोषीय तथा अंर्तकोषीय किसी भी प्रकार के शोध निवारण में प्रमुख भूमिका निभाती है।
अगर आपको गैस या कब्ज की शिकायत है तो काली हरड़ को चूसें। खाना खाने के बाद अच्छी तरह धुली हुई काली हरड़ मुंह में रख लें। अगर इसे चूस कर सेवन करने में दिक्कत महसूस करें तो रात में एक गिलास में 250 ग्राम पानी में एक हरड़ डाल दें औरसुबह सूर्योदय से पहले उस पानी को पी लें। कब्ज या गैस से पूरी तरह मुक्ति के लिए चार से छह महीने तक हरड़ का सेवन करें।
 हरड़ हमारे लिए बहुत उपयोगी है परन्तु फिर भी कमजोर शरीर वाले व्यक्ति, अवसादग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्रियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

Wednesday 26 December 2018

आमवात ( Rheumatoid ) – कारण और आयुर्वेद औषध व्यवस्था

आयुर्वेद में बहुत सी वात व्याधियों का वर्णन है | इनमे से एक आमवात  है जिसे हम गठिया रोग भी कह सकते है | आमवात में पुरे शरीर की संधियों में तीव्र पीड़ा होती है साथ ही संधियों में सुजन भी रहती है | आमवात होने का प्रमुख कारण है हमारे शरीर मे दूषित वायु का बढ़ जाना हमारे  शरीर के सभी जोड़ो मे थोड़ा रिक्त स्थान होता है ओर हमारे शरीर मे उतपन्न दूषित वायु इन जोड़ो की रिक्त स्थान मे जमा हो जाती है ओर उसका परिणाम हम देखते है आमवात !   आमवात के रोगियो को सुबह सूर्योदय के पूर्व उठकर बासी मुह कम से कम 1 लीटर गुनगुना पानी बेठकर शिप शिप पीना चाहिए ! हमारी सुबह की लार के साथ गुनगुना पानी पीना आमवात के रोगियो के संजीवनी बूटी जेसा कार्य करता है क्यू की गुनगुना पानी पीने से छोटी आंत व बड़ी आंत से सफाई होते हुए अद्पच्चे अन्न से बने आम व मल पूरा साफ़ हो जाता है सुबह गुनगुना पानी पीने  का हमारे शरीर मे हुए बदलाव 7 दिन मे दिखने लगते है  

आमवात दो शब्दों से मिलकर बना है  – आम + वात |
आम अर्थात अद्पच्चा अन्न या एसिड और वात से तात्पर्य दूषित वायु | जब अद्पच्चे अन्न से बने आम के साथ दूषित वायु मिलती है तो ये संधियों में अपना आश्रय बना लेती है और आगे चल कर संधिशोथ व शुल्युक्त व्याधि का रूप ले लेती जिसे आयुर्वेद में आमवात और बोलचाल की भाषा में गठिया रोग कहते है | चरक संहिता में भी आमवात विकार की अवधारणा  का वर्णन मिलता है लेकिन आमवात रोग का विस्तृत वर्णन माधव निदान में मिलता है |
आमवात के कारण 
आयुर्वेद में विरुद्ध आहार को इसका मुख्य कारण माना है | मन्दाग्नि का मनुष्य जब स्वाद के विवश होकर स्निग्ध आहार का सेवन करता और तुरंत बाद व्यायाम कोई शारीरिक श्रम करता है तो उसे आमवात होने की सम्भावना हो जाती है | रुक्ष , शीतल विषम आहार – विहार, अपोष्ण संधियों में कोई चोट, अत्यधिक् व्यायाम, रात्रि जागरण , शोक , भय , चिंता , अधारणीय वेगो को धारण करने से आदि शारीरिक और मानसिक वातवरणजन्य कारणों के कारण आमवात होता है | 
आमवात के लिए कोई बाहरी कारण जिम्मेदार नहीं होता इसके लिए जिम्मेदार होता है हमारा खान-पान | विरुद्ध आहार के सेवन से शारीर में आम अर्थात यूरिक एसिड की अधिकता हो जाती है | साधारनतया हमारे शरीर में यूरिक एसिड बनता रहता है लेकिन वो मूत्र के साथ बाहर भी निकलता रहता है | जब अहितकर आहार और अनियमित दिन्चरिया के कारन यह शरीर से बाहर नहीं निकलता तो शरीर में इक्कठा होते रहता है और एक मात्रा से अधिक इक्कठा होने के बाद यह संधियों में पीड़ा देना शुरू कर देता है क्योकि यूरिक एसिड मुख्यतया संधियों में ही बनता है और इक्कठा होता है | इसलिए बढ़ा हुआ यूरिक एसिड ही आमवात का कारन बनता है |

वातहर योग ( हर्बल उकाला ) को 3 महिना सेवन करने से 100 % परिणाम प्राप्त हुए है आप चाहे तो मो - 84607 83401 पर कॉल करके मंगा सकते है इसकी कीमत 1  माह की 750 /- रुपए व 3 माह 1850 /- है   
आमवात के संप्राप्ति घटक 
दोष – वात और कफ प्रधान / आमदोष |
दूषित होने वाले अवयव – रस , रक्त, मांस, स्नायु और  अस्थियो में संधि |
अधिष्ठान – संधि प्रदेश / अस्थियो की संधि |
रोग के पूर्वप्रभाव – अग्निमंध्य, आलस्य , अंग्म्रद, हृदय भारीपन, शाखाओ में स्थिलता |
आचार्य माधवकर ने आमवात को चार भागो में विभक्त किया है 
1. वातप्रधान आमवात 
2. पितप्रधान आमवात 
3. कफप्रधान आमवात  
4. सन्निपताज आमवात 

आमवात में औषध प्रयोग 

आमवात में मुख्यतया संतुलित आहार -विहार का ध्यान रखे और यूरिक एसिड को बढ़ाने वाले भोजन का त्याग करे | अधिक से अधिक पानी पिए ताकि शरीर में बने हुए विजातीय तत्व मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलते रहे | संतुलित और सुपाच्य आहार के साथ विटामिन इ ,सी और भरपूर प्रोटीन युक्त भोजन को ग्रहण करे | अधिक वसा युक्त और तली हुई चीजो से परहेज रखे | 
इसके अलावा आप निम्न सारणी से देख सकते है आमवात की औषध व्यवस्था 

क्वाथ प्रयोग – रस्नासप्तक , रास्नापंचक , दशमूल क्वाथ, पुनर्नवा कषाय आदि |
स्वरस – निर्गुन्डी, पुनर्नवा , रास्ना आदि का स्वरस |
चूर्ण प्रयोग – अज्मोदादी चूर्ण, पंचकोल चूर्ण, शतपुष्पदी चूर्ण , चतुर्बिज चूर्ण |
वटी प्रयोग – संजीवनी वटी , रसोंनवटी, आम्वातादी वटी , चित्रकादी वटी , अग्नितुण्डी वटी आदि |
गुगुल्ल प्रयोग – सिंहनाद गुगुल्लू , योगराज गुगुल , कैशोर गुगुल , त्र्योंग्दशांग गुगुल्ल आदि |
भस्म प्रयोग – गोदंती भस्म, वंग भस्म आदि |
रस प्रयोग – महावातविध्वंसन रस, मल्लासिंदुर रस , समिर्पन्न्ग रस, वात्गुन्जकुश |
लौह – विदंगादी लौह, नवायस लौह , शिलाजीतत्वादी लौह, त्रिफलादी लौह |
अरिष्ट / आसव – पुनर्नवा आसव , अम्रितारिष्ट , दशमूलारिष्ट आदि |
तेल / घृत ( स्थानिक प्रयोग ) – एरंडस्नेह, सैन्धाव्स्नेह, प्रसारिणी तेल, सुष्ठी घृत आदि का स्थानिक प्रयोग 
स्वेदन – पत्रपिंड स्वेद, निर्गुन्द्यादी पत्र वाष्प |
सेक – निर्गुन्डी , हरिद्रा और एरंडपत्र से पोटली बना कर सेक करे | 
इसके अतिरिक्त हमे प्राचीन शास्त्रो से प्राप्त एक नुस्खा वातहर योग  द्वारा बहुत से मरीजो पर अपनाए जिसमे काफी अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ है !  
वातहर योग( हर्बल उकाला ) को 3 महिना सेवन करने से 100 % परिणाम प्राप्त हुए है आप चाहे तो मो - 84607 83401 पर कॉल करके मंगा सकते है इसकी कीमत 1  माह की 750 /- रुपए व 3 माह 1850 /- है